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‘सच्चाई को खरीद लो, उसे कभी मत बेचो’

‘सच्चाई को खरीद लो, उसे कभी मत बेचो’

“सच्चाई को खरीद ले, उसे कभी मत बेचना, बुद्धि, शिक्षा और समझ को भी खरीद ले।”​—नीति. 23:23.

गीत: 37, 34

1, 2. (क) हमारी सबसे कीमती चीज़ क्या है? (ख) हम किन सच्चाइयों को अनमोल समझते हैं और क्यों? (लेख की शुरूआत में दी तसवीरें देखिए।)

आपकी सबसे कीमती चीज़ क्या है? हम यहोवा के सेवकों के लिए उसके साथ हमारा रिश्‍ता सबसे कीमती है। यह इतना कीमती है कि हम इसका कभी सौदा नहीं करेंगे। हमारे लिए बाइबल में दी सच्चाई भी बहुत अनमोल है, जिसकी वजह से यहोवा के साथ हमारा रिश्‍ता बन पाया है।​—कुलु. 1:9, 10.

2 ज़रा सोचिए कि हमारा महान उपदेशक अपने वचन बाइबल के ज़रिए हमें कितना कुछ सिखाता है। वह हमें अपने नाम का मतलब और अपने मनभावने गुणों के बारे में बताता है। वह हमें फिरौती के प्यार-भरे इंतज़ाम के बारे में जानकारी देता है, जो उसने अपने बेटे यीशु के ज़रिए किया है। वह हमें मसीहा के राज के बारे में भी बताता है। इसके अलावा उसने अभिषिक्‍त लोगों को स्वर्ग में जीने की आशा और ‘दूसरी भेड़ों’ को इस धरती पर फिरदौस में जीने की आशा दी है। (यूह. 10:16) वह हमें यह भी सिखाता है कि हमें लोगों से कैसे व्यवहार करना चाहिए। हम इन सच्चाइयों को बहुत अनमोल समझते हैं, क्योंकि इनकी वजह से हम अपने सृष्टिकर्ता के करीब आ पाते हैं। इनसे हमारी ज़िंदगी को एक मकसद मिलता है।

3. क्या यहोवा सच्चाई सीखने के लिए हमसे पैसे की माँग करता है?

3 यहोवा उदार परमेश्‍वर है। वह इतना उदार है कि उसने अपना बेटा हमारे लिए कुरबान कर दिया। जब वह देखता है कि कोई सच्चाई की तलाश में है, तो वह उसे पाने में उसकी मदद करता है। वह कभी नहीं चाहता कि सच्चाई सीखने के लिए कोई इंसान पैसा दे। एक बार शमौन नाम के एक आदमी ने प्रेषित पतरस को पैसा देकर पवित्र शक्‍ति देने का अधिकार खरीदना चाहा। इस पर पतरस ने उसे फटकारा, “तेरी चाँदी तेरे संग नाश हो, क्योंकि तूने सोचा कि तू परमेश्‍वर के मुफ्त वरदान को पैसों से खरीद सकता है।” (प्रेषि. 8:18-20) तो फिर सवाल है कि ‘सच्चाई को खरीदने’ का क्या मतलब है?

‘सच्चाई को खरीदने’ का मतलब क्या है?

4. इस लेख में हम सच्चाई के बारे में क्या सीखेंगे?

4 नीतिवचन 23:23 पढ़िए। हम परमेश्‍वर के वचन में दी सच्चाई बिना कोई मेहनत किए नहीं पा सकते। हमें कोई भी त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए। ‘सच्चाई को खरीदने’ या हासिल कर लेने के बाद हमें उसे किसी भी हाल में “बेचना” या छोड़ना नहीं चाहिए, ठीक जैसे नीतिवचन के लेखक ने सलाह दी। आइए देखें कि ‘सच्चाई को खरीदने’ का मतलब क्या है और इसके लिए हमें क्या कीमत चुकानी पड़ सकती है। यह जानने से सच्चाई के लिए हमारी कदरदानी बढ़ेगी और इसे कभी न ‘बेचने’ का हमारा इरादा पक्का होगा। इन बातों पर चर्चा करने से हम समझ पाएँगे कि सच्चाई को खरीदने के लिए हम जो कीमत चुकाते हैं, उसका हमें कोई पछतावा नहीं होगा।

5, 6. (क) हम पैसे दिए बिना सच्चाई को कैसे खरीद सकते हैं? समझाइए। (ख) सच्चाई से हमें किस तरह फायदा होता है?

