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क्या आप यहोवा की सोच अपना रहे हैं?

क्या आप यहोवा की सोच अपना रहे हैं?

“नयी सोच पैदा करो ताकि तुम्हारी कायापलट होती जाए।”​—रोमि. 12:2.

गीत: 56, 123

1, 2. सच्चाई में तरक्की करने से हम क्या करना सीखते हैं? उदाहरण दीजिए।

कल्पना कीजिए कि छोटे बच्चे को कोई तोहफा देता है। फौरन बच्चे के माता-पिता उससे कहते हैं, “थैंक्यू बोलो।” वह उनके कहने से थैंक्यू बोल देता है। लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा होता है, वह माता-पिता की यह सोच समझने लगता है कि जब कोई हमारे लिए कुछ करता है, तो हमें उसका एहसान मानना चाहिए। इस तरह वह एहसानमंद होना सीखता है और खुद-ब-खुद लोगों को शुक्रिया कहता है।

2 ऐसा ही कुछ हमारे साथ हुआ है। जब हमने सच्चाई सीखना शुरू किया था, तब हमने जाना था कि यहोवा की बुनियादी आज्ञाएँ मानना कितना ज़रूरी है। लेकिन जैसे-जैसे हम सच्चाई में तरक्की करते हैं, तो हम यहोवा की सोच के बारे में सीखते हैं यानी उसे क्या पसंद है और क्या नहीं और वह मामलों को किस नज़र से देखता है। जब हम यहोवा की सोच के मुताबिक फैसले लेते और काम करते हैं, तो हम उसकी सोच अपना रहे होते हैं।

3. मामलों को यहोवा की नज़र से देखना मुश्‍किल क्यों हो सकता है?

3 जब हम यहोवा की तरह सोचना सीखते हैं, तो हमें अच्छा लगता है। फिर भी कई बार मामलों को उसकी नज़र से देखना मुश्‍किल होता है, क्योंकि हम अपरिपूर्ण हैं। जैसे, हम जानते हैं कि धन-दौलत, खून के गलत इस्तेमाल, नैतिक शुद्धता, प्रचार काम और दूसरे मामलों में यहोवा का नज़रिया क्या है। लेकिन हमारे लिए यह समझना मुश्‍किल हो सकता है कि वह ऐसा नज़रिया क्यों रखता है। हम ऐसा क्या कर सकते हैं, ताकि हमारी सोच यहोवा के जैसी होती जाए? इससे हम आज और भविष्य में सही काम कैसे कर पाएँगे?

परमेश्‍वर की सोच कैसे अपनाएँ?

4. नयी सोच पैदा करने का मतलब क्या है?

4 रोमियों 12:2 पढ़िए। इस आयत में प्रेषित पौलुस ने बताया कि यहोवा की तरह सोचने के लिए हमें क्या करना होगा। उसने कहा कि हमें “इस दुनिया की व्यवस्था के मुताबिक खुद को ढालना बंद” करना चाहिए। जैसे हमने पिछले लेख में देखा, पौलुस की इस बात का मतलब है कि हम दुनिया की सोच और रवैया ठुकराएँ। लेकिन पौलुस ने यह भी कहा था कि हमें नयी सोच पैदा करनी चाहिए। इसका मतलब है कि हम परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करें, उसकी सोच समझें, उस बारे में मनन करें और मामलों को उसकी नज़र से देखने की कोशिश करें।

5. अध्ययन करने का मतलब क्या है?

5 अध्ययन करने का मतलब सिर्फ यह नहीं कि हम जानकारी जल्दी-जल्दी पढ़ लें या अध्ययन के लिए सवालों के जवाब पर निशान लगा लें। इसमें और भी कुछ शामिल है। जब हम अध्ययन करते हैं, तो हमें सोचना चाहिए कि यह जानकारी हमें यहोवा, उसके कामों और उसकी सोच के बारे में क्या बताती है। हमें यह भी समझने की कोशिश करनी चाहिए कि यहोवा क्यों  हमसे कुछ काम करने के लिए कहता है और कुछ काम करने से मना करता है। हमें यह भी ध्यान देना चाहिए कि हमें अपनी सोच और ज़िंदगी में क्या बदलाव करने हैं। बेशक इन सारी बातों पर हर बार अध्ययन करते वक्‍त ध्यान देना मुमकिन नहीं है। फिर भी अच्छा होगा कि हम हर बार जितनी देर अध्ययन करते हैं, उसका आधा समय मनन करने में लगाएँ।​—भज. 119:97; 1 तीमु. 4:15.

