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अंधकार से रौशनी में बुलाया गया

अंधकार से रौशनी में बुलाया गया

“[यहोवा ने] तुम्हें अंधकार से निकालकर अपनी शानदार रौशनी में बुलाया है।”—1 पत. 2:9.

गीत: 43, 28

1. यरूशलेम के नाश के वक्‍त क्या-क्या हुआ?

ईसा पूर्व 607 में बैबिलोन के राजा नबूकदनेस्सर द्वितीय ने एक बड़ी सेना लेकर यरूशलेम पर हमला किया। बाइबल बताती है कि राजा नबूकदनेस्सर ने वहाँ खून की नदियाँ बहा दी। “[उसने] जवानों को उनके पवित्र भवन ही में तलवार से मार डाला। और क्या जवान, क्या कुँवारी, क्या बूढ़े, क्या पक्के बालवाले, किसी पर भी कोमलता न की; . . . [उसने] परमेश्वर का भवन फूँक दिया, और यरूशलेम की शहरपनाह को तोड़ डाला, और आग लगा कर उसके सब भवनों को जलाया, और उसमें का सारा बहुमूल्य सामान नष्ट कर दिया।”—2 इति. 36:17, 19.

2. (क) यहोवा ने क्या चेतावनी दी थी? (ख) यरूशलेम में रहनेवालों के साथ क्या हुआ?

2 यरूशलेम के रहनेवालों को पता था कि यह विनाश आनेवाला है। कई सालों से परमेश्वर के भविष्यवक्ता उन्हें चेतावनी दे रहे थे कि अगर वे परमेश्वर की आज्ञाएँ तोड़ते रहेंगे, तो परमेश्वर उन्हें बैबिलोन के हाथ में कर देगा। और ऐसा ही हुआ। उनमें से बहुतों को तलवार से मार डाला गया और जो बच गए उन्हें अपनी ज़िंदगी बैबिलोन की बँधुआई में काटनी पड़ी। (यिर्म. 15:2) बैबिलोन की बँधुआई में ज़िंदगी कैसी रही होगी? क्या मसीहियों को भी इस तरह की बँधुआई में कभी जाना पड़ा? अगर हाँ, तो कब?

बँधुआई में ज़िंदगी कैसी थी?

3. बैबिलोन की बँधुआई में ज़िंदगी किस तरह मिस्र की गुलामी से अलग थी?

3 यहोवा ने यहूदियों को पहले से बताया था कि जब उन्हें बँधुआई में ले जाया जाएगा तो उन्हें अपने नए हालात को कबूल करना है और उसी में खुश रहना है। उसने यिर्मयाह के ज़रिए उनसे कहा, “घर बनाकर उनमें बस जाओ; बारियाँ लगाकर उनके फल खाओ। जिस नगर में मैं ने तुम को बन्दी कराके भेज दिया है, उसके कुशल का यत्न किया करो, और उसके हित के लिये यहोवा से प्रार्थना किया करो। क्योंकि उसके कुशल से तुम भी कुशल के साथ रहोगे।” (यिर्म. 29:5, 7) जिन यहूदियों ने यहोवा की यह हिदायत मानी, उन्होंने बैबिलोन में काफी हद तक एक आम ज़िंदगी बितायी। उन्हें अपना काम-काज करने और देश में कहीं भी जाने की आज़ादी थी। उस वक्‍त बैबिलोन व्यापार और कारोबार का खास केंद्र था। प्राचीन दस्तावेज़ों से पता चलता है कि कुछ यहूदियों ने लेन-देन का काम सीखा था और कुछ ने शिल्पकारी के काम में महारत हासिल की थी। कुछ यहूदी तो वहाँ रहते हुए अमीर हो गए थे। बैबिलोन की बँधुआई में ज़िंदगी उतनी मुश्किल नहीं थी जितनी सैकड़ों साल पहले इसराएलियों की थी जब वे मिस्र में गुलाम थे।—निर्गमन 2:23-25 पढ़िए।

4. (क) परमेश्वर की आज्ञा न माननेवाले यहूदियों के साथ-साथ और किन लोगों को तकलीफें उठानी पड़ी? (ख) वफादार यहूदियों के लिए कानून की हर बात मानना मुमकिन क्यों नहीं था?

