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क्या आप यहोवा की पनाह लेते हैं?

क्या आप यहोवा की पनाह लेते हैं?

“यहोवा अपने सेवकों की जान बचाता है, उसकी पनाह लेनेवाला कोई भी दोषी नहीं ठहरेगा।”​—भज. 34:22.

गीत: 49, 32

1. पाप की वजह से परमेश्वर के कई सेवक कैसा महसूस करते हैं?

“मैं कैसा लाचार इंसान हूँ!” (रोमि. 7:24) ये शब्द प्रेषित पौलुस ने लिखे थे और आज परमेश्वर के कई वफादार सेवक भी उसकी तरह महसूस करते हैं। क्यों? क्योंकि हम सब अपरिपूर्ण और पापी हैं और न चाहते हुए भी कभी-कभी यहोवा का दिल दुखाते हैं। कुछ मसीहियों को यह भी लगता है कि उन्होंने इतने गंभीर पाप किए हैं कि यहोवा उन्हें कभी माफ नहीं करेगा।

2. (क) भजन 34:22 से कैसे पता चलता है कि परमेश्वर के सेवकों को हद-से-ज़्यादा खुद को दोषी नहीं ठहराना चाहिए? (ख) इस लेख में हम क्या सीखेंगे? (बक्स, “ सबक या लाक्षणिक मतलब?” देखिए।)

2 बाइबल हमें यकीन दिलाती है कि अगर हम यहोवा की पनाह लें, तो हम खुद को बार-बार दोषी नहीं ठहराएँगे। (भजन 34:22 पढ़िए।) लेकिन यहोवा की पनाह लेने का क्या मतलब है? यहोवा की दया और माफी पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए? इन सवालों के जवाब पाने के लिए हम प्राचीन इसराएल के शरण नगरों के इंतज़ाम पर ध्यान देंगे। यह इंतज़ाम कानून के करार के तहत किया गया था। ईसवी सन्‌ 33 के पिन्तेकुस्त के दिन इसकी जगह एक दूसरा करार लागू हुआ। लेकिन याद रखिए कि कानून देनेवाला यहोवा था, इसलिए शरण नगरों के इंतज़ाम से हम उसके बारे में काफी कुछ सीख सकते हैं। हम देखेंगे कि यहोवा पाप को, पापियों और पश्‍चाताप करनेवालों को किस नज़र से देखता है। आइए सबसे पहले देखें कि यहोवा ने शरण नगरों का इंतज़ाम क्यों किया था।

“वे अपने लिए शरण नगर चुन लें”

3. इसराएल में जानबूझकर खून करनेवालों के साथ क्या किया जाता था?

3 प्राचीन इसराएल में जब भी किसी इंसान का खून होता था तो यहोवा की नज़र में यह एक गंभीर बात थी। अगर एक इसराएली जानबूझकर किसी का खून करता था, तो मरनेवाले के सबसे नज़दीकी रिश्तेदार को उसे मार डालना होता था। उस रिश्तेदार को ‘खून का बदला लेनेवाला’ कहा जाता था। (गिन. 35:19) इस तरह उस खूनी को एक बेकसूर की जान लेने के लिए अपनी जान की कीमत चुकानी होती थी। खूनी को जल्द-से-जल्द मार डालना होता था, नहीं तो वादा किया गया देश दूषित या अपवित्र हो जाता था। यहोवा ने आज्ञा दी थी, “तुम जिस देश में रहते हो उसकी ज़मीन दूषित मत करना, क्योंकि जब [किसी इंसान का] खून बहाया जाता है तो देश दूषित हो जाता है।”​—गिन. 35:33, 34.

4. अगर एक इसराएली के हाथों गलती से किसी का खून हो जाता था, तो क्या इंतज़ाम था?

