अध्ययन लेख 52
निराशा—इस संघर्ष में आप जीत सकते हैं!
“अपना सारा बोझ यहोवा पर डाल दे, वह तुझे सँभालेगा।”—भज. 55:22.
गीत 33 अपना बोझ यहोवा पर डाल दे!
लेख की एक झलक *
1. जब हम निराश होते हैं, तो क्या होता है?
हर दिन हमारी ज़िंदगी में समस्याएँ आती हैं और हम उनका सामना करने की पूरी कोशिश करते हैं। मगर जब हम निराश होते हैं, तो समस्याओं का सामना करना हमें बहुत मुश्किल लगता है। निराशा की भावना हमें अंदर से कमज़ोर कर सकती है, यह हमारी हिम्मत तोड़ सकती है और हमारी खुशी छीन सकती है। नीतिवचन 24:10 में लिखा है, “मुश्किल घड़ी में अगर तू निराश हो जाए, तो तुझमें बहुत कम ताकत रह जाएगी।” यह बात कितनी सच है! निराश होने से हम हिम्मत हार जाएँगे और ज़िंदगी की समस्याओं का ठीक से सामना नहीं कर पाएँगे।
2. (क) हम किन वजहों से निराश हो जाते हैं? (ख) इस लेख में हम क्या जानेंगे?
2 हम कई वजहों से निराश हो जाते हैं। हम अपनी कमज़ोरियों या गलतियों की वजह से या खराब सेहत की वजह से निराश हो जाते हैं। अगर हमें यहोवा की सेवा में मनचाहा काम या ज़िम्मेदारी न मिले या हमारे प्रचार के इलाके में ज़्यादातर लोग न सुनें, तब भी हम निराश हो सकते हैं। इस लेख से हम जानेंगे कि निराशा पर काबू पाने के लिए हम क्या-क्या कर सकते हैं।
अगर हममें कोई कमज़ोरी हो
3. क्या याद रखने से हम खुद को बेकार नहीं समझेंगे?
3 हम सब कई बार गलतियाँ करते हैं और हमारे अंदर कुछ कमज़ोरियाँ होती हैं। इसलिए हम शायद सोचें कि हम बहुत बुरे इंसान हैं और यहोवा हमें नयी दुनिया में ज़िंदगी नहीं देगा। लेकिन इस तरह सोचना सही नहीं है। तो हमें क्या बात याद रखनी चाहिए ताकि हम खुद को बहुत बुरा इंसान न समझें? बाइबल बताती है कि यीशु मसीह को छोड़ सब इंसानों ने “पाप किया है।” (रोमि. 3:23) यहोवा हममें खामियाँ नहीं ढूँढ़ता रहता, न ही वह माँग करता है कि हम कभी कोई गलती न करें। वह हमारा पिता है जो हमसे बहुत प्यार करता है। वह देखता है कि हम अपनी कमज़ोरियों पर काबू पाने के लिए कितना संघर्ष कर रहे हैं ताकि हम खुद को बेकार न समझें। वह इस संघर्ष में हमारी मदद करना चाहता है।—रोमि. 7:18, 19.
4-5. पहला यूहन्ना 3:19, 20 में बतायी किस बात से दो बहनों को हिम्मत मिली?
* के उदाहरणों पर गौर कीजिए। जब दीया छोटी थी, तो उसके साथ बहुत बुरा सलूक किया गया था और उसे नीचा दिखाया गया था। कभी कोई उसकी तारीफ नहीं करता था। इसलिए बड़ी होकर वह खुद को बेकार समझने लगी। जब उससे कोई छोटी-सी गलती हो जाती, तब भी वह सोचती थी कि वह किसी काम की नहीं है। मंजू के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। उसके रिश्तेदारों ने उसे बहुत नीचा दिखाया था, इसलिए वह खुद को बहुत ही गिरा हुआ महसूस करती थी। सच्चाई में आने के बाद भी उसे लगता था कि वह यहोवा की एक साक्षी कहलाने के लायक नहीं है।
4 दीया और मंजू5 फिर भी दीया और मंजू ने यहोवा की सेवा करना नहीं छोड़ा। उन्हें कैसे हिम्मत मिली? उन्होंने गिड़गिड़ाकर यहोवा से प्रार्थना की और अपने मन का सारा बोझ उस पर डाल दिया। (भज. 55:22) वे समझ पाए कि यहोवा जानता है कि उन पर क्या-क्या बीती है और वे खुद को कितना बेकार समझते हैं। भले ही उन्हें अपने अंदर कुछ अच्छा न दिखे मगर यहोवा देख सकता है कि उनमें कुछ अच्छाइयाँ हैं।—1 यूहन्ना 3:19, 20 पढ़िए।
6. अगर कोई बार-बार कोशिश करने पर भी वही गलती दोहराता है, तो उसे कैसा लग सकता है?
