इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

अध्ययन लेख 50

अच्छे चरवाहे की आवाज़ सुनिए

अच्छे चरवाहे की आवाज़ सुनिए

‘मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ सुनेंगी।’​—यूह. 10:16.

गीत 3 हमारी ताकत, आशा और भरोसा

लेख की एक झलक *

1. यीशु ने अपने चेलों की तुलना भेड़ों से क्यों की?

यीशु का अपने चेलों के साथ कितना गहरा रिश्‍ता है, यह समझाने के लिए उसने अपनी तुलना एक अच्छे चरवाहे से की और अपने चेलों की तुलना भेड़ों से। (यूह. 10:14) ऐसा कहना बिलकुल सही था। भेड़ें अपने चरवाहे को पहचानती हैं और वही करती हैं जो चरवाहा कहता है। एक आदमी ने ऐसा होते हुए देखा। वह कहता है, “हम कुछ भेड़ों की तसवीरें लेना चाहते थे, लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी भेड़ें हमारे पास नहीं आ रही थीं। फिर एक छोटा-सा लड़का आया। वह उन भेड़ों का चरवाहा था। जैसे ही उसने आवाज़ लगायी, सारी भेड़ें उसके पीछे चल पड़ीं।”

2-3. (क) यीशु के चेले उसकी आवाज़ कैसे सुन सकते हैं? (ख) इस लेख में और अगले लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

2 उस आदमी ने वही होते देखा, जो यीशु ने अपनी भेड़ों यानी अपने चेलों के बारे में कहा था। उसने कहा था, ‘मेरी भेड़ें मेरी आवाज़ सुनेंगी।’ (यूह. 10:16) लेकिन यीशु तो स्वर्ग में है, तो हम उसकी आवाज़ कैसे सुन सकते हैं? उसकी शिक्षाओं पर चलकर।​—मत्ती 7:24, 25.

3 इस लेख में और अगले लेख में हम यीशु की कुछ शिक्षाओं के बारे में चर्चा करेंगे। हम जानेंगे कि हमें कौन-सी चीज़ें करनी चाहिए  और कौन-सी चीज़ें नहीं करनी चाहिए।  इस लेख में हम खासकर दो बातों के बारे में चर्चा करेंगे, जिन्हें करने से यीशु ने मना किया है।

“हद-से-ज़्यादा चिंता मत करो”

4. लूका 12:29 के मुताबिक, हम किस वजह से “हद-से-ज़्यादा चिंता” कर सकते हैं?

4 लूका 12:29 पढ़िए। यीशु ने अपने चेलों से कहा था कि उन्हें अपनी ज़रूरत की चीज़ों के बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता नहीं करनी है। यीशु की यह सलाह बिलकुल सही है और हम इसे मानना भी चाहते हैं। लेकिन कभी-कभार इसे मानना हमारे लिए मुश्‍किल हो सकता है। आइए देखें क्यों।

5. कुछ लोग रोटी, कपड़ा, मकान की चिंता क्यों करते हैं?

5 शायद कुछ लोगों को रोटी, कपड़ा और मकान की चिंता हो। वे ऐसे देश में रहते हों, जहाँ ज़्यादातर लोग गरीब हैं और नौकरी मिलना मुश्‍किल है। या फिर परिवार में रोज़ी-रोटी कमानेवाले व्यक्‍ति की मौत हो गयी हो। या कोविड-19 महामारी की वजह से उनकी नौकरी चली गयी हो और घर चलाने के लिए पैसे न हों। (सभो. 9:11) ऐसे में हम ऐसा क्या कर सकते हैं, जिससे हम हद-से-ज़्यादा चिंता न करें?

अपनी चिंताओं में डूबने के बजाय यहोवा पर भरोसा रखिए (पैराग्राफ 6-8 देखें) *

6. एक बार पतरस के साथ क्या हुआ?

6 एक बार पतरस और दूसरे प्रेषित, गलील सागर में एक नाव पर सवार थे। अचानक एक आँधी आयी और उन्होंने देखा कि यीशु पानी पर चल रहा है। पतरस ने यीशु से कहा, “प्रभु अगर यह तू है, तो मुझे आज्ञा दे कि मैं पानी पर चलकर तेरे पास आऊँ।” तब यीशु ने उससे कहा, “आ!” पतरस नाव से उतरा और “पानी पर चलता हुआ यीशु की तरफ जाने लगा।” लेकिन फिर “तूफान को देखकर वह डर गया और डूबने लगा। तब वह चिल्ला उठा, ‘हे प्रभु, मुझे बचा!’” यीशु ने फौरन अपना हाथ बढ़ाकर उसे बचा लिया। क्या आपने गौर किया, जब तक पतरस का ध्यान यीशु पर था तब तक वह पानी पर चल पा रहा था। लेकिन जब पतरस ने तूफान को देखा, तो वह डर गया और डूबने लगा।​—मत्ती 14:24-31.