4 लेकिन तब क्या जब एक इसराएली के हाथों गलती से किसी का खून हो जाता था? हालाँकि उसने जानबूझकर खून नहीं किया था, फिर भी वह एक बेकसूर की जान लेने का दोषी था। (उत्प. 9:5) ऐसे मामले में यहोवा ने कहा था कि उस आदमी पर दया की जा सकती है। अनजाने में खून करनेवाला छ: शरण नगरों में से किसी एक में भागकर शरण ले सकता था ताकि खून का बदला लेनेवाले से अपनी जान बचा सके। शरण नगर में उसे हिफाज़त मिलती थी। फिर महायाजक की मौत तक उसे शरण नगर के अंदर ही रहना होता था।​—गिन. 35:15, 28.

5. यह क्यों कहा जा सकता है कि शरण नगर के इंतज़ाम से हम यहोवा को अच्छी तरह समझ पाएँगे?

5 शरण नगरों का इंतज़ाम किसी इंसान ने नहीं बल्कि खुद यहोवा ने किया था। उसने यहोशू को आज्ञा दी थी, “इसराएलियों को बता कि . . . वे अपने लिए शरण नगर चुन लें।” ये नगर “पवित्र ठहराए” गए थे। (यहो. 20:1, 2, 7, फु., 8) यहोवा ने तय किया कि ये नगर शरण देने के लिए अलग ठहराए जाएँ। इस इंतज़ाम से हम यहोवा के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं। जैसे, हम यहोवा की दया को और अच्छी तरह समझ पाते हैं और यह भी कि आज हम यहोवा की पनाह कैसे ले सकते हैं।

उसे मुखियाओं के सामने “अपना मामला पेश करना” होगा

6, 7. (क) अनजाने में खून करनेवाले का न्याय करने में मुखियाओं की क्या भूमिका थी? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) उसके लिए मुखियाओं से मदद लेना क्यों ज़रूरी था?

6 अगर एक इसराएली गलती से किसी का खून करता था, तो उसे शरण नगर में भागना होता था और नगर के फाटक पर मुखियाओं के सामने “अपना मामला पेश करना” होता था। तब मुखिया उसे नगर में ले लेते थे। (यहो. 20:4) फिर कुछ समय बाद उसे वापस उस शहर भेजा जाता था जहाँ खून हुआ था ताकि वहाँ के मुखिया उसके मुकदमे का फैसला करें। (गिनती 35:24, 25 पढ़िए।) अगर मुखिया यह फैसला सुनाते कि उससे अनजाने में खून हुआ है और वह निर्दोष है, तो उसे वापस शरण नगर भेज दिया जाता था।

7 अनजाने में खून करनेवाले के लिए क्यों ज़रूरी था कि वह मुखियाओं से मदद ले? मुखिया इसराएल की मंडली को शुद्ध बनाए रखते थे और अनजाने में खून करनेवाले को यहोवा की दया पाने में मदद करते थे। बाइबल का एक विद्वान बताता है कि अगर अनजाने में खून करनेवाला मुखियाओं के पास नहीं जाता, तो वह अपनी जान गँवा सकता था और इसके लिए वह खुद ज़िम्मेदार होता। जी हाँ, अगर ऐसा व्यक्‍ति ज़िंदा रहना चाहता था, तो ज़रूरी था कि वह शरण नगर में भागकर मुखियाओं से मदद माँगे और उस मदद को कबूल करे, नहीं तो मरनेवाले का नज़दीकी रिश्तेदार उसकी जान ले सकता था।

8, 9. अगर एक मसीही गंभीर पाप करता है, तो उसे प्राचीनों से क्यों मदद लेनी चाहिए?

8 आज अगर एक मसीही कोई गंभीर पाप करता है और दोबारा यहोवा के साथ अपना रिश्ता जोड़ना चाहता है, तो उसे प्राचीनों से मदद लेनी चाहिए। यह क्यों ज़रूरी है? इसकी तीन वजह हैं। पहली, यहोवा ने गंभीर पाप के मामलों को सुलझाने के लिए प्राचीनों को ठहराया है। (याकू. 5:14-16) दूसरी वजह, प्राचीन पश्‍चाताप करनेवालों की मदद करते हैं ताकि वे परमेश्वर की मंज़ूरी पा सकें और अपने पाप न दोहराएँ। (गला. 6:1; इब्रा. 12:11) तीसरी वजह, प्राचीनों को अधिकार और प्रशिक्षण दिया गया है कि वे पश्‍चाताप करनेवालों को यहोवा के प्यार का यकीन दिलाएँ और उनके मन से दोष की भावना दूर करें। ऐसे प्राचीनों के बारे में यहोवा कहता है कि वे “तेज़ बारिश में मिलनेवाली पनाह” हैं। (यशा. 32:1, 2) प्राचीनों का इंतज़ाम यहोवा के उन ढेरों इंतज़ामों में से एक है जिससे वह अपने लोगों पर दया करता है।