6. परमेश्‍वर के वचन पर मनन करने से क्या होता है?

6 जब हम परमेश्‍वर के वचन पर नियमित तौर पर मनन करते हैं, तो हमारे साथ एक अनोखी बात होती है। वह क्या? हम “परखकर खुद के लिए मालूम करते” हैं यानी खुद को यकीन दिलाते हैं कि यहोवा की सोच एकदम सही है। हम यहोवा की सोच समझने लगते हैं और फिर उसके नज़रिए से सहमत होते हैं। इस तरह हम नयी सोच पैदा करते हैं और धीरे-धीरे यहोवा की सोच अपनाने लगते हैं।

हमारी सोच का हमारे कामों पर असर होता है

7, 8. (क) धन-दौलत के बारे में यहोवा का नज़रिया क्या है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीरें देखिए।) (ख) अगर हम इस मामले में यहोवा का नज़रिया रखें, तो हमारे लिए सबसे ज़्यादा क्या मायने रखेगा?

7 हमारी सोच का असर हमारे कामों पर भी पड़ता है। (मर. 7:21-23; याकू. 2:17) कैसे? आइए कुछ बातों पर गौर करें। पहली, यहोवा ने अपने बेटे की परवरिश करने के लिए जिस परिवार को चुना, उससे धन-दौलत के बारे में उसका नज़रिया पता चलता है। उसने यूसुफ और मरियम को चुना, जिनके पास धन-दौलत नहीं थी। (लैव्य. 12:8; लूका 2:24) जब यीशु पैदा हुआ, तब मरियम ने उसे “एक चरनी में रखा,” क्योंकि “उन्हें ठहरने के लिए सराय में कोई कमरा नहीं मिला था।” (लूका 2:7) अगर यहोवा चाहता तो ऐसा घर चुन सकता था, जहाँ यीशु को सारी सुख-सुविधाएँ मिलतीं। लेकिन उसके लिए सुख-सुविधाओं से बढ़कर यह बात मायने रखती थी कि यीशु ऐसे परिवार में पले-बढ़े, जहाँ परमेश्‍वर की उपासना को पहली जगह दी जाती हो।

8 इस घटना से हम सीखते हैं कि धन-दौलत के बारे में यहोवा का नज़रिया क्या है। कुछ माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चों को दुनिया की अच्छी-से-अच्छी चीज़ें मिलें, भले ही इन चीज़ों की वजह से उनके बच्चों का यहोवा के साथ रिश्‍ता कमज़ोर पड़ जाए। लेकिन यहोवा के लिए यह बात सबसे ज़्यादा अहमियत रखती है कि उसके हर सेवक का रिश्‍ता उसके साथ मज़बूत रहे। क्या आपका भी यही नज़रिया है? आपके कामों से क्या पता चलता है?​—इब्रानियों 13:5 पढ़िए।

9, 10. (क) दूसरों को ठोकर खिलाने की बात को यहोवा किस नज़र से देखता है? (ख) इस मामले में हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमारा नज़रिया यहोवा के जैसा है?

9 दूसरी बात, उस व्यक्‍ति के बारे में यहोवा का नज़रिया, जिसकी वजह से कोई पाप कर बैठता है या यहोवा की सेवा करना छोड़ देता है। यीशु ने कहा था, “जो कोई विश्‍वास करनेवाले ऐसे छोटों में से किसी एक को ठोकर खिलाता है, उसके लिए यही अच्छा है कि उसके गले में चक्की का वह पाट लटकाया जाए जिसे गधा घुमाता है और उसे समुंदर में फेंक दिया जाए।” (मर. 9:42) इससे पता चलता है कि यीशु की नज़र में किसी को ठोकर खिलाना एक गंभीर बात है। हम जानते हैं कि यीशु अपने पिता जैसा है, इसलिए हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा का भी यही नज़रिया है। (यूह. 14:9) कुछ लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके कामों से यीशु के किसी चेले को ठोकर लग सकती है, मगर यहोवा को फर्क पड़ता है। वह इसे हलकी बात नहीं समझता।

10 क्या किसी को ठोकर खिलाने की बात को हम भी यहोवा और यीशु की नज़र से देखते हैं? हमारे कामों से क्या पता चलता है? उदाहरण के लिए, हो सकता है कि हमें किसी तरह का पहनावा या किसी खास तरीके से सजना-सँवरना पसंद हो। लेकिन शायद हमारा पहनावा या सजना-सँवरना देखकर मंडली के कुछ लोगों को बुरा लगे या उनके मन में गंदे खयाल आएँ। ऐसे में हम क्या करेंगे? क्या उन भाई-बहनों के लिए प्यार हमें उभारेगा कि हम अपने पहनावे या सजने-सँवरने में बदलाव करें?​—1 तीमु. 2:9, 10.

