अध्ययन लेख 30
सच्चाई की राह पर चलते रहिए
“मुझे इससे ज़्यादा किस बात से खुशी मिल सकती है कि मैं यह सुनूँ कि मेरे बच्चे सच्चाई की राह पर चल रहे हैं।”—3 यूह. 4.
गीत 54 “राह यही है!”
लेख की एक झलक *
1. तीसरा यूहन्ना 3 और 4 के मुताबिक हमें कब खुशी मिलती है?
प्रेषित यूहन्ना ने कई लोगों को सच्चाई सिखायी थी। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि बरसों बाद जब उसने सुना कि वे लोग अब भी सच्चाई की राह पर चल रहे हैं, तो उसे कितनी खुशी हुई होगी? यूहन्ना के लिए ये वफादार मसीही मानो उसके बच्चे थे। वे कई मुश्किलों का सामना कर रहे थे। उनका विश्वास मज़बूत करने के लिए यूहन्ना ने कई तरीकों से उनकी मदद की। आज जब हमारे बच्चे या जिन्हें हम सच्चाई सिखाते हैं, वे यहोवा को अपना जीवन समर्पित करते हैं और उसकी सेवा में लगे रहते हैं, तो हमें भी बहुत खुशी होती है।—3 यूहन्ना 3, 4 पढ़िए।
2. यूहन्ना ने वफादार मसीहियों को चिट्ठियाँ क्यों लिखीं?
2 यूहन्ना पतमुस द्वीप की जेल में कैद था। वहाँ से रिहा होने के बाद शायद वह इफिसुस या उसके आस-पास कहीं रहने लगा। वहीं पर ईसवी सन् 98 में यहोवा की पवित्र शक्ति ने उसे तीन चिट्ठियाँ लिखने के लिए उभारा। उसने ये चिट्ठियाँ इसलिए लिखीं क्योंकि वह वफादार मसीहियों को यीशु पर विश्वास करने और सच्चाई की राह पर चलते रहने का बढ़ावा देना चाहता था।
3. हम किन सवालों के जवाब जानेंगे?
3 यीशु के सभी प्रेषितों की मौत हो चुकी थी, सिर्फ यूहन्ना ज़िंदा था। उसे भाई-बहनों की चिंता खाए जा रही थी, क्योंकि मंडली में झूठे शिक्षक घुस आए थे और वे उन्हें गुमराह कर रहे थे। * (1 यूह. 2:18, 19, 26) ये बगावती लोग यहोवा को जानने का दावा तो करते थे, मगर उसकी आज्ञाएँ नहीं मानते थे। इस लेख में हम देखेंगे कि यूहन्ना ने मसीहियों को क्या सलाह दी थी। हम इन तीन सवालों के जवाब भी जानेंगे: सच्चाई की राह पर चलने का क्या मतलब है? इस राह में कौन-सी रुकावटें आ सकती हैं? इस राह पर चलते रहने में हम एक-दूसरे की कैसे मदद कर सकते हैं?
सच्चाई की राह पर चलने का क्या मतलब है?
4. पहला यूहन्ना 2:3-6 और 2 यूहन्ना 4 और 6 के मुताबिक सच्चाई की राह पर चलने के लिए हमें क्या करना होगा?
4 सच्चाई की राह पर चलने के लिए हमें परमेश्वर के वचन में दर्ज़ सच्चाई को समझना होगा। साथ ही, हमें ‘यहोवा की आज्ञाएँ माननी’ होंगी। (1 यूहन्ना 2:3-6; 2 यूहन्ना 4, 6 पढ़िए।) यीशु ने हमेशा यहोवा की आज्ञाएँ मानीं। वह हमारे लिए एक बढ़िया मिसाल है। यहोवा की आज्ञा मानने का एक तरीका है, यीशु के नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलना।—यूह. 8:29; 1 पत. 2:21.
5. हमें किस बात का यकीन होना चाहिए?
5 सच्चाई की राह पर चलने के लिए हमें पूरा यकीन होना चाहिए कि यहोवा सच्चाई का परमेश्वर है और उसने अपने वचन बाइबल में जो भी बातें लिखवायी हैं, वे सभी सच हैं। हमें इस बात का भी यकीन होना चाहिए कि यीशु ही वादा किया गया मसीहा है। आज कई लोग यह नहीं मानते कि यहोवा ने यीशु को अपने राज का राजा बनाया है। यूहन्ना ने पहले ही खबरदार किया था कि “बहुत-से धोखा देनेवाले” आएँगे और उन लोगों को गमुराह करेंगे जिनका विश्वास मज़बूत नहीं है। (2 यूह. 7-11) उसने लिखा, “झूठा कौन है? क्या वह नहीं जो इस बात से इनकार करता है कि यीशु ही मसीह है?” (1 यूह. 2:22) अगर हम गुमराह नहीं होना चाहते, तो यह बहुत ज़रूरी है कि हम परमेश्वर के वचन का अध्ययन करें। ऐसा करने से ही हम यहोवा और यीशु को जान पाएँगे। (यूह. 17:3) तभी हमें यकीन होगा कि हमारे पास सच्चाई है।
इस राह में कौन-सी रुकावटें आ सकती हैं?
