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नौजवानो, आपका सृष्टिकर्ता चाहता है कि आप खुश रहें!

नौजवानो, आपका सृष्टिकर्ता चाहता है कि आप खुश रहें!

“वह ज़िंदगी-भर [तुझे] अच्छी चीज़ों से संतुष्ट करता है।”​भज. 103:5.

गीत: 135, 39

1, 2. ज़िंदगी के बारे में अहम फैसले करते वक्‍त नौजवानों को अपने सृष्टिकर्ता की क्यों सुनना चाहिए? (लेख की शुरूआत में दी तसवीरें देखिए।)

अगर आप नौजवान हैं, तो शायद बहुत-से लोग आपको सलाह देते हों कि आपको ज़िंदगी में क्या करना चाहिए। हो सकता है आपके टीचर, सलाहकार या दूसरे लोग आपको बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ हासिल करने या ऐसा करियर चुनने का बढ़ावा दें जिससे आप खूब पैसा कमा सकें। लेकिन यहोवा उन लोगों से बिलकुल अलग है। बेशक यहोवा चाहता है कि आप स्कूल में मेहनत करें, क्योंकि तभी आप रोज़ी-रोटी कमाने के लायक बन पाएँगे। (कुलु. 3:23) लेकिन वह यह भी जानता है कि इस उम्र में आपको कुछ अहम फैसले लेने हैं, जिनका असर आपके भविष्य पर पड़ेगा। इसलिए वह चाहता है कि आप उसके दिए सिद्धांतों पर चलकर सही फैसले करें और इन आखिरी दिनों में ऐसी ज़िंदगी जीएँ, जिससे वह खुश हो।​—मत्ती 24:14.

2 याद रखिए कि यहोवा सबकुछ जानता है। उसे पता है कि भविष्य में क्या होनेवाला है और वह ठीक-ठीक जानता है कि अंत कितना करीब है। (यशा. 46:10; मत्ती 24:3, 36) यहोवा आपको  भी अच्छी तरह जानता है। उसे मालूम है कि किस बात से आपको खुशी मिलेगी और किस बात से नहीं। इस वजह से अगर इंसानों की सलाह परमेश्‍वर के वचन पर आधारित न हो, तो वह बुद्धि-भरी नहीं हो सकती, फिर चाहे वह सलाह सुनने में सही क्यों न लगे।​—नीति. 19:21.

बुद्धि यहोवा से ही मिलती है

3, 4. गलत सलाह मानने से आदम-हव्वा और उनके बच्चों को क्या अंजाम भुगतना पड़ा?

3 इंसानों को शुरू से ही गलत सलाह मिलती आयी है। इसकी शुरूआत शैतान ने की। उसने हव्वा से कहा कि अगर वह और आदम अपनी ज़िंदगी का फैसला खुद करें, तो वे ज़्यादा खुश रहेंगे। (उत्प. 3:1-6) मगर शैतान तो बस अपना मतलब पूरा करना चाहता था! वह चाहता था कि आदम-हव्वा और उनकी आनेवाली संतान यहोवा की नहीं, बल्कि उसकी  बात मानें और उसकी  उपासना करें। लेकिन उसने इंसानों के लिए कुछ नहीं किया था। आदम और हव्वा के पास जो कुछ था, वह सब यहोवा का दिया हुआ था। उसी की वजह से उन्हें एक-दूसरे का साथ मिला, रहने के लिए खूबसूरत बगीचा और परिपूर्ण शरीर मिला, जिससे वे हमेशा तक ज़िंदा रह सकते थे।

