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अध्ययन लेख 27

यहोवा का डर क्यों मानें?

यहोवा का डर क्यों मानें?

“यहोवा से गहरी दोस्ती सिर्फ वे कर सकते हैं जो उसका डर मानते हैं।”​—भज. 25:14.

गीत 8 यहोवा हमारा गढ़ है

एक झलक a

1-2. भजन 25:14 के मुताबिक अगर हम यहोवा से गहरी दोस्ती करना चाहते हैं, तो हमें क्या करना होगा?

 अगर आप किसी से दोस्ती बनाए रखना चाहते हैं तो आपको क्या लगता है, आपको क्या करना होगा? आप शायद कहें, दोस्तों में आपस में प्यार होना चाहिए, उन्हें एक-दूसरे का साथ देना चाहिए, तभी उनकी दोस्ती बनी रहेगी। पर क्या हमें अपने दोस्त से डरना भी चाहिए? आप शायद सोचें, ‘नहीं, दोस्त से कौन डरता है?’ लेकिन जैसे इस लेख की मुख्य आयत में बताया गया है, अगर कोई यहोवा से गहरी दोस्ती करना चाहता है, तो यह बहुत ज़रूरी है कि वह उसका ‘डर माने।’​—भजन 25:14 पढ़िए।

2 चाहे हम कितने भी समय से यहोवा की सेवा कर रहे हों, हम सबको उसका डर मानना चाहिए। लेकिन परमेश्‍वर का डर मानने का मतलब क्या है? हम अपने अंदर परमेश्‍वर का डर कैसे पैदा कर सकते हैं? और परमेश्‍वर का डर मानने के बारे में हम पुराने ज़माने के एक अधिकारी ओबद्याह, महायाजक यहोयादा और राजा यहोआश से क्या सीख सकते हैं?

परमेश्‍वर का डर मानने का मतलब क्या है?

3. कई बार हमें क्यों डर लग सकता है और इस तरह का डर होना क्यों अच्छा है?

3 कई बार डर की वजह से हम ऐसा काम करने से रुक जाते हैं जिससे हमें नुकसान हो सकता है या चोट पहुँच सकती है। इस तरह का डर होना अच्छी बात है। जैसे, अगर हम किसी पहाड़ पर चल रहे हों, तो हम किनारे पर नहीं चलते, क्योंकि हमें डर होता है कि कहीं हम नीचे ना गिर जाएँ। या अगर हमें लगे कि कहीं पर खतरा है, तो हम वहाँ से फौरन निकल जाते हैं, क्योंकि हमें डर होता है कि कहीं हमें चोट ना लग जाए। और हमारी यही कोशिश रहती है कि हम अपने दोस्तों से बुरा व्यवहार ना करें या उन्हें बुरा-भला ना कहें, क्योंकि हमें डर होता है कि कहीं हमारी दोस्ती टूट ना जाए।

4. शैतान क्या चाहता है?

4 शैतान चाहता है कि हम यहोवा से खौफ खाएँ। वह हमारे मन में वही बात बिठाना चाहता है जो सालों पहले एलीपज ने अय्यूब से कही थी। वह यह कि यहोवा हमेशा गुस्से में रहता है, इस ताक में रहता है कि कब किसे सज़ा दे और उसे खुश करना नामुमकिन है। (अय्यू. 4:18, 19) शैतान चाहता है कि हम यहोवा के बारे में इस तरह सोचें और उससे इतना डर जाएँ कि उसकी सेवा करना ही छोड़ दें। अगर हम शैतान के इस झाँसे में नहीं आना चाहते, तो हमें अपने अंदर यहोवा के लिए सही किस्म का डर पैदा करना होगा।

5. परमेश्‍वर का डर मानने का क्या मतलब है?

