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दुनियावी सोच को ठुकराइए

दुनियावी सोच को ठुकराइए

“खबरदार रहो! कहीं ऐसा न हो कि कोई तुम्हें दुनियावी फलसफों और छलनेवाली . . . खोखली बातों से कैदी बना ले।”​—कुलु. 2:8.

गीत: 23, 26

1. प्रेषित पौलुस ने कुलुस्से के मसीहियों को खत में क्या समझाया? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

ईसवी सन्‌ 60 या 61 में जब प्रेषित पौलुस रोम में कैद था तब उसने कुलुस्से के मसीहियों को एक खत लिखा। उसने खत में समझाया कि उन्हें “पवित्र शक्‍ति से मिलनेवाली समझ” यानी मामलों को यहोवा की नज़र से देखने की ज़रूरत है। (कुलु. 1:9) पौलुस ने कहा, “मैं यह इसलिए कह रहा हूँ ताकि कोई भी इंसान कायल करनेवाली दलीलें देकर तुम्हें न छले। खबरदार रहो! कहीं ऐसा न हो कि कोई तुम्हें दुनियावी फलसफों और छलनेवाली उन खोखली बातों से कैदी बना ले, जो इंसानों की परंपराओं और दुनिया की मामूली बातों के मुताबिक हैं और मसीह के मुताबिक नहीं हैं।” (कुलु. 2:4, 8) इसके बाद, पौलुस ने समझाया कि क्यों ऐसी गलत धारणाएँ लोगों को पसंद आती हैं। वह इसलिए कि इन्हें मानकर लोगों को लगता है कि वे दूसरों से बेहतर और ज़्यादा समझदार हैं। पौलुस चाहता था कि कुलुस्से के भाई ऐसी दुनियावी सोच न रखें और गलत कामों को ठुकराएँ। यही वजह है कि उसने उन्हें यह खत लिखा।​—कुलु. 2:16, 17, 23.

2. हम दुनियावी सोच के कुछ उदाहरणों पर क्यों गौर करेंगे?

2 दुनियावी सोच रखनेवाला इंसान यहोवा के सिद्धांतों को तुच्छ समझता है। अगर हम सावधान न रहें, तो ऐसी सोच धीरे-धीरे हम पर असर कर सकती है और परमेश्वर की बुद्धि पर हमारा भरोसा कमज़ोर कर सकती है। आज टी.वी., इंटरनेट, स्कूल, काम की जगह, जहाँ देखो वहाँ दुनियावी सोच को बढ़ावा दिया जाता है। हम क्या कर सकते हैं ताकि इस सोच का हम पर बुरा असर न हो? इस लेख में हम दुनियावी सोच के पाँच उदाहरणों पर गौर करेंगे और देखेंगे कि हम कैसे इसे ठुकरा सकते हैं।

क्या परमेश्वर को मानना ज़रूरी है?

3. कई लोगों को कौन-सी सोच अच्छी लगती है और क्यों?

3 “अच्छा इंसान बनने के लिए ज़रूरी नहीं कि आप परमेश्वर को मानें।” आज दुनिया के कई देशों में लोग ऐसी सोच रखते हैं। हो सकता है, ऐसे लोगों ने परमेश्वर के वजूद के बारे में गहराई से न सोचा हो। उन्हें बस यह सोचकर अच्छा लगता है कि वे आज़ाद हैं और कुछ भी कर सकते हैं। (भजन 10:4 पढ़िए।) कुछ ऐसे भी हैं जो कहते हैं, “मैं परमेश्वर को नहीं मानता फिर भी अच्छे उसूलों के मुताबिक जीता हूँ।” उन्हें लगता है कि इससे लोग उन्हें बहुत होशियार समझेंगे।

4. हम उन लोगों से क्या कह सकते हैं, जो सृष्टिकर्ता को नहीं मानते?

4 क्या इस धारणा में कोई तुक है कि कोई सृष्टिकर्ता नहीं? कुछ लोग विज्ञान में इस सवाल का जवाब ढूँढ़ने की कोशिश करते हैं, लेकिन जवाब मिलना तो दूर वे और भी उलझन में पड़ जाते हैं। पर इसका जवाब एकदम सरल है। ज़रा सोचिए, क्या एक घर अपने आप बन सकता है? बिलकुल नहीं! इसका कोई-न-कोई बनानेवाला ज़रूर होगा। जीवित चीज़ें एक घर से भी जटिल हैं। अगर एक साधारण कोशिका की बात लें, तो उसमें अपने जैसी और भी कोशिकाएँ बनाने की काबिलीयत होती है जो कि एक निर्जीव घर में नहीं होती। इसका मतलब है कि एक कोशिका में न सिर्फ जानकारी का भंडार होता है बल्कि जब उससे एक नयी कोशिका बनती है तो वह सारी जानकारी उस नयी कोशिका को भी देती है। सोचिए, किसने कोशिकाओं में इतनी बेहतरीन काबिलीयत डाली है? बाइबल इसका जवाब देती है। यह बताती है, “हर घर का कोई-न-कोई बनानेवाला होता है मगर जिसने सबकुछ बनाया वह परमेश्वर है।”​—इब्रा. 3:4.

