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अध्ययन लेख 52

माता-पिताओ—बच्चों को यहोवा से प्यार करना सिखाइए

माता-पिताओ—बच्चों को यहोवा से प्यार करना सिखाइए

“बच्चे यहोवा से मिली विरासत हैं।”—भज. 127:3, फु.

गीत 134 बच्चे यहोवा की अमानत

लेख की एक झलक *

1. यहोवा ने माता-पिता को कौन-सी ज़िम्मेदारी दी है?

जब यहोवा ने पहले जोड़े की सृष्टि की, तो उसने उनमें बच्चे पैदा करने की इच्छा भी डाली। बाइबल बताती है, “बच्चे यहोवा से मिली विरासत हैं।” (भज. 127:3, फु.) इसका क्या मतलब है? कल्पना कीजिए कि आपका दोस्त आपको एक बड़ी रकम सँभालकर रखने के लिए देता है। ज़ाहिर-सी बात है, आपको खुशी होगी कि आपके दोस्त ने आप पर इतना भरोसा किया। पर साथ ही आपको चिंता होगी कि आप इतनी बड़ी रकम कैसे रख पाएँगे। हमारे सबसे करीबी दोस्त यहोवा ने हमें एक ऐसी अमानत सँभालकर रखने की ज़िम्मेदारी दी है, जो किसी रकम से कहीं ज़्यादा अनमोल है। वह अमानत है, हमारे बच्चे। हमें उनकी देखभाल करनी है और उन्हें खुश रखना है।

2. हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

2 यह फैसला किसे करना चाहिए कि पति-पत्नी बच्चे करेंगे या नहीं और करेंगे तो कब करेंगे? बच्चों की ज़िंदगी को खुशहाल बनाने के लिए माता-पिता क्या कर सकते हैं? आइए बाइबल के कुछ सिद्धांतों पर ध्यान दें, जिनकी मदद से मसीही पति-पत्नी इस मामले में सही फैसले कर पाएँगे।

पति-पत्नी के फैसले का आदर कीजिए

3. (क) पति-पत्नी बच्चे करेंगे या नहीं, यह फैसला किसे करना चाहिए? (ख) उनके परिवारवालों और दोस्तों को बाइबल का कौन-सा सिद्धांत ध्यान में रखना चाहिए?

3 कुछ संस्कृतियों में लोग यह सोचते हैं कि पति-पत्नी को शादी के तुरंत बाद बच्चे कर लेने चाहिए। इस मामले में उनके परिवारवाले और दोस्त भी कभी-कभी दबाव डालते हैं। एशिया में रहनेवाला भाई जेथ्रो कहता है, “मंडली में जिन लोगों के बच्चे हैं, वे उन नए जोड़ों पर बच्चे करने का दबाव डालते हैं, जिन्होंने अब तक बच्चे नहीं किए हैं।” एशिया में रहनेवाला एक और भाई जेफ्री ने कहा, “जिन पति-पत्नियों के बच्चे नहीं हैं, उनसे कुछ लोग कहते हैं कि जब आप बूढ़े हो जाएँगे, तो आपकी देखभाल कौन करेगा।” लोग चाहे कुछ भी कहें, हर जोड़े को खुद फैसला करना चाहिए कि वे बच्चे करेंगे या नहीं। यह फैसला करने का हक और ज़िम्मेदारी सिर्फ उनकी है। (गला. 6:5, फु.) हालाँकि परिवारवाले और दोस्त चाहते हैं कि नया जोड़ा खुश रहे, लेकिन सभी को याद रखना चाहिए कि बच्चे करने या न करने का फैसला उस जोड़े का है, न कि किसी और का।—1 थिस्स. 4:11.

4-5. (क) पति-पत्नियों को किन दो सवालों पर चर्चा करनी चाहिए? (ख) इन विषयों पर कब चर्चा करना सही होगा? समझाइए।

4 अगर एक पति-पत्नी बच्चा करने की सोचते हैं, तो अच्छा होगा कि वे आगे दिए दो ज़रूरी सवालों पर चर्चा करें। पहला, उन्हें कब  बच्चे करने चाहिए? दूसरा, उन्हें कितने  बच्चे चाहिए? एक पति-पत्नी को इन सवालों पर कब चर्चा करनी चाहिए और ऐसा करना ज़रूरी क्यों है?