6. नौजवानों के सामने कौन-सी रुकावट आ सकती है?
6 सभी मसीहियों को खबरदार रहना चाहिए कि वे इंसानी विचारधाराओं से गुमराह न हो जाएँ। (1 यूह. 2:26) खासकर मसीही नौजवानों को इस फंदे से बचकर रहना चाहिए। फ्रांस में रहनेवाली 25 साल की एक बहन अलेक्सिया * कहती है, “जब मैं स्कूल में थी तो मुझे विकासवाद और इस तरह की कई इंसानी विचारधाराएँ सिखायी गयी थीं। कभी-कभी मुझे ये बातें सही लगती थीं, इसलिए बाइबल की शिक्षाओं पर मुझे शक होने लगा। लेकिन फिर मैंने सोचा कि मुझे आँख मूँदकर टीचरों की हर बात नहीं मान लेनी चाहिए। यहोवा जो कहता है, मुझे उस पर भी ध्यान देना चाहिए।” फिर अलेक्सिया ने जीवन—इसकी शुरूआत कैसे हुई? विकासवाद से या सृष्टि से? नाम की किताब अच्छी तरह पढ़ी। * कुछ ही हफ्तों में उसके सारे शक दूर हो गए। वह कहती है, “मैंने खुद जाँच-परख की और मुझे यकीन हुआ कि बाइबल में ही सच्चाई है। मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर के स्तरों पर चलने से ही मुझे खुशी और शांति मिल सकती है।”
7. हमें किस बात से खबरदार रहना चाहिए और क्यों?
1 यूह. 1:6) हमें याद रखना चाहिए कि यहोवा हमें हर वक्त देख रहा है। हमें हमेशा ऐसे काम करने चाहिए जिससे वह खुश हो। भले ही हम लोगों से छिपकर गलत काम करें लेकिन यहोवा की नज़रों से कुछ नहीं छिपता। वह सबकुछ देख सकता है।—इब्रा. 4:13.
7 कुछ मसीही यहोवा की सेवा करने के साथ-साथ गलत काम भी करते रहते हैं। लेकिन हमें सावधान रहना चाहिए कि हम उनकी तरह न बनें फिर चाहे हमारी उम्र जो भी हो। यूहन्ना ने भी कहा था कि अगर हम अनैतिक ज़िंदगी जी रहे हैं, तो दरअसल हम सच्चाई की राह पर नहीं चल रहे हैं। (8. हमें कैसी सोच ठुकरानी चाहिए?
8 पाप के बारे में दुनिया का नज़रिया यहोवा से बिलकुल अलग है। इसलिए हमें दुनिया की सोच नहीं अपनानी चाहिए। प्रेषित यूहन्ना ने लिखा, “अगर हम कहें, ‘हमारे अंदर पाप नहीं है,’ तो हम खुद को धोखा दे रहे हैं।” (1 यूह. 1:8) यूहन्ना के ज़माने में, यहोवा से बगावत करनेवाले लोग दावा करते थे कि एक इंसान जानबूझकर पाप करने के साथ-साथ यहोवा का दोस्त भी बना रह सकता है। आज भी लोगों की ऐसी ही सोच है। कई लोग कहते तो हैं कि वे परमेश्वर को मानते हैं, लेकिन वे पाप के बारे में उसकी सोच नहीं अपनाते। खासकर लैंगिक संबंधों के मामले में। कुछ तरह के लैंगिक संबंधों को यहोवा गलत मानता है। लेकिन इन लोगों का मानना है कि एक इंसान जो चाहे कर सकता है, जैसे चाहे जी सकता है।
9. बाइबल के स्तर मानने से नौजवानों को कैसे फायदा होता है?