11, 12. अगर हम संयम रखें और उन बातों से नफरत करें, जिनसे यहोवा को नफरत है, तो हमारी हिफाज़त कैसे होगी?

11 तीसरी बात, यहोवा बुराई से नफरत करता है। (यशा. 61:8) वह जानता है कि हम कभी-कभी सही काम करने से चूक जाते हैं, क्योंकि हम अपरिपूर्ण हैं। फिर भी वह चाहता है कि हम उसकी तरह बुराई से नफरत करें। (भजन 97:10 पढ़िए।) अगर हम इस बात पर मनन करें कि यहोवा बुराई से नफरत क्यों करता है, तो हम उसके जैसा नज़रिया रख पाएँगे। साथ ही, हमारा यह इरादा भी पक्का होगा कि हम वे काम न करें, जिनसे उसे नफरत है।

12 अगर हम बुराई से नफरत करना सीखें, तो हम समझ पाएँगे कि कुछ बातें गलत क्यों हैं, फिर चाहे बाइबल में उनके बारे में कुछ भी न बताया हो। जैसे, लैप डांसिंग, जो अनैतिक चालचलन में आता है। यह नाच आजकल बहुत आम हो गया है। कुछ लोगों को लगता है कि यह नाच किसी के साथ लैंगिक संबंध रखने जैसा नहीं है। इस वजह से वे सोचते हैं कि इसमें कोई बुराई नहीं है। * लेकिन क्या यहोवा को भी ऐसा ही लगता है? याद रखिए कि यहोवा को हर तरह की बुराई से नफरत है, इसलिए हमें किसी भी तरह की बुराई नहीं करनी चाहिए। इस वजह से आइए हम संयम रखना सीखें और उन बातों से नफरत करें, जिनसे यहोवा नफरत करता है।​—रोमि. 12:9.

अभी से सोचिए कि आप भविष्य में क्या करेंगे

13. हमें अभी से यह क्यों सोचना चाहिए कि यहोवा मामलों को किस नज़र से देखता है?

13 अध्ययन करने के दौरान हमें सोचना चाहिए कि यहोवा मामलों को किस नज़र से देखता है। इससे हम भविष्य में सही फैसले ले पाएँगे। अगर हम कभी ऐसे हालात में पड़ जाएँ, जिनमें हमें फौरन फैसला करना पड़े, तो हमें पता होगा कि हमें क्या करना है। (नीति. 22:3) आइए बाइबल से कुछ लोगों के बारे में देखें।

14. यूसुफ ने पोतीफर की पत्नी से जो कहा, उससे हम क्या सीखते हैं?

14 जब पोतीफर की पत्नी ने गलत काम करने के लिए यूसुफ को फुसलाने की कोशिश की, तो उसने फौरन मना कर दिया। ज़ाहिर है, उसने पहले ही इस बात पर मनन किया होगा कि शादी के बारे में यहोवा का क्या नज़रिया है। (उत्पत्ति 39:8, 9 पढ़िए।) यूसुफ ने पोतीफर की पत्नी से कहा, “भला मैं इतना बड़ा दुष्ट काम करके परमेश्‍वर के खिलाफ पाप कैसे कर सकता हूँ?” इससे पता चलता है कि यूसुफ का नज़रिया परमेश्‍वर के जैसा था। क्या आपका भी यही नज़रिया है? मान लीजिए कि आपके साथ काम करनेवाला आपसे फ्लर्ट यानी इश्‍कबाज़ी करने लगे, तो आप क्या करेंगे? या फिर कोई आपको फोन पर गंदे मैसेज या गंदी तसवीर भेजे, तो आप क्या करेंगे? * अगर आप पहले से ही इन मामलों पर यहोवा का नज़रिया जानें, उसे अपनाएँ और सोच लें कि आप इन हालात में क्या करेंगे, तो यहोवा के वफादार रहना आसान होगा।

15. तीन इब्री पुरुषों की तरह हम यहोवा के वफादार कैसे रह सकते हैं?

