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अध्ययन लेख 51

आप यहोवा को कितनी अच्छी तरह जानते हैं?

आप यहोवा को कितनी अच्छी तरह जानते हैं?

“तेरा नाम जाननेवाले तुझ पर भरोसा रखेंगे, हे यहोवा, जो तेरी खोज करते हैं, उन्हें तू कभी नहीं छोड़ेगा।”—भज. 9:10.

गीत 56 सच्चाई को अपना बनाएँ

लेख की एक झलक *

1-2. आंगहेलीटो के अनुभव से हम क्या सीखते हैं?

क्या आपके माता-पिता यहोवा के साक्षी हैं? अगर हाँ, तो बेशक वे यहोवा के दोस्त हैं। मगर इसका यह मतलब नहीं कि उनकी वजह से आपकी भी यहोवा से दोस्ती हो जाएगी। हम सबको खुद यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करना होगा, फिर चाहे हमारे माता-पिता यहोवा की सेवा करते हों या नहीं।

2 ज़रा भाई आंगहेलीटो पर ध्यान दीजिए। उसके परिवार में सब यहोवा के साक्षी थे। लेकिन जब वह छोटा था, तो उसे कभी नहीं लगा कि वह यहोवा के करीब है। वह कहता है, “दरअसल मेरे परिवार में सब लोग यहोवा की सेवा कर रहे थे और मैं बस उनकी देखा-देखी कर रहा था।” फिर भाई ने सोचा कि वह बाइबल पढ़ने और मनन करने में और समय बिताएगा। इसके अलावा, वह और ज़्यादा प्रार्थना करने लगा। इससे आंगहेलीटो को एहसास हुआ कि अपने प्यारे पिता यहोवा के करीब आने के लिए उसे खुद मेहनत करनी होगी। आंगहेलीटो के अनुभव से हमारे मन में कुछ सवाल उठते हैं। जैसे, यहोवा के बारे में  जानने और यहोवा को  अच्छी तरह जानने में क्या फर्क है? उसे अच्छी तरह जानने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

3. यहोवा के बारे में जानने और यहोवा को अच्छी तरह जानने में क्या फर्क है?

3 हम शायद सोचें कि हम तो परमेश्‍वर के बारे में जानते हैं, हमें उसका नाम मालूम है, हम उसके कुछ कामों के बारे में जानते हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हम यहोवा को अच्छी तरह जानते हैं। इसके लिए हमें और भी कुछ करना होगा। जैसे, हमें यहोवा और उसके गुणों के बारे में सीखने में वक्‍त बिताना होगा। ऐसा करने से ही हम जान पाएँगे कि यहोवा ने जो कहा या किया, उसकी वजह क्या है। हम यह भी समझ पाएँगे कि हम जो सोचते हैं और जो करते हैं, उससे यहोवा खुश होता है या नहीं। यहोवा की मरज़ी जानने के बाद हमें उसके मुताबिक कदम उठाना होगा।

4. मूसा और दाविद के उदाहरण से हम क्या सीखेंगे?

4 जब हम यहोवा की सेवा करने की सोचते हैं, तो शायद कुछ लोग हमारा मज़ाक उड़ाएँ या फिर जब हम सभाओं में जाना शुरू करते हैं, तो शायद वे हमारा और भी विरोध करें। ऐसे में अगर हम यहोवा पर भरोसा रखें, तो वह कभी हमारा साथ नहीं छोड़ेगा। दरअसल इस तरह यहोवा से हमारी दोस्ती की शुरूआत होगी, एक ऐसी दोस्ती की जो हमेशा बनी रहेगी। लेकिन क्या हम सच में यहोवा के दोस्त बन सकते हैं, उसे अच्छी तरह जान सकते हैं? बिलकुल। बीते ज़माने में मूसा और राजा दाविद भी यहोवा को अच्छी तरह जान पाए थे। उनके उदाहरण से हम सीखेंगे कि यहोवा से दोस्ती करना हम अपरिपूर्ण इंसानों के लिए मुमकिन है। हम इन दो सवालों के जवाब भी जानेंगे: मूसा और दाविद यहोवा को कैसे जान पाए? हम उनसे क्या सीख सकते हैं?

मूसा ने ‘अदृश्‍य परमेश्‍वर को मानो देखा’

5. मूसा ने क्या करने का फैसला किया?

