इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

अध्ययन लेख 30

गीत 36 दिल की हिफाज़त करें

इसराएल के राजाओं से सीखिए

इसराएल के राजाओं से सीखिए

“तब तुम एक बार फिर यह फर्क देख पाओगे कि कौन नेक है और कौन दुष्ट, कौन परमेश्‍वर की सेवा करता है और कौन नहीं।”​—मला. 3:18.

क्या सीखेंगे?

हम जानेंगे कि यहोवा ने क्यों इसराएल के कुछ राजाओं को अच्छा कहा और कुछ को बुरा। इससे हम जान पाएँगे कि आज यहोवा अपने सेवकों से क्या चाहता है।

1-2. बाइबल में इसराएल के कुछ राजाओं के बारे में क्या बताया गया है?

 बाइबल में बताया है कि इसराएल पर करीब 40 राजाओं ने राज किया था। a इनमें से कुछ राजाओं के बारे में बाइबल में बहुत खुलकर बताया गया है। जैसे इसमें बताया है कि अच्छे राजाओं ने भी कुछ बुरे काम किए थे। अगर हम राजा दाविद की बात करें, तो वह एक अच्छा राजा था। यहोवा ने उसके बारे में कहा, ‘मेरा सेवक दाविद पूरे दिल से मेरी बतायी राह पर चलता रहा। वह सिर्फ ऐसे काम करता था जो मेरी नज़र में सही हैं।’ (1 राजा 14:8) लेकिन दाविद ने कुछ बुरे काम भी किए थे। उसने एक शादीशुदा औरत के साथ नाजायज़ संबंध रखे थे और साज़िश रचकर उसके पति को युद्ध में मरवा डाला था।—2 शमू. 11:4, 14, 15.

2 वहीं इसराएल में कुछ राजा ऐसे थे जो यहोवा के वफादार नहीं रहे, लेकिन उन्होंने कुछ अच्छे काम किए थे। राजा रहूबियाम के बारे में सोचिए। यहोवा की नज़र में उसने काफी “बुरे काम किए” थे। (2 इति. 12:14) लेकिन उसने यहोवा की आज्ञा भी मानी। उसके कहने पर उसने 10 गोत्रोंवाले राज्य से लड़ाई नहीं की और उन्हें अपने लिए राजा चुनने दिया। यही नहीं, उसने अलग-अलग शहरों में शहरपनाह बनवायीं और उन्हें बहुत मज़बूत किया।​—1 राजा 12:21-24; 2 इति. 11:5-12.

3. इसराएल के राजाओं के बारे में कौन-सा ज़रूरी सवाल उठता है और इस लेख में हम क्या जानेंगे?

3 हमने देखा कि इसराएल के राजाओं ने अच्छे काम भी किए और बुरे काम भी। तो एक ज़रूरी सवाल उठता है: यहोवा ने क्यों कुछ राजाओं को वफादार या अच्छा समझा और कुछ को नहीं? इस सवाल का जवाब जानने से हम यह समझ पाएँगे कि यहोवा को खुश करने के लिए हमें कैसा इंसान होना चाहिए। हम ऐसी तीन बातों पर ध्यान देंगे जिस वजह से शायद यहोवा ने एक राजा को अच्छा या बुरा समझा: (1) वह यहोवा से पूरे दिल से प्यार  करता था या नहीं (2) उसने अपने किए पर पश्‍चाताप  किया या नहीं और (3) उसने किस हद तक सच्ची उपासना का साथ  दिया।

उनका दिल यहोवा पर पूरी तरह लगा रहा

4. जो राजा वफादार रहे और जो वफादार नहीं रहे, उनमें क्या फर्क था?