6 अगर एक व्यक्ति बहुत संघर्ष करने के बाद अपनी बुरी आदत छोड़ देता है मगर बाद में दोबारा वही गलती करता है, तो वह बहुत निराश हो सकता है। पाप करने पर दोषी महसूस करना स्वाभाविक है। (2 कुरिं. 7:10) लेकिन हमें इतना दोषी महसूस नहीं करना चाहिए कि हम यह मान बैठें कि हम किसी काम के नहीं हैं और यहोवा हमें कभी माफ नहीं कर सकता। हम जो सोचते हैं, वह गलत है। और इस तरह सोचने से हम हिम्मत हार बैठेंगे और यहोवा की सेवा करना छोड़ देंगे। याद कीजिए कि हमने नीतिवचन 24:10 में क्या पढ़ा था: अगर हम निराश हो जाएँगे, तो हमारे अंदर समस्याओं का सामना करने की ताकत नहीं बचेगी। तो जब हमसे कोई पाप हो जाता है, तब हमें क्या करना चाहिए? हमें यहोवा से प्रार्थना करके उससे माफी माँगनी चाहिए और इस तरह यहोवा से बात करके ‘मामला सुलझा लेना’ चाहिए। (यशा. 1:18) यहोवा देखता है कि आपको अपनी गलती पर अफसोस हो रहा है और आप खुद को बदलने की बहुत कोशिश कर रहे हैं। इसलिए वह आपको माफ कर देगा। यहोवा से प्रार्थना करने के अलावा प्राचीनों को भी अपनी गलती बताइए। वे आपकी मदद करेंगे ताकि यहोवा के साथ आपका रिश्ता फिर से अच्छा हो जाए।—याकू. 5:14, 15.
7. अगर हम अपनी कमज़ोरी पर काबू पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो हमें क्यों निराश नहीं होना चाहिए?
7 जो लोग अपनी कमज़ोरी पर काबू पाने के लिए बहुत संघर्ष करते हैं, ऐसे लोगों से फ्रांस का एक प्राचीन शौन-लूक कहता है, “क्या यहोवा हमसे उम्मीद करता है कि हम कभी कोई गलती न करें, तभी वह हमें नेक समझेगा? जी नहीं, यहोवा बस यह देखता है कि गलती होने पर क्या हम अफसोस करते हैं और बदलने की कोशिश करते हैं। अगर हम ऐसा करें, तो वह हमें नेक रोमि. 7:21-25) अगर आप किसी कमज़ोरी पर काबू पाने के लिए बहुत संघर्ष कर रहे हैं, तो खुद को कोसते मत रहिए। हममें से कोई भी परमेश्वर की नज़र में अपने आप नेक नहीं बन सकता। परमेश्वर ने फिरौती का इंतज़ाम करके हम पर जो महा-कृपा की है उसकी वजह से वह हमें नेक समझता है।—इफि. 1:7; 1 यूह. 4:10.
समझेगा।” (8. निराश होने पर हम और किससे मदद माँग सकते हैं?
8 हम अपने मसीही भाई-बहनों से भी मदद माँग सकते हैं। अगर कभी हमारा मन बोझ से दबा हो, तो हम अपने भाई-बहनों के सामने अपना मन हलका कर सकते हैं। जब वे हमारी बात ध्यान से सुनेंगे और हमारी हिम्मत बँधाने के लिए कुछ कहेंगे, तो हम अच्छा महसूस करेंगे। (नीति. 12:25; 1 थिस्स. 5:14) नाइजीरिया की एक बहन जॉय, जो बहुत निराश और दुखी रहती थी, अब कहती है, “भाई-बहनों की मदद से ही मैं अपना दुख सह पायी हूँ। अगर वे न होते, तो न जाने मेरा क्या होता। यहोवा ने मेरी प्रार्थना सुनी और भाई-बहनों के ज़रिए मेरी हिम्मत बँधायी। उनसे मैंने यह भी सीखा कि मैं कैसे निराश लोगों की हिम्मत बँधा सकती हूँ।” लेकिन हमारे भाई-बहन हर वक्त यह नहीं भाँप सकते कि हम दुखी हैं और हमें हौसले की ज़रूरत है। हमें खुद किसी प्रौढ़ भाई या बहन को बताना होगा कि हम कैसा महसूस करते हैं ताकि वह हमारी हिम्मत बँधाए।
अगर हम बीमार हो जाएँ
9. भजन 41:3 और 94:19 में क्या लिखा है जिससे हमें दिलासा मिलता है?
