अध्ययन लेख 51
हमारी आशा कोरी कल्पना नहीं है!
“आशा हमें निराश नहीं होने देती।”—रोमि. 5:5.
गीत 142 आशा संजोए रखें
एक झलक a
1. अब्राहम क्यों एक बेटे की आस लगाए रख पाया?
यहोवा ने अपने दोस्त अब्राहम से एक वादा किया था। उसने कहा था कि उसके वंश के ज़रिए धरती की सभी जातियाँ आशीष पाएँगी। (उत्प. 15:5; 22:18) अब्राहम को परमेश्वर पर अटूट विश्वास था, इसलिए उसे यकीन था कि परमेश्वर का वादा ज़रूर पूरा होगा। लेकिन जब अब्राहम 100 साल का था और उसकी पत्नी 90 की, तब तक भी उनका कोई बेटा नहीं हुआ था। (उत्प. 21:1-7) फिर भी अब्राहम को जो “आशा” थी, उसकी वजह से उसने “विश्वास किया कि वह बहुत-सी जातियों का पिता बनेगा, ठीक जैसे उससे वादा किया गया था।” (रोमि. 4:18) और हम जानते हैं कि अब्राहम की आशा पूरी हुई। उसका बेटा इसहाक पैदा हुआ जिसकी वह काफी लंबे समय से आस लगाए हुए था। लेकिन अब्राहम को क्यों पूरा यकीन था कि यहोवा अपना वादा पूरा करेगा?
2. अब्राहम को क्यों पूरा यकीन था कि यहोवा ने जो वादा किया है, वह ज़रूर पूरा होगा?
2 अब्राहम यहोवा को बहुत अच्छी तरह जानता था। इसलिए ‘उसे पूरा यकीन था कि परमेश्वर ने जो वादा किया है वह ज़रूर पूरा होगा।’ (रोमि. 4:21) अब्राहम के अटूट विश्वास की वजह से यहोवा उससे खुश था और उसने उसे नेक कहा। (याकू. 2:23) जैसे रोमियों 4:18 से पता चलता है, अब्राहम को यहोवा पर विश्वास भी था और उसे आशा भी थी। अब आइए चर्चा करें कि प्रेषित पौलुस ने रोमियों अध्याय 5 में आशा के बारे में क्या कहा।
3. पौलुस ने आशा के बारे में और क्या समझाया?
3 पौलुस ने समझाया कि हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि हमारी “आशा हमें निराश नहीं होने देती।” (रोमि. 5:5) उसने यह भी बताया कि हम मसीहियों के पास जो आशा है, वह कैसे और भी पक्की हो सकती है। तो आइए रोमियों 5:1-5 में पौलुस ने जो बात कही, उस पर ध्यान दें। ऐसा करते वक्त आप सोच सकते हैं कि वक्त के चलते आपकी आशा कैसे पक्की हो गयी है। हम जो चर्चा करेंगे, उससे आप यह भी समझ पाएँगे कि आप अपनी आशा कैसे और भी पक्की कर सकते हैं। आइए सबसे पहले उस शानदार आशा पर चर्चा करें जिसके बारे में पौलुस ने कहा कि वह हमें निराश नहीं होने देगी।
हमारी शानदार आशा
4. रोमियों 5:1, 2 में किस बारे में चर्चा की गयी है?
4 रोमियों 5:1, 2 पढ़िए। पौलुस ने ये शब्द रोम की मंडली को लिखे थे। वहाँ के भाई-बहनों ने यहोवा और यीशु के बारे में सीखा था, उन पर विश्वास किया था और मसीही बन गए थे। परमेश्वर ने ‘उनके विश्वास की वजह से उन्हें नेक ठहराया’ और पवित्र शक्ति से उनका अभिषेक किया। अब उनके पास एक लाजवाब आशा थी और वे यकीन रख सकते थे कि यह आशा पूरी होगी।
5. अभिषिक्त मसीहियों को क्या आशा है?
