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“मैं . . . परमेश्वर से यह आशा रखता हूँ”

“मैं . . . परमेश्वर से यह आशा रखता हूँ”

“आखिरी आदम जीवन देनेवाला अदृश्य प्राणी बना।”​—1 कुरिं. 15:45.

गीत: 12, 24

1-3. (क) कौन-सी शिक्षा हमारे लिए एक मुख्य शिक्षा होनी चाहिए? (ख) मरे हुओं के ज़िंदा होने की शिक्षा क्यों इतनी अहम है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

अगर कोई आपसे पूछे कि आप किन मुख्य शिक्षाओं को मानते हैं, तो आप क्या कहेंगे? बेशक आप कहेंगे कि मैं मानता हूँ कि यहोवा सृष्टिकर्ता है, उसी ने हमें जीवन दिया है, यीशु ने हमारे लिए फिरौती बलिदान दिया है और भविष्य में हम धरती पर हमेशा के लिए जीएँगे। लेकिन क्या आप कहेंगे कि मरे हुओं के ज़िंदा होने की शिक्षा, मुख्य शिक्षाओं में से एक है?

2 यह शिक्षा हमारे लिए एक मुख्य शिक्षा होनी चाहिए फिर चाहे हम महा-संकट से ज़िंदा बचकर धरती पर हमेशा जीने की आस लगाए हुए हों। प्रेषित पौलुस ने बताया कि यह शिक्षा क्यों इतनी अहम है। उसने कहा, “अगर मरे हुओं को ज़िंदा नहीं किया जाएगा, तो इसका मतलब मसीह को भी मरे हुओं में से ज़िंदा नहीं किया गया है।” अगर यीशु को ज़िंदा नहीं किया गया, तो इसका मतलब है कि वह स्वर्ग में राज नहीं कर रहा और उस राज के बारे में हमारा प्रचार करना व्यर्थ है। (1 कुरिंथियों 15:12-19 पढ़िए।) लेकिन हम जानते हैं कि यीशु को ज़िंदा किया गया था और हमें इस बात पर पूरा यकीन है। हम यीशु के ज़माने के उन सदूकियों की तरह नहीं, जो इस बात से इनकार करते थे कि मरे हुए दोबारा ज़िंदा होंगे। चाहे दूसरे हमारा मज़ाक भी उड़ाएँ फिर भी हमें पक्का विश्वास है कि परमेश्वर मरे हुओं को ज़िंदा करेगा।​—मर. 12:18; प्रेषि. 4:2, 3; 17:32; 23:6-8.

3 जब पौलुस “मसीह के बारे में बुनियादी शिक्षाओं” की बात कर रहा था, तो उसने बताया कि “मरे हुओं के ज़िंदा होने” की शिक्षा इनमें से एक है। (इब्रा. 6:1, 2) उसने ज़ोर देकर कहा कि उसे इस शिक्षा पर पूरा विश्वास है। (प्रेषि. 24:10, 15, 24, 25) हालाँकि सच्चाई सीखते वक्‍त हमने इस शिक्षा के बारे में जाना था, फिर भी यह ज़रूरी है कि हम इसके बारे में गहराई से अध्ययन करें। (इब्रा. 5:12) हमें ऐसा क्यों करना चाहिए?

4. मरे हुओं के ज़िंदा होने के बारे में कौन-से सवाल उठ सकते हैं?

4 सच्चाई सीखते वक्‍त लोग अकसर बाइबल के उन ब्यौरों को पढ़ते हैं जिनमें मरे हुओं को ज़िंदा किया गया था जैसे लाज़र का ब्यौरा। वे यह भी सीखते हैं कि अब्राहम, अय्यूब और दानियेल को इस वादे पर यकीन था कि भविष्य में मरे हुए फिर से ज़िंदा होंगे। लेकिन अगर कोई आपसे कहे, “मैं कैसे मान लूँ कि सदियों पहले किया यह वादा पूरा होगा? क्या आप मुझे बाइबल से कोई सबूत दे सकते हैं?” ऐसे में आप उससे क्या कहेंगे? क्या बाइबल यह भी बताती है कि भविष्य में कब मरे हुओं को ज़िंदा किया जाएगा? इन सवालों के जवाब जानने से हमारा विश्वास मज़बूत होगा।

वादा जो सदियों बाद पूरा हुआ

5. हम पहले क्या चर्चा करेंगे?

