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अध्ययन लेख 48

‘तुमने यह काम शुरू किया था, इसे पूरा भी करो’

‘तुमने यह काम शुरू किया था, इसे पूरा भी करो’

‘तुमने यह काम शुरू किया था, इसे पूरा भी करो।’—2 कुरिं. 8:11.

गीत 35 ‘ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातें पहचानो’

लेख की एक झलक *

1. यहोवा हमें क्या करने देता है? समझाइए।

यहोवा हमें यह फैसला करने देता है कि हम ज़िंदगी में कौन-सी राह चुनेंगे। लेकिन उसने हमें अपने हाल पर नहीं छोड़ा है। वह हमें अच्छे फैसले करना सिखाता है और जब हम उसकी मरज़ी के मुताबिक फैसले करते हैं, तो वह हमारे फैसलों पर आशीष भी देता है। (भज. 119:173) हमारी मदद करने के लिए यहोवा ने अपने वचन बाइबल में बुद्धि-भरी सलाह दी है। हम जितना ज़्यादा उसकी सलाह मानेंगे, उतना ज़्यादा ज़िंदगी में सही फैसले कर पाएँगे।​—इब्रा. 5:14.

2. फैसला करने के बाद भी कभी-कभी क्या करना आसान नहीं होता?

2 कभी-कभी सही फैसले करने के बाद भी उनके मुताबिक काम करना आसान नहीं होता। कुछ हालात पर गौर कीजिए: एक जवान भाई पूरी बाइबल पढ़ने का मन बना लेता है। कुछ हफ्तों तक तो वह रोज़ पढ़ता है, लेकिन फिर किसी वजह से ऐसा करना छोड़ देता है। एक बहन पायनियर सेवा शुरू करने का फैसला तो करती है, लेकिन वह इसे टालती रहती है। प्राचीनों का निकाय तय करता है कि प्राचीन रखवाली भेंट करने पर ज़्यादा ध्यान देंगे। महीनों गुज़र जाते हैं, लेकिन वे किसी भी भाई-बहन से नहीं मिल पाते। हालाँकि यहाँ बताए हालात एक-दूसरे से अलग हैं, लेकिन इनमें एक समानता है। वह यह कि लोगों ने जो फैसले किए थे, उनके मुताबिक काम नहीं किया। पहली सदी की कुरिंथ मंडली में भी कुछ इसी तरह की समस्या खड़ी हुई थी। आइए देखें कि हम उन मसीहियों से क्या सीख सकते हैं।

3. कुरिंथ की मंडली ने क्या फैसला किया, मगर क्या हुआ?

3 करीब ईसवी सन्‌ 55 की बात है। यरूशलेम और यहूदिया के भाई तकलीफें झेल रहे थे और घोर गरीबी का सामना कर रहे थे। कुछ मंडलियाँ उनकी मदद करने के लिए पैसा इकट्ठा कर रही थीं। जब कुरिंथ के मसीहियों को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने भी फैसला किया कि वे ज़रूरतमंद भाइयों के लिए दान करेंगे। इन उदार भाइयों ने प्रेषित पौलुस से सलाह-मशविरा किया। पौलुस ने उन्हें कुछ आदेश दिए और इस काम में उनकी मदद करने के लिए तीतुस को चुना। (1 कुरिं. 16:1; 2 कुरिं. 8:6) लेकिन कुछ महीनों बाद पौलुस को खबर मिली कि कुरिंथ के भाइयों ने दान करने का जो वादा किया था, उसे निभाया नहीं था। नतीजा, जब दूसरी मंडलियों से दान इकट्ठा किया जाता, तो उस वक्‍त तक कुरिंथ की मंडली अपना दान भेजने के लिए तैयार नहीं होती।​—2 कुरिं. 9:4, 5.

4. जैसा कि 2 कुरिंथियों 8:7, 10, 11 में बताया गया है, पौलुस ने कुरिंथ के मसीहियों को क्या बढ़ावा दिया?

