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माता-पिताओ, बच्चों की मदद कीजिए कि वे “उद्धार पाने के लिए बुद्धिमान” बनें

माता-पिताओ, बच्चों की मदद कीजिए कि वे “उद्धार पाने के लिए बुद्धिमान” बनें

“जब तू एक शिशु था तभी से तू पवित्र शास्त्र के लेख जानता है। ये वचन तुझे. . . उद्धार पाने के लिए बुद्धिमान बना सकते हैं।”​—2 तीमु. 3:15.

गीत: 1, 31

1, 2. जब बच्चा समर्पण और बपतिस्मे का कदम उठाना चाहता है, तो कुछ माता-पिता क्या चिंता करने लग सकते हैं?

हर साल हज़ारों बाइबल विद्यार्थी यहोवा को अपना जीवन समर्पित करते हैं और बपतिस्मा लेते हैं। इनमें से कई नौजवान हैं जिनकी परवरिश सच्चाई में हुई है और उन्होंने जीने का सबसे बेहतरीन तरीका चुना है। (भज. 1:1-3) अगर आप एक मसीही माता-पिता हैं तो शायद आप भी उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हों जब आपकी बेटी या बेटा बपतिस्मा लेगा।​—3 यूहन्ना 4 से तुलना कीजिए।

2 वहीं दूसरी तरफ शायद आपके मन में कुछ चिंताएँ हों। वह इसलिए कि आप ऐसे नौजवानों को जानते हों जो बपतिस्मा लेने के बाद यह सोचने लगे कि क्या परमेश्वर के स्तरों पर चलने का कोई फायदा है। कुछ नौजवानों ने तो सच्चाई तक छोड़ दी है। आप शायद चिंता करें कि कहीं आपके बच्चे के साथ ऐसा न हो। बपतिस्मा लेने के बाद कहीं सच्चाई के लिए उसका प्यार ठंडा न पड़ जाए। वह इफिसुस के उन मसीहियों की तरह न बन जाए, जिनके बारे में यीशु ने कहा कि उनमें “अब वह प्यार नहीं रहा जो पहले था।” (प्रका. 2:4) आप अपने बच्चे की किस तरह मदद कर सकते हैं ताकि सच्चाई के लिए उसका प्यार बना रहे और वह ‘उद्धार पाए’? (1 पत. 2:2) आइए हम तीमुथियुस की मिसाल पर गौर करें।

“तू पवित्र शास्त्र के लेख जानता है”

3. (क) तीमुथियुस कब और कैसे एक मसीही बना? हम कैसे जानते हैं कि वह सीखी बातों को लागू करता रहा? (ख) तीमुथियुस को लिखते वक्‍त पौलुस ने सीखने के कौन-से तीन तरीके बताए?

3 तीमुथियुस ने यीशु की शिक्षाओं के बारे में तब सीखा होगा, जब ईसवी सन्‌ 47 में प्रेषित पौलुस पहली बार लुस्त्रा आया था। उस वक्‍त तीमुथियुस एक नौजवान ही था और वह सीखी बातों को लागू करता रहा। यह हम कैसे जानते हैं? क्योंकि दो साल बाद ही वह पौलुस का साथी बनकर जगह-जगह प्रचार करने लगा। फिर इसके 16 साल बाद पौलुस ने उसे ये शब्द लिखे, “जो बातें तूने सीखी हैं और जिनका तुझे दलीलें देकर यकीन दिलाया गया था उन बातों को मानता रह, यह जानते हुए कि तूने ये किन लोगों से सीखी थीं और यह भी कि जब तू एक शिशु था तभी से तू पवित्र शास्त्र के लेख [यानी इब्रानी शास्त्र] जानता है। ये वचन तुझे मसीह यीशु में विश्वास के ज़रिए उद्धार पाने के लिए बुद्धिमान बना सकते हैं।” (2 तीमु. 3:14, 15) ध्यान दीजिए पौलुस ने कहा कि (1) तीमुथियुस पवित्र शास्त्र के लेख जानता था, (2) उसे दलीलें देकर यकीन दिलाया गया था और (3) वह मसीह यीशु में विश्वास के ज़रिए उद्धार पाने के लिए बुद्धिमान बना।

4. अपने बच्चों को सिखाने के लिए आपने कौन-से प्रकाशन इस्तेमाल किए हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