4 बँधुआई में जानेवाले यहूदियों में से कुछ परमेश्वर के वफादार सेवक भी थे। हालाँकि उन्होंने कोई बुरा काम नहीं किया था फिर भी उन्हें बाकी यहूदियों के साथ-साथ तकलीफें उठानी पड़ी। बँधुआई में यहूदियों के पास खाने-पहनने के लिए चीज़ें तो थीं, मगर यहोवा की उपासना के बारे में क्या? उनके पास न तो यहोवा का मंदिर था, न वेदी और न ही याजकों का कोई इंतज़ाम था। फिर भी वफादार यहूदियों से जितना हो सका, उन्होंने परमेश्वर के नियमों को मानने की कोशिश की। जैसे, दानिय्येल, शद्रक, मेशक और अबेदनगो ने खुद को ऐसे खाने से दूषित नहीं किया जिसे खाना यहूदियों को मना था। बाइबल यह भी बताती है कि दानिय्येल ने लगातार यहोवा से प्रार्थना की। (दानि. 1:8; 6:10) लेकिन वफादार यहूदियों के लिए परमेश्वर के कानून की हर बात मानना मुमकिन नहीं था क्योंकि वे ऐसे राष्ट्र के अधीन थे जो झूठे देवताओं को पूजते थे।

5. (क) यहोवा ने अपने लोगों से क्या वादा किया था? (ख) यह वादा क्यों गौर करने लायक था?

5 क्या इसराएली उम्मीद कर सकते थे कि वे कभी यहोवा की उपासना बिना रोक-टोक के कर पाएँगे? उस वक्‍त शायद उन्हें यह नामुमकिन लगा होगा क्योंकि बैबिलोन कभी अपने कैदियों को आज़ाद नहीं करता था। लेकिन यहोवा परमेश्वर ने वादा किया था कि उसके लोगों को आज़ाद किया जाएगा। और ऐसा ही हुआ। वाकई परमेश्वर के वादे हमेशा पूरे होते हैं!—यशा. 55:11.

क्या मसीही कभी बैबिलोन की बँधुआई में गए?

6, 7. हमें अपनी समझ में फेरबदल करना क्यों ज़रूरी है?

6 क्या यहूदियों की तरह मसीही भी कभी बैबिलोन की बँधुआई में गए थे? कई सालों तक प्रहरीदुर्ग पत्रिका यही बताती आयी है कि वफादार मसीही 1918 में बैबिलोन की बँधुआई में गए थे और 1919 में उन्हें बैबिलोन से आज़ाद किया गया था। लेकिन इस लेख में और अगले लेख में हम सीखेंगे कि हमें अपनी इस समझ में फेरबदल करने की क्यों ज़रूरत है।

7 ज़रा इन बातों पर ध्यान दीजिए: महानगरी बैबिलोन पूरी दुनिया में फैले झूठे धर्मों का साम्राज्य है और 1918 में परमेश्वर के लोग इस झूठे धर्म की गुलामी में नहीं गए थे। माना उस दौरान अभिषिक्‍त लोगों को सताया गया था लेकिन उन्हें सरकारों ने सताया था, झूठे धर्म ने नहीं। दरअसल पहले विश्व युद्ध से बहुत साल पहले परमेश्वर के अभिषिक्‍त सेवकों ने झूठे धर्म से अलग होना शुरू कर दिया था। इसलिए ऐसा नहीं लगता कि यहोवा के लोग 1918 में महानगरी बैबिलोन की बँधुआई में गए।

परमेश्वर के लोग कब बैबिलोन की बँधुआई में गए?

