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अध्ययन लेख 4

गीत 18 फिरौती के लिए एहसानमंद

फिरौती बलिदान से हम क्या सीखते हैं?

फिरौती बलिदान से हम क्या सीखते हैं?

“परमेश्‍वर का प्यार इस बात से ज़ाहिर हुआ।”1 यूह. 4:9.

क्या सीखेंगे?

फिरौती बलिदान से परमेश्‍वर और यीशु मसीह के कौन-से बढ़िया गुणों के बारे में पता चलता है?

1. हमें क्यों हर साल यीशु की मौत के स्मारक में हाज़िर होना चाहिए?

 फिरौती बलिदान यहोवा की तरफ से मिला एक बेशकीमती तोहफा है! (2 कुरिं. 9:15) यीशु के बलिदान की वजह से हम यहोवा के करीब आ सकते हैं, उसके दोस्त बन सकते हैं। इसकी वजह से हमें हमेशा तक जीने का मौका भी मिल सकता है। यहोवा ने हमसे इतना प्यार किया कि अपना बेटा हमारे लिए कुरबान कर दिया। (रोमि. 5:8) सच में, हम उसका जितना एहसान मानें उतना कम है! यीशु चाहता था कि हम कभी-भी फिरौती बलिदान को हलके में ना लें और इसके लिए यहोवा और यीशु का हमेशा एहसान मानें, इसलिए उसने प्रभु के संध्या-भोज की शुरूआत की।—लूका 22:19, 20.

2. इस लेख में हम क्या जानेंगे?

2 2025 का स्मारक शनिवार, 12 अप्रैल को मनाया जाएगा। हम सब ज़रूर इसमें हाज़िर होने के लिए तैयारियाँ कर रहे होंगे। लेकिन अगर हम स्मारक से पहले और उसके बाद भी इस बारे में मनन a करें कि यहोवा और यीशु ने हमारी खातिर कितना कुछ किया है, तो इससे हमें बहुत फायदा होगा। इस लेख में हम जानेंगे कि फिरौती के इंतज़ाम पर मनन करने से हम यहोवा और यीशु के बारे में क्या जान सकते हैं। और अगले लेख में हम जानेंगे कि फिरौती बलिदान से हमें कौन-सी आशीषें मिलती हैं और हम कैसे उसके लिए अपनी कदर ज़ाहिर कर सकते हैं।

फिरौती से हम यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं?

3. एक इंसान की मौत से लाखों-करोड़ों लोगों को ज़िंदगी कैसे मिल सकती है? (तसवीर भी देखें।)

3 फिरौती बलिदान से पता चलता है कि यहोवा हमेशा न्याय करता है। (व्यव. 32:4) वह कैसे? ज़रा इस बारे में सोचिए: आदम के आज्ञा तोड़ने की वजह से आज हम सब पापी हैं और एक-न-एक दिन मर जाते हैं। (रोमि. 5:12) हमें पाप और मौत से छुड़ाने के लिए यहोवा ने फिरौती का इंतज़ाम किया और यीशु को धरती पर भेजा। लेकिन एक परिपूर्ण इंसान के बलिदान से लाखों-करोड़ों लोगों को ज़िंदगी कैसे मिल सकती है? प्रेषित पौलुस ने बताया, “जैसे एक आदमी [आदम] के आज्ञा तोड़ने से बहुत लोग पापी ठहरे, उसी तरह एक आदमी [यीशु] के आज्ञा मानने से बहुत लोग नेक ठहरेंगे।” (रोमि. 5:19; 1 तीमु. 2:6) दूसरे शब्दों में कहें तो एक परिपूर्ण इंसान की गलती की वजह से सभी इंसानों को नुकसान हुआ, तो उसकी भरपाई करने के लिए भी एक परिपूर्ण इंसान को आज्ञा माननी थी।

एक आदमी की वजह से हम सब पाप और मौत की गुलामी में चले गए, उसी तरह एक आदमी की वजह से हम सब आज़ाद हो सकते हैं (पैराग्राफ 3)


4. यहोवा ने आदम के वफादार बच्चों को क्यों ऐसे ही हमेशा तक जीने का मौका नहीं दिया?

