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अध्ययन लेख 48

गीत 97 ज़िंदगी टिकी याह के वचनों पे

रोटियों का चमत्कार​—⁠सीख दे दमदार

रोटियों का चमत्कार​—⁠सीख दे दमदार

“मैं जीवन देनेवाली रोटी हूँ। जो मेरे पास आता है वह फिर कभी भूखा नहीं होगा।”यूह. 6:35.

क्या सीखेंगे?

हम यूहन्‍ना अध्याय 6 में बताए यीशु के उस किस्से के बारे में चर्चा करेंगे जब उसने चमत्कार करके पाँच रोटियों और दो मछलियों से हज़ारों लोगों को खाना खिलाया और जानेंगे कि हम उस किस्से से क्या सीख सकते हैं।

1. इसराएलियों के लिए रोटी कितनी ज़रूरी थी?

 रोटी के बिना इसराएलियों का खाना अधूरा होता था। (उत्प. 14:18; लूका 4:4) उस ज़माने में रोटी खाना इतना आम था कि बाइबल में कई बार खाने के लिए “रोटी” शब्द इस्तेमाल किया गया है। (मत्ती 6:11) यीशु ने दो मौकों पर चमत्कार करके लोगों को रोटी खिलायी थी। (मत्ती 16:9, 10) उनमें से एक के बारे में यूहन्‍ना अध्याय 6 में बताया गया है। आइए उस चमत्कार पर गौर करें और देखें कि आज हम उससे क्या सीख सकते हैं।

2. ऐसा क्या हुआ कि प्रेषितों को लोगों के खाने के बारे में सोचना पड़ा?

2 एक बार जब यीशु के प्रेषित प्रचार करके लौटे, तो वह उन्हें एक नाव में गलील सागर के दूसरी तरफ ले गया ताकि वे थोड़ा आराम कर सकें। (मर. 6:7, 30-32; लूका 9:10) वे बैतसैदा के पास एक एकांत जगह पहुँचे। लेकिन जल्द ही हज़ारों लोग वहाँ आ गए और उनके पास इकट्ठा हो गए। यीशु ने उन्हें अनदेखा नहीं किया, बल्कि उन्हें परमेश्‍वर के राज के बारे में सिखाने लगा और बीमारों को ठीक करने लगा। जब शाम होने लगी, तो प्रेषित सोचने लगे कि इतने सारे लोग खाना कहाँ से खाएँगे। कुछ लोगों के पास तो थोड़ा-बहुत खाना रहा होगा, लेकिन ज़्यादातर लोगों को गाँवों में जाकर खाना खरीदना पड़ता। (मत्ती 14:15; यूह. 6:4, 5) ऐसे में यीशु ने क्या किया?

यीशु ने चमत्कार करके रोटी खिलायी

3. लोगों को भूखा देखकर यीशु ने प्रेषितों से क्या कहा? (तसवीर देखें।)

3 यीशु ने प्रेषितों से कहा “उन्हें जाने की ज़रूरत नहीं, तुम्हीं उन्हें कुछ खाने को दो।” (मत्ती 14:16) पर यह कैसे हो सकता था? वहाँ करीब 5,000 आदमी थे और औरतों और बच्चों को मिलाकर उन्हें शायद 15,000 लोगों को खाना खिलाना था। (मत्ती 14:21) तभी अन्द्रियास ने कहा, “यहाँ एक लड़का है, जिसके पास जौ की पाँच रोटियाँ और दो छोटी मछलियाँ हैं। मगर इतनी बड़ी भीड़ के लिए इससे क्या होगा?” (यूह. 6:9) उस ज़माने में आम आदमी अकसर जौ की रोटी खाते थे। और उस लड़के के पास जो छोटी मछलियाँ थीं, उन्हें शायद नमक लगाकर सुखाया गया था। पर भला इतने से खाने से हज़ारों लोगों का पेट कैसे भरता?