4 यहोवा उन राजाओं से खुश हुआ जो पूरे दिल b से उसकी सेवा करते थे। जैसे राजा यहोशापात एक अच्छा राजा था जो “पूरे दिल से यहोवा की खोज करता था।” (2 इति. 22:9) योशियाह की बात करें, तो बाइबल में लिखा है कि ‘यहोवा के पास लौट आने में उसने अपना पूरा दिल लगा दिया, वैसा किसी और राजा ने नहीं किया।’ (2 राजा 23:25) सुलैमान के बारे में क्या कहा जा सकता है जिसने अपने बुढ़ापे में बुरे काम किए थे? बाइबल में लिखा है, “उसका दिल अपने परमेश्‍वर यहोवा पर पूरी तरह न लगा रहा।” (1 राजा 11:4) और राजा अबीयाम भी यहोवा का वफादार नहीं रहा। उसके बारे में लिखा है, ‘उसका दिल अपने परमेश्‍वर पर पूरी तरह नहीं लगा रहा।’​—1 राजा 15:3.

5. एक इंसान का दिल यहोवा पर पूरी तरह लगा है, इसका क्या मतलब है?

5 जब एक इंसान का दिल यहोवा पर पूरी तरह लगा रहता है, तो वह सिर्फ फर्ज़ समझकर उसकी सेवा नहीं करता, बल्कि दिलो-जान से उसकी भक्‍ति करता है। और वह ज़िंदगी-भर इसी जज़्बे और प्यार से उसकी सेवा करता है।

6. हमारा दिल पूरी तरह यहोवा पर लगा रहे, इसके लिए हमें क्या करना होगा? (नीतिवचन 4:23; मत्ती 5:29, 30)

6 हम उन वफादार राजाओं की तरह कैसे बन सकते हैं जिनका दिल यहोवा पर पूरी तरह लगा हुआ था? हमें उन बातों से दूर रहना होगा जिनकी वजह से यहोवा के लिए हमारा प्यार कम हो सकता है। जैसे हम ध्यान रखेंगे कि हम टीवी या इंटरनेट पर क्या देखते हैं, किस तरह के लोगों के साथ दोस्ती करते हैं और दिन-रात पैसा कमाने के बारे में तो नहीं सोचते रहते। अगर हमें एहसास होता है कि इन वजहों से या किसी और वजह से यहोवा के लिए हमारा प्यार ठंडा पड़ने लगा है, तो हमें तुरंत कदम उठाना है और ऐसी बातों से दूर रहना है।​—नीतिवचन 4:23; मत्ती 5:29, 30 पढ़िए।

7. बुरी बातों से दूर रहना क्यों ज़रूरी है?

7 हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारा दिल बँट ना जाए, बल्कि पूरी तरह यहोवा पर लगा रहे। अगर हम ध्यान ना रखें, तो हम सोचने लग सकते हैं कि हम परमेश्‍वर की सेवा से जुड़े कामों में लगे हुए हैं, इसलिए बुरी बातों का हम पर कोई असर नहीं होगा। ऐसा सोचना बहुत बड़ी भूल होगी। इसे समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए। सोचिए, आपने बहुत मेहनत से अपना घर साफ किया है। लेकिन अगर आप घर की खिड़की खुली छोड़ दें, तो क्या होगा? हवा चलेगी और घर में धूल जम जाएगी, है ना? परमेश्‍वर के साथ हमारे रिश्‍ते में भी ऐसा हो सकता है। हमें ना सिर्फ उसके साथ एक अच्छा रिश्‍ता बनाने के लिए मेहनत करनी है, बल्कि अपने मन की खिड़की बंद भी करनी है। इससे शैतान की दुनिया की धूल हमारे दिमाग में नहीं जमेगी। अगर हम ऐसा ना करें, तो हमारा दिल बँट सकता है, यहोवा के लिए हमारे दिल में जो प्यार है, वह कमज़ोर पड़ सकता है।​—इफि. 2:2.

उन्होंने पूरे दिल से पश्‍चाताप किया

8-9. जब राजा दाविद और राजा हिजकियाह को सुधारा गया, तो उन्होंने क्या किया? (तसवीर देखें।)

8 जैसे हमने पहले देखा, राजा दाविद ने गंभीर पाप किए थे। लेकिन जब नातान ने उसे उसकी गलती बतायी और उसे सुधारा, तो उसने नम्र होकर पश्‍चाताप किया। (2 शमू. 12:13) उसका यह पश्‍चाताप कोई दिखावा  नहीं था, ताकि नातान को उस पर यकीन हो जाए और वह उसे सज़ा ना सुनाए। भजन 51 में दाविद ने जो बातें लिखीं, उससे पता चलता है कि उसे सच में अपने किए पर अफसोस था और उसने दिल से पश्‍चाताप किया था।—भज. 51:3, 4, 17, उपरिलेख

