अध्ययन लेख 5
“मसीह का प्यार हमें मजबूर करता है”
“मसीह का प्यार हमें मजबूर करता है। . . . वह सबके लिए मरा ताकि जो जीते हैं वे अब से खुद के लिए न जीएँ।”—2 कुरिं. 5:14, 15.
गीत 13 मसीह, हमारा आदर्श
एक झलक a
1-2. (क) जब हम यीशु की ज़िंदगी और उसकी सेवा के बारे में पढ़ते हैं, तो हमें कैसा लगता है? (ख) इस लेख में हम क्या जानेंगे?
जब हमारे अपनों की मौत हो जाती है, तो हमें उनकी कितनी याद आती है! शुरू-शुरू में तो शायद हम यह सोचकर बहुत दुखी हो जाएँ कि उनकी मौत से पहले क्या-क्या हुआ या वे कितनी तकलीफ में थे। लेकिन शायद कुछ समय बाद हम उनके साथ बिताए अच्छे पलों को याद करने लगें, जैसे उनकी कोई ऐसी बात जो हमें बहुत अच्छी लगती थी या वे कैसे हमारा हौसला बढ़ाते थे। और शायद ऐसी बातें सोचकर हम फिर से खुश हो जाएँ और हमारे चेहरे पर एक मुस्कान आ जाए।
2 उसी तरह, स्मारक के आस-पास के महीनों में जब हम यीशु की मौत के बारे में पढ़ते हैं और सोचते हैं कि उसे कितना कुछ सहना पड़ा, तो हमें बहुत दुख होता है। लेकिन जब हम इस बारे में सोचते हैं कि धरती पर रहते वक्त उसने क्या-क्या किया और क्या-क्या सिखाया, तो इससे हमें बहुत खुशी मिलती है। और जब हम इस बारे में सोचते हैं कि यीशु का फिरौती बलिदान कितना खास है, वह आज क्या कर रहा है और आनेवाले वक्त में क्या करेगा, तो इससे हमारा बहुत हौसला बढ़ता है। (1 कुरिं. 11:24, 25) जब हम इन सब बातों पर मनन करेंगे और सोचेंगे कि यीशु हमसे कितना प्यार करता है, तो हमारा दिल एहसान से भर जाएगा। हमारा मन करेगा कि हम भी किसी तरह दिखाएँ कि यहोवा और यीशु ने हमारे लिए जो किया, उसकी हम कदर करते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि हम यह कैसे दिखा सकते हैं।
हम यीशु का एहसान मानते हैं, इसलिए सेवा करने में लगे रहते हैं
3. हम यीशु के फिरौती बलिदान के लिए क्यों बहुत एहसानमंद हैं?
3 जब हम यीशु की ज़िंदगी और उसके बलिदान के बारे में सोचते हैं, तो हमारा दिल एहसान से भर जाता है। जब वह धरती पर था, तो उसने लोगों को बताया कि परमेश्वर के राज में उन्हें क्या-क्या आशीषें मिलेंगी। जब हम उन आशीषों के बारे में पढ़ते हैं, तो हमें बहुत अच्छा लगता है। हम यीशु के फिरौती बलिदान के लिए भी बहुत एहसानमंद हैं जिसकी वजह से हम यहोवा और यीशु के दोस्त बन सकते हैं। हम यह भी जानते हैं कि यीशु पर विश्वास करने से हम हमेशा तक जी पाएँगे और हमारे जिन अज़ीज़ों की मौत हो गयी है, उनसे दोबारा मिल पाएँगे। (यूह. 5:28, 29; रोमि. 6:23) हम इनमें से कोई भी आशीष पाने के लायक नहीं हैं और ना ही इनके बदले में यहोवा और यीशु को कुछ दे सकते हैं। (रोमि. 5:8, 20, 21) लेकिन हम यह ज़रूर दिखा सकते हैं कि हम उनका कितना एहसान मानते हैं। कैसे?
