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अध्ययन लेख 48

अपनी नज़रें आगे की तरफ टिकाए रखिए

अपनी नज़रें आगे की तरफ टिकाए रखिए

“अपनी आँखें सामने की ओर लगाए रख, हाँ, अपनी नज़रें आगे की तरफ टिकाए रख।”​—नीति. 4:25.

गीत 77 अँधेरी दुनिया में सच की रौशनी

लेख की एक झलक *

1-2. नीतिवचन 4:25 में दी गयी सलाह हम कैसे मान सकते हैं? एक उदाहरण दीजिए।

ऐसे तीन भाई-बहनों के बारे में सोचिए जिनके पास बीते समय की या तो मीठी या कड़वी यादें हैं। एक बुज़ुर्ग बहन बीते हुए समय के अच्छे दिन याद करती है। हालाँकि आज ढलती उम्र की वजह से उसे कई मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है, फिर भी उससे जितना होता है उतना यहोवा की सेवा करती है। (1 कुरिं. 15:58) हर दिन वह नयी दुनिया के बारे में मन में कल्पना करती है कि वह अपने परिवार के लोगों और दोस्तों के साथ कैसे खुशी से ज़िंदगी बिताएगी। एक और बहन है जिसका मंडली की दूसरी बहन ने दिल दुखाया था। हालाँकि उसे कभी-कभी यह बात याद आती है, फिर भी उसने ठान लिया है कि वह इस बारे में सोचती नहीं रहेगी और उस बहन से नाराज़ नहीं रहेगी। (कुलु. 3:13) एक भाई को कभी-कभी याद आता है कि उसने पहले कितनी गलतियाँ की थीं और उसे बहुत बुरा लगता है। फिर भी वह उसी बारे में सोचता नहीं रहता बल्कि यहोवा की बात मानने की पूरी कोशिश करता है।​—भज. 51:10.

2 ये तीनों भाई-बहन बीती बातें याद करके उसी में खोए नहीं रहते। वे अपनी नज़रें आगे की तरफ टिकाए रखते हैं।​नीतिवचन 4:25 पढ़िए।

3. हमें क्यों अपनी नज़रें आगे की तरफ टिकाए रखनी चाहिए?

3 यह क्यों ज़रूरी है कि हम अपनी नज़रें आगे की तरफ यानी भविष्य पर टिकाए रखें? अगर एक आदमी रास्ते पर चल रहा है और वह बार-बार पीछे मुड़कर देखता है, तो वह सीधे नहीं चल पाएगा। उसी तरह, अगर हम पीछे छोड़ी हुई बातों के बारे में सोचते रहें, तो हम यहोवा की सेवा में आगे नहीं बढ़ सकते।​—लूका 9:62.

4. इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

4 इस लेख में हम ऐसी तीन बातों पर चर्चा करेंगे जिनसे हमें सावधान रहना है। ये हैं, (1) बीते दिन याद करके दुखी होना, (2) नाराज़ रहना और (3) बहुत ज़्यादा दोषी महसूस करना। हर मामले पर चर्चा करते वक्‍त हम बाइबल के कुछ सिद्धांतों पर गौर करेंगे। इन सिद्धांतों को मानने से हम उन बातों पर सोचते नहीं रहेंगे ‘जो पीछे रह गयी हैं और उन बातों की तरफ बढ़ते जाएँगे जो आगे रखी हैं।’​—फिलि. 3:13.

बीते दिन याद करके दुखी मत होइए

कौन-सी बातें हमें आगे की तरफ देखने से रोक सकती हैं? (पैराग्राफ 5, 9, 13 देखें) *

5. सभोपदेशक 7:10 के मुताबिक क्या सोचना गलत है?