5 ज़्यादातर मामलों में इन विषयों पर शादी से पहले बात कर लेना अच्छा होता है। शादी से पहले क्यों? क्योंकि इस मामले में दोनों की सोच एक जैसी होनी चाहिए। इस दौरान उन्हें यह भी चर्चा करनी चाहिए कि वे इस ज़िम्मेदारी के लिए तैयार हैं या नहीं। कुछ पति-पत्नियों ने फैसला किया है कि वे शादी के एक या दो साल बाद बच्चे करेंगे, क्योंकि इसके लिए उन्हें बहुत समय देना पड़ता है और कड़ी मेहनत करनी होती है। उनका मानना है कि कुछ साल बाद बच्चे करने से पति-पत्नी एक-दूसरे को अच्छी तरह समझ पाएँगे और उनका आपसी रिश्‍ता मज़बूत होगा।—इफि. 5:33.

6. संकटों से भरी इस दुनिया में जीने की वजह से कुछ पति-पत्नियों ने क्या फैसला किया है?

6 कुछ पति-पत्नियों ने नूह के तीन बेटों और उनकी पत्नियों की मिसाल पर चलने का फैसला किया है। उन तीन जोड़ों ने फैसला किया था कि वे तुरंत बच्चे नहीं करेंगे। (उत्प. 6:18; 9:18, 19; 10:1; 2 पत. 2:5) यीशु ने हमारे समय की तुलना ‘नूह के दिनों’ से की थी। इसमें कोई शक नहीं कि आज हम ऐसे वक्‍त में जी रहे हैं, जो “संकटों से भरा” है और “जिसका सामना करना मुश्‍किल” है। (मत्ती 24:37; 2 तीमु. 3:1) इस वजह से कुछ पति-पत्नियों ने फैसला किया है कि वे कुछ समय तक बच्चे नहीं करेंगे, ताकि वे अपना ज़्यादा-से-ज़्यादा समय परमेश्‍वर की सेवा में लगा सकें।

जब पति-पत्नी यह तय करते हैं कि उन्हें बच्चे करने हैं या नहीं और कितने बच्चे करने हैं, तो वे “खर्च का हिसाब” लगाते हैं (पैराग्राफ 7 देखें) *

7. लूका 14:28, 29 और नीतिवचन 21:5 में दिए सिद्धांत से पति-पत्नी को क्या मदद मिल सकती है?

7 जब पति-पत्नी यह तय करते हैं कि उन्हें बच्चे करने हैं या नहीं और कितने बच्चे करने हैं, तो वे लूका 14:28, 29 में दिए सिद्धांत को ध्यान में रखकर “खर्च का हिसाब” लगाते हैं। (पढ़िए।) अनुभवी माता-पिता यह बात अच्छी तरह समझते हैं कि बच्चों की परवरिश में काफी पैसा खर्च होता है। वे यह भी समझते हैं कि इसमें उन्हें काफी वक्‍त और ताकत लगाना पड़ेगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए अच्छा होगा कि पति-पत्नी इन सवालों पर चर्चा करें: ‘क्या परिवार की बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने के लिए हम दोनों को काम करना होगा? क्या हम दोनों इस बात से सहमत हैं कि हमारे परिवार की “बुनियादी ज़रूरतें” क्या हैं? अगर हम दोनों को काम करना होगा, तो बच्चे को कौन सँभालेगा? बच्चे की सोच और कामों पर किसका असर होना चाहिए?’ जो पति-पत्नी ठंडे दिमाग से इन ज़रूरी सवालों पर चर्चा करते हैं, वे नीतिवचन 21:5 के मुताबिक काम करते हैं। (पढ़िए।)

एक प्यार करनेवाला पति अपनी पत्नी की मदद करने के लिए जो हो सकता है, वह करेगा (पैराग्राफ 8 देखें)

8. (क) मसीही पति-पत्नियों को किन मुश्‍किलों का सामना करना पड़ सकता है? (ख) एक प्यार करनेवाला पति क्या करेगा?