5 मूसा ने यहोवा की सेवा करने का फैसला किया।  जब मूसा करीब 40 साल का था, तो उसने एक अहम फैसला किया। उसने मिस्र में एक ऊँचा पद ठुकरा दिया। बाइबल बताती है कि “फिरौन की बेटी का बेटा” कहलाने के बजाय, उसने परमेश्‍वर के लोगों का साथ दिया। (इब्रा. 11:24) वह अच्छी तरह जानता था कि जब फिरौन को पता चलेगा कि वह उन गुलामों का साथ दे रहा है, तो वह बहुत गुस्सा होगा। फिरौन एक शक्‍तिशाली राजा था और मिस्र के लोग उसे भगवान मानते थे, लेकिन मूसा ने इसकी परवाह किए बगैर यहोवा की सेवा करने का फैसला किया। विश्‍वास की क्या ही बढ़िया मिसाल! मूसा को यहोवा पर पूरा भरोसा था। यही वजह थी कि मूसा का ज़िंदगी-भर यहोवा के साथ एक बढ़िया रिश्‍ता रहा।​—नीति. 3:5.

6. हम मूसा से क्या सीख सकते हैं?

6 मूसा के उदाहरण से हम क्या सीखते हैं? उसकी तरह क्या हम भी परमेश्‍वर की सेवा करने का फैसला करेंगे और उसके लोगों के साथ मेल-जोल रखेंगे? यहोवा की सेवा करने के लिए हमें शायद कुछ त्याग करने पड़ें और उन लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़े, जो यहोवा को नहीं जानते। लेकिन अगर हम अपने प्यारे पिता यहोवा पर भरोसा रखें, तो वह कभी हमारा साथ नहीं छोड़ेगा!

7-8. मूसा किस बारे में सीखता रहा?

7 मूसा यहोवा के गुणों के बारे में सीखता रहा और उसकी मरज़ी पूरी करता रहा।  उदाहरण के लिए, जब यहोवा ने मूसा से कहा कि वह इसराएलियों का अगुवा बनकर उन्हें मिस्र से निकाल लाए, तो मूसा को लगा कि उससे यह काम नहीं हो पाएगा। उसने कई बार यहोवा से कहा कि वह यह काम करने के काबिल नहीं है। लेकिन यहोवा ने मूसा को यकीन दिलाया कि वह उसकी मदद करेगा। इस तरह उसने मूसा पर कृपा  की। (निर्ग. 4:10-16) इस वजह से मूसा फिरौन को यहोवा की तरफ से न्याय का संदेश सुना सका। फिर जब यहोवा ने लाल सागर के पास इसराएलियों को बचाया और उसी सागर में फिरौन और उसकी सेना को डुबो दिया, तो मूसा ने देखा कि यहोवा में कितनी ताकत  है।​—निर्ग. 14:26-31; भज. 136:15.

8 यहोवा ने इसराएलियों को मिस्र की गुलामी से आज़ाद किया, फिर भी वे किसी-न-किसी बात को लेकर शिकायत करते रहे। इस दौरान मूसा ने देखा कि यहोवा किस तरह उनके साथ सब्र  से पेश आया। (भज. 78:40-43) मूसा ने यह भी देखा कि यहोवा कितना नम्र  है, तभी तो उसकी गुज़ारिश पर यहोवा ने इसराएलियों को मिटाने का अपना इरादा बदल दिया।​—निर्ग. 32:9-14.

9. इब्रानियों 11:27 के मुताबिक मूसा और यहोवा की दोस्ती कितनी गहरी थी?

9 इसराएलियों को मिस्र की गुलामी से छुड़ाने के बाद यहोवा के साथ मूसा का रिश्‍ता गहरा हो गया, इतना गहरा कि मानो वह अपने प्यारे पिता यहोवा को देख सकता था। (इब्रानियों 11:27 पढ़िए।) इस गहरी दोस्ती के बारे में बाइबल बताती है, “यहोवा मूसा से आमने-सामने बात करता था, जैसे एक आदमी दूसरे आदमी से बात करता है।”​—निर्ग. 33:11.