5 जिस इंसान के मन में परमेश्‍वर के लिए सही किस्म का डर होता है, वह उससे प्यार करता है और ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता जिससे यहोवा के साथ उसका रिश्‍ता खराब हो जाए। यीशु के मन में भी परमेश्‍वर के लिए इसी तरह का डर था। (इब्रा. 5:7) यीशु यहोवा से खौफ नहीं खाता था। (यशा. 11:2, 3) इसके बजाय वह उससे बहुत प्यार करता था और हमेशा उसकी बात मानना चाहता था। (यूह. 14:21, 31) यीशु की तरह हमारे मन में भी यहोवा के लिए श्रद्धा है और हम उसका बहुत आदर करते हैं। वह इसलिए कि यहोवा प्यार करनेवाला परमेश्‍वर है, वह बहुत बुद्धिमान और ताकतवर है और हमेशा न्याय करता है। और जब हम याद रखते हैं कि यहोवा कैसा परमेश्‍वर है, हमसे कितना प्यार करता है, तो हम हर काम सोच-समझकर करते हैं। हम नहीं भूलते कि हम जो करते हैं, उससे यहोवा को फर्क पड़ता है। अगर हम उसकी आज्ञाएँ मानें, तो उसका दिल खुश होगा। वहीं अगर हम उसकी आज्ञाएँ तोड़ें, तो उसे बहुत दुख होगा।​—भज. 78:41; नीति. 27:11.

हम परमेश्‍वर का डर मानना सीख सकते हैं

6. अपने मन में यहोवा का डर पैदा करने का एक तरीका क्या है? (भजन 34:11)

6 यहोवा का डर हम इंसानों में पैदाइशी नहीं होता, इसलिए हमें सीखना होगा कि हम उसका डर कैसे मानें। (भजन 34:11 पढ़िए।) ऐसा करने का एक तरीका है, यहोवा की बनायी चीज़ों को निहारना। जब हम ‘यहोवा की बनायी चीज़ों’ पर ध्यान देते हैं, तो हम समझ पाते हैं कि वह कितना बुद्धिमान है, उसमें कितनी ताकत है और वह हमसे कितना प्यार करता है। और जितना ज़्यादा हम इस बारे में सोचते हैं, उतना ही हमारे मन में उसके लिए श्रद्धा बढ़ जाती है और हम उसका और भी आदर करने लगते हैं। (रोमि. 1:20) एड्रीयन नाम की एक बहन कहती हैं, “यहोवा की सृष्टि से साफ पता चलता है कि वह बहुत बुद्धिमान है। इसलिए जब भी मैं उसकी बनायी चीज़ें देखती हूँ, मुझे यकीन हो जाता है कि यहोवा जो भी कहता है, मेरे भले के लिए कहता है।” बहन ने इस बारे में कई बार सोचा, इसलिए वे कह पायीं, “मैं ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती जिससे मेरे बनानेवाले के साथ मेरा रिश्‍ता खराब हो जाए।” क्या आप इस हफ्ते कुछ वक्‍त निकालकर यहोवा की बनायी किसी चीज़ के बारे में सोच सकते हैं? ऐसा करने से आप यहोवा से और भी प्यार करने लगेंगे और उसका और भी आदर करने लगेंगे।​—भज. 111:2, 3.

7. प्रार्थना करने से हम अपने मन में यहोवा का डर कैसे पैदा कर सकते हैं?

7 यहोवा के लिए अपने मन में डर पैदा करने का एक और तरीका है, उससे लगातार प्रार्थना करना। हर बार जब हम यहोवा से प्रार्थना करते हैं, तो वह हमारे लिए और असल हो जाता है, हम उसे और अच्छे-से जान पाते हैं। वह कैसे? जब भी हम यहोवा से किसी मुश्‍किल को सहने की ताकत माँगते हैं, तो हमें इस बात का और भी एहसास होता है कि वह कितना ताकतवर है। जब हम उसका धन्यवाद करते हैं कि उसने हमारे लिए अपने बेटे का फिरौती बलिदान दिया, तो हमें याद आता है कि यहोवा हमसे कितना प्यार करता है। और जब हम किसी समस्या का सामना करने के लिए उससे मदद माँगते हैं, तो हमें और भी यकीन हो जाता है कि यहोवा बहुत बुद्धिमान है। इस तरह प्रार्थना करने से हम यहोवा का और भी आदर करने लगते हैं और हमारा यह इरादा और भी पक्का हो जाता है कि हम ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे यहोवा के साथ हमारी दोस्ती टूट जाए।

8. अगर हम चाहते हैं कि हम हमेशा यहोवा का डर मानें, तो हमें क्या करना होगा?