4 कुरिंथ के भाई-बहनों ने दान करने का बहुत अच्छा फैसला किया था। पौलुस ने उनके मज़बूत विश्‍वास और दान देने के जज़्बे के लिए उन्हें शाबाशी दी। मगर उसने यह बढ़ावा भी दिया कि उन्होंने जो काम शुरू किया था, उसे पूरा करें। (2 कुरिंथियों 8:7, 10, 11 पढ़िए।) कुरिंथ के मसीहियों की मिसाल दिखाती है कि कई बार वफादार मसीही भी अपने फैसलों के मुताबिक काम करने से चूक जाते हैं।

5. हम किन सवालों के जवाब देखेंगे?

5 कुरिंथ के मसीहियों की तरह हम भी शायद अपने फैसलों के मुताबिक काम न करें। इसकी कई वजह हो सकती हैं। अपरिपूर्ण होने की वजह से शायद हम टाल-मटोल करें। या फिर अचानक कुछ ऐसे हालात उठें, जिनकी हमने उम्मीद नहीं की थी और इस वजह से हमने जो तय किया था, वह हम पूरा न कर पाएँ। (सभो. 9:11; रोमि. 7:18) तो फिर सवाल है कि हम सही फैसले कैसे कर सकते हैं? अगर ज़रूरत पड़े, तो कुछ फैसलों पर दोबारा गौर करने के लिए हमें क्या करना होगा? जो काम हमने शुरू किया है, उसे पूरा करने में कौन-सी बातें हमारी मदद कर सकती हैं?

सही फैसले कैसे करें?

6. हमें क्यों अपने फैसलों पर दोबारा सोचना पड़ सकता है?

6 ज़िंदगी के कुछ अहम फैसलों को हम कभी बदलना नहीं चाहेंगे, जैसे यहोवा की सेवा करना और अपने जीवन-साथी के वफादार रहना। (मत्ती 16:24; 19:6) लेकिन कुछ फैसले ऐसे होते हैं जिनके बारे में हमें दोबारा सोचना पड़ सकता है। वह क्यों? क्योंकि हालात बदल सकते हैं। तो फिर सही फैसले करने के लिए क्या करना ज़रूरी है?

7. आपको किस बात के लिए प्रार्थना करनी चाहिए और क्यों?

7 बुद्धि के लिए प्रार्थना कीजिए।  परमेश्‍वर की प्रेरणा से याकूब ने लिखा, ‘अगर तुममें से किसी को बुद्धि की कमी हो तो वह परमेश्‍वर से माँगता रहे, क्योंकि परमेश्‍वर सबको उदारता से देता है।’ (याकू. 1:5) देखा जाए तो हम सबमें “बुद्धि की कमी” है, हममें से ऐसा कोई नहीं जो सबकुछ जानता हो। इस वजह से यहोवा से मदद माँगिए। जब आप कोई फैसला करते हैं या फिर किसी फैसले पर दोबारा गौर करते हैं, तो बुद्धि के लिए प्रार्थना कीजिए। यहोवा सही फैसले करने में आपकी मदद ज़रूर करेगा!

8. फैसला करने से पहले आपको किस तरह खोजबीन करनी चाहिए?

8 अच्छी तरह खोजबीन कीजिए।  परमेश्‍वर के वचन से मदद लीजिए, संगठन ने जो प्रकाशन तैयार किए हैं उन्हें पढ़िए और उन लोगों से बात कीजिए, जो आपको अच्छी सलाह दे सकते हैं। (नीति. 20:18) यह सब करना बेहद ज़रूरी है, फिर चाहे आप नौकरी बदलने, नयी जगह जाने या ऐसी पढ़ाई करने की सोच रहे हों, जिससे आप यहोवा की सेवा करने के साथ-साथ अपना गुज़ारा भी चला सकें।

9. हमें अपने इरादों की जाँच क्यों करनी चाहिए?