7. पतरस के साथ जो हुआ उससे हम क्या सीख सकते हैं?

7 पतरस के साथ जो हुआ उससे हम एक ज़रूरी बात सीख सकते हैं। जब पतरस नाव से उतरा तो वह चाहता था कि वह पानी पर चलकर यीशु तक पहुँच जाए। उसने नहीं सोचा था कि उसका ध्यान भटक जाएगा और वह डूबने लगेगा। लेकिन ऐसा ही हुआ। आज हमारे सामने भी तूफान जैसी मुश्‍किलें आ सकती हैं। इनका सामना करने के लिए हमें यहोवा और उसके वादों पर यकीन रखना होगा। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे, तो हमारा विश्‍वास कमज़ोर हो सकता है और हम चिंताओं में डूब सकते हैं। यहोवा सच में हमारी मदद करेगा, इस बात पर हम अपना विश्‍वास कैसे बढ़ा सकते हैं?

8. अपनी ज़रूरतों के बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता करने के बजाय हमें क्या करना चाहिए?

8 हद-से-ज़्यादा चिंता करने के बजाय हमें यहोवा पर भरोसा रखना चाहिए। यहोवा ने वादा किया है कि अगर हम उसे अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देंगे, तो वह हमारी ज़रूरतों का खयाल रखेगा। (मत्ती 6:32, 33) उसने हमेशा अपना यह वादा निभाया है। (व्यव. 8:4, 15, 16; भज. 37:25) अगर वह चिड़ियों और फूलों का खयाल रखता है, तो वह हमारे खाने-पीने की चीज़ों और कपड़ों का भी ज़रूर खयाल रखेगा! (मत्ती 6:26-30; फिलि. 4:6, 7) जैसे माता-पिता प्यार की खातिर अपने बच्चों की ज़रूरतें पूरी करते हैं, उसी तरह यहोवा हमारी ज़रूरतें पूरी करता है क्योंकि वह हमसे प्यार करता है।

9. एक पति-पत्नी के उदाहरण से आपने क्या सीखा?

9 यहोवा हमारी ज़रूरतों का खयाल रख सकता है, यह समझने के लिए आइए एक पायनियर पति-पत्नी का उदाहरण लेते हैं। एक बार वे अपनी पुरानी गाड़ी से करीब एक घंटा दूर सफर करके कुछ बहनों को सभाओं में लाने के लिए गए। वे बहनें शरणार्थी शिविर में रहती थीं। भाई बताता है, “सभा के बाद हमने उन्हें खाने पर बुलाया, लेकिन फिर हमें एहसास हुआ कि घर पर खाने के लिए कुछ नहीं है।” अब वे क्या करते? भाई ने कहा, “जब हम घर पहुँचे, तो दरवाज़े पर दो बड़े-बड़े थैलों में ढेर सारा खाना रखा था। हम नहीं जानते थे कि वह खाना कौन रखकर गया। लेकिन हम इतना ज़रूर जानते थे कि यहोवा ने हमारी ज़रूरतों का खयाल रखा।” कुछ समय बाद इस पति-पत्नी की गाड़ी खराब हो गयी। उन्हें उसकी सख्त ज़रूरत थी क्योंकि वह प्रचार में उसी से जाते थे। लेकिन उसे ठीक कराने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। एक दिन वह गाड़ी को गराज में लेकर गए, ताकि पता कर सकें कि उसे सही कराने में कितना पैसा लगेगा। तभी एक आदमी आया और उसने पूछा, “यह किसकी गाड़ी है?” भाई ने बताया कि यह उसकी गाड़ी है और अभी खराब है। आदमी ने कहा, “कोई बात नहीं, चलेगा। मेरी बीवी को यही गाड़ी, इसी रंग में चाहिए। बताओ, तुम इसे कितने में बेचोगे?” उस आदमी ने भाई को इतने पैसे दिए कि वह उनसे एक दूसरी गाड़ी खरीद सकता था। भाई ने कहा, “मैं बता नहीं सकता कि उस दिन हम कितने खुश थे। यह कोई इत्तफाक नहीं था। इसके पीछे यहोवा का हाथ था।”

10. भजन 37:5 में हमें क्या करने का बढ़ावा दिया गया है?