5 हमारे लिए शायद यह कल्पना करना आसान हो कि एक व्यक्‍ति के मरने के तुरंत बाद उसे ज़िंदा किया गया। (यूह. 11:11; प्रेषि. 20:9, 10) लेकिन अगर एक शख्स के बारे में यह वादा किया जाता है कि उसे सैकड़ों साल बाद ज़िंदा किया जाएगा, तो क्या आप उस वादे पर भरोसा करेंगे? चाहे वह शख्स हाल ही में मरा हो या उसे मरे हुए बहुत साल हो चुके हों, क्या उस वादे पर आपका भरोसा बना रहेगा? दरअसल आप एक ऐसे ही शख्स के ज़िंदा होने पर यकीन करते हैं। आइए पहले देखें कि वह शख्स कौन है। उसके ज़िंदा होने से कैसे आपको यह आशा मिलती है कि भविष्य में मरे हुओं को ज़िंदा किया जाएगा?

6. भजन 118 में कही बात यीशु पर कैसे पूरी हुई?

6 आइए भजन 118 पर गौर करें जिसे शायद दाविद ने लिखा था। इसकी मदद से हम एक ऐसे शख्स के बारे में जानेंगे जिसके ज़िंदा होने की बात सदियों पहले बतायी गयी थी। इस भजन में लिखा है, “हे यहोवा, हमें बचा ले, हमारा गिड़गिड़ाना सुन ले! . . . धन्य है वह जो यहोवा के नाम से आता है।” ये शब्द मसीहा के बारे में कहे गए थे और अपनी मौत से कुछ दिन पहले यानी नीसान 9 के दिन जब यीशु यरूशलेम में दाखिल हुआ तो लोगों ने इन्हीं शब्दों को दोहराया। (भज. 118:25, 26; मत्ती 21:7-9) लेकिन सैकड़ों साल पहले लिखे भजन 118 से कैसे पता चलता है कि यीशु को मरे हुओं में से ज़िंदा किया जाता? ज़रा इसी भजन की एक आयत पर गौर कीजिए, जिससे इसका सुराग मिलता है। वहाँ लिखा है, “जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने ठुकरा दिया, वही कोने का मुख्य पत्थर बन गया है।”​—भज. 118:22.

मसीहा को “राजमिस्त्रियों ने ठुकरा दिया” (पैराग्राफ 7 देखिए)

7. यहूदियों ने किस तरह यीशु को ठुकराया?

7 मसीहा को ठुकरानेवाले ‘राजमिस्त्री’ कोई और नहीं बल्कि यहूदी अगुवे थे। उन्होंने किस तरह उसे ठुकराया? उन्होंने उसे मसीह मानने से इनकार कर दिया। यही नहीं, उन्होंने पीलातुस से माँग की कि उसे मार डाला जाए। (लूका 23:18-23) जी हाँ, वे यीशु की मौत के लिए ज़िम्मेदार थे।

परमेश्वर ने यीशु को ज़िंदा किया और वह “कोने का मुख्य पत्थर” बन गया (पैराग्राफ 8, 9 देखिए)

8. यीशु किस तरह “कोने का मुख्य पत्थर” बन गया?