8 हम सब चाहते हैं कि हम हमेशा यहोवा का डर मानें। इसके लिए यह भी ज़रूरी है कि हम बाइबल में दी अच्छी और बुरी मिसालों से सीखें। तो आइए यहोवा के दो वफादार सेवकों पर ध्यान दें और देखें कि हम उनसे क्या सीख सकते हैं। सबसे पहले हम राजा अहाब के राजमहल की देखरेख के अधिकारी, ओबद्याह से सीखेंगे। इसके बाद हम महायाजक यहोयादा की मिसाल पर ध्यान देंगे। फिर हम जानेंगे कि हम यहूदा के राजा यहोआश से क्या सीख सकते हैं जो पहले तो यहोवा की सेवा करता था, लेकिन जिसने बाद में उसकी सेवा करनी छोड़ दी।

ओबद्याह की तरह हिम्मतवाले बनिए

9. यहोवा का डर मानने की वजह से ओबद्याह कैसा इंसान बन पाया? (1 राजा 18:3, 12)

9 बाइबल में जब सबसे पहली बार ओबद्याह b का ज़िक्र किया गया है, तो वहाँ लिखा है, “ओबद्याह यहोवा का बहुत डर मानता था।” (1 राजा 18:3, 12 पढ़िए।) परमेश्‍वर का डर मानने की वजह से ओबद्याह बहुत ईमानदार और भरोसेमंद था। और यही वजह थी कि राजा ने उसे राजमहल की देखरेख का अधिकारी बनाया था। (नहेमायाह 7:2 से तुलना करें।) परमेश्‍वर का डर मानने की वजह से ओबद्याह बहुत हिम्मत से भी काम ले पाया। और उसे सच में हिम्मत की बहुत ज़रूरत थी। वह इसलिए कि उस वक्‍त राजा अहाब राज कर रहा था जिसके बारे में बाइबल में लिखा है कि वह “यहोवा की नज़र में उन सभी राजाओं से बदतर निकला जो उससे पहले हुए थे।” (1 राजा 16:30) इसके अलावा अहाब की पत्नी इज़ेबेल बाल देवता की उपासना करती थी और यहोवा से इतनी नफरत करती थी कि उसने इसराएल के दस गोत्रोंवाले राज्य से यहोवा के सभी सेवकों को मिटाने की कोशिश की। उसने यहोवा के कई भविष्यवक्‍ताओं तक को मरवा डाला था। (1 राजा 18:4) सचमुच ओबद्याह ने बहुत मुश्‍किल समय में यहोवा की सेवा की।

10. हम क्यों कह सकते हैं कि ओबद्याह बहुत हिम्मतवाला था?

10 ओबद्याह सच में बहुत हिम्मतवाला था। हम यह क्यों कह सकते हैं? जब इज़ेबेल यहोवा के भविष्यवक्‍ताओं को मरवाने की कोशिश कर रही थी, तो ओबद्याह ने “यहोवा के 100 भविष्यवक्‍ताओं को पचास-पचास में बाँटकर गुफाओं में छिपा दिया और उनके लिए रोटी और पानी मुहैया कराता रहा।” (1 राजा 18:13, 14) अगर वह पकड़ा जाता, तो इज़ेबेल उसे भी नहीं छोड़ती। और डर तो उसे भी लगा होगा, वह मरना नहीं चाहता था। पर उसने हिम्मत से काम लिया, क्योंकि उसे यहोवा और उसके सेवक अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारे थे।

एक भाई हिम्मत से काम ले रहा है और ऐसे इलाके में भाई-बहनों को किताबें-पत्रिकाएँ पहुँचा रहा है, जहाँ हमारे काम पर रोक लगी है (पैराग्राफ 11) c

11. आज यहोवा के सेवक किस तरह ओबद्याह की तरह हिम्मत से काम लेते हैं? (तसवीर भी देखें।)