9 यहोवा से मदद माँगिए। अगर हमारी तबियत ठीक नहीं रहती तो हम बड़ी आसानी से निराश हो सकते हैं। और अगर हम काफी समय से बीमार हैं, तो हम और भी दुखी हो सकते हैं। ऐसे में हमें यहोवा से मदद माँगनी चाहिए। यह सच है कि आज यहोवा कोई चमत्कार करके हमारी बीमारी दूर नहीं कर देगा मगर वह हमें दिलासा दे सकता है और सहने की ताकत दे सकता है। (भजन 41:3; 94:19 पढ़िए।) वह हमारे भाई-बहनों को उभार सकता है कि वे हमारे लिए कुछ खरीदारी करें या घर पर किसी काम में हमारी मदद करें। भाई-बहन शायद हमारे पास आकर हमारे लिए प्रार्थना भी करें। यहोवा हमें बाइबल में लिखी ऐसी बातें याद दिला सकता है जिससे हमें दिलासा मिले। जैसे यह कि आनेवाली नयी दुनिया में हमें कितनी अच्छी ज़िंदगी मिलेगी, कोई बीमारी नहीं होगी, दर्द नहीं होगा।—रोमि. 15:4.
10. समझाइए कि इसांग हमेशा निराश क्यों नहीं रहा।
10 नाइजीरिया में रहनेवाले इसांग के साथ एक दुर्घटना हुई जिस वजह से वह पैरों से लाचार हो गया। डॉक्टर ने उसे बताया कि वह फिर कभी चल नहीं पाएगा। इसांग कहता है, “मैं बुरी तरह निराश हो गया, मुझे गहरा सदमा लगा।” मगर क्या वह हमेशा निराश ही रहा? जी नहीं। वह बताता है कि वह खुद को कैसे सँभाल पाया, “मैंने और मेरी पत्नी ने प्रार्थना करना और बाइबल का अध्ययन करना कभी नहीं छोड़ा। हमने ठान लिया था कि हम अपनी तकलीफों के बारे में हमेशा नहीं सोचेंगे बल्कि हमें जो आशीषें मिली हैं, उनके बारे में सोचेंगे। जैसे यह कि परमेश्वर की नयी दुनिया में हमें कितनी अच्छी ज़िंदगी मिलेगी।”
11. जब सिंडी बहुत बीमार थी, तब भी उसे गहरी संतुष्टि क्यों मिली?
11 मैक्सिको की रहनेवाली सिंडी को पता चला कि उसे एक जानलेवा बीमारी है। वह यह दुख कैसे सह पायी? जब उसका इलाज चल रहा था, तो उसने एक लक्ष्य रखा कि वह हर दिन किसी-न-किसी को गवाही देगी। उसने बताया, “दूसरों को गवाही देने की वजह से मैं ऑपरेशन से अपना ध्यान हटा पायी। मैं हमेशा अपने दर्द के बारे में नहीं सोचती रही बल्कि दूसरों पर ध्यान देने लगी। डॉक्टरों और नर्सों को गवाही देने के लिए मैंने एक तरीका अपनाया। उनसे बातचीत करते वक्त पहले मैं उनका और उनके घर के लोगों का हाल-चाल पूछती थी। फिर मैं उनसे पूछती थी कि उन्होंने डॉक्टर या नर्स बनने का फैसला क्यों किया, जबकि यह इतना मुश्किल काम होता है। इस तरह के सवाल करने से मैं जान पाती थी कि उन्हें किन विषयों में दिलचस्पी है। कई डॉक्टरों और नर्सों ने कहा कि कभी कोई मरीज़ उनसे नहीं पूछता कि ‘आप कैसे हो।’ उनमें से कई लोगों ने मेरा धन्यवाद किया कि मैंने उनके बारे में सोचा। कुछ ने तो मुझे अपना पता और फोन नंबर भी दिया। बीमारी के उन दिनों में मैं जानती थी कि यह नीति. 15:15.