9 राजा हिजकियाह ने भी पाप किया था और यहोवा को दुखी किया था। बाइबल में लिखा है, “उसका मन घमंड से फूल गया था। इसलिए परमेश्‍वर का क्रोध उस पर और यहूदा और यरूशलेम पर भड़क उठा।” (2 इति. 32:25) हिजकियाह क्यों घमंड से फूल गया था? शायद उसे अपनी दौलत पर गुमान होने लगा था। यह भी हो सकता है कि अश्‍शूरियों पर जीत हासिल करने की वजह से उसका मन फूल उठा हो। या फिर यहोवा ने चमत्कार करके उसकी बीमारी दूर की थी, इस वजह से वह घमंड से भर गया हो। जो भी हो, शायद उसने घमंड की वजह से ही बैबिलोन के लोगों को अपना सारा खज़ाना दिखा दिया। इसलिए यहोवा ने अपने भविष्यवक्‍ता यशायाह के ज़रिए उसकी सोच सुधारी। (2 राजा 20:12-18) तब हिजकियाह ने दाविद की तरह नम्र होकर अपनी गलती कबूल की और पश्‍चाताप किया। (2 इति. 32:26) तो फिर यहोवा की नज़र में हिजकियाह कैसा इंसान था? बाइबल में बताया है कि वह एक वफादार राजा था जो “यहोवा की नज़र में सही काम करता रहा।”​—2 राजा 18:3.

जब राजा दाविद और राजा हिजकियाह को सुधारा गया, तो उन्होंने नम्र होकर अपनी गलती कबूल की और पश्‍चाताप किया (पैराग्राफ 8-9)


10. जब अमज्याह को उसकी गलती बतायी गयी, तो उसने क्या किया?

10 यहूदा का राजा अमज्याह दाविद और हिजकियाह से बिलकुल अलग था। उसने यहोवा की नज़र में सही काम तो किए थे, “मगर पूरे दिल से नहीं।” (2 इति. 25:2) उसने क्या गलती की थी? यहोवा ने उसे एदोमियों पर जीत दिलायी थी, लेकिन इसके बाद वह उनके देवताओं को पूजने लगा। c फिर जब यहोवा के भविष्यवक्‍ता ने आकर उसे उसकी गलती बतायी, तो वह भड़क उठा और उसने उसकी एक ना सुनी।​—2 इति. 25:14-16.

11. जैसा 2 कुरिंथियों 7:9, 11 में बताया है, यहोवा से माफी पाने के लिए हमें क्या करना होगा? (तसवीरें भी देखें।)

11 इसराएल के राजाओं से हम क्या सीखते हैं? जब हमसे कोई गलती हो जाती है, तो हमें पूरे दिल से पश्‍चाताप करना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि हम उसे ना दोहराएँ। और अगर प्राचीन हमें किसी ऐसे मामले पर सलाह दें जो हमें छोटा-सा लग रहा है, तब हम क्या करेंगे? ऐसे में हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि प्राचीन हमें पसंद नहीं करते या यहोवा हमसे प्यार नहीं करता। याद कीजिए, अच्छे राजाओं को भी सलाह दी गयी थी और उनकी सोच सुधारी गयी थी। (इब्रा. 12:6) इसलिए जब हमें सुधारा जाता है, तो हमें (1) नम्र होकर गलती कबूल करनी चाहिए, (2) ज़रूरी बदलाव करने चाहिए और (3) पूरे दिल से यहोवा की सेवा करते रहना चाहिए। अगर हम दिल से पश्‍चाताप करें, तो यहोवा हमें ज़रूर माफ कर देगा।—2 कुरिंथियों 7:9, 11 पढ़िए।

जब हमें सुधारा जाता है, तो हमें (1) नम्र होकर गलती कबूल करनी चाहिए, (2) ज़रूरी बदलाव करने चाहिए और (3) पूरे दिल से यहोवा की सेवा करते रहना चाहिए (पैराग्राफ 11) f


उन्होंने सच्ची उपासना का साथ दिया

12. कुछ राजाओं ने ऐसा क्या किया जिस वजह से यहोवा ने उन्हें वफादार समझा?