8. प्रेषितों की मौत के बाद क्या हुआ? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

8 ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त के दिन हज़ारों नए मसीहियों का पवित्र शक्‍ति से अभिषेक हुआ। ये मसीही “एक चुना हुआ वंश, शाही याजकों का दल और एक पवित्र राष्ट्र और परमेश्वर की खास संपत्ति बनने के लिए चुने गए।” (1 पतरस 2:9, 10 पढ़िए।) जब तक प्रेषित ज़िंदा थे तो उन्होंने मंडलियों पर कड़ी नज़र रखी। लेकिन उनकी मौत के बाद ऐसे आदमी उठ खड़े हुए ‘जो चेलों को अपने पीछे खींच लेने के लिए टेढ़ी-मेढ़ी बातें कहने लगे।’ (प्रेषि. 20:30; 2 थिस्स. 2:6-8) इनमें से कई आदमी मंडली में निगरानों की ज़िम्मेदारी सँभालते थे, जिन्हें बाद में “बिशप” कहा जाने लगा। इस तरह एक पादरी वर्ग की शुरूआत हुई, जो कि यीशु की इस शिक्षा के खिलाफ था कि “तुम सब भाई हो।” (मत्ती 23:8) इन आदमियों को प्लेटो और अरस्तू के फलसफों से इतना लगाव था कि वे परमेश्वर के वचन की सच्चाई सिखाने के बजाय झूठे धर्मों की शिक्षाएँ सिखाने लगे।

9. (क) समझाइए कि कैसे झूठा मसीही धर्म रोमी सरकार के साथ मिल गया? (ख) इसका क्या नतीजा हुआ?

9 ईसवी सन्‌ 313 में, रोमी सम्राट कॉनस्टनटाइन ने इस झूठे मसीही धर्म को कानूनी मान्यता दी। इसके बाद, चर्च रोमी सरकार के साथ-साथ काम करने लगा। मिसाल के लिए, कॉनस्टनटाइन ने धर्म के अगुवों के साथ एक सभा रखी जो निसिया की धर्मसभा के नाम से मशहूर है। इस सभा के बाद, सम्राट ने एरीयस नाम के एक पादरी को देश-निकाला दे दिया क्योंकि उसने यह मानने से इनकार किया कि यीशु परमेश्वर है। बाद में, जब थियोडोशस रोम का सम्राट बना तो उसके राज में कैथोलिक चर्च रोमी साम्राज्य का मुख्य धर्म बन गया। इतिहासकारों का कहना है कि इसी सम्राट की हुकूमत के दौरान झूठे देवताओं को पूजनेवाले रोमी राष्ट्र ने “मसीही धर्म” को अपना लिया था। मगर सच्चाई इसके बिलकुल उलट थी। असल में झूठे मसीहियों ने रोमी साम्राज्य की झूठी शिक्षाएँ अपना ली थीं और इस तरह वे महानगरी बैबिलोन का हिस्सा बन गए। फिर भी कुछ ऐसे वफादार अभिषिक्‍त मसीही थे, जो यीशु की मिसाल में बताए गेहूँ के पौधों की तरह थे। ये वफादार मसीही परमेश्वर की उपासना करने की पूरी कोशिश कर रहे थे मगर कोई भी उनकी सुनना नहीं चाहता था। (मत्ती 13:24, 25, 37-39 पढ़िए।) इसमें कोई शक नहीं कि ये वफादार मसीही मानो बैबिलोन की बँधुआई में थे!

10. चर्च की शिक्षाओं को लेकर लोगों के मन में क्यों सवाल उठने लगे?

10 पहली सदी के बाद, सैकड़ों सालों तक कई लोग यूनानी या लातिनी भाषा में बाइबल पढ़ सकते थे। वे जाँच सकते थे कि चर्च की शिक्षाएँ, परमेश्वर के वचन में दी शिक्षाओं से मेल खाती हैं या नहीं। जब कुछ लोगों ने जाना कि चर्च की शिक्षाएँ झूठी हैं तो उन्होंने उन्हें मानना छोड़ दिया। मगर वे खुलकर अपनी राय दूसरों को नहीं बता सकते थे क्योंकि ऐसा करना खतरे से खाली नहीं था, उनकी जान भी जा सकती थी।

11. चर्च ने बाइबल को लेकर क्या रोक लगायी थी?