4 बेशक आप माता-पिता भी यही चाहते हैं कि आपका बच्चा पवित्र शास्त्र के लेख जाने। आज इसमें इब्रानी शास्त्र और मसीही यूनानी शास्त्र दोनों शामिल हैं। छोटे बच्चे भी बाइबल में दी घटनाओं और लोगों के बारे में सीख सकते हैं। यहोवा के संगठन ने कई किताबें, ब्रोशर और वीडियो तैयार किए हैं जिनकी मदद से माता-पिता बच्चों को सिखा सकते हैं। इनमें से कौन-से प्रकाशन आपकी भाषा में उपलब्ध हैं? अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चे का यहोवा के साथ एक मज़बूत रिश्ता हो, तो यह बेहद ज़रूरी है कि वह बाइबल को अच्छी तरह जाने।

“दलीलें देकर यकीन दिलाया गया”

5. (क) तीमुथियुस को किस बात का “यकीन दिलाया गया था”? (ख) हम कैसे जानते हैं कि तीमुथियुस ने यीशु के बारे में जो खुशखबरी सुनी थी, उस पर उसे पक्का विश्वास था?

5 यह सच है कि बच्चों को बाइबल के बारे में सिखाना ज़रूरी है लेकिन सिर्फ इतना काफी नहीं। याद कीजिए कि तीमुथियुस ने जो बातें सीखी थीं, उनका उसे “दलीलें देकर यकीन दिलाया गया था।” दूसरे शब्दों में कहें तो उसे पक्का विश्वास था कि उसने जो सीखा था वही सच्चाई है। तीमुथियुस जब “एक शिशु था,” तब से इब्रानी शास्त्र जानता था। बाद में सबूतों को जाँचने पर उसे यकीन हुआ कि यीशु ही मसीहा है। तीमुथियुस को इस बात पर इतना विश्वास था कि उसने बपतिस्मा लिया और एक मिशनरी के तौर पर पौलुस के साथ सेवा की।

6. परमेश्वर के वचन पर अपने बच्चों का विश्वास बढ़ाने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

6 अपने बच्चों का विश्वास बढ़ाने के लिए आप क्या कर सकते हैं ताकि तीमुथियुस की तरह उन्हें भी यकीन हो कि यही सच्चाई है? सबसे पहले सब्र रखिए। विश्वास रातों-रात नहीं बढ़ता। इसके अलावा, यह मत सोचिए कि अगर आप किसी बात पर विश्वास करते हैं, तो आपके बच्चे भी उस पर विश्वास कर लेंगे। हर बच्चे को अपनी “सोचने-समझने की शक्‍ति” का इस्तेमाल करना होगा ताकि वह बाइबल पर अपना विश्वास बढ़ा सके। (रोमियों 12:1 पढ़िए।) लेकिन इसमें आप माता-पिता एक अहम भूमिका निभा सकते हैं खासकर उस वक्‍त जब वे आपसे सवाल करते हैं। आइए देखें कि इस मामले में हम एक पिता से क्या सीखते हैं।

7, 8. (क) एक मसीही पिता अपनी बेटी को सिखाते वक्‍त किस तरह सब्र से काम लेता है? (ख) बताइए कि आपको कब अपने बच्चे के साथ सब्र रखना पड़ा है।

7 थौमस की एक 11 साल की बेटी है। वह कहता है, “कभी-कभी मेरी बेटी मुझसे पूछती है, ‘क्या ऐसा नहीं हो सकता कि यहोवा ने विकासवाद के ज़रिए धरती पर जीवन की शुरूआत की हो? वोट देने में क्या बुराई है, इससे तो हालात सुधर सकते हैं ना?’ कभी-कभी मेरा मन करता है कि अपनी बेटी को सीधे-सीधे बता दूँ कि उसे क्या विश्वास करना चाहिए और क्या नहीं। लेकिन मैं ऐसा करने से खुद को रोकता हूँ।” थौमस जानता है कि अगर किसी को कायल करना है, तो सिर्फ यह बताना काफी नहीं कि सच क्या है बल्कि कई छोटे-छोटे सबूत भी देना ज़रूरी होता है।