9 अपने इरादों की जाँच कीजिए।  यहोवा के लिए यह बात मायने रखती है कि आप किस इरादे से फैसले करते हैं। (नीति. 16:2) वह चाहता है कि आप हर मामले में ईमानदार रहें, इसलिए जब आप कोई फैसला करते हैं, तो अपने इरादों को जाँचिए। अगर हमारा इरादा सही नहीं होगा, तो हम अपने फैसले पर बने नहीं रह पाएँगे। मान लीजिए, एक भाई पायनियर सेवा करने का फैसला करता है। वह अपनी सेवा शुरू तो करता है, मगर कुछ समय बाद उसे घंटों की माँग पूरी करने में दिक्कत होती है। उसे अपनी सेवा से खुशी भी नहीं मिलती है। हो सकता है, उसने सोचा हो कि मैं यह सेवा यहोवा के लिए कर रहा हूँ, लेकिन क्या उसने सच में इसी इरादे से पायनियर सेवा शुरू की थी? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसने अपने माता-पिता या मंडली में किसी और को खुश करने के लिए ऐसा किया हो?

10. अगर हम ज़िंदगी में बदलाव करना चाहते हैं, तो हम किस वजह से हार नहीं मानेंगे?

10 अब ज़रा एक बाइबल विद्यार्थी के हालात पर गौर कीजिए, जो सिगरेट पीने की अपनी लत छोड़ना चाहता है। एक-दो हफ्ते तक वह किसी तरह खुद को रोकता है, पर फिर दोबारा पीने लगता है। लेकिन वह यहोवा से बहुत प्यार करता है और उसे खुश करना चाहता है, इसलिए वह हार नहीं मानता। आखिरकार, वह अपनी लत छोड़ने में कामयाब हो जाता है।​—कुलु. 1:10; 3:23.

11. लक्ष्य हासिल करने के लिए क्या करना ज़रूरी है और क्यों?

11 लक्ष्य हासिल करने के लिए कुछ कीजिए।  लक्ष्य हासिल करने के लिए कुछ करना ज़रूरी होता है। मान लीजिए, एक व्यक्‍ति तय करता है कि वह हर दिन बाइबल पढ़ेगा। लेकिन इसके लिए वह कोई योजना नहीं बनाता है। क्या आपको लगता है कि वह अपना लक्ष्य हासिल कर पाएगा? * एक और हालात पर गौर कीजिए। मंडली के प्राचीन फैसला करते हैं कि वे रखवाली भेंट करने पर ज़्यादा ध्यान देंगे। मगर काफी वक्‍त बीतने के बाद भी वे ऐसा नहीं कर पाते। अगर वे अपने फैसले के मुताबिक काम करना चाहते हैं, तो शायद उन्हें खुद से पूछना होगा, “क्या हमने सोचा है कि हम किन भाई-बहनों से मिलेंगे और उनका हौसला बढ़ाएँगे? क्या हमने उनसे मिलने का दिन और वक्‍त तय किया है?”

12. आपको शायद क्या करना पड़े और क्यों?

12 सही उम्मीदें लगाइए।  हममें से किसी के पास इतना वक्‍त, ताकत या साधन नहीं हैं कि हम सबकुछ कर सकें। इस वजह से खुद से बहुत ज़्यादा की उम्मीद मत कीजिए। हो सकता है, आपने तय किया हो कि आप कुछ करेंगे, आपने वह काम शुरू भी किया पर फिर आपको एहसास हुआ कि आप उसे पूरा नहीं कर पाएँगे। ऐसे में शायद आपको अपने फैसले में फेरबदल करना पड़े। (सभो. 3:6) आप अपने फैसले पर दोबारा सोचते हैं और उसमें फेरबदल करते हैं। अब आपको लगता है कि आप उसके मुताबिक काम कर पाएँगे। ऐसे में कौन-सी पाँच बातें आपकी मदद कर सकती हैं? आइए देखें।