4 मगर दुख की बात है कि आदम और हव्वा ने यहोवा की आज्ञा नहीं मानी। उन्होंने जीवन देनेवाले से अपना नाता तोड़ लिया। इसका अंजाम बहुत भयानक हुआ! जिस तरह डाली से टूटने पर फूल मुरझा जाते हैं, उसी तरह आदम और हव्वा धीरे-धीरे बूढ़े होने लगे और फिर मर गए। उनके बच्चों का भी यही अंजाम हुआ और हमारे साथ भी ऐसा ही होता है। (रोमि. 5:12) आज ज़्यादातर लोग परमेश्‍वर की बातों पर ध्यान नहीं देते और अपनी मन-मरज़ी करते हैं। (इफि. 2:1-3) उन्हें जो अंजाम भुगतने पड़ते हैं, उससे साफ पता चलता है कि यहोवा के खिलाफ जाना बुद्धिमानी नहीं है।​—नीति. 21:30.

5. यहोवा को इंसानों के बारे में क्या यकीन था और उसका यह यकीन करना क्या सही था?

5 यहोवा को यकीन था कि कुछ लोग ऐसे भी होंगे, जो उसे जानना चाहेंगे और उसकी सेवा करना चाहेंगे। इनमें बहुत-से नौजवान भी होंगे। (भज. 103:17, 18; 110:3) ये नौजवान यहोवा के लिए बहुत अनमोल हैं! क्या आप उनमें से एक हैं? अगर हाँ, तो आप ज़रूर यहोवा से मिलनेवाली कई “अच्छी चीज़ों” का आनंद ले रहे होंगे और इससे आपकी ज़िंदगी और भी खुशनुमा हो गयी होगी। (भजन 103:5 पढ़िए; नीति. 10:22) अब हम इनमें से चार चीज़ों के बारे में चर्चा करेंगे। वे हैं, परमेश्‍वर से मिलनेवाला भोजन, अच्छे दोस्त, बढ़िया लक्ष्य और सच्ची आज़ादी।

परमेश्‍वर से मिलनेवाला तरह-तरह का भोजन

6. (क) आपको जिस ज़रूरत के साथ बनाया गया है, उसे क्यों पूरा करना चाहिए? (ख) यह ज़रूरत पूरी करने के लिए यहोवा ने क्या किया है?

6 हम इंसान जानवरों से अलग हैं, हमें इस ज़रूरत के साथ बनाया गया है कि हम अपने सृष्टिकर्ता को जानें। (मत्ती 4:4) परमेश्‍वर को जानने और उसकी सुनने से हमें अंदरूनी समझ, बुद्धि और खुशी मिलती है। यीशु ने कहा था, “सुखी हैं वे जिनमें परमेश्‍वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है।” (मत्ती 5:3) परमेश्‍वर ने हमें अपना वचन बाइबल दिया है। वह “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए हमें प्रकाशन भी देता है। (मत्ती 24:45) इन प्रकाशनों को हम परमेश्‍वर से मिलनेवाला भोजन कहते हैं, क्योंकि इनसे हमें अपना विश्‍वास बढ़ाने और यहोवा के साथ रिश्‍ता मज़बूत करने के लिए ज़रूरी पोषण मिलता है। हम कितने खुश हैं कि यहोवा हमारे लिए तरह-तरह का भोजन तैयार करता है!​—यशा. 65:13, 14.

7. परमेश्‍वर से मिलनेवाला भोजन लेने से कौन-से फायदे होते हैं?

7 परमेश्‍वर से मिलनेवाला भोजन लेने से आप बुद्धि पा सकते हैं और अपने अंदर सोचने-समझने की काबिलीयत बढ़ा सकते हैं। इससे कई तरीकों से आपकी हिफाज़त होगी। (नीतिवचन 2:10-14 पढ़िए।) वह कैसे? आप कई झूठी धारणाओं को पहचान पाएँगे। जैसे, यह कि कोई सृष्टिकर्ता नहीं है या यह कि पैसा और ऐशो-आराम की चीज़ें होने से आप खुश रहेंगे। यही नहीं, आप ऐसी ख्वाहिशों या आदतों से भी बचे रहेंगे, जो आपको नुकसान पहुँचा सकती हैं। इस वजह से बुद्धिमान बनने और सोचने-समझने की काबिलीयत बढ़ाने की पूरी कोशिश कीजिए। तब आप खुद देख पाएँगे कि यहोवा आपसे कितना प्यार करता है और आपकी भलाई चाहता है।​—भज. 34:8; यशा. 48:17, 18.

