अध्ययन लेख 28
गीत 123 यहोवा की हुकूमत कबूल करें
आप सच और झूठ में फर्क कर सकते हैं!
“सच्चाई के पट्टे से अपनी कमर कसकर . . . डटे रहो।”—इफि. 6:14.
क्या सीखेंगे?
यहोवा ने हमें जो सच्चाई सिखायी है और शैतान और हमारे विरोधी जो झूठी बातें फैलाते हैं, हम उनके बीच फर्क करना कैसे सीख सकते हैं?
1. बाइबल में दी सच्चाइयों के बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?
हम परमेश्वर के वचन में पायी जानेवाली सच्चाइयों से बहुत प्यार करते हैं। इन्हीं पर हमारा विश्वास टिका हुआ है। (रोमि. 10:17) हमें यकीन है कि मसीही मंडली “सच्चाई का खंभा और सहारा है,” और यह यहोवा का इंतज़ाम है। (1 तीमु. 3:15) और ‘जो हमारे बीच अगुवाई करते हैं,’ वे हमें बाइबल में दी सच्चाइयाँ समझाते हैं और जो भी निर्देश देते हैं, वे परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक होते हैं। इसलिए हम खुशी-खुशी उन भाइयों के अधीन रहते हैं।—इब्रा. 13:17.
2. जैसा याकूब 5:19 में बताया है, सच्चाई सीखने के बाद भी हमारे साथ क्या हो सकता है?
2 हम बाइबल में दी सच्चाइयाँ मानते हैं और हमें पूरा यकीन है कि आज यहोवा का संगठन हमें जो निर्देश दे रहा है, वे एकदम सही हैं। फिर भी हम सच्चाई के रास्ते से भटक सकते हैं। (याकूब 5:19 पढ़िए।) और शैतान यही तो चाहता है कि हम बाइबल की बातों पर और संगठन से मिलनेवाली हिदायतों पर शक करने लगें और उन पर भरोसा करना छोड़ दें।—इफि. 4:14.
3. हमें क्यों सच्चाई को मज़बूती से थामे रहना है? (इफिसियों 6:13, 14)
3 इफिसियों 6:13, 14 पढ़िए। बहुत जल्द शैतान सभी राष्ट्रों को बहकाने के लिए झूठी बातें फैलाएगा और वे यहोवा और उसके लोगों के खिलाफ हो जाएँगे। (प्रका. 16:13, 14) यही नहीं, शैतान यहोवा के लोगों को बहकाने के लिए भी एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाएगा। (प्रका. 12:9) इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि हम सच और झूठ में फर्क करना सीखें और फिर सच्चाई को मज़बूती से थामे रहें। (रोमि. 6:17; 1 पत. 1:22) ऐसा करने से हम महा-संकट से बच पाएँगे।
4. इस लेख में हम क्या जानेंगे?
4 इस लेख में हम दो गुणों पर ध्यान देंगे जिससे हम सच और झूठ में फर्क कर पाएँगे और संगठन से मिलनेवाले निर्देश मान पाएँगे। इसके अलावा, हम तीन सुझावों पर भी चर्चा करेंगे जिन्हें मानने से हम सच्चाई को मज़बूती से थामे रह पाएँगे।
सच और झूठ में फर्क करने के लिए दो ज़रूरी गुण
5. अगर हममें यहोवा का डर होगा, तो हम क्या करेंगे?
5 यहोवा का डर मानिए। यहोवा का डर मानने का मतलब है, हमें उससे इतना प्यार है कि हम ऐसा कोई काम नहीं करते जिससे उसे दुख पहुँचे। हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि यहोवा की नज़र में क्या सही है और क्या गलत, क्या सच है और क्या झूठ। और फिर वही करते हैं जिससे वह खुश हो। (नीति. 2:3-6; इब्रा. 5:14) लेकिन हमें इंसान के डर को खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए, वरना यहोवा के लिए हमारा प्यार कम हो जाएगा। और अगर ऐसा हुआ, तो हम लोगों को खुश करने में लग जाएँगे और यहोवा को नाराज़ कर बैठेंगे।
6. कनानियों के डर की वजह से इसराएल के दस प्रधानों ने ऐसा क्या कहा जो सच नहीं था?