यीशु ने लोगों की ज़रूरतें पूरी कीं: उन्हें परमेश्‍वर के बारे में सच्चाई सिखायी और उनके खाने-पीने की ज़रूरतों का खयाल रखा (पैराग्राफ 3)


4. यूहन्‍ना 6:11-13 में दी घटना से हम क्या-क्या सीख सकते हैं? (तसवीरें भी देखें।)

4 यीशु बहुत दरियादिल था, वह लोगों के लिए कुछ करना चाहता था। इसलिए उसने उनसे कहा कि वे टोलियाँ बनाकर घास पर आराम से बैठ जाएँ। (मर. 6:39, 40; यूहन्‍ना 6:11-13 पढ़िए।) फिर यीशु ने रोटियों और मछलियों के लिए अपने पिता को धन्यवाद दिया। ऐसा करना एकदम सही था, क्योंकि यहोवा ने ही उस खाने का इंतज़ाम किया था। यह हमारे लिए भी एक अच्छी सीख है। हमें भी खाना खाने से पहले प्रार्थना करके यहोवा को धन्यवाद देना चाहिए, फिर चाहे हम अकेले हों या दूसरों के साथ। यहोवा को धन्यवाद देने के बाद यीशु ने प्रेषितों को खाना बाँटने के लिए कहा और सबने जी-भरकर खाया, यहाँ तक कि कुछ खाना बच भी गया। यीशु नहीं चाहता था कि वह बरबाद हो, इसलिए उसने बचा हुआ खाना इकट्ठा करने को कहा ताकि वह बाद में काम आ सके। हम इससे एक और बात सीखते हैं। हमारे पास जो भी चीज़ें हैं, हमें उनका सोच-समझकर इस्तेमाल करना चाहिए, उन्हें बरबाद नहीं करना चाहिए। अगर आपके बच्चे हैं, तो क्यों ना इस किस्से पर उनके साथ चर्चा करें? आप उनसे इस बारे में बात कर सकते हैं कि हम इस किस्से से प्रार्थना करने, मेहमान-नवाज़ी करने और दरियादिल बनने के मामले में क्या सीखते हैं।

खुद से पूछिए, ‘यीशु की तरह क्या मैं भी खाना खाने से पहले प्रार्थना करता हूँ?’ (पैराग्राफ 4)


5. (क) यीशु के काम देखकर लोगों ने क्या किया? (ख) लेकिन यीशु ने क्या किया?

5 यीशु जिस तरह सिखाता था और उसने जो चमत्कार किए, वह देखकर लोग दंग रह गए। वे जानते थे कि मूसा ने कहा था कि परमेश्‍वर एक खास भविष्यवक्‍ता खड़ा करेगा। इसलिए हो सकता है उन्होंने सोचा हो, ‘कहीं यीशु ही वह भविष्यवक्‍ता तो नहीं?’ (व्यव. 18:15-18) अगर ऐसा था, तो उन्हें लगा होगा कि यीशु एक अच्छा राजा बन सकता है, वह तो पूरे राष्ट्र को रोटी खिला सकता है। इसी वजह से भीड़ ने “[यीशु को] पकड़कर राजा बनाने” की कोशिश की। (यूह. 6:14, 15) अगर यीशु उनका राजा बन जाता, तो वह यहूदियों की राजनीति में हिस्सा ले रहा होता, जो उस वक्‍त रोमी हुकूमत के अधीन थे। पर उसने ऐसा नहीं किया। बाइबल बताती है कि वह “पहाड़ पर चला गया।” यीशु ने हमारे लिए कितनी बढ़िया मिसाल रखी! दूसरों का इतना दबाव होने पर भी उसने राजनीति में हिस्सा नहीं लिया।

6. हम यीशु की तरह कैसे बन सकते हैं? (तसवीर भी देखें।)

6 ज़ाहिर-सी बात है कि आज लोग हमें चमत्कार करके खाना खिलाने या बीमारों को ठीक करने के लिए नहीं कहेंगे और ना ही हमें राजा बनाने की कोशिश करेंगे। पर वे शायद हम पर वोट डालने या किसी ऐसे व्यक्‍ति का साथ देने का दबाव डालें, जो उनके हिसाब से हालात सुधार सकता है। ऐसे में हमें यीशु की मिसाल याद रखनी चाहिए। उसने राजनीति में हिस्सा नहीं लिया और बाद में एक मौके पर उसने कहा, “मेरा राज इस दुनिया का नहीं है।” (यूह. 17:14; 18:36) आज मसीही यीशु के जैसी सोच रखते हैं और उसी के जैसे काम करते हैं। हम सिर्फ परमेश्‍वर के राज का साथ देते हैं, उसके बारे में प्रचार करते हैं और उसके लिए प्रार्थना करते हैं। (मत्ती 6:10) अब चलिए दोबारा रोटीवाले चमत्कार पर ध्यान दें और देखें कि हम उससे और क्या सीख सकते हैं।

यीशु ने राजनीति में कोई हिस्सा नहीं लिया और हमें भी नहीं लेना चाहिए (पैराग्राफ 6)