9 आज की इस दुनिया में मसीही नौजवानों के लिए सही सोच रखना आसान नहीं होता क्योंकि उनके साथ पढ़नेवाले या साथ काम करनेवाले उन्हें अनैतिक काम करने के लिए लुभाते हैं। एलेक्ज़ैंडर नाम के भाई के साथ कुछ ऐसा ही हुआ। वह बताता है, “मेरे स्कूल की कुछ लड़कियाँ चाहती थीं कि मैं उनके साथ संबंध रखूँ। जब मैंने इनकार कर दिया तो वे मेरा मज़ाक उड़ाने लगीं। वे कहने लगीं कि मैं समलैंगिक हूँ, क्योंकि मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है।” शायद आपको भी ऐसे हालात का 1 यूह. 2:14.
सामना करना पड़े। ऐसे में याद रखिए कि बाइबल में दिए स्तर मानने से आपको फायदा होगा। आप अपना आत्म-सम्मान बनाए रख पाएँगे, कई बीमारियों से और बेकार की चिंताओं से बचेंगे और यहोवा के साथ आपकी दोस्ती भी बनी रहेगी। इस तरह गलत काम ठुकराकर आप सच्चाई की राह पर बने रह पाएँगे। हर बार जब आप ऐसा करेंगे, तो सही काम करने का आपका इरादा और मज़बूत होता जाएगा। याद रखिए कि समलैंगिक संबंधों के बारे में दुनिया की यह सोच शैतान की तरफ से है। अगर आप हर हाल में परमेश्वर के स्तर मानेंगे, तो आप “शैतान पर जीत हासिल” कर रहे होंगे।—10. पहला यूहन्ना 1:9 के मुताबिक एक साफ ज़मीर के साथ यहोवा की सेवा करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
10 हम मानते हैं कि सिर्फ यहोवा को यह तय करने का हक है कि क्या सही है और क्या गलत। हमारी यही कोशिश रहती है कि हम कोई गलत काम या पाप न करें। अगर हमसे कोई गलती हो जाती है, तो हम यहोवा से प्रार्थना करके उससे माफी माँगते हैं। (1 यूहन्ना 1:9 पढ़िए।) लेकिन जब हमसे कोई बड़ा पाप हो जाता है, तो हमें प्राचीनों से बात करनी चाहिए, जिन्हें यहोवा ने हमारी देखरेख करने के लिए नियुक्त किया है। (याकू. 5:14-16) मगर हमें बीते समय में किए पापों के बारे में सोच-सोचकर दोषी महसूस नहीं करना चाहिए। वह क्यों? क्योंकि हमारा पिता यहोवा हमसे बहुत प्यार करता है और उसने हमारे पाप माफ करने के लिए अपने बेटे की फिरौती दी है। यहोवा ने कहा है कि वह सच्चे दिल से पश्चाताप करनेवालों को माफ करेगा। अगर यहोवा ने कहा है कि वह हमें माफ करेगा, तो वह ऐसा ज़रूर करेगा। इस वजह से हमारा ज़मीर साफ रहेगा और हम बिना दोषी महसूस किए यहोवा की सेवा कर पाएँगे।—1 यूह. 2:1, 2, 12; 3:19, 20.
11. हम विश्वास को कमज़ोर करनेवाली शिक्षाओं से कैसे खबरदार रह सकते हैं?
11 हमें परमेश्वर से बगावत करनेवालों की शिक्षाएँ ठुकरानी चाहिए। जब से मसीही मंडली बनी है, तब से शैतान मसीहियों का विश्वास कमज़ोर करने की कोशिश कर रहा है। इस वजह से यह बहुत ज़रूरी है कि * शायद हमारे दुश्मन इंटरनेट या सोशल मीडिया पर हमारे बारे में झूठी बातें फैलाएँ। अगर हम उनकी बातों पर ध्यान दें, तो यहोवा पर हमारा विश्वास कमज़ोर हो सकता है और भाई-बहनों के लिए हमारा प्यार ठंडा पड़ सकता है। इस वजह से उनकी झूठी बातों पर कभी यकीन मत कीजिए! याद रखिए, इनके पीछे शैतान का हाथ है।—1 यूह. 4:1, 6; प्रका. 12:9.
हम सच और झूठ में फर्क करना सीखें।12. हमें बाइबल की सच्चाइयों पर अपना विश्वास क्यों मज़बूत करना चाहिए?