8. (क) अभी से परमेश्‍वर के करीब आना क्यों ज़रूरी है? (ख) यह बात आनेवाले समय का सामना करने में कैसे आपकी मदद करेगी?

8 बहुत जल्द शैतान की दुनिया का हर हिस्सा नष्ट हो जाएगा। उस वक्‍त सिर्फ यहोवा हमारी हिफाज़त कर पाएगा और हमें ज़रूरी चीज़ें दे पाएगा। शायद एक वक्‍त ऐसा आए कि हमें खाने के लिए भी उसी पर निर्भर रहना हो। (हब. 3:2, 12-19) इस वजह से यह कितना ज़रूरी है कि आप अभी से परमेश्‍वर के करीब आएँ और उस पर भरोसा बढ़ाएँ। (2 पत. 2:9) अगर आप ऐसा करें, तो आनेवाले समय में हालात चाहे जैसे भी हों, आप दाविद की तरह महसूस करेंगे, जिसने कहा था, “मैं हर पल यहोवा को अपनी नज़रों के सामने रखता हूँ। वह मेरे दायीं तरफ रहता है, इसलिए मैं कभी हिलाया नहीं जा सकता।”​—भज. 16:8.

यहोवा आपको सबसे अच्छे दोस्त देता है

9. (क) यूहन्‍ना 6:44 के मुताबिक यहोवा क्या करता है? (ख) दूसरों से पहली बार मिलने और साक्षियों से पहली बार मिलने में क्या फर्क होता है?

9 जब आप पहली बार किसी से मिलते हैं जो सच्चाई में नहीं है, तो आप उसके बारे में क्या जानते हैं? शायद आपको सिर्फ उसका नाम पता हो या यह कि वह दिखने में कैसा है। लेकिन वहीं जब आप किसी साक्षी से पहली बार मिलते हैं, तो आप उसके बारे में काफी कुछ जानते हैं। आप जानते हैं कि वह यहोवा से प्यार करता है। आप यह भी जानते हैं कि यहोवा ने उसमें कुछ अच्छा देखा है और इस वजह से उसे अपने उपासकों के परिवार का हिस्सा बनाया है। (यूहन्‍ना 6:44 पढ़िए।) वह साक्षी चाहे जहाँ से भी हो या उसकी परवरिश जैसे भी माहौल में हुई हो, आप उसके बारे में बहुत कुछ जानते हैं और वह भी आपके बारे में काफी कुछ जानता है।

यहोवा चाहता है कि आप सबसे अच्छे दोस्त बनाएँ और बढ़िया लक्ष्य रखें (पैराग्राफ 9-12 देखिए)

10, 11. (क) यहोवा के लोगों में कौन-सी बातें एक समान होती हैं? (ख) इस बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?

10 किसी साक्षी से मिलते ही आप समझ जाते हैं कि आप दोनों में कई बातें एक समान हैं। भले ही आप एक-दूसरे की भाषा न जानते हों, मगर सच्चाई की “शुद्ध भाषा” आप दोनों बोलते हैं। (सप. 3:9) इसका मतलब है कि आप दोनों परमेश्‍वर पर विश्‍वास करते हैं, आपके नैतिक स्तर एक जैसे हैं और भविष्य के बारे में आप दोनों की एक ही आशा है। इन बातों की वजह से आप एक-दूसरे पर भरोसा करने लगते हैं और आपके बीच ऐसी गहरी दोस्ती हो जाती है, जो हमेशा कायम रहेगी।

11 तो फिर यह कहना गलत नहीं होगा कि यहोवा की उपासना करने की वजह से आप सबसे अच्छे दोस्त बना पाते हैं। ऐसे दोस्त पूरी दुनिया में पाए जाते हैं, फिर चाहे आप उनसे मिले भी न हों! ऐसे दोस्त होना सच में किसी अनमोल तोहफे से कम नहीं! यहोवा के लोगों के अलावा क्या किसी और को ऐसा तोहफा मिला है?