10 अगर हम अच्छे चरवाहे की सुनेंगे और अपनी ज़रूरतों के बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता नहीं करेंगे, तो हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमारा खयाल रखेगा। (भजन 37:5 पढ़िए; 1 पत. 5:7) अब तक हो सकता है कि यहोवा ने हमारे परिवार के मुखिया के ज़रिए या फिर हमारी नौकरी के ज़रिए हमारा खयाल रखा हो। लेकिन हालात बदल सकते हैं। हो सकता है कि हमारे परिवार का मुखिया हमारी ज़रूरतें पूरी न कर पाए या हमारी नौकरी छूट जाए। ऐसे में भी हमें यकीन रखना चाहिए कि यहोवा किसी-न-किसी तरीके से हमारा खयाल ज़रूर रखेगा। आइए अब हम चर्चा करते हैं कि यीशु ने हमें और कौन-सी चीज़ नहीं करने  को कहा है।

“दोष लगाना बंद करो”

दूसरों की कमियों पर नहीं, बल्कि उनकी अच्छाइयों पर ध्यान दीजिए (पैराग्राफ 11, 14-16 देखें) *

11. मत्ती 7:1, 2 के मुताबिक, यीशु ने क्या करने को कहा और ऐसा करना क्यों मुश्‍किल हो सकता है?

11 मत्ती 7:1, 2 पढ़िए। यीशु जानता था कि अपरिपूर्णता की वजह से इंसान दूसरों में नुक्स निकालते हैं। इसलिए उसने कहा, “दोष लगाना बंद करो।”  हम सब यीशु की यह सलाह मानने की बहुत कोशिश करते हैं, लेकिन फिर भी चूक जाते हैं। ऐसे में हमें क्या करना चाहिए? हमें यीशु की सुननी चाहिए और पूरी कोशिश करनी चाहिए कि हम दूसरों पर दोष लगाना बंद कर दें।

12-13. दूसरों पर दोष न लगाने के बारे में हम यहोवा से क्या सीख सकते हैं?

12 इस मामले में हम यहोवा से सीख सकते हैं। वह लोगों की अच्छाइयों पर ध्यान देता है। उसने राजा दाविद के साथ भी ऐसा ही किया। दाविद ने बड़े-बड़े पाप किए। उसने बतशेबा के साथ व्यभिचार किया और उसके पति को मरवा डाला। (2 शमू. 11:2-4, 14, 15, 24) इसका अंजाम न सिर्फ उसे भुगतना पड़ा, बल्कि उसके परिवारवालों, उसकी पत्नियों को भी भुगतना पड़ा। (2 शमू. 12:10, 11) बाद में, दाविद ने एक और पाप किया। उसने यहोवा की इजाज़त के बगैर इसराएल की सेना की गिनती ली। उसने शायद ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह खुद पर घमंड करने लगा था। उसने यहोवा पर भरोसा करने के बजाय अपनी सेना पर भरोसा किया। इसका क्या अंजाम हुआ? करीब 70,000 इसराएलियों की महामारी की वजह से मौत हो गयी।​—2 शमू. 24:1-4, 10-15.

13 अगर आप वहाँ होते, तो दाविद को किस नज़र से देखते? क्या आप सोचते कि उसके पाप इतने बड़े हैं कि वह माफी के लायक नहीं है? यहोवा ने ऐसा नहीं सोचा। उसने इस बात पर ध्यान दिया कि दाविद पूरी ज़िंदगी उसका वफादार रहा है और पाप करने के बाद उसे अपने किए पर सच में पछतावा है। इसलिए उसने उसे माफ कर दिया। यहोवा जानता था कि दाविद उससे बहुत प्यार करता है और सही काम करना चाहता है। सच में, हम यहोवा के बहुत शुक्रगुज़ार हैं कि वह हमारी अच्छाइयों पर ध्यान देता है!​—1 राजा 9:4; 1 इति. 29:10, 17.

14. हमें क्या करना होगा ताकि हम दूसरों में नुक्स न निकालें?

14 दूसरों में नुक्स निकालना आसान है। लेकिन ऐसा करने के बजाय हमें यहोवा की तरह बनना चाहिए। यहोवा यह उम्मीद नहीं करता कि हमसे कभी कोई गलती नहीं होगी। हमें भी भाई-बहनों से यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए, बल्कि उनकी अच्छाइयों पर ध्यान देना चाहिए। दूसरों की कमियाँ जानते हुए भी हमें उनके साथ अच्छे-से पेश आना चाहिए। एक हीरा शायद शुरू में इतना खूबसूरत न दिखे। लेकिन एक जौहरी ही उसकी असली पहचान कर सकता है। वह जानता है कि जब उसे काटकर तराशा जाएगा, तो वह बहुत खूबसूरत और बेशकीमती हो जाएगा। हमें भी दूसरों की कमियों पर नहीं, बल्कि उनकी अच्छाइयों पर ध्यान देना चाहिए, ठीक जैसे यहोवा और यीशु करते हैं।

15. दूसरों पर दोष न लगाने के लिए हमें और क्या करना चाहिए?