तकलीफ सहने में यहोवा ज़रूर मेरी मदद करेगा। मगर मैंने सोचा नहीं था कि वह मुझे इतनी संतुष्टि भी देगा।”—12-13. (क) कुछ बीमार और बुज़ुर्ग भाई-बहन किस तरह प्रचार करते हैं? (ख) उन्हें क्या नतीजा मिलता है?
12 जो भाई-बहन बहुत बीमार रहते हैं या चल-फिर नहीं सकते, वे इस बात को लेकर निराश हो जाते हैं कि वे बहुत कम प्रचार कर पाते हैं। मगर इस तरह के कई भाई-बहन अच्छी तरह गवाही देते हैं। अमरीका में लॉरल नाम की एक बहन को 37 साल तक साँस लेने के लिए एक मशीन के अंदर बंद रहना पड़ा। इसके अलावा उसे कैंसर हो गया, उस पर कई बड़े-बड़े ऑपरेशन किए गए और उसकी त्वचा में कुछ बीमारियाँ हो गयीं। मगर इतनी बड़ी-बड़ी मुश्किलों के बावजूद उसने दूसरों को गवाही देना नहीं छोड़ा। जब अस्पताल से नर्स और दूसरे कर्मचारी उसके घर आते थे, तो वह उन्हें गवाही देती थी। उसने यहोवा के साक्षी बनने में कम-से-कम 17 लोगों की मदद की। *
13 फ्रांस का रहनेवाला एक प्राचीन, रिचर्ड बताता है कि जो भाई-बहन अपने घर से या वृद्धाश्रम से कहीं जा नहीं सकते, वे क्या कर सकते हैं। वह कहता है, “वे हमारी कुछ किताबें-पत्रिकाएँ एक टेबल पर लगा सकते हैं। तब उसे देखकर लोग जानना चाहेंगे कि ये प्रकाशन किस बारे में हैं और भाई-बहन गवाही दे पाएँगे। इस तरह हमारे ये प्यारे भाई-बहन निराश नहीं होंगे जो पहले की तरह घर-घर जाकर प्रचार नहीं कर सकते।” ऐसे भाई-बहन खत लिखकर और टेलीफोन से भी गवाही दे सकते हैं।
अगर हमारे पास मनचाहा काम या ज़िम्मेदारी न हो
14. राजा दाविद के उदाहरण से हम क्या सीखते हैं?
14 हम शायद यहोवा की सेवा में कोई काम या ज़िम्मेदारी चाहते हों, मगर वह किसी वजह से हमें न दी गयी हो। हो सकता है, हम बहुत बूढ़े हो गए हों या हमारी सेहत ठीक न रहती हो या कोई और कारण हो। ऐसे में हम बहुत निराश हो सकते हैं। लेकिन इस मामले में हम दाविद से बहुत कुछ सीख सकते हैं। दाविद का बहुत मन था कि वह यहोवा के लिए एक मंदिर बनाए। मगर यहोवा ने इस काम के लिए किसी और को चुना। जब यह बात दाविद को बतायी गयी, तो वह निराश नहीं हुआ। इसके बजाय, यहोवा ने जिसे इस काम के लिए चुना था, उसकी उसने बहुत मदद की। दाविद ने मंदिर बनाने के लिए बहुत सारा सोना और चाँदी दान किया। दाविद के उदाहरण से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।—2 शमू. 7:12, 13; 1 इति. 29:1, 3-5.
15. भाई ओयग ने निराश होने पर क्या किया?
15 फ्रांस का रहनेवाला एक भाई ओयग बहुत बीमार हो गया था। इसलिए उसने प्राचीन के नाते सेवा करना छोड़ दिया। वह इतना बीमार हो गया था कि वह घर के छोटे-मोटे काम भी नहीं कर पाता था। उसने कहा, “मैं खुद को बेकार समझने लगा और बहुत निराश हो गया था। मगर कुछ समय बाद मैं समझ गया कि मुझे यह सोचकर दुखी नहीं रहना चाहिए कि अब मैं पहले की तरह सेवा नहीं कर पा रहा हूँ। जब मैंने अपनी सोच बदली, तो मैं यहोवा की सेवा में जो थोड़ा-बहुत कर पा रहा था, उससे मुझे खुशी मिलने लगी। मैंने सोच लिया है कि मैं कभी न्यायि. 8:4.
