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“मैं तेरी सच्चाई की राह पर चलूँगा”

“मैं तेरी सच्चाई की राह पर चलूँगा”

“हे यहोवा, मुझे अपनी राह के बारे में सिखा। मैं तेरी सच्चाई की राह पर चलूँगा।”​—भज. 86:11.

गीत: 31, 72

1-3. (क) हमें बाइबल की सच्चाई के बारे में कैसा महसूस करना चाहिए? मिसाल दीजिए। (लेख की शुरूआत में दी तसवीरें देखिए।) (ख) इस लेख में हम किन सवालों पर गौर करेंगे?

आजकल देखा जाता है कि लोग दुकान से सामान खरीदते हैं और फिर उसे वापस कर देते हैं। खासकर जब वे कोई चीज़ ऑनलाइन खरीदते हैं, तब तो वे और भी ऐसा करते हैं। शायद उन्हें वह चीज़ बाद में उतनी पसंद नहीं आती जितनी खरीदते वक्‍त आती है या उन्हें उसमें कोई कमी दिखायी पड़ती है। इस वजह से वे या तो उसे बदल देते हैं या फिर उसे लौटाकर पैसा वापस लेते हैं।

2 हम बाइबल की सच्चाई के साथ ऐसा कभी नहीं करेंगे। एक बार हमने सच्चाई को “खरीद” लिया या सीख लिया, तो हम उसे कभी नहीं ‘बेचेंगे’ या छोड़ेंगे। (नीतिवचन 23:23 पढ़िए; 1 तीमु. 2:4) पिछले लेख में हमने कुछ बातों के बारे में चर्चा की थी, जो हमने सच्चाई सीखने के लिए त्यागीं। जैसे, हमने दूसरे कामों में समय बिताना कम कर दिया। शायद हमने कोई करियर छोड़ा हो, जिससे हम काफी पैसा कमा सकते थे। शायद दूसरों के साथ हमारे रिश्‍ते पर कुछ असर हुआ हो, हमने अपनी सोच और अपने तौर-तरीके बदले हों और ऐसे रीति-रिवाज़ और त्योहार मनाना छोड़ दिया हो, जो यहोवा को पसंद नहीं। लेकिन हमें पूरा यकीन है कि सच्चाई सीखने से हमें जो आशीषें मिलीं, उनके आगे हमारे त्याग का मोल बहुत कम है।

3 यीशु ने एक व्यापारी की मिसाल से समझाया कि सच्चाई की तलाश करनेवालों के लिए यह कितनी अनमोल है। वह व्यापारी बेहतरीन किस्म के मोतियों की तलाश में था। जब उसे एक बेशकीमती मोती मिला, तो उसने फौरन अपना सबकुछ बेच दिया और वह मोती खरीद लिया। वह मोती परमेश्‍वर के राज के बारे में सच्चाई को दर्शाता है। (मत्ती 13:45, 46) जब हमने पहली बार परमेश्‍वर के राज के बारे में और बाइबल से कुछ और अनमोल सच्चाइयाँ सीखीं, तो हम उनकी खातिर कोई भी त्याग करने के लिए तैयार थे। अगर हम इस सच्चाई का मोल कभी कम न आँकें, तो हम इसे नहीं छोड़ेंगे। हमें बाइबल की यह सलाह हर हाल में माननी चाहिए, ‘सच्चाई की राह पर चलते रहो।’ (3 यूहन्‍ना 2-4 पढ़िए।) इसका मतलब है कि हमें सच्चाई को ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत देनी चाहिए और यह बात हमारे जीने के तरीके से दिखनी चाहिए। मगर दुख की बात है कि परमेश्‍वर के कुछ लोग अब इसे अनमोल नहीं समझते, इसलिए उन्होंने इसे छोड़ दिया। उन्होंने क्यों और कैसे सच्चाई को ‘बेच’ दिया? हम इस बात का ध्यान कैसे रख सकते हैं कि हमारे साथ ऐसा न हो? हम ‘सच्चाई की राह पर चलते रहने’ का अपना इरादा कैसे पक्का कर सकते हैं? आइए इन सवालों के जवाब जानें।

कुछ लोगों ने क्यों और कैसे सच्चाई को ‘बेच’ दिया?

4. यीशु के दिनों में कुछ लोगों ने सच्चाई की राह पर चलना क्यों छोड़ दिया?