12 हमारा विश्वास कमज़ोर करने के लिए शैतान लगातार हमले करता है। उसके हमलों का सामना करने के लिए ज़रूरी है कि हम यीशु पर अपना भरोसा बढ़ाएँ और यह माने कि परमेश्वर के मकसद में उसकी एक अहम भूमिका है। हमें इस बात का भी यकीन होना चाहिए कि आज यहोवा सिर्फ विश्वासयोग्य दास के ज़रिए अपने संगठन को निर्देश दे रहा है। (मत्ती 24:45-47) परमेश्वर के वचन का लगातार अध्ययन करके हम इन बातों पर अपना भरोसा बढ़ा सकते हैं। फिर हमारा विश्वास उस पेड़ की तरह होगा जिसकी जड़ें गहराई तक फैली हुई हैं। कुलुस्से की मंडली को पौलुस ने यही सलाह दी, “जैसे तुमने प्रभु मसीह यीशु को स्वीकार किया है, वैसे ही उसके साथ एकता में चलते रहो। उसमें गहराई तक जड़ पकड़ो और बढ़ते जाओ और विश्वास में मज़बूती पाते रहो।” (कुलु. 2:6, 7) अगर हम अपना विश्वास मज़बूत करने के लिए मेहनत करें, तो शैतान और उसके हिमायती हमें सच्चाई की राह पर चलने से कभी नहीं रोक पाएँगे।—2 यूह. 8, 9.
13. हम क्या बात जानते हैं और क्यों?
13 हम जानते हैं कि दुनिया हमसे नफरत करेगी। (1 यूह. 3:13) यूहन्ना ने कहा, “सारी दुनिया शैतान के कब्ज़े में पड़ी हुई है।” (1 यूह. 5:19) जैसे-जैसे दुनिया का अंत नज़दीक आ रहा है, शैतान का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। (प्रका. 12:12) शैतान अलग-अलग तरीकों से हम पर हमले करता है। वह बड़ी चालाकी से हमें लैंगिक अनैतिकता में फँसाने की कोशिश करता है या परमेश्वर से बगावत करनेवालों की शिक्षाओं के ज़रिए हमारा विश्वास कमज़ोर करने की कोशिश करता है। शैतान हम पर सीधे हमले भी करता है। वह हमारा विश्वास कमज़ोर करने के लिए हम पर बेरहमी से ज़ुल्म करवाता है। शैतान जानता है कि प्रचार काम रोकने के लिए और हमारा विश्वास कमज़ोर करने के लिए उसके पास बहुत कम समय बचा है। इसलिए जब हम सुनते हैं कि कुछ देशों में हमारे काम पर पाबंदी लगायी गयी है या पूरी तरह रोक लगा दी गयी है तो हम हैरान नहीं होते। शैतान के हमलों के बावजूद हमारे भाई-बहन यहोवा की सेवा कर रहे हैं। इससे पता चलता है कि शैतान चाहे हम पर कितने भी हमले कर ले, वह हमें सच्चाई की राह पर चलने से नहीं रोक सकता।
सच्चाई की राह पर चलने में एक-दूसरे की मदद कीजिए
14. सच्चाई की राह पर चलने में हम भाई-बहनों की कैसे मदद कर सकते हैं?
14 सच्चाई की राह पर चलते रहने में हम भाई-बहनों की कैसे मदद कर सकते हैं? एक तरीका है, उनके साथ प्यार और दया से पेश आना। (1 यूह. 3:10, 11, 16-18) हमें न सिर्फ उस वक्त प्यार करना चाहिए जब सबकुछ ठीक हो, बल्कि तब भी जब वे मुश्किलों का सामना कर रहे हों। हो सकता है, आप ऐसे किसी भाई-बहन को जानते हों जिसके किसी अपने की मौत हो गयी है। क्या आप उन्हें दिलासा दे सकते हैं या किसी और तरीके से उनकी मदद कर सकते हैं? या शायद आपने सुना हो कि किसी इलाके में हमारे भाई-बहन प्राकृतिक विपत्ति की मार झेल रहे हैं। क्या आप उनका राज घर बनाने या उनका घर बनाने में हाथ बँटा सकते हैं? हमें न सिर्फ मुँह से कहना चाहिए कि हमें भाई-बहनों से प्यार है, बल्कि उनकी खातिर कुछ करना भी चाहिए।
15. पहला यूहन्ना 4:7, 8 के मुताबिक हमें क्या करना चाहिए?
