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क्या आप महान कुम्हार के हाथों ढलने के लिए तैयार रहते हैं?

क्या आप महान कुम्हार के हाथों ढलने के लिए तैयार रहते हैं?

“देख, जैसे मिट्टी कुम्हार के हाथ में रहती है, वैसे ही . . . तुम भी मेरे हाथ में हो।”—यिर्म. 18:6.

गीत: 23, 22

1, 2. (क) दानिय्येल “परमेश्वर के लिए बहुत अनमोल” क्यों था? (ख) महान कुम्हार की तरफ हमारा कैसा नज़रिया होना चाहिए?

जब यहूदी बैबिलोन की गुलामी में गए, तो उन्होंने देखा कि वह शहर मूर्तियों से भरा हुआ है और वहाँ ऐसे लोग हैं जो दुष्ट स्वर्गदूतों की उपासना करते हैं। फिर भी वफादार यहूदी जैसे, दानिय्येल और उसके तीन दोस्त बैबिलोन के लोगों के साँचे में नहीं ढले। (दानि. 1:6, 8, 12; 3:16-18) दानिय्येल और उसके दोस्तों ने ठान लिया था कि वे यहोवा को ही अपना कुम्हार मानेंगे और उसी की उपासना करेंगे। दानिय्येल की करीब पूरी ज़िंदगी बुरे माहौल में ही कटी, तो भी परमेश्वर के एक स्वर्गदूत ने कहा कि वह “परमेश्वर के लिए बहुत अनमोल है।”—दानि. 10:11, 19, एन.डब्ल्यू.

2 पुराने ज़माने में, एक कुम्हार मिट्टी को आकार देने के लिए शायद उसे साँचे में डालकर दबाता था। आज सच्चे उपासक जानते हैं कि यहोवा ही पूरे विश्व का शासक है और उसे राष्ट्रों को ढालने का पूरा अधिकार है। (यिर्मयाह 18:6 पढ़िए।) परमेश्वर को हममें से हर एक को भी ढालने का अधिकार है। लेकिन बदलाव करने के लिए यहोवा किसी के साथ ज़बरदस्ती नहीं करता। वह चाहता है कि हम खुशी-खुशी उसे यह मौका दें कि वह हमें ढाले। इस लेख में हम सीखेंगे कि हम परमेश्वर के हाथों में नरम मिट्टी की तरह कैसे बने रह सकते हैं। हम आगे बताए तीन सवालों पर चर्चा करेंगे: (1) हम ऐसी फितरत से कैसे बच सकते हैं, जिससे एक व्यक्ति सख्त मिट्टी की तरह बन सकता है और परमेश्वर की सलाह ठुकराने लग सकता है? (2) हम वे गुण कैसे पैदा कर सकते हैं, जिससे हम नरम मिट्टी की तरह और आज्ञा माननेवाले बने रह सकते हैं? (3) मसीही माता-पिता अपने बच्चों को ढालते वक्‍त परमेश्वर की आज्ञा कैसे मान सकते हैं?

ऐसी फितरत से बचिए, जिससे दिल कठोर हो सकता है

3. कैसी फितरत से हमारा दिल कठोर हो सकता है? उदाहरण दीजिए।

3 नीतिवचन 4:23 कहता है, “सब से अधिक अपने मन की रक्षा कर; क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है।” हमारा दिल कठोर न हो, इसके लिए ज़रूरी है कि हम अपने अंदर घमंड न आने दें, पाप करने की आदत न बनाएँ और विश्वास कम न होने दें, या ऐसी कोई फितरत न अपनाएँ। अगर हम सावधान न रहें, तो ऐसी फितरत से हम परमेश्वर की आज्ञा तोड़ने लग सकते हैं और बगावती हो सकते हैं। (दानि. 5:1, 20; इब्रा. 3:13, 18, 19) ऐसा ही यहूदा के राजा उज्जिय्याह के साथ हुआ था। (2 इतिहास 26:3-5, 16-21 पढ़िए।) शुरू में उज्जिय्याह परमेश्वर की आज्ञा मानता था और परमेश्वर के साथ उसका अच्छा रिश्ता था। इसलिए परमेश्वर ने उसे मज़बूत किया। लेकिन “जब वह सामर्थी हो गया, तब उसका मन फूल उठा।” वह इतना घमंडी हो गया कि उसने मंदिर में धूप जलाने की कोशिश की, जबकि यह काम सिर्फ याजकों का था। जब याजकों ने उससे कहा कि वह गलत कर रहा है, तो वह भड़क उठा! उस घमंडी राजा को यहोवा ने नीचा दिखाया और वह मौत तक कोढ़ से पीड़ित रहा।—नीति. 16:18.