6 अगर हम यहोवा से ज़्यादा इंसानों से डरने लगें, तो हम सच्चाई की राह से दूर जा सकते हैं। ध्यान दीजिए कि इसराएल के उन 12 प्रधानों के साथ क्या हुआ जो वादा किए गए देश की जासूसी करने गए थे। उनमें से दस जासूस कनानियों से इतना डर गए कि यहोवा के लिए उनका प्यार कम हो गया। उन्होंने बाकी इसराएलियों से कहा, “हम वहाँ के लोगों से नहीं लड़ सकते। वे हमसे कहीं ज़्यादा ताकतवर हैं।” (गिन. 13:27-31) यह तो सच था कि कनानी इसराएलियों से ज़्यादा ताकतवर थे। लेकिन यह बात सच नहीं थी कि इसराएली उन्हें हरा नहीं सकते थे। दस जासूस यह भूल गए कि यहोवा इसराएलियों के साथ है। उन्हें सोचना चाहिए था कि यहोवा क्या चाहता है कि वे क्या करें। उन्हें यह भी सोचना था कि कुछ ही समय पहले यहोवा ने इसराएलियों के लिए क्या-कुछ किया था। अगर वे ऐसा करते, तो समझ जाते कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सामने कनानी कुछ भी नहीं हैं। वहीं यहोशू और कालेब उन दस जासूसों से बिलकुल अलग थे। वे यहोवा का डर मानते थे और उसे खुश करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने लोगों से कहा, “अगर यहोवा की मंज़ूरी हम पर बनी रही, तो वह ज़रूर हमें उस देश में ले जाएगा . . . और हमें वह देश दे देगा।”—गिन. 14:6-9.
7. हम अपने अंदर यहोवा का डर कैसे बढ़ा सकते हैं? (तसवीर भी देखें।)
7 अगर हममें यहोवा का डर होगा, तो कोई भी फैसला लेते वक्त हम यह सोचेंगे कि यह यहोवा को पसंद आएगा या नहीं। (भज. 16:8) अपने अंदर यहोवा का डर बढ़ाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? बाइबल का कोई किस्सा पढ़ते वक्त खुद से पूछिए, ‘अगर मैं उस हालात में होता, तो मैं क्या करता?’ जैसे सोचिए कि दस प्रधान झूठी खबर दे रहे हैं और आप उनके पास ही खड़े हैं। वे कह रहे हैं कि हम कनानियों से नहीं जीत पाएँगे। अब आप क्या करेंगे? क्या आप उनकी बात को सच मान लेंगे और इंसानों से डरने लगेंगे? या आप यहोवा का डर मानेंगे और वही करेंगे जिससे वह खुश हो? दुख की बात है कि इसराएल की वह पूरी पीढ़ी सच और झूठ में फर्क नहीं कर पायी। उन्होंने यहोशू और कालेब पर यकीन नहीं किया जो सच कह रहे थे। इस वजह से उन्होंने वादा किए गए देश में जाने का मौका गँवा दिया।—गिन. 14:10, 22, 23.
8. हमें अपने अंदर कौन-सा गुण बढ़ाना चाहिए और क्यों?
8 नम्र रहिए। यहोवा नम्र लोगों पर सच्चाई ज़ाहिर करता है। (मत्ती 11:25) हम नम्र थे तभी हमने सच्चाई सीखने के लिए दूसरों से मदद ली। (प्रेषि. 8:30, 31) लेकिन हमें ध्यान रखना है कि हम हमेशा नम्र रहें, कभी घमंडी ना बनें। घमंडी इंसान यह तो मानता है कि बाइबल सिद्धांत और संगठन से मिलनेवाले निर्देश सही हैं। पर उसे यह भी लगता है कि वह जो सोच रहा है, वह भी उतना ही सही है।
9. हम कैसे नम्र बने रह सकते हैं?