5 जो चीज़ मुफ्त में मिलती है, उसे पाने के लिए भी कुछ कीमत चुकानी पड़ती है। नीतिवचन 23:23 में जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “खरीद ले” किया गया है, उसका मतलब “हासिल करना” भी हो सकता है। इन शब्दों से पता चलता है कि किसी चीज़ को पाने के लिए हमें कुछ करना होता है या कुछ त्यागना पड़ता है। उसी तरह सच्चाई को खरीदने के लिए हमें कुछ कीमत चुकानी पड़ती है। मान लीजिए, हमें पता चलता है कि बाज़ार में एक विज्ञापन लगा है, “मुफ्त में केले लीजिए।” क्या ये केले अपने आप हमारे घर पहुँच जाएँगे? नहीं। हमें बाज़ार जाना होगा और वहाँ से केले उठाकर लाना होगा। हालाँकि इन केलों के लिए हमें पैसा नहीं देना पड़ेगा, लेकिन हमें मेहनत ज़रूर करनी पड़ेगी। उसी तरह सच्चाई को खरीदने के लिए हमें पैसे नहीं देने पड़ते, लेकिन उसे पाने के लिए हमें मेहनत ज़रूर करनी पड़ती है।

6 यशायाह 55:1-3 पढ़िए। इन आयतों में यहोवा के शब्दों से हम सच्चाई को खरीदने का मतलब और अच्छी तरह समझ सकते हैं। यहोवा अपनी बातों की तुलना पानी, दूध और दाख-मदिरा से करता है। जिस तरह एक प्यासे व्यक्‍ति को ठंडा पानी पीने से ताज़गी मिलती है, उसी तरह परमेश्‍वर के वचन में दी सच्चाई हमें ताज़गी देती है। जैसे दूध पीने से बच्चे बढ़ते हैं और बड़ों को ताकत मिलती है, वैसे ही यहोवा की बातों से हम सच्चाई में बढ़ते हैं और हमें ताकत मिलती है। इसके अलावा यहोवा की बातें दाख-मदिरा की तरह भी हैं। कैसे? बाइबल में बताया गया है कि दाख-मदिरा पीने से दिल मगन होता है। (भज. 104:15) जब यहोवा अपने लोगों को ‘दाख-मदिरा लेने’ के लिए कहता है, तो मानो वह हमसे कह रहा है कि अगर हम उसके वचन के मुताबिक जीएँ, तो हम खुश रहेंगे। (भज. 19:8) इन मिसालों के ज़रिए परमेश्‍वर ने अपने वचन में दी सच्चाई सीखने और उस पर चलने के फायदे कितनी अच्छी तरह समझाए। हम जो मेहनत करते हैं, उसकी तुलना हम उस कीमत से कर सकते हैं, जो हमें चुकानी पड़ती है। सच्चाई खरीदने के लिए हमें किन बातों की कीमत चुकानी पड़ सकती है? आइए ऐसी पाँच बातों पर चर्चा करें।

सच्चाई खरीदने के लिए आपने क्या कीमत चुकायी?

7, 8. (क) सच्चाई सीखने के लिए वक्‍त क्यों चाहिए? (ख) एक विद्यार्थी ने कौन-से त्याग किए और इस वजह से वह क्या कर पायी?