5 बाद में जब पौलुस ने इफिसुस में रहनेवाले अभिषिक्त मसीहियों को चिट्ठी लिखी, तब भी उसने इस आशा के बारे में बताया। उसने कहा कि उन्हें एक ‘विरासत मिलनेवाली है जो पवित्र लोगों के लिए रखी गयी है।’ (इफि. 1:18) और जब पौलुस ने कुलुस्सियों के नाम चिट्ठी लिखी, तो उसने बताया कि उनकी आशा कहाँ पूरी होगी। उसने उनसे कहा, ‘तुम्हारी आशा स्वर्ग में तुम्हारे लिए पूरी होनेवाली है।’ (कुलु. 1:4, 5) तो कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि अभिषिक्त मसीहियों की मौत के बाद उन्हें ज़िंदा करके स्वर्ग में जीवन दिया जाएगा और वहाँ वे मसीह के साथ राज करेंगे।—1 थिस्स. 4:13-17; प्रका. 20:6.
6. एक अभिषिक्त भाई ने अपनी आशा के बारे में क्या कहा?
6 अभिषिक्त मसीही अपनी आशा की बहुत कदर करते हैं। ऐसे ही एक अभिषिक्त भाई थे फ्रेडरिक फ्रांज़। उन्हें वफादारी से यहोवा की सेवा करते हुए कई साल हो गए थे। उन्होंने 1991 में अपनी आशा के बारे में कहा, “हमारी आशा एकदम पक्की है। और छोटे झुंड के 1,44,000 जनों में से हरेक की आशा पूरी होगी, वह भी इतने बढ़िया तरीके से जिसकी हम कभी कल्पना भी नहीं कर सकते। . . . हमारी आशा आज भी हमारे लिए बहुत अनमोल है। . . . जितना ज़्यादा हम इसके पूरे होने का इंतज़ार कर रहे हैं, उतनी ही हमारे दिल में इसके लिए कदर बढ़ रही है। यह इतनी लाजवाब है कि इसके लिए चाहे हमें लाखों साल इंतज़ार करना पड़े, हम खुशी से करेंगे। मैं इस आशा की पहले से कहीं ज़्यादा कदर करता हूँ।”
7-8. परमेश्वर के ज़्यादातर सेवकों को क्या आशा है? (रोमियों 8:20, 21)
7 आज परमेश्वर के ज़्यादातर सेवक अभिषिक्त नहीं हैं, पर उनके पास भी एक शानदार आशा है। उन्हें वही आशा है जो अब्राहम को थी। उसकी तरह उन्हें भी परमेश्वर के राज में इस धरती पर हमेशा जीने की आशा है। (इब्रा. 11:8-10, 13) जिनके पास यह आशा है, उनके बारे में पौलुस ने लिखा कि उनका भविष्य सच में शानदार होगा। (रोमियों 8:20, 21 पढ़िए।) ज़रा सोचिए, जब आपने पहली बार परमेश्वर के वादों के बारे में सुना था, तो कौन-सी बात आपके दिल को छू गयी थी। यह बात कि एक ऐसा वक्त आएगा, जब आप बीमार नहीं होंगे, बूढ़े नहीं होंगे और आपकी कभी मौत नहीं होगी? या फिर यह बात कि एक दिन आप अपने उन परिवारवालों और दोस्तों से दोबारा मिलेंगे जो अब नहीं रहे और उनके साथ फिरदौस में हमेशा के लिए जीएँगे? सोचिए, इस “आशा” की वजह से आपको कितनी बढ़िया आशीषें पाने का इंतज़ार है!
8 चाहे हमें स्वर्ग में हमेशा जीने की आशा हो या धरती पर, हमारी आशा बहुत ही शानदार है। इस आशा की वजह से हमें बहुत खुशी मिलती है। हमारी यह आशा और भी पक्की हो सकती है! पौलुस ने समझाया कि यह कैसे हो सकता है। तो आइए गौर करें कि पौलुस ने हमारी आशा के बारे में क्या बताया। इससे हमारा यह यकीन और बढ़ जाएगा कि हम जिन बातों की आशा करते हैं, वे ज़रूर पूरी होंगी।
हमारी आशा पक्की होती रहती है
9-10. पौलुस की तरह आज मसीहियों को क्या मानकर चलना चाहिए? (रोमियों 5:3) (तसवीरें भी देखें।)
9 रोमियों 5:3 पढ़िए। पौलुस ने कहा कि जब हम दुख-तकलीफें झेलते हैं, तो हमारी आशा और पक्की हो सकती है। शायद यह बात हमें थोड़ी अजीब लगे। लेकिन सच तो यह है कि सभी मसीहियों को कोई-न-कोई दुख-तकलीफ झेलनी पड़ेगी। पौलुस भी यह बात जानता था, तभी उसने थिस्सलुनीके के भाई-बहनों को लिखा, “जब हम तुम्हारे साथ थे, तो हम तुमसे कहा करते थे कि हमें दुख-तकलीफें झेलनी पड़ेंगी। और ऐसा ही हुआ।” (1 थिस्स. 3:4) उसने कुरिंथ के भाई-बहनों को भी लिखा, ‘भाइयो, हम नहीं चाहते कि तुम इस बात से अनजान रहो कि हमने कैसी मुसीबत झेली थी। हमें तो लगा कि हम शायद ज़िंदा ही नहीं बचेंगे।’—2 कुरिं. 1:8; 11:23-27.