फैसलों के मुताबिक काम करने के लिए पाँच बातें

13. अपना काम पूरा करने के लिए आपको किससे ताकत मिल सकती है? समझाइए।

13 अपना काम पूरा करने के लिए यहोवा से ताकत माँगिए।  आप जो फैसला करते हैं, परमेश्‍वर “उसे पूरा करने की ताकत” दे सकता है। (फिलि. 2:13) यह ताकत पाने के लिए परमेश्‍वर से उसकी पवित्र शक्‍ति माँगिए। कभी-कभी शायद आपको लगे कि आपको अपनी प्रार्थनाओं का तुरंत जवाब नहीं मिल रहा है, मगर तब भी प्रार्थना करते रहिए। जैसे यीशु ने परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति के बारे में कहा था, “माँगते रहो तो तुम्हें दिया जाएगा।”​—लूका 11:9, 13.

14. नीतिवचन 21:5 में दिए सिद्धांत के मुताबिक आपको क्या करना चाहिए?

14 योजना बनाइए।  (नीतिवचन 21:5 पढ़िए।) कोई भी काम पूरा करने के लिए एक अच्छी योजना बनाना और उसके मुताबिक काम करना ज़रूरी है। उसी तरह, जब आप कोई फैसला लेते हैं, तो लिख लीजिए कि आप उसके मुताबिक ठीक क्या करेंगे। अगर यह काम बहुत पेचीदा हो, तो एक ही बार में करने के बजाय उसे थोड़ा-थोड़ा कीजिए। इसका फायदा यह होगा कि आप देख पाएँगे कि आप अपने लक्ष्य के कितने करीब आ गए हैं। ध्यान दीजिए कि पौलुस ने कुरिंथ के मसीहियों को क्या सलाह दी थी। उसने कहा कि वे “हर हफ्ते के पहले दिन” दान करने के लिए कुछ पैसे अलग रखें, बजाय इसके कि वे तब पैसा इकट्ठा करें, जब पौलुस उनके पास आए। (1 कुरिं. 16:2) किसी पेचीदा काम को थोड़ा-थोड़ा करने का यह भी फायदा होगा कि आप घबरा नहीं जाएँगे और यह नहीं सोचेंगे कि आपसे वह काम नहीं हो पाएगा।

15. योजना बनाने के बाद आप क्या कर सकते हैं?

15 अपनी योजनाओं को लिख लेने से उसे पूरा करना आसान हो जाता है। (1 कुरिं. 14:40) उदाहरण के लिए, प्राचीनों के निकायों को निर्देश दिया गया है कि वे एक प्राचीन को चुनें, जो निकाय के सभी फैसलों को लिखकर रखेगा। वह यह भी लिखेगा कि जो फैसले लिए गए हैं, उस काम को कौन-सा भाई करेगा और कब तक पूरा करेगा। जब प्राचीन इस निर्देश को मानते हैं, तो वे अपने फैसलों के मुताबिक काम कर पाते हैं। (1 कुरिं. 9:26) आप अपनी ज़िंदगी में भी कुछ ऐसा ही कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, अपने रोज़मर्रा कामों की एक सूची बनाइए और पहले उन कामों को लिखिए, जो ज़्यादा ज़रूरी हैं। इस तरह आप जो काम शुरू करते हैं, उसे पूरा कर पाएँगे। और-तो-और, आप कम समय में ज़्यादा काम कर पाएँगे।

16. (क) अपने फैसले के मुताबिक काम करने के लिए क्या करना ज़रूरी है? (ख) इस मामले में हम रोमियों 12:11 से क्या सीख सकते हैं?

16 मेहनत कीजिए।  अपनी योजना के मुताबिक काम करने और उसे पूरा करने में मेहनत लगती है। (रोमियों 12:11 पढ़िए।) पौलुस ने तीमुथियुस को सलाह दी कि वह एक अच्छा शिक्षक बनने के लिए ‘जी-जान से लगा रहे।’ आज हम भी इस सलाह को मान सकते हैं, फिर चाहे हम यहोवा की सेवा से जुड़ा कोई भी काम क्यों न कर रहे हों।​—1 तीमु. 4:13, 16.

