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अध्ययन लेख 29

गीत 121 संयम रखना ज़रूरी

सतर्क रहकर आप पाप करने से दूर रह सकते हैं!

सतर्क रहकर आप पाप करने से दूर रह सकते हैं!

“जागते रहो और प्रार्थना करते रहो ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो।”​—मत्ती 26:41.

क्या सीखेंगे?

हम जानेंगे कि हमें पाप करने से तो दूर रहना ही है, पर उन कामों से भी दूर रहना है जो हमें पाप की तरफ ले जा सकते हैं।

1-2. (क) यीशु ने अपने चेलों को किस बात से खबरदार किया? (ख) चेले क्यों यीशु को छोड़कर भाग गए? (तसवीरें भी देखें।)

 यीशु ने अपने चेलों से कहा था, “दिल तो बेशक तैयार है, मगर शरीर कमज़ोर है।” (मत्ती 26:41ख) इन शब्दों से पता चलता है कि यीशु जानता था कि हम सही काम करना तो चाहते हैं, पर अपरिपूर्ण होने की वजह से पाप कर बैठते हैं। लेकिन यह कहकर यीशु अपने चेलों को खबरदार भी कर रहा था। वह कह रहा था कि उन्हें खुद पर हद-से-ज़्यादा भरोसा नहीं करना चाहिए। इसके कुछ ही समय पहले चेलों ने पूरे यकीन के साथ यीशु से कहा था कि चाहे जो हो जाए वे उसका साथ नहीं छोड़ेंगे। (मत्ती 26:35) उनके इरादे तो नेक थे, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि मुश्‍किल वक्‍त में वे बड़ी आसानी से कमज़ोर पड़ जाएँगे। इसलिए यीशु ने उन्हें खबरदार किया और कहा, “जागते रहो और प्रार्थना करते रहो ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो।”​—मत्ती 26:41क.

2 दुख की बात है कि चेले जागते नहीं रहे या सतर्क नहीं रहे। इस वजह से क्या हुआ? जब सैनिक यीशु को गिरफ्तार करने आए, तो उसका साथ देने के बजाय वे डर के मारे उसे छोड़कर भाग गए। चेलों की कमज़ोरी उन पर हावी हो गयी और वे गलती कर बैठे। उन्होंने कहा था कि वे यीशु को नहीं छोड़ेंगे, लेकिन उन्होंने ऐसा ही किया।​—मत्ती 26:56.

यीशु ने अपने चेलों से कहा था कि वे जागते रहें और परीक्षा में ना पड़ें, लेकिन वे ऐसा करने से चूक गए और उसे छोड़कर भाग गए (पैराग्राफ 1-2)


3. (क) यहोवा के वफादार रहने के लिए यह क्यों ज़रूरी है कि हम खुद पर हद-से-ज़्यादा भरोसा ना करें? (ख) इस लेख में हम क्या जानेंगे?

3 हमें खुद पर हद-से-ज़्यादा भरोसा नहीं करना चाहिए। हमें कभी ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि हमसे कोई गलती नहीं होगी। यह सच है कि हम कभी कुछ ऐसा नहीं करना चाहते जिससे यहोवा दुखी हो। लेकिन हम अपरिपूर्ण हैं और बड़ी आसानी से गलत काम करने के लिए लुभाए जा सकते हैं। (रोमि. 5:12; 7:21-23) हमारे सामने अचानक ऐसे हालात आ सकते हैं जब गलत काम करने से खुद को रोकना हमारे लिए मुश्‍किल हो जाए। ऐसे में हम यहोवा और उसके बेटे यीशु के वफादार कैसे रह सकते हैं? जैसा यीशु ने बताया था, हमें सतर्क रहना होगा ताकि हम कोई गलत काम ना कर बैठें। इस लेख में हम जानेंगे कि हम यह कैसे कर सकते हैं। सबसे पहले हम देखेंगे कि हमें किन मामलों  में और भी ज़्यादा सतर्क रहने की ज़रूरत है। फिर हम देखेंगे कि हम कैसे  सतर्क रह सकते हैं और आखिर में हम जानेंगे कि हमेशा  सतर्क रहने के लिए हमें क्या करना होगा।

किन मामलों में सतर्क रहें?