7 समय। यह ऐसी कीमत है, जो सच्चाई खरीदनेवाले हर किसी को चुकानी होती है। राज का संदेश सुनने, बाइबल और उस पर आधारित प्रकाशन पढ़ने, साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन करने, सभाओं की तैयारी करने और उनमें हाज़िर होने के लिए वक्‍त चाहिए। यह वक्‍त हमें गैर-ज़रूरी कामों से ‘खरीदना’ या निकालना चाहिए। (इफिसियों 5:15, 16 और फुटनोट पढ़िए।) बाइबल की बुनियादी शिक्षाओं की सही समझ पाने में कितना वक्‍त लगेगा? यह हमारे हालात पर निर्भर करता है। दरअसल यहोवा की बुद्धि, उसके काम करने के तरीकों और उसके कामों के बारे में हम जितना भी सीखें, वह कम है। (रोमि. 11:33) अँग्रेज़ी में प्रहरीदुर्ग  के पहले अंक में बताया गया था कि सच्चाई “एक छोटे-से फूल” की तरह है। उसमें यह भी लिखा था, “सच्चाई के एक  फूल से संतुष्ट मत रहिए। अगर सच्चाई का एक ही फूल काफी होता, तो और फूल नहीं होते। ढूँढ़ते रहिए, इकट्ठा करते रहिए।” हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘मेरा गुलदस्ता कितना बड़ा है?’ चाहे हम हमेशा के लिए जीएँ, फिर भी यहोवा के बारे में जानकारी लेना कभी पूरा नहीं होगा। आज सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कि हम अपना समय ज़्यादा-से-ज़्यादा सच्चाई सीखने में लगाएँ। आइए एक ऐसे व्यक्‍ति का उदाहरण देखें, जिसने ऐसा ही किया।

8 जापान की रहनेवाली एक लड़की मारीको * एक कोर्स के लिए अमरीका के न्यू यॉर्क सिटी आयी। उस वक्‍त वह जापान के एक धार्मिक पंथ से जुड़ी हुई थी। एक दिन एक पायनियर बहन ने घर-घर प्रचार करते वक्‍त बाइबल से उसे खुशखबरी सुनायी। मारीको ने बाइबल अध्ययन करना शुरू कर दिया। बाइबल की सच्चाइयाँ उसे इतनी अच्छी लग रही थीं कि उसने पायनियर बहन से हफ्ते में दो बार अध्ययन कराने के लिए कहा। हालाँकि वह कोर्स करने और पार्ट-टाइम नौकरी में बहुत व्यस्त रहती थी, फिर भी उसने फौरन सभाओं में जाना शुरू कर दिया। उसने घूमने-फिरने और मनोरंजन में समय बिताना भी कम कर दिया, ताकि सच्चाई सीखने के लिए उसके पास और वक्‍त हो। ऐसे त्याग करने की वजह से वह यहोवा के करीब आती गयी और एक साल के अंदर ही उसने बपतिस्मा ले लिया। फिर छ: महीने बाद, 2006 में उसने पायनियर सेवा शुरू कर दी और वह अब भी पायनियर है।

9, 10. (क) सच्चाई सीखने से दुनियावी चीज़ों के बारे में हमारी सोच कैसे बदल जाती है? (ख) एक लड़की ने क्या त्याग किया और वह उस बारे में कैसा महसूस करती है?

9 दुनियावी चीज़ें। सच्चाई सीखने के लिए शायद हमें मोटी तनख्वाहवाली नौकरी या इस दुनिया में अच्छा करियर छोड़ना पड़े। पतरस और अन्द्रियास की मिसाल लीजिए। वे पेशे से मछुवारे थे। लेकिन जब यीशु ने उन्हें उसके चेले बनने के लिए कहा, तो उन्होंने अपना मछुवाई का कारोबार छोड़ दिया। (मत्ती 4:18-20) इसका यह मतलब नहीं कि जब आप सच्चाई सीखेंगे, तो आपको भी अपनी नौकरी छोड़नी पड़ेगी। एक व्यक्‍ति की ज़िम्मेदारी है कि वह काम करे और अपने परिवार की देखभाल करे। (1 तीमु. 5:8) लेकिन जब आप सच्चाई सीखने लगते हैं, तो दुनियावी चीज़ों के बारे में आपकी सोच बदल जाती है। आपको एहसास होने लगता है कि ज़िंदगी में क्या बात वाकई मायने रखती है। यीशु ने कहा था, “अपने लिए पृथ्वी पर धन जमा करना बंद करो . . . इसके बजाय, अपने लिए स्वर्ग में धन जमा करो।” (मत्ती 6:19, 20) मारीया नाम की एक लड़की ने ऐसा ही किया।