5. अच्छे उसूलों पर चलने के लिए परमेश्वर को मानना ज़रूरी नहीं, इस बारे में आप क्या कहेंगे?

5 तो फिर इस धारणा के बारे में हम क्या कहेंगे कि अच्छे उसूलों पर चलने के लिए परमेश्वर को मानना ज़रूरी नहीं? बाइबल कबूल करती है कि परमेश्वर को न माननेवाले लोग भी अच्छे उसूलों पर चलते हैं। (रोमि. 2:14, 15) मिसाल के लिए, वे अपने माता-पिता का आदर करते हैं और उनसे प्यार करते हैं। लेकिन अगर वे उन स्तरों को न मानें जो हमारे सृष्टिकर्ता यहोवा ने ठहराए हैं, तो क्या आपको लगता है कि वे खुश रह सकते हैं और कामयाब हो सकते हैं? (यशा. 33:22) आज कई बुद्धिमान लोग कबूल करते हैं कि परमेश्वर ही दुनिया की समस्याओं को सुलझा सकता है। (यिर्मयाह 10:23 पढ़िए।) इसलिए हमें कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि परमेश्वर और उसके स्तरों को दरकिनार करके हम अच्छे उसूलों पर चल सकते हैं।​—भज. 146:3.

क्या इंसान को धर्म की ज़रूरत है?

6. कई लोग धर्म के बारे में क्या राय रखते हैं?

6 “मैं धर्म के बिना ज़्यादा खुश हूँ।” कई लोगों को धर्म में कोई दिलचस्पी नहीं, वे सोचते हैं कि इसका कोई फायदा नहीं। इसके अलावा, कई धर्म नरक की शिक्षा देते हैं, लोगों से बेवजह पैसे ऐंठते हैं और राजनेताओं का साथ देते हैं। इसीलिए आज ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग कहते हैं कि वे धर्म के बिना खुश हैं। वे शायद यह भी कहें, “मैं परमेश्वर को मानता हूँ लेकिन मैं किसी धर्म से नहीं जुड़ना चाहता।”

7. सच्चा धर्म कैसे आपको खुशी देता है?

7 क्या हम धर्म के बिना खुश रह सकते हैं? यह सच है कि एक इंसान झूठे धर्म के बिना खुश रह सकता है। लेकिन कोई भी यहोवा के बिना खुश नहीं रह सकता जो “आनंदित परमेश्वर” है। (1 तीमु. 1:11) यहोवा जो कुछ करता है उससे दूसरों को फायदा होता है। उसके सेवक होने के नाते हम भी अलग-अलग तरीकों से दूसरों की मदद करते हैं और इसलिए खुश रहते हैं। (प्रेषि. 20:35) सोचिए, सच्ची उपासना करने से कैसे एक परिवार खुशहाल रहता है। हमें सिखाया जाता है कि हम अपने जीवन-साथी का आदर करें और उसके वफादार रहें, बच्चों को दूसरों की इज़्ज़त करना सिखाएँ और अपने परिवार के लोगों से सच्चा प्यार करें। यही नहीं, सच्ची उपासना की बदौलत ही यहोवा के लोगों के बीच शांति और एकता है और वे एक-दूसरे से सच्चा प्यार करते हैं।​—यशायाह 65:13, 14 पढ़िए।

8. मत्ती 5:3 के मुताबिक क्या बात सच्ची खुशी देती है?