8 ज़रा सोचिए, अगर यीशु को ठुकराया गया और मार डाला गया, तो फिर वह कैसे “कोने का मुख्य पत्थर” बना? यह तभी हो सकता था जब उसे फिर से ज़िंदा किया जाता। यीशु को किस तरह ठुकराया जाता और मार डाला जाता, यह समझाने के लिए यीशु ने बाग के एक मालिक की मिसाल दी। बाग के मालिक ने कुछ दासों को उन बागबानों के पास भेजा, जो उसके खेत में काम करते थे। बागबानों ने उन दासों के साथ बुरा सलूक किया। आखिर में उसने यह सोचकर अपने बेटे को भेजा कि बागबान कम-से-कम उसकी बात सुनेंगे। मगर बागबानों ने क्या किया? उन्होंने बेटे को जान से मार डाला। यह कहानी बताने के बाद, यीशु ने भजन 118:22 में दी भविष्यवाणी का हवाला दिया। (लूका 20:9-17) इसी भविष्यवाणी का हवाला प्रेषित पतरस ने भी दिया। ‘यरूशलेम में यहूदियों के धर्म-अधिकारी, मुखिया और शास्त्रियों’ से बात करते वक्‍त उसने कहा, “यीशु मसीह नासरी [को] . . . तुमने काठ पर लटकाकर मार डाला था, मगर जिसे परमेश्वर ने मरे हुओं में से ज़िंदा कर दिया।” पतरस ने यह भी कहा, “यीशु ही ‘वह पत्थर है जिसे राजमिस्त्रियों ने बेकार समझा, मगर वही कोने का मुख्य पत्थर बन गया।’”​—प्रेषि. 3:15; 4:5-11; 1 पत. 2:5-7.

9. भजन 118:22 में कौन-सी अनोखी घटना के बारे में बताया गया था?

9 इससे साफ पता चलता है कि सैकड़ों साल पहले भजन 118:22 में बताया गया था कि मसीहा को मरे हुओं में से ज़िंदा किया जाएगा। भविष्यवाणी में कहा गया था कि उसे ठुकराया जाएगा और मार डाला जाएगा। इसके बाद, उसे ज़िंदा किया जाएगा और वह कोने का मुख्य पत्थर बन जाएगा और ऐसा ही हुआ। यीशु के ज़िंदा किए जाने के बाद वह अकेला ऐसा शख्स है जिसे ‘परमेश्वर ने हमें उद्धार दिलाने के लिए चुना है।’​—प्रेषि. 4:12; इफि. 1:20.

10. (क) भजन 16:10 में क्या भविष्यवाणी की गयी? (ख) हम कैसे जानते हैं कि भजन 16:10 में दाविद की बात नहीं की गयी है?

10 अब आइए एक और आयत पर गौर करें जिसमें किसी के ज़िंदा होने की बात की गयी थी। यह भविष्यवाणी एक हज़ार साल बाद जाकर पूरी हुई। इससे हमारा यकीन बढ़ता है कि ज़िंदा किए जाने का वादा सैकड़ों साल बाद भी पूरा हो सकता है। भजन 16 में हम दाविद के ये शब्द पढ़ते हैं, “तू मुझे कब्र में नहीं छोड़ देगा। तू अपने वफादार जन को गड्ढे में पड़े रहने नहीं देगा।” (भज. 16:10) यहाँ दाविद अपनी बात नहीं कर रहा था। परमेश्वर का वचन साफ बताता है कि दाविद बूढ़ा हुआ, फिर उसकी “मौत हो गयी और उसे दाविदपुर में दफनाया गया।” (1 राजा 2:1, 10) तो फिर दाविद किसकी बात कर रहा था?

11. पतरस ने भजन 16:10 के बारे में कब समझाया?

