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हर दिन एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते रहो

हर दिन एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते रहो

“अगर लोगों की हिम्मत बँधाने के लिए तुम्हारे पास कहने को कुछ हो तो कहो।”—प्रेषि. 13:15.

गीत: 52, 22

1, 2. समझाइए कि हिम्मत बँधाना क्यों ज़रूरी है।

अठारह साल की क्रिसटीना [1] कहती है, “मेरे मम्मी-पापा कभी मेरी हिम्मत नहीं बढ़ाते। उलटा हमेशा मुझमें नुक्स निकालते रहते हैं। वे कहते हैं, मुझमें अभी-भी बचपना है। मैं कभी कुछ नहीं सीख सकती। वे यह भी कहते हैं कि मैं मोटी हूँ। उनकी बातें बहुत चोट पहुँचाती हैं, इसलिए मैं अकसर रोती हूँ। मुझे उनसे बात करना बिलकुल पसंद नहीं। मुझे लगता है, मैं किसी काम की नहीं हूँ।” यह अनुभव दिखाता है कि हौसला न मिलने पर जीना मुश्किल हो सकता है।

2 वहीं दूसरी तरफ, हौसला बढ़ाने का बढ़िया असर हो सकता है। रूबेन कहता है, “कई सालों तक मैं निराशा की भावना से जूझता रहा। लेकिन एक बार मैं एक प्राचीन के साथ प्रचार कर रहा था। उन्होंने देखा कि मैं उदास हूँ। उनके पूछने पर जब मैंने उन्हें बताया कि मैं किन भावनाओं से गुज़र रहा हूँ, तो उन्होंने बड़े ध्यान से मेरी बात सुनी। फिर उन्होंने मुझे याद दिलाया कि मैं यहोवा की सेवा में कितना अच्छा कर रहा हूँ। उन्होंने मुझे यीशु की यह बात भी याद दिलायी कि हमारा मोल चिड़ियों से कहीं बढ़कर है। मैं अकसर उस आयत पर मनन करता हूँ और वह मेरे दिल को छू जाती है। उस प्राचीन की हिम्मत बँधानेवाली बातों का मुझ पर बहुत गहरा असर हुआ।”—मत्ती 10:31.

3. (क) प्रेषित पौलुस ने हौसला बढ़ाने के बारे में क्या कहा? (ख) हम इस लेख में किन सवालों पर गौर करेंगे?

3 बाइबल बताती है कि समय-समय पर हम सबकी हिम्मत बँधाए जाने की ज़रूरत होती है। प्रेषित पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को लिखा था, “भाइयो, खबरदार रहो, कहीं जीवित परमेश्वर से दूर जाने की वजह से तुममें से किसी का दिल कठोर होकर ऐसा दुष्ट न हो जाए जिसमें विश्वास न हो। मगर हर दिन . . . तुम एक-दूसरे को सीख देकर उकसाते रहो [या “हौसला बढ़ाते रहो,” एन.डब्ल्यू.]।” पौलुस ऐसा करने की वजह भी बताता है। वह कहता है, “ताकि तुम में से कोई भी पाप की भरमाने की ताकत की वजह से कठोर न हो जाए।” (इब्रा. 3:12, 13) इसमें कोई शक नहीं कि कभी-न-कभी किसी ने आपका भी हौसला बढ़ाया होगा इसलिए शायद आप जानते हैं कि किसी का हौसला बढ़ाना कितना ज़रूरी होता है। तो आइए इन सवालों पर गौर करें: हौसला बढ़ाना क्यों ज़रूरी है? यहोवा, यीशु और पौलुस ने जिस तरह दूसरों का हौसला बढ़ाया, उससे हम क्या सीख सकते हैं? और हम किस तरह दूसरों का हौसला बढ़ा सकते हैं?

हम सबका हौसला बढ़ाए जाने की ज़रूरत है

4. (क) किन लोगों का हौसला बढ़ाए जाने की ज़रूरत है? (ख) आज क्यों ज़्यादातर लोग दूसरों का हौसला नहीं बढ़ाते?

