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अध्ययन लेख 24

“मेरे मन को एक कर कि मैं तेरे नाम का डर मानूँ”

“मेरे मन को एक कर कि मैं तेरे नाम का डर मानूँ”

‘हे यहोवा, मेरे मन को एक कर कि मैं तेरे नाम का डर मानूँ। मेरे परमेश्‍वर, मैं पूरे दिल से तेरी तारीफ करता हूँ।—भज. 86:11, 12.

गीत 7 यहोवा बल हमारा!

लेख की एक झलक *

1. (क) परमेश्‍वर का डर मानने का क्या मतलब है? (ख) जो यहोवा से प्यार करते हैं, उनमें यह डर होना क्यों ज़रूरी है?

सच्चे मसीही यहोवा से प्यार करते हैं और उसका डर भी मानते हैं। पर कुछ लोग शायद सोचें कि यह कैसे मुमकिन है कि हम परमेश्‍वर से प्यार भी करें और उसका डर भी मानें? हम उस डर की बात नहीं कर रहें हैं जो हममें खौफ पैदा करता है बल्कि एक अलग किस्म के डर की बात कर रहे हैं। इस लेख में इसी डर के बारे में चर्चा की जाएगी। जिन लोगों में यह डर होता है, उनके दिल में परमेश्‍वर के लिए श्रद्धा और आदर होता है। उनके लिए परमेश्‍वर की दोस्ती बहुत अनमोल होती है। इसलिए वे कोशिश करते हैं कि ऐसा कोई काम न करें जिससे परमेश्‍वर को दुख हो।—भज. 111:10; नीति. 8:13.

2. भजन 86:11 के मुताबिक हम किन दो बातों पर गौर करेंगे?

2 भजन 86:11 पढ़िए। दाविद समझता था कि परमेश्‍वर का डर होना कितना ज़रूरी है। यह बात हमें इस आयत से साफ पता चलती है। आइए गौर करें कि दाविद ने प्रार्थना में जो बात कही, वह हम कैसे लागू कर सकते हैं। सबसे पहले हम कुछ कारणों पर ध्यान देंगे, जिनसे हमारा दिल परमेश्‍वर के लिए श्रद्धा और विस्मय से भर जाना चाहिए। फिर हम गौर करेंगे कि हम रोज़मर्रा ज़िंदगी में कैसे परमेश्‍वर का डर मान सकते हैं।

यहोवा नाम क्यों हमें विस्मय से भर देता है?

3. किस वजह से मूसा श्रद्धा और विस्मय से भर गया?

3 ज़रा मूसा के बारे में सोचिए। जब वह एक चट्टान की बड़ी दरार में छिपा हुआ था, तो उसने यहोवा की महिमा का तेज गुज़रते देखा। यह एक अदना इंसान के लिए कितना हैरतअंगेज़ नज़ारा रहा होगा! उस वक्‍त मूसा ने यह बात सुनी जो शायद स्वर्गदूत ने कही होगी, “यहोवा, यहोवा परमेश्‍वर दयालु और करुणा से भरा है, क्रोध करने में धीमा और अटल प्यार और सच्चाई से भरपूर है, हज़ारों पीढ़ियों से प्यार करता है, वह गुनाहों, अपराधों और पापों को माफ करता है।” (निर्ग. 33:17-23; 34:5-7) इसके बाद जब मूसा ने यहोवा का नाम लिया होगा, तो उसे यह दर्शन याद आया होगा। इसलिए उसने बाद में परमेश्‍वर के लोगों को खबरदार किया कि ‘यहोवा के शानदार और विस्मयकारी नाम से डरो।’—व्यव. 28:58.

4. यहोवा के किन गुणों पर मनन करने से हम श्रद्धा और विस्मय से भर जाएँगे?

4 हमारे लिए भी यहोवा का नाम लेना काफी नहीं है। हमें यह भी समझना होगा कि वह कैसा परमेश्‍वर है। हमें उसके गुणों पर भी मनन करना चाहिए। जैसे, उसकी शक्‍ति, बुद्धि, न्याय और उसका प्यार। ऐसा करने से हमारा दिल भी यहोवा के लिए श्रद्धा और विस्मय से भर जाएगा।—भज. 77:11-15.

5-6. (क) यहोवा नाम का क्या मतलब है? (ख) निर्गमन 3:13, 14 और यशायाह 64:8 के मुताबिक यहोवा कैसे अपना मकसद पूरा करता है?

5 यहोवा नाम का क्या मतलब है? कई विद्वानों का मानना है कि यहोवा नाम का मतलब है, “वह बनने का कारण होता है।” इससे पता चलता है कि यहोवा अपना मकसद पूरा करने के लिए जो चाहे कर सकता है। वह ऐसा कैसे करता है?

6 यहोवा अपना मकसद पूरा करने के लिए खुद जो चाहे बन सकता है। (निर्गमन 3:13, 14 पढ़िए।) हमारे प्रकाशनों में अकसर इसी बात पर मनन करने का बढ़ावा दिया जाता है। यहोवा खुद जो चाहे बन सकता है और अपने सेवकों को भी जो चाहे बना सकता है। (यशायाह 64:8 पढ़िए।) इस तरह वह अपना मकसद पूरा करता है। कोई भी बात उसे अपना मकसद पूरा करने से नहीं रोक सकती।यशा. 46:10, 11.

7. स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के लिए हम अपनी कदर कैसे बढ़ा सकते हैं?

7 परमेश्‍वर ने हमारे लिए जो भी किया है और हमसे जो करवा रहा है, उस पर मनन करने से उसके लिए हमारे दिल में कदर बढ़ जाएगी। उदाहरण के लिए, जब हम यहोवा की बनायी खूबसूरत सृष्टि पर मनन करते हैं, तो हम विस्मय से भर जाते हैं। (भज. 8:3, 4) यही नहीं, जब हम इस बात पर मनन करते हैं कि यहोवा ने किस तरह हमें उसकी मरज़ी पूरी करने के लायक बनाया है, तो हमारा दिल उसके लिए एहसान से भर जाता है। यहोवा नाम अपने आप में विस्मयकारी है। इससे पता चलता है कि वह कैसा परमेश्‍वर है, उसने अब तक क्या किया है और आगे क्या करनेवाला है।भज. 89:7, 8.

“मैं यहोवा के नाम का ऐलान करूँगा”

मूसा ने इसराएलियों को यहोवा और उसके नाम के बारे में सिखाया। इससे उन्हें ताज़गी मिली (पैराग्राफ 8 देखें) *

8. व्यवस्थाविवरण 32:2, 3 से हमें यहोवा की सोच के बारे में क्या पता चलता है?

8 इसराएली वादा किए गए देश में कदम रखने ही वाले थे। उसी वक्‍त यहोवा ने मूसा को एक गीत सिखाया। (व्यव. 31:19) फिर मूसा को वह गीत इसराएलियों को सिखाना था। (व्यवस्थाविवरण 32:2, 3 पढ़िए।) इन आयतों पर मनन करने से हमें यहोवा की सोच पता चलती है। वह नहीं चाहता कि उसका नाम लोगों से छिपा रहे, मानो यह इतना पवित्र है कि इसे ज़बान पर नहीं लाया जा सकता। इसके बजाय वह चाहता है कि हर कोई उसका नाम जाने! इसराएलियों के लिए यहोवा और उसके महान नाम के बारे में सीखना वाकई सम्मान की बात थी। जैसे हलकी बौछार से पेड़-पौधे हरे-भरे हो जाते हैं, उसी तरह मूसा की बातों से इसराएलियों को ताज़गी मिली होगी। अगर हम चाहते हैं कि हमारी बातों से लोगों को ताज़गी मिले तो हम क्या कर सकते हैं?

9. परमेश्‍वर का नाम पवित्र करने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

9 घर-घर प्रचार करते वक्‍त या सरेआम गवाही देते वक्‍त हम बाइबल से लोगों को परमेश्‍वर का नाम बता सकते हैं। हम उन्हें कुछ किताबें-पत्रिकाएँ दे सकते हैं और वीडियो दिखा सकते हैं। हम उन्हें अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के बारे में भी बता सकते हैं। हम स्कूल में, काम की जगह पर या सफर करते वक्‍त मौका ढूँढ़कर लोगों को परमेश्‍वर और उसके नाम के बारे में बता सकते हैं। हम उन्हें यह भी बता सकते हैं कि परमेश्‍वर इंसानों और इस धरती के लिए क्या-क्या करेगा। इससे वे समझ पाएँगे कि परमेश्‍वर सच में उनसे प्यार करता है। जब हम लोगों को अपने पिता यहोवा के बारे में सच्चाई बताते हैं, तो हम उसका नाम पवित्र कर रहे होते हैं। हम ऐसी कई झूठी बातों का परदाफाश कर रहे होते हैं जो उन्हें सिखायी गयी थीं। हम लोगों को बाइबल से जो सिखाते हैं, उससे उन्हें बहुत ताज़गी मिलती है।यशा. 65:13, 14.

10. विद्यार्थी को सिर्फ परमेश्‍वर के नेक स्तरों के बारे में सिखाना काफी क्यों नहीं है?

10 जब हम बाइबल अध्ययन चलाते हैं, तो हम चाहते हैं कि हमारा विद्यार्थी परमेश्‍वर का नाम जाने, उसके मायने समझे और उसे ले भी। लेकिन अगर हम उसे सिर्फ परमेश्‍वर के नियमों और सिद्धांतों के बारे में सिखाएँ तो क्या ऐसा हो पाएगा? एक अच्छा विद्यार्थी शायद सीख ले कि परमेश्‍वर के नियम क्या हैं और वह उन्हें पसंद भी करने लगे। लेकिन उसे यहोवा से भी प्यार करना चाहिए जिसने वह आज्ञाएँ दी हैं। यह क्यों ज़रूरी है? वह इसलिए कि अगर वह यहोवा से प्यार करेगा तो उसकी आज्ञाएँ मानेगा। ध्यान दीजिए कि आदम और हव्वा के साथ क्या हुआ था। वे यहोवा की आज्ञा जानते थे, फिर भी उन्होंने उसकी आज्ञा नहीं मानी। क्यों? क्योंकि वे आज्ञा देनेवाले से प्यार नहीं करते थे। (उत्प. 3:1-6) इसलिए अपने विद्यार्थी को परमेश्‍वर के नेक स्तरों के बारे में सिखाना काफी नहीं है। हमें उसे परमेश्‍वर से प्यार करना भी सिखाना होगा।

11. हम अपने विद्यार्थियों को यहोवा से प्यार करना कैसे सिखा सकते हैं?

11 परमेश्‍वर ने हमें कई नियम दिए हैं क्योंकि वह हम से प्यार करता है और हमारा भला चाहता है। (भज. 119:97, 111, 112) शुरू-शुरू में शायद हमारा विद्यार्थी यह बात न समझे। इसलिए हम उससे पूछ सकते हैं, “परमेश्‍वर क्यों अपने सेवकों को कोई काम करने या न करने के लिए कहता है? इससे परमेश्‍वर के बारे में क्या पता चलता है?” इस तरह के सवाल पूछकर हम अपने विद्यार्थी के दिल तक पहुँच पाएँगे। फिर वह न सिर्फ परमेश्‍वर के नियमों से बल्कि उससे और उसके नाम से भी प्यार करने लगेगा। (भज. 119:68) उसका विश्‍वास मज़बूत होगा और वह आनेवाली मुश्‍किलों का हिम्मत से सामना कर पाएगा।—1 कुरिं. 3:12-15.

‘हम यहोवा का नाम लेकर चलते रहेंगे’

एक मौके पर दाविद का दिल बँट गया था (पैराग्राफ 12 देखें)

12. (क) दाविद का दिल कैसे बँट गया? (ख) इसका क्या अंजाम हुआ?

12 राजा दाविद ने भजन 86:11 में एक ज़रूरी बात लिखी, “मेरे मन को एक कर।” उसने अपने अनुभव से यह बात कही। वह जानता था कि अगर हम सावधान न रहें तो बहुत आसानी से हमारा दिल बँट सकता है और हम कोई गलत काम कर बैठेंगे। दाविद के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था। एक बार छत पर टहलते वक्‍त उसने एक औरत को नहाते हुए देखा। वह यहोवा का नियम जानता था, ‘तुम अपने संगी-साथी की पत्नी का लालच न करना।’ (निर्ग. 20:17) फिर भी उसने अपनी नज़रें नहीं हटायीं। उस वक्‍त दाविद का दिल बँट गया था। वह यहोवा को खुश तो करना चाहता था मगर उस औरत को भी पाना चाहता था। हालाँकि वह यहोवा से प्यार करता था और उसका डर मानता था लेकिन इस मौके पर वह स्वार्थी बन गया और गंभीर पाप कर बैठा। इस पाप की वजह से यहोवा के नाम की बदनामी हुई। इसका अंजाम सिर्फ उसे ही नहीं बल्कि उसके परिवारवालों को और दूसरे बेगुनाह लोगों को भी भुगतना पड़ा।—2 शमू. 11:1-5, 14-17; 12:7-12.

13. हम कैसे जानते हैं कि बाद में दाविद का दिल यहोवा पर पूरी तरह लगा रहा?

13 जब यहोवा ने दाविद को सुधारा तो उसने अपनी गलती मान ली। इस वजह से वह यहोवा के साथ दोबारा एक अच्छा रिश्‍ता बना पाया। (2 शमू. 12:13; भज. 51:2-4, 17) वह जानता था कि अपनी स्वार्थी इच्छाओं को पूरा करने की वजह से वह खुद पर कितनी मुसीबतें ले आया था। इसलिए भजन 86:11 में उसने यहोवा से प्रार्थना की, “मुझे ऐसा दिल दे जो बँटा हुआ न हो।” क्या यहोवा ने उसकी प्रार्थना सुनी? जी हाँ। इसलिए आगे चलकर यहोवा दाविद के बारे में कह सका कि उसका ‘दिल परमेश्‍वर यहोवा पर पूरी तरह लगा रहा।’—1 राजा 11:4; 15:3.

14. हमें खुद से क्या पूछना चाहिए और क्यों?

14 दाविद की मिसाल से हम कुछ अच्छी बातें सीखते हैं और कुछ सबक भी। उसने जो गंभीर पाप किया, वह हमारे लिए एक चेतावनी है। हम में से कुछ लोग बरसों से यहोवा की सेवा कर रहे हैं और कुछ ने हाल ही में उसकी सेवा शुरू की है। लेकिन हम सभी को खुद से पूछना चाहिए, “क्या मेरा दिल बँटा हुआ है?”

शैतान हर मुमकिन कोशिश करेगा कि हमारा दिल बँट जाए, उसे मौका मत दीजिए! (पैराग्राफ 15-16 देखें) *

15. अगर हमारे दिल में परमेश्‍वर का डर होगा, तो गंदी तसवीरें या दृश्‍य सामने आने पर हम क्या करेंगे?

15 जब आप टीवी या इंटरनेट पर कुछ ऐसे दृश्‍य या तसवीरें देखते हैं जिससे आपके मन में अनैतिक खयाल आ सकते हैं, तो आप क्या करेंगे? शायद आप खुद से कहें, ‘ये इतनी भी बुरी नहीं हैं, अश्‍लील तसवीरें या दृश्‍य तो इससे भी गंदे होते हैं।’ लेकिन असल में यह शैतान का एक फंदा है। वह चाहता है कि आपका दिल बँट जाएँ। (2 कुरिं. 2:11) ये तसवीरें एक कुल्हाड़ी की तरह हो सकती हैं। शुरू में कुल्हाड़ी का छोटा हिस्सा लकड़ी के अंदर जाता है और फिर धीरे-धीरे उसे काटकर अलग कर देता है। ये तसवीरें भी कुछ ऐसा ही करती हैं। शुरू में ये शायद इतनी गंदी न लगें। लेकिन अगर एक व्यक्‍ति लगातार इन्हें देखता रहे, तो एक दिन वह पाप कर बैठेगा और यहोवा का वफादार नहीं रहेगा। इसलिए बहुत ज़रूरी है कि हम अपने दिल में ऐसा कुछ न आने दें, जिससे यह बँट जाए। हमें अपने मन को एक करना चाहिए ताकि हम यहोवा का डर मान सकें।

16. जब हमें लुभाया जाता है तब हमें खुद से क्या पूछना चाहिए?

