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अपनी सारी चिंताओं का बोझ यहोवा पर डाल दो

अपनी सारी चिंताओं का बोझ यहोवा पर डाल दो

“तुम अपनी सारी चिंताओं का बोझ [यहोवा] पर डाल दो, क्योंकि उसे तुम्हारी परवाह है।”—1 पत. 5:7.

गीत: 23, 38

1, 2. (क) हमें चिंता क्यों होती है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) इस लेख में हम क्या गौर करेंगे?

आज शैतान “गरजते हुए शेर की तरह इस ताक में घूम रहा है कि किसे निगल जाए।” (1 पत. 5:8; प्रका. 12:17) इसी वजह से ज़िंदगी इतनी तनाव भरी है। यहाँ तक कि परमेश्वर के सेवकों को भी चिंताएँ होती हैं। पुराने ज़माने में भी परमेश्वर के सेवकों ने चिंताओं का सामना किया था। मिसाल के लिए, बाइबल बताती है कि कई मौकों पर राजा दाविद चिंताओं से घिरा हुआ था। (भज. 13:2) और प्रेषित पौलुस को “सारी मंडलियों की चिंता” खाए जा रही थी। (2 कुरिं. 11:28) जब हम चिंताओं से घिरे होते हैं तो हम क्या कर सकते हैं?

2 स्वर्ग में रहनेवाले हमारे प्यारे पिता ने पुराने ज़माने के अपने सेवकों को चिंताओं से राहत पाने में मदद दी थी। और परमेश्वर आज हमारी भी मदद करना चाहता है। बाइबल गुज़ारिश करती है, “तुम अपनी सारी चिंताओं का बोझ उसी पर डाल दो, क्योंकि उसे तुम्हारी परवाह है।” (1 पत. 5:7) लेकिन आप यह कैसे कर सकते हैं? इस लेख में हम चार तरीकों पर गौर करेंगे जो आपकी मदद कर सकते हैं: (1) प्रार्थना करना, (2) परमेश्वर का वचन पढ़ना और मनन करना, (3) यहोवा की पवित्र शक्‍ति की मदद लेना और (4) किसी ऐसे व्यक्‍ति को अपने दिल की बात बताना जिस पर आपको भरोसा हो। इन चार तरीकों पर गौर करते वक्‍त यह देखने की कोशिश कीजिए कि आपको कहाँ सुधार करना है।

‘अपना बोझ यहोवा पर डाल दो’

3. आप किस तरह “अपना बोझ यहोवा पर डाल” सकते हैं?

3 यहोवा पर अपनी चिंताओं का बोझ डालने का पहला तरीका है, सच्चे दिल से उससे प्रार्थना करना। जब चिंताएँ आपको आ घेरती हैं तो स्वर्ग में रहनेवाला आपका प्यारा पिता चाहता है कि आप उसे अपने मन की भावनाएँ बताएँ। भजन का लिखनेवाला दाविद यहोवा के आगे गिड़गिड़ाया, “हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना की ओर कान लगा।” उसी भजन में उसने यह भी कहा, “अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा।” (भज. 55:1, 22) किसी समस्या को दूर करने के लिए अगर आप कुछ कर सकते हैं तो उसे कीजिए। मगर इसके बाद उस बारे में चिंता करने के बजाय अच्छा होगा कि आप यहोवा से दिल से प्रार्थना करें। प्रार्थना करने से क्या फायदा होता है? और ये कैसे हमारी मदद करती हैं ताकि चिंताएँ हम पर हावी न हों?—भज. 94:18, 19.

4. जब हम चिंताओं से घिरे होते हैं तो प्रार्थना करना क्यों ज़रूरी है?