4-5. यह क्यों ज़रूरी है कि हम ऐसे पाप करने से भी दूर रहें जो इतने गंभीर नहीं होते?

4 हो सकता है, कुछ पाप इतने गंभीर ना हों, पर उनकी वजह से भी यहोवा के साथ हमारा रिश्‍ता खराब हो सकता है। यही नहीं, हमसे कोई गंभीर पाप भी हो सकता है।

5 हम सब गलत काम करने के लिए लुभाए जाते हैं। पर हमारी अपनी कुछ कमज़ोरियाँ भी होती हैं जिनकी वजह से हम गलत काम कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लोगों में अनैतिक काम करने की ज़बरदस्त इच्छा होती है, जैसे नाजायज़ यौन संबंध रखने की। कुछ लोगों को दूसरे गंदे काम करने का बहुत मन करता है, जैसे पोर्नोग्राफी देखना या हस्तमैथुन करना। और कुछ लोग दूसरे मामलों में कमज़ोर होते हैं, जैसे वे इंसानों से डरते हैं, घमंड करते हैं या जल्दी अपना आपा खो बैठते हैं। याकूब ने भी अपनी चिट्ठी में लिखा था, “हर किसी की इच्छा  उसे खींचती और लुभाती है, जिससे वह परीक्षा में पड़ता है।”​—याकू. 1:14.

6. हमें अपने बारे में क्या पता होना चाहिए?

6 क्या आप जानते हैं कि आपकी  क्या कमज़ोरियाँ हैं जिस वजह से आप गलत काम करने के लिए लुभाए जा सकते हैं? अगर हम यह सोचें कि हममें कोई कमज़ोरी नहीं और हम कभी पाप नहीं करेंगे, तो हम खुद को धोखा दे रहे होंगे। (1 यूह. 1:8) याद रखिए, पौलुस ने कहा था कि “जो परमेश्‍वर की ठहरायी योग्यताएँ रखते” हैं, वे भी अगर सतर्क ना रहें, तो पाप कर सकते हैं। (गला. 6:1) इसलिए ज़रूरी है कि हम खुद की ईमानदारी से जाँच करें और यह पता लगाएँ कि हमारी कमज़ोरियाँ क्या हैं।​—2 कुरिं. 13:5.

7. हमें किस बात का खास ध्यान रखना चाहिए? उदाहरण देकर समझाइए।

7 अपनी कमज़ोरियों को पहचानने के बाद हमें क्या करना चाहिए? इसे समझने के लिए एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए। पुराने ज़माने में शहर के चारों तरफ शहरपनाह होती थी जिसका सबसे कमज़ोर हिस्सा होता था उसके फाटक। और अकसर दुश्‍मन फाटक पर ही हमला करते थे। इसलिए खास ध्यान रखा जाता था कि फाटक पर और भी पहरेदार बिठाए जाएँ। हमारी कमज़ोरियाँ भी फाटक की तरह हैं। इसलिए हमें इन पर पहरा देना है, यानी सतर्क रहना है कि ये हम पर हावी ना हो जाएँ।​—1 कुरिं. 9:27.

किस तरह सतर्क रहें?