9 नम्र बने रहने के लिए ज़रूरी है कि हम याद रखें कि यहोवा कितना महान है और हम उसके सामने कितने छोटे हैं। (भज. 8:3, 4) हमें यहोवा से प्रार्थना भी करनी होगी कि हम हमेशा नम्र रहें और सीखने के लिए तैयार रहें। तब हम यहोवा की सोच को अपनी सोच से ज़्यादा अहमियत दे पाएँगे। और वह हमें अपने वचन और संगठन के ज़रिए जो निर्देश देगा, उसे मान पाएँगे। जब हम बाइबल पढ़ते हैं, तो हमें यह देखने की कोशिश करनी चाहिए कि यहोवा किस तरह नम्र लोगों से प्यार करता है, मगर घमंडी और मगरूर लोगों से नफरत करता है। अगर हमें कोई बड़ी ज़िम्मेदारी मिलती है और हम भाई-बहनों की नज़रों में आने लगते हैं, तो हमें और भी ध्यान रखना चाहिए कि हम नम्र बने रहें।
सच्चाई को कैसे थामे रहें?
10. यहोवा किन लोगों के ज़रिए अपने लोगों को निर्देश देता आया है?
10 यहोवा के संगठन से मिलनेवाले निर्देशों पर भरोसा रखिए। पुराने ज़माने में यहोवा ने मूसा और फिर यहोशू के ज़रिए अपने लोगों को निर्देश दिए थे। (यहो. 1:16, 17) इसराएली जानते थे कि यहोवा ने इन आदमियों को चुना है और वह उनके ज़रिए निर्देश दे रहा है। और जब इसराएलियों ने वे निर्देश माने, तो उन्हें आशीषें मिलीं। इसके सदियों बाद जब मसीही मंडली की शुरूआत हुई, तो यहोवा ने 12 प्रेषितों के ज़रिए मसीहियों को हिदायतें दीं। (प्रेषि. 8:14, 15) आगे चलकर कुछ और प्राचीन इन प्रेषितों के साथ मिलकर यरूशलेम में काम करने लगे। जब भाई-बहनों ने उनकी हिदायतें मानीं, तो उनका “विश्वास मज़बूत होता गया और उनकी तादाद दिनों-दिन बढ़ती गयी।” (प्रेषि. 16:4, 5) आज भी जब हम यहोवा के संगठन से मिलनेवाले निर्देश मानते हैं, तो हमें ढेरों आशीषें मिलती हैं। लेकिन ज़रा सोचिए, यहोवा ने जिन लोगों को ठहराया है, अगर हम उनकी ना सुनें, तो यहोवा को कैसा लगेगा? यह जानने के लिए आइए देखें कि वादा किए गए देश में जाने से पहले इसराएलियों के साथ क्या हुआ।
11. जब इसराएली यहोवा के ठहराए अगुवे मूसा पर सवाल खड़े करने लगे, तो क्या हुआ? (तसवीर भी देखें।)
11 इसराएलियों की अगुवाई करने के लिए यहोवा ने मूसा को चुना था, लेकिन इसराएल के कुछ खास और बड़े आदमी मूसा पर सवाल खड़े करने लगे। वे कहने लगे कि सिर्फ मूसा नहीं, बल्कि “इस मंडली का हर इंसान पवित्र है और यहोवा उनके बीच है।” (गिन. 16:1-3) यह सच है कि “मंडली का हर इंसान” यहोवा के लिए पवित्र था, लेकिन यहोवा ने मूसा को उनकी अगुवाई करने के लिए चुना था। (गिन. 16:28) इसलिए जब उन्होंने मूसा पर उँगली उठायी, तो असल में वे यहोवा पर उँगली उठा रहे थे। वे अधिकार और रुतबा पाने के चक्कर में इतने अंधे हो गए कि उन्होंने सोचा ही नहीं कि यहोवा क्या चाहता है, उन्हें बस अपनी पड़ी थी। इस वजह से यहोवा ने उन बागियों को और उनका साथ देनेवाले हज़ारों इसराएलियों को मार डाला। (गिन. 16:30-35, 41, 49) आज भी अगर कोई यहोवा के संगठन से मिलनेवाले निर्देश नहीं मानता, तो यहोवा उससे खुश नहीं होता।
12. हम यहोवा के संगठन पर पूरा भरोसा क्यों रख सकते हैं?