12 जिन राजाओं ने सच्ची उपासना का साथ दिया, उन्हें यहोवा ने वफादार समझा। इन राजाओं ने ना सिर्फ खुद यहोवा की उपासना की, बल्कि अपनी प्रजा को भी ऐसा करने का बढ़ावा दिया। उनसे कुछ गलतियाँ तो हुईं, लेकिन उन्होंने सिर्फ और सिर्फ यहोवा की उपासना की और इसराएल से मूर्तिपूजा को मिटाने की भी पूरी कोशिश की। d

13. यहोवा ने राजा अहाब को वफादार क्यों नहीं समझा?

13 लेकिन कुछ राजाओं को यहोवा ने वफादार नहीं समझा। वह क्यों? ऐसा नहीं था कि उन्होंने हमेशा बुरे काम किए थे। उदाहरण के लिए, दुष्ट राजा अहाब के बारे में सोचिए। वह भी कुछ हद तक नम्र था। जैसे, जब उसे पता चला कि उसकी वजह से नाबोत की हत्या कर दी गयी है, तो उसे बहुत अफसोस हुआ। (1 राजा 21:27-29) उसने कुछ और भी अच्छे काम किए थे। उसने कई शहर बनवाए थे और कई लड़ाइयों में इसराएलियों को जीत दिलायी थी। (1 राजा 20:21, 29; 22:39) लेकिन अपनी पत्नी की बातों में आकर अहाब झूठी उपासना करने लगा और उसने लोगों को भी ऐसा करने का बढ़ावा दिया। अपनी इस गलती के लिए उसने कभी पश्‍चाताप नहीं किया।—1 राजा 21:25, 26.

14. (क) यहोवा की नज़र में राजा रहूबियाम वफादार क्यों नहीं था? (ख) जो राजा यहोवा के वफादार नहीं रहे, उनमें से ज़्यादातर ने क्या किया था?

14 आइए एक और राजा पर ध्यान दें जो यहोवा का वफादार नहीं रहा, वह था रहूबियाम। उसने कई अच्छे काम किए थे। लेकिन जब उसका राज मज़बूती से कायम हो गया, तो उसने यहोवा का कानून मानना छोड़ दिया। (2 इति. 12:1) इसके बाद, वह कभी यहोवा की उपासना करता था, तो कभी झूठे देवी-देवताओं की। (1 राजा 14:21-24) रहूबियाम और अहाब के अलावा ऐसे और भी राजा थे जो सच्ची उपासना से भटक गए। दरअसल जो राजा यहोवा के वफादार नहीं रहे, उनमें से ज़्यादातर ने झूठी उपासना का साथ दिया और दूसरों को भी ऐसा करने का बढ़ावा दिया। तो यहोवा ने कैसे तय किया कि एक राजा वफादार है या नहीं? यहोवा ने इस बात पर खास ध्यान दिया कि वह राजा सच्ची उपासना का साथ देता है या नहीं।

15. यहोवा के लिए क्यों यह बहुत मायने रखता है कि एक व्यक्‍ति सच्ची उपासना का साथ दे?

15 यहोवा के लिए यह बात क्यों इतनी मायने रखती है कि सिर्फ उसकी उपासना की जाए? अगर राजाओं की बात करें, तो उनकी यह ज़िम्मेदारी थी कि वे लोगों को सच्ची उपासना करने का बढ़ावा दें। लेकिन अगर राजा ऐसा करने से चूक जाते, तो लोग झूठी उपासना करने लगते। इसके और भी बुरे अंजाम होते, जैसे लोग बड़े-बड़े पाप करने लगते और एक-दूसरे के साथ बुरा व्यवहार करने लगते। (होशे 4:1, 2) इस बारे में भी सोचिए, राजा और प्रजा दोनों यहोवा को समर्पित थे। इसलिए अगर वे यहोवा को छोड़ झूठे देवी-देवताओं की उपासना करने लगते, तो वे यहोवा से बेवफाई कर रहे होते। (यिर्म. 3:8, 9) जब एक पति या पत्नी अपने साथी से बेवफाई करता है, तो उसके साथी को बहुत दुख पहुँचता है। उसी तरह, अगर यहोवा का एक समर्पित सेवक उसे छोड़कर दूसरे देवी-देवताओं को पूजने लगता है, तो इससे यहोवा को बहुत दुख पहुँचता है। e​—व्यव. 4:23, 24.