4 हमें पाप और मौत से छुड़ाने के लिए क्या यीशु का मरना सच में ज़रूरी था? क्या यहोवा मामले को ऐसे ही रफा-दफा नहीं कर सकता था? क्या वह आदम के वफादार बच्चों को यूँ ही हमेशा तक जीने का मौका नहीं दे सकता था? शायद हम अपरिपूर्ण इंसानों को लगे कि अगर यहोवा ऐसा करता तो कितना अच्छा होता। लेकिन ऐसा करना यहोवा के न्याय के स्तरों के खिलाफ होता। यह ऐसा होता मानो यहोवा आदम के पाप को अनदेखा कर रहा है। पर यहोवा ऐसा कभी नहीं कर सकता, क्योंकि वह हमेशा न्याय करता है।

5. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमेशा वही करेगा जो सही है?

5 मान लीजिए, यहोवा फिरौती का इंतज़ाम नहीं करता और अपने न्याय के स्तरों को नज़रअंदाज़ करके आदम के अपरिपूर्ण बच्चों को हमेशा तक जीने देता। तो ऐसे में क्या हो सकता था? लोगों को शायद लगता कि पता नहीं यहोवा आगे चलकर अपने न्याय के स्तरों को मानेगा या नहीं, अपनी ज़ुबान का पक्का रहेगा या नहीं। जैसे, वे शायद सोचते कि क्या पता यहोवा अपने सारे वादे पूरे करेगा भी या नहीं। लेकिन हमें यह सब सोचकर चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। क्यों नहीं? क्योंकि हम जानते हैं कि यहोवा ने अपने न्याय के स्तरों से समझौता नहीं किया, बल्कि इसके लिए एक बड़ी कीमत चुकायी और अपने सबसे प्यारे बेटे की कुरबानी दी। इस वजह से हमें पूरा यकीन है कि वह हमेशा वही करेगा जो सही है।

6. फिरौती बलिदान से कैसे पता चलता है कि यहोवा हमसे बहुत प्यार करता है? (1 यूहन्‍ना 4:9, 10)

6 फिरौती के इंतज़ाम से पता चलता है कि यहोवा हमेशा न्याय करता है। लेकिन इससे हम यह भी जान पाते हैं कि यहोवा हमसे कितना प्यार करता है। (यूह. 3:16; 1 यूहन्‍ना 4:9, 10 पढ़िए।) यहोवा ने फिरौती सिर्फ इसलिए नहीं दी कि हम हमेशा तक जी पाएँ, बल्कि वह यह भी चाहता है कि हम उसके परिवार का हिस्सा बनें। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? जब आदम ने पाप किया, तो यहोवा ने उसे अपने परिवार से बेदखल कर दिया। इस वजह से आदम की संतानें उसके परिवार का हिस्सा नहीं रहीं। लेकिन फिरौती बलिदान की वजह से यहोवा आज हमारे पाप माफ कर देता है। और जो उस पर विश्‍वास करते हैं और उसकी आज्ञा मानते हैं, उन्हें वह एक दिन अपने परिवार का हिस्सा बनाएगा। पर आज भी हम यहोवा के साथ और भाई-बहनों के साथ एक अच्छा रिश्‍ता बना सकते हैं। सच में, यहोवा हमसे बेइंतिहा प्यार करता है!—रोमि. 5:10, 11.

7. यीशु ने जो दर्द सहा, उससे कैसे पता चलता है कि यहोवा हमसे बहुत प्यार करता है?