4 फिलिप्पियों 4:6, 7 पढ़िए। जब हम पूरे दिल से और लगातार यहोवा से प्रार्थना करते हैं तो वह किस तरह हमारी मदद करता है? वह हमें शांति और सुकून देता है और बुरे खयालों और भावनाओं को मन में आने नहीं देता। हमारे कई भाई-बहनों ने ऐसा ही सुकून महसूस किया है। परमेश्वर ने उनकी चिंता और डर को दूर करके उन्हें ऐसी शांति दी है जो इंसान की समझ से परे है। आप भी वह शांति पा सकते हैं। “परमेश्वर की वह शांति” पाकर आप किसी भी मुश्किल का सामना कर सकते हैं! आप यहोवा के इस वादे पर पूरा भरोसा कर सकते हैं, “घबरा मत क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर हूँ। मैं तेरी हिम्मत बँधाऊँगा, तेरी मदद करूँगा।”—यशा. 41:10, एन.डब्ल्यू.

परमेश्वर के वचन से मन की शांति मिलती है

5. परमेश्वर के वचन से आपको मन की शांति कैसे मिल सकती है?

5 मन की शांति पाने का दूसरा तरीका है, बाइबल पढ़ना और उसकी आयतों पर मनन करना। यह क्यों ज़रूरी है? बाइबल परमेश्वर का वचन है। इसमें हमारे सृष्टिकर्ता ने बुद्धि-भरी और फायदेमंद सलाह दी है। यह सलाह आपकी मदद कर सकती है कि आप चिंताओं को मन में आने ही न दें या फिर अगर वे आएँ भी तो उन्हें कम कर सकें या उनका सामना कर सकें। इसलिए जब कभी चिंताएँ आपको सताती हैं, तो आप बाइबल में दिए परमेश्वर के विचारों पर गहराई से सोच सकते हैं और इसकी फायदेमंद सलाह पर मनन कर सकते हैं जिससे आपको उन चिंताओं का सामना करने की हिम्मत मिलेगी। यहोवा ने साफ-साफ बताया है कि उसके वचन को पढ़ने से हम “हियाव बाँधकर दृढ़” होंगे और हम ‘भय नहीं खाएँगे और हमारा मन कच्चा नहीं होगा।’—यहो. 1:7-9.

6. यीशु की बातों से आपको कैसे फायदा हो सकता है?

6 परमेश्वर के वचन में हम पढ़ते हैं कि यीशु लोगों से किस तरह बात करता था। लोगों को उसकी बातें सुनना बहुत पसंद था क्योंकि उसकी बातें उन्हें दिलासा देती थीं और ताज़गी पहुँचाती थीं, खासकर उन्हें जो कमज़ोर या मायूस होते थे। (मत्ती 11:28-30 पढ़िए।) यीशु दूसरों की हर ज़रूरत का ध्यान रखता था। (मर. 6:30-32) उसने अपने साथ रहनेवाले प्रेषितों से वादा किया कि वह उनकी मदद करेगा। हालाँकि आज हम सचमुच में यीशु के साथ नहीं है, लेकिन उसने वादा किया है कि वह हमारी भी मदद करेगा। यीशु स्वर्ग से राजा के नाते हमसे हमदर्दी रखता है। इसलिए जब आप चिंता में होते हैं तो आप यकीन रख सकते हैं कि वह आपका साथ देगा और “सही वक्‍त पर” आपकी मदद करेगा। यीशु हमें आशा और हिम्मत देता है जिससे हम चिंताओं का सामना कर पाते हैं।—इब्रा. 2:17, 18; 4:16.

परमेश्वर की पवित्र शक्‍ति से पैदा होनेवाले गुण

7. परमेश्वर की पवित्र शक्‍ति कैसे हमारी मदद करती है?

7 यीशु ने वादा किया था कि जब हम अपने पिता यहोवा से पवित्र शक्‍ति माँगेंगे तो वह हमें ज़रूर देगा। (लूका 11:10-13) चिंताएँ कम करने का यह तीसरा तरीका है। पवित्र शक्‍ति कैसे हमारी मदद कर सकती है? परमेश्वर की पवित्र शक्‍ति या सक्रिय शक्‍ति से हम अपने अंदर वे गुण बढ़ा सकते हैं जो सर्वशक्‍तिमान परमेश्वर में हैं। (कुलु. 3:10) बाइबल में इन गुणों को “पवित्र शक्‍ति का फल” कहा गया है। (गलातियों 5:22, 23 पढ़िए।) जब हम इन अच्छे गुणों को बढ़ाते हैं, तो हम दूसरों के साथ एक अच्छा रिश्ता बना पाते हैं और उन हालात से बचे रहते हैं जिनसे हमारी चिंताएँ बढ़ सकती हैं। आइए देखें कि पवित्र शक्‍ति का फल किन खास तरीकों से हमारी मदद करता है।

8-12. परमेश्वर की पवित्र शक्‍ति का फल कैसे आपकी मदद कर सकता है?