11 आज हमारे कई भाई-बहन ऐसे इलाकों में रहते हैं जहाँ हमारे काम पर रोक लगी है। वे वहाँ के अधिकारियों का आदर तो करते हैं, लेकिन ओबद्याह की तरह वे किसी भी हाल में यहोवा की सेवा करना नहीं छोड़ते। (मत्ती 22:21) वे परमेश्‍वर का डर मानते हैं, इसलिए इंसानों की आज्ञा मानने के बजाय परमेश्‍वर की आज्ञा मानते हैं। (प्रेषि. 5:29) वे यहोवा की उपासना करने के लिए छिपकर मिलते हैं और प्रचार काम में भी लगे रहते हैं। (मत्ती 10:16, 28) वे इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि भाई-बहनों को बाइबल पर आधारित प्रकाशन मिलते रहें, ताकि वे यहोवा के करीब बने रहें। ज़रा भाई हेनरी के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। वे अफ्रीका के एक ऐसे इलाके में रहते हैं जहाँ कुछ वक्‍त के लिए हमारे काम पर रोक लगी थी। उस दौरान भाई हेनरी ने खुद आगे बढ़कर कहा कि वे भाई-बहनों को प्रकाशन पहुँचाएँगे। उन्होंने लिखा, “मैं स्वभाव से बहुत शर्मीला हूँ। मुझे पता है कि मैं इतनी हिम्मत इसलिए जुटा पाया, क्योंकि मैं यहोवा का बहुत आदर करता हूँ।” क्या आपको लगता है कि आप भी भाई हेनरी की तरह हिम्मत से काम ले सकते हैं? अगर आप परमेश्‍वर का डर मानें, तो आप भी हिम्मतवाले बन पाएँगे!

महायाजक यहोयादा की तरह वफादार रहिए

12. महायाजक यहोयादा और उसकी पत्नी ने कैसे दिखाया कि वे यहोवा के वफादार हैं?

12 महायाजक यहोयादा यहोवा का डर मानता था, इसलिए वह यहोवा का वफादार रहा और उसने दूसरों को भी उसकी उपासना करने का बढ़ावा दिया। हम यह क्यों कह सकते हैं? यह उस वक्‍त की बात है जब इज़ेबेल की बेटी अतल्याह ने यहूदा की राजगद्दी हथिया ली थी और खुद रानी बन बैठी थी। सभी लोग अतल्याह से बहुत डरते थे, क्योंकि वह बहुत बेरहम थी। उस पर रानी बनने का इतना जुनून सवार था कि उसने शाही खानदान के सभी वारिसों को मारने की कोशिश की। उसने अपने पोतों को भी नहीं बख्शा। (2 इति. 22:10, 11) लेकिन उसका एक पोता यहोआश बच गया, क्योंकि यहोयादा और उसकी पत्नी यहोशावत ने उसे अतल्याह से छिपाकर रखा और उसकी देखभाल की। इस तरह उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि दाविद के खानदान से ही कोई राजा बने। उस वक्‍त यहोयादा की काफी उम्र हो गयी थी, पर वह अतल्याह से डरा नहीं, बल्कि यहोवा का वफादार रहा।​—नीति. 29:25.

13. यहोयादा ने एक बार फिर कैसे साबित किया कि वह यहोवा का वफादार है?

13 जब यहोआश सात साल का हुआ, तो यहोयादा ने एक बार फिर साबित किया कि वह यहोवा का वफादार है। उसने एक योजना बनायी। अगर वह कामयाब हो जाता, तो यहोआश राजा बन जाता जो दाविद का वंशज था। लेकिन अगर वह कामयाब नहीं होता, तो उसकी जान भी जा सकती थी। अधिकारियों और लेवियों ने यहोयादा का पूरा साथ दिया और यहोवा की आशीष से वह कामयाब हुआ। यहोआश राजा बन गया और अतल्याह को मार डाला गया। (2 इति. 23:1-5, 11, 12, 15; 24:1) “फिर यहोयादा ने यहोवा और राजा और लोगों के बीच एक करार किया कि वे यहोवा के लोग बने रहेंगे।” (2 राजा 11:17) “इसके अलावा, यहोयादा ने यहोवा के भवन के फाटकों पर पहरेदारों को तैनात किया ताकि ऐसा कोई भी इंसान अंदर न जा सके जो किसी भी तरह से अशुद्ध है।”​—2 इति. 23:19.

14. यहोयादा यहोवा का आदर करता था, इसलिए यहोवा ने भी किन तरीकों से उसका आदर किया?