10 वह छोटी उम्र में ही गोल्फ खेलने लगी थी। हाई स्कूल में वह गोल्फ की काफी अच्छी खिलाड़ी हो गयी थी। वह उस खेल में इतनी माहिर हो गयी कि उसे एक विश्‍वविद्यालय की तरफ से वज़ीफा दिया गया। मारीया का लक्ष्य था कि वह गोल्फ की पेशेवर खिलाड़ी बनेगी और खूब पैसा कमाएगी। लेकिन फिर वह बाइबल का अध्ययन करने लगी। उसने जो सीखा, वह उसे बहुत अच्छा लगा और वह सीखी हुई बातों पर चलने लगी। उसने कहा, “मैं जितना ज़्यादा अपनी सोच और जीने का तरीका बाइबल के स्तरों के मुताबिक ढालने लगी, उतना ही ज़्यादा मैं खुश रहने लगी।” मारीया को एहसास हुआ कि यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत रखना और खेल में अपना करियर बनाना, दोनों एक-साथ नहीं हो सकते। (मत्ती 6:24) इस वजह से उसने फैसला किया कि वह गोल्फ की पेशेवर खिलाड़ी बनने का करियर छोड़ देगी और इससे कुछ बेहतर करेगी। आज मारीया एक पायनियर है और कहती है, “मैं बहुत खुश हूँ और सबसे अच्छी ज़िंदगी जी रही हूँ।”

11. सच्चाई के मुताबिक चलने की वजह से लोगों के साथ हमारे रिश्‍ते में खटास क्यों आ सकती है?

11 लोगों के साथ रिश्‍ते। बाइबल की सच्चाई के मुताबिक चलने की वजह से हो सकता है कि परिवारवालों और दोस्तों के साथ हमारे रिश्‍ते में खटास आ जाए। ऐसा क्यों? इसे समझने के लिए यीशु की उस प्रार्थना पर गौर कीजिए, जो उसने अपने चेलों के लिए की थी, “सच्चाई से उन्हें पवित्र कर। तेरा वचन सच्चा है।” (यूह. 17:17) “पवित्र कर” का मतलब “अलग करना” भी हो सकता है। बाइबल के सिद्धांतों पर चलने की वजह से हम दुनिया से अलग हो जाते हैं, क्योंकि हम उन स्तरों पर चलना छोड़ देते हैं, जिन पर ज़्यादातर लोग चलते हैं। भले ही हम अपने दोस्तों और रिश्‍तेदारों के साथ अच्छा रिश्‍ता रखने की कोशिश करें, फिर भी शायद कुछ लोग हमें पहले की तरह पसंद न करें, यहाँ तक कि हम जो मानते हैं, उसका विरोध करें। इससे हम हैरान नहीं होते। यीशु ने कहा था, “वाकई, एक आदमी के दुश्‍मन उसके अपने ही घराने के लोग होंगे।” (मत्ती 10:36) लेकिन यीशु ने यह भी यकीन दिलाया था कि हम सच्चाई की खातिर चाहे कितने भी त्याग करें, हमें उससे ज़्यादा ही मिलेगा।​—मरकुस 10:28-30 पढ़िए।

12. एक यहूदी आदमी ने सच्चाई की खातिर क्या त्याग किया?