7 यहोवा हमसे कितना प्यार करता है इस बात को समझने के लिए, ज़रा सोचिए कि यहोवा ने फिरौती देने के लिए कितनी भारी कीमत चुकायी। शैतान ने दावा किया था कि अगर किसी इंसान पर मुश्‍किलें आएँ, तो वह यहोवा का वफादार नहीं रहेगा। इस इलज़ाम को झूठा साबित करने के लिए यहोवा ने अपने बेटे को तड़प-तड़पकर मरने दिया। (अय्यू. 2:1-5; 1 पत. 2:21) जब धर्म गुरु उसके बेटे का मज़ाक उड़ा रहे थे, तो यहोवा यह देख रहा था। यहोवा ने यह भी देखा कि किस तरह सैनिक कोड़े मार-मारकर उसके बेटे की चमड़ी उधेड़ रहे हैं। फिर उसकी आँखों के सामने ही उसके बेटे को काठ पर कीलों से ठोंक दिया गया। और जब उसका प्यारा बेटा काठ पर लटका तड़प रहा था और जब उसने आखिरी साँस ली, तो यहोवा यह सब देख रहा था। (मत्ती 27:28-31, 39) यहोवा के पास बहुत ताकत है, वह चाहता तो यह सब कभी-भी रोक सकता था। जैसे जब विरोधी यीशु से कह रहे थे, “अगर परमेश्‍वर इसे चाहता है, तो इसे बचाए” तो यहोवा उसे बचा सकता था। (मत्ती 27:42, 43) लेकिन अगर यहोवा ऐसा करता, तो यीशु फिरौती बलिदान नहीं दे पाता और हमारे पास कोई आशा नहीं होती। इसलिए यहोवा ने दिल पर पत्थर रखकर अपने बेटे को इतना दर्द सहने दिया।

8. अपने बेटे को तड़पता हुआ देखकर क्या यहोवा को दुख हुआ होगा? समझाइए। (तसवीर भी देखें।)

8 यह तो है कि यहोवा सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उसमें भावनाएँ नहीं हैं। ज़रा सोचिए, हम इंसानों को परमेश्‍वर ने अपनी छवि में बनाया है। अगर हमारे अंदर भावनाएँ हैं, तो ज़ाहिर-सी बात है कि यहोवा में भी भावनाएँ हैं। बाइबल में बताया गया है कि यहोवा को भी ‘दुख पहुँचता’ है और उसका भी ‘दिल दुखता’ है। (भज. 78:40, 41) इस बात को समझने के लिए अब्राहम और इसहाक के किस्से पर ध्यान दीजिए। आपको याद होगा कि यहोवा ने अब्राहम को आज्ञा दी थी कि वह अपने इकलौते बेटे की बलि चढ़ाए। (उत्प. 22:9-12; इब्रा. 11:17-19) सोचिए, जब अब्राहम अपने बेटे की बलि चढ़ाने की तैयारी कर रहा होगा, तो उसके मन में कितना कुछ चल रहा होगा। फिर जब उसने अपने बेटे को मारने के लिए छुरा उठाया होगा, तो उसके दिल पर क्या बीती होगी! अब यहोवा के बारे में सोचिए, जब उसने देखा होगा कि लोग किस तरह बेरहमी से उसके बेटे को तड़पा-तड़पाकर मार रहे हैं, तो उस पर क्या बीती होगी, उसका दिल कैसे छलनी हो गया होगा।—jw.org पर दिया वीडियो उनके विश्‍वास की मिसाल पर चलिए—अब्राहम, भाग 2 देखें।

अपने बेटे को तड़पता हुआ देखकर यहोवा का दिल छलनी हो गया (पैराग्राफ 8)


9. रोमियों 8:32, 38, 39 से यहोवा के प्यार के बारे में क्या पता चलता है?