4 समय-समय पर हम सबको हौसले की ज़रूरत होती है, खासकर बढ़ते बच्चों को। टिमथी ऐवन्ज़ नाम का एक शिक्षक कहता है, “जैसे पौधे को पानी की ज़रूरत होती है वैसे ही बच्चों को . . . हौसले की ज़रूरत होती है। जब बच्चों का हौसला बढ़ाया जाता है तो वे महसूस करते हैं कि उनकी कदर की जाती है और वे भी अहमियत रखते हैं।” लेकिन आज हम संकटों से भरे वक्‍त में जी रहे हैं। लोग सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं, दूसरों से कोई लगाव नहीं रखते और न ही कोई किसी का हौसला बढ़ाता है। (2 तीमु. 3:1-5) कुछ माता-पिता अपने बच्चों की तारीफ नहीं करते न ही उनकी हिम्मत बढ़ाते हैं क्योंकि खुद उनके माता-पिता ने कभी उनकी हिम्मत नहीं बढ़ायी। बच्चों के अलावा बड़ों का भी हौसला बढ़ाए जाने की ज़रूरत होती है। नौकरी की जगह कई लोग शिकायत करते हैं कि उनके काम के लिए कोई उनकी तारीफ नहीं करता।

5. हम दूसरों का हौसला कैसे बढ़ा सकते हैं?

5 हम दूसरों का हौसला बढ़ाने के लिए उनके कामों की तारीफ कर सकते हैं। हम उन्हें बता सकते हैं कि उनमें कौन-से अच्छे गुण हैं। जब वे निराश होते हैं तो हम उन्हें दिलासा भी दे सकते हैं। (1 थिस्स. 5:14) हम अकसर अपने भाई-बहनों के साथ होते हैं इसलिए हमें उनका हौसला बढ़ाने के कई मौके मिलते हैं। (सभोपदेशक 4:9, 10 पढ़िए।) हमें अपने आपसे पूछना चाहिए: ‘क्या मैं अपने भाई-बहनों को बताता हूँ कि मैं उनसे प्यार करता हूँ और उनकी कदर करता हूँ? क्या मैं हर मौके पर ऐसा करता हूँ?’ ध्यान दीजिए कि इस बारे में बाइबल क्या बताती है, “अवसर पर [या “सही वक्‍त पर,” एन.डब्ल्यू.] कहा हुआ वचन क्या ही भला होता है!”—नीति. 15:23.

6. (क) शैतान क्यों चाहता है कि हम निराश हो जाएँ? (ख) उसने किसके साथ ऐसा करने की कोशिश की?

6 शैतान चाहता है कि हम निराश हो जाएँ क्योंकि वह जानता है कि निराशा, यहोवा के साथ हमारा रिश्ता कमज़ोर कर सकती है और हमारे हौसले पस्त कर सकती है। नीतिवचन 24:10 बताता है, “यदि तू विपत्ति के समय साहस छोड़ दे, तो तेरी शक्‍ति बहुत कम है।” शैतान ने नेक इंसान अय्यूब पर मुसीबतें लाकर और उस पर इलज़ाम लगाकर उसकी हिम्मत तोड़ने की कोशिश की, लेकिन उसकी चालें नाकाम रहीं। (अय्यू. 2:3; 22:3; 27:5) आज हम भी इबलीस की चालों को नाकाम कर सकते हैं। कैसे? अपने परिवार और मंडली के सदस्यों का हौसला बढ़ाकर। अगर हम ऐसा करें तो हम अपने घर और राज-घर को ऐसी जगह बना पाएँगे, जहाँ हम खुश रह सकेंगे और यहोवा के साथ हमारा एक करीबी रिश्ता होगा।

उनकी मिसाल पर चलिए, जिन्होंने दूसरों का हौसला बढ़ाया

7, 8. (क) बाइबल के कौन-से उदाहरणों से पता चलता है कि यहोवा ने दूसरों की हिम्मत बँधायी? (ख) माता-पिता कैसे यहोवा की मिसाल पर चल सकते हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