10 आज भी सभी मसीहियों को यह मानकर चलना है कि उन्हें किसी-न-किसी तरह की तकलीफें सहनी पड़ सकती हैं। (2 तीमु. 3:12) आप अपने बारे में क्या कहेंगे? क्या यीशु पर विश्वास करने और उसकी शिक्षाएँ मानने की वजह से आपको भी दुख-तकलीफें झेलनी पड़ी हैं? हो सकता है, आपके दोस्तों या रिश्तेदारों ने आपका मज़ाक उड़ाया हो, यहाँ तक कि आपके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया हो। या हो सकता है कि आप हमेशा ईमानदार रहना चाहते हैं, इस वजह से आपके काम की जगह पर लोगों ने आपके लिए समस्याएँ खड़ी कर दी हों। (इब्रा. 13:18) या शायद दूसरों को अपनी आशा के बारे में बताने की वजह से सरकारी अधिकारियों ने आपका विरोध किया हो। हम पर चाहे जैसी भी दुख-तकलीफें आएँ, हमें खुश होना चाहिए। पौलुस ने यही कहा था। पर उसने ऐसा क्यों कहा?
11. हमें क्यों ठान लेना चाहिए कि हम धीरज से दुख-तकलीफों का सामना करेंगे?
11 हम दुख-तकलीफें झेलते वक्त भी खुश रह सकते हैं, क्योंकि ऐसे में हम धीरज रखना सीख पाते हैं। यही बात रोमियों 5:3 में लिखी है, “दुख-तकलीफों से धीरज पैदा होता है।” सभी मसीहियों पर कोई-न-कोई तकलीफ आएगी। इसलिए हमें ठान लेना चाहिए कि हम धीरज से इन्हें सहेंगे। जब हम धीरज धरेंगे और यहोवा की सेवा करते रहेंगे, तभी हम अपनी आशा पूरी होते देख पाएँगे। हम उन लोगों की तरह नहीं होना चाहते, जिनके बारे में यीशु ने कहा कि उनका दिल चट्टानी ज़मीन की तरह है। ऐसे लोगों के दिलों में शुरू-शुरू में जब सच्चाई का बीज बोया जाता है, तो वे खुशी-खुशी उसे स्वीकार करते हैं। पर जब उन्हें “मुसीबतें या ज़ुल्म सहने पड़ते हैं,” तो वे विश्वास करना छोड़ देते हैं। (मत्ती 13:5, 6, 20, 21) यह सच है कि विरोध या ज़ुल्मों का सामना करना आसान नहीं होता और यह हमें अच्छा नहीं लगता, लेकिन अगर हम इन्हें धीरज से सहते रहें और यहोवा की सेवा करते रहें, तो इससे हमें फायदे होंगे। वह कैसे?
12. जब हम धीरज से तकलीफें सहते हैं, तो हमें क्या फायदा होता है?