9 फिरौती के इंतज़ाम से पता चलता है कि यहोवा हमसे सबसे ज़्यादा प्यार करता है। हमारे परिवारवाले और हमारा सबसे अच्छा दोस्त हमसे जितना प्यार करता है, उससे भी कहीं ज़्यादा। (रोमियों 8:32, 38, 39 पढ़िए।) हम खुद से जितना प्यार करते हैं, यहोवा हमसे उससे भी कहीं ज़्यादा प्यार करता है। क्या आप हमेशा तक जीना चाहते हैं? आपसे ज़्यादा यहोवा चाहता है कि आप हमेशा तक जीएँ। क्या आप चाहते हैं कि आपके पाप माफ हो जाएँ? आपसे कहीं ज़्यादा यहोवा चाहता है कि वह आपके पाप माफ करे। और बदले में वह हमसे बस यह चाहता है कि उसने फिरौती का जो इंतज़ाम किया है हम उसकी कदर करें, उस पर विश्‍वास करें और उसकी आज्ञा मानें। फिरौती बलिदान सच में यहोवा के प्यार का ज़बरदस्त सबूत है। और नयी दुनिया में हम यहोवा के प्यार के बारे में और भी बहुत कुछ जानेंगे।—सभो. 3:11.

फिरौती से हम यीशु के बारे में क्या सीखते हैं?

10. (क) यीशु अपनी मौत के बारे में सोचकर क्यों दुखी था? (ख) यीशु ने किस तरह यहोवा का नाम पवित्र किया? (“ यीशु ने वफादार रहकर यहोवा का नाम पवित्र किया” नाम का बक्स भी देखें।)

10 यीशु को अपने पिता के नाम की बहुत फिक्र है। (यूह. 14:31) यीशु को यह सोचकर बहुत दुख हो रहा था कि जब उस पर अपने पिता की निंदा करने का इलज़ाम लगाया जाएगा और एक अपराधी के तौर पर मार डाला जाएगा, तो उसके पिता की कितनी बदनामी होगी। इसीलिए उसने यहोवा से प्रार्थना में कहा, “मेरे पिता, अगर हो सके तो यह प्याला मेरे सामने से हटा दे।” (मत्ती 26:39) यीशु आखिरी साँस तक यहोवा का वफादार रहा और इस तरह उसने अपने पिता का नाम पवित्र किया।

11. यीशु ने कैसे ज़ाहिर किया कि वह लोगों से प्यार करता है? (यूहन्‍ना 13:1)

11 फिरौती के इंतज़ाम से यह भी पता चलता है कि यीशु को लोगों की बहुत फिक्र है, खासकर अपने चेलों की। (नीति. 8:31; यूहन्‍ना 13:1 पढ़िए।) हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? यीशु जानता था कि धरती पर उसकी सेवा आसान नहीं होगी, उसे कई मुश्‍किलें सहनी होंगी और उसकी मौत बहुत दर्दनाक होगी। फिर भी, यीशु ने यहोवा का दिया काम पूरा किया। और उसने सिर्फ खाना-पूर्ति के लिए ऐसा नहीं किया, बल्कि उसने दिलो-जान से लोगों को प्रचार किया, उन्हें सिखाया और उनकी सेवा की। उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह लोगों से बहुत प्यार करता है। यहाँ तक कि अपनी मौत से एक रात पहले यीशु ने अपने प्रेषितों के पैर धोए। उसने उन्हें दिलासा दिया और कुछ हिदायतें भी दीं। (यूह. 13:12-15) और जब वह काठ पर लटका हुआ था, तो उसने अपने पास लटके एक अपराधी को आशा दी और अपनी माँ की देखभाल करने का भी इंतज़ाम किया। (लूका 23:42, 43; यूह. 19:26, 27) इस तरह यीशु ने ना सिर्फ जान देकर हमारे लिए अपना प्यार ज़ाहिर किया बल्कि उसने जिस तरह ज़िंदगी जी, उससे भी पता चलता है कि वह हमसे कितना प्यार करता है।

12. यीशु किस तरह आज भी हमारी खातिर त्याग कर रहा है?