8 थौमस यह भी जानता है कि अपनी बेटी को सिखाने के लिए उसे सब्र से काम लेना होगा। सच तो यह है कि सभी मसीहियों को सब्र रखना चाहिए। (कुलु. 3:12) थौमस को पता है कि उसे अपनी बेटी को सिखाने में वक्‍त लगेगा और उसके साथ लगातार बातचीत करनी होगी, तभी वह अपना विश्वास बढ़ा पाएगी। बाइबल से सिखाते वक्‍त उसे उसके साथ तर्क करना होगा। थौमस कहता है, “मैं और मेरी पत्नी खासकर यह जानने की कोशिश करते हैं कि कुछ अहम शिक्षाओं के बारे में हमारी बेटी क्या सोचती है? क्या वह उनसे सहमत है और उन पर विश्वास करती है? अगर वह कुछ सवाल करती है, तो मुझे अच्छा लगता है क्योंकि मैं नहीं चाहता कि वह सब बातों पर आँख मूँदकर यकीन कर ले।”

9. आप किस तरह अपने बच्चों के मन में परमेश्वर का वचन बिठा सकते हैं?

9 जब माता-पिता सब्र रखते हुए बच्चों को सिखाते हैं, तो उनके बच्चे धीरे-धीरे विश्वास की “चौड़ाई, लंबाई, ऊँचाई और गहराई” को समझने लगते हैं। (इफि. 3:18) इसके लिए शायद आपको अपने बच्चों की उम्र और उनकी काबिलीयत को ध्यान में रखकर सिखाना पड़े। जैसे-जैसे सीखी बातों पर उनका विश्वास बढ़ेगा, वे स्कूल के साथियों और दूसरों के सामने अपने विश्वास की पैरवी कर पाएँगे। (1 पत. 3:15) माता-पिताओ, क्या आपके बच्चे बाइबल से समझा सकते हैं कि मरने पर क्या होता है? इस बारे में बाइबल जो बताती है, क्या वे उससे सहमत हैं? * जी हाँ, भले ही अपने बच्चों के मन में परमेश्वर का वचन बिठाने के लिए आपको सब्र रखना पड़े, लेकिन ऐसा करने के बढ़िया नतीजे मिलेंगे।​—व्यव. 6:6, 7.

10. बच्चों का विश्वास बढ़ाने के लिए एक और ज़रूरी बात क्या है?

10 बच्चों का विश्वास बढ़ाने के लिए एक और बात ज़रूरी है। वह है उनके लिए एक अच्छी मिसाल रखना। स्टेफानी जिसकी तीन बेटियाँ हैं, कहती है, “जब मेरे बच्चे बहुत छोटे थे तब मैं खुद से बार-बार पूछती थी, ‘क्या मैं अपने बच्चों को बताती हूँ कि क्या बात मुझे यकीन दिलाती है कि यहोवा सचमुच में है, वह मुझसे प्यार करता है और उसकी बतायी राह सही है? क्या मेरे बच्चे साफ देख सकते हैं कि मैं यहोवा से सच्चा प्यार करती हूँ?’ अगर मुझे इन बातों पर यकीन नहीं, तो भला मेरे बच्चों को इन पर कैसे यकीन होगा?”

“उद्धार पाने के लिए बुद्धिमान”

11, 12. बुद्धि क्या है और हम क्यों कह सकते हैं कि सिर्फ उम्र की वजह से कोई प्रौढ़ नहीं बन जाता?

11 हमने अब तक देखा कि तीमुथियुस (1) शास्त्र को अच्छी तरह जानता था और (2) उसने जो बातें सीखी थीं, उन पर उसे पूरा यकीन था। लेकिन जब पौलुस ने कहा कि शास्त्र की बातें तीमुथियुस को “उद्धार पाने के लिए बुद्धिमान” बना सकती हैं, तो उसका क्या मतलब था?

12 इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स, भाग 2 में समझाया गया है कि बाइबल के मुताबिक बुद्धि “वह काबिलीयत है जिससे हम ज्ञान और समझ का इस्तेमाल करके समस्याओं का हल निकाल सकते हैं, खतरों से बच सकते हैं, कुछ लक्ष्य हासिल कर सकते हैं या दूसरों को ऐसा करने की सलाह दे सकते हैं। बुद्धि, मूर्खता के बिलकुल विपरीत है।” बाइबल बताती है, “बच्चे के मन में मूर्खता बसी होती है।” (नीति. 22:15, फु.) इसका मतलब है कि बुद्धि, प्रौढ़ता की एक निशानी है। एक मसीही सिर्फ अपनी उम्र की वजह से प्रौढ़ नहीं बनता बल्कि वह सही मायनों में प्रौढ़ तभी बनता है जब वह यहोवा का डर मानता है और उसकी आज्ञा मानने को तैयार रहता है।​—भजन 111:10 पढ़िए।

13. नौजवान कैसे दिखा सकते हैं कि वे उद्धार पाने के लिए बुद्धिमान हैं?