8 “प्यार, खुशी, शांति।” जब आप दूसरों के साथ आदर से पेश आते हैं तो आपको कम चिंताएँ होंगी। वह कैसे? जब आप दूसरों का आदर करते हैं, उनसे गहरा लगाव रखते हैं और भाइयों जैसा प्यार करते हैं तो आप अकसर ऐसे हालात से बच सकते हैं जिनमें आपको गुस्सा आए और तनाव हो।—रोमि. 12:10.

9 “सहनशीलता, कृपा, भलाई।” बाइबल बताती है, “एक-दूसरे के साथ कृपा से पेश आओ और कोमल-करुणा दिखाते हुए एक-दूसरे को दिल से माफ करो।” (इफि. 4:32) जब हम यह सलाह मानते हैं तो दूसरों के साथ हम शांति बनाए रख पाते हैं और हम ऐसे हालात से बचे रहते हैं जो हमें चिंता में डाल सकते हैं। परिपूर्ण न होने की वजह से अगर हमसे गलती भी होती है, तो हम उन हालात का अच्छी तरह सामना कर पाते हैं।

10 “विश्वास।” आज हम अकसर पैसों और दूसरी चीज़ों के बारे में चिंता करते हैं। (नीति. 18:11) हम इस तरह की चिंता से कैसे दूर रह सकते हैं? हमें प्रेषित पौलुस की सलाह माननी चाहिए कि “जो कुछ तुम्हारे पास है उसी में संतोष करो।” यहोवा पर मज़बूत विश्वास होने से हम उस पर भरोसा रखेंगे कि वह हमारी ज़रूरत की हर चीज़ हमें देगा। उसने वादा किया है, “मैं तुझे कभी न छोड़ूंगा, न ही कभी त्यागूंगा।” इसलिए हम पौलुस की तरह कह सकते हैं, “यहोवा मेरा मददगार है, मैं न डरूँगा। इंसान मेरा क्या बिगाड़ सकता है?”—इब्रा. 13:5, 6.

11 “कोमलता, संयम।” ज़रा सोचिए कि कोमलता और संयम दिखाने से रोज़मर्रा की ज़िंदगी में आपको कितना फायदा हो सकता है। ये गुण आपकी मदद करेंगे कि आप न तो ऐसे काम करें, न ही ऐसी बातें बोलें जिससे आपको चिंता हो। आप ‘जलन-कुढ़न, गुस्से, क्रोध, चीखने-चिल्लाने और गाली-गलौज’ से भी दूर रह पाएँगे।—इफि. 4:31.

12 “परमेश्वर के शक्‍तिशाली हाथ” पर भरोसा करने और ‘अपनी सारी चिंताओं का बोझ उसी पर डालने’ के लिए नम्रता का गुण होना ज़रूरी है। (1 पत. 5:6, 7) अगर आप नम्र हैं, तो यहोवा आपको सँभालेगा और आपकी देखभाल करेगा। जब आपको पता होता है कि आप क्या कर सकते हैं और क्या नहीं, तो आप परमेश्वर पर निर्भर रहेंगे न कि खुद पर। इस तरह आपको कम चिंताएँ होंगी।—मीका 6:8.

“चिंता कभी न करना”

13. यीशु के यह कहने का क्या मतलब था, “चिंता कभी न करना”?