‘रोटियों के मायने’

7. यीशु क्या चमत्कार करता है और यह देखकर प्रेषितों को कैसा लगता है? (यूहन्‍ना 6:16-20)

7 भीड़ को खाना खिलाने के बाद यीशु प्रेषितों से कहता है कि वे इलाका छोड़कर नाव से कफरनहूम चले जाएँ। और यीशु खुद पहाड़ों की तरफ चला जाता है ताकि लोग उसे राजा ना बनाएँ। (यूहन्‍ना 6:16-20 पढ़िए।) जब प्रेषित नाव में सफर कर रहे होते हैं, तो अचानक एक तूफान आ जाता है और ऊँची-ऊँची लहरें उठने लगती हैं। फिर यीशु पानी पर चलते हुए उनके पास आता है और पतरस से भी पानी पर चलने को कहता है। (मत्ती 14:22-31) पर जैसे ही यीशु नाव में चढ़ता है, तूफान थम जाता है। यह देखकर प्रेषित हैरान रह जाते हैं और कहते हैं, “तू वाकई परमेश्‍वर का बेटा है।” a (मत्ती 14:33) वैसे तो रोटीवाला चमत्कार देखकर ही प्रेषितों को समझ जाना चाहिए था कि यहोवा ने यीशु को चमत्कार करने की कितनी ज़बरदस्त शक्‍ति दी है, पर वे यह नहीं समझ पाए। वे यह बात तब समझे जब उन्होंने यीशु को पानी पर चलते हुए देखा। मरकुस ने लिखा, “[प्रेषित] मन-ही-मन बहुत हैरान थे क्योंकि रोटियों का चमत्कार देखने के बाद भी वे उसके मायने नहीं समझ सके थे। उनके मन अभी-भी समझने में मंद थे।” (मर. 6:50-52) कुछ वक्‍त बाद यीशु खुद ही रोटीवाले चमत्कार का ज़िक्र करता है और एक बढ़िया सीख देता है।

8-9. भीड़ के लोग यीशु को क्यों ढूँढ़ रहे थे? (यूहन्‍ना 6:26, 27)

8 अगले दिन भीड़ के लोग उसी जगह आए जहाँ यीशु ने उन्हें खाना खिलाया था। लेकिन उन्होंने देखा कि यीशु और उसके प्रेषित वहाँ नहीं हैं। तब वे तिबिरियास से आयी कुछ नावों पर चढ़ गए और यीशु को ढूँढ़ने के लिए कफरनहूम चले गए। (यूह. 6:22-24) क्या वे ऐसा इसलिए कर रहे थे ताकि परमेश्‍वर के राज के बारे में और ज़्यादा जान सकें? नहीं, उनका पूरा ध्यान खाने-पीने की ज़रूरतें पूरी करने पर लगा हुआ था। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं?

9 गौर कीजिए कि जब भीड़ ने यीशु को कफरनहूम के पास देखा तो क्या हुआ। यीशु ने उनसे कहा कि वे इसलिए उसे ढूँढ़ते हुए वहाँ आए हैं, क्योंकि वे रोटी खाना चाहते हैं। उन्होंने “जी-भरकर रोटियाँ खायी थीं” और वे उसी से संतुष्ट थे, यानी ऐसे खाने से जो “नष्ट हो जाता है।” लेकिन यीशु ने उन्हें बढ़ावा दिया कि वे ‘उस खाने के लिए काम करें जो हमेशा की ज़िंदगी देता है।’ (यूहन्‍ना 6:26, 27 पढ़िए।) उसने कहा कि उसका पिता उन्हें ऐसा खाना दे सकता है। इस खाने के बारे में सुनकर शायद लोग हैरान रह गए होंगे। पर यह खाना क्या है और लोग यह खाना कैसे पा सकते थे?

10. “हमेशा की ज़िंदगी” पाने के लिए लोगों को क्या करना था?