8-9. नीतिवचन अध्याय 7 में बताया जवान पाप करने से कैसे दूर रह सकता था? (नीतिवचन 7:8, 9, 13, 14, 21)

8 हम किस तरह सतर्क रह सकते हैं ताकि पाप ना कर बैठें? आइए नीतिवचन अध्याय 7 में बताए जवान आदमी पर गौर करें और जानें कि वह कैसे नाजायज़ संबंध रखने के फंदे में फँस गया। आयत 22 में लिखा है कि वह “फौरन” एक बदचलन औरत के पीछे चल दिया। लेकिन इससे पहले की आयतों से पता चलता है कि यह सब अचानक नहीं हुआ, बल्कि धीरे-धीरे  हुआ। उस जवान ने ऐसे बहुत-से काम किए थे जिस वजह से वह पाप कर बैठा।

9 सबसे पहले, शाम के वक्‍त “वह उस सड़क पर [गया], जिसके मोड़ पर वह [बदचलन] औरत रहती थी।” फिर वह तेज़ी से उसके घर की तरफ जाने लगा। (नीतिवचन 7:8, 9 पढ़िए।) इसके बाद जब उसने उस औरत को देखा, तो वह दूर नहीं भागा। और फिर जब उस औरत ने उसे पकड़कर चूमा, तो उसने खुद को छुड़ाया नहीं। इतना ही नहीं, वह उसकी बातें सुनने लगा। उस औरत ने कहा कि मैंने शांति-बलि चढ़ायी है। शायद वह उस जवान को यह दिखाना चाह रही थी कि वह कोई बुरी औरत नहीं है। (नीतिवचन 7:13, 14, 21 पढ़िए।) अगर वह जवान सतर्क रहता और खतरों को भाँप लेता, तो वह पाप नहीं करता।

10. नीतिवचन में बताए जवान की तरह आज एक मसीही कैसे पाप में फँस सकता है?

10 उस जवान के साथ जो हुआ, वह परमेश्‍वर के किसी भी सेवक के साथ हो सकता है। हो सकता है, एक मसीही कोई गंभीर पाप कर बैठे और बाद में उसे लगे कि सबकुछ अचानक हो गया। या शायद वह कहे, “पता नहीं यह सब कैसे हो गया।” लेकिन अगर वह ध्यान से सोचे कि ऐसा क्यों हुआ, तो शायद उसे एहसास हो कि उसने समझदारी से काम नहीं लिया और कुछ गलत कदम उठाए। जैसे शायद उसने ऐसे लोगों से दोस्ती की जो यहोवा से प्यार नहीं करते। या वह ऐसा मनोरंजन करने लगा जो एक मसीही के लिए सही नहीं है। या वह ऐसी वेबसाइट पर या ऐसी जगह जाने लगा जहाँ एक मसीही को नहीं जाना चाहिए। यह भी हो सकता है कि उसे एहसास हो कि उसने प्रार्थना करना, बाइबल पढ़ना, सभाओं में जाना और प्रचार में जाना छोड़ दिया है। नीतिवचन में बताए उस जवान की तरह, यह मसीही अचानक पाप नहीं कर बैठा। उसने कुछ गलत कदम उठाए थे जिस वजह से वह पाप में फँस गया।

11. हमें किन बातों से दूर रहना चाहिए ताकि हम पाप में ना फँसें?

11 हमारे लिए क्या सबक है? हमें ना सिर्फ पाप करने से दूर रहना है, बल्कि उन कामों से भी जो पाप की ओर ले जाते हैं। उस जवान और बदचलन औरत का किस्सा बताने के बाद सुलैमान ने यही बात समझायी। उसने लिखा, ‘तू भटककर उस औरत की राहों  पर मत जाना।’ (नीति. 7:25) उसने यह भी कहा, “उस औरत से कोसों दूर रहना,  उसकी दहलीज़ के पास भी न जाना।”  (नीति. 5:3, 8) हमें भी यह सलाह माननी चाहिए। हमें ऐसे कामों और हालात से दूर रहना चाहिए जिनमें हम पाप करने के लिए लुभाए जा सकते हैं। a इसके अलावा, हमें ऐसे कामों से भी दूर रहना चाहिए जो शायद हम मसीहियों के लिए गलत ना हों, लेकिन जिनकी वजह से हम पाप करने के लिए लुभाए जा सकते हैं।​—मत्ती 5:29, 30.