12 याकूब ने बताया था कि धीरज से दुख-तकलीफें सहने से हमें क्या फायदे हो सकते हैं। उसने लिखा, “धीरज को अपना काम पूरा करने दो ताकि तुम सब बातों में खरे और बेदाग पाए जाओ और तुममें कोई कमी न हो।” (याकू. 1:2-4) याकूब ने धीरज के बारे में ऐसे लिखा, मानो उसे कोई काम करना है। तो धीरज क्या काम करता है? यह और भी ज़्यादा सब्र रखने, यहोवा पर और ज़्यादा भरोसा करने, और भी ज़्यादा विश्वास करने और इसी तरह के दूसरे गुण बढ़ाने में हमारी मदद करता है। लेकिन धीरज रखने से हमें एक और बड़ा फायदा होता है।
13-14. धीरज रखने से क्या फायदा होता है? और इस बात का हमारी आशा से क्या नाता है? (रोमियों 5:4)
13 रोमियों 5:4 पढ़िए। पौलुस ने कहा कि धीरज धरने से “परमेश्वर की मंज़ूरी” मिलती है, यानी जब आप धीरज रखते हैं तो यहोवा आपसे खुश होता है। इसका मतलब यह नहीं कि यहोवा यह देखकर खुश होता है कि आप पर मुश्किलें आ रही हैं। वह तो इस बात से खुश होता है कि मुश्किलें आने पर भी आप धीरज से उनका सामना करते हैं और उसके वफादार रहते हैं। यह जानकार हमारा कितना हौसला बढ़ता है कि जब हम धीरज रखते हैं, तो हम यहोवा का दिल खुश करते हैं।—भज. 5:12.
14 ज़रा अब्राहम के बारे में सोचिए। उसने धीरज से कई मुश्किलें सहीं और यहोवा उससे खुश था। यहोवा ने उसे अपना दोस्त माना और उसे नेक कहा। (उत्प. 15:6; रोमि. 4:13, 22) यहोवा हमसे भी खुश हो सकता है। लेकिन यहोवा यह देखकर खुश नहीं होता कि हम उसके लिए कितना काम कर रहे हैं या हमें कौन-सी ज़िम्मेदारियाँ मिली हैं। वह यह देखकर खुश होता है कि हम धीरज से मुश्किलों का सामना कर रहे हैं और उसके वफादार हैं। हमारी उम्र चाहे जो भी हो, हमारे हालात कैसे भी हों या हममें जो भी काबिलीयत हो, हम सब धीरज रख सकते हैं। क्या आप अभी किसी मुश्किल का सामना कर रहे हैं, फिर भी यहोवा के वफादार बने हुए हैं? अगर हाँ, तो आप यकीन रख सकते हैं कि यहोवा आपसे खुश है। और जब हमें एहसास होता है कि यहोवा हमसे खुश है, तो हमारी आशा और भी पक्की हो जाती है।
पहले से भी पक्की आशा
15. पौलुस ने आगे क्या बताया और इस वजह से कुछ लोग शायद क्यों उलझन में पड़ जाएँ?
15 जैसे पौलुस ने समझाया, जब हम धीरज से मुश्किलों का सामना करते हैं, तो हम पर परमेश्वर की मंज़ूरी होती है यानी वह हमसे खुश होता है। अब गौर कीजिए पौलुस आगे क्या कहता है। उसने लिखा, ‘परमेश्वर की मंज़ूरी होने की वजह से हमें आशा मिलती है। यह आशा हमें निराश नहीं होने देती।’ (रोमि. 5:4, 5) यह बात सुनकर शायद कुछ लोग उलझन में पड़ जाएँ। वह क्यों? क्योंकि पौलुस पहले ही बता चुका था कि रोम में रहनेवाले मसीहियों के पास एक आशा है, “परमेश्वर से महिमा पाने की आशा।” (रोमि. 5:2) इसलिए कुछ लोग शायद कहें, ‘अगर उन मसीहियों के पास पहले से ही एक आशा थी, तो पौलुस ने आशा का ज़िक्र बाद में क्यों किया?’
16. हमारी आशा वक्त के चलते कैसे और भी पक्की हो जाती है? (तसवीरें भी देखें।)
16 अगर हम इस बात पर ध्यान दें कि आशा एक ऐसी चीज़ है जो वक्त के चलते और पक्की हो जाती है, तो हम पौलुस की कही बात समझ सकते हैं। जैसे, क्या आपको याद है जब आपको पहली बार बाइबल से एक शानदार आशा के बारे में बताया गया था, तो आपको कैसा लगा था? शायद उस वक्त आपको लगा हो, फिरदौस में हमेशा के लिए रहना बस कहने-भर की बातें हैं। लेकिन जब आपने यहोवा और उसके वादों के बारे में और अच्छी तरह जाना, तो आपको और भी यकीन होने लगा कि एक दिन यह आशा ज़रूर पूरी होगी।
17. बपतिस्मे के बाद भी हमारी आशा कैसे और पक्की होती रहती है?