9 परमेश्वर के कई सेवक प्राचीनों के पास गए हैं और उन्होंने राहत महसूस की है। डैनियल की मिसाल लीजिए, जिसने एक गंभीर पाप किया था। कई महीनों तक उसने प्राचीनों को इस बारे में नहीं बताया। वह कहता है, “मुझे लगा कि बहुत देर हो चुकी है, अब तो प्राचीन भी मेरी मदद नहीं कर सकते।” मगर उसे यह भी डर था कि उसके पाप के बारे में कहीं किसी को पता न चल जाए। उसका यह हाल था कि प्रार्थना करते वक्‍त वह सबसे पहले यहोवा से अपने पाप की माफी माँगता था। आखिर में उसने प्राचीनों से मदद ली। उस वक्‍त को याद करते हुए वह कहता है, “मैं प्राचीनों से बात करने से डर रहा था, लेकिन उनसे बात करने के बाद मुझे ऐसा लगा मानो मेरे सिर से एक भारी बोझ उतर गया हो।” अब डैनियल बेझिझक यहोवा से प्रार्थना करता है, उसका ज़मीर साफ है और उसे हाल ही में सहायक सेवक ठहराया गया है।

“उसे उन नगरों में से किसी एक में भागना होगा”

10. अनजाने में खून करनेवाले को माफी पाने के लिए और क्या करना था?

10 अनजाने में खून करनेवाले को माफी पाने के लिए एक और कदम उठाना था। उसे भागकर पास के शरण नगर में जाना था। (यहोशू 20:4 पढ़िए।) ज़िंदा रहने के लिए उसे तुरंत ऐसा करना था और महायाजक की मौत तक वहीं नगर में रहना था। इसके लिए उसे अपना घर-बार और काम छोड़ना था। साथ ही, उसे कहीं आने-जाने की आज़ादी नहीं थी। * (गिन. 35:25) लेकिन ये सारे त्याग करने में उसी की भलाई थी। अगर वह कभी शरण नगर से बाहर जाता, तो यह दिखाता कि उसे इस बात की कोई परवाह नहीं कि उसने किसी की जान ली है। और-तो-और वह अपनी जान भी खतरे में डाल रहा होता।

11. पश्‍चाताप करनेवाला किस तरह दिखा सकता है कि वह यहोवा की दया को कम नहीं आँकता?

11 आज पश्‍चाताप करनेवाले एक मसीही को भी परमेश्वर से माफी पाने के लिए कुछ कदम उठाने होंगे। उसे न सिर्फ गंभीर पाप को छोड़ना चाहिए बल्कि ऐसे हर काम से दूर रहना चाहिए जो उसे पाप की तरफ ले जा सकते हैं। प्रेषित पौलुस ने बताया कि कुरिंथ के मसीहियों ने अपने पापों से पश्‍चाताप करने के लिए क्या किया। उसने लिखा, “परमेश्वर को खुश करनेवाली उदासी ने तुम्हारे अंदर कैसी उत्सुकता पैदा की, हाँ, तुमने खुद पर से कलंक दूर करने का कैसा जज़्बा दिखाया, अपनी गलती पर तुम्हें कितना गुस्सा आया, तुम्हारे अंदर डर पैदा हुआ, हाँ, तुम्हारे अंदर कैसी ज़बरदस्त इच्छा और कैसा जोश पैदा हुआ और तुमने अपनी गलती सुधारी!” (2 कुरिं. 7:10, 11) अगर हम भी इन मसीहियों की तरह कदम उठाएँ तो हम दिखाएँगे कि हम अपने हालात की गंभीरता को समझते हैं और यहोवा की दया को कम नहीं आँकते।

12. एक मसीही को यहोवा की दया पाते रहने के लिए शायद कौन-से त्याग करने पड़ें?