12 हम यहोवा के संगठन पर पूरा भरोसा रख सकते हैं। वह क्यों? जब अगुवाई लेनेवाले भाइयों को लगता है कि किसी शिक्षा के बारे में हमारी समझ में फेरबदल की ज़रूरत है या राज का काम जिस तरह से हो रहा है, उसमें कुछ बदलाव करने की ज़रूरत है, तो वे इसे करने से पीछे नहीं हटते। (नीति. 4:18) वह इसलिए कि वे यहोवा को खुश करना चाहते हैं और यही बात उनके लिए सबसे ज़्यादा मायने रखती है। इसके अलावा, वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि उनका हर फैसला बाइबल पर यानी खरी शिक्षाओं के नमूने पर आधारित हो, जिसके हिसाब से यहोवा के सभी सेवक चलते हैं।
13. ‘खरी शिक्षाओं का नमूना’ क्या है और हमें क्या करना है?
13 ‘खरी शिक्षाओं के नमूने को थामे रहिए।’ (2 तीमु. 1:13) ‘खरी शिक्षाओं के नमूने’ का मतलब है, बाइबल में दी मसीही शिक्षाएँ। (यूह. 17:17) इन्हीं शिक्षाओं पर हमारा विश्वास आधारित है। यहोवा का संगठन हमें सिखाता है कि हम इन शिक्षाओं को थामे रहें। अगर हम ऐसा करेंगे, तो हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमें ढेरों आशीषें देगा।
14. कुछ मसीही ‘खरी शिक्षाओं के नमूने’ को थामे रहने से क्यों चूक गए?
14 अगर हम ‘खरी शिक्षाओं के नमूने’ को थामे ना रहें, तो क्या हो सकता है? ध्यान दीजिए कि पहली सदी में क्या हुआ था। उस वक्त कुछ मसीही यह अफवाह फैलाने लगे कि यहोवा का दिन आ गया है। ऐसा मालूम होता है कि उन्हें एक चिट्ठी मिली थी जिसमें यह बात लिखी थी। और वे यह मान बैठे थे कि वह पौलुस की तरफ से है। उन्होंने यह पता लगाने की कोशिश ही नहीं की कि सच क्या है। उन्होंने बस उस अफवाह पर यकीन कर लिया और उसे दूसरों में भी फैलाने लगे। अगर वे याद रखते कि जब पौलुस उनके साथ था तब उसने उन्हें क्या सिखाया था, तो वे गुमराह नहीं होते। (2 थिस्स. 2:1-5) इसलिए पौलुस ने उन्हें सलाह दी कि वे हरेक बात पर आँख मूँदकर विश्वास ना करें। उसने उन्हें यह भी बताया कि वे कैसे पहचान सकते हैं कि कोई चिट्ठी उसकी तरफ से है या नहीं। अपनी चिट्ठी के आखिर में उसने लिखा, “मैं पौलुस खुद अपने हाथ से तुम्हें नमस्कार लिख रहा हूँ, जो मेरी हर चिट्ठी की पहचान है। मेरे लिखने का तरीका यही है।”—2 थिस्स. 3:17.