8 एक बच्चे के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि माता-पिता दोनों उसे समय दें और उसकी देखभाल करें। अगर पति-पत्नी एक बच्चे के बाद तुरंत दूसरा बच्चा करते हैं, तो हरेक बच्चे को समय देना और उसकी देखभाल करना मुश्‍किल हो सकता है। कुछ पति-पत्नी जिनके कई छोटे-छोटे बच्चे थे, कहते हैं कि उन्हें समझ में नहीं आता था कि वे हर बच्चे को कैसे सँभालें। हो सकता है कि एक माँ बच्चों की देखभाल करते-करते पूरी तरह पस्त हो जाए। ऐसे में क्या वह नियमित तौर पर निजी अध्ययन और प्रार्थना कर पाएगी और क्या वह लगातार प्रचार में जा पाएगी? यही नहीं, शायद उसके लिए सभाओं में ध्यान देना और उनसे फायदा पाना मुश्‍किल हो जाए। लेकिन एक प्यार करनेवाला पति सभाओं में और घर में अपनी पत्नी की मदद करने के लिए जितना हो सकता है, वह करेगा। जैसे, वह घर के कामों में अपनी पत्नी का हाथ बँटाएगा। वह यह भी ध्यान रखेगा कि पारिवारिक उपासना से उसकी पत्नी और बच्चों को पूरा फायदा हो। साथ ही, वह कोशिश करेगा कि नियमित तौर पर परिवार के साथ प्रचार कर सके।

बच्चों को यहोवा से प्यार करना सिखाइए

9-10. बच्चों की मदद करने के लिए माता-पिता को क्या करना चाहिए?

9 माता-पिता ऐसा क्या कर सकते हैं, जिससे उनका बच्चा यहोवा से प्यार करना सीखे? वे कैसे अपने बच्चे को इस दुनिया के बुरे असर से बचा सकते हैं? आइए कुछ तरीकों पर गौर करें, जो माता-पिता अपना सकते हैं।

10 मदद के लिए यहोवा से प्रार्थना कीजिए।  मानोह और उसकी पत्नी के उदाहरण पर ध्यान दीजिए, जो शिमशोन के माता-पिता थे। जब मानोह को पता चला कि उसकी पत्नी माँ बननेवाली है, तो उसने यहोवा से प्रार्थना की और बच्चे की परवरिश करने के लिए उससे मदद माँगी।

11. जैसे न्यायियों 13:8 में बताया गया है, माता-पिता कैसे मानोह की तरह बन सकते हैं?

11 बोस्निया और हर्जेगोविना के रहनेवाले निहाद और अल्मा ने मानोह से काफी कुछ सीखा। वे कहते हैं, “हमने मानोह की तरह यहोवा से प्रार्थना की। हमने उससे कहा कि हम एक अच्छे माता-पिता बनना चाहते हैं और इस काम में वह हमारी मदद करे और हमें सिखाए कि हमें क्या करना है। यहोवा ने कई तरीकों से जैसे, अपने वचन बाइबल, उस पर आधारित प्रकाशनों, सभाओं और अधिवेशनों के ज़रिए हमारी प्रार्थनाओं का जवाब दिया।”—न्यायियों 13:8 पढ़िए।

12. यूसुफ और मरियम ने अपने बच्चों के लिए कैसी मिसाल रखी?