यहोवा बढ़िया लक्ष्य रखने में आपकी मदद करता है

12. आप कौन-से बढ़िया लक्ष्य रख सकते हैं?

12 सभोपदेशक 11:9–12:1 पढ़िए। क्या आपने परमेश्‍वर की सेवा में कोई लक्ष्य रखा है, जिसे पाने की आप कोशिश कर रहे हैं? शायद आपने लक्ष्य रखा हो कि आप हर दिन बाइबल पढ़ेंगे या सभाओं में मिलनेवाले भागों और जवाबों की अच्छी तैयारी करेंगे। या हो सकता है, आपका लक्ष्य हो कि आप प्रचार में बाइबल का कुशलता से इस्तेमाल करेंगे। जब आप देखते हैं कि ये लक्ष्य पाने में आप कामयाब हो रहे हैं या जब दूसरे आपकी तारीफ करते हैं, तो आपको कैसा लगता है? आपको खुशी होती होगी और होनी भी चाहिए। वह इसलिए कि आप यीशु की तरह वही कर रहे हैं, जो यहोवा आपसे चाहता है।​—भज. 40:8; नीति. 27:11.

13. दुनिया में लक्ष्य पाने के बजाय परमेश्‍वर की सेवा करना क्यों ज़्यादा अच्छा है?

13 जब आप अपना पूरा ध्यान यहोवा की सेवा में लगाते हैं, तो इससे आपको सच्ची खुशी और जीने का एक मकसद मिलता है। पौलुस ने सलाह दी, “अटल बनो, डटे रहो और प्रभु की सेवा में हमेशा तुम्हारे पास बहुत काम हो, क्योंकि तुम जानते हो कि प्रभु में तुम्हारी कड़ी मेहनत बेकार नहीं है।” (1 कुरिं. 15:58) वहीं जब लोग दुनिया में लक्ष्य पाने की कोशिश करते हैं, तो उन्हें सच्ची खुशी नहीं मिलती। अगर ऐसा लगे भी कि वे पैसा या नाम कमाने में कामयाब हुए हैं, तब भी हकीकत यह होती है कि वे खालीपन महसूस करते हैं। (लूका 9:25) यह बात हम राजा सुलैमान के उदाहरण से अच्छी तरह समझ सकते हैं।​—रोमि. 15:4.

14. सुलैमान ने जो किया, उससे आपको क्या सीख मिलती है?

14 राजा सुलैमान बहुत अमीर और ताकतवर था। वह यह आज़माकर देखना चाहता था कि क्या दौलत और ताकत से उसे खुशी मिल सकती है। उसने खुद से कहा, “चल मौज-मस्ती करें, देखें तो सही इससे कुछ फायदा होता है या नहीं।” (सभो. 2:1-10) इस वजह से उसने आलीशान घर बनवाए, सुंदर-सुंदर बाग-बगीचे लगवाए और जो चाहा वह किया। क्या इन सबसे उसे खुशी और संतुष्टि मिली? जब उसने अपने सब कामों के बारे में सोचा, तो वह इस नतीजे पर पहुँचा, “सब व्यर्थ है . . . दुनिया में कुछ भी करने का फायदा नहीं।” (सभो. 2:11) सुलैमान ने क्या ही बढ़िया सीख दी! क्या आप इस पर ध्यान देंगे?

15. विश्‍वास होना क्यों ज़रूरी है और भजन 32:8 के मुताबिक इसके क्या फायदे हैं?