14 यहोयादा ने यहोवा के लिए जो कुछ किया, उसे यहोवा भूला नहीं। एक बार पहले यहोवा ने कहा था, “जो मेरा आदर करते हैं मैं उनका आदर करूँगा।” और उसने ऐसा ही किया। (1 शमू. 2:30) उसने महायाजक यहोयादा के भले काम शास्त्र में लिखवाए ताकि हम सब उससे सीख सकें। (रोमि. 15:4) और जब यहोयादा की मौत हो गयी, तो ‘उसे दाविदपुर में राजाओं की कब्र में दफनाया गया क्योंकि उसने इसराएल में भले काम किए थे, खासकर सच्चे परमेश्‍वर और उसके भवन के मामले में।’ यह एक बहुत बड़ा सम्मान था!​—2 इति. 24:15, 16.

महायाजक यहोयादा की तरह अगर हम भी परमेश्‍वर का डर मानें, तो हम वफादार रहेंगे और भाई-बहनों का साथ देंगे (पैराग्राफ 15) d

15. यहोयादा के किस्से से हम क्या सीख सकते हैं? (तसवीर भी देखें।)

15 यहोयादा के किस्से से हम सब परमेश्‍वर का डर मानना सीख सकते हैं। यहोयादा की तरह प्राचीन हमेशा सतर्क रह सकते हैं और परमेश्‍वर के झुंड की देखभाल कर सकते हैं। इस तरह वे दिखाएँगे कि वे यहोवा के वफादार हैं। (प्रेषि. 20:28) बुज़ुर्ग भाई-बहन भी यहोयादा से काफी कुछ सीख सकते हैं। जब वे यहोवा का डर मानते हैं और उसके वफादार रहते हैं, तो यहोवा अपना मकसद पूरा करने के लिए उनसे भी बहुत कुछ करवा सकता है। वह बुज़ुर्गों को कभी नज़रअंदाज़ नहीं करता। नौजवान इस बात पर ध्यान दे सकते हैं कि यहोवा ने किस तरह यहोयादा का सम्मान किया। उसकी तरह वे भी बुज़ुर्ग भाई-बहनों का आदर-सम्मान कर सकते हैं, खासकर उनका जो लंबे समय से यहोवा की सेवा कर रहे हैं। (नीति. 16:31) और हम सब उन अधिकारियों और लेवियों से सीख सकते हैं जिन्होंने यहोयादा का साथ दिया। उनकी तरह आइए हम सब उन भाइयों की आज्ञा मानें जो ‘हमारे बीच अगुवाई करते हैं’ और इस तरह उनका साथ दें।​—इब्रा. 13:17.

राजा यहोआश की तरह मत बनिए

16. किस बात से पता चलता है कि राजा यहोआश का विश्‍वास कमज़ोर था?

16 यहोयादा ने राजा यहोआश को जो कुछ सिखाया, उस वजह से वह एक अच्छा इंसान बन पाया। (2 राजा 12:2) जब वह छोटा था, तो हमेशा ऐसे काम करना चाहता था जिससे यहोवा खुश हो। लेकिन यहोयादा की मौत के बाद यहोआश उन हाकिमों की सुनने लगा, जो झूठी उपासना करने लगे थे। इस वजह से वह और उसकी प्रजा “पूजा-लाठों और मूरतों की सेवा करने लगे।” (2 इति. 24:4, 17, 18) यह सब देखकर यहोवा को बहुत दुख हुआ और वह “उनके पास भविष्यवक्‍ताओं को भेजता रहा ताकि वे उन्हें उसके पास लौटा लाएँ। . . . मगर उन्होंने सुनने से इनकार कर दिया।” उन्होंने यहोयादा के बेटे जकरयाह तक की नहीं सुनी, जो ना सिर्फ यहोवा का भविष्यवक्‍ता और याजक था, बल्कि यहोआश का भाई भी था (बुआ का बेटा)। जिस परिवार ने उसके लिए इतना कुछ किया था, उसकी जान बचायी थी, उस परिवार का उसने ज़रा भी एहसान नहीं माना, बल्कि उनके बेटे जकरयाह को मरवा डाला।​—2 इति. 22:11; 24:19-22.

17. यहोआश का क्या अंजाम हुआ?