15 अब आइए तीन इब्री पुरुषों शदरक, मेशक और अबेदनगो पर ध्यान दें। राजा नबूकदनेस्सर ने सोने की एक मूरत बनवायी और उन्हें आज्ञा दी कि वे उसकी पूजा करें। तब उन्होंने साफ मना कर दिया। उनकी बात से पता चलता है कि उन्होंने पहले से सोच लिया था कि यहोवा के वफादार रहने की वजह से क्या हो सकता है। (निर्ग. 20:4, 5; दानि. 3:4-6, 12, 16-18) इससे हम क्या सीखते हैं? अगर आपका बॉस किसी त्योहार के लिए आपसे पैसे दान करने के लिए कहे, तब आप क्या करेंगे? अगर आपने यहोवा के नज़रिए पर मनन किया होगा, तो आप उस वक्‍त सही फैसला कर पाएँगे। इस वजह से अच्छा होगा कि आप अभी से  इन मामलों के बारे में यहोवा के नज़रिए पर मनन करें, ताकि ऐसे हालात आने पर आप तीन इब्रियों की तरह फौरन सही कदम उठा सकें।

क्या आपने इलाज के मामले में खोजबीन की है, अपना कानूनी दस्तावेज़ भरा है और अपने डॉक्टर से बात की है? (पैराग्राफ 16 देखिए)

16. यहोवा की सोच के बारे में सही समझ होने से हम इलाज के मामले में सही फैसला कैसे ले पाएँगे?

16 यहोवा की सोच पर मनन करने से हम उस वक्‍त भी उसके वफादार रह पाएँगे, जब इलाज के मामले में हमें फौरन कोई फैसला लेना पड़े। यह सच है कि हम अपने इस फैसले पर अटल हैं कि हम खून या उसके चार बड़े अंश नहीं चढ़वाएँगे। (प्रेषि. 15:28, 29) लेकिन इलाज की कुछ प्रक्रियाएँ हैं, जिनमें खून शामिल होता है और इन मामलों में हर मसीही को बाइबल के सिद्धांतों के आधार पर निजी फैसला करना होता है। इस तरह का फैसला लेने का सही वक्‍त कब है? क्या उस वक्‍त, जब आप अस्पताल में भरती हों, शायद बहुत दर्द में हों और आप पर दबाव डाला जा रहा हो कि आप जल्दी फैसला लें? नहीं, वह सही वक्‍त नहीं होगा। वह वक्‍त अभी है। आपको अभी इस बारे में खोजबीन करनी चाहिए और इलाज से जुड़ा अपना कानूनी दस्तावेज़ भरना चाहिए, जिसमें साफ बताया जाता है कि आप किस तरह का इलाज चाहते हैं। इसके अलावा आपको अपने डॉक्टर से भी बात कर लेनी चाहिए। *

17-19. यह क्यों ज़रूरी है कि हम अभी से  यहोवा का नज़रिया जानें? एक उदाहरण दीजिए।

17 अब आइए आखिर में यीशु के उदाहरण पर ध्यान दें। जब पतरस ने उससे कहा, “प्रभु खुद पर दया कर,” तब याद कीजिए कि यीशु ने उसे फौरन क्या जवाब दिया था। इससे पता चलता है कि यीशु ने इस बात पर बहुत मनन किया होगा कि उसके बारे में परमेश्‍वर की क्या इच्छा है। उसने उन भविष्यवाणियों पर भी मनन किया होगा, जो धरती पर उसकी ज़िंदगी और मौत के बारे में की गयी थीं। इस तरह मनन करने से उसे हिम्मत मिली, जिससे वह यहोवा का वफादार रह पाया और उसने हम सबके लिए अपनी ज़िंदगी कुरबान की।​—मत्ती 16:21-23 पढ़िए।

18 आज परमेश्‍वर चाहता है कि हम उसके दोस्त बनें और खुशखबरी का प्रचार करने में अपना तन-मन लगा दें। (मत्ती 6:33; 28:19, 20; याकू. 4:8) लेकिन हो सकता है कि कुछ लोग नेक इरादे से हमें ऐसा करने से रोकें, जैसे पतरस ने यीशु को रोका था। मान लीजिए, आपका बॉस आपसे कहता है कि वह आपकी तनख्वाह बढ़ा देगा। लेकिन फिर आपको ज़्यादा घंटे काम करना होगा और सभाओं और प्रचार के लिए ज़्यादा वक्‍त नहीं मिलेगा। या फिर सोचिए कि आप स्कूल में पढ़ते हैं और आपको घर से दूर जाकर ऊँची शिक्षा लेने का मौका दिया जाता है। ऐसे में क्या आप फैसला करने के लिए उसी वक्‍त प्रार्थना करेंगे, खोजबीन करेंगे और अपने परिवारवालों या प्राचीनों से बात करेंगे? बेहतर होगा कि आप अभी  यह जानने की कोशिश करें कि ऐसे मामलों में यहोवा का नज़रिया क्या है और उसकी सोच अपनाएँ। फिर आपके सामने जब भी ऐसे मौके आएँगे, तो वे आपको लुभावने नहीं लगेंगे। आपको पता होगा कि आपको क्या करना है, क्योंकि आपने ठान लिया है कि आप यहोवा की सेवा से अपना ध्यान भटकने नहीं देंगे।