4. मरियम मगदलीनी ने कैसे दिखाया कि वह यीशु की एहसानमंद है? (तसवीर देखें।)
4 मरियम मगदलीनी के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। वह एक यहूदी औरत थी। उसमें सात दुष्ट स्वर्गदूत समाए हुए थे और वह बहुत बुरे हाल में थी। शायद उसे लगता होगा कि कोई उसे ठीक नहीं कर पाएगा और उसे ज़िंदगी भर ऐसे ही रहना पड़ेगा। लेकिन सोचिए जब यीशु ने उसे ठीक कर दिया, तो उसे कैसा लगा होगा? उसका दिल एहसान से भर गया होगा। इसी वजह से वह यीशु के पीछे हो ली और उसने सोचा कि वह अपना समय, ताकत और अपनी संपत्ति यीशु की सेवा करने में लगाएगी। (लूका 8:1-3) यीशु ने मरियम के लिए जो किया था, वह अपने आप में बहुत बड़ी बात थी, लेकिन आगे चलकर वह और भी कुछ करनेवाला था जिसका शायद मरियम को अंदाज़ा भी नहीं था। वह सभी इंसानों के लिए अपनी जान देनेवाला था “ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे,” उसे हमेशा की ज़िंदगी मिले। (यूह. 3:16) जब यीशु काठ पर लटका हुआ था, तब भी मरियम वहीं थी। उसके वहाँ होने से ही यीशु और दूसरों को हिम्मत मिली होगी। (यूह. 19:25) यीशु की मौत के बाद वह दो और औरतों के साथ उसकी कब्र पर गयी ताकि उसके शरीर को दफनाने के लिए तैयार कर सके। (मर. 16:1, 2) मरियम यीशु की वफादार रही और इस तरह उसने दिखाया कि वह उसकी कितनी एहसानमंद है। उसे उसकी वफादारी का इनाम भी मिला। जब यीशु ज़िंदा हो गया, तो मरियम उससे मिल पायी और उसे यीशु से बात करने का मौका मिला। ऐसा करने का मौका यीशु के सिर्फ कुछ ही चेलों को मिला था।—यूह. 20:11-18.
5. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम यहोवा और यीशु के बहुत एहसानमंद हैं?
5 हम भी अपना समय, ताकत और पैसा यहोवा की सेवा करने में लगा सकते हैं और इस तरह दिखा सकते हैं कि हम उसके और यीशु के कितने एहसानमंद हैं। जैसे हम संगठन की इमारतों का निर्माण और रख-रखाव करने में मदद कर सकते हैं।
यहोवा और यीशु से प्यार करने की वजह से हम दूसरों से भी प्यार करते हैं
6. हम क्यों कह सकते हैं कि यीशु ने हममें से हरेक के लिए जान दी?
6 जब हम इस बारे में सोचते हैं कि यहोवा और यीशु हमसे कितना प्यार करते हैं, तो हमारा भी मन करता है कि हम उनसे प्यार करें। (1 यूह. 4:10, 19) और जब हम इस तरह सोचते हैं कि यीशु ने मेरे लिए जान दी, तो हम उनसे और भी प्यार करने लगते हैं। इस तरह सोचना सही भी है। पौलुस भी इसी तरह सोचता था और वह यीशु के बलिदान के लिए बहुत एहसानमंद था। ध्यान दीजिए, उसने अपनी एक चिट्ठी में क्या कहा: ‘परमेश्वर के बेटे ने मुझसे प्यार किया और खुद को मेरे लिए दे दिया।’ (गला. 2:20) यीशु के फिरौती बलिदान की वजह से ही यहोवा हमें अपने पास खींचता है और हम उसके दोस्त बन पाते हैं। (यूह. 6:44) जब आप इस बारे में सोचते हैं कि यहोवा ने आपके अंदर कुछ अच्छा देखा और आपको अपना दोस्त बनाने के लिए इतनी बड़ी कीमत चुकायी, तो आपको कैसा लगता है? क्या आपका दिल एहसान से नहीं भर जाता? क्या आपका मन नहीं करता कि आप यहोवा और यीशु से और ज़्यादा प्यार करें? और अगर हम यहोवा और यीशु से प्यार करते हैं, तो हमें सोचना चाहिए कि हम यह प्यार कैसे ज़ाहिर करेंगे।
7. जैसा तसवीर में दिखाया गया है, हम कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं कि हम यहोवा और यीशु से प्यार करते हैं? (2 कुरिंथियों 5:14, 15; 6:1, 2)
7 हम यहोवा और यीशु से प्यार करते हैं और यह हमें उभारता है कि हम दूसरों से भी प्यार करें। (2 कुरिंथियों 5:14, 15; 6:1, 2 पढ़िए।) दूसरों के लिए अपना प्यार ज़ाहिर करने का एक तरीका है बढ़-चढ़कर प्रचार करना। हम हर किसी को प्रचार करते हैं। हम यह नहीं देखते कि वह किस जाति का है या उसका रंग कैसा है, वह अमीर है या गरीब या समाज में उसका क्या ओहदा है। इस तरह हम यहोवा की मरज़ी पूरी कर रहे होते हैं। और उसकी यही मरज़ी है कि “सब किस्म के लोगों का उद्धार हो और वे सच्चाई का सही ज्ञान पाएँ।”—1 तीमु. 2:4.
8. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम अपने भाई-बहनों से प्यार करते हैं?
8 अपने भाई-बहनों से प्यार करके भी हम ज़ाहिर करते हैं कि हम यहोवा और यीशु से प्यार करते हैं। (1 यूह. 4:21) हम अपने भाई-बहनों की फिक्र करते हैं। जब उन पर कोई मुश्किल आती है, तो हम मदद करने के लिए तैयार रहते हैं। जब उनके किसी अपने की मौत हो जाती है, तो हम उन्हें दिलासा देते हैं। जब वे बीमार होते हैं, तो हम उनसे मिलने जाते हैं। और जब वे किसी बात को लेकर परेशान होते हैं या निराश हो जाते हैं, तो हम उनका हौसला बढ़ाते हैं। (2 कुरिं. 1:3-7; 1 थिस्स. 5:11, 14) हम उनके लिए प्रार्थना भी करते रहते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि “एक नेक इंसान की मिन्नतों का ज़बरदस्त असर होता है।”—याकू. 5:16.
9. भाई-बहनों के लिए अपना प्यार ज़ाहिर करने का एक और तरीका क्या है?
9 भाई-बहनों के लिए अपना प्यार ज़ाहिर करने का एक और तरीका है, उनके साथ शांति बनाए रखना। हमें यहोवा की तरह बनने की कोशिश करनी चाहिए जो हमें दिल खोलकर माफ करता है। सोचिए, यहोवा ने हमारे पाप माफ करने के लिए खुशी-खुशी अपने बेटे का बलिदान दे दिया। तो जब हमारे भाई-बहन हमारे खिलाफ पाप करते हैं, क्या हमें उन्हें माफ नहीं करना चाहिए? हम उस दुष्ट दास की तरह नहीं बनना चाहते जिसके बारे में यीशु ने एक मिसाल में बताया था। उसके मालिक ने उसका एक बड़ा कर्ज़ माफ कर दिया था। लेकिन उसने क्या किया? उसने अपने साथी का एक छोटा-सा कर्ज़ भी माफ नहीं किया। (मत्ती 18:23-35) अगर आपको किसी भाई या बहन के बारे में कोई गलतफहमी है, तो क्यों ना आप स्मारक से पहले उसके पास जाकर उससे सुलह करें? (मत्ती 5:23, 24) ऐसा करके आप दिखा सकते हैं कि आप यहोवा और यीशु से कितना प्यार करते हैं।
10-11. प्राचीन कैसे दिखा सकते हैं कि वे यहोवा और यीशु से प्यार करते हैं? (1 पतरस 5:1, 2)
10 प्राचीन कैसे दिखा सकते हैं कि वे यहोवा और यीशु से प्यार करते हैं? ऐसा करने का एक खास तरीका है, यीशु की भेड़ों की देखभाल करना। (1 पतरस 5:1, 2 पढ़िए।) यीशु ने पतरस से जो कहा, उससे भी हमें यही बात पता चलती है। उसने यीशु को जानने से तीन बार इनकार कर दिया था। इस वजह से वह बहुत दुखी हो गया होगा और किसी भी तरह यह दिखाना चाहता होगा कि वह यीशु से कितना प्यार करता है। इसलिए जब यीशु ने ज़िंदा होने के बाद उससे पूछा, “शमौन, यूहन्ना के बेटे, क्या तू मुझसे प्यार करता है,” तो पतरस अपना प्यार ज़ाहिर करने के लिए कुछ भी करने को तैयार था। तब यीशु ने उससे कहा, “चरवाहे की तरह मेरी छोटी भेड़ों की देखभाल कर।” (यूह. 21:15-17) पतरस ने ज़िंदगी-भर यह बात याद रखी और प्यार से यीशु की भेड़ों की देखभाल की। इस तरह उसने दिखाया कि वह यीशु से कितना प्यार करता है।