हिम्मत नहीं हारूँगा। मैं गिदोन और उसके 300 आदमियों को याद रखता हूँ। वे सब थके हुए थे, फिर भी डटे रहे। मैं भी डटे रहना चाहता हूँ।”—16. स्वर्गदूतों से हम क्या सीखते हैं?
16 वफादार स्वर्गदूतों ने भी हमारे लिए एक अच्छी मिसाल रखी। राजा अहाब के दिनों में यहोवा ने स्वर्गदूतों से सुझाव माँगा था कि दुष्ट राजा अहाब को मूर्ख बनाने के लिए क्या करना सही होगा। तब स्वर्गदूतों ने तरह-तरह के सुझाव दिए, मगर परमेश्वर ने उनमें से एक स्वर्गदूत से कहा कि उसकी बतायी तरकीब काम कर जाएगी। (1 राजा 22:19-22) तब क्या बाकी स्वर्गदूत यह सोचकर निराश हो गए कि हमने बेकार में सुझाव दिया और अपना समय बरबाद किया? नहीं, उन्होंने ऐसा नहीं सोचा। स्वर्गदूत सच में नम्र हैं और चाहते हैं कि सिर्फ यहोवा की महिमा हो।—न्यायि. 13:16-18; प्रका. 19:10.
17. अगर हमारे पास मनचाहा काम या ज़िम्मेदारी न रहे, तो हमें क्या करना चाहिए?
17 अपने मन में अच्छी तरह बिठा लीजिए कि यहोवा का एक साक्षी होना और उसके राज के बारे में प्रचार करना हमारी सबसे बड़ी आशीष है। आज यहोवा की सेवा में हम जो काम करते हैं या जो ज़िम्मेदारी निभाते हैं, वह शायद कल हमारे पास न हो। मगर यहोवा यह देखकर हमें अनमोल नहीं समझता कि हम क्या काम करते हैं या क्या ज़िम्मेदारी निभाते हैं। अगर हम नम्र रहेंगे, तो ही यहोवा और हमारे भाई-बहन हमें अनमोल समझेंगे और हमसे प्यार करेंगे। इसलिए यहोवा से बिनती कीजिए कि हमेशा नम्र रहने में वह आपकी मदद करे। बाइबल में यहोवा के नम्र सेवकों के बारे में जो लिखा है, उसके बारे में मनन कीजिए और आपसे जितना हो सके, खुशी-खुशी अपने भाई-बहनों की सेवा कीजिए।—भज. 138:6; 1 पत. 5:5.
अगर लोग संदेश न सुनें
18-19. अगर ज़्यादातर लोग आपका संदेश न सुनें, तो खुश रहने के लिए आप क्या कर सकते हैं?
18 क्या आपके प्रचार के इलाके में ज़्यादातर लोग नहीं सुनते या घर पर नहीं मिलते? क्या इस वजह से आप कभी-कभी निराश हो जाते हैं? आप क्या कर सकते हैं ताकि आपका जोश बना रहे और आप यह काम खुशी से करते रहें? “ प्रचार में खुशी कैसे पाएँ?” नाम के बक्स में कुछ सुझाव दिए गए हैं। इसके अलावा, हमें प्रचार काम के बारे में सही सोच रखनी चाहिए। आइए जानें कि इसमें क्या-क्या शामिल है।
19 हमें याद रखना है कि प्रचार करने की सबसे खास वजह है, लोगों को परमेश्वर के नाम और उसके राज के बारे में बताना। यीशु ने साफ बताया था कि बहुत कम लोग जीवन की राह पर चलने का फैसला करेंगे। (मत्ती 7:13, 14) हमें यह भी याद रखना है कि जब हम प्रचार में होते हैं, तो हम यहोवा, यीशु और स्वर्गदूतों के साथ मिलकर काम कर रहे होते हैं। यह अपने आप में एक बहुत बड़ी आशीष है, फिर चाहे लोग हमारा संदेश सुनें या न सुनें। (मत्ती 28:19, 20; 1 कुरिं. 3:9; प्रका. 14:6, 7) यहोवा ऐसे लोगों को अपनी तरफ खींचता है जो योग्य हैं। (यूह. 6:44) इसलिए आज भले ही एक इंसान हमारा संदेश न सुने, मगर हो सकता है वह अगली बार सुने।
20. जैसे यिर्मयाह 20:8, 9 में लिखा है, अगर हम प्रचार के इलाके को लेकर निराश हैं, तो हम क्या कर सकते हैं?