10. यहोवा को अच्छी तरह जानने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

10 मूसा से हम क्या सीखते हैं? यहोवा को अच्छी तरह जानने का मतलब सिर्फ यह नहीं कि हम उसके गुणों के बारे में जानें, बल्कि हमें उसकी मरज़ी भी पूरी करनी चाहिए। यहोवा की मरज़ी क्या है? यही कि “सब किस्म के लोगों का उद्धार हो और वे सच्चाई का सही ज्ञान पाएँ।” (1 तीमु. 2:3, 4) जब हम लोगों को यहोवा के बारे में सिखाते हैं, तो एक तरह से हम उसकी मरज़ी पूरी कर रहे होते हैं।

11. दूसरों को यहोवा के बारे में सिखाने से हम उसे अच्छी तरह कैसे जान पाते हैं?

11 अकसर ऐसा होता है कि जब हम दूसरों को यहोवा के बारे में सिखाते हैं, तो हम भी यहोवा को अच्छी तरह जान पाते हैं। वह कैसे? कुछ उदाहरणों पर ध्यान दीजिए। यहोवा ऐसे लोगों को ढूँढ़ने में हमारी मदद करता है, जो अच्छा मन रखते हैं और उसके बारे में सीखना चाहते हैं। इससे हम समझ पाते हैं कि यहोवा कितना कृपालु  है। (यूह. 6:44; प्रेषि. 13:48) जिन लोगों के साथ हम बाइबल अध्ययन करते हैं, वे परमेश्‍वर के वचन की मदद से अपनी बुरी आदतें छोड़कर नयी शख्सियत पहनने की कोशिश करते हैं। यह देखकर हम समझ पाते हैं कि उसके वचन में ज़बरदस्त ताकत  है। (कुलु. 3:9, 10) हम यह भी देखते हैं कि परमेश्‍वर हमारे इलाके के लोगों को खुशखबरी सुनने का बार-बार मौका देता है, ताकि वे उसके बारे में सीखें और अपनी जान बचा पाएँ। इससे हम समझ पाते हैं कि यहोवा कितना सब्र  से काम लेता है।​—रोमि. 10:13-15.

12. जैसे निर्गमन 33:13 में लिखा है, मूसा ने यहोवा से क्या गुज़ारिश की और क्यों?

12 मूसा यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को बहुत अनमोल समझता था।  यहोवा ने मूसा को बड़े-बड़े चमत्कार करने की ताकत दी थी। इस दौरान वह यहोवा के गुणों के बारे में बहुत कुछ जान पाया। फिर भी वह यहोवा को और अच्छी तरह जानना चाहता था और इस बारे में उसने यहोवा से गुज़ारिश की। (निर्गमन 33:13 पढ़िए।) उस वक्‍त मूसा की उम्र 80 से ऊपर थी, फिर भी उसे एहसास था कि उसे अपने प्यारे पिता यहोवा को और अच्छे से जानना है।

13. यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को अनमोल समझने का एक तरीका क्या है?

13 मूसा से हम क्या सीखते हैं? भले ही हम यहोवा की सेवा सालों से कर रहे हों, हमें उसके साथ अपने रिश्‍ते को कभी हलके में नहीं लेना चाहिए। हमें उसके साथ अपनी दोस्ती को हमेशा अनमोल समझना चाहिए। ऐसा करने का एक तरीका यह है कि हम उससे लगातार प्रार्थना करें।

14. यहोवा से दोस्ती मज़बूत करने के लिए प्रार्थना करना क्यों ज़रूरी है?

14 रिश्‍तों को मज़बूत रखने के लिए बातचीत उतना ही ज़रूरी है, जितना जीवन के लिए साँसें। इस वजह से लगातार यहोवा से बात कीजिए, उसे अपने दिल का हाल बताने से कभी मत हिचकिचाइए। (इफि. 6:18) तुर्की में रहनेवाली बहन क्रिस्ता कहती है, “जब भी मैं यहोवा से प्रार्थना करती थी, उसे अपनी भावनाएँ बताती थी, तो उसके लिए मेरा प्यार बढ़ जाता था। साथ ही, उस पर मेरा भरोसा भी बढ़ जाता था। मैं महसूस कर पा रही थी कि यहोवा मेरी प्रार्थनाएँ सुन रहा है। अब मैं उसे अपना पिता और दोस्त मानती हूँ।”

ऐसा इंसान जो यहोवा के दिल को भाता था

15. यहोवा ने राजा दाविद के बारे में क्या कहा?