10 वे यहूदी जानना चाहते थे कि उन्हें वह खाना पाने के लिए क्या करना होगा। उन्हें शायद लग रहा था कि उन्हें मूसा के कानून में बताए काम करने होंगे। लेकिन यीशु ने कहा कि उन्हें ‘उस पर विश्‍वास करना होगा जिसे परमेश्‍वर ने भेजा है।’ (यूह. 6:28, 29) परमेश्‍वर ने जिसे भेजा था वह यीशु ही था। उसी पर विश्‍वास करने से उन्हें “हमेशा की ज़िंदगी” मिल सकती थी। यीशु ने पहले भी इस बारे में बताया था। (यूह. 3:16-18) और आगे चलकर भी उसने इस बारे में और बताया कि हम हमेशा की ज़िंदगी कैसे पा सकते हैं।—यूह. 17:3

11. हम क्यों कह सकते हैं कि यहूदियों का पूरा ध्यान अब भी खाने-पीने की ज़रूरतें पूरी करने पर ही लगा हुआ था? (भजन 78:24, 25)

11 वे यहूदी यह मानने को तैयार नहीं थे कि उन्हें यीशु पर विश्‍वास करना होगा। इसलिए उन्होंने उससे कहा, “फिर तू हमें क्या चमत्कार दिखानेवाला है कि हम उसे देखकर तेरा यकीन करें?” (यूह. 6:30) उन्होंने कहा कि मूसा के ज़माने में उनके पुरखों को स्वर्ग से मन्‍ना मिला करता था, जो उनके लिए हर दिन की रोटी जैसा था। (नहे. 9:15; भजन 78:24, 25 पढ़िए।) उनकी बातों से साफ पता चलता है कि उनका पूरा ध्यान सचमुच की रोटी पर लगा हुआ था। बाद में यीशु ने उन्हें ‘स्वर्ग से मिलनेवाली सच्ची रोटी’ के बारे में बताया जो मन्‍ना से कहीं बढ़कर थी, क्योंकि यह उन्हें हमेशा की ज़िंदगी दिला सकती थी। (यूह. 6:32) पर उन्होंने यीशु से यह जानने की कोशिश नहीं की कि इस रोटी का क्या मतलब है। उनका मन बस खाने-पीने की ज़रूरतें पूरी करने पर लगा हुआ था, ना कि परमेश्‍वर के बारे में सच्चाइयाँ सीखने पर। इस किस्से हम क्या सीख सकते हैं?

हमारे लिए सबसे ज़रूरी क्या होना चाहिए?

12. यीशु ने कैसे समझाया कि हमारे लिए क्या बात सबसे ज़रूरी होनी चाहिए?

12 यूहन्‍ना अध्याय 6 से हम एक अहम बात सीखते हैं। परमेश्‍वर के बारे में सच्चाइयाँ सीखना और उसके साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करना हमारे लिए सबसे ज़रूरी होना चाहिए। यह बात यीशु ने तब भी कही थी, जब शैतान ने उसे फुसलाने की कोशिश की थी। (मत्ती 4:3, 4) और अपने पहाड़ी उपदेश में भी यीशु ने इस बात पर ज़ोर दिया था कि एक व्यक्‍ति में परमेश्‍वर से मार्गदर्शन पाने की भूख होनी चाहिए। (मत्ती 5:3) इसलिए हमें सोचना चाहिए, ‘मैं जिस तरह ज़िंदगी जी रहा हूँ, क्या उससे पता चलता है कि मेरे लिए यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता होना ज़्यादा ज़रूरी है, ना कि अपनी इच्छाएँ पूरी करना?’

13. (क) खाने-पीने की चीज़ों का मज़ा लेना क्यों गलत नहीं है? (ख) हमें किस चेतावनी पर ध्यान देना चाहिए? (1 कुरिंथियों 10:6, 7, 11)

13 खाने-पीने और दूसरी ज़रूरी चीज़ों के लिए प्रार्थना करना और उनका मज़ा लेना गलत नहीं है। (लूका 11:3) हम मेहनत करके जो भी ‘खाते-पीते’ हैं, उससे हमें खुशी मिलती है, यह “परमेश्‍वर की देन है।” (सभो. 2:24; 8:15; याकू. 1:17) लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि ये चीज़ें हमारे लिए सबसे ज़रूरी ना बन जाएँ। प्रेषित पौलुस ने भी मसीहियों से यह बात कही। उसने उन्हें इसराएलियों का किस्सा याद दिलाया, खासकर वह घटना जो सीनै पहाड़ के पास हुई थी। और उन्हें एक चेतावनी दी कि वे ‘ऐसे इंसान न हों जो बुरी बातों की ख्वाहिश रखते हैं, जैसी इसराएलियों में थी।’ (1 कुरिंथियों 10:6, 7, 11 पढ़िए।) यहोवा ने चमत्कार करके इसराएलियों के लिए खाने का इंतज़ाम किया था। लेकिन उसी खाने का लालच करने की वजह से वह खाना उनके लिए ‘बुरी बात’ या फंदा बन गया। (गिन. 11:4-6, 31-34) और जब उन्होंने सोने का बछड़ा बनाया, तो वे खाने-पीने और मौज-मस्ती करने में ही डूब गए। (निर्ग. 32:4-6) पौलुस ने इसराएलियों की मिसाल देकर मसीहियों को चेतावनी दी। वे ऐसे वक्‍त में जी रहे थे जब बहुत जल्द (ईसवी सन्‌ 70 में) यरूशलेम और उसके मंदिर का नाश होनेवाला था। आज हम भी ऐसे वक्‍त में जी रहे हैं जब बहुत जल्द इस दुनिया का नाश होनेवाला है। इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि हम भी पौलुस की चेतावनी पर ध्यान दें।