12 अपनी मिसाल से सिखाइए।  आपके बच्चे आपकी बातों से ज़्यादा आपके कामों से सीखते हैं। यूसुफ और मरियम ने यीशु और अपने सभी बच्चों के लिए एक बढ़िया मिसाल रखी। यूसुफ अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी करने के लिए कड़ी मेहनत करता था। इसके अलावा, परमेश्‍वर की उपासना करते रहने के लिए उसने पूरे परिवार का हौसला बढ़ाया। (व्यव. 4:9, 10) हालाँकि मूसा के कानून के मुताबिक यह ज़रूरी नहीं था कि यूसुफ अपने पूरे परिवार को “हर साल” फसह का त्योहार मनाने के लिए यरूशलेम ले जाए, फिर भी उसने ऐसा किया। (लूका 2:41, 42) उसके ज़माने के कुछ पिताओं ने शायद सोचा होगा कि पूरे परिवार को ले जाने से उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ेगा, समय बरबाद होगा और खर्चा भी बहुत होगा। लेकिन यूसुफ ने ऐसा नहीं सोचा, उसने अपने कामों से ज़ाहिर किया कि परमेश्‍वर की उपासना उसके लिए बहुत मायने रखती है, उसने अपने बच्चों को भी ऐसा करना सिखाया। मरियम को भी परमेश्‍वर के वचन का अच्छा ज्ञान था। उसने न सिर्फ अपनी बातों से बल्कि कामों से अपने बच्चों को यहोवा के वचन से प्यार करना सिखाया।

13. एक पति-पत्नी ने यूसुफ और मरियम की मिसाल से क्या सीखा?

13 निहाद और अल्मा जिनका ज़िक्र पहले किया गया था, यूसुफ और मरियम की तरह बनना चाहते थे। उन्हें कैसे मदद मिली कि वे अपने बेटे को यहोवा से प्यार करना और उसकी सेवा करना सिखा सकें? वे कहते हैं, “हमने अपने जीने के तरीके से अपने बेटे को यह सिखाने की कोशिश की कि यहोवा के सिद्धांतों के मुताबिक जीना ही सबसे अच्छा है।” निहाद ने यह भी कहा, “आप अपने बच्चे को जैसा इंसान बनाना चाहते हैं, वैसा खुद बनिए।”

14. माता-पिता को क्यों पता होना चाहिए कि उनके बच्चे किससे दोस्ती करते हैं?

14 सही दोस्त चुनने में अपने बच्चों की मदद कीजिए।  माता-पिता दोनों को मालूम होना चाहिए कि उनके बच्चे किससे दोस्ती करते हैं और वे क्या करते हैं। माता-पिता को यह भी पता होना चाहिए कि उनके बच्चे इंटरनेट के ज़रिए और फोन पर किससे बात करते हैं। हमारे बच्चे जिस तरह के लोगों से दोस्ती करते हैं, उसका उनकी सोच और कामों पर बहुत गहरा असर होता है।—1 कुरिं. 15:33.

15. जेस्सी के उदाहरण से माता-पिता क्या सीख सकते हैं?

15 अगर माता-पिता कंप्यूटर या मोबाइल फोन चलाना नहीं जानते, तो वे क्या कर सकते हैं? फिलीपींस में रहनेवाला एक पिता जेस्सी कहता है, “हमें इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं पता। फिर भी हम अपने बच्चों को उन खतरों के बारे में बताने से पीछे नहीं हटे, जो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के गलत इस्तेमाल से हो सकते हैं।” भले ही जेस्सी को इन उपकरणों का इस्तेमाल करना नहीं आता था, लेकिन इस वजह से उसने अपने बच्चों को इन्हें इस्तेमाल करने से नहीं रोका। वह कहता है, “मैंने बच्चों को बढ़ावा दिया कि वे इसका इस्तेमाल अच्छे कामों के लिए करें जैसे, कोई नयी भाषा सीखने, सभाओं की तैयारी करने और बाइबल पढ़ने के लिए।” हमारी वेबसाइट jw.org® पर “नौजवान” भाग में मैसेज करने और इंटरनेट पर फोटो डालने के बारे में अच्छी जानकारी दी गयी है। अगर आपके बच्चे हैं, तो क्या आपने उनके साथ यह जानकारी पढ़ी है और इस पर चर्चा की है? क्या आपने उनके साथ बॉस कौन है —आप या आपका फोन?  और सोशल मीडिया —ज़रा सँभलकर  वीडियो देखे हैं और उन पर चर्चा की है? * बच्चों को इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का बुद्धिमानी से इस्तेमाल करना सिखाते वक्‍त यह जानकारी बहुत फायदेमंद होगी।—नीति. 13:20.

16. कई माता-पिताओं ने क्या किया और इसके क्या नतीजे हुए हैं?