15 राजा दाविद एक ऐसे राष्ट्र में पैदा हुआ था, जो परमेश्‍वर यहोवा को समर्पित था। उसके परिवार के सब लोग यहोवा की उपासना करते थे। मगर दाविद ने सिर्फ लोगों की देखा-देखी यहोवा की उपासना नहीं की। उसने यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता खुद कायम किया और यहोवा भी उससे बहुत प्यार करता था। उसने दाविद के बारे में कहा कि वह “ऐसा इंसान है जो मेरे दिल को भाता है।” (प्रेषि. 13:22) दाविद यहोवा के साथ इतना गहरा रिश्‍ता कैसे बना पाया?

16. सृष्टि पर मनन करने से दाविद ने यहोवा के बारे में क्या सीखा होगा?

16 दाविद ने सृष्टि से यहोवा के बारे में सीखा।  बचपन में दाविद अपने पिता की भेड़ों की देखभाल करने के लिए कई-कई घंटे घर से बाहर रहता था। शायद तभी से वह यहोवा की सृष्टि पर मनन करने लगा। जैसे, रात में जब वह आसमान को निहारता होगा, तो वह न सिर्फ हज़ारों तारे देखता होगा, बल्कि उनके रचनाकार के गुणों के बारे में भी सीखता होगा। तभी तो दाविद यह लिखने से खुद को रोक नहीं पाया, “आसमान परमेश्‍वर की महिमा बयान करता है, अंबर उसके हाथ की रचनाओं का ऐलान करता है।” (भज. 19:1, 2) इसके अलावा, जब दाविद ने इस बात पर ध्यान दिया कि इंसानों को किस तरह बनाया गया है, तो वह देख सका कि यहोवा कितना बुद्धिमान है। (भज. 139:14) जैसे-जैसे दाविद ने यहोवा की सृष्टि पर मनन किया, उसे एहसास होने लगा कि वह यहोवा के सामने कितना छोटा है!​—भज. 139:6.

17. सृष्टि पर मनन करने से हम क्या सीख सकते हैं?

17 दाविद से हम क्या सीखते हैं? हमें भी सृष्टि पर ध्यान देना चाहिए। वक्‍त निकालकर इस खूबसूरत दुनिया को निहारिए। अपने आस-पास के पेड़-पौधों, जानवरों और इंसानों को देखिए और सोचिए कि ये सब चीज़ें आपको यहोवा के बारे में क्या सिखाती हैं। ऐसा करने से आप हर दिन अपने प्यारे पिता के बारे में कुछ-न-कुछ सीख पाएँगे। (रोमि. 1:20) नतीजा यह होगा कि उसके लिए आपका प्यार दिनों-दिन गहरा होता जाएगा।

18. जैसे भजन 18 में बताया गया है, दाविद ने क्या माना?

18 दाविद ने माना कि यहोवा उसकी मदद कर रहा है।  उदाहरण के लिए, जब दाविद ने अपने पिता की भेड़ों को शेर और भालू से बचाया, तो उसने महसूस किया कि इन खूँखार जंगली जानवरों को मार डालने में यहोवा ने ही उसकी मदद की है। जब उसने एक दानव जैसे योद्धा गोलियात को हराया, तो वह साफ देख सकता था कि उसकी मदद करनेवाला कोई और नहीं, बल्कि यहोवा ही है। (1 शमू. 17:37) फिर जब दाविद अपने जानी दुश्‍मन शाऊल से बच गया, तब भी उसने माना कि यहोवा ने ही उसे बचाया है। (भज. 18, उपरिलेख) एक घमंडी इंसान इन सारी कामयाबियों का श्रेय खुद ले लेता। मगर दाविद नम्र था, इसीलिए उसने माना कि उसकी कामयाबियों के पीछे यहोवा का हाथ है।​—भज. 138:6.

19. दाविद से हम क्या सीखते हैं?

19 दाविद के उदाहरण से हम क्या सीखते हैं? हमें यहोवा से सिर्फ मदद ही नहीं माँगनी चाहिए, बल्कि यह भी समझने की कोशिश करनी चाहिए कि वह किस तरह हमारी मदद करता है। अगर हम दाविद की तरह नम्र होंगे, तो हम मानेंगे कि हम हर काम अपने दम पर नहीं कर सकते। कुछ काम ऐसे हैं जिन्हें करने में हमें यहोवा की मदद चाहिए और वह मदद करता भी है। जब भी वह ऐसा करता है, तो हम उसके और भी करीब महसूस करते हैं। फिजी में रहनेवाला भाई आइज़क, जो सालों से यहोवा की सेवा कर रहा है, कहता है, “जब से मैंने बाइबल अध्ययन शुरू किया, तब से आज तक यहोवा मेरी मदद कर रहा है। अब यहोवा मेरे लिए एक असल शख्स है।”

20. दाविद का यहोवा के साथ कैसा रिश्‍ता था?