16. यहोवा किस आधार पर फैसला करता है कि एक व्यक्‍ति नेक है या दुष्ट?

16 इससे हम सीखते हैं कि हमें पक्का इरादा कर लेना चाहिए कि हम झूठी उपासना नहीं करेंगे। लेकिन हमें सच्ची उपासना का साथ भी देना है और बढ़-चढ़कर यहोवा की सेवा में लगे रहना है। भविष्यवक्‍ता मलाकी ने बताया कि यहोवा कैसे अच्छे और बुरे लोगों में फर्क करता है। उसने कहा था कि जो “परमेश्‍वर की सेवा करता है,”  वह उसकी नज़र में “नेक” है, लेकिन जो उसकी सेवा नहीं करता,  वह उसकी नज़र में “दुष्ट” है। (मला. 3:18) हम भी चाहते हैं कि यहोवा हमें नेक समझे। इसलिए हमें किसी भी बात को उसकी सेवा के आड़े नहीं आने देना चाहिए। हमें अपनी गलतियों और कमज़ोरियों की वजह से कभी-भी इतना निराश नहीं होना चाहिए कि हम यहोवा की सेवा करना ही छोड़ दें। अगर हम ऐसा करें, तो यह यहोवा की नज़र में गंभीर पाप होगा।

17. हमें क्यों सोच-समझकर जीवन-साथी चुनना चाहिए?

17 क्या आप अविवाहित हैं और शादी करने की सोच रहे हैं? अगर हाँ, तो मलाकी ने जो कहा उसे ध्यान में रखकर आप कैसे एक अच्छा जीवन-साथी चुन सकते हैं? हो सकता है, एक व्यक्‍ति में अच्छे गुण हों। लेकिन अगर वह यहोवा की सेवा नहीं करता, तो क्या वह उसकी नज़र में  नेक होगा? (2 कुरिं. 6:14) और अगर आप उससे शादी कर लें, तो क्या वह यहोवा के साथ रिश्‍ता मज़बूत करने में आपकी मदद कर पाएगा? ज़रा सोचिए, राजा सुलैमान ने पराए देश की जिन औरतों से शादी की थी, उनमें भी कुछ खूबियाँ रही होंगी। लेकिन वे यहोवा की उपासना नहीं करती थीं। उन्होंने धीरे-धीरे सुलैमान का दिल बहका दिया और वह झूठी उपासना करने लगा।—1 राजा 11:1, 4.

18. माता-पिताओं को बच्चों को क्या सिखाना चाहिए?

18 माता-पिताओ, बाइबल में इसराएल के राजाओं के जो किस्से लिखे हैं, उन पर बच्चों के साथ चर्चा कीजिए और उनके दिल में यहोवा की सेवा करने का जोश बढ़ाइए। उन्हें यह समझने में मदद दीजिए कि जिन राजाओं ने सच्ची उपासना का साथ दिया, वे यहोवा को पसंद थे और जिन्होंने साथ नहीं दिया, वे उसकी नज़र में बुरे थे। अपनी बातों और कामों से दिखाइए कि यहोवा की सेवा से जुड़े काम, दूसरे सभी कामों से ज़्यादा अहमियत रखते हैं। इसलिए लगातार बाइबल का अध्ययन कीजिए, सभाओं में जाइए और प्रचार कीजिए। तब आपके बच्चे भी ऐसा करना सीखेंगे। (मत्ती 6:33) लेकिन अगर आप ऐसा ना करें, तो शायद आपके बच्चे सिर्फ इसलिए यहोवा की सेवा करें कि आप ऐसा कर रहे हैं। और हो सकता है, आगे चलकर वे यहोवा को पहली जगह देना छोड़ दें या फिर उसकी उपासना करना ही छोड़ दें।