4, 5. अगर हम अपने अंदर घमंड आने दें, तो क्या हो सकता है? एक उदाहरण दीजिए।

4 अगर हम अपने अंदर घमंड आने देंगे, तो हम शायद खुद को दूसरों से बेहतर समझने लगें और बाइबल से मिलनेवाली सलाह ठुकराने लगें। (नीति. 29:1; रोमि. 12:3) जिम नाम के एक प्राचीन के साथ ऐसा ही हुआ। वह मंडली के एक मामले में दूसरे प्राचीनों से सहमत नहीं हुआ। वह कहता है, “मैंने भाइयों से कहा कि वे प्यार से पेश नहीं आ रहे और मैं सभा छोड़कर चला गया।” फिर कोई छः महीने बाद वह दूसरी मंडली में चला गया, लेकिन वहाँ उसे प्राचीन नियुक्‍त नहीं किया गया। इससे वह बहुत निराश हो गया। उसे पूरा यकीन था कि वह सही है। इसलिए उसने यहोवा की सेवा करना छोड़ दिया और दस साल तक सच्चाई में ठंडा पड़ा रहा। अब वह कहता है, “मैं घमंडी हो गया था और जो कुछ हो रहा था उसके लिए मैं यहोवा को कसूरवार ठहराने लगा था। सालों तक भाई मुझसे मिलते रहे और मुझे समझाने की कोशिश करते रहे, लेकिन मैं उनकी कोई मदद नहीं चाहता था।”

5 जिम कहता है, “ऐसा लगता था कि दूसरे गलत हैं और इस बात से मैं अपना ध्यान हटा ही नहीं पा रहा था।” इस अनुभव से पता चलता है कि घमंड में आकर हम अपना गलत रवैया सही ठहराने लग सकते हैं। ऐसे में हम नरम मिट्टी की तरह नहीं रहते। (यिर्म. 17:9) क्या आपको कभी किसी भाई या बहन ने चोट पहुँचायी है? क्या कभी आप इसलिए निराश हुए हैं कि आपके पास से कोई ज़िम्मेदारी चली गयी? उस वक्‍त आपने कैसा रवैया दिखाया? क्या आपमें घमंड आ गया था? या क्या आपको यह एहसास हुआ कि अपने भाई के साथ शांति बनाना और यहोवा के वफादार रहना ज़्यादा ज़रूरी है?—भजन 119:165; कुलुस्सियों 3:13 पढ़िए।

6. अगर हम पाप करने की आदत बना लें, तो क्या हो सकता है?

6 जब एक इंसान लगातार पाप करता रहता है और उन्हें छिपाता भी रहता है, तो परमेश्वर से मिलनेवाली सलाह कबूल करना उसके लिए मुश्किल हो सकता है। ऐसे में वह और भी पाप करने लग सकता है। एक भाई का कहना है कि एक वक्‍त ऐसा आया कि उसका चालचलन गलत होने पर भी उस पर कोई खास फर्क नहीं पड़ रहा था। (सभो. 8:11) एक और भाई को गंदी तसवीरें देखने की आदत हो गयी थी। उसने बाद में कहा, “मैं प्राचीनों में नुक्स निकालने लगा था।” उसकी आदत की वजह से यहोवा के साथ उसका रिश्ता बिगड़ गया। जब उसके चालचलन के बारे में दूसरों को पता चला, तो प्राचीनों ने उसकी मदद की। यह सच है कि हम सभी असिद्ध हैं। लेकिन कुछ गलत करने पर परमेश्वर से माफी और मदद माँगने के बजाय, अगर हम दूसरों में नुक्स निकालने लगें या सफाई देने लगें, तो हमारा दिल कठोर हो सकता है।

7, 8. (क) पुराने ज़माने के इसराएलियों ने कैसे दिखाया कि विश्वास की कमी से उनका दिल कठोर हो गया था? (ख) इससे हम क्या सबक सीखते हैं?