15 कुछ लोग गलतियाँ करने और अंजाम भुगतने पर ही सबक सीखते हैं। नौजवानो, यहोवा नहीं चाहता कि आपके साथ ऐसा हो। वह चाहता है कि आप उसकी सुनें और उसकी बात मानें। इसके लिए विश्‍वास होना ज़रूरी है। विश्‍वास की वजह से आप ज़िंदगी में जो फैसले लेंगे, उनका आपको कभी  अफसोस नहीं होगा। यही नहीं, यहोवा कभी  ‘उस प्यार को नहीं भूलेगा जो आपको उसके नाम के लिए है।’ (इब्रा. 6:10) इस वजह से अपना विश्‍वास मज़बूत करते रहिए। फिर आप ज़िंदगी में सही फैसले कर पाएँगे और खुद देख पाएँगे कि आपका पिता यहोवा आपकी भलाई चाहता है।​—भजन 32:8 पढ़िए।

परमेश्‍वर आपको सच्ची आज़ादी देता है

16. हमें अपनी आज़ादी का सोच-समझकर इस्तेमाल क्यों करना चाहिए?

16 पौलुस ने लिखा, “जहाँ यहोवा की पवित्र शक्‍ति है, वहाँ आज़ादी है।” (2 कुरिं. 3:17) यहोवा को आज़ादी से बहुत लगाव है और उसने आपको इस तरह बनाया कि आपको भी आज़ादी से लगाव हो। लेकिन वह चाहता है कि आप अपनी आज़ादी का सोच-समझकर इस्तेमाल करें, ताकि आपको कोई नुकसान न हो। हो सकता है कि आपकी उम्र के बच्चे अश्‍लील तसवीरें देखें, सेक्स करें, खतरनाक खेलों में भाग लें, शराब पीएँ या ड्रग्स लें। शुरू-शुरू में ये काम शायद मज़ेदार लगें। लेकिन अकसर इनकी लत लगने, इनसे कोई बीमारी होने या जान जाने का भी खतरा होता है। सच में, बहुत भयानक अंजाम भुगतने पड़ते हैं! (गला. 6:7, 8) ये काम करनेवाले नौजवानों को शायद लगे कि वे आज़ाद हैं, लेकिन यह बस एक धोखा है।​—तीतु. 3:3.

17, 18. (क) यहोवा की बात मानने से हम कैसे सही मायनों में आज़ाद होते हैं? (ख) शुरू में आदम और हव्वा किस तरह आज के इंसानों से ज़्यादा आज़ाद थे?

17 वहीं दूसरी तरफ आप ऐसे कितने लोगों को जानते हैं, जो बाइबल के स्तरों पर चलने की वजह से  बीमार हुए हैं? ऐसा कोई भी नहीं है। इससे साफ ज़ाहिर है कि यहोवा की बात मानने से हमें अच्छी सेहत मिलती है और हम सही मायनों में आज़ाद होते हैं। (भज. 19:7-11) इसके अलावा जब आप सोच-समझकर अपनी आज़ादी का इस्तेमाल करते हैं यानी परमेश्‍वर के परिपूर्ण नियम-सिद्धांतों को मानते हैं, तो आप परमेश्‍वर और अपने माता-पिता को दिखाते हैं कि आप एक ज़िम्मेदार इंसान हैं। फिर शायद आपके माता-पिता आप पर और भरोसा करने लगें और आपको ज़्यादा आज़ादी दें। यहोवा भी वादा करता है कि बहुत जल्द वह अपने सभी वफादार सेवकों को सच्ची आज़ादी देगा और इसे बाइबल में “परमेश्‍वर के बच्चे होने की शानदार आज़ादी” बताया गया है।​—रोमि. 8:21.