12 यह सच है कि यीशु ने “एक ही बार” में हमेशा के लिए अपनी जान कुरबान कर दी, लेकिन वह आज भी हमारी खातिर कई त्याग कर रहा है। (रोमि. 6:10) वह कैसे? हमें फिरौती बलिदान से पूरा-पूरा फायदा हो, इसके लिए यीशु आज भी बहुत मेहनत कर रहा है। जैसे हमारा राजा और महायाजक होने के नाते वह बहुत कुछ कर रहा है और मंडली का मुखिया होने की ज़िम्मेदारी भी निभा रहा है। (1 कुरिं. 15:25; इफि. 5:23; इब्रा. 2:17) यही नहीं, उसे अभिषिक्‍त जनों और बड़ी भीड़ के लोगों को इकट्ठा करने का काम सौंपा गया है। यह एक ऐसा काम है जो महा-संकट के खत्म होने से पहले पूरा होना है। b (मत्ती 25:32; मर. 13:27) यीशु इस बात का भी ध्यान रख रहा है कि इन आखिरी दिनों में मसीहियों को सही वक्‍त पर खाना मिलता रहे, ताकि वे यहोवा के वफादार रह पाएँ। (मत्ती 24:45) और अपने 1,000 साल के राज के दौरान भी वह हमारी खातिर बहुत कुछ करेगा। यहोवा ने सच में हमारे लिए अपने बेटे को पूरी तरह दे दिया!

नयी-नयी बातें सीखते रहिए

13. मनन करने से हम कैसे यह सीखते रह सकते हैं कि यहोवा और यीशु हमसे बहुत प्यार करते हैं?

13 यहोवा और यीशु ने आपके लिए जो किया है, उस पर मनन करते रहने से आप और अच्छी तरह समझ पाएँगे कि वे आपसे कितना प्यार करते हैं। तो क्यों ना इस साल स्मारक से कुछ हफ्ते पहले और उसके बाद के हफ्तों में खुशखबरी की एक-दो किताबें ध्यान से पढ़ने की कोशिश करें? एक बार में कई सारे अध्याय पढ़ने की कोशिश मत कीजिए, बल्कि आराम से पढ़िए। और ऐसी और भी वजह ढूँढ़ने की कोशिश कीजिए कि आपको यहोवा और यीशु से क्यों प्यार करना चाहिए। इतना ही नहीं, आप जो सीखते हैं, वह दूसरों को भी बताइए।

14. खोजबीन करने से हम फिरौती और दूसरे विषयों के बारे में कैसे नयी-नयी बातें सीखते रह सकते हैं? (भजन 119:97) (तसवीर भी देखें।)

14 अगर आप कई सालों से यहोवा के साक्षी हैं, तो शायद आप सोचें, ‘परमेश्‍वर के न्याय, उसके प्यार और फिरौती जैसे विषयों के बारे में तो हम पहले से ही बहुत कुछ जानते हैं। अब इस बारे में हम और क्या नया सीख सकते हैं?’ लेकिन सच तो यह है कि ऐसे विषयों के बारे में हम हमेशा कुछ-न-कुछ नया सीखते रह सकते हैं। वह कैसे? इन विषयों के बारे में हमारे प्रकाशनों में जो बढ़िया जानकारी दी गयी है, उसका अच्छी तरह अध्ययन कीजिए। अगर आप कोई ऐसी जानकारी पढ़ते हैं जो आपको पूरी तरह समझ में नहीं आती, तो खोजबीन कीजिए। फिर आपने जो सीखा है उस बारे में पूरे दिन मनन कीजिए। और इस बारे में सोचिए कि उस जानकारी से यहोवा और यीशु के बारे में क्या पता चलता है और यह कैसे ज़ाहिर होता है कि वे आपसे बहुत प्यार करते हैं।—भजन 119:97 और फुटनोट पढ़िए।

चाहे हम सालों से यहोवा के साक्षी हों, हम फिरौती बलिदान के लिए अपनी कदर बढ़ाते रह सकते हैं (पैराग्राफ 14)


15. हमें क्यों बाइबल से अनमोल रत्न ढूँढ़ते रहने चाहिए?