19 आप कुछ और भी हालात सोच सकते हैं, जिनमें अचानक आपकी वफादारी की परख हो सकती है। बेशक हम सारे हालात के लिए खुद को तैयार नहीं कर सकते। लेकिन हम निजी अध्ययन के दौरान मनन करके यहोवा की सोच ज़रूर जान सकते हैं। इससे हम सीखी हुई बातें याद रख पाएँगे और कैसे भी हालात में सही फैसला कर पाएँगे। आइए हम अध्ययन के दौरान पता करें कि किसी मामले में यहोवा का नज़रिया क्या है, फिर उसके जैसा नज़रिया रखें और सोचें कि उसके आधार पर हम आज और भविष्य में सही फैसला कैसे करेंगे।

यहोवा की सोच पर आपका भविष्य टिका है

20, 21. (क) नयी दुनिया में हमें अपनी आज़ादी से खुशी क्यों मिलेगी? (ख) हम आज भी खुश कैसे हो सकते हैं?

20 हम सभी नयी दुनिया का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। हममें से ज़्यादातर लोग इसी धरती पर हमेशा जीने की आशा रखते हैं। परमेश्‍वर के राज के दौरान हमें हर दुख-तकलीफ से छुटकारा मिलेगा, जो आज हमें इस दुनिया में सहनी पड़ती है। नयी दुनिया में हम सबको अपनी पसंद और इच्छा के मुताबिक फैसले करने की आज़ादी भी होगी।

21 लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि नयी दुनिया में हमारी आज़ादी की कोई सीमा नहीं होगी। उस वक्‍त दीन लोग यहोवा के नियम और उसकी सोच के आधार पर फैसला करेंगे। इससे उन्हें अपार खुशी और बड़ी शांति मिलेगी। (भज. 37:11) लेकिन हम आज भी यहोवा की सोच अपनाकर खुशी पा सकते हैं।

^ पैरा. 12 लैप डांसिंग एक ऐसा नाच होता है, जिसमें एक नाचनेवाली या नाचनेवाला करीब-करीब नंगे बदन, ग्राहक की गोद में बैठकर लैंगिक तौर पर उत्तेजित करनेवाला नाच करता है। कुछ मामलों में यह नाजायज़ यौन-संबंध में गिना जा सकता है और न्याय-समिति बिठाने की ज़रूरत पड़ सकती है। अगर किसी मसीही ने इसमें हिस्सा लिया है, तो उसे प्राचीनों से मदद लेनी चाहिए।​—याकू. 5:14, 15.

^ पैरा. 14 मोबाइल के ज़रिए दूसरों को लैंगिक तौर पर उत्तेजित करनेवाले मैसेज, तसवीरें या वीडियो भेजने को सैक्सटिंग कहा जाता है। सैक्सटिंग के कुछ मामलों में न्याय-समिति बिठाना भी ज़रूरी हो सकता है। कुछ मामलों में सैक्सटिंग करनेवाले किशोर बच्चों को सरकारी अधिकारियों ने यौन-शोषण का दोषी ठहराया है। ज़्यादा जानकारी के लिए jw.org वेबसाइट पर जाइए और “नौजवानों के सवाल​—सैक्सटिंग के बारे में मुझे क्या पता होना चाहिए?” लेख ऑनलाइन पढ़िए। (शास्त्र से जानिए > नौजवान भाग में देखिए।) जनवरी-मार्च 2014 की सजग होइए!  के पेज 4-5 पर दिया लेख “अपने किशोर से सैक्सटिंग के बारे में कैसे बात करें” पढ़िए।

^ पैरा. 16 इस मामले में बाइबल के कौन-से सिद्धांत लागू होते हैं, यह जानकारी कई प्रकाशनों में दी गयी है। मिसाल के लिए, परमेश्‍वर के प्यार के लायक बने रहिए  किताब के पेज 246-249 देखिए।