12 यहोवा की दया पाते रहने के लिए एक मसीही को शायद कुछ त्याग करने पड़े। कौन-से त्याग? उसे उन कामों को छोड़ना होगा जो उसे पसंद हैं मगर उसे पाप के फंदे में फँसा सकते हैं। (मत्ती 18:8, 9) मिसाल के लिए, अगर आपके दोस्त आपको कुछ ऐसा करने के लिए उकसाते हैं जिससे यहोवा खुश नहीं होगा, तो क्या आप उनके साथ संगति करना छोड़ देंगे? अगर शराब के मामले में खुद पर काबू रखना आपको मुश्किल लगता है, तो क्या आप उन हालात से दूर रहेंगे जिनमें बहुत ज़्यादा शराब पीने का खतरा हो? अगर यौन-इच्छाओं को काबू में रखना आपके लिए एक संघर्ष है, तो क्या आप ऐसी फिल्में, वेबसाइट या कामों से दूर रहेंगे जिनसे आपके मन में गंदे खयाल आएँ? याद रखिए, यहोवा के नियमों को मानने के लिए अगर हम कोई भी त्याग करें, तो इससे हमें ही फायदा होगा। सच, इस एहसास के साथ जीना कितना मुश्किल होगा कि यहोवा ने हमें छोड़ दिया है। वहीं दूसरी तरफ, यह जानकर हमें कितनी खुशी मिलती है कि हमारे लिए यहोवा का “प्यार सदा कायम रहता है।”​—यशा. 54:7, 8.

‘वहाँ उसे हिफाज़त मिलेगी’

13. समझाइए कि शरण नगर में पनाह लेनेवाला किस तरह महफूज़ रह सकता था और एक खुशहाल ज़िंदगी जी सकता था।

13 जो इंसान शरण नगर में भागकर जाता था, वहाँ वह सुरक्षित रहता था। यहोवा ने साफ बताया था, ‘वहाँ उसे हिफाज़त मिलेगी।’ (यहो. 20:2, 3) यहोवा ने कहा था कि उस पर दोबारा मुकदमा नहीं चलाया जाएगा और न ही खून का बदला लेनेवाले को नगर में घुसकर उसे मार डालने की इजाज़त थी। शरण नगर में अब वह इंसान यहोवा की पनाह में महफूज़ रह सकता था। लेकिन यह नगर कोई जेल नहीं था। उसे काम करने की छूट थी, वह दूसरों की मदद कर सकता था और शांति से यहोवा की सेवा कर सकता था। जी हाँ, वह शरण नगर में रहकर खुशहाल ज़िंदगी जी सकता था!

भरोसा रखिए कि यहोवा ने आपको माफ कर दिया है (पैराग्राफ 14-16 देखिए)

14. पश्‍चाताप करनेवाला मसीही किस बात का यकीन रख सकता है?

14 आज गंभीर पाप करनेवाले कुछ मसीही पश्‍चाताप करने के बाद भी दोषी महसूस करते हैं। कुछ मसीहियों को यह भी लगता है कि उन्होंने जो किया उसे यहोवा कभी नहीं भूलेगा। अगर आप ऐसा महसूस करते हैं, तो यकीन रखिए कि यहोवा ने आपको पूरे दिल से माफ किया है। इसलिए खुद को दोष मत देते रहिए। ध्यान दीजिए कि डैनियल के साथ क्या हुआ, जिसका ज़िक्र पहले किया गया था। जब प्राचीनों ने उसे सुधारा और दोबारा एक साफ ज़मीर पाने में उसकी मदद की, तो उसे बड़ी राहत मिली। वह कहता है, “यहोवा ने कहा है कि वह हमारे पाप का बोझ उतारकर हमसे दूर फेंक देगा और फिर कभी इसे हमारे सामने नहीं लाएगा। इसलिए मैं अब खुद को दोष नहीं देता रहता हूँ, क्योंकि मैं जानता हूँ कि मेरा पाप मुझसे दूर कर दिया गया है।” शरण नगर में पनाह लेनेवाले को कभी इस डर से जीना नहीं पड़ता था कि खून का बदला लेनेवाला आकर उसकी जान ले लेगा। उसी तरह, जब यहोवा हमारे पाप माफ कर देता है, तो हमें यह चिंता नहीं होती कि वह दोबारा उस पाप को याद करेगा या उसके लिए हमें सज़ा देगा।​—भजन 103:8-12 पढ़िए।