13 मत्ती 6:34 (पढ़िए) में हमें यीशु की यह बुद्धि-भरी सलाह मिलती है: “चिंता कभी न करना।” इस सलाह को मानना शायद हमें नामुमकिन लगे। लेकिन यीशु के कहने का क्या मतलब था? इस लेख में हमने चर्चा की कि दाविद और पौलुस को भी कभी-कभी चिंता सताती थी। यीशु के कहने का यह मतलब नहीं था कि परमेश्वर के सेवकों को कभी कोई चिंता नहीं सताएगी। इसके बजाय, वह यह समझने में अपने चेलों की मदद कर रहा था कि हद-से-ज़्यादा या बेवजह चिंता करने से समस्याएँ दूर नहीं होंगी। हर दिन हमें मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इसलिए मसीहियों को अपनी पिछली परेशानियों के बारे में नहीं सोचते रहना चाहिए और न ही आगे आनेवाली परेशानियों के बारे में क्योंकि इससे चिंताएँ और बढ़ जाती हैं। यीशु की यह सलाह कैसे आपकी मदद कर सकती है कि आप हद-से-ज़्यादा चिंता न करें?

14. पिछली गलतियों को लेकर चिंता न करने के बारे में हम दाविद से क्या सीखते हैं?

14 कभी-कभी लोग अपनी पिछली गलतियों के बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता करते हैं। हो सकता है उन्होंने ये गलतियाँ कई सालों पहले की हों मगर आज भी वे उनके लिए दोषी महसूस करें। राजा दाविद भी कई मौकों पर अपनी बीती गलतियों को लेकर परेशान हो उठा था। उसने कबूल किया, “मैं अपने मन की घबराहट से कराहता हूँ।” (भज. 38:3, 4, 8, 18) ऐसे में दाविद ने एक बुद्धिमानी का काम किया। उसने यहोवा पर भरोसा रखा कि वह उस पर दया करेगा और उसे माफ करेगा। तब यह जानकर दाविद को खुशी हुई कि परमेश्वर ने उसे माफ कर दिया।—भजन 32:1-3, 5 पढ़िए।

15. (क) हम दाविद से और क्या सीखते हैं? (ख) आप चिंता कम करने के लिए क्या कर सकते हैं? (बक्स “ चिंता कम करने के कुछ तरीके” देखिए।)

15 कभी-कभी लोग आज की परेशानियों को लेकर हद-से-ज़्यादा चिंता करते हैं। उदाहरण के लिए, जब दाविद ने भजन 55 लिखा था तो उसे यह डर सता रहा था कि उसे मार डाला जाएगा। (भज. 55:2-5) फिर भी उसने यहोवा पर अपना भरोसा टूटने नहीं दिया। वह अपनी समस्याओं का सामना करने के लिए यहोवा के आगे गिड़गिड़ाया। लेकिन वह यह भी जानता था कि उसे अपने हालात का सामना करने के लिए कुछ करना होगा। (2 शमू. 15:30-34) आप दाविद से क्या सीखते हैं? यही कि चिंता को अपने ऊपर हावी होने मत दीजिए। इसके बजाय, उसे दूर करने के लिए आप जो कुछ कर सकते हैं वह करें और यहोवा पर भरोसा रखें कि वह आपको सँभालेगा।

16. परमेश्वर के नाम का जो मतलब है उससे आपका विश्वास कैसे बढ़ सकता है?

16 कभी-कभी एक मसीही शायद भविष्य में होनेवाली परेशानियों के बारे में सोचकर चिंता करने लगे। लेकिन आपको उन बातों की चिंता नहीं करनी चाहिए जो अब तक नहीं हुई हैं। क्यों नहीं? क्योंकि कई बार हालात इतने बुरे नहीं होते जितना हम सोचते हैं। और यह भी याद रखिए कि ऐसे कोई हालात नहीं जिन्हें परमेश्वर काबू में नहीं कर सकता। उसके नाम का मतलब ही है, “वह बनने का कारण होता है।” (निर्ग. 3:14) इसलिए हमें भविष्य के बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि परमेश्वर के नाम से पता चलता है कि इंसानों के लिए उसने जो भी मकसद ठहराए हैं, वे पूरे होंगे। आप यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर अपने वफादार लोगों को आशीष देगा और उनकी मदद करेगा कि वे पिछली बातों के बारे में, आज की और भविष्य की बातों के बारे में कम चिंता करें।

जिस पर आपको भरोसा हो उससे बात कीजिए

17, 18. जब आप चिंता में होते हैं तो दूसरों से बात करने से कैसे आपको मदद मिल सकती है?