5 सभोपदेशक 7:10 पढ़िए। गौर कीजिए कि इस आयत के मुताबिक यह कहना गलत नहीं है कि ‘बीते दिन अच्छे थे।’  मीठी यादों को संजोकर रखने की काबिलीयत यहोवा ने ही हमें दी है। लेकिन आयत के मुताबिक यह कहना गलत होगा, “इन दिनों से अच्छे  तो बीते हुए दिन थे।” तो बीते दिनों को याद करने में कोई बुराई नहीं है। मगर हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि बीते दिन आज से अच्छे थे और आज हमारे जीवन में दुख-ही-दुख है। ऐसा सोचना बुद्धिमानी की बात नहीं है।

मिस्र छोड़ने के बाद इसराएलियों ने क्या गलती की? (पैराग्राफ 6 देखें)

6. यह सोचना क्यों बुद्धिमानी नहीं है कि बीता कल आज से अच्छा था? एक उदाहरण बताइए।

6 यह सोचना क्यों बुद्धिमानी की बात नहीं होगी कि हमारा बीता कल आज से अच्छा था? क्योंकि ऐसा सोचने से हमें लगेगा कि पहले सब अच्छा-ही-अच्छा था और जो तकलीफें हमने सहीं उनके बारे में लगेगा कि वे इतनी भी बड़ी नहीं थीं। इसराएलियों ने यही गलती की थी। मिस्र छोड़ने के कुछ ही समय के अंदर वे भूल गए कि वहाँ उन्होंने कितना दुख झेला था। वे बस यह याद करते रहे कि वहाँ उन्हें कितना अच्छा खाना मिलता था। उन्होंने कहा, “वे दिन हम कैसे भुला सकते हैं जब हम मिस्र में मछलियाँ मुफ्त खाया करते थे! और खीरा, तरबूज़, लहसुन, प्याज़, क्या नहीं मिलता था वहाँ!” (गिन. 11:5) मगर क्या वाकई इसराएलियों को वहाँ “मुफ्त” में खाना मिलता था? नहीं। मिस्र में उनसे कड़ी मज़दूरी करायी जाती थी। एक तरह से कहें तो उन्होंने खाने के लिए भारी कीमत चुकायी थी। (निर्ग. 1:13, 14; 3:6-9) फिर भी वे उन तकलीफों को भूल गए और सोचने लगे कि काश! वे दिन लौट आते। यहोवा ने अभी-अभी उनके लिए जो भले काम किए थे, उन पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया। इसलिए यहोवा का क्रोध उन पर भड़क उठा।​—गिन. 11:10.

7. एक बहन को क्या सलाह दी गयी?

7 हम भी शायद कभी-कभी सोचें कि हमारा बीता कल आज से अच्छा था। ऐसी सोच पर काबू पाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? एक बहन के अनुभव पर ध्यान दीजिए जिन्होंने 1945 में ब्रुकलिन बेथेल में सेवा शुरू की थीं। कुछ साल बाद उन्होंने बेथेल में काम करनेवाले एक भाई से शादी की। फिर उन दोनों ने कई साल वहीं पर सेवा की। मगर 1976 में उनके पति बीमार पड़ गए। बहन ने बताया कि जब उनके पति की मौत करीब थी, तो उन्होंने बहन को एक अच्छी सलाह दी ताकि बहन हमेशा बीते दिन याद करके दुख मनाती न रहे। भाई ने उनसे कहा, “हमारी शादी-शुदा ज़िंदगी बहुत सुखी रही है। बहुत-से लोगों को यह सुख नहीं मिलता।” भाई ने यह भी कहा, “अतीत का बोझ लेकर मत जीना। हाँ, बेशक यादें तो तुम्हारे साथ रहेंगी ही। वक्‍त तुम्हारे घावों पर मरहम का काम करेगा। खुद को लाचार और बेबस मानकर कुढ़ना मत। इस बात के लिए खुश रहना कि तुम्हें ये तमाम खुशियाँ और आशीषें मिलीं। . . . परमेश्‍वर ने हमें यादों के रूप में एक बढ़िया तोहफा दिया है।” भाई ने कितनी बढ़िया सलाह दी!