12. अय्यूब ने क्या ठान लिया था और इससे वह पाप करने से कैसे दूर रह पाया? (अय्यूब 31:1)

12 हमें ठान लेना चाहिए कि हम ऐसे हालात से दूर रहेंगे, जिनमें हम पाप में फँस सकते हैं। अय्यूब ने भी ऐसा किया था। उसने “अपनी आँखों के साथ करार” किया था कि वह किसी औरत को गलत नज़र से नहीं देखेगा। (अय्यूब 31:1 पढ़िए।) अपने इस इरादे पर बने रहने की वजह से अय्यूब व्यभिचार करने से दूर रह पाया। अय्यूब की तरह अगर हमारा इरादा भी पक्का होगा, तो हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे हम पाप करने के लिए लुभाए जाएँ।

13. हमें क्यों ध्यान रखना चाहिए कि हम किस बारे में सोचते हैं? (तसवीरें भी देखें।)

13 पाप से दूर रहने के लिए यह ध्यान रखना भी ज़रूरी है कि हम किस बारे में सोचते हैं। (निर्ग. 20:17) कुछ लोगों को लगता है कि गलत कामों के बारे में सोचने में कोई बुराई नहीं है। वे कहते हैं, ‘मैं तो सिर्फ सोच रहा हूँ, कर थोड़ी ना रहा हूँ।’ लेकिन सच तो यह है कि जो इंसान गलत बातों के बारे में सोचता रहता है, उसके अंदर गलत काम करने की इच्छा बढ़ती जाती है। गलत बातों के बारे में सोचना ऐसा है मानो एक इंसान अपने लिए एक गड्‌ढा खोद रहा है और फिर उसे ध्यान रखना है कि वह उसमें गिर ना जाए। माना कि गलत बातें हमारे मन में आ सकती हैं, लेकिन ज़रूरी बात यह है कि हम ऐसी बातों को तुरंत अपने मन से निकाल फेंकें और अपने मन को अच्छी बातों से भरें। जब हम ऐसा करते हैं, तो गलत बातें हमारे मन में जड़ नहीं पकड़तीं। लेकिन अगर हम ऐसा करने से चूक जाएँ, तो ये हमारे मन में इस कदर जड़ पकड़ सकती हैं कि इन्हें निकालना मुश्‍किल हो सकता है और हम कोई गंभीर पाप कर सकते हैं।​—फिलि. 4:8; कुलु. 3:2; याकू. 1:13-15.

हमें ऐसे हर काम और हालात से दूर रहना चाहिए जिनमें हम गलत काम करने के लिए लुभाए जा सकते हैं (पैराग्राफ 13)


14. हम पाप में ना फँसें, इसके लिए हमें और क्या करना होगा?

14 लुभाए जाने पर हम पाप ना करें, इसके लिए हमें एक और चीज़ करनी होगी। वह क्या? हमें इस बात का पूरा यकीन होना चाहिए कि यहोवा की आज्ञाएँ मानने से हमेशा हमारा भला होगा। कभी-कभी हमारे लिए सही तरह सोचना और अपनी गलत इच्छाओं पर काबू करना मुश्‍किल हो सकता है। लेकिन अगर हम परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक काम करने की पूरी कोशिश करें, तो हमें एक अनोखा सुकून और शांति मिलेगी।

15. सही काम करने की इच्छा बढ़ाने से हम कैसे पाप करने से दूर रह पाएँगे?