19. अगर किसी ने यहोवा की सेवा करना छोड़ दिया है, तो क्या वह फिर से उसका दोस्त बन सकता है? (“ यहोवा बाँहें फैलाए आपका इंतज़ार कर रहा है!” नाम का बक्स भी देखें।)

19 जिन लोगों ने यहोवा की सेवा करना छोड़ दिया है, वे दोबारा उसके दोस्त बन सकते हैं। इसके लिए उन्हें क्या करना होगा? उन्हें दिल से पश्‍चाताप करना होगा और फिर से यहोवा की उपासना करनी होगी। लेकिन ऐसा करने के लिए उन्हें नम्र बनना होगा और प्राचीनों से मदद लेनी होगी। (याकू. 5:14) यह शायद उनके लिए आसान ना हो, लेकिन इस तरह वे यहोवा के दोस्त बन पाएँगे। और इससे ज़्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है!

20. अगर हम वफादार बने रहें, तो यहोवा हमारे बारे में क्या कहेगा?

20 इस लेख में हमने सीखा कि इसराएल के अच्छे राजाओं की तरह हमें भी पूरे दिल से यहोवा की सेवा करनी चाहिए। अगर हमसे कोई गलती हो जाए, तो हमें पश्‍चाताप करना चाहिए और खुद को सुधारना चाहिए। और सबसे ज़रूरी बात, हमें सिर्फ और सिर्फ यहोवा की उपासना करनी चाहिए। अगर आप यहोवा के वफादार रहें, तो यहोवा आपके बारे में भी कहेगा कि आप वही करते हैं जो उसकी नज़र में सही है।

गीत 45 मेरे मन के विचार

a इस लेख में “इसराएल के राजाओं” के बारे में बात की जाएगी। इसमें इसराएल के सभी राजा शामिल हैं, फिर चाहे उन्होंने यहूदा के दो गोत्रों पर राज किया हो, इसराएल के दस गोत्रों पर या फिर सभी 12 गोत्रों पर।

b इसका क्या मतलब है? बाइबल में जब भी शब्द “दिल” आया है, अकसर उसका मतलब है कि एक इंसान अंदर से कैसा है। इसमें उसकी सोच, उसके विचार, उसका नज़रिया, उसकी काबिलीयतें, उसके लक्ष्य और उसके इरादे, सबकुछ शामिल है।

c ऐसा मालूम होता है कि गैर-इसराएली राजा जब किसी देश पर जीत हासिल करते थे, तो वे अकसर उस देश के देवी-देवताओं की पूजा करते थे।

d राजा आसा ने बहुत गंभीर पाप किए थे। (2 इति. 16:7, 10) लेकिन बाइबल में उसके बारे में लिखा है कि उसने वही किया जो यहोवा की नज़र में सही था। जब यहोवा के भविष्यवक्‍ता ने उसे सुधारा, तो पहले तो उसने उसकी नहीं सुनी, पर हो सकता है कि बाद में उसने पश्‍चाताप किया हो। यहोवा ने उसकी बुराइयों से ज़्यादा उसकी अच्छाइयों पर ध्यान दिया। गौर करनेवाली बात है कि आसा ने यहोवा के अलावा कभी किसी और की उपासना नहीं की और अपने राज्य से मूर्तिपूजा का नामो-निशान मिटाने की पूरी कोशिश की।—1 राजा 15:11-13; 2 इति. 14:2-5.

e गौर करनेवाली बात है कि मूसा के कानून में दी पहली दो आज्ञाएँ इसी बारे में थीं कि सिर्फ यहोवा की उपासना की जाए, किसी और की नहीं, ना किसी व्यक्‍ति की, ना किसी चीज़ की।—निर्ग. 20:1-6.

f तसवीर के बारे में: एक जवान प्राचीन शराब के बारे में एक भाई को सलाह दे रहा है। वह भाई नम्र होकर सलाह मानता है, अपने अंदर सुधार करता है और वफादारी से यहोवा की सेवा करता रहता है।