17 चिंता कम करने का चौथा तरीका है, किसी ऐसे व्यक्‍ति को अपने दिल की बात बताना जिस पर आपको भरोसा हो। वह आपका जीवन-साथी, करीबी दोस्त या मंडली का कोई प्राचीन हो सकता है। वह हालात को समझने में आपकी मदद कर सकता है। बाइबल कहती है, “उदास मन दब जाता है, परन्तु भली बात से वह आनन्दित होता है।” (नीति. 12:25) बाइबल यह भी कहती है, “बिना सम्मति की कल्पनाएँ निष्फल हुआ करती हैं, परन्तु बहुत से मंत्रियों की सम्मति से बात ठहरती है।”—नीति. 15:22.

18 हमारी मसीही सभाएँ भी चिंता कम करने में हमारी मदद करती हैं। हर हफ्ते सभाओं में आप भाई-बहनों के साथ संगति करते हैं, जो आपकी परवाह करते हैं और आपका हौसला बढ़ाना चाहते हैं। (इब्रा. 10:24, 25) ‘एक-दूसरे का हौसला बढ़ाने’ से आपको हिम्मत मिलेगी और किसी भी तरह की चिंता का सामना करना आपके लिए आसान होगा।—रोमि. 1:12.

परमेश्वर के साथ आपका रिश्ता आपकी सबसे बड़ी ताकत है

19. आप कैसे यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर के साथ आपका रिश्ता आपको ताकत देगा?

19 कनाडा के रहनेवाले एक प्राचीन ने सीखा कि यहोवा पर अपनी चिंता का बोझ डालना कितना ज़रूरी है। वह स्कूल में टीचर और सलाहकार की नौकरी करता है। यह अपने आपमें बहुत तनाव-भरा काम है। इसके साथ-साथ उसे सेहत से जुड़ी एक परेशानी भी है, जिससे चिंताएँ उस पर हावी हो जाती हैं। इन मुश्किलों के बावजूद किस बात ने उसे ताकत दी? वह सबसे बढ़कर इस बात का ध्यान रखता है कि यहोवा के साथ उसका रिश्ता मज़बूत बना रहे। मुश्किल समय में सच्चे दोस्तों ने भी उसकी मदद की है। वह अपनी पत्नी को अपनी भावनाएँ खुलकर बताता है। इसके अलावा, साथी प्राचीनों और सर्किट निगरान ने भी उसकी मदद की है ताकि वह अपने हालात को यहोवा के नज़रिए से देख सके। एक डॉक्टर ने भी इस भाई को सेहत से जुड़ी अपनी परेशानी समझने में मदद दी। भाई ने अपने रोज़मर्रा के जीवन में कुछ बदलाव किए और आराम करने और कसरत करने के लिए समय निकाला। इस तरह वह धीरे-धीरे समझ पाया कि उसे अपने हालात और अपनी भावनाओं को कैसे काबू में करना चाहिए। लेकिन जब कोई हालात उसके बस से बाहर होते हैं तो वह मदद के लिए यहोवा पर भरोसा रखता है।

20. (क) हम यहोवा पर अपनी चिंताओं का बोझ कैसे डाल सकते हैं? (ख) अगले लेख में हम किस बारे में चर्चा करेंगे?

20 इस लेख में हमने सीखा कि यहोवा पर अपनी चिंताओं का बोझ डालना कितना ज़रूरी है। हम प्रार्थना करके, बाइबल पढ़कर और उस पर मनन करके अपनी चिंताएँ यहोवा पर डाल सकते हैं। इसके अलावा, हम यहोवा की पवित्र शक्‍ति की मदद ले सकते हैं, किसी ऐसे व्यक्‍ति से बात कर सकते हैं जिस पर हमें भरोसा है और मसीही सभाओं में भी जा सकते हैं। अगले लेख में हम सीखेंगे कि यहोवा ने हमें एक इनाम देने का वादा किया है। उस इनाम की आशा रखने से भी हम चिंताओं का सामना कर सकते हैं।—इब्रा. 11:6.