11 इस भजन के लिखे जाने के हज़ार साल बाद, पतरस ने कई यहूदियों और यहूदी धर्म अपनानेवालों के सामने भाषण दिया। यह उस वक्‍त की बात है जब यीशु को मरे और ज़िंदा हुए कुछ ही हफ्ते हुए थे। अपने भाषण में पतरस ने समझाया कि भजन 16:10 में किसकी बात की गयी है। (प्रेषितों 2:29-32 पढ़िए।) उसने सुननेवालों को याद दिलाया कि दाविद की मौत हुई और उसे कब्र में दफनाया गया। फिर उसने कहा कि दाविद मसीहा के ‘ज़िंदा होने के बारे में पहले से जानता था और उसने इस बारे में बताया भी।’ बाइबल नहीं बताती कि किसी ने पतरस की इस बात पर एतराज़ जताया।

12. भजन 16:10 की बात किस तरह पूरी हुई? इससे हमें मरे हुओं के ज़िंदा होने के बारे में क्या भरोसा मिलता है?

12 पतरस ने अपनी बात को पुख्ता करने के लिए भजन 110:1 का हवाला दिया जो दाविद ने लिखा था। (प्रेषितों 2:33-36 पढ़िए।) पतरस ने शास्त्र से जिस तरह तर्क किया उससे वहाँ मौजूद भीड़ को यकीन हो गया कि यीशु ही “प्रभु और मसीह” है। लोगों को समझ में आ गया कि भजन 16:10 में लिखी बात तब पूरी हुई जब यीशु को मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया। इसके कुछ समय बाद, पौलुस ने पिसिदिया के अंताकिया शहर में यहूदियों से बात करते वक्‍त यही तर्क पेश किया। इसका उन पर इतना असर हुआ कि वे इस बारे में और सुनना चाहते थे। (प्रेषितों 13:32-37, 42 पढ़िए।) इससे हमारा भी भरोसा बढ़ता है कि यीशु के ज़िंदा होने के बारे में की गयी भविष्यवाणियाँ सचमुच भरोसेमंद हैं, भले ही ये सैकड़ों साल बाद पूरी हुईं।

मरे हुओं को कब ज़िंदा किया जाएगा?

13. मरे हुओं के ज़िंदा होने के बारे में कौन-से सवाल उठ सकते हैं?

13 हमने देखा कि चाहे एक इंसान के ज़िंदा होने का वादा सैकड़ों साल पहले किया गया हो, फिर भी हम उस वादे पर भरोसा कर सकते हैं। लेकिन कुछ लोग शायद पूछें, ‘क्या इसका मतलब है कि मेरे अपने जो नहीं रहे, उनसे मिलने के लिए मुझे कई साल इंतज़ार करना होगा? मरे हुओं को कब ज़िंदा किया जाएगा?’ ध्यान दीजिए कि यीशु ने प्रेषितों से कहा कि ऐसी कुछ बातें हैं जिन्हें वे नहीं जानते और न ही जान सकते हैं। उसने कहा, ‘समय या दौर को जानने का अधिकार पिता ने अपने अधिकार में रखा है।’ (प्रेषि. 1:6, 7; यूह. 16:12) लेकिन हमें जो थोड़ी-बहुत जानकारी दी गयी है, उससे पता चलता है कि मरे हुए कब ज़िंदा किए जाएँगे।

14. यीशु का ज़िंदा किया जाना क्यों अलग था?

14 बाइबल में जिन लोगों के ज़िंदा किए जाने की घटनाएँ दर्ज़ हैं उनमें सबसे अहम घटना है, यीशु का मरे हुओं में से ज़िंदा किया जाना। अगर उसे ज़िंदा नहीं किया जाता, तो हमारे पास कोई उम्मीद नहीं होती कि हम अपने मरे हुए अज़ीज़ों से दोबारा मिल पाएँगे। यीशु से पहले जिन लोगों को ज़िंदा किया गया था वे हमेशा तक नहीं जीए। एलियाह और एलीशा ने जिन्हें ज़िंदा किया वे बाद में मर गए और मिट्टी में मिल गए। लेकिन यीशु “जिसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया है दोबारा नहीं मरेगा, अब मौत का उस पर कोई अधिकार नहीं।” वह स्वर्ग में “हमेशा-हमेशा के लिए” जीवित है।​—रोमि. 6:9; प्रका. 1:5, 18; कुलु. 1:18; 1 पत. 3:18.