4 यीशु के दिनों में जिन लोगों ने सच्चाई सीखी, उनमें से कुछ ने बाद में उस राह पर चलना छोड़ दिया। उदाहरण के लिए, जब यीशु ने चमत्कार करके भीड़ को खाना खिलाया, तो भीड़ उसके पीछे-पीछे गलील झील के पार तक चली गयी। लेकिन तब यीशु ने कुछ ऐसा कहा, जिससे वे चौंक गए। उसने कहा, “जब तक तुम इंसान के बेटे का माँस न खाओ और उसका खून न पीओ, तुममें जीवन नहीं।” उसकी बात का मतलब पूछने के बजाय वे कहने लगे, “यह कैसी घिनौनी बात है, कौन इसे सुनेगा?” इस वजह से “बहुत-से चेलों ने उसके पीछे चलना छोड़ दिया और वापस उन कामों में लग गए जिन्हें वे छोड़ आए थे।”​—यूह. 6:53-66.

5, 6. (क) हमारे दिनों में कुछ लोग जानबूझकर सच्चाई से दूर क्यों चले गए? (ख) एक व्यक्‍ति किस वजह से धीरे-धीरे सच्चाई से दूर जा सकता है?

5 दुख की बात है कि हमारे दिनों में भी कुछ लोग जानबूझकर सच्चाई से दूर चले गए। शायद बाइबल की किसी आयत की समझ में हुआ सुधार उन्हें पसंद नहीं आया या किसी जाने-माने और ज़िम्मेदार भाई ने कुछ ऐसा कहा या किया, जो उन्हें अच्छा नहीं लगा। हो सकता है कि किसी ने उन्हें बाइबल से सलाह दी हो और वह उन्हें अच्छी न लगी हो या मंडली में किसी के साथ उनका झगड़ा हो गया हो। शायद कुछ लोग परमेश्‍वर से बगावत करनेवालों या सच्चाई का विरोध करनेवालों की बातों में आ गए हों। ऐसे ही कारणों से कुछ लोग जानबूझकर यहोवा और उसकी मंडली से दूर चले गए हैं। (इब्रा. 3:12-14) कितना अच्छा होता कि ये लोग प्रेषित पतरस की मिसाल पर ध्यान देते और यीशु पर से अपना विश्‍वास और भरोसा उठने न देते। जब भीड़ में कुछ लोग यीशु की बात सुनकर चौंक गए थे, तो यीशु ने अपने प्रेषितों से पूछा कि क्या वे भी उसे छोड़कर जाना चाहते हैं। तब पतरस ने कहा, “प्रभु, हम किसके पास जाएँ? हमेशा की ज़िंदगी की बातें तो तेरे ही पास हैं।”​—यूह. 6:67-69.

6 आज कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो धीरे-धीरे सच्चाई से दूर चले गए, शायद उन्हें पता भी नहीं चला कि यह कब और कैसे हो गया। ऐसे लोग उस नाव की तरह हैं, जो धीरे-धीरे नदी के किनारे से दूर चली जाती है। बाइबल में हमें खबरदार किया गया है कि “हम कभी-भी बहकर दूर न चले जाएँ।” (इब्रा. 2:1) अकसर जो व्यक्‍ति धीरे-धीरे सच्चाई से दूर चला जाता है, वह ऐसा करना नहीं चाहता। लेकिन वह यहोवा के साथ अपनी दोस्ती मज़बूत करने पर ध्यान नहीं देता, इसलिए यह दोस्ती कमज़ोर पड़ जाती है और वक्‍त के गुज़रते शायद टूट भी जाए। हमारे साथ ऐसा कभी न हो, इस बात का ध्यान हम कैसे रख सकते हैं?

ध्यान रखिए कि आप सच्चाई को कभी न बेचें

7. क्या करने से हम सच्चाई को कभी नहीं बेचेंगे?

7 सच्चाई की राह पर चलते रहने के लिए ज़रूरी है कि हम यहोवा की हर बात  सुनें और मानें। हमें सच्चाई को ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत देनी चाहिए। जो कुछ हम करते हैं, वह सब बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक होना चाहिए। राजा दाविद ने प्रार्थना करते वक्‍त यहोवा से कहा, “मैं तेरी सच्चाई की राह पर चलूँगा।” (भज. 86:11) दाविद ने ठान लिया था कि वह सच्चाई की राह पर चलता रहेगा और यही हमें भी ठान लेना चाहिए। ऐसा इरादा न होने से हम उन बातों के बारे में सोचने लग सकते हैं, जो हमने सच्चाई की खातिर छोड़ी थीं, यहाँ तक कि शायद हम उन्हें पाने की कोशिश करने लगें। यह नहीं हो सकता कि हम बाइबल की कुछ सच्चाई माने और कुछ नहीं। हमें “सच्चाई की पूरी  समझ” के मुताबिक चलना होगा। (यूह. 16:13) पिछले लेख में हमने पाँच बातों पर चर्चा की थी, जो हमने सच्चाई सीखने और उसके मुताबिक चलने के लिए छोड़ी थीं। अब हम देखेंगे कि हम इस बात का ध्यान कैसे रख सकते हैं कि छोड़ी हुई चीज़ों के पीछे हम वापस न जाएँ।​—मत्ती 6:19.