8 तो फिर इस दुनियावी सोच के बारे में आप क्या कहेंगे कि एक इंसान परमेश्वर के बिना खुश रह सकता है? ज़रा सोचिए, क्या बात लोगों को खुशी देती है? कुछ लोगों को करियर बनाने से, खेल-कूद से और अपने शौक पूरे करने से खुशी मिलती है। दूसरे लोग अपने परिवार और दोस्तों की देखभाल करने में खुश रहते हैं। लेकिन ज़िंदगी में इससे भी बढ़कर कुछ है जिससे हमें सच्ची खुशी मिलती है। परमेश्वर ने हमें जानवरों से अलग बनाया है। उसने हमारे अंदर यह इच्छा डाली है कि हम उसे जानें और उसकी उपासना करें। जब हम ऐसा करते हैं, तो हमें सच्ची खुशी मिलती है। (मत्ती 5:3 पढ़िए।) मिसाल के लिए, जब हम अपने भाई-बहनों के साथ मिलकर यहोवा की उपासना करते हैं तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। (भज. 133:1) हमें इस बात से भी खुशी मिलती है कि हम दुनिया-भर में फैली भाइयों की बिरादरी का हिस्सा हैं, हम एक साफ-सुथरी ज़िंदगी जीते हैं और भविष्य के लिए हमारे पास एक आशा है।

क्या इंसानों को नैतिक स्तरों की ज़रूरत है?

9. (क) आज सेक्स के बारे में लोगों की क्या राय है? (ख) परमेश्वर का वचन क्यों कहता है कि शादी के बाहर यौन-संबंध रखना गलत है?

9 “शादी के बाहर सेक्स करने में क्या बुराई है?” लोग शायद कहें, “हमें ज़िंदगी का पूरा मज़ा लेना चाहिए। तो फिर शादी के बाहर सेक्स करने में क्या बुराई है?” लेकिन परमेश्वर का वचन नाजायज़ यौन-संबंध रखने से मना करता है। * (1 थिस्सलुनीकियों 4:3-8 पढ़िए।) यहोवा हमारा सृष्टिकर्ता है, इसलिए उसे पूरा हक है कि वह हमारे लिए नियम बनाए। उसने कहा है कि सिर्फ एक पति-पत्नी ही आपस में यौन-संबंध रख सकते हैं। यहोवा ने हमें इसलिए नियम दिए हैं क्योंकि वह हमसे प्यार करता है। वह जानता है कि इन्हें मानने से हमारा भला होगा। यही नहीं, परिवार में सबके बीच प्यार और आदर होगा और हर कोई सुरक्षित महसूस करेगा। लेकिन यहोवा उन लोगों को ज़रूर सज़ा देगा जो जानबूझकर उसके नियम तोड़ते हैं।​—इब्रा. 13:4.

10. मसीही किस तरह नाजायज़ यौन-संबंध से दूर रह सकते हैं?

10 बाइबल सिखाती है कि हम किस तरह नाजायज़ यौन-संबंध से दूर रह सकते हैं। इसके लिए हमें अपनी आँखों पर काबू रखना होगा। यीशु ने कहा था, “हर वह आदमी जो किसी औरत को ऐसी नज़र से देखता रहता है जिससे उसके मन में उसके लिए वासना पैदा हो, वह अपने दिल में उस औरत के साथ व्यभिचार कर चुका है। अगर तेरी दायीं आँख तुझसे पाप करवा रही है, तो उसे नोंचकर निकाल दे और दूर फेंक दे।” (मत्ती 5:28, 29) इसलिए हमें अश्‍लील तसवीरों और अश्‍लील संगीत से दूर रहना चाहिए। पौलुस ने लिखा, “अपने शरीर के उन अंगों को मार डालो जिनमें ऐसी लालसाएँ पैदा होती हैं जैसे, नाजायज़ यौन-संबंध।” (कुलु. 3:5) देखने के अलावा, हम किन बातों के बारे में सोचते हैं और किस बारे में बात करते हैं, उस पर भी काबू रखना ज़रूरी है।​—इफि. 5:3-5.

क्या हमारा पूरा ध्यान करियर बनाने पर होना चाहिए?

11. हम क्यों अच्छा करियर बनाने की सोचने लग सकते हैं?

11 “एक अच्छा करियर ही खुशी दे सकता है।” लोग शायद आपको अच्छा करियर बनाने का बढ़ावा दें। वे शायद कहें कि इससे आप नाम, शोहरत, पैसा और रुतबा पा सकते हैं। आज दुनिया में हर कोई यही सोचता है कि अच्छा करियर होने से खुशी मिलती है। ऐसे लोगों के बीच रहकर शायद हम भी उनकी तरह सोचने लगे।

12. क्या दुनिया में एक करियर आपको खुशी दे सकता है?