15, 16. यीशु ने फिरौती दी है और वह हमारा महायाजक है, इससे कैसे परमेश्वर की दया पर हमारा भरोसा बढ़ता है?

15 इसराएलियों के मुकाबले हमारे पास यहोवा की दया पर भरोसा रखने की और भी बड़ी वजह है। वह क्या है? ध्यान दीजिए कि जब पौलुस ने खुद को “लाचार” कहा, तो इसके तुरंत बाद उसने क्या कहा, “हमारे प्रभु, यीशु मसीह के ज़रिए परमेश्वर का धन्यवाद हो!” (रोमि. 7:25) उसका क्या मतलब था? हालाँकि पौलुस ने बीते समय में पाप किए थे और अब भी अपनी पापी इच्छाओं से लड़ रहा था, मगर उसने पश्‍चाताप किया। इसलिए उसे भरोसा था कि यहोवा ने उसे यीशु के फिरौती बलिदान के आधार पर माफ कर दिया है। इसी बलिदान की वजह से आज हम एक साफ ज़मीर और मन की शांति पा सकते हैं। (इब्रा. 9:13, 14) महायाजक यीशु के बारे में कहा गया है कि “जो उसके ज़रिए परमेश्वर के पास आते हैं, वह उनका पूरी तरह उद्धार करने के काबिल है। क्योंकि वह उनकी खातिर परमेश्वर से बिनती करने के लिए हमेशा ज़िंदा रहता है।” (इब्रा. 7:24, 25) जिस तरह इसराएल में एक महायाजक के होने से इसराएलियों को भरोसा मिलता था कि यहोवा उनके पाप माफ कर देगा, उसी तरह हमारा महायाजक यीशु हमें भरोसा दिलाता है कि हम सही वक्‍त पर ‘परमेश्वर की दया और महा-कृपा पा सकेंगे।’​—इब्रा. 4:15, 16.

16 यहोवा की पनाह लेने के लिए ज़रूरी है कि हम यीशु के बलिदान पर विश्वास करें। यह सच है कि यीशु ने सबके लिए अपनी जान दी। लेकिन यह विश्वास करना ज़रूरी है कि यीशु आपके लिए मरा। (गला. 2:20, 21) विश्वास रखिए कि फिरौती की वजह से यहोवा आपके पाप माफ करता है और आपको हमेशा की ज़िंदगी की आशा देता है। जी हाँ, यहोवा ने आपकी खातिर यीशु का बलिदान दिया है!

17. आप क्यों यहोवा की पनाह लेना चाहते हैं?

17 शरण नगरों के इंतज़ाम से हमने जाना कि यहोवा कितना दयालु है! हमने सीखा कि जीवन अनमोल है। हमने यह भी देखा कि प्राचीन किस तरह हमारी मदद कर सकते हैं, सच्चा पश्‍चाताप का क्या मतलब है और हम क्यों पूरा यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमें माफ करता है। तो फिर सवाल है कि क्या आप यहोवा की पनाह लेते हैं? इससे महफूज़ जगह और कोई नहीं! (भज. 91:1, 2) अगले लेख में हम शरण नगर के इंतज़ाम से और भी बातें सीखेंगे। हम देखेंगे कि किस तरह हम यहोवा के नक्शे-कदम पर चल सकते हैं जो न्याय और दया की बेहतरीन मिसाल है।

^ पैरा. 10 यहूदी विद्वान बताते हैं कि अनजाने में खून करनेवाले का परिवार शायद उसके साथ शरण नगर में रहने आता था।