15. यीशु को “पहला फल” क्यों कहा गया है?

15 यीशु ही वह पहला शख्स था जिसे मरने के बाद स्वर्ग में जीवन मिला और यह सबसे अहम घटना थी। (प्रेषि. 26:23) लेकिन वह अकेला ऐसा शख्स नहीं था। यीशु ने अपने वफादार प्रेषितों से वादा किया कि वे भी उसके साथ स्वर्ग में राज करेंगे। (लूका 22:28-30) मगर उन्हें अपनी मौत के बाद ही यह इनाम मिलता। यीशु की तरह उन्हें स्वर्ग में जीवन मिलता। पौलुस ने लिखा, “मसीह को मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया है और जो मौत की नींद सो गए हैं उनमें वह पहला फल है।” उसने बताया कि ऐसे और भी लोग होंगे जिन्हें स्वर्ग में जीने के लिए ज़िंदा किया जाएगा। उसने कहा, “हर कोई एक सही क्रम में: पहले मसीह जो पहला फल है। इसके बाद वे जो मसीह के हैं, उसकी मौजूदगी के दौरान ज़िंदा किए जाएँगे।”​—1 कुरिं. 15:20, 23.

16. यीशु के साथ राज करनेवालों को कब स्वर्ग में जीवन मिलता?

16 पौलुस के शब्दों से पता चलता है कि यीशु के साथ जो राज करेंगे, उन्हें कब स्वर्ग में जीवन मिलेगा। यह मसीह की मौजूदगी के दौरान होगा। सालों से यहोवा के साक्षी बाइबल से यह बताते आए हैं कि मसीह की “मौजूदगी” 1914 में शुरू हुई। हम उसकी “मौजूदगी” के वक्‍त में जी रहे हैं और शैतान की दुष्ट दुनिया का अंत बहुत करीब है।

17, 18. मसीह की मौजूदगी के दौरान कुछ अभिषिक्‍त मसीहियों के साथ क्या होगा?

17 जिन्हें स्वर्ग में जीवन मिलेगा, उनके बारे में बाइबल बताती है, ‘हम नहीं चाहते कि तुम इस बात से अनजान रहो कि जो मौत की नींद सो रहे हैं उनका भविष्य क्या है। अगर हमें विश्वास है कि यीशु मरा और ज़िंदा किया गया, तो हमें यह भी विश्वास है कि जो लोग मौत की नींद सो गए हैं उन्हें परमेश्वर ज़िंदा करेगा। हममें से जो प्रभु की मौजूदगी के दौरान जी रहे होंगे, हम किसी भी हाल में उनसे आगे नहीं बढ़ेंगे जो मौत की नींद सो चुके हैं। क्योंकि प्रभु खुद दमदार आवाज़ से पुकार लगाता हुआ स्वर्ग से उतरेगा और जो मसीह के साथ एकता में मर गए हैं वे पहले ज़िंदा होंगे। इसके बाद हम जो ज़िंदा हैं और जो बचे रहेंगे, हम उनके साथ बादलों में उठा लिए जाएँगे ताकि हम हवा में प्रभु से मिलें। इस तरह हम हमेशा प्रभु के साथ रहेंगे।’​—1 थिस्स. 4:13-17.

18 मसीह की मौजूदगी के शुरू होने के कुछ ही समय बाद अभिषिक्‍त जनों को स्वर्ग में जीवन मिलने लगता। महा-संकट के दौरान जो अभिषिक्‍त जन धरती पर बचे रहेंगे उन्हें “बादलों में उठा” लिया जाएगा। (मत्ती 24:31) इसका क्या मतलब है? यही कि वे “मौत की नींद नहीं सोएँगे” यानी मरने के बाद उन्हें ज़िंदा होने के लिए लंबे समय तक इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। वे ‘पल-भर में पलक झपकते ही आखिरी तुरही फूँकने के दौरान बदल जाएँगे।’​—1 कुरिं. 15:51, 52.