17 यहोआश ने यहोवा का डर नहीं माना, इसलिए उसके साथ बहुत बुरा हुआ। यहोवा ने कहा था, “जो मेरा अनादर करते हैं उन्हें नीचा दिखाया जाएगा।” (1 शमू. 2:30) और यहोआश के साथ ठीक ऐसा ही हुआ। आगे चलकर सीरिया की छोटी-सी सेना ने यहोआश की “विशाल सेना” को हरा दिया और उसे बुरी तरह ‘ज़ख्मी’ कर दिया। जब वह सेना लौट गयी, तो उसके अपने ही सेवकों ने उसके खिलाफ साज़िश रची और उसे मार डाला, क्योंकि उसने जकरयाह को मरवाया था। उस दुष्ट राजा को इस लायक भी नहीं समझा गया कि उसे “राजाओं की कब्र में” दफनाया जाए।​—2 इति. 24:23-25; मत्ती 23:35 में “बिरिक्याह के बेटे” पर दिया अध्ययन नोट देखें।

18. अगर हम यहोआश की तरह नहीं बनना चाहते, तो यिर्मयाह 17:7, 8 के मुताबिक हमें क्या करना होगा?

18 हम यहोआश के उदाहरण से क्या सीख सकते हैं? यहोआश एक ऐसे पेड़ की तरह था जिसकी जड़ें कमज़ोर हों और जिसे सहारे की ज़रूरत हो। यहोयादा राजा यहोआश के लिए सहारे की तरह था। जब उसका सहारा ना रहा यानी यहोयादा की मौत हो गयी और जब आँधियाँ चलीं यानी हाकिमों ने उसे फुसलाने की कोशिश की, तो वह मानो गिर गया। वह झूठी उपासना करने लगा और यहोवा का वफादार ना रहा। इससे हमें एक सीख मिलती है। हमें सिर्फ इसलिए परमेश्‍वर का डर नहीं मानना चाहिए कि हमारे परिवारवाले या मंडली के दूसरे भाई-बहन ऐसा कर रहे हैं, बल्कि हमें खुद परमेश्‍वर के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करना चाहिए और उसका डर माना चाहिए। ऐसा हम तभी कर पाएँगे जब हम लगातार परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करेंगे, उस पर मनन करेंगे और प्रार्थना करेंगे।​—यिर्मयाह 17:7, 8 पढ़िए; कुलु. 2:6, 7.

19. यहोवा हमसे क्या चाहता है?

19 यहोवा हमसे बहुत ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता। वह हमसे जो चाहता है, उसका निचोड़ सभोपदेशक 12:13 में दिया गया है। वहाँ लिखा है, “सच्चे परमेश्‍वर का डर मान और उसकी आज्ञाओं पर चल, यही इंसान का फर्ज़ है।” अगर हम परमेश्‍वर का डर मानें, तो आगे चलकर चाहे कोई भी मुश्‍किल क्यों ना आए, हम ओबद्याह और यहोयादा की तरह यहोवा के वफादार रह पाएँगे और किसी भी बात को यहोवा और हमारी दोस्ती के बीच नहीं आने देंगे।

गीत 3 हमारी ताकत, आशा और भरोसा

a बाइबल में “डर” शब्द कई बार इस्तेमाल हुआ है। कहीं पर उसका मतलब है, किसी से खौफ खाना, तो कहीं पर किसी के लिए मन में श्रद्धा होना या किसी का गहरा आदर करना। इस लेख में हम जानेंगे कि हम कैसे परमेश्‍वर का डर मान सकते हैं ताकि उसकी सेवा करते वक्‍त हम हिम्मत से काम लें और उसके वफादार रहें।

b यह भविष्यवक्‍ता ओबद्याह नहीं है जिसने बाइबल में ओबद्याह नाम की किताब लिखी थी। वह तो सैकड़ों साल बाद पैदा हुआ।

c तसवीर के बारे में: एक भाई एक ऐसे इलाके में भाई-बहनों को किताबें-पत्रिकाएँ पहुँचा रहा है, जहाँ हमारे काम पर रोक लगी है।

d तसवीर के बारे में: एक जवान बहन एक बुज़ुर्ग बहन से फोन पर गवाही देना सीख रही है; एक बुज़ुर्ग भाई हिम्मत से सरेआम गवाही दे रहे हैं; एक भाई जिन्हें राज-घर की देखरेख करने का काफी तजुरबा है, दूसरों को यह काम सिखा रहे हैं।