13 जो नौजवान समझदार और प्रौढ़ होते हैं, वे अपने साथियों के दबाव में नहीं आते और न ही अपनी इच्छाओं की “लहरों से यहाँ-वहाँ उछाले जाते” हैं। (इफि. 4:14) इसके बजाय, वे ‘सही-गलत में फर्क करने के लिए अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति को प्रशिक्षित करते हैं।’ (इब्रा. 5:14) ऐसा करने से वे सभी हालात में बुद्धि-भरे फैसले ले पाते हैं, तब भी जब उनके माँ-बाप या दूसरे उन्हें नहीं देख रहे हों। (फिलि. 2:12) उद्धार पाने के लिए ऐसी बुद्धि ज़रूरी है। (नीतिवचन 24:14 पढ़िए।) अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चों में ऐसी बुद्धि हो, तो आप क्या कर सकते हैं? सबसे पहले उन्हें बताइए कि आप बाइबल के स्तरों को मानते हैं। अपनी बातों और कामों से दिखाइए कि आप उन स्तरों के मुताबिक जीने की कोशिश करते हैं।​—रोमि. 2:21-23.

यह क्यों ज़रूरी है कि माता-पिता अपने बच्चों की मदद करते रहें? (पैराग्राफ 14-18 देखिए)

14, 15. (क) एक नौजवान को बपतिस्मा लेने से पहले किन बातों के बारे में गहराई से सोचना चाहिए? (ख) आप क्या करते हैं जिससे आपके बच्चे को यकीन हो कि आज्ञा मानने से आशीषें मिलती हैं?

14 मगर अपने बच्चे का विश्वास बढ़ाने के लिए सिर्फ यह कहना काफी नहीं कि क्या सही है और क्या गलत। उसे ऐसे सवालों पर सोचने के लिए कहिए जैसे, ‘बाइबल क्यों उन कामों को करने से मना करती है जो शायद मेरे मन को भाए? क्या बात मुझे यकीन दिलाती है कि बाइबल के स्तरों पर चलने में मेरी ही भलाई है?’​—यशा. 48:17, 18.

15 अगर आपका बच्चा बपतिस्मा लेना चाहता है, तो उसे इस बात पर भी सोचने के लिए कहिए कि बपतिस्मा लेने से उस पर क्या ज़िम्मेदारियाँ आएँगी। वह उन ज़िम्मेदारियों के बारे में कैसा महसूस करता है? बपतिस्मा लेने से क्या आशीषें मिलती हैं और क्या मुश्किलें आ सकती हैं? यह क्यों कहा जा सकता है कि उन आशीषों के आगे ये मुश्किलें कुछ भी नहीं? (मर. 10:29, 30) यह बहुत ज़रूरी है कि आपका बच्चा बपतिस्मा लेने से पहले इन सवालों पर गहराई से सोचे। उसे इस बात पर मनन करने का बढ़ावा दीजिए कि परमेश्वर की आज्ञा मानने से क्या आशीषें मिलती हैं और न मानने के क्या बुरे अंजाम होते हैं। इस तरह उसे यकीन हो जाएगा कि बाइबल के स्तरों पर चलने से हमेशा उसका भला होगा।​—व्यव. 30:19, 20.

जब एक नौजवान का विश्वास डगमगाने लगे

16. बपतिस्मे के बाद अगर आपके बच्चे का विश्वास डगमगाने लगता है, तो आपको क्या करना चाहिए?

16 बपतिस्मे के बाद अगर आपके बच्चे का विश्वास डगमगाने लगे, तो आप क्या कर सकते हैं? हो सकता है, आपका बच्चा दुनिया की चीज़ों की तरफ आकर्षित होने लगे या वह यह कहने लगे कि बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक ज़िंदगी जीना फायदेमंद नहीं। (भज. 73:1-3, 12, 13) इस बात को लेकर अपने बच्चे के साथ झगड़ा मत कीजिए, फिर चाहे वह छोटा हो या अब बड़ा हो गया हो। इसके बजाय उसे यकीन दिलाइए कि आप उससे प्यार करते हैं और उसकी मदद करना चाहते हैं। जी हाँ, आप जिस तरह अपने बच्चे के साथ पेश आएँगे, उससे तय होगा कि वह यहोवा की सेवा करते रहना चाहेगा या नहीं।

17, 18. अगर एक नौजवान अपने विश्वास को लेकर सवाल करे, तो माता-पिता कैसे उसकी मदद कर सकते हैं?