17. इफिसियों 5:15, 16 को ध्यान में रखकर आप कैसे अपने फैसले के मुताबिक काम कर पाएँगे?

17 वक्‍त का सोच-समझकर इस्तेमाल कीजिए।  (इफिसियों 5:15, 16 पढ़िए।) अपने फैसले के मुताबिक काम करने के लिए एक वक्‍त तय कीजिए और हो सके तो उसे मत बदलिए। यह मत सोचिए कि सही वक्‍त आने पर मैं यह काम करूँगा। अगर आप ऐसा सोचेंगे, तो आप वह काम कभी शुरू नहीं कर पाएँगे। (सभो. 11:4) इस बात का भी ध्यान रखिए कि आप गैर-ज़रूरी बातों में अपना समय और अपनी मेहनत ज़ाया न करें, वरना आप अपने ज़रूरी काम पूरे नहीं कर पाएँगे। (फिलि. 1:10) हो सके तो ऐसा समय चुनिए जब आप बिना किसी रुकावट के अपना काम कर पाएँगे। दूसरों को बताइए कि आपको इस वक्‍त अपने काम पर ध्यान देना है। आप चाहें तो अपना फोन बंद कर सकते हैं और इंटरनेट पर ई-मेल या मैसेज वगैरह बाद में देख सकते हैं। *

18-19. मुश्‍किलों के बावजूद अपनी मंज़िल तक पहुँचने में कौन-सी बात आपकी मदद करेगी?

18 नतीजों पर ध्यान दीजिए।  हमारे फैसलों के जो नतीजे होते हैं, उनकी तुलना सफर में मंज़िल तक पहुँचने से की जा सकती है। जब आप सफर पर निकलते हैं, तो आपका ध्यान मंज़िल पर होता है। अगर इस बीच आपको कोई रास्ता बंद मिलता है, तो आप वहीं रुक नहीं जाते बल्कि दूसरा रास्ता लेते हैं। उसी तरह, अगर आपका ध्यान आपके फैसलों के नतीजों पर हो, तो चाहे कितनी भी मुश्‍किलें, कितनी भी रुकावटें आएँ, आप हार नहीं मानेंगे बल्कि अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए दूसरा रास्ता ढूँढ़ निकालेंगे।​—गला. 6:9.

19 सही फैसले करना और उनके मुताबिक काम करना हमेशा आसान नहीं होता। लेकिन अगर आप यहोवा पर निर्भर रहें, तो वह आपको बुद्धि और ताकत देगा, ताकि जो काम आपने शुरू किया है, उसे पूरा कर पाएँ।

गीत 65 आगे बढ़!

^ पैरा. 5 क्या कभी आपको अपने किसी फैसले पर अफसोस हुआ है? या क्या आपको कभी सही फैसले करना और उनके मुताबिक काम करना मुश्‍किल लगा है? अगर हाँ, तो इस लेख से आप सीखेंगे कि आप इन मुश्‍किलों को कैसे पार कर सकते हैं। आप यह भी जानेंगे कि जो काम आपने शुरू किया है, उसे आप कैसे पूरा कर सकते हैं।

^ पैरा. 11 बाइबल पढ़ने की अच्छी योजना बनाने के लिए आप jw.org® पर दिया “बाइबल पढ़ाई का शेड्‌यूल” इस्तेमाल कर सकते हैं।

^ पैरा. 17 वक्‍त का सही इस्तेमाल करने के बारे में और भी सुझावों के लिए अँग्रेज़ी में अप्रैल 2010 की सजग होइए !  के पेज 7-8 और अप्रैल 2014 की सजग होइए !  के पेज 6-9 देखें।