12 क्या यह सच है कि करियर आपको नाम और रुतबे के साथ-साथ खुशी भी दे सकता है? नहीं। शैतान के बारे में सोचिए। वह चाहता था कि उसका नाम हो और उसके पास ताकत हो। देखा जाए तो उसने जो चाहा उसे वह मिला। लेकिन फिर भी वह खुश नहीं बल्कि गुस्से से भरा है। (मत्ती 4:8, 9; प्रका. 12:12) इसके उलट, हम कितने खुश हैं क्योंकि हम लोगों को परमेश्वर के बारे में सिखाते हैं और उन्हें एक बढ़िया भविष्य के बारे में बताते हैं। दुनिया का कोई भी करियर हमें ऐसी खुशी नहीं दे सकता। इसके अलावा, करियर बनाने के चक्कर में लोग होड़ लगाते हैं, गुस्सैल बन जाते हैं यहाँ तक कि दूसरों से जलते हैं। लेकिन सबकुछ पाने के बाद भी वे ज़िंदगी में खालीपन महसूस करते हैं। बाइबल बिलकुल सही बताती है कि यह सब “हवा को पकड़ने जैसा है।”​—सभो. 4:4.

13. (क) नौकरी के बारे में हमारा क्या नज़रिया होना चाहिए? (ख) पौलुस को किस बात से खुशी मिली?

13 बेशक हम सबको ज़िंदगी चलाने के लिए नौकरी करनी होती है और एक ऐसा काम करने में कोई बुराई नहीं जो हमें पसंद हो। लेकिन हमें अपनी नौकरी को ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत नहीं देनी चाहिए। यीशु ने कहा था, “कोई भी दास दो मालिकों की सेवा नहीं कर सकता। क्योंकि या तो वह एक से नफरत करेगा और दूसरे से प्यार या वह एक से जुड़ा रहेगा और दूसरे को तुच्छ समझेगा। तुम परमेश्वर के दास होने के साथ-साथ धन-दौलत की गुलामी नहीं कर सकते।” (मत्ती 6:24) यहोवा की सेवा करने और दूसरों को बाइबल सिखाने से हमें सबसे ज़्यादा खुशी मिलती है। प्रेषित पौलुस ने खुद यह अनुभव किया था। जब वह जवान था तो उसने अपना पूरा ध्यान दुनिया में एक करियर बनाने में लगाया। लेकिन उसे सच्ची खुशी नहीं मिली। बाद में जब उसने चेला बनाने का काम किया और खुद अपनी आँखों से देखा कि कैसे परमेश्वर का संदेश लोगों की ज़िंदगी सँवारता है, तब उसे अपने काम से सच्ची खुशी मिली। (1 थिस्सलुनीकियों 2:13, 19, 20 पढ़िए।) जी हाँ, यहोवा की सेवा में जो खुशी मिलती है, वह किसी भी नौकरी या करियर से नहीं मिल सकती।

दूसरों को परमेश्वर के बारे में सिखाने से खुशी मिलती है (पैराग्राफ 12, 13 देखिए)

क्या इंसान दुनिया की समस्याओं को ठीक कर सकते हैं?

14. लोगों को यह धारणा क्यों पसंद है कि इंसान सारी समस्याओं को ठीक कर सकता है?

14 “हम इंसान सारी समस्याओं को ठीक कर सकते हैं।” कई लोगों को यह धारणा पसंद है। क्यों? क्योंकि अगर यह बात सच है, तो फिर इंसानों को परमेश्वर के मार्गदर्शन की ज़रूरत नहीं और वे अपनी मन-मरज़ी कर सकते हैं। आपने शायद लोगों को यह कहते सुना होगा कि युद्ध, अपराध, बीमारी और गरीबी जैसी समस्याएँ कम होती जा रही हैं। एक रिपोर्ट बताती है, “लोगों में इंसानियत जाग उठी है। उन्होंने ठान लिया है कि वे दुनिया के हालात ज़रूर सुधारेंगे।” क्या इस बात में कोई सच्चाई है? क्या इंसानों ने सच में समस्याओं को ठीक करने का रास्ता ढूँढ़ लिया है? जवाब जानने के लिए आइए कुछ बातों पर ध्यान दें।

15. क्या बात दिखाती है कि समस्याएँ कम नहीं हुईं बल्कि बढ़ गयी हैं?