11 जैसे-जैसे समय गुज़रा यूनानी और लातिनी भाषा बोलनेवाले कुछ ही लोग रह गए। इसके अलावा, चर्च के अगुवों ने बाइबल का अनुवाद आम लोगों की भाषाओं में नहीं होने दिया। नतीजा यह हुआ कि सिर्फ पादरी और कुछ पढ़े-लिखे लोग ही बाइबल पढ़ सकते थे और इनमें भी कुछ ऐसे थे जो उन भाषाओं को अच्छी तरह नहीं जानते थे। जो लोग चर्च की शिक्षाएँ मानने से इनकार कर देते थे उन्हें कड़ी सज़ा दी जाती थी। इस वजह से वफादार अभिषिक्‍त मसीहियों को छोटे-छोटे समूह में इकट्ठा होना पड़ता था और कुछ लोगों के लिए इस तरह इकट्ठा होना भी मुश्किल था। बैबिलोन के यहूदी कैदियों की तरह “शाही याजकों का [अभिषिक्‍त] दल” संगठित तरीके से परमेश्वर की उपासना नहीं कर पा रहा था। वाकई महानगरी बैबिलोन ने लोगों पर अपनी पकड़ मज़बूत कर रखी थी।

उम्मीद की किरण जाग उठी

12, 13. कौन-सी दो वजह थीं जिससे सच्चे मसीहियों में उम्मीद जागी? समझाइए।

12 क्या सच्चे मसीही कभी खुलेआम परमेश्वर की उपासना कर पाते? और क्या उनकी उपासना परमेश्वर को मंज़ूर होती? बिलकुल! उन्हें यह उम्मीद रखने की दो वजह मिलीं। पहली वजह, सन्‌ 1450 के आस-पास छपाई की ऐसी मशीन ईजाद की गयी जिसमें छापने के लिए धातु से बने अक्षर इस्तेमाल किए जाते थे। इससे पहले बाइबल की कॉपियाँ हाथ से लिखकर तैयार की जाती थीं, जिसमें बहुत मेहनत लगती थी। एक कुशल व्यक्‍ति को पूरी बाइबल की एक नकल तैयार करने में करीब 10 महीने लगते थे। इसके अलावा नकल तैयार करनेवाले, चर्मपत्रों का इस्तेमाल करते थे जो काफी महँगे थे। नतीजा, बाइबल की बहुत कम कॉपियाँ उपलब्ध थीं। लेकिन कागज़ और छपाई की मशीन आने की वजह से एक कुशल व्यक्‍ति एक दिन में 1,300 से भी ज़्यादा पन्ने छाप सकता था!

छपाई की मशीन और बहादुर बाइबल अनुवादकों की बदौलत बैबिलोन की पकड़ ढीली पड़ती गयी (पैराग्राफ 12, 13 देखिए)

13 दूसरी वजह, 16वीं सदी की शुरूआत में बाइबल का अनुवाद होने लगा। कुछ बहादुर आदमियों ने बाइबल का अनुवाद आम लोगों की भाषाओं में करना शुरू किया। वे जानते थे कि इस काम के लिए उनकी जान जा सकती है फिर भी वे पीछे नहीं हटे। चर्च के अगुवे घबरा उठे। क्यों? क्योंकि उन्हें डर था कि अगर नेकदिल लोग बाइबल को अपनी भाषा में पढ़ेंगे, तो वे सवाल करने लगेंगे। जैसे, ‘बाइबल में यह शिक्षा कहाँ दी गयी है कि ऐसी कोई जगह है जहाँ आत्माओं को तड़पाकर शुद्ध किया जाता है? बाइबल में कहाँ लिखा है कि किसी की मौत होने पर जब पादरी को प्रार्थना के लिए बुलाया जाता है, तो उसे पैसे देने चाहिए? बाइबल में पोप और कार्डिनल के बारे में कहाँ लिखा है?’ चर्च की कई झूठी शिक्षाएँ अरस्तू और प्लेटो के फलसफों पर आधारित थीं, ये आदमी यीशु से सैकड़ों साल पहले जीए थे। जब लोग चर्च के अगुवों से सवाल करने लगे तो वे आग-बबूला हो उठे। उन्होंने उन लोगों को मौत की सज़ा दी जो चर्च की शिक्षाओं को मानने से इनकार कर रहे थे। ये अगुवे नहीं चाहते थे कि लोग बाइबल पढ़ें और सवाल करें और ऐसा करने में वे काफी हद तक कामयाब हुए। लेकिन कुछ बहादुर लोगों को महानगरी बैबिलोन के शिकंजे में रहना मंज़ूर नहीं था। उन्होंने बाइबल से जान लिया था कि सच्चाई क्या है और वे इस बारे में और सीखना चाहते थे! जल्द ही उन्हें झूठे धर्म से छुटकारा मिलनेवाला था।