11 प्राचीनो, स्मारक के आस-पास के महीनों में आप कैसे दिखा सकते हैं कि आप भी वह बात मान रहे हैं जो यीशु ने पतरस से कही थी? लगातार भाई-बहनों की रखवाली भेंट कीजिए। खासकर उन भाई-बहनों का हौसला बढ़ाइए जो कुछ समय से यहोवा की सेवा नहीं कर रहे हैं और यहोवा के पास लौट आने में उनकी मदद कीजिए। (यहे. 34:11, 12) आप उन बाइबल विद्यार्थियों और नए लोगों से भी मिल सकते हैं जो स्मारक में हाज़िर होते हैं और उनका हौसला बढ़ा सकते हैं। याद रखिए, आगे चलकर वे भी यीशु के चेले बन सकते हैं। यह सब करके आप दिखा पाएँगे कि आप यहोवा और यीशु से कितना प्यार करते हैं।
हम यीशु से प्यार करते हैं, इसलिए हिम्मत से काम लेते हैं
12. यीशु ने अपने चेलों से जो कहा, उससे आज हमें क्यों हिम्मत मिल सकती है? (यूहन्ना 16:32, 33)
12 अपनी मौत से एक रात पहले यीशु ने अपने चेलों से कहा, “दुनिया में तुम्हें तकलीफें झेलनी पड़ेंगी, मगर हिम्मत रखो! मैंने इस दुनिया पर जीत हासिल कर ली है।” (यूहन्ना 16:32, 33 पढ़िए।) यीशु के कई दुश्मन थे, पर वह उनसे डरा नहीं। उसने हिम्मत रखी और आखिरी साँस तक वफादार रहा। वह यह कैसे कर पाया? उसने यहोवा पर भरोसा रखा। यीशु जानता था कि उसके चेलों को भी ऐसी ही मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा, इसलिए उसने यहोवा से बिनती की कि वह उनकी देखभाल करे। (यूह. 17:11) आज यहोवा हमारी भी देखभाल कर रहा है। यह जानकर हमें कितनी हिम्मत मिलती है। वह हमारे दुश्मनों से कहीं ज़्यादा ताकतवर है। (1 यूह. 4:4) उसकी नज़रों से कुछ नहीं छिपा। इसलिए हमें यकीन है कि अगर हम यहोवा पर भरोसा रखेंगे, तो हम डरेंगे नहीं बल्कि हिम्मत से काम ले पाएँगे।
13. अरिमतियाह के यूसुफ ने कैसे हिम्मत से काम लिया?
13 अरिमतियाह के यूसुफ के बारे में सोचिए। वह यहूदी महासभा का सदस्य था जो उस वक्त यहूदियों की सबसे बड़ी अदालत हुआ करती थी। समाज में उसका बहुत नाम था। वह यीशु का चेला तो था, लेकिन उसने कभी हिम्मत करके दूसरों को इसके बारे में बताया नहीं। बाइबल में लिखा है कि वह “यहूदियों के डर से यह बात छिपाए रखता था।” (यूह. 19:38) उसे शायद यह डर था कि अगर लोगों को पता चल गया कि वह यीशु का चेला है, तो वे उसकी इज़्ज़त नहीं करेंगे। लेकिन आखिरकार उसने हिम्मत से काम लिया। यीशु की मौत के बाद “वह हिम्मत करके पीलातुस के सामने गया और उसने यीशु की लाश माँगी।” (मर. 15:42, 43) इसके बाद सब जान गए कि वह यीशु का एक चेला है।
14. अगर आपको दूसरे लोगों से डर लगता है, तो आप क्या कर सकते हैं?
14 क्या कभी-कभी आपको भी यूसुफ की तरह दूसरों से डर लगता है? क्या स्कूल में या काम की जगह पर आप यह बताने से झिझकते हैं कि आप यहोवा के साक्षी हैं? क्या आप यह सोचकर प्रचारक नहीं बन रहे हैं या बपतिस्मा नहीं ले रहे हैं कि लोग आपके बारे में क्या सोचेंगे? ऐसा सोचकर सही काम करने से पीछे मत हटिए। इस बारे में यहोवा से प्रार्थना कीजिए, उससे हिम्मत माँगिए और ध्यान दीजिए कि वह कैसे आपकी मदद कर रहा है। तब आपका विश्वास मज़बूत होगा और आप हिम्मत से काम ले पाएँगे।—यशा. 41:10, 13.
