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क्या आपको याद है?

क्या आपको याद है?

क्या आपने हाल की प्रहरीदुर्ग पत्रिकाएँ ध्यान से पढ़ी हैं? देखिए कि क्या आप नीचे दिए सवालों के जवाब दे पाते हैं या नहीं:

माता-पिता अपने नौजवानों को तालीम देने के लिए क्या ज़रूरी काम कर सकते हैं, ताकि वे यहोवा की सेवा करें?

माता-पिताओं के लिए ज़रूरी है कि वे अपने नौजवान बच्चों से प्यार करें और अपनी मिसाल से नम्रता ज़ाहिर करें। यह भी ज़रूरी है कि माता-पिता समझ से काम लें और अपने नौजवानों को समझने की कोशिश करें।—प्रहरीदुर्ग 15 11/15, पेज 9-11.

बोलने से पहले हमें किन बातों पर ध्यान देना चाहिए?

अपनी ज़बान से भलाई करने के लिए हमें तीन बातें ध्यान में रखनी चाहिए: (1) हमें कब बोलना है (सभो. 3:7), (2) क्या बोलना है (नीति. 12:18) और (3) कैसे बोलना है (नीति. 25:15)।—प्रहरीदुर्ग 15 12/15, पेज 19-22.

क्या फैसले लेने में प्रार्थना करने से मदद मिल सकती है?

हम जो फैसले लेते हैं उनका हम पर गहरा असर हो सकता है। जब यीशु को ज़रूरी फैसले लेने होते थे, तो वह भी अपने पिता से मदद माँगता था। अगर हम बुद्धि के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें, तो वह अपनी पवित्र शक्ति के ज़रिए हमें सही राह दिखाएगा जिससे हम सही फैसले ले सकेंगे। (याकू. 1:5)—प्रहरीदुर्ग 16.अंक 1, पेज 8.

क्या ईश्वर वाकई इंसानों की परवाह करता है?

बाइबल में बताया गया है कि जब कोई चिड़िया ज़मीन पर गिरती है, तो उस पर ईश्वर ध्यान देता है। तो क्या ईश्वर इतना व्यस्त है कि उसके पास आप पर ध्यान देने या आपकी प्रार्थनाएँ सुनने का वक्‍त नहीं है? नहीं, ऐसा नहीं है। (मत्ती 10:29, 31)—प्रहरीदुर्ग 16.अंक1, पेज 13.

स्मारक में जो रोटी और दाख-मदिरा लेता है, उसके साथ हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए?

स्मारक में रोटी और दाख-मदिरा लेनेवालों की मसीही वाहवाही नहीं करते। और जो वाकई अभिषिक्‍त हैं, वे अपनी वाहवाही नहीं चाहेंगे, न ही परमेश्वर के साथ उनका जो रिश्ता है, उसका ढिढोंरा पीटना चाहेंगे। (मत्ती 23:8-12)—प्रहरीदुर्ग 16.01, पेज 23-24.

अब्राहम जिस तरह परमेश्वर का दोस्त बना, उससे हम क्या सीख सकते हैं?

अब्राहम ने शायद नूह के बेटे शेम से, परमेश्वर के बारे में ज्ञान लिया, यानी उसके बारे में सीखा। साथ ही, परमेश्वर अब्राहम और उसके परिवार के साथ जिस तरह पेश आया, उससे उसने तजुरबा हासिल किया। हम भी ऐसा ही कर सकते हैं।—प्रहरीदुर्ग 16.02, पेज 9-10.

हमारी परवरिश जिस माहौल में हुई है, क्या उससे तय होता है कि हम कैसे इंसान बनेंगे?

हिजकियाह का पिता आहाज यहूदा देश का बहुत ही बुरा राजा था, मगर हिजकियाह बहुत ही अच्छा राजा बना। उसने बचाव के लिए यहोवा पर भरोसा रखा और अपनी बातों और अपनी मिसाल से अपने लोगों का हौसला मज़बूत किया। वह जिस परिवार में पला-बढ़ा था, उसकी वजह से उसने अपनी ज़िंदगी बरबाद नहीं होने दी।—प्रहरीदुर्ग 16.02, पेज 15.

क्या शैतान, यीशु की परीक्षा लेने के लिए सच में उसे मंदिर ले गया था?

हम पक्के तौर पर नहीं जानते। मत्ती 4:5 और लूका 4:9 में कही बात का मतलब यह भी हो सकता है कि यीशु को दर्शन में वहाँ ले जाया गया हो, या हो सकता है कि वह मंदिर की किसी ऊँची जगह पर खड़ा हुआ हो।—प्रहरीदुर्ग 16.03, पेज 31-32.

हमारी प्रचार सेवा कैसे ओस की तरह हो सकती है?

ओस धीरे-धीरे जमती है और यह ताज़गी देती है और जान बचानेवाली होती है। सचमुच की ओस परमेश्वर की तरफ से आशीष है। (व्यव. 33:13) परमेश्वर के सभी लोग मिलकर प्रचार में जो मेहनत करते हैं, वह भी उसी तरह है।—प्रहरीदुर्ग 16.04, पेज 4.