17 यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित करने और बपतिस्मा लेने के बाद भी आप यहोवा को और अच्छी तरह जानते रहे और उससे और भी प्यार करने लगे। इससे आपकी आशा और भी पक्की होती गयी। (इब्रा. 5:13–6:1) रोमियों 5:2-4 में जो बातें बतायी गयी हैं उन्हें आपने खुद अपनी ज़िंदगी में महसूस किया होगा। आप पर तरह-तरह की तकलीफें आयी होंगी, लेकिन आपने धीरज से उन्हें सहा और आपने महसूस किया कि यहोवा आपसे खुश है। आप जानते हैं कि वह आपसे प्यार करता है और आपसे खुश है, इसलिए आपको और यकीन हो गया है कि उसने जो वादे किए हैं वे ज़रूर पूरे होंगे। शुरू-शुरू में आपको जो आशा मिली थी, वह अब और भी पक्की हो गयी है। अब आपको ऐसा नहीं लगता कि ये बस कहने-भर की बातें हैं। आपको पूरा यकीन है कि ऐसा सच में होगा। और इसका आपकी ज़िंदगी पर बहुत गहरा असर होता है। आप जिस तरह ज़िंदगी जीते हैं, जिस तरह के फैसले लेते हैं, जिस तरह अपने परिवार के साथ पेश आते हैं, यहाँ तक कि जिस तरह वक्त बिताते हैं, वह सब बदल जाता है।
18. यहोवा ने क्या गारंटी दी है?
18 पौलुस ने यह बताने के बाद कि आप पर परमेश्वर की मंज़ूरी होगी, आशा के बारे में एक और अहम बात बतायी। वह यह कि आपकी आशा ज़रूर पूरी होगी। पर आप इस बात का क्यों यकीन रख सकते हैं? पौलुस ने परमेश्वर की तरफ से मसीहियों को यह गारंटी दी, “यह आशा हमें निराश नहीं होने देती क्योंकि परमेश्वर का प्यार हमारे दिलों में उस पवित्र शक्ति के ज़रिए भरा गया है, जो हमें दी गयी थी।” (रोमि. 5:5) इसलिए आप पूरा यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर ने आपको जो आशा दी है, वह ज़रूर पूरी होगी।
19. आप अपनी आशा के बारे में क्या यकीन रख सकते हैं?
19 ज़रा एक बार फिर अब्राहम को याद कीजिए। यहोवा ने अब्राहम से जो वादा किया था और उसे अपना दोस्त कहा था, उसके बारे में सोचिए। अब्राहम को जो आशा दी गयी थी, वह खोखली नहीं थी। बाइबल में लिखा है, “जब अब्राहम ने सब्र रखा, तो उससे वादा किया गया।” (इब्रा. 6:15; 11:9, 18; रोमि. 4:20-22) और अब्राहम को ‘निराश नहीं होना पड़ा,’ उसकी आशा पूरी हुई। अब्राहम की तरह अगर आप यहोवा के वफादार रहें, तो आप भी ‘निराश नहीं होंगे।’ आपकी आशा कोरी कल्पना नहीं है, यह एक दिन सच में पूरी होगी! इससे कितनी खुशी मिलती है! (रोमि. 12:12) पौलुस ने लिखा, “मेरी दुआ है कि आशा देनेवाला परमेश्वर तुम्हें भरपूर खुशी और शांति दे क्योंकि तुमने उस पर भरोसा रखा है और इस तरह पवित्र शक्ति की ताकत से तुम्हारी आशा पक्की होती जाए।”—रोमि. 15:13.
गीत 139 जब होंगे नयी दुनिया में!
a इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि हम मसीहियों के पास क्या आशा है और हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि हमारी आशा ज़रूर पूरी होगी। हम रोमियों अध्याय 5 पर भी चर्चा करेंगे और जानेंगे कि अभी हमारे पास जो आशा है, वह कैसे उस आशा से अलग है जो हमें शुरू में बाइबल की सच्चाइयाँ जानने पर मिली थी।