हम खुश हैं, इसलिए हम यहोवा की सेवा में लगे रहते हैं
15. यीशु को ज़िंदा देखकर चेले बहुत खुश थे, इसलिए उन्होंने क्या किया? (लूका 24:52, 53)
15 यीशु की मौत के बाद उसके चेले बहुत दुखी थे। सोचिए, अगर आप उनकी जगह होते तो आप कैसा महसूस करते? उन्होंने ना सिर्फ अपना दोस्त खो दिया था, बल्कि ऐसा लगता है कि उन्होंने उम्मीद भी खो दी थी। (लूका 24:17-21) लेकिन ज़िंदा होने के बाद जब यीशु उनसे आकर मिला, तो वे कितने खुश हो गए होंगे! उसने उन्हें समझाया कि उसके बलिदान से बाइबल की भविष्यवाणियाँ कैसे पूरी हुईं। और उसने उन्हें एक ज़रूरी काम भी दिया। (लूका 24:26, 27, 45-48) 40 दिन बाद यीशु स्वर्ग चला गया। तब तक चेलों का दुख, खुशी में बदल चुका था। वे खुश थे कि यीशु ज़िंदा है और वह उस काम को पूरा करने में उनकी मदद करेगा जो उसने उन्हें दिया था। इसी खुशी ने उन्हें उभारा कि वे यहोवा की महिमा करते रहें।—लूका 24:52, 53 पढ़िए; प्रेषि. 5:42.
16. हम यीशु के चेलों से क्या सीख सकते हैं?
16 हम यीशु के चेलों से क्या सीख सकते हैं? हमें सिर्फ स्मारक के आस-पास के महीनों में ही नहीं, बल्कि बाकी महीनों में भी जोश से यहोवा की सेवा करनी चाहिए। ऐसा करने के लिए ज़रूरी है कि हम परमेश्वर के राज को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दें। इससे हमें बहुत खुशी मिलेगी। बहुत-से भाई-बहनों ने ऐसा ही किया है, जैसे कुछ ने फैसला किया है कि वे कम घंटे काम करेंगे ताकि ज़्यादा प्रचार कर पाएँ, सभाओं में हाज़िर हो पाएँ और लगातार पारिवारिक उपासना कर पाएँ। कुछ भाई-बहन बहुत सोच-समझकर चीज़ें खरीदते हैं। वे फैसला करते हैं कि वे कुछ चीज़ें नहीं लेंगे, जबकि शायद दूसरों को वे चीज़ें लेना ज़रूरी लगे। वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि वे मंडली के कामों में और हाथ बटा पाएँ या एक ऐसी जगह जाकर सेवा कर पाएँ जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। और यहोवा भी वादा करता है कि अगर हम वफादारी से उसकी सेवा करते रहें और उसके राज को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दें, तो वह हमें ढेरों आशीषें देगा।—नीति. 10:22; मत्ती 6:32, 33.
17. इस साल स्मारक के आस-पास के महीनों में आपने क्या करने की ठान ली है? (तसवीर देखें।)
17 हम सभी मंगलवार, 4 अप्रैल को स्मारक मनाने के लिए बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। लेकिन हम अभी से यीशु की ज़िंदगी और उसके बलिदान के बारे में गहराई से सोच सकते हैं और इस बारे में भी कि वह और यहोवा हमसे कितना प्यार करते हैं। और हम ऐसा स्मारक के बाद भी करते रह सकते हैं। आप थोड़ा समय निकाल सकते हैं और इस बारे में मनन कर सकते हैं कि धरती पर यीशु की ज़िंदगी के आखिरी हफ्ते में क्या-क्या हुआ। इस बारे में जानने के लिए आप नयी दुनिया अनुवाद बाइबल का अतिरिक्त लेख ख12 देख सकते हैं। जब आप यीशु की ज़िंदगी के बारे में पढ़ते हैं, तो ऐसे किस्सों पर ध्यान दीजिए जिन्हें पढ़कर आप उसका और यहोवा का और एहसान मानने लगें, उनसे और प्यार करने लगें, आपकी हिम्मत बढ़े और आपको खुशी मिले। फिर सोचिए कि आप कैसे दिखा सकते हैं कि आप उनके कितने एहसानमंद हैं। यकीन मानिए, जब आप इस साल स्मारक के आस-पास के महीनों में यह सब करेंगे, तो यीशु इससे बहुत खुश होगा!—प्रका. 2:19.
गीत 17 “मैं चाहता हूँ”
a स्मारक के आस-पास के महीनों में हमें यीशु की ज़िंदगी और उसके बलिदान के बारे में गहराई से सोचना चाहिए और इस बारे में भी कि वह और यहोवा हमसे कितना प्यार करते हैं। जब हम ऐसा करेंगे तो हमारा दिल उनके लिए एहसान से भर जाएगा। इस लेख में हम जानेंगे कि हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम फिरौती बलिदान के लिए बहुत एहसानमंद हैं और यहोवा और यीशु से बहुत प्यार करते हैं। हम यह भी जानेंगे कि हम भाई-बहनों के लिए अपना प्यार कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं, कैसे हिम्मत से काम ले सकते हैं और कैसे यहोवा की सेवा करने से खुशी पा सकते हैं।