8. एक बहन को आगे की तरफ नज़रें टिकाए रखने से क्या फायदा हुआ?

8 बहन ने वह सलाह मानी। वे अपनी मौत तक वफादारी से यहोवा की सेवा करती रहीं। जब उनकी मौत हुई, तो वे 92 साल की थीं। इससे कुछ साल पहले उन्होंने कहा, “यहोवा की सेवा में जो पूरे समय की सेवा करते हुए मैंने 63 साल बिताए हैं, उन्हें याद करके मैं कह सकती हूँ कि ज़िंदगी से मैंने सच्चा संतोष पाया है।” उन्होंने यह भी कहा, “जो चीज़ ज़िंदगी में सच्चा संतोष दिलाती है, वह है हमारा बेजोड़ भाईचारा और अपने भाई-बहनों के साथ फिरदौस में जीने की आशा। जी हाँ, वह ऐसा वक्‍त होगा जब हम अपने महान सिरजनहार, एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर यहोवा की हमेशा-हमेशा तक सेवा करते रहेंगे।” * इस बहन से हम कितना कुछ सीख सकते हैं। उन्होंने अपनी नज़रें हमेशा आगे की तरफ टिकाए रखीं।

नाराज़ मत रहिए

9. जैसे लैव्यव्यवस्था 19:18 से पता चलता है, किन लोगों की गलतियाँ भुलाना हमें मुश्‍किल लग सकता है?

9 लैव्यव्यवस्था 19:18 पढ़िए। हो सकता है, कोई मसीही भाई या बहन या कोई अच्छा दोस्त या रिश्‍तेदार हमारा दिल दुखा दे। जब ऐसा कोई व्यक्‍ति हमें ठेस पहुँचाता है, तो चोट गहरी होती है और उसे भुलाना मुश्‍किल लगता है। एक बार एक बहन पर दूसरी बहन ने इलज़ाम लगाया कि उसने उसका पैसा चुराया है। बाद में जिस बहन ने इलज़ाम लगाया था, उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने जाकर दूसरी बहन से माफी माँगी। मगर इस बहन को यह सोचकर बहुत बुरा लगा कि उसने मुझ पर शक कैसे किया। और जो हुआ उसे वह भुला नहीं पायी। क्या आपको भी कभी दूसरों की गलतियाँ भुलाना मुश्‍किल लगा है? हो सकता है, किसी ने हमारे साथ वैसा व्यवहार नहीं किया जैसा उस बहन के साथ किया गया। लेकिन जब कोई हमें ठेस पहुँचाता है, तो हममें से ज़्यादातर लोग उस बहन की तरह ही महसूस करते हैं और हमें लगता है कि जो हुआ उसे हम भुला नहीं सकते।

10. कौन-सी बातें याद रखने से हम दूसरों की गलतियाँ भुला पाएँगे?

10 अगर हमें किसी की गलती भुलाना मुश्‍किल लगता है, तो हम क्या कर सकते हैं? हम याद रख सकते हैं कि यहोवा सबकुछ देख रहा है। हमारे साथ कैसा अन्याय हुआ है, हम पर क्या बीत रही है, वह सब जानता है। (इब्रा. 4:13) जब हमें तकलीफ होती है, तो उसे भी दुख होता है। (यशा. 63:9) उसने वादा किया है कि अन्याय सहने की वजह से आज हमारे मन में जो भी दुख है, उसे वह दूर कर देगा।​—प्रका. 21:3, 4.

11. दूसरों को माफ करने से कैसे हमारा ही भला होता है?

11 हमें यह भी याद रखना है कि अगर हम दूसरों को माफ करेंगे, तो हमारा ही भला होगा। जिस बहन पर चोरी का इलज़ाम लगाया गया था, वह भी बाद में इस बात को समझ पायी। इसलिए उसने दूसरी बहन को माफ कर दिया। उसने इस बात पर ध्यान दिया कि अगर हम दूसरों को माफ करेंगे, तो यहोवा भी हमें माफ करेगा। (मत्ती 6:14) यह जानते हुए भी कि दूसरी बहन ने उसके साथ बहुत बुरा किया, वह हमेशा नाराज़ नहीं रही और उसने माफ कर दिया। आज हमारी यह बहन खुश है और यहोवा की सेवा पर पूरा ध्यान लगा पा रही है।

बहुत ज़्यादा दोषी मत महसूस कीजिए

12. पहला यूहन्‍ना 3:19, 20 में क्या बताया गया है?

12 पहला यूहन्‍ना 3:19, 20 पढ़िए। हम सब कभी-कभी अपनी गलतियों के बारे में सोचकर दोषी महसूस करते हैं। कुछ लोगों ने सच्चाई सीखने से पहले जो गलतियाँ की थीं, उनके बारे में सोचकर वे दोषी महसूस करते हैं। कुछ लोगों ने बपतिस्मा लेने के बाद जो गलतियाँ कीं, उनके बारे में सोचकर उनका मन कचोटता रहता है। (रोमि. 3:23) हालाँकि हम वही करना चाहते हैं जो सही है, फिर भी “हम सब कई बार गलती करते हैं।” (याकू. 3:2; रोमि. 7:21-23) जब हमारा मन हमें कोसता रहता है, तो हमें अच्छा नहीं लगता। मगर दोष की भावनाओं से कुछ फायदा भी होता है। हम अपनी गलती सुधारने की कोशिश करते हैं और ठान लेते हैं कि फिर से वह गलती नहीं दोहराएँगे।​—इब्रा. 12:12, 13.

13. बहुत ज़्यादा दोषी महसूस करने से क्या हो सकता है?

13 मगर कभी-कभी ऐसा होता है कि हम अपनी गलतियों को लेकर हद-से-ज़्यादा  दोषी महसूस करते हैं। भले ही हमने पश्‍चाताप किया और यहोवा ने हमें माफ कर दिया, फिर भी दोष की भावना हमारे मन से जाती नहीं। इस तरह हद-से-ज़्यादा दोषी महसूस करना हमें नुकसान पहुँचा सकता है। (भज. 31:10; 38:3, 4) वह कैसे? इसे समझने के लिए एक बहन का उदाहरण लीजिए जिसने सच्चाई सीखने से पहले पाप किए थे और दोष की भावना पर काबू पाना उसे बहुत मुश्‍किल लगा था। उसने कहा, “मुझे लगता था कि यहोवा की सेवा में मेहनत करने का कोई फायदा नहीं। मैंने ऐसे-ऐसे काम किए हैं कि आनेवाले अंत से शायद मैं बचूँगी नहीं।” हममें से कई लोग शायद इस बहन की तरह सोचें कि हम किसी काम के नहीं हैं। लेकिन ऐसा सोचने से हम यहोवा की सेवा करना छोड़ देंगे और शैतान को बड़ी खुशी होगी जबकि सच तो यह है कि यहोवा ने हमें माफ कर दिया है।​—2 कुरिंथियों 2:5-7, 11 से तुलना करें।

14. आप यह कैसे जान सकते हैं कि यहोवा ने आपको माफ कर दिया है?

14 फिर भी हमारे मन में यह सवाल उठ सकता है, ‘मुझे कैसे पता चलेगा कि यहोवा ने मुझे माफ कर दिया है?’ अगर आपके मन में यह सवाल उठ रहा है, तो इसका मतलब यही है कि यहोवा ने आपको माफ कर दिया है। बहुत साल पहले प्रहरीदुर्ग  में यह बताया गया था, “हो सकता है, परमेश्‍वर की सेवा शुरू करने से पहले आपके अंदर कोई बुरी आदत थी। यह आदत अब भी आपमें है, क्योंकि आपने कई बार इसे छोड़ा मगर आपको फिर से यह आदत लग गयी। फिर भी निराश मत होइए। यह मत सोचिए कि आप माफी के लायक नहीं हैं। शैतान चाहेगा कि आप यही सोचें। अगर आप अपनी कमज़ोरी को लेकर दुखी और परेशान हैं, तो यह अच्छी बात है, क्योंकि इसका यही मतलब है कि आप बुरे इंसान नहीं हैं। इसलिए यहोवा आपको माफ कर देगा। नम्र रहिए और यहोवा से बिनती करते रहिए कि वह आपको माफ करे, आपको एक साफ ज़मीर दे और आपकी मदद करे ताकि आप वह आदत छोड़ दें। जैसे एक बच्चा अपनी परेशानी को लेकर अपने पिता के पास बार-बार जाता है, उसी तरह आप अपनी बुरी आदत के बारे में यहोवा से बार-बार बिनती कीजिए। उस आदत पर काबू पाने में यहोवा आपकी मदद करेगा, क्योंकि वह हम पर महा-कृपा करता है।”

15-16. जब कुछ भाई-बहनों को यकीन हो गया कि यहोवा ने उन्हें माफ कर दिया है, तो उन्हें कैसा लगा?

15 हमारे कई भाई-बहनों को इस बात से दिलासा मिला है कि भले ही वे खुद को माफी के लायक नहीं समझते, मगर यहोवा ने उन्हें माफ कर दिया है। एक बहन ऐसा ही सोचती थी। उसका अनुभव कई साल पहले प्रहरीदुर्ग  में आया था। “पवित्र शास्त्र सँवारे ज़िंदगी” नाम के शृंखला लेख में इस बहन ने बताया कि उसने पहले बहुत बुरे काम किए थे। जब उसने सच्चाई जानी तो उसे लगा कि यहोवा उससे कभी प्यार नहीं कर सकता। बपतिस्मा लेने के कई साल बाद भी वह यही सोचकर दुखी रहती थी। मगर जब उसने फिरौती के बारे में गहराई से सोचा, तो उसे यकीन हो गया कि यहोवा उससे प्यार करता है। *

16 इस बहन का अनुभव पढ़कर एक भाई को बहुत दिलासा मिला। उसने लिखा, “जब मैं जवान था, तो मुझे अश्‍लील तसवीरें देखने की लत लग गयी थी और मैंने उस लत पर काबू पा लिया था। मगर कुछ समय पहले मुझे दोबारा वह लत लग गयी। प्राचीनों की मदद से मैं यह लत छोड़ पाया हूँ। प्राचीनों ने मुझे इस बात का भी यकीन दिलाया कि परमेश्‍वर मुझसे प्यार करता है और उसने मुझे माफ कर दिया है। फिर भी कभी-कभी मैं खुद को गिरा हुआ महसूस करता हूँ और सोचता हूँ कि यहोवा मुझसे प्यार नहीं कर सकता। लेकिन इस बहन का अनुभव पढ़ने से मुझे बहुत दिलासा मिला। मैंने एक अहम बात जानी। अगर मैं कहूँ कि यहोवा मुझे कभी माफ नहीं कर सकता, तो इसका यह मतलब है कि उसके बेटे की फिरौती मेरे पापों को ढकने के लिए काफी नहीं है। मैंने यह लेख अलग से निकालकर रखा है ताकि जब कभी मुझे लगे कि यहोवा मुझसे प्यार नहीं करता, तब मैं उसे निकालकर पढ़ूँ और उस पर मनन करूँ।”

17. प्रेषित पौलुस क्यों खुद को कोसता नहीं रहा?

17 प्रेषित पौलुस का भी कुछ इसी तरह का अनुभव रहा। मसीही बनने से पहले उसने बहुत-से पाप किए थे। पौलुस को यह सब याद था, मगर वह इसी बारे में सोचता नहीं रहा। (1 तीमु. 1:12-15) उसे यकीन था कि यहोवा ने उसे माफ कर दिया है क्योंकि यहोवा ने उसकी खातिर अपने बेटे का बलिदान जो दिया है। (गला. 2:20) पौलुस खुद को कