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जीवन कहानी

यहोवा को ध्यान में रखकर फैसले किए

यहोवा को ध्यान में रखकर फैसले किए

मैं वेनेज़ुएला के कराकस शहर में रहता था। मेरा घर जिस इलाके में था वहाँ बहुत-से अमीर लोग रहते थे। सन्‌ 1984 की बात है, हमेशा की तरह मैं काम पर जा रहा था। मैं प्रहरीदुर्ग  के एक लेख के बारे में सोच रहा था, जो मैंने कुछ समय पहले पढ़ा था। वह इस बारे में था कि पड़ोसी हमारे बारे में क्या सोचते हैं। मेरे मन में चल रहा था कि पड़ोसी मेरे बारे में क्या सोचते होंगे। क्या वे सोचते हैं कि मैं एक कामयाब बैंकर हूँ? या परमेश्‍वर का एक सेवक हूँ, जो अपने परिवार का गुज़ारा चलाने के लिए बैंक में काम करता है? मैं समझ गया था कि लोग मुझे एक कामयाब बैंकर मानते हैं। यह बात मुझे अच्छी नहीं लगी। मैंने फैसला कर लिया कि मैं इस बारे में ज़रूर कुछ करूँगा।

मेरा जन्म 19 मई, 1940 में लेबनान में एमीयून नाम की एक जगह में हुआ था। कुछ साल बाद हम ट्रिपोली चले गए। हम पाँच भाई-बहन थे, तीन लड़कियाँ और दो लड़के। मैं सबसे छोटा था। मेरे माता-पिता यहोवा के साक्षी थे। उन्होंने मुझे भी यहोवा की उपासना करना सिखाया। उनके लिए पैसा कमाना सबसे ज़रूरी नहीं था, बल्कि सभाओं में जाना, बाइबल का अध्ययन करना और प्रचार करना ज़रूरी था।

हमारी मंडली में कई अभिषिक्‍त भाई-बहन थे। उनमें से एक थे, भाई मिशैल आबूद। वे मंडली में पुस्तक अध्ययन चलाते थे। उन्होंने न्यू यॉर्क में सच्चाई सीखी थी और 1921 में लेबनान में प्रचार काम शुरू किया था। एक बार गिलियड से ग्रैजुएट होकर दो बहनें लेबनान में सेवा करने आयीं। उनके नाम थे, ऐन और ग्वेन बीवर। भाई आबूद उनके साथ बहुत आदर से पेश आते थे और उनकी मदद करते थे। हम सब अच्छे दोस्त बन गए। सालों बाद जब मैं अमरीका में ऐन से मिला तो मुझे बहुत खुशी हुई! इसके कुछ साल बाद मैं ग्वेन से भी मिला। उसकी शादी भाई विलफ्रेड गूच से हो चुकी थी और वे दोनों लंदन बेथेल में सेवा कर रहे थे।

लेबनान में प्रचार काम

जब मैं जवान था तब लेबनान में बहुत कम साक्षी थे। फिर भी हम जोश से लोगों को बाइबल के बारे में सिखाते थे। कुछ धर्म गुरु हमारा बहुत विरोध करते थे। मुझे कुछ घटनाएँ आज भी अच्छे-से याद हैं।

एक दिन मैं और मेरी बहन सना, एक बिल्डिंग में प्रचार कर रहे थे। तभी वहाँ एक पादरी आ गया। शायद किसी ने उसे खबर दे दी थी। पादरी सना को बुरा-भला कहने लगा और उसने उसे सीढ़ियों से नीचे धकेल दिया। सना को चोट लग गयी। किसी ने पुलिस को बुला लिया। पुलिस ने लोगों से कहा कि वे सना की मरहम-पट्टी कर दें और पादरी को थाने ले गयी। वहाँ जाकर उन्हें पता चला कि पादरी के पास एक पिस्तौल है। तब एक बड़े अफसर ने उससे पूछा, “तुम पादरी हो या कोई गुंडे-मवाली?”