17 यह सच है कि जो नौजवान बपतिस्मा लेता है, वह अपना जीवन यहोवा को समर्पित करता है यानी वह वादा करता है कि वह यहोवा से प्यार करेगा और उसकी मरज़ी को पहली जगह देगा। (मरकुस 12:30 पढ़िए।) यहोवा इस वादे को गंभीरता से लेता है और हमें भी इसे गंभीरता से लेना चाहिए। (सभो. 5:4, 5) ये सारी बातें सही मौका देखकर और प्यार से अपने बच्चे को याद दिलाइए। लेकिन इससे पहले उन प्रकाशनों को पढ़िए और उनका अध्ययन कीजिए जो यहोवा के संगठन ने माता-पिताओं के लिए तैयार किए हैं। इस तरह आपके बच्चे समझ पाएँगे कि बपतिस्मा लेना एक गंभीर बात है लेकिन इससे ढेरों आशीषें मिलती हैं।

18 माता-पिताओं की मदद करने के लिए jw.org वेबसाइट पर कई अच्छे लेख दिए गए हैं। इनमें से एक है, “जब आपका नौजवान आपके धार्मिक विश्वास पर सवाल उठाए।” जब एक नौजवान कुछ ऐसा करता है, तो माता-पिता को यह नहीं सोचना चाहिए कि वह सच्चाई को ठुकरा रहा है। लेकिन जैसा लेख में सलाह दी गयी है उन्हें सबसे पहले यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि समस्या की असली वजह क्या है। शायद बच्चा अकेलेपन से जूझ रहा हो या उस पर अपने साथियों का दबाव हो। या उसे लगे कि दूसरे मसीही नौजवान यहोवा की सेवा में उससे ज़्यादा कर पा रहे हैं। अगर बच्चा ऐसी किसी समस्या का सामना कर रहा है, तो इसका यह मतलब नहीं कि सच्चाई पर उसका विश्वास खत्म हो रहा है। हो सकता है, वह जिस समस्या से जूझ रहा हो, उस वजह से सच्चाई की राह पर चलना उसके लिए मुश्किल हो। लेख में माता-पिताओं के लिए कुछ सुझाव भी दिए गए हैं कि वे कैसे अपने बच्चों की मदद कर सकते हैं।

19. माता-पिता क्या कर सकते हैं जिससे कि उनके बच्चे “उद्धार पाने के लिए बुद्धिमान” बनें?

19 माता-पिताओ, अपने बच्चों की परवरिश करना, उन्हें ‘यहोवा की मरज़ी के मुताबिक सिखाना और समझाना’ आपकी ज़िम्मेदारी है और यह एक बड़ा सम्मान भी है। (इफि. 6:4) जैसा कि हमने इस लेख में देखा, इसके लिए आपको उन्हें न सिर्फ बाइबल से सिखाना होगा बल्कि उसमें लिखी बातों पर यकीन करने में उनकी मदद भी करनी होगी। जब उनका विश्वास मज़बूत होगा तो वे यहोवा को अपना जीवन समर्पित करने और पूरे दिल से उसकी सेवा करने के लिए उभारे जाएँगे। हमारी दुआ है कि यहोवा के वचन, उसकी पवित्र शक्‍ति और आपकी मेहनत से आपके बच्चे “उद्धार पाने के लिए बुद्धिमान” बनें।

^ पैरा. 9पवित्र शास्त्र असल में क्या सिखाता है?” श्रृंखला से बड़े लोगों और नौजवानों को बहुत मदद मिली है। इसमें दिए अभ्यास से उन्हें बाइबल की सच्चाइयों की गहरी समझ मिली है और वे दूसरों को भी ये अच्छी तरह समझा पाए हैं। ये अभ्यास jw.org पर कई भाषाओं में उपलब्ध हैं। शास्त्र से जानिए > पवित्र शास्त्र को गहराई से जानिए में देखिए।