7 जब यहोवा ने इसराएलियों को मिस्र से आज़ाद कराया, तो उन्होंने बहुत-से हैरतअंगेज़ चमत्कार देखे। इसके बावजूद, जब वे वादा किए गए देश की दहलीज़ पर ही थे तो उनके दिल कठोर हो गए। क्यों? क्योंकि परमेश्वर पर से उनका विश्वास उठ गया था। यहोवा पर भरोसा रखने के बजाय, वे डर गए और मूसा के बारे में शिकायत करने लगे। यहाँ तक कि वे मिस्र वापस जाना चाहते थे, जहाँ वे गुलाम थे! यहोवा को बहुत दुख हुआ। उसने कहा, “वे लोग कब तक मेरा तिरस्कार करते रहेंगे?” (गिन. 14:1-4, 11; भज. 78:40, 41) दिल कठोर करने और विश्वास न दिखाने की वजह से वे इसराएली वीराने में ही मर गए।

8 आज हम नयी दुनिया की दहलीज़ पर हैं और हमारे विश्वास की परख हो रही है। इसलिए हमें यह जाँचना होगा कि हमारा विश्वास कैसा है। हम कैसे जान सकते हैं कि हमारा विश्वास मज़बूत है? मत्ती 6:33 में दर्ज़ यीशु की कही बात के आधार पर हम खुद की जाँच कर सकते हैं। खुद से पूछिए, ‘क्या मेरे लक्ष्यों और फैसलों से यह साबित होता है कि मुझे यीशु की कही बात पर पूरा यकीन है? क्या मैंने यह सोचा है कि ज़्यादा पैसा कमाने के लिए मैं सभाओं में या प्रचार में जाना कम कर दूँगा? अगर मुझे नौकरी में ज़्यादा समय और ताकत लगानी पड़े, तो मैं क्या करूँगा? क्या मैं दुनिया के साँचे में खुद को ढलने दूँगा? यहाँ तक कि अगर यहोवा की सेवा दाँव पर लगानी पड़े, तो क्या मैं उसके लिए भी तैयार हो जाऊँगा?’

9. (क) हमें क्यों “खुद को जाँचते” रहना चाहिए कि हम विश्वास में हैं या नहीं? (ख) हम यह कैसे कर सकते हैं?

9 बाइबल बुरी संगति, बहिष्कार और मनोरंजन के बारे में जो सलाह देती है, उसे अगर हम हमेशा न मानें, तो भी हमारा दिल कठोर हो सकता है। अगर आपके साथ ऐसा होने लगता है तो आपको क्या करना चाहिए? जल्द-से-जल्द आपको अपने विश्वास की जाँच करनी चाहिए। बाइबल कहती है, “खुद को जाँचते रहो कि तुम विश्वास में हो या नहीं। तुम खुद क्या हो, इसका सबूत देते रहो।” (2 कुरिं. 13:5) ईमानदारी से खुद की जाँच कीजिए और परमेश्वर के वचन की मदद से लगातार अपनी सोच सुधारते रहिए।

नरम मिट्टी की तरह बने रहिए

10. हम यहोवा के हाथों में नरम मिट्टी की तरह कैसे बने रह सकते हैं?

10 हम नरम मिट्टी की तरह बने रहें, इसके लिए परमेश्वर ने अपना वचन बाइबल, मसीही मंडली और प्रचार सेवा का इंतज़ाम किया है। जैसे पानी से मिट्टी नरम बनी रहती है, उसी तरह हर दिन बाइबल पढ़ने और उस पर मनन करने से हम यहोवा के हाथों में नम्र और कोमल बने रह सकते हैं और वह हमें ढाल सकता है। यहोवा ने इसराएल के राजाओं को आज्ञा दी थी कि वे परमेश्वर के कानून की नकल बनाएँ और हर दिन उसे पढ़ें। (व्यव. 17:18, 19) प्रेषित भी जानते थे कि शास्त्र को पढ़ना और उस पर मनन करना प्रचार सेवा के लिए बहुत ज़रूरी है। उन्होंने जब किताबें लिखीं, तो उनमें सैकड़ों बार इब्रानी शास्त्र की बातें दर्ज़ कीं या उनका ज़िक्र किया। जब वे लोगों को खुशखबरी सुनाते थे, तो उन्हें भी वे शास्त्र पढ़ने और उस पर मनन करने का बढ़ावा देते थे। (प्रेषि. 17:11) उसी तरह, हम भी जानते हैं कि हर दिन परमेश्वर का वचन पढ़ना और उस पर मनन करना कितना ज़रूरी है। (1 तीमु. 4:15) इससे हम नम्र बने रह पाते हैं और यहोवा हमें ढाल पाता है।

परमेश्वर के इंतज़ामों की मदद से नरम मिट्टी की तरह बने रहिए (पैराग्राफ 10-13 देखिए)

11, 12. यहोवा हरेक की ज़रूरतें ध्यान में रखकर मसीही मंडली के ज़रिए कैसे हमें ढालता है? उदाहरण दीजिए।