15 क्या इंसान युद्ध को मिटा पाया है? पहले और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 6 करोड़ से ज़्यादा लोगों की जानें गयीं। युद्ध और ज़ुल्म की वजह से जितने लोग बेघर हुए हैं, उनकी गिनती 2015 तक 6 करोड़ 50 लाख तक पहुँच गयी थी। अगर 2015 की बात करें तो उसी साल 1 करोड़ 24 लाख लोगों को मजबूरन अपना घर छोड़ना पड़ा। अपराध के बारे में क्या? कुछ जगहों पर अपराध कम हुए हैं। लेकिन इस बीच दूसरे किस्म के अपराध बढ़ गए हैं जैसे, साइबर क्राइम, घरेलू हिंसा, आतंकवाद और भ्रष्टाचार। बीमारियों के बारे में क्या? यह सच है कि इंसान कुछ बीमारियों का इलाज ढूँढ़ पाया है। लेकिन 2013 की एक रिपोर्ट बताती है कि हर साल 90 लाख लोग, जिनकी उम्र 60 से कम है दिल की बीमारी, स्ट्रोक, कैंसर, साँस की बीमारी और डायबिटीज़ से मर रहे हैं। गरीबी के बारे में क्या? वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट बताती है कि अफ्रीका की ही बात लें, तो 1990 में वहाँ 28 करोड़ लोग घोर गरीबी में जी रहे थे, लेकिन 2012 में यह गिनती बढ़कर 33 करोड़ हो गयी।

16. (क) सिर्फ परमेश्वर का राज ही दुनिया की समस्याओं को क्यों दूर कर सकता है? (ख) परमेश्वर का राज जो करेगा, उस बारे में यशायाह और भजन के लेखक ने क्या कहा?

16 ये आँकड़े पढ़कर हमें हैरानी नहीं होती। आज दुनिया के आर्थिक और राजनैतिक संगठनों को लालची लोग चला रहे हैं। ये लोग युद्ध, अपराध, बीमारी और गरीबी को नहीं मिटा सकते। सिर्फ परमेश्वर का राज ही ऐसा कर सकता है। गौर कीजिए कि यहोवा इंसानों के लिए क्या-क्या करेगा। उसका राज युद्ध की हर वजह को मिटा देगा जैसे स्वार्थ, भ्रष्टाचार, देश-भक्‍ति की भावना और झूठा धर्म। यही नहीं, वह युद्ध की सबसे बड़ी वजह शैतान को भी मिटा देगा। (भज. 46:8, 9) परमेश्वर का राज अपराध को भी खत्म करेगा। आज यह राज लाखों लोगों को एक-दूसरे से प्यार करना और भरोसा करना सिखा रहा है। कोई भी इंसानी सरकार ऐसा नहीं कर सकती। (यशा. 11:9) यहोवा जल्द ही बीमारियों का नामो-निशान मिटा देगा और फिर सभी इंसान सेहतमंद होंगे। (यशा. 35:5, 6) वह गरीबी दूर करेगा। हरेक इंसान खुश रहेगा और परमेश्वर के साथ उसका करीबी रिश्ता होगा। ऐसी ज़िंदगी दुनिया की सारी दौलत से कहीं बढ़कर होगी!​—भज. 72:12, 13.

“हर किसी को सही तरह से जवाब” दीजिए

17. आप दुनियावी सोच को कैसे ठुकरा सकते हैं?

17 अगर किसी लोकप्रिय धारणा को सुनकर आपका विश्वास डगमगाने लगता है, तो आप क्या कर सकते हैं? जानिए कि उस बारे में बाइबल क्या कहती है। किसी प्रौढ़ भाई या बहन से बात कीजिए। सोचिए कि क्यों लोगों को वह धारणा पसंद है, वह धारणा गलत क्यों है और आप उसे कैसे ठुकरा सकते हैं। पौलुस ने कहा, “बाहरवालों के साथ बुद्धिमानी से पेश आओ। . . . तुम्हें हर किसी को सही तरह से जवाब देना आ जाएगा।” (कुलु. 4:5, 6) जी हाँ, जब आपको सही तरह से जवाब देना आ जाएगा तो आप खुद को दुनियावी सोच से बचाए रख पाएँगे।

^ पैरा. 9 कुछ बाइबल अनुवादों में यूहन्ना 7:53-8:11 की आयतें पायी जाती हैं लेकिन बाइबल के मूल पाठ में ये आयतें नहीं दी गयी हैं। कुछ लोग इन्हें पढ़कर इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि सिर्फ वही इंसान किसी को व्यभिचार करने का दोषी ठहरा सकता है जिसने कोई पाप न किया हो। लेकिन इसराएलियों को दिए नियम में परमेश्वर ने साफ बताया था, “अगर कोई आदमी किसी दूसरे आदमी की पत्नी के साथ यौन-संबंध रखता है और वे पकड़े जाते हैं, तो तुम उस आदमी और औरत दोनों को एक-साथ मार डालना।”​—व्यव. 22:22.