7 यहोवा। भजन के लिखनेवाले ने एक गीत में लिखा, “यहोवा टूटे मनवालों के समीप रहता है, और पिसे हुओं का उद्धार करता है।” (भज. 34:18) जब यिर्मयाह डरा हुआ और निराश था, तब यहोवा ने अपने उस वफादार सेवक का हौसला बढ़ाया। (यिर्म. 1:6-10) ज़रा सोचिए कि बुज़ुर्ग भविष्यवक्ता दानिय्येल का तब कितना हौसला बढ़ा होगा जब परमेश्वर ने अपना एक स्वर्गदूत भेजकर उसको मज़बूत किया। उस स्वर्गदूत ने दानिय्येल को “अति प्रिय पुरुष” कहा! (दानि. 10:8, 11, 18, 19) क्या आप भी इसी तरह उन प्रचारकों, पायनियरों और बुज़ुर्ग भाई-बहनों का हौसला बढ़ा सकते हैं, जिनका हौसला कमज़ोर पड़ रहा है?

8 जब यीशु धरती पर था, तब परमेश्वर ने उसकी भी हिम्मत बँधायी। उसने यह नहीं सोचा कि उसके बेटे ने उसके साथ करोड़ों साल बिताए हैं, इसलिए उसकी तारीफ करने या उसका हौसला बढ़ाने की ज़रूरत नहीं। इसके बजाय, दो मौकों पर यहोवा ने यीशु की हिम्मत बँधायी। पहला, जब वह अपनी सेवा शुरू कर रहा था और दूसरा, उसकी ज़िंदगी के आखिरी साल के दौरान। इन दोनों मौकों पर यहोवा ने कहा, “यह मेरा प्यारा बेटा है। मैंने इसे मंज़ूर किया है।” (मत्ती 3:17; 17:5) ज़रा सोचिए, अपने पिता के ये शब्द सुनकर यीशु का कितना हौसला बढ़ा होगा! यीशु की मौत से एक रात पहले जब वह बहुत दुखी था और चिंता में था तब भी परमेश्वर ने अपना एक स्वर्गदूत भेजकर उसकी हिम्मत बँधायी। (लूका 22:43) अगर आप एक माता या पिता हैं, तो यहोवा की मिसाल पर चलते हुए हमेशा अपने बच्चों का हौसला बढ़ाते रहिए और उनके अच्छे कामों के लिए उनको शाबाशी दीजिए। यही नहीं, जब वे स्कूल में परीक्षाओं से गुज़रते हैं तो उनकी हिम्मत बँधाइए और वफादार बने रहने में उनकी मदद कीजिए।

9. यीशु अपने प्रेषितों के साथ जिस तरह पेश आया उससे हम क्या सीख सकते हैं?

9 यीशु। जिस रात यीशु ने स्मारक की शुरूआत की, उसने देखा कि उसके प्रेषितों में अभी-भी घमंड है। इस पर यीशु ने उनके पैर धोए और उन्हें बताया कि नम्र होना कितना ज़रूरी है। मगर वे फिर इस बात पर बहस करने लगे कि उनमें सबसे बड़ा कौन है। पतरस ने तो शेखी भी मारी कि वह यीशु का साथ कभी नहीं छोड़ेगा। (लूका 22:24, 33, 34) पर यीशु ने उनकी गलतियों पर ध्यान नहीं दिया। इसके बजाय उसने उन्हें शाबाशी दी कि वे उसकी परीक्षाओं के दौरान लगातार उसके साथ रहे। उसने यह भी भविष्यवाणी की कि उसके चेले उससे भी बड़े-बड़े काम करेंगे। उसने उन्हें भरोसा दिलाया कि परमेश्वर उनसे गहरा लगाव रखता है। (लूका 22:28; यूह. 14:12; 16:27) हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘क्या मुझे भी यीशु की मिसाल पर नहीं चलना चाहिए? क्या मुझे अपने बच्चों और दूसरों में गलतियाँ निकालने के बजाय उनकी अच्छाइयों के लिए उनकी तारीफ नहीं करनी चाहिए?’

10, 11. पौलुस ने कैसे दिखाया कि दूसरों का हौसला बढ़ाना ज़रूरी है?