14. बाइबल में खाने-पीने की चीज़ों के बारे में कौन-से वादे किए गए हैं?

14 जब यीशु ने यह प्रार्थना करना सिखाया कि “आज के दिन की रोटी हमें दे,” तो उसने यह भी कहा कि परमेश्‍वर की मरज़ी “जैसे स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे धरती पर भी पूरी हो।” (मत्ती 6:9-11) उस समय के बारे में सोचकर आपके मन में कैसी तसवीर आती है? बाइबल से पता चलता है कि जब धरती पर परमेश्‍वर की मरज़ी पूरी होगी, तो खाने के लिए बढ़िया-बढ़िया चीज़ें होंगी। यशायाह 25:6-8 में बताया है कि परमेश्‍वर के राज में सबके पास भरपूर खाना होगा। और भजन 72:16 में लिखा है, “धरती पर बहुतायत में अनाज होगा, पहाड़ों की चोटियों पर अनाज की भरमार होगी।” क्या आप उस वक्‍त का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं, जब आप नयी दुनिया में अलग-अलग अनाज की रोटियाँ बनाएँगे या कोई ऐसा खाना बनाएँगे जो आपने कभी नहीं बनाया? उस वक्‍त आप अपने अंगूरों के बाग लगा पाएँगे और उनके फल का मज़ा ले पाएँगे। (यशा. 65:21, 22) धरती पर हर कोई इन अच्छी चीज़ों का मज़ा ले पाएगा।

15. जिन्हें नयी दुनिया में ज़िंदा किया जाएगा, उन्हें किस बारे में सिखाया जाएगा? (यूहन्‍ना 6:35)

15 यूहन्‍ना 6:35 पढ़िए। अब ज़रा एक बार फिर उन लोगों के बारे में सोचिए जिन्हें यीशु ने चमत्कार करके रोटी और मछली खिलायी थी। भले ही उस वक्‍त उन लोगों ने यीशु पर विश्‍वास ना किया हो, पर हो सकता है उनमें से कुछ को नयी दुनिया में दोबारा ज़िंदा किया जाए और आप उनसे मिल पाएँ। (यूह. 5:28, 29) उन लोगों को यीशु के इन शब्दों का मतलब जानना होगा, “मैं जीवन देनेवाली रोटी हूँ। जो मेरे पास आता है वह फिर कभी भूखा नहीं होगा।” उन्हें यीशु के फिरौती बलिदान पर विश्‍वास करना होगा, यह विश्‍वास करना होगा कि यीशु ने उनकी खातिर अपनी जान दी। असल में, नयी दुनिया में जिन्हें ज़िंदा किया जाएगा उन्हें और अगर बच्चे पैदा हुए, तो उन्हें भी परमेश्‍वर और उसके मकसद के बारे में सिखाने का एक इंतज़ाम किया जाएगा। उस वक्‍त लोगों को परमेश्‍वर के बारे में सच्चाइयाँ सिखाने से बहुत खुशी मिलेगी, इतनी खुशी जो बढ़िया-से-बढ़िया खाने से भी नहीं मिल सकती!

16. अगले लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

16 इस लेख में हमने यूहन्‍ना अध्याय 6 की कुछ बातों पर चर्चा की। पर यीशु ने “हमेशा की ज़िंदगी” के बारे में और भी बहुत सारी बातें सिखायीं। उस ज़माने में यहूदियों को उन बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत थी और आज हमें भी है। अगले लेख में हम यूहन्‍ना अध्याय 6 की कुछ और बातों पर चर्चा करेंगे।

गीत 20 तूने अपना अनमोल बेटा दिया