15. झूठी खबरों से हम गुमराह ना हों, इसके लिए हमें क्या करना चाहिए? एक उदाहरण दीजिए। (तसवीरें भी देखें।)
15 पौलुस ने थिस्सलुनीकियों की मंडली को जो लिखा, उससे हम क्या सीखते हैं? जब हम कोई ऐसी बात सुनते हैं जो बाइबल की शिक्षाओं से मेल नहीं खाती या हम कोई सनसनीखेज़ खबर सुनते हैं, तो हमें सोच-समझकर काम लेना चाहिए। ध्यान दीजिए कि सोवियत संघ में हमारे भाइयों के साथ क्या हुआ था। एक बार सरकारी अधिकारियों ने भाइयों को एक खत दिया जिसे देखने पर ऐसा लग रहा था कि वह विश्व मुख्यालय से आया है। उस खत में कुछ भाइयों से कहा गया था कि वे अलग से एक संगठन की शुरूआत करें। दिखने में वह खत बिलकुल असली लग रहा था, लेकिन वफादार भाई गुमराह नहीं हुए। वे समझ गए कि उसमें लिखी बातें बाइबल से मेल नहीं खातीं। आज भी हमारे दुश्मन हमें गुमराह करने की कोशिश करते हैं। वे इंटरनेट और सोशल मीडिया के ज़रिए झूठी बातें फैलाते हैं और हमारे बीच फूट डालने की कोशिश करते हैं। इसलिए कभी-भी ‘उतावली में आकर अपनी समझ-बूझ मत खोइए।’ इसके बजाय जब भी आप कुछ पढ़ते हैं या सुनते हैं, तो यह जानने की कोशिश कीजिए कि क्या वह बाइबल के मुताबिक सही है या नहीं, तब आप गुमराह नहीं होंगे।—2 थिस्स. 2:2; 1 यूह. 4:1.
16. जब कुछ लोग सच्चाई में नहीं बने रहते, तो हमें क्या करना चाहिए? (रोमियों 16:17, 18)
16 यहोवा के वफादार सेवकों के साथ मिलकर उसकी उपासना कीजिए। यहोवा चाहता है कि हम एक होकर उसकी उपासना करें। जब तक हम सच्चाई से लिपटे रहेंगे, हमारे बीच एकता बनी रहेगी। लेकिन जो लोग सच्चाई में नहीं बने रहते और झूठी बातें फैलाते हैं, वे मंडली में फूट डाल देते हैं। यहोवा चाहता है कि हम ऐसे लोगों से ‘दूर रहें,’ वरना हम भी सच्चाई की राह से भटक सकते हैं।—रोमियों 16:17, 18 पढ़िए।
17. अगर हम सच और झूठ में फर्क करना सीखें और सच्चाई को मज़बूती से थामे रहें, तो हमें क्या फायदा होगा?
17 जब हम सच और झूठ में फर्क करना सीखेंगे और सच्चाई को मज़बूती से थामे रहेंगे, तो हम यहोवा के और करीब आ जाएँगे और हमारा विश्वास भी मज़बूत होगा। (इफि. 4:15, 16) फिर हम शैतान की फैलायी झूठी शिक्षाओं और बातों से गुमराह नहीं होंगे और महा-संकट के दौरान यहोवा की बाहों में महफूज़ रहेंगे। तो सच्चाई को मज़बूती से थामे रहिए, तब ‘शांति का परमेश्वर आपके साथ रहेगा।’—फिलि. 4:8, 9.
गीत 122 अटल रहें!
a तसवीर के बारे में: यहाँ दिखाया गया है कि सालों पहले सोवियत संघ में क्या हुआ था। हमारे भाइयों को एक खत मिला था जिसे देखने पर ऐसा लग रहा था कि वह विश्व मुख्यालय से आया है, लेकिन असल में वह हमारे दुश्मनों की तरफ से था। आज हमारे दुश्मन हमें गुमराह करने के लिए शायद इंटरनेट और सोशल मीडिया के ज़रिए यहोवा के संगठन के बारे में झूठी बातें फैलाएँ।