16 कई माता-पिता कोशिश करते हैं कि उनके बच्चे उन लोगों के साथ वक्‍त बिताएँ, जो यहोवा की सेवा करने में अच्छी मिसाल हैं। कोटे डी आइवरी में रहनेवाले एक माता-पिता नडाने और बोमिन पर ध्यान दीजिए। वे अकसर सर्किट निगरान को अपने घर बुलाते थे। नडाने बताता है, “इसका हमारे बेटे पर बहुत अच्छा असर हुआ। उसने पायनियर सेवा शुरू की और अब वह उन मंडलियों का दौरा करने जाता है, जहाँ कभी-कभी सर्किट निगरान नहीं जा पाते।” क्या आप भी अपने बच्चों के लिए इस तरह की संगति का इंतज़ाम कर सकते हैं?

17-18. माता-पिताओं को कब से अपने बच्चों को सिखाना शुरू करना चाहिए?

17 छुटपन से ही बच्चों को सिखाइए।  आप अपने बच्चे को जितनी कम उम्र से सिखाना शुरू करेंगे, उतना अच्छा होगा। (नीति. 22:6) तीमुथियुस के बारे में सोचिए जो बड़े होने के बाद प्रेषित पौलुस के साथ मंडलियों का दौरा करने गया। वह कैसे इस काबिल बन सका? तीमुथियुस की माँ यूनीके और उसकी नानी लोइस ने उसे तब से सिखाना शुरू किया था, जब वह “एक शिशु था।”—2 तीमु. 1:5; 3:15.

18 कोटे डी आइवरी में रहनेवाले शॉन-क्लॉड और पीस नाम के एक पति-पत्नी ने इस मामले में अच्छी मिसाल रखी। उन्होंने यहोवा से प्यार करने और उसकी सेवा करने में अपने छ: बच्चों की मदद की। आखिर वे ऐसा कैसे कर पाएँ? उन्हें यूनीके और लोइस की मिसाल से काफी मदद मिली। वे बताते हैं, “हमने अपने बच्चों को छुटपन से ही परमेश्‍वर के वचन के बारे में सिखाना शुरू कर दिया था, यानी उनके पैदा होने के तुरंत बाद।”—व्यव. 6:6, 7.

19. बच्चों के मन में परमेश्‍वर का वचन बिठाने का मतलब क्या है?

19 परमेश्‍वर का वचन बच्चों के ‘मन में बिठाने’ का क्या मतलब है? इसका मतलब है, “कोई बात सिखाना और बार-बार उसे दोहराकर बच्चों के मन पर मानो छाप देना।” ऐसा करने के लिए ज़रूरी है कि माता-पिता नियमित तौर पर समय निकालकर अपने बच्चों को सिखाएँ। हो सकता है, कभी-कभी माँ-बाप बच्चों को एक ही बात बताते-बताते परेशान हो जाएँ। फिर भी अगर वे कोशिश करते रहें, तो वे परमेश्‍वर का वचन समझने और उसके मुताबिक चलने में अपने बच्चों की मदद कर रहे होंगे।

माता-पिता को सोचना चाहिए कि वे अपने हर बच्चे को कैसे सिखाएँगे (पैराग्राफ 20 देखें) *

20. बताइए कि भजन 127:4 में दिया सिद्धांत बच्चों की परवरिश में कैसे लागू किया जा सकता है।

20 समझ-बूझ से काम लीजिए।  भजन 127 में बच्चों की तुलना तीर से की गयी है। (भजन 127:4 पढ़िए।) ज़रूरी नहीं कि हर तीर एक जैसा हो, क्योंकि तीर अलग-अलग आकार और धातु के बने हो सकते हैं। उसी तरह हर बच्चा एक जैसा नहीं होता। इस वजह से माता-पिता को सोचना चाहिए कि वे अपने हर बच्चे को कैसे सिखाएँगे। इज़राइल में एक माता-पिता ने अपने दो बच्चों की अच्छी परवरिश की और आगे चलकर वे यहोवा के सेवक बनें। ये माता-पिता बताते हैं कि किस बात ने उनकी मदद की, “हमने हर बच्चे के साथ अलग से बाइबल अध्ययन किया।” शायद ऐसा करना हर परिवार के लिए मुमकिन न हो या फिर ज़रूरी भी न हो, इसलिए हर परिवार के मुखिया को इस मामले में खुद तय करना होगा कि वह क्या करेगा।

यहोवा आपकी मदद करेगा

21. माता-पिता यहोवा से किस तरह की मदद की उम्मीद कर सकते हैं?