8. अपना समय बुद्धिमानी से इस्तेमाल न करने की वजह से एक मसीही सच्चाई से दूर कैसे जा सकता है? एक उदाहरण दीजिए।

8 समय। हम धीरे-धीरे सच्चाई से दूर न चले जाएँ, इसके लिए ज़रूरी है कि हम अपना समय बुद्धिमानी से इस्तेमाल करें। अगर हम ध्यान न दें, तो हम अपना बहुत सारा वक्‍त मनोरंजन में, शौक पूरे करने में, इंटरनेट पर और टीवी देखने में बरबाद कर देंगे। ये बातें अपने आप में गलत नहीं हैं, लेकिन हो सकता है कि जो समय पहले हम निजी अध्ययन करने और गवाही देने में बिताते थे, वह अब इन बातों में लगा रहे हों। ऐसा ही कुछ एमा के साथ हुआ। * बचपन से ही उसे घोड़े बहुत पसंद थे और उसे जब भी मौका मिलता, वह घुड़सवारी के लिए निकल जाती। लेकिन बाद में उसका मन उसे कचोटने लगा कि वह अपना शौक पूरा करने में बहुत समय लगा रही है। उसने फैसला किया कि अब वह इतना समय नहीं लगाएगी। उसने कोरी वेल्स नाम की एक बहन से भी काफी कुछ सीखा, जो घुड़सवारी के शो में करतब करती थी। * अब एमा अपना ज़्यादातर समय यहोवा की सेवा में लगाती है। वह अपने परिवारवालों और मंडली के दोस्तों के साथ भी काफी वक्‍त बिताती है। वह पहले से ज़्यादा यहोवा के करीब महसूस करती है और उसे इस बात की खुशी है कि वह अपना समय बुद्धिमानी से इस्तेमाल कर रही है।

9. हमारी ज़िंदगी में दुनियावी चीज़ें किस तरह बहुत ज़रूरी बन सकती हैं?

9 दुनियावी चीज़ें। सच्चाई की राह पर चलते रहने के लिए ज़रूरी है कि हम दुनियावी चीज़ों को ज़्यादा अहमियत न दें। सच्चाई सीखने पर हमें एहसास हुआ था कि यहोवा की सेवा करना दुनियावी चीज़ों से कहीं बढ़कर है और हमने खुशी-खुशी वे चीज़ें छोड़ दीं। लेकिन अब शायद हम देखें कि लोग नए-नए इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीद रहे हैं या महँगी-महँगी चीज़ों का मज़ा ले रहे हैं। हम सोचने लग सकते हैं कि काश, हमारे पास भी वे चीज़ें हों। हमारे पास जो कुछ है, शायद अब उससे हमें खुशी न मिले और यहोवा की सेवा करने के बजाय हम दुनियावी चीज़ों पर ज़्यादा ध्यान देने लगें। यह बात हमें बाइबल के एक किरदार देमास की याद दिलाती है। वह “इस दुनिया के मोह” में इतना पड़ गया था कि उसने प्रेषित पौलुस के साथ सेवा करना छोड़ दिया। (2 तीमु. 4:10) हो सकता है कि देमास यहोवा की सेवा करने से ज़्यादा दुनियावी चीज़ों से प्यार करता हो या अब वह पौलुस के साथ सेवा करने में और त्याग न करना चाहता हो। इससे हम क्या सीखते हैं? शायद पहले हमें दुनियावी चीज़ों से प्यार हो। लेकिन अगर हम ध्यान न दें, तो वह प्यार हममें फिर से जाग सकता है और इतना बढ़ सकता है कि सच्चाई के लिए हमारा प्यार कम हो जाएगा।

10. हमें किन लोगों के दबाव में नहीं आना चाहिए?