11 यहोवा जानता है कि हममें से हरेक की क्या ज़रूरतें हैं। उसी के हिसाब से वह मसीही मंडली के ज़रिए हमें ढालता है। जिम, जिसका पहले ज़िक्र किया गया था, उसके लिए एक प्राचीन ने सच्ची परवाह दिखायी। इससे जिम का रवैया बदलने लगा। वह कहता है, ‘उसने मेरे हालात के लिए एक बार भी मुझे दोष नहीं दिया, न ही मुझमें नुक्स निकाला। इसके बजाय, उसने मेरा हौसला बढ़ाया और दिखाया कि वह वाकई मदद करना चाहता है।’ करीब तीन महीने बाद, उस प्राचीन ने जिम को सभा में आने के लिए कहा। जिम कहता है, ‘मंडली के भाई-बहनों ने प्यार से मेरा स्वागत किया। उनके प्यार की वजह से ही मैं अपनी सोच बदल पाया। मुझे एहसास होने लगा कि मेरी भावनाएँ सबसे ज़्यादा मायने नहीं रखतीं। भाइयों ने और मेरी पत्नी ने मेरी काफी मदद की। धीरे-धीरे मुझे फिर से यहोवा की सेवा करने का हौसला मिलने लगा। मुझे 1 फरवरी, 1993 की प्रहरीदुर्ग में दिए लेख “यहोवा दोषी नहीं है” और “निष्ठा से यहोवा की सेवा कीजिए” पढ़ने से भी बहुत फायदा हुआ।’

12 आगे चलकर जिम फिर से प्राचीन बन गया। तब से उसने इस तरह की मुश्किलों का सामना करने और अपना विश्वास मज़बूत करने में दूसरे भाइयों की भी मदद की। वह कहता है, “मुझे लगता था कि यहोवा के साथ मेरा मज़बूत रिश्ता है, जबकि हकीकत में ऐसा नहीं था!” उसे पछतावा है कि वह घमंड में आकर ज़्यादा ज़रूरी बातों पर ध्यान देने के बजाय, दूसरों की कमज़ोरियों पर ध्यान देने लगा था।—1 कुरिं. 10:12.

13. प्रचार सेवा से हमें कौन-से गुण पैदा करने में मदद मिलती है और इससे क्या फायदे होते हैं?

13 प्रचार सेवा भी हमें ढाल सकती है, यानी हमें अच्छा इंसान बना सकती है। कैसे? जब हम लोगों को खुशखबरी सुनाते हैं, तो हमें नम्रता और पवित्र शक्ति के गुण पैदा करने में मदद मिलती है। (गला. 5:22, 23) सोचिए आप प्रचार सेवा की वजह से अपने अंदर कौन-से बढ़िया गुण पैदा कर पाए हैं। और हाँ, जब हम मसीह की मिसाल पर चलते हैं, तो हमारा संदेश लोगों को भा जाता है। इससे हो सकता है हमारी तरफ उनका रवैया बदल जाए। ज़रा इस अनुभव पर गौर कीजिए। ऑस्ट्रेलिया में दो यहोवा के साक्षी जब एक स्त्री को गवाही दे रहे थे, तो वह बहुत गुस्सा होने लगी। वह उनके साथ बड़ी रुखाई से पेश आयी। मगर साक्षी उसके साथ इज़्ज़त से पेश आए। उस स्त्री ने साक्षियों से जिस तरह व्यवहार किया, उस पर बाद में उसे अफसोस हुआ। उसने शाखा दफ्तर को एक खत लिखा। खत में उसने कहा कि वह खुद को कुछ ज़्यादा ही धर्मी और बड़ा समझ रही थी। अपने इस व्यवहार के लिए उसने माफी माँगी। उसने कहा, ‘मैं कैसी मूर्ख हूँ जो परमेश्वर के वचन का ऐलान करनेवालों के साथ इस तरह पेश आयी और उन्हें दुत्कार दिया।’ सोचिए अगर उन प्रचारकों ने ज़रा भी तेवर बदले होते, तो क्या उस स्त्री ने यह खत लिखा होता? शायद नहीं। यह दिखाता है कि प्रचार सेवा से दूसरों को तो मदद मिलती ही है, इससे हमें भी अपनी शख्सियत निखारने में मदद मिलती है।

अपने बच्चों को ढालते वक्‍त यहोवा की आज्ञा मानिए

14. अगर माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी तरह ढालना चाहते हैं, तो उन्हें क्या करना चाहिए?