18 आदम और हव्वा के पास शुरू में ऐसी ही आज़ादी थी। अदन के बाग में यहोवा ने उन्हें सिर्फ एक बात से मना किया था। उन्हें एक पेड़ का फल नहीं खाना था। (उत्प. 2:9, 17) क्या आपको लगता है कि ऐसा करके यहोवा उनके साथ ज़्यादती कर रहा था या बहुत सख्ती बरत रहा था? बिलकुल नहीं! ज़रा सोचिए, इंसानों ने कितने सारे नियम-कानून बनाए हैं और उन्हें मानने पर लोगों को मजबूर किया है, जबकि यहोवा ने आदम और हव्वा को बस एक नियम दिया था!

19. यहोवा और यीशु हमें क्या सिखा रहे हैं, ताकि हम आज़ाद लोगों की तरह जी पाएँ?

19 इंसानों के मुकाबले यहोवा ने बुद्धि से काम लिया। उसने हमें ढेर सारे नियम-कानून नहीं दिए। वह हमें बस प्यार का कानून मानना सिखाता है। वह चाहता है कि हम उसके सिद्धांतों के मुताबिक जीएँ और बुराई से नफरत करें। (रोमि. 12:9) यीशु का पहाड़ी उपदेश इस बात का अच्छा उदाहरण है। उस उपदेश में यीशु ने समझाया कि बुरे कामों की असली जड़ क्या है। (मत्ती 5:27, 28) परमेश्‍वर के राज का राजा होने के नाते यीशु नयी दुनिया में भी हमें सिखाता रहेगा, ताकि सही-गलत के बारे में हमारा नज़रिया उसके जैसा रहे। (इब्रा. 1:9) यीशु हमारे शरीर और दिमाग को भी परिपूर्ण बना देगा। ज़रा सोचिए, वह कितना अच्छा समय होगा, जब हमें न तो बुरे काम करने के लिए लुभाया जाएगा और न ही हम बुरे काम करेंगे और दुख सहेंगे! तब हम यहोवा के वादे के मुताबिक “शानदार आज़ादी” का मज़ा ले पाएँगे।

20. (क) यहोवा अपनी आज़ादी का किस तरह इस्तेमाल करता है? (ख) आप उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

20 इसका यह मतलब नहीं कि नयी दुनिया में हमारे पास पूरी आज़ादी होगी। उस वक्‍त भी कुछ सीमाएँ होंगी। हम जो भी करेंगे यहोवा और इंसानों से प्यार होने की वजह से करेंगे। जब हम हर काम प्यार की वजह से करते हैं, तो हम दरअसल यहोवा की मिसाल पर चल रहे होते हैं। यहोवा के पास पूरी आज़ादी है, फिर भी हमारे साथ व्यवहार करते वक्‍त वह जो करता है, उसकी खास वजह प्यार होता है। (1 यूह. 4:7, 8) इस वजह से यह कहना सही है कि सच्ची आज़ादी यहोवा की मिसाल पर चलने से ही मिल सकती है।

21. (क) दाविद ने यहोवा के बारे में कैसा महसूस किया? (ख) अगले लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

21 इस लेख में हमने देखा कि यहोवा ने हमें बहुत-सी अच्छी चीज़ें दी हैं, जैसे उससे मिलनेवाला भोजन, अच्छे दोस्त, बढ़िया लक्ष्य और भविष्य में शानदार आज़ादी पाने की आशा। (भज. 103:5) क्या आप इन चीज़ों के लिए यहोवा के शुक्रगुज़ार नहीं? आप शायद दाविद की तरह महसूस करें, जिसने यहोवा से प्रार्थना की और जिसके शब्द भजन 16:11 में दर्ज़ हैं, “तू मुझे ज़िंदगी की राह दिखाता है। तेरे सामने रहकर मुझे अपार सुख मिलता है, तेरे दायीं तरफ रहना मुझे सदा खुशी देता है।” अगले लेख में हम भजन 16 में दी दूसरी अनमोल सच्चाइयों के बारे में चर्चा करेंगे। इनसे आप समझ पाएँगे कि आप सबसे अच्छी ज़िंदगी कैसे पा सकते हैं।