मुझे एक और किस्सा बहुत अच्छे-से याद है। पूरी मंडली ने एक बस किराए पर ली थी और हम प्रचार करने के लिए दूर एक गाँव गए थे। हमें बहुत मज़ा आ रहा था। तभी उस इलाके का पादरी आ धमका। वह अपने साथ एक भीड़ को भी ले आया। वे हमें परेशान करने लगे, पत्थर भी मारने लगे। पिताजी को सिर पर चोट लग गयी। मुझे आज भी याद है कि उनका पूरा चेहरा खून से सना हुआ था। माँ और पिताजी वापस बस में चले गए और हम भी उनके पीछे-पीछे गए। जब माँ, पिताजी का चेहरा साफ कर रही थीं तो उन्होंने एक बात कही, जो मैं कभी नहीं भूलूँगा। उन्होंने कहा, “यहोवा इन्हें माफ कर देना, इन्हें नहीं पता कि ये क्या कर रहे हैं।”

मुझे एक और किस्सा याद है। हम अपने रिश्‍तेदारों से मिलने गाँव गए हुए थे। जब हम दादाजी के घर पहुँचे, तो वहाँ एक जाना-माना बिशप बैठा हुआ था। वह जानता था कि मेरे माता-पिता यहोवा के साक्षी हैं। लेकिन उनसे कुछ कहने के बजाय उसने मुझसे पूछा, “तुमने अब तक बपतिस्मा क्यों नहीं लिया?” मैं उस वक्‍त छ: साल का था। इसलिए मैंने कहा, “मैं अभी छोटा हूँ। मुझे बाइबल के बारे में और जानना है और अपना विश्‍वास बढ़ाना है।” मेरा जवाब उसे अच्छा नहीं लगा। उसने दादाजी से कहा कि मैंने उससे बहुत बदतमीज़ी से बात की।

ऐसा नहीं है कि हर बार लोगों ने हमारे साथ बुरा बरताव किया। लेबनान के लोग बहुत अच्छे हैं। वे लोगों से अच्छे-से मिलते हैं, उन्हें घर बुलाते हैं। हम कई लोगों के साथ बाइबल से बात कर पाए और बहुत-से लोगों ने तो बाइबल अध्ययन भी किया।

हम दूसरे देश में जाकर बस गए

जब मैं स्कूल में था तो वेनेज़ुएला से एक जवान भाई लेबनान आया। वह हमारी सभाओं में आने लगा। मेरी बहन वफा के साथ उसकी जान-पहचान बढ़ने लगी। दोनों की शादी हो गयी और वे वेनेज़ुएला चले गए। वफा को हमारी इतनी याद आती थी कि वह बार-बार पिताजी को खत में कहती थी कि हमें भी वेनेज़ुएला आ जाना चाहिए। लाख कोशिशों के बाद, उसने हमें मना ही लिया!

सन्‌ 1953 में हम कराकस आ गए। हमारा घर राष्ट्रपति भवन के पास था। जब भी मैं राष्ट्रपति को बड़ी और चमचमाती गाड़ी में जाता देखता था, मुझे बहुत अच्छा लगता था! मेरे माता-पिता के लिए इस देश के रहन-सहन में ढलना थोड़ा मुश्‍किल हो रहा था। यहाँ की संस्कृति, भाषा, मौसम, खान-पान सबकुछ अलग था। वे यहाँ के मुताबिक जीने की कोशिश कर ही रहे थे कि कुछ बहुत बुरा हो गया।

बाएँ से दाएँ: मेरे पिताजी। मेरी माँ। सन्‌ 1953 में ली मेरी तसवीर, जब हम वेनेज़ुएला आए

हम पर एक कहर टूटा

यहाँ आने के बाद पिताजी बीमार रहने लगे। जबकि वह कभी बीमार नहीं पड़ते थे, उनकी सेहत हमेशा अच्छी रहती थी। डॉक्टर को दिखाने पर पता चला कि उनको कैंसर है, उनका ऑपरेशन भी हुआ। लेकिन एक हफ्ते बाद उनकी मौत हो गयी।

मैं बता नहीं सकता कि पिताजी की मौत से हमें कितना बड़ा सदमा पहुँचा। उस वक्‍त मैं सिर्फ 13 साल का था। मुझे ऐसा लगा मानो हमारी दुनिया ही उजड़ गयी। माँ के लिए यह मानना बहुत मुश्‍किल हो रहा था कि पिताजी अब नहीं रहे। लेकिन यहोवा की मदद से हम यह दुख सह पाए और अपनी ज़िंदगी दोबारा जीने लगे। सोलह साल की उम्र में मैंने कराकस में अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी कर ली। मैं चाहता था कि घर चलाने में अपने परिवार की मदद करूँ।

मेरी बहन सना और उसका पति, रूबेन। उन्होंने यहोवा के साथ अच्छा रिश्‍ता बनाने में मेरी बहुत मदद की

फिर सना की शादी भाई रुबेन आराउहो से हो गयी। वह गिलियड से ग्रैजुएट होकर वेनेज़ुएला लौटा था। कुछ समय बाद वे न्यू यॉर्क चले गए। मेरा परिवार चाहता था कि मैं न्यू यॉर्क की यूनिवर्सिटी में पढ़ूँ और अपनी बहन के यहाँ रहूँ। मेरी बहन और जीजाजी ने यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता बनाने में मेरी बहुत मदद की। मैं ब्रुकलिन के स्पैनिश मंडली में जाने लगा। वहाँ कई अनुभवी भाई थे। दो भाइयों से मेरी अच्छी जान-पहचान हो गयी, भाई मिल्टन हेन्शल और भाई फ्रेडरिक फ्रांज़। दोनों भाई ब्रुकलिन बेथेल में सेवा करते थे।

सन्‌ 1957, जब मेरा बपतिस्मा हुआ

यूनिवर्सिटी का मेरा पहला साल पूरा होनेवाला था। लेकिन मेरे मन में बस यही चल रहा था कि मैं अपनी ज़िंदगी में क्या कर रहा हूँ। मैंने प्रहरीदुर्ग  पत्रिका में ऐसे कई भाई-बहनों के बारे में पढ़ा था, जिन्होंने यहोवा की सेवा में अच्छे लक्ष्य रखे थे। मैं देखता था कि मेरी मंडली के पायनियर और बेथेल के भाई-बहन हमेशा खुश रहते हैं। मैं भी उनकी तरह खुश रहना चाहता था। लेकिन एक दिक्कत थी, मेरा अब तक बपतिस्मा नहीं हुआ था। मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपना जीवन यहोवा को समर्पित करना होगा। मैंने अपना जीवन यहोवा को समर्पित किया और 30 मार्च, 1957 में बपतिस्मा ले लिया।

ज़िंदगी में किए कुछ ज़रूरी फैसले

बपतिस्मा लेने के बाद मैं पायनियर सेवा करना चाहता था। लेकिन यह कदम उठाना इतना आसान नहीं था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के साथ-साथ पायनियर सेवा कैसे करूँगा। इस बारे में मैंने अपने परिवार को बहुत-से खत लिखे। उन्होंने भी मुझे खत लिखे। मैंने उन्हें बताया कि मैं यूनिवर्सिटी की पढ़ाई छोड़ना चाहता हूँ और वेनेज़ुएला आकर पायनियर सेवा करना चाहता हूँ।

जून 1957 में, मैं वापस कराकस आ गया। जब मैं आया तो मैंने देखा कि मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। इसलिए मुझे भी काम करना पड़ता। मुझे एक बैंक की नौकरी मिल रही थी। लेकिन मैं पायनियर सेवा भी करना चाहता था। आखिर मैं इसी के लिए तो वापस आया था। मैंने सोच लिया कि मैं दोनों करूँगा। सालों तक मैंने नौकरी भी की और पायनियर सेवा भी। इस दौरान मैं बहुत व्यस्त रहा, लेकिन मुझे खुशी भी बहुत मिली!

मेरी खुशी तब दुगनी हो गयी, जब मैं सिल्विया से मिला और उससे मेरी शादी हुई। वह यहोवा से बहुत प्यार करती थी और खूबसूरत थी। वह अपने माता-पिता के साथ जर्मनी से वेनेज़ुएला आकर बस गयी थी। हमारे दो बच्चे हुए मिशैल (माइक) और समीरा। मैं अपनी माँ की भी देखभाल करने लगा। वे हमारे साथ आकर रहने लगीं। परिवार की देखभाल करने के लिए मुझे पायनियर सेवा छोड़नी पड़ी, लेकिन फिर भी मैं पूरे जोश से प्रचार करता रहा। जब भी सिल्विया और मुझे मौका मिलता था, हम छुट्टियों में सहयोगी पायनियर सेवा करते थे।

एक और बड़ा फैसला

इस लेख की शुरूआत में मैंने जिस घटना के बारे में बताया, उस वक्‍त मेरे बच्चे छोटे थे और स्कूल में पढ़ रहे थे। हमारी ज़िंदगी में सुख-सुविधा की कोई कमी नहीं थी। बैंक में मेरा अच्छा नाम था, लोग मेरी इज़्ज़त करते थे। लेकिन मैं चाहता था कि लोग मुझे यहोवा के सेवक के तौर पर जानें। और यह बात मेरे दिमाग से निकल नहीं रही थी। मैं इस बारे में कुछ करना चाहता था। इसलिए मैंने अपनी पत्नी से इस बारे में बात की और हमने अपने खर्च जोड़े। हमने हिसाब लगाया कि अगर मैं जल्दी रिटायरमेंट ले लेता हूँ, तो बैंक से मुझे अच्छी-खासी रकम मिलेगी। हमने यह भी सोचा कि हम पर कोई कर्ज़ नहीं है। इसलिए अगर हम सादी ज़िंदगी जीते हैं, तो उन पैसों से काफी लंबे समय तक गुज़ारा चला सकते हैं। हमें पैसों की चिंता नहीं करनी पड़ेगी।

नौकरी छोड़ना इतना आसान नहीं था, लेकिन मेरी पत्नी और मेरी माँ ने मेरा बहुत साथ दिया। मैं बहुत खुश था कि मैं फिर से पायनियर सेवा कर पाऊँगा। मैं पायनियर सेवा शुरू करने के लिए बिलकुल तैयार था। तभी हमें एक ऐसी खबर मिली जिसने हम सबको चौंका दिया।

हैरानी भी हुई और खुशी भी

तीसरे बच्चे की खबर सुनकर हमें हैरानी भी हुई और खुशी भी

एक दिन डॉक्टर ने बताया कि सिल्विया माँ बननेवाली है। यह सुनकर हम थोड़े हैरान तो हुए, मगर हमें खुशी भी बहुत हुई। हम उस बच्चे की राह देखने लगे। लेकिन मैं मन-ही-मन सोचने लगा, ‘अब मेरी पायनियर सेवा का क्या होगा?’

हमने इस बारे में बात की और फैसला किया कि मैं पायनियर सेवा करूँगा। अप्रैल 1985 में गेब्रिएल पैदा हुआ। उसी साल मैंने बैंक की नौकरी छोड़ दी और जून में फिर से पायनियर सेवा शुरू कर दी। कुछ समय बाद मुझे शाखा-समिति का सदस्य बनाया गया। लेकिन शाखा दफ्तर कराकस से 80 किलोमीटर दूर था। और हफ्ते में दो या तीन दिन मुझे वहाँ जाना पड़ता था।

हमने अपना घर बदला

शाखा दफ्तर ला-विक्टोरिया में था। इसलिए हमने फैसला किया कि हम ला-विक्टोरिया चले जाएँगे, बेथेल के पास। मेरे परिवारवालों ने इस फैसले में मेरा बहुत साथ दिया। मैं उनका एहसान मानता हूँ। मेरी बहन बहा ने कहा कि वह माँ का खयाल रखेगी। माइक की शादी हो गयी थी और वह अलग रह रहा था। लेकिन समीरा और गेब्रिएल अब भी हमारे साथ रह रहे थे। उन्हें अपने दोस्तों को छोड़कर जाना था। सिल्विया को अब एक छोटे शहर में रहने की आदत डालनी थी और हम सबको एक छोटे-से घर में रहना था। हमारे लिए कराकस छोड़कर ला-विक्टोरिया जाना आसान नहीं था।

कुछ समय बाद गेब्रिएल की शादी हो गयी और वह अलग रहने लगा। समीरा भी अलग से रहने लगी। फिर 2007 में हमें बेथेल बुलाया गया, जहाँ हम आज भी सेवा कर रहे हैं। आज हमारा बड़ा बेटा माइक, प्राचीन है और अपनी पत्नी मोनिका के साथ पायनियर सेवा कर रहा है। समीरा भी पायनियर सेवा कर रही है और अपने घर से बेथेल के लिए काम करती है। गेब्रिएल एक प्राचीन है और अपनी पत्नी अंब्रा के साथ इटली में रहता है।

बाएँ से दाएँ: अपनी पत्नी सिल्विया के साथ वेनेज़ुएला शाखा दफ्तर में। हमारा बड़ा बेटा, माइक अपनी पत्नी मोनिका के साथ। हमारी बेटी, समीरा। हमारा छोटा बेटा, गेब्रिएल अपनी पत्नी अंब्रा के साथ

मुझे कोई पछतावा नहीं है

मैंने अपनी ज़िंदगी में कई बड़े-बड़े फैसले किए और मुझे कोई पछतावा नहीं है। अगर मुझे यही फैसले दोबारा लेने पड़े, तब भी मुझे पछतावा नहीं होगा। मैं खुश हूँ कि यहोवा ने मुझे अपनी सेवा में अलग-अलग काम करने के मौके दिए। इन सालों के दौरान मैंने एक बात सीखी: यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता होना बहुत ज़रूरी है। वह हमें ऐसी शांति दे सकता है जो हमारी “समझ से परे है।” इस वजह से हम छोटे-बड़े हर तरह के फैसले कर पाते हैं। (फिलि. 4:6, 7) सिल्विया और मुझे बेथेल में सेवा करना अच्छा लगता है। हमने देखा है कि यहोवा ने हमारे हर फैसले पर आशीष दी, क्योंकि हमने उसे ध्यान में रखकर फैसले किए।