20 दाविद ने यहोवा की तरह लोगों से व्यवहार किया।  यहोवा ने हमें ऐसा बनाया है कि हम उसकी तरह लोगों से पेश आ सकते हैं। (उत्प. 1:26) हम यहोवा की शख्सियत को जितना अच्छी तरह जानेंगे, उतना ही हम उसके जैसे बन पाएँगे। दाविद ने ऐसा ही किया। इसी वजह से उसने लोगों से वैसा व्यवहार किया जैसा यहोवा करता है। उदाहरण के लिए दाविद लोगों पर दया करता था। इस वजह से जब उसने बतशेबा के साथ नाजायज़ यौन-संबंध रखे और उसके पति को मरवा डाला, तो उस मौके पर यहोवा ने उस पर दया की। (2 शमू. 11:1-4, 15) दाविद का यहोवा के साथ बहुत अच्छा रिश्‍ता था और इसराएल के लोग उससे बहुत प्यार करते थे। दाविद इसराएल का सबसे अच्छा राजा बना, उसकी मिसाल देकर यहोवा समझाता था कि कोई राजा कितना अच्छा है या कितना बुरा।​—1 राजा 15:11; 2 राजा 14:1-3.

21. इफिसियों 4:24 और 5:1 के मुताबिक परमेश्‍वर की मिसाल पर चलने के क्या नतीजे होते हैं?

21 दाविद से हम क्या सीखते हैं? हमें ‘परमेश्‍वर की मिसाल पर चलना चाहिए।’ ऐसा करने से न सिर्फ हमारा भला होता है, बल्कि हम यहोवा को और अच्छी तरह जान पाते हैं। जब हम अपनी शख्सियत यहोवा की तरह ढालने की कोशिश करते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हम उसके बच्चे हैं।​—इफिसियों 4:24; 5:1 पढ़िए।

यहोवा के बारे में सीखते रहिए

22-23. हम यहोवा के बारे में जो सीखते हैं, उसके मुताबिक जीने से क्या फायदा होगा?

22 जैसे हमने इस लेख में सीखा, हम यहोवा को उसकी सृष्टि और उसके वचन बाइबल से जान सकते हैं। बाइबल में बहुत-से लोगों के उदाहरण दर्ज़ हैं, जिन्होंने वफादारी से यहोवा की सेवा की, जैसे मूसा और दाविद। हमें भी उनकी तरह बनने की कोशिश करनी चाहिए। यहोवा ने हमें वह सब दिया है, जिसके ज़रिए हम उसे अच्छी तरह जान सकते हैं। अब यह हम पर है कि उसे जानने के लिए हम अपने आँख-कान खुले रखेंगे या नहीं।

23 हम यहोवा के बारे में पूरी तरह कभी नहीं सीख पाएँगे। (सभो. 3:11) लेकिन अहम बात यह नहीं कि हम यहोवा के बारे में कितना जानते हैं, बल्कि यह है कि हम जो जानते हैं, उसके मुताबिक जीते हैं या नहीं। अगर हम सीखी हुई बातों के मुताबिक जीएँ और अपने प्यारे पिता यहोवा की तरह अपनी शख्सियत ढालें, तो दिन-ब-दिन हम उसके करीब आते जाएँगे। (याकू. 4:8) परमेश्‍वर अपने वचन के ज़रिए हमसे वादा करता है कि जो लोग उसकी खोज करते हैं यानी उसे जानने की कोशिश करते हैं, उन्हें वह कभी नहीं छोड़ेगा।

गीत 80 “परखकर देखो कि यहोवा कितना भला है”

^ पैरा. 5 कई लोग मानते हैं कि एक परमेश्‍वर है, लेकिन असल में वे उसे जानते नहीं। यहोवा को जानने का क्या मतलब है? हम मूसा और राजा दाविद से यहोवा के साथ अच्छी दोस्ती करने के बारे में क्या सीख सकते हैं? इस लेख में हम इन सवालों के जवाब जानेंगे।