19. भविष्य में लोग किस मायने में ‘बेहतर तरीके से ज़िंदा किए जाएँगे’?

19 आज वफादार मसीहियों में से ज़्यादातर अभिषिक्‍त नहीं हैं और उन्हें मसीह के साथ राज करने के लिए नहीं चुना गया है। वे ‘यहोवा के दिन’ का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं जब वह इस दुष्ट दुनिया का नाश कर देगा। कोई नहीं जानता कि यह ठीक कब होगा, लेकिन सबूत दिखाते हैं कि वह दिन बहुत करीब है। (1 थिस्स. 5:1-3) नयी दुनिया में परमेश्वर धरती पर जीने के लिए मरे हुओं को ज़िंदा करेगा। बीते ज़माने में जिन्हें ज़िंदा किया गया था वे दोबारा मर गए, लेकिन इन लोगों को मरना नहीं पड़ेगा। वह क्यों? क्योंकि इन्हें आशा है कि वे परिपूर्ण हो जाएँगे और कभी नहीं मरेंगे। इस मायने में कहा जा सकता है कि वे ‘बेहतर तरीके से ज़िंदा किए जाएँगे।’​—इब्रा. 11:35.

20. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि मरे हुओं को ज़िंदा करने का काम संगठित तरीके से होगा?

20 बाइबल बताती है कि स्वर्ग में जीवन पानेवालों को “एक सही क्रम में” ज़िंदा किया जाएगा। (1 कुरिं. 15:23) इसलिए हम यकीन रख सकते हैं कि धरती पर जब मरे हुओं को ज़िंदा किया जाएगा तो यह काम संगठित तरीके से होगा। इस बारे में शायद हमारे मन में कुछ सवाल उठें। जैसे, जब मसीह का हज़ार साल का शासन शुरू होगा, तो क्या पहले वे लोग ज़िंदा किए जाएँगे जो हाल में मरे हैं ताकि उनके अपने उन्हें पहचान सकें और उनका स्वागत कर सकें? क्या बीते ज़माने के वफादार और काबिल अगुवों को पहले ज़िंदा किया जाएगा ताकि वे नयी दुनिया में लोगों को संगठित करने में हाथ बँटा सकें? उन लोगों के बारे में क्या जिन्होंने कभी यहोवा की सेवा नहीं की? उन्हें कब और कहाँ ज़िंदा किया जाएगा? इस तरह के ढेरों सवाल हमारे मन में उठ सकते हैं। लेकिन हमें आज इनके बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं। अच्छा होगा कि हम इनके जवाब पाने के लिए नयी दुनिया का इंतज़ार करें। तब हम खुद अपनी आँखों से देखेंगे कि यहोवा कैसे सारे मामलों को निपटाएगा। वाकई वह क्या ही रोमांचक समय होगा!

21. आप क्या आशा रखते हैं?

21 उस समय के आने तक आइए हम यहोवा पर अपना विश्वास मज़बूत करते जाएँ। उसने यीशु के ज़रिए वादा किया है कि वह मरे हुओं को कभी नहीं भूलेगा, उन्हें फिर से ज़िंदा करेगा। (यूह. 5:28, 29; 11:23) यहोवा ऐसा ज़रूर करेगा, इसका एक और सबूत हमें यीशु की कही बात से मिलता है। उसने कहा कि अब्राहम, इसहाक और याकूब “सब [यहोवा की] नज़र में ज़िंदा हैं।” (लूका 20:37, 38) प्रेषित पौलुस की तरह हमारे पास भी यह कहने की ढेरों वजह हैं, ‘मैं परमेश्वर से यह आशा रखता हूँ कि लोगों को मरे हुओं में से ज़िंदा किया जाएगा।’​—प्रेषि. 24:15.