15 पाप से दूर रहने के लिए हमें अपने अंदर सही काम करने की इच्छा भी बढ़ानी होगी। अगर हम ‘बुराई से नफरत करें और भलाई से प्यार करें,’ तो सही काम करने का हमारा इरादा और पक्का हो जाएगा और हम ऐसे हालात से दूर रह पाएँगे जिनमें हम पाप कर सकते हैं। (आमो. 5:15) सही काम करने की इच्छा बढ़ाने से हमें एक और फायदा होगा। अगर हम अचानक ऐसे हालात में पड़ जाएँ जब हमें गलत काम करने के लिए लुभाया जाए और उससे निकलना हमारे लिए मुश्‍किल हो, तब भी हमारा इरादा मज़बूत बना रहेगा और हम पाप नहीं करेंगे।

16. परमेश्‍वर की सेवा में लगे रहने से हम कैसे सतर्क रह पाते हैं? (तसवीरें भी देखें।)

16 हम अपने अंदर सही काम करने की इच्छा कैसे बढ़ा सकते हैं? इसके लिए हमें परमेश्‍वर की सेवा से जुड़े कामों में लगे रहना होगा। जब हम सभाओं में जाते हैं और प्रचार करते हैं, तो हमारे अंदर यहोवा को खुश करने की इच्छा बढ़ जाती है और हम गलत काम करने के लिए लुभाए नहीं जाते। (मत्ती 28:19, 20; इब्रा. 10:24, 25) परमेश्‍वर का वचन पढ़ने और उस पर मनन करने से अच्छी बातों के लिए हमारा प्यार बढ़ जाता है और बुरी बातों से हमें नफरत होने लगती है। (यहो. 1:8; भज. 1:2, 3; 119:97, 101) और याद कीजिए, यीशु ने अपने चेलों से कहा था, “प्रार्थना करते रहो ताकि तुम परीक्षा में न पड़ो।” (मत्ती 26:41) अगर हम अपने पिता यहोवा से प्रार्थना करें, तो सतर्क रहने में वह हमारी मदद करेगा और उसे खुश करने का हमारा इरादा और मज़बूत हो जाएगा।​—याकू. 4:8.

अगर हम परमेश्‍वर की सेवा से जुड़े कामों में लगे रहें, तो हम गलत काम करने के लिए लुभाए नहीं जाएँगे (पैराग्राफ 16) b


हमेशा सतर्क रहें

17. पतरस की कौन-सी कमज़ोरी उस पर बार-बार हावी हो जाती थी?

17 हो सकता है, हम अपनी कुछ कमज़ोरियों पर पूरी तरह काबू कर लें। लेकिन कुछ कमज़ोरियाँ ऐसी होती हैं जिनके साथ हमें लंबे समय तक लड़ना पड़ सकता है। प्रेषित पतरस के बारे में सोचिए। इंसानों से डरने की वजह से उसने यीशु को जानने से तीन बार इनकार कर दिया था। (मत्ती 26:69-75) लेकिन कुछ समय बाद उसने महासभा के सामने पूरी हिम्मत के साथ गवाही दी। (प्रेषि. 5:27-29) ऐसा लगता है कि तब तक उसने अपने डर पर काबू पा लिया था। लेकिन ध्यान दीजिए कि कुछ सालों बाद क्या हुआ। “उसने खतना किए गए लोगों के डर से” कुछ समय के लिए गैर-यहूदी मसीहियों के साथ खाना-पीना बंद कर दिया। (गला. 2:11, 12) एक बार फिर इंसान का डर पतरस पर हावी हो गया। ऐसा लगता है कि पतरस कभी अपनी इस कमज़ोरी पर काबू नहीं कर पाया।

18. अपनी कुछ कमज़ोरियों के बारे में हमें क्या लग सकता है?

18 हमारे साथ भी ऐसा हो सकता है। हमें लग सकता है कि हमने किसी कमज़ोरी पर काबू पा लिया है, लेकिन शायद वह हम पर दोबारा हावी हो जाए। यह समझने के लिए एक भाई के उदाहरण पर गौर कीजिए। वे कहते हैं, “मैंने 10 साल पहले गंदी तसवीरें और वीडियो देखना छोड़ दिया था। और मुझे लगता था कि मैंने अपनी इस लत पर काबू पा लिया है। लेकिन यह लत मेरे अंदर कहीं छिपकर बैठी हुई थी और वक्‍त आने पर इसने मुझे धर दबोचा।” खुशी की बात है कि इस भाई ने हिम्मत नहीं हारी। वे समझ गए कि उन्हें हर दिन इस कमज़ोरी से लड़ते रहने के लिए मेहनत करनी होगी। शायद नयी दुनिया के आने तक उन्हें ऐसा करते रहना होगा। अपनी कमज़ोरी पर काबू करने के लिए भाई को अपनी पत्नी और प्राचीनों से बहुत मदद मिली है।