15 एक-दूसरे से प्यार करके हम अपने पिता यहोवा की मिसाल पर चल रहे होते हैं। (1 यूहन्ना 4:7, 8 पढ़िए।) प्यार करने का एक अहम तरीका है, भाई-बहनों को माफ करना। हो सकता है, कोई हमें ठेस पहुँचाए मगर फिर हमसे माफी माँगे। अगर हम उससे प्यार करते हैं, तो हम उसे माफ कर देंगे और उसकी गलती भुला देंगे। (कुलु. 3:13) ऑल्डो नाम के एक भाई ने ऐसा ही किया। वह एक भाई की बहुत इज़्ज़त करता था। मगर एक बार उसने सुना कि वह भाई उसकी जाति के लोगों के बारे में कुछ गलत कह रहा है। ऑल्डो कहता है, “मैंने यहोवा से बार-बार प्रार्थना की कि मैं उस भाई के बारे में गलत न सोचूँ।” यहोवा से प्रार्थना करने के अलावा उसने कुछ और भी किया। वह उस भाई के साथ प्रचार में गया। प्रचार करते वक्त ऑल्डो ने भाई को बताया कि उसे उसकी बात बहुत बुरी लगी थी। ऑल्डो कहता है, “जब भाई को पता चला कि मुझे उसकी बात से कितनी चोट पहुँची, तो उसने मुझसे माफी माँगी। उसकी बात सुनकर मैं समझ गया कि उसे सचमुच बहुत अफसोस हो रहा है। हमने उस बात को वहीं भुला दिया और फिर से अच्छे दोस्त बन गए।”
16-17. आपने क्या करने की ठान ली है?
16 प्रेषित यूहन्ना भाई-बहनों से बहुत प्यार करता था और चाहता था कि उनका विश्वास मज़बूत हो। उसने अपनी तीन चिट्ठियों में उन्हें जो सलाह दी, उससे पता चलता है कि उसे उनकी कितनी फिक्र थी। हमें यह जानकर बहुत खुशी होती है कि जो लोग यीशु के साथ स्वर्ग में राज करेंगे, वे भी यूहन्ना की तरह हमसे प्यार करते हैं और हमारी परवाह करते हैं।—1 यूह. 2:27.
17 इस लेख में हमने जिन बातों पर चर्चा की है उन्हें हमेशा याद रखिए। ठान लीजिए कि आप सच्चाई की राह पर चलते रहेंगे और हमेशा यहोवा की आज्ञाएँ मानेंगे। परमेश्वर के वचन का अध्ययन कीजिए और खुद उसकी जाँच-परख कीजिए ताकि आपको यकीन हो कि उसमें लिखी बातें सच हैं। इंसानी विचारधाराओं और परमेश्वर से बगावत करनेवालों की शिक्षाओं पर ध्यान मत दीजिए। परमेश्वर की सेवा करने के साथ-साथ गलत काम मत कीजिए। उन लोगों की बातों में मत आइए जो आपको गलत काम करने के लिए लुभाते हैं। परमेश्वर के ऊँचे नैतिक स्तरों को मानिए। ज़रूरत की घड़ी में भाई-बहनों की मदद कीजिए। अगर कोई आपको ठेस पहुँचाए, तो उसे माफ कीजिए। ऐसा करने से हम मुश्किलों के बावजूद सच्चाई की राह पर चलने में एक-दूसरे की मदद कर पाएँगे।
गीत 49 यहोवा का दिल खुश करें
^ पैरा. 5 हम ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जिसे झूठ का पिता, शैतान चला रहा है। इस वजह से हमारे लिए सच्चाई की राह पर चलना आसान नहीं है। पहली सदी के आखिर में जीनेवाले मसीहियों के लिए भी यह आसान नहीं था। उनकी हिम्मत बँधाने के लिए यहोवा ने प्रेषित यूहन्ना से तीन चिट्ठियाँ लिखवायीं। इन चिट्ठियों से आज हमें भी बहुत हिम्मत मिल सकती है। इनमें बताया गया है कि सच्चाई की राह में कौन-सी रुकावटें आ सकती हैं और हम इन्हें कैसे पार कर सकते हैं।
^ पैरा. 3 “ यूहन्ना ने मसीहियों को चिट्ठियाँ क्यों लिखीं?” नाम का बक्स पढ़ें।
^ पैरा. 6 कुछ नाम बदल दिए गए हैं।
^ पैरा. 6 यह किताब अँग्रेज़ी में उपलब्ध है।
^ पैरा. 11 अगस्त 2018 की प्रहरीदुर्ग में दिया लेख, “क्या आपके पास सही-सही जानकारी है?” पढ़ें।
^ पैरा. 60 तसवीर के बारे में: एक बहन स्कूल में देख रही है कि हर जगह समलैंगिकता को बढ़ावा दिया जा रहा है। (कुछ देशों में इन्द्रधनुष के जैसे दिखनेवाले रंग समलैंगिकता की निशानी माने जाते हैं।) बाद में वह बहन बाइबल में लिखी बातों पर अपना विश्वास मज़बूत करने के लिए खोजबीन करती है। इस वजह से दबाव आने पर वह सही फैसला कर पाती है।