10 प्रेषित पौलुस। पौलुस ने अपने खतों में साथी मसीहियों की बहुत तारीफ की। उसने उनमें से कुछ के साथ कई सालों तक सफर किया, इसलिए वह उनकी खामियों से अच्छी तरह वाकिफ था। लेकिन फिर भी उसने उनके बारे में अच्छी बातें कहीं। उदाहरण के लिए, पौलुस ने तीमुथियुस के बारे में कहा कि वह “प्रभु में मेरा प्यारा और विश्वासयोग्य बच्चा” है, जो सच्चे दिल से दूसरे मसीहियों की परवाह करता है। (1 कुरिं. 4:17; फिलि. 2:19, 20) उसने कुरिंथ की मंडली से तीतुस की तारीफ की और कहा कि “वह भी मेरी तरह तुम्हारी भलाई के लिए मेरा सहकर्मी है।” (2 कुरिं. 8:23) तीमुथियुस और तीतुस को यह जानकर कितना हौसला मिला होगा कि पौलुस उनके बारे में क्या सोचता है!

11 इसके अलावा, पौलुस और उसके साथी बरनबास ने अपने भाइयों का हौसला बढ़ाने के लिए अपनी जान का भी जोखिम उठाया। मिसाल के लिए, वे वापस लुस्त्रा गए जहाँ उन पर जानलेवा हमला हुआ था। वहाँ जाकर उन्होंने नए चेलों की हिम्मत बँधायी ताकि वे विश्वास में डटे रहें। (प्रेषि. 14:19-22) इफिसुस में जब पौलुस का सामना गुस्से से पागल एक भीड़ से हुआ तो उसके बाद पौलुस काफी समय तक वहीं रहा और भाइयों का हौसला बढ़ाता रहा। प्रेषितों 20:1, 2 बताता है, “जब हुल्लड़ थम गया, तो पौलुस ने चेलों को बुलवाया और उनका हौसला बढ़ाने के बाद उन्हें अलविदा कहा और मकिदुनिया के सफर पर निकल पड़ा। उन इलाकों का दौरा करते वक्‍त उसने बहुत-सी बातें कहकर वहाँ के चेलों का हौसला बढ़ाया और फिर वह यूनान आया।” वाकई पौलुस अच्छी तरह समझता था कि दूसरों का हौसला बढ़ाना कितना ज़रूरी है।

एक-दूसरे का हौसला बढ़ाइए

12. एक-दूसरे का हौसला बढ़ाने के लिए सभाएँ कितनी ज़रूरी हैं?

12 स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता ने एक प्यार-भरा इंतज़ाम किया है और वह है मसीही सभाएँ। हर हफ्ते होनेवाली इन सभाओं में हम यहोवा के बारे में सीखते हैं और इनमें हम एक-दूसरे का हौसला बढ़ा पाते हैं। (1 कुरिं. 14:31; इब्रानियों 10:24, 25 पढ़िए।) क्रिसटीना, जिसका ज़िक्र लेख की शुरूआत में किया गया था, कहती है, “मुझे सभाओं में जाना बहुत पसंद है क्योंकि वहीं पर मुझे प्यार और हौसला मिलता है। कभी-कभी मैं बहुत निराश होती हूँ लेकिन जब मैं राज-घर पहुँचती हूँ, तो बहनें मुझे प्यार से गले लगाती हैं। वे मुझसे बातें करती हैं और कहती हैं कि मैं बहुत अच्छी लग रही हूँ। वे यह भी कहती हैं कि वे मुझसे प्यार करती हैं और मैं परमेश्वर की सेवा में अच्छा कर रही हूँ। उनकी ये बातें सुनकर मैं खिल उठती हूँ, मुझमें हिम्मत आ जाती है।” वाकई यह कितना ज़रूरी है कि हम एक-दूसरे का हौसला बढ़ाएँ।—रोमि. 1:11, 12.

13. लंबे समय से परमेश्वर की सेवा करनेवालों का हौसला बढ़ाए जाने की ज़रूरत क्यों है?