15 जब आप पढ़ने बैठते हैं या खोजबीन करते हैं, तो हो सकता है कि हर बार आपको कुछ नया या मज़ेदार सीखने को ना मिले। ऐसे में निराश मत होइए। ज़रा उन लोगों के बारे में सोचिए जो सोने की तलाश करते हैं। उन्हें बहुत सब्र रखना पड़ता है। कई बार तो कई-कई घंटे या दिनों तक तलाश करने के बाद उन्हें सोने का एक छोटा-सा टुकड़ा मिलता है। लेकिन वे हार नहीं मानते, क्योंकि वे जानते हैं कि सोने का एक टुकड़ा भी बहुत कीमती होता है। लेकिन बाइबल से हम जो रत्न ढूँढ़ते हैं, वे सोने से कहीं ज़्यादा अनमोल हैं! (भज. 119:127; नीति. 8:10) इसलिए सब्र रखिए, हर दिन बाइबल पढ़ते रहिए और नयी-नयी बातों की खोज करते रहिए।—भज. 1:2.

16. हम यहोवा और यीशु की तरह कैसे बन सकते हैं?

16 अध्ययन करने के बाद सोचिए कि आपने जो बातें सीखी हैं, आप उनके हिसाब से कैसे चल सकते हैं। जैसे, जिस तरह यहोवा हमेशा न्याय करता है, आप भी वैसा ही कीजिए। कभी-भी किसी के साथ भेदभाव मत कीजिए। यीशु की तरह यहोवा और लोगों से प्यार कीजिए। यहोवा के नाम की खातिर अगर आपको दुख झेलने पड़ें, तो इसके लिए तैयार रहिए और भाई-बहनों की खातिर जी-जान लगा दीजिए। यही नहीं, यीशु की तरह लोगों को खुशखबरी सुनाइए ताकि वे भी जान सकें कि यहोवा ने हमें कितना अनमोल तोहफा दिया है और वे फिरौती से फायदा पा सकें।

17. अगले लेख में हम क्या जानेंगे?

17 जितना ज़्यादा हम फिरौती के बारे में जानेंगे और उसके लिए अपनी कदर बढ़ाएँगे, उतना ही यहोवा और उसके बेटे के लिए हमारा प्यार बढ़ेगा। बदले में वे भी हमसे और प्यार करने लगेंगे। (यूह. 14:21; याकू. 4:8) तो फिरौती बलिदान के बारे में जानने के लिए यहोवा ने जो इंतज़ाम किए हैं, उनका पूरा-पूरा फायदा उठाइए। अगले लेख में हम जानेंगे कि फिरौती बलिदान की वजह से हमें क्या-क्या आशीषें मिलती हैं और यहोवा ने हमसे जो प्यार किया है, उसके लिए हम अपनी कदर कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं।

गीत 107 यहोवा के प्यार की मिसाल

a इसका क्या मतलब है? “मनन” करने का मतलब है किसी विषय के बारे में गहराई से सोचना और उसे अच्छी तरह समझने के लिए और जानकारी हासिल करना।

b इफिसियों 1:10 में प्रेषित पौलुस ने ‘स्वर्ग की चीज़ों’ को इकट्ठा करने की जो बात कही और मत्ती 24:31 और मरकुस 13:27 में यीशु मसीह ने “चुने हुओं को” इकट्ठा करने की जो बात कही, उन दोनों में फर्क है। पौलुस उस समय की बात कर रहा था जब यहोवा पवित्र शक्‍ति से कुछ लोगों का अभिषेक करके उन्हें यीशु के साथ राज करने के लिए चुनता है। और यीशु उस समय की बात कर रहा था जब धरती पर बचे हुए अभिषिक्‍त मसीहियों को महा-संकट के दौरान स्वर्ग में इकट्ठा किया जाएगा।