14 ज़्यादातर छोटे बच्चे नम्र होते हैं और सीखने के लिए तैयार रहते हैं। (मत्ती 18:1-4) इसलिए बुद्धिमानी दिखाते हुए माता-पिता को कोशिश करनी चाहिए कि वे छुटपन से ही अपने बच्चों के दिलो-दिमाग में सच्चाई बिठाएँ और इसके लिए उनमें लगाव पैदा करें। (2 तीमु. 3:14, 15) बेशक, इसमें कामयाब होने के लिए ज़रूरी है कि माता-पिताओं को खुद सच्चाई से लगाव हो और वे बाइबल की शिक्षाएँ अपनी ज़िंदगी में लागू करें। जब माता-पिता ऐसा करते हैं, तो उनके बच्चों को भी सच्चाई से लगाव होने लगता है। साथ ही, बच्चे समझ पाएँगे कि माता-पिता से मिलनेवाला अनुशासन इस बात का सबूत है कि उनके माता-पिता और यहोवा उनसे प्यार करते हैं।

15, 16. अगर एक बच्चे का बहिष्कार हो जाता है, तो उसके माता-पिता को परमेश्वर पर अपना भरोसा कैसे दिखाना चाहिए?

15 माता-पिता अपने बच्चों को सच्चाई सिखाते हैं, इसके बावजूद कुछ बच्चे यहोवा को छोड़ देते हैं या उनका बहिष्कार हो जाता है। ऐसा होने पर परिवार को बहुत दुख होता है। दक्षिण अफ्रीका की एक बहन कहती है, ‘जब मेरे भाई का बहिष्कार हुआ, तो हमारा कलेजा फट गया! ऐसा लग रहा था जैसे उसकी मौत हो गयी है।’ उस बहन और उसके माता-पिता ने क्या किया? उन्होंने बाइबल की हिदायतें मानीं। (1 कुरिंथियों 5:11, 13 पढ़िए।) वे माता-पिता जानते थे कि परमेश्वर की सलाह मानने से हर किसी को फायदा होगा। उन्होंने यह भी माना कि बहिष्कार का इंतज़ाम, यहोवा की तरफ से प्यार-भरा अनुशासन है। इसलिए उन्होंने अपने बेटे से सिर्फ तभी संपर्क किया, जब परिवार के कारोबार के सिलसिले में ऐसा करना बहुत ज़रूरी होता था।

16 उनके बेटे ने कैसा महसूस किया? उसने बाद में कहा, “मैं जानता था कि मेरे परिवार को मुझसे नफरत नहीं है, वे बस यहोवा और उसके संगठन की हिदायतें मान रहे हैं।” उसने यह भी कहा, ‘जब ऐसी नौबत आ जाती है कि आप सिर्फ यहोवा से मदद और माफी पाने के लिए गिड़गिड़ा सकते हैं, तब आपको एहसास होता है कि आपको यहोवा की कितनी ज़रूरत है।’ सोचिए, जब यह नौजवान यहोवा के पास वापस आया, तो परिवार को कितनी खुशी हुई होगी! जी हाँ, अगर हम हर हाल में यहोवा की आज्ञा मानेंगे, तो हम खुश रहेंगे और कामयाब होंगे।—नीति. 3:5, 6; 28:26.

17. (क) हमें क्यों हमेशा यहोवा की आज्ञा माननी चाहिए? (ख) इससे हमें क्या फायदा होगा?

17 भविष्यवक्ता यशायाह ने पहले से बता दिया था कि एक वक्‍त पर बैबिलोन की कैद में गए यहूदी पश्‍चाताप करेंगे। वे कहेंगे, “हे यहोवा, तू हमारा पिता है; देख, हम तो मिट्टी हैं, और तू हमारा कुम्हार है; हम सब के सब तेरे हाथ के काम हैं।” वे यहोवा से यह भी फरियाद करेंगे, “अनन्तकाल तक हमारे अधर्म को स्मरण न रख। विचार करके देख, हम तेरी विनती करते हैं, हम सब तेरी प्रजा हैं।” (यशा. 64:8, 9) अगर हम नम्र रहेंगे और हमेशा यहोवा की आज्ञा मानेंगे, तो वह दानिय्येल की तरह हमें भी बहुत अनमोल समझेगा। इतना ही नहीं, यहोवा अपने वचन, अपनी पवित्र शक्ति और अपने संगठन के ज़रिए हमें ढालता रहेगा, ताकि भविष्य में हम “परमेश्वर के बच्चे” बन सकें, सिद्ध बच्चे।—रोमि. 8:21.