13 लंबे समय से परमेश्वर की सेवा करनेवालों का भी हौसला बढ़ाए जाने की ज़रूरत होती है। यहोशू के बारे में सोचिए। उसने कई सालों तक वफादारी से यहोवा की सेवा की थी। फिर भी यहोवा ने मूसा से कहा कि वह यहोशू की हिम्मत बँधाए। उसने कहा, “यहोशू को आज्ञा दे, और उसे ढाढ़स देकर दृढ़ कर; क्योंकि इन लोगों के आगे आगे वही पार जाएगा, और जो देश तू देखेगा उसको वही उनका निज भाग करा देगा।” (व्यव. 3:27, 28) जल्द ही यहोशू इसराएलियों को वादा किए गए देश में पहुँचाने की एक बड़ी ज़िम्मेदारी सँभालनेवाला था। कभी-कभी उसे निराशा और हार का सामना करना पड़ता। (यहो. 7:1-9) इसलिए यहोशू की हिम्मत बँधायी गयी और उसे मज़बूत किया गया। आइए हम भी प्राचीनों और सर्किट निगरानों की हिम्मत बँधाएँ जो परमेश्वर के झुंड की रखवाली करने में कड़ी मेहनत करते हैं। (1 थिस्सलुनीकियों 5:12, 13 पढ़िए।) एक सर्किट निगरान ने कहा, “कभी-कभी भाई-बहन हमें खत देते हैं और उसमें लिखते हैं कि उन्हें हमारा दौरा कितना पसंद आया। हम ये सारे खत सँभालकर रखते हैं और जब हम निराश होते हैं तो इन्हें पढ़ते हैं और इससे हमारा बहुत हौसला बढ़ता है।”

बच्चों की तारीफ करने से वे परमेश्वर की सेवा में आगे बढ़ते हैं और खुश रहते हैं (पैराग्राफ 14 देखिए)

14. क्या दिखाता है कि तारीफ करने से सलाह मानना आसान हो जाता है?

14 एक मौके पर, प्रेषित पौलुस ने कुरिंथ के मसीहियों को सलाह दी थी। और जब उन्होंने उसकी सलाह मानी तो पौलुस ने इस बात के लिए उनकी तारीफ की। (2 कुरिं. 7: 8-11) इस वजह से उन्हें सही काम करते रहने का बढ़ावा मिला। आज प्राचीन और मसीही माता-पिता भी पौलुस की मिसाल पर चलते हुए दूसरों का हौसला बढ़ाते हैं। आंद्रे के उदाहरण पर गौर कीजिए जिसके दो बच्चे हैं। वह कहता है, “जब बच्चों की तारीफ की जाती है, तो वे परमेश्वर की सेवा में आगे बढ़ते हैं और खुश रहते हैं। यही नहीं, तारीफ करने के बाद जब बच्चे को कोई सलाह दी जाती है तो वह उसे मानता है और याद भी रखता है। हालाँकि हमारे बच्चे जानते हैं कि सही क्या है, लेकिन जब हम उनकी तारीफ करते हैं तो सही काम करना उनके जीने का तरीका बन जाता है।”

किस तरह दूसरों का हौसला बढ़ाएँ

15. दूसरों का हौसला बढ़ाने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

15 भाई-बहनों की मेहनत और उनके अच्छे गुणों के लिए उनकी तारीफ कीजिए। (2 इति. 16:9; अय्यू. 1:8) राज के कामों को आगे बढ़ाने के लिए हम सब जो भी करते हैं, उसकी यहोवा और यीशु बहुत कदर करते हैं। फिर चाहे हम अपने हालात की वजह से उतना न कर पाएँ जितना हम करना चाहते हैं। (लूका 21:1-4; 2 कुरिंथियों 8:12 पढ़िए।) मिसाल के लिए, हमारे कुछ बुज़ुर्ग भाई-बहन सभाओं में आने और उनमें हिस्सा लेने में बहुत मेहनत करते हैं। साथ ही वे लगातार प्रचार में भी जाने की कोशिश करते हैं। क्या इसके लिए हमें उन प्यारे भाई-बहनों की सराहना नहीं करनी चाहिए और उनका हौसला नहीं बढ़ाना चाहिए?

16. हमें क्यों दूसरों की सराहना करने से पीछे नहीं हटना चाहिए?