16 हमें लुभाने के लिए शैतान और भी तरीके अपनाता है। वह शायद हमें ऐसा काम करने के लिए लुभाए जिसमें हमें कोई बुराई नज़र न आए। हम शायद सोचें, “यह कोई इतना बड़ा पाप नहीं कि इसके लिए मेरा बहिष्कार हो जाए।” ऐसी सोच रखना गलत है। इसके बजाय, हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘कहीं शैतान मेरे दिल को बाँटने की कोशिश तो नहीं कर रहा? अगर मैं यह काम करूँगा, तो कहीं इससे यहोवा की बदनामी तो नहीं होगी? ऐसा करने से मैं यहोवा के करीब आऊँगा या उससे दूर चला जाऊँगा?’ हमें इन सवालों पर गहराई से सोचना चाहिए। यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए, ताकि हम इन सवालों के सही-सही जवाब दे पाएँ। (याकू. 1:5) ऐसा करने से हम अपनी हिफाज़त कर पाएँगे और शैतान के झाँसे में नहीं आएँगे। इसके बजाय, हम भी यीशु की तरह कह पाएँगे, “दूर हो जा शैतान!”—मत्ती 4:10.

17. अगर हमारा दिल बँटा हुआ है, तो वह क्यों किसी काम का नहीं होगा? उदाहरण दीजिए।

17 अगर हमारा दिल बँटा हुआ है, तो वह किसी काम का नहीं होगा। ज़रा उस टीम के बारे में सोचिए, जिसके खिलाड़ियों की आपस में नहीं बनती। कुछ खिलाड़ी अपनी वाह-वाही चाहते हैं और कुछ नियमों के मुताबिक नहीं खेलना चाहते। कुछ खिलाड़ी ऐसे हैं जो कोच की इज़्ज़त नहीं करते। ऐसी टीम कभी-भी जीत नहीं पाएगी। वहीं अगर एक टीम में एकता है, तो मुमकिन है कि वह ज़्यादातर खेलों में जीतेगी। अगर हमारी सोच, हमारी भावनाएँ और इच्छाएँ एक जैसी हों यानी यहोवा के स्तरों से मेल खाती हों, तो हम भी उस कामयाब टीम की तरह हो सकते हैं। लेकिन शैतान चाहता है कि हमारा मन बँट जाएँ। उसकी हमेशा यह कोशिश रहती है कि हम परमेश्‍वर के स्तरों को मानने के बजाय अपनी गलत इच्छाएँ पूरी करें। हमें उसे जीतने नहीं देना चाहिए। हमें पूरे दिल से यहोवा की सेवा करनी चाहिए।—मत्ती 22:36-38.

18. मीका 4:5 के मुताबिक आपने क्या ठान लिया है?

18 हमें भी दाविद की तरह यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए, “मेरे मन को एक कर कि मैं तेरे नाम का डर मानूँ।” इस प्रार्थना के मुताबिक जीने की पूरी कोशिश कीजिए। हर दिन हम जो फैसले करते हैं उनसे ज़ाहिर होना चाहिए कि हम यहोवा का डर मानते हैं और उसके नाम का आदर करते हैं। इस तरह हम यहोवा के साक्षियों के नाते एक अच्छा नाम बनाए रख पाते हैं। (नीति. 27:11) फिर हम भी भविष्यवक्‍ता मीका की तरह कह पाएँगे, “हम अपने परमेश्‍वर यहोवा का नाम लेकर हमेशा-हमेशा तक चलते रहेंगे।”—मीका 4:5.

गीत 41 मेरी प्रार्थना सुन

^ पैरा. 5 इस लेख में हम उस बात पर गौर करेंगे जो राजा दाविद ने प्रार्थना में कही थी। यह बात भजन 86:11, 12 में दर्ज़ है। यहोवा नाम का डर मानने का क्या मतलब है? उस महान नाम के लिए हममें विस्मय और श्रद्धा क्यों होनी चाहिए? परमेश्‍वर का डर किस तरह हमें गलत काम करने से रोकता है?

^ पैरा. 53 तसवीर के बारे में: मूसा ने परमेश्‍वर के लोगों को एक गीत सिखाया जिससे यहोवा की महिमा हुई।

^ पैरा. 57 तसवीर के बारे में: हव्वा ने गलत इच्छाओं को नहीं ठुकराया। लेकिन हम ऐसी तसवीरें नहीं देखते न ऐसे मैसेज पढ़ते हैं जिनसे हमारे अंदर गलत इच्छाएँ पैदा होती हैं। ऐसा करने से यहोवा के नाम की बदनामी होगी।