12 ऐरन नाम के एक यहूदी आदमी का हमेशा यही मानना था कि परमेश्‍वर का नाम ज़बान पर लाना गलत है। मगर उसकी तमन्‍ना थी कि वह परमेश्‍वर के बारे में सच्चाई जाने। एक दिन यहोवा के साक्षी ने उसे बताया कि अगर परमेश्‍वर के नाम के चार इब्रानी अक्षरों में स्वर जोड़े जाएँ, तो उसका उच्चारण “यहोवा” किया जा सकता है। यह जानकर ऐरन इतना खुश हुआ कि वह सीधे यहूदियों के सभा-घर में गया और उसने यह बात रब्बियों को बतायी। उसे लगा कि परमेश्‍वर के नाम के बारे में सच्चाई जानकर वे खुश होंगे, पर ऐसा नहीं हुआ। इसके बजाय उन्होंने उस पर थूका और उसे वहाँ से बेदखल कर दिया। ऐरन के परिवारवाले भी उसके खिलाफ हो गए। लेकिन इस सबके बावजूद उसने यहोवा के बारे में जानना नहीं छोड़ा। फिर वह यहोवा का साक्षी बना और अपनी बाकी ज़िंदगी उसने वफादारी से यहोवा की सेवा की। हमें भी इस बात के लिए तैयार रहना होगा कि शायद सच्चाई सीखने पर लोगों के साथ हमारा रिश्‍ता पहले जैसा न रहे।

13, 14. सच्चाई सीखने से हमारी ज़िंदगी किस तरह बदल जाती है? एक उदाहरण दीजिए।

13 गंदी सोच और गलत काम। जब हम सच्चाई सीखते हैं और बाइबल के स्तरों पर चलने लगते हैं, तब ज़रूरी है कि हम अपनी सोच और कामों में बदलाव करें। इसी सिलसिले में प्रेषित पतरस ने लिखा, “आज्ञा माननेवाले बच्चों की तरह, अपनी उन इच्छाओं के मुताबिक खुद को ढालना बंद करो जो तुम्हारे अंदर उस वक्‍त थीं जब तुम परमेश्‍वर से अनजान थे। . . . अपना पूरा चालचलन पवित्र बनाए रखो।” (1 पत. 1:14, 15) प्राचीन कुरिंथ शहर में बहुत-से लोग अनैतिक काम करते थे। वहाँ के लोगों को यहोवा की नज़रों में शुद्ध होने के लिए बड़े-बड़े बदलाव करने पड़े। (1 कुरिं. 6:9-11) आज भी बहुत-से लोगों को सच्चाई सीखने पर इसी तरह के बदलाव करने पड़ते हैं। पतरस ने यह बात कुछ इस तरह समझायी, “दुनियावी लोगों की मरज़ी पूरी करने में तुम अब तक जो वक्‍त बिता चुके हो वह काफी है। तब तुम निर्लज्ज कामों में, बेकाबू होकर वासनाएँ पूरी करने में, हद-से-ज़्यादा शराब पीने में, रंगरलियाँ मनाने में, शराब पीने की होड़ लगाने में और घिनौनी मूर्तिपूजा करने में लगे हुए थे।”​—1 पत. 4:3.

14 देविन और जैसमिन को कई सालों से शराब पीने की लत थी। देविन बही-खाता लिखता था और वह इस काम में बहुत माहिर था। लेकिन अपनी इस लत की वजह से वह किसी भी नौकरी में टिक नहीं पाता था। जैसमिन बहुत गुस्सा करने और मार-पीट करने के लिए अपने इलाके में बदनाम थी। एक दिन वह नशे में थी, तभी उसे रास्ते में दो साक्षी मिशनरी मिले। उन्होंने कहा कि वे उसे बाइबल अध्ययन करा सकते हैं। जब वे अगले हफ्ते उनके घर आए, तो जैसमिन और देविन दोनों नशे में धुत्त थे, क्योंकि उन्हें नहीं लगा कि मिशनरी उनके घर आएँगे। जब अगली बार मिशनरी उनके घर गए, तब हालात कुछ अलग थे। जैसमिन और देविन बाइबल की सच्चाई जानने के लिए बहुत उत्सुक थे। जो बातें वे सीखते गए, उन्हें वे फौरन ज़िंदगी में लागू करते गए। तीन महीने के अंदर ही उन्होंने शराब पीना छोड़ दिया और बाद में उन्होंने कानूनी तौर पर शादी कर ली। बहुत-से लोगों ने ध्यान दिया कि जैसमिन और देविन कितने बदल गए हैं। यह देखकर उनके इलाके के कई लोग बाइबल अध्ययन करने लगे।

15. सच्चाई के लिए किस बात का त्याग करना बहुत मुश्‍किल हो सकता है और क्यों?