16 जब भी मौका मिले, दूसरों का हौसला बढ़ाइए। जब कोई अच्छा काम करता है तो हमें उसकी सराहना करने से पीछे नहीं हटना चाहिए। गौर कीजिए कि जब पौलुस और बरनबास पिसिदिया इलाके के अंताकिया शहर में थे, तो क्या हुआ। सभा-घर के अधिकारियों ने उनसे कहा, “भाइयो, अगर लोगों की हिम्मत बँधाने के लिए तुम्हारे पास कहने को कुछ हो तो कहो।” तब पौलुस ने एक बढ़िया भाषण दिया। (प्रेषि. 13:13-16, 42-44) अगर हम भी हिम्मत बँधाने के लिए कुछ कह सकते हैं तो क्यों न ऐसा करें। जब हम हमेशा दूसरों का हौसला बढ़ाएँगे तो बदले में लोग भी हमारा हौसला बढ़ाएँगे।—लूका 6:38.

17. हौसला बढ़ाते वक्‍त हमें क्या बात ध्यान में रखनी चाहिए?

17 किसी खास बात के लिए पूरे दिल से तारीफ कीजिए। यीशु ने थुआतीरा के मसीहियों की कुछ खास बातों के लिए तारीफ की और उन्हें बताया कि उन्होंने क्या अच्छा काम किया है। (प्रकाशितवाक्य 2:18, 19 पढ़िए।) हम कैसे यीशु की मिसाल पर चल सकते हैं? माता-पिता अपने बच्चों को बता सकते हैं कि यहोवा की सेवा में उनकी तरक्की देखकर वे कितने खुश हैं। एक माँ जो अलग-अलग चुनौतियों के बावजूद अकेले अपने बच्चों की परवरिश करती है, हम उसकी भी तारीफ कर सकते हैं। हम उसे बता सकते हैं कि हमें उसकी कौन-सी बात बहुत पसंद है। इस तरह तारीफ करने और हौसला बढ़ाने के बढ़िया नतीजे निकलते हैं।

18, 19. यहोवा के करीब बने रहने में हम एक-दूसरे की कैसे मदद कर सकते हैं?

18 यहोवा हमसे सीधे-सीधे नहीं कहेगा कि हम किसी के पास जाकर उसका हौसला बढ़ाएँ, जैसा उसने मूसा को यहोशू की हिम्मत बँधाने के लिए कहा था। फिर भी जब हम साथी मसीहियों की हिम्मत बँधाते हैं, तो परमेश्वर को यह देखकर बहुत खुशी होती है। (नीति. 19:17; इब्रा. 12:12) मिसाल के लिए, जब हमारी मंडली में कोई भाई जन भाषण देता है तो हम उसे बता सकते हैं कि हमें उसके भाषण में कौन-सी बात अच्छी लगी। हम शायद उसे कह सकते हैं कि हमें अपनी किसी समस्या का सामना करने में या किसी आयत को अच्छी तरह समझने में मदद मिली है। एक बहन ने मेहमान वक्ता को लिखा, “आपने मुझसे सिर्फ कुछ ही देर बात की मगर मुझे ऐसा लगा मानो आप मेरे दिल का हाल जानते हैं और आपने मुझे तसल्ली दी और मेरी हिम्मत बँधायी। मैं आपको बताना चाहती हूँ कि आपने जिस तरह भाषण दिया और जिस तरह मुझसे बातें की, उससे ऐसा लगा कि यहोवा ने मुझे क्या ही बढ़िया तोहफा दिया है।”

19 हम एक-दूसरे को यहोवा के करीब बने रहने में मदद दे सकते हैं। इसके लिए हमें पौलुस की इस सलाह को मानना होगा, “एक-दूसरे को दिलासा देते रहो और एक-दूसरे की हिम्मत बंधाते रहो, ठीक जैसा तुम कर भी रहे हो।” (1 थिस्स. 5:11) आइए हम “एक-दूसरे की हिम्मत बंधाते” रहें। ऐसा करने से यहोवा हमसे बेहद खुश होगा।

^ [1] (पैराग्राफ 1) कुछ नाम बदल दिए गए हैं।