15 दूसरों पर दोष न लगाने के लिए हम और क्या कर सकते हैं? हम उनके हालात के बारे में सोच सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक बार यीशु ने मंदिर में एक गरीब विधवा को दो सिक्के डालते हुए देखा, जिनकी कीमत बहुत कम थी। यह देखकर उसने यह नहीं कहा, “उसने और क्यों नहीं डाला?” इसके बजाय उसने इस बारे में सोचा कि उसने वे सिक्के क्यों डाले और उसके हालात कैसे हैं। इस वजह से यीशु उस विधवा की तारीफ कर पाया।​—लूका 21:1-4.

16. आपने बहन वेरोनिका से क्या सीखा?

16 आइए बहन वेरोनिका का उदाहरण लेते हैं। उसकी मंडली में एक बहन अकेले अपने बेटे की परवरिश कर रही थी। वेरोनिका कहती है, “मुझे लगता था कि वे सच्चाई में इतने मज़बूत नहीं हैं क्योंकि वे सभाओं और प्रचार में हमेशा नहीं आते थे। लेकिन फिर एक बार मैं उस बहन के साथ प्रचार में गयी। तब मुझे पता चला कि उसके बेटे को एक किस्म का मानसिक रोग (ऑटिज़्म) है। ऐसे में घर सँभालना और यहोवा के साथ रिश्‍ता मज़बूत रखना उसके लिए इतना आसान नहीं था। कभी-कभार बेटे की बीमारी की वजह से उसे दूसरी मंडली की सभाओं में जाना पड़ता था। मैं नहीं जानती थी कि उस बहन की ज़िंदगी इतनी मुश्‍किल है। लेकिन अब मैं उससे बहुत प्यार करती हूँ और उसकी इज़्ज़त करती हूँ।”

17. याकूब 2:8 के मुताबिक, हमें क्या करना चाहिए और यह हम कैसे कर सकते हैं?

17 अगर हमें एहसास होता है कि हमने किसी भाई या बहन पर दोष लगाया है, तो हमें क्या करना चाहिए? हमें याद रखना चाहिए कि हमें भाई-बहनों से प्यार करना है। (याकूब 2:8 पढ़िए।) हमें यहोवा से भी मदद माँगनी चाहिए कि हम उस भाई या बहन के बारे में गलत सोचना बंद कर दें। फिर हमें अपनी प्रार्थनाओं के मुताबिक काम करना चाहिए। हमें उसके साथ वक्‍त बिताना चाहिए। हम उसके साथ प्रचार में जा सकते हैं या उसे खाने पर बुला सकते हैं। इस तरह हम उसे और अच्छी तरह जान पाएँगे और यहोवा और यीशु की तरह उसमें अच्छाइयाँ देख पाएँगे। ऐसा करने से हम दूसरों पर दोष लगाना बंद कर देंगे  और अपने अच्छे चरवाहे की आवाज़ सुनेंगे।

18. यह कैसे पता चलेगा कि हम अच्छे चरवाहे की आवाज़ सुन रहे हैं या नहीं?

18 जिस तरह भेड़ें अपने चरवाहे की आवाज़ सुनती हैं, उसी तरह यीशु के चेले भी उसकी आवाज़ सुनते हैं। अगर हम अपनी ज़रूरत की चीज़ों के बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता न करें और दूसरों पर दोष लगाना बंद कर दें, तो यहोवा और यीशु हमें आशीषें देंगे। हम चाहे “छोटे झुंड” के हों या ‘दूसरी भेड़ों’ के, आइए हम अपने अच्छे चरवाहे की आवाज़ सुनते रहें। (लूका 12:32; यूह. 10:11, 14, 16) अगले लेख में हम इस बारे में चर्चा करेंगे कि यीशु ने अपने चेलों को कौन-सी दो चीज़ें करने के लिए कहा।

गीत 101 एकता में रहकर काम करें

^ पैरा. 5 यीशु ने कहा था कि उसकी भेड़ें उसकी आवाज़ सुनेंगी। उसका मतलब था कि उसके चेले उसकी शिक्षाओं पर ध्यान देंगे और उनके मुताबिक चलेंगे। इस लेख में हम उसकी दो शिक्षाओं पर चर्चा करेंगे: हमें ज़रूरत की चीज़ों के बारे में हद-से-ज़्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए और दूसरों पर दोष लगाना बंद करना चाहिए। हम यह भी जानेंगे कि हम उसकी यह बात कैसे मान सकते हैं।

^ पैरा. 51 तसवीर के बारे में: एक भाई की नौकरी छूट गयी है, उसके पास घर चलाने के पैसे नहीं हैं और उसे अपना घर भी बदलना पड़ रहा है। ऐसे में उसका ध्यान आसानी से यहोवा से हट सकता है और वह अपनी चिंताओं में डूब सकता है।

^ पैरा. 53 तसवीर के बारे में: एक भाई सभा में देर से आता है। लेकिन वह अच्छे-से प्रचार करता है, बुज़ुर्गों की मदद करता है और राज-घर के रख-रखाव में हाथ बँटाता है।