10 लोगों के साथ रिश्‍ते। सच्चाई की राह पर चलते रहने के लिए ज़रूरी है कि हम उन लोगों के दबाव में न आएँ, जो यहोवा की सेवा नहीं करते। सच्चाई सीखने पर हमारे दोस्तों और परिवारवालों के साथ हमारा रिश्‍ता पहले जैसा नहीं रहा। हमने बाइबल से जो नयी बातें सीखीं, शायद उनका कुछ लोगों ने आदर किया हो, लेकिन कुछ लोगों ने विरोध किया। (1 पत. 4:4) बेशक हम अपने परिवारवालों के साथ अच्छा रिश्‍ता रखने की पूरी कोशिश करते हैं और उनसे प्यार से पेश आते हैं, लेकिन उन्हें खुश करने के लिए हम यहोवा के स्तरों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। जैसा 1 कुरिंथियों 15:33 में लिखा है, हमें उन्हीं लोगों से दोस्ती करनी चाहिए, जो यहोवा से प्यार करते हैं।

11. अपने मन से गंदी सोच निकालने और गलत काम न करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

11 गंदी सोच और गलत काम। सच्चाई की राह पर चलने के लिए ज़रूरी है कि हम यहोवा की नज़र में शुद्ध रहें। (यशा. 35:8; 1 पतरस 1:14-16 पढ़िए।) सच्चाई सीखने पर हमने बाइबल के स्तरों पर चलने के लिए अपनी ज़िंदगी में बदलाव किए। हममें से कुछ लोगों को बड़े-बड़े बदलाव करने पड़े। लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम कभी अपनी साफ-सुथरी ज़िंदगी छोड़कर फिर से अनैतिक काम न करने लगें। अगर हमारे मन में गलत काम करने का खयाल आए, तो हम क्या कर सकते हैं? हमें सोचना चाहिए कि यहोवा ने हमें पवित्र करने के लिए कितना कुछ किया है। उसने अपने प्यारे बेटे यीशु मसीह की कुरबानी दी। (1 पत. 1:18, 19) यहोवा की नज़रों में शुद्ध रहने के लिए हमें याद रखना चाहिए कि यीशु का फिरौती बलिदान कितना अनमोल है।

12, 13. (क) रीति-रिवाज़ों और त्योहारों को यहोवा की नज़र से देखने के लिए हमें क्या करना चाहिए और क्यों? (ख) हम किन बातों पर गौर करेंगे?

12 रीति-रिवाज़ और त्योहार जो परमेश्‍वर को पसंद नहीं। शायद हमारे परिवारवाले, साथ काम करनेवाले या स्कूल में साथ पढ़नेवाले हम पर ऐसे रीति-रिवाज़ या त्योहार मनाने का दबाव डालें, जो परमेश्‍वर को पसंद नहीं। इस तरह के दबाव का सामना करने के लिए हमें क्या करना चाहिए? हमें अच्छी तरह पता होना चाहिए कि यहोवा किन कारणों से हमें ऐसे त्योहार मनाने से मना करता है। हमें प्रकाशनों में खोजबीन करनी चाहिए और याद रखना चाहिए कि इन त्योहारों की शुरूआत कैसे हुई। इन बातों पर मनन करने से हमें यकीन होगा कि हम उस राह पर चल रहे हैं, जिसे ‘प्रभु स्वीकार करता है।’ (इफि. 5:10) यहोवा और उसके वचन पर भरोसा रखने से हमें कभी यह डर नहीं होगा कि लोग क्या सोचेंगे।​—नीति. 29:25.

13 हम यही उम्मीद करते हैं कि हम हमेशा सच्चाई की राह पर चलते रहें। लेकिन हम इस राह पर चलते रहने का अपना इरादा कैसे पक्का कर सकते हैं? हम तीन बातों पर गौर कर सकते हैं।

सच्चाई की राह पर चलने का इरादा और भी पक्का कीजिए

14. (क) बाइबल का अध्ययन करने से सच्चाई पर चलते रहने का हमारा इरादा कैसे पक्का हो सकता है? (ख) हमें बुद्धि, शिक्षा और समझ को क्यों खरीदना चाहिए?

14 पहली बात, बाइबल का अध्ययन  करते रहिए और जो कुछ आप सीखते हैं, उस पर गहराई से सोचिए। नियमित तौर पर अध्ययन करने के लिए समय निकालिए। जितना ज़्यादा हम अध्ययन करेंगे, उतना ही हमारे दिल में सच्चाई के लिए प्यार बढ़ेगा और सच्चाई पर चलते रहने का हमारा इरादा पक्का होगा। बाइबल की सच्चाई जानना काफी नहीं है, इस पर चलना भी ज़रूरी है। जैसे नीतिवचन 23:23 में बताया गया है कि सच्चाई को खरीदने के अलावा हमें “बुद्धि, शिक्षा और समझ” को भी खरीदना चाहिए। समझ को खरीदने का मतलब है, यह जानना कि सच्चाई की हर बात आपस में कैसे मेल खाती है। फिर वे बातें लागू करने में बुद्धि हमारी मदद करती है। कभी-कभी बाइबल से मिलनेवाली शिक्षा से हम समझ पाते हैं कि हमें कहाँ सुधार करना है। हमें यह सुधार तुरंत करना चाहिए, क्योंकि बाइबल कहती है कि शिक्षा चाँदी से भी बढ़कर है।​—नीति. 8:10.

15. सच्चाई कमर पर बँधे पट्टे की तरह हमारी हिफाज़त कैसे करती है?

15 दूसरी बात, हम हर दिन सच्चाई के मुताबिक जीएँ। बाइबल में सच्चाई की तुलना एक सैनिक के कमर पर बाँधे जानेवाले पट्टे से की गयी है। (इफि. 6:14) प्राचीन समय में सैनिक की कमर पर पट्टा बँधा होने से लड़ाई के दौरान उसकी हिफाज़त होती थी और वह फुर्ती से लड़ पाता था। लेकिन उसे अपना पट्टा कसकर बाँधना होता था। ढीला बाँधने से उसकी हिफाज़त नहीं होती और न ही वह फुर्ती से लड़ पाता। सैनिक के पट्टे की तरह सच्चाई हमारी हिफाज़त कैसे करती है? अगर हम सच्चाई के पट्टे को अपनी कमर पर कसे रहें यानी बाइबल की हर सलाह मानें, तो हम हमेशा सही सोच रखेंगे और सही फैसले कर पाएँगे। इसके अलावा जब हम पर कोई बड़ी समस्या आती है या हमें गलत काम करने के लिए लुभाया जाता है, तो सच्चाई की वजह से सही काम करने का हमारा इरादा और भी पक्का होता है। जिस तरह एक सैनिक लड़ाई पर जाते वक्‍त इस बात का ध्यान रखता है कि उसने अपनी कमर पर पट्टा कसकर बाँधा है, उसी तरह हम इस बात का ध्यान रखते हैं कि हम हर दिन बाइबल की सच्चाई के मुताबिक चलें। एक सैनिक अपने पट्टे पर तलवार भी लटकाता है। हम भी कुछ ऐसा ही कर सकते हैं।

16. दूसरों को सच्चाई सिखाने से हम सच्चाई की राह पर कैसे चलते रह सकते हैं?

16 तीसरी बात, जितना हो सके, हम लोगों को बाइबल की सच्चाई सिखाएँ। बाइबल की तुलना एक तलवार से की गयी है। जिस तरह एक सैनिक अपनी तलवार पर मज़बूत पकड़ रखता है, उसी तरह परमेश्‍वर के वचन पर हमारी पकड़ मज़बूत होनी चाहिए। (इफि. 6:17) हम सभी अच्छे शिक्षक बन सकते हैं और “सच्चाई के वचन को सही तरह से इस्तेमाल” करना सीख सकते हैं। (2 तीमु. 2:15) जब हम दूसरों को सिखाने में बाइबल का इस्तेमाल करते हैं, तो हम सच्चाई को अच्छी तरह समझ पाते हैं और उससे हमें और भी लगाव हो जाता है। इससे सच्चाई की राह पर चलते रहने का हमारा इरादा भी मज़बूत होता है।

17. सच्चाई आपके लिए कीमती क्यों है?

17 बाइबल की सच्चाई यहोवा की तरफ से एक कीमती तोहफा है। इसकी वजह से हम स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता के करीब आ पाए हैं। इस रिश्‍ते से बढ़कर हमारे लिए दुनिया में और कुछ भी नहीं। यहोवा ने हमें अब तक बहुत कुछ सिखाया है, लेकिन यह बस एक शुरूआत है! वह वादा करता है कि वह हमें हमेशा सिखाता रहेगा। इस वजह से हमें सच्चाई को एक कीमती मोती की तरह अनमोल समझना चाहिए। आइए ‘सच्चाई को खरीदते रहें, इसे कभी न बेचें।’ ऐसा करते रहने से हम दाविद की तरह यहोवा से किया अपना यह वादा निभा पाएँगे, “मैं तेरी सच्चाई की राह पर चलूँगा।”​—भज. 86:11.

^ पैरा. 8 नाम बदल दिया गया है।

^ पैरा. 8 JW ब्रॉडकास्टिंग पर जाइए, फिर इंटरव्यू और अनुभव > सच्चाई ज़िंदगी सँवार देती है में देखिए।