20 हम भविष्यवक्ता यिर्मयाह से बहुत कुछ सीख सकते हैं। उसे एक ऐसा इलाका दिया गया था जहाँ यहोवा का संदेश सुनाना बहुत मुश्किल था। “दिन-भर” लोग उसकी बेइज़्ज़ती करते थे और उसकी हँसी उड़ाते थे। (यिर्मयाह 20:8, 9 पढ़िए।) एक बार यिर्मयाह इतना निराश हो गया था कि उसने सोचा कि वह प्रचार करना छोड़ देगा। मगर उसने ऐसा नहीं किया क्योंकि “यहोवा का संदेश” उसके अंदर आग की तरह जलने लगा और वह खुद को रोक नहीं पाया। अगर हम रोज़ बाइबल पढ़ें और उस पर मनन करें, तो यहोवा का संदेश यानी उसका वचन हमारे दिलों-दिमाग पर गहरा असर करेगा। तब यिर्मयाह की तरह हम भी प्रचार करने से खुद को रोक नहीं पाएँगे। हम यह काम खुशी से करते रहेंगे और यह भी हो सकता है कि हमें सुननेवाले लोग मिल जाएँ।—यिर्म. 15:16.
21. निराश होने पर हम क्या कर सकते हैं ताकि इस संघर्ष में हम जीत सकें?
21 दीया, जिसके बारे में हमने पहले बात की, कहती है कि जब हम निराश होते हैं, तो शैतान इस मौके का फायदा उठाकर हमें यहोवा से दूर ले जाना चाहता है। यह उसकी एक बहुत बड़ी चाल है। मगर हमें याद रखना है कि शैतान की हर चाल को यहोवा नाकाम कर सकता है। तो चाहे आप किसी भी वजह से निराश हों, यहोवा से गिड़गिड़ाकर बिनती कीजिए। अगर आपकी कुछ कमज़ोरियाँ हैं, तो उन पर काबू पाने में वह आपकी मदद करेगा। अगर आप बीमार हैं, तो वह आपको सँभालेगा। अगर आपको यहोवा की सेवा में मनचाहा काम या ज़िम्मेदारी नहीं मिली है, तो भी वह आपको खुश रहना सिखाएगा। और प्रचार में चाहे ज़्यादातर लोग न सुनें, फिर भी अपना जोश बनाए रखने में वह आपकी मदद करेगा। जब भी आप निराश होते हैं, तो अपने पिता यहोवा को अपने दिल की बात साफ-साफ बताइए। वह आपको मज़बूत करेगा। फिर आप हमेशा निराश नहीं रहेंगे। इस संघर्ष में आप जीत जाएँगे।
गीत 41 मेरी प्रार्थना सुन
^ पैरा. 5 हम सब कभी-कभी निराश हो जाते हैं। इस लेख से हम जानेंगे कि जब हम निराश होते हैं, तो हमें क्या-क्या करना चाहिए। हम यह भी जानेंगे कि यहोवा की मदद से हम इस संघर्ष में जीत सकते हैं।
^ पैरा. 4 कुछ नाम बदल दिए गए हैं।
^ पैरा. 12 बहन लॉरल निस्बट की जीवन कहानी 22 जनवरी, 1993 की अँग्रेज़ी सजग होइए! में दी गयी है।
^ पैरा. 69 तसवीर के बारे में: एक बहन कुछ वक्त के लिए निराश हो जाती है। वह याद करती है कि उसने बीते वक्त में कितनी सेवा की थी। वह यहोवा से प्रार्थना भी करती है। फिर उसे यकीन हो जाता है कि उसने पहले जो सेवा की थी और आज वह जो कर रही है, उसे यहोवा नहीं भूलेगा।