19. अगर आप अभी तक अपनी किसी कमज़ोरी पर काबू नहीं कर पाए हैं, तो आप क्या कर सकते हैं?

19 यह सच है कि कुछ कमज़ोरियों पर काबू करना बहुत मुश्‍किल होता है। लेकिन आप क्या कर सकते हैं ताकि आप पाप ना कर बैठें? यीशु की सलाह मानिए। ‘जागते रहिए’, सतर्क रहिए। जब आपको लगता है कि आप मज़बूती से खड़े हुए हैं, तब भी उन कामों और हालात से दूर रहिए जिनमें आपकी कमज़ोरी आप पर हावी हो सकती है। (1 कुरिं. 10:12) याद कीजिए आपने अपनी कमज़ोरी से लड़ने के लिए पहले क्या तरकीब अपनायी थी। फिर वैसा ही कीजिए। बाइबल में लिखा है, “सुखी है वह इंसान जो हमेशा  चौकन्‍ना रहता है।”​—नीति. 28:14; 2 पत. 3:14.

सतर्क रहें और आशीषें पाएँ

20-21. (क) अगर हम सतर्क रहें, तो हमें क्या आशीषें मिलेंगी? (ख) अगर हम अपनी तरफ से मेहनत करें, तो यहोवा हमारे लिए क्या करेगा? (2 कुरिंथियों 4:7)

20 सतर्क रहने में मेहनत ज़रूर लगती है, लेकिन हमारी यह मेहनत कभी बेकार नहीं जाएगी। हो सकता है, पाप करने से हमें ‘चंद दिनों का सुख’ मिले, लेकिन यहोवा के स्तरों के मुताबिक जीने से हम हमेशा खुश रहेंगे। (इब्रा. 11:25; भज. 19:8) और हम इंसानों को बनाया भी इस तरह गया है कि हम यहोवा की बात मानकर ही खुश रह सकते हैं। (उत्प. 1:27) जब हम उसकी बात मानते हैं, तो हमारा ज़मीर साफ रहता है और आगे चलकर हमें हमेशा की ज़िंदगी भी मिल सकती है।​—1 तीमु. 6:12; 2 तीमु. 1:3; यहू. 20, 21.

21 यह सच है कि हमारा “शरीर कमज़ोर है।” लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम लाचार हैं और अपनी कमज़ोरियों पर काबू नहीं कर सकते। यहोवा हमारे साथ है और वह हमें अपनी कमज़ोरियों पर काबू करने की ताकत दे सकता है। (2 कुरिंथियों 4:7 पढ़िए।) बाइबल बताती है कि परमेश्‍वर जो ताकत देता है, वह आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर  है। लेकिन अपनी कमज़ोरियों से लड़ने के लिए हमें अपनी  ताकत भी लगानी होगी। हमें हर दिन मेहनत करनी होगी। अगर हम ऐसा करें, तो हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देगा और ज़रूरत पड़ने पर हमें ताकत से भर देगा। (1 कुरिं. 10:13) जी हाँ, यहोवा की मदद से हम सतर्क रह सकते हैं और पाप करने से दूर रह सकते हैं।

गीत 47 रोज़ करें बातें याह से

b तसवीर के बारे में: एक भाई सुबह-सुबह रोज़ाना वचन पढ़ रहा है, दोपहर में खाने के समय बाइबल पढ़ रहा है और शाम को हफ्ते के बीच होनेवाली सभा में हाज़िर है।