14. (क) बाइबल का अध्ययन करने के लिए कुछ लोगों ने क्या किया? (ख) समझाइए कि भाई रसल ने सच्चाई की तलाश करने के लिए क्या किया।

14 ऐसे कई लोग थे जो बाइबल पढ़ना, उसका अध्ययन करना और सीखी बातें दूसरों को बताना चाहते थे। वे नहीं चाहते थे कि चर्च के अगुवे उन्हें बताएँ कि उन्हें क्या मानना चाहिए और क्या नहीं। इसलिए वे भागकर उन देशों में चले गए जहाँ बाइबल पढ़ने की आज़ादी थी। इनमें से एक देश था, अमरीका। वहाँ सन्‌ 1870 में चार्ल्स टेज़ रसल और उनके कुछ साथी बाइबल का गहराई से अध्ययन करने लगे। उस वक्‍त भाई रसल जानना चाहते थे कि ऐसा कौन-सा धर्म है जो सच्चाई सिखाता है। उन्होंने कई ईसाई धर्मों और गैर-ईसाई धर्मों की शिक्षाओं की तुलना बाइबल से की। जल्द ही वे समझ गए कि उनमें से कोई भी धर्म बाइबल की शिक्षाओं को पूरी तरह नहीं मानता। भाई रसल और उनके साथी चाहते थे कि उन्होंने बाइबल से जो सच्चाइयाँ सीखी थीं, चर्च के अगुवे उन्हें मानें और अपनी मंडलियों को भी इस बारे में सिखाएँ। इसलिए एक मौके पर भाई रसल ने अलग-अलग चर्च के अगुवों से बात की। मगर उन लोगों को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। बाइबल विद्यार्थी समझ गए कि वे उन लोगों के साथ मिलकर परमेश्वर की उपासना नहीं कर सकते जो अब भी झूठे धर्म का हिस्सा हैं।—2 कुरिंथियों 6:14 पढ़िए।

15. (क) सच्चे मसीही कब बैबिलोन की बँधुआई में गए? (ख) अगले लेख में हम किन सवालों पर गौर करेंगे?

15 इस लेख में हमने सीखा कि सच्चे मसीही आखिरी प्रेषित की मौत के बाद बैबिलोन की बँधुआई में गए। लेकिन अभी-भी कुछ सवाल हैं जिनके जवाब हमें जानने हैं। मिसाल के लिए, हम कैसे जानते हैं कि अभिषिक्‍त मसीही 1914 से बहुत पहले महानगरी बैबिलोन की बँधुआई से आज़ाद होने लगे थे? क्या यह सच है कि यहोवा अपने सेवकों से खुश नहीं था क्योंकि वे पहले विश्व युद्ध के दौरान प्रचार काम में ढीले पड़ गए थे? क्या उस दौरान हमारे कुछ भाइयों ने अपनी मसीही निष्पक्षता से समझौता किया था और यहोवा की मंज़ूरी खो बैठे थे? अगर सच्चे मसीही आखिरी प्रेषित की मौत के बाद झूठे धर्म की बँधुआई में गए तो वे आज़ाद कब हुए? ये सवाल गौर करने लायक हैं और इनके जवाब हमें अगले लेख में मिलेंगे।