15 रीति-रिवाज़ और त्योहार जो परमेश्‍वर को पसंद नहीं। ऐसे कई रीति-रिवाज़ और त्योहार हैं, जो परमेश्‍वर को पसंद नहीं हैं। जब लोग सच्चाई सीखते हैं, तो कुछ लोग इन्हें आसानी से छोड़ पाते हैं, मगर कुछ लोगों के लिए बहुत मुश्‍किल होता है। उन्हें डर रहता है कि उनके परिवारवाले, साथ काम करनेवाले या उनके दोस्त क्या सोचेंगे। वे जानते हैं कि कुछ रीति-रिवाज़ों को लेकर लोग बहुत भावुक होते हैं, जैसे मरे हुए लोगों से जुड़े रीति-रिवाज़। (व्यव. 14:1) इस तरह के त्योहार या रीति-रिवाज़ छोड़ने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है? हम बीते समय की उन अच्छी मिसालों से सीख सकते हैं, जिन्होंने सच्चाई की खातिर बदलाव किए, जैसे पहली सदी में इफिसुस के मसीहियों ने किया था।

16. इफिसुस के कुछ लोगों ने क्या त्याग किए?

16 प्राचीन इफिसुस शहर में जादू-टोना करना बहुत आम था। जब ऐसा करनेवाले लोग मसीही बने, तो उन्होंने क्या किया? बाइबल बताती है, “बहुत-से लोग जो जादूगरी की विद्या में लगे हुए थे, अपनी-अपनी पोथियाँ ले आए और सबके सामने उन्हें जला दिया। जब उन्होंने हिसाब लगाया तो उनकी कीमत 50,000 चाँदी के टुकड़े निकली। इस तरह बड़े शक्‍तिशाली तरीके से यहोवा का वचन फैलता गया और उसकी जीत होती गयी।” (प्रेषि. 19:19, 20) उन वफादार मसीहियों ने अपनी महँगी किताबें तक जला दीं, जिसके लिए यहोवा ने उन्हें आशीष दी।

17. (क) सच्चाई के लिए शायद हमने क्या कीमत चुकायी हो? (ख) अगले लेख में किन सवालों के जवाब दिए जाएँगे?

17 सोचिए कि सच्चाई को खरीदने के लिए आपने क्या कीमत चुकायी। हम सबने सच्चाई के फूल इकट्ठा करने में अपना वक्‍त लगाया है। कुछ लोगों ने अमीर बनने के मौके त्याग दिए। कुछ लोगों का रिश्‍ता दूसरों के साथ पहले जैसा नहीं रहा। कई लोगों ने अपनी सोच और अपने तौर-तरीके बदले और वे त्योहार और रीति-रिवाज़ छोड़ दिए, जो परमेश्‍वर को पसंद नहीं हैं। हमने चाहे कोई भी कीमत चुकाई हो, हमें यकीन है कि बाइबल में दी सच्चाई उससे कहीं ज़्यादा अनमोल है। इस सच्चाई की वजह से ही हम यहोवा के करीब आ पाए हैं। उसके साथ हमारा रिश्‍ता हमारे लिए सबसे अनमोल है। हमें सच्चाई की वजह से इतनी सारी आशीषें मिली हैं कि हम इसे कभी ‘बेचने’ की नहीं सोचेंगे। फिर भी कुछ लोगों ने ऐसा किया है। उन्होंने ऐसा क्यों किया? हम इतनी बड़ी गलती करने से कैसे बच सकते हैं? इन सवालों के जवाब अगले लेख में दिए जाएँगे।

^ पैरा. 8 इस लेख में कुछ नाम बदल दिए गए हैं।