21 माता-पिताओं को लग सकता है कि बच्चों को सिखाना बहुत मुश्‍किल है। लेकिन याद रखिए, बच्चे यहोवा की तरफ से तोहफे हैं। यहोवा हमेशा माता-पिताओं की मदद करने के लिए तैयार रहता है। जब वे मदद के लिए उससे प्रार्थना करते हैं, तो वह उनकी सुनता है। वह ऐसा कई तरीकों से करता है जैसे, बाइबल और प्रकाशनों के ज़रिए। इसके अलावा, मंडली के अनुभवी माता-पिताओं की अच्छी मिसाल और सलाह भी एक तरह से उनकी प्रार्थनाओं का जवाब है।

22. माँ-बाप अपने बच्चों को सबसे अच्छी चीज़ क्या दे सकते हैं?

22 कहा जाता है कि बच्चों की परवरिश करने में करीब 20 साल लग जाते हैं। लेकिन सच तो यह है कि माता-पिता बच्चों को सिखाना कभी नहीं छोड़ते। इन सालों के दौरान माँ-बाप अपने बच्चों को जो सबसे अच्छी चीज़ दे सकते हैं, वह है उनका प्यार, समय और बाइबल की शिक्षा। ज़रूरी नहीं कि उनकी शिक्षा का हर बच्चे पर एक जैसा असर हो। फिर भी जो बच्चे ऐसे परिवार में पलते हैं जहाँ माँ-बाप यहोवा से प्यार करते हैं, उनमें से ज़्यादातर बच्चों पर इसका अच्छा असर होता है। एशिया में रहनेवाली एक बहन जोएना-मे का कुछ ऐसा ही अनुभव रहा। वह कहती है, “मेरे मम्मी-पापा ने मुझे जो शिक्षा दी, उसके लिए मैं उनकी बहुत एहसानमंद हूँ। उन्होंने मुझे समझाया, सुधारा और यहोवा से प्यार करना सिखाया। उन्होंने न सिर्फ मुझे जन्म दिया, बल्कि यह भी सिखाया कि मैं कैसे अच्छी ज़िंदगी जी सकती हूँ।” (नीति. 23:24, 25) इसमें कोई शक नहीं कि इस बहन ने जो कहा, उससे दुनिया-भर में रहनेवाले लाखों मसीही सहमत होंगे।

गीत 59 मेरे संग याह की तारीफ करो

^ पैरा. 5 क्या एक पति-पत्नी को बच्चे करने चाहिए? अगर वे बच्चे करने की सोचते हैं, तो उन्हें कितने बच्चे करने चाहिए? वे अपने बच्चों को यहोवा से प्यार करना और उसकी सेवा करना कैसे सिखा सकते हैं? इस लेख में हम आज के ज़माने के कुछ उदाहरणों और बाइबल के सिद्धांतों पर ध्यान देंगे, जिससे हमें इन सवालों के जवाब मिलेंगे।

^ पैरा. 15 जून 2018 की मसीही ज़िंदगी और सेवा —सभा पुस्तिका में पेज 7 पर दिया लेख, “सोशल मीडिया के खतरों से बचिए” भी देखें।

^ पैरा. 60 तसवीर के बारे में: एक मसीही पति-पत्नी आपस में बात कर रहे हैं कि वे बच्चे करेंगे या नहीं। वे यह भी चर्चा कर रहे हैं कि बच्चे होने से उन्हें कितनी खुशी मिलेगी और उन पर कौन-सी ज़िम्मेदारियाँ आ सकती हैं।

^ पैरा. 64 तसवीर के बारे में: एक पति-पत्नी अपने हर बच्चे को अलग से अध्ययन करा रहे हैं, क्योंकि बच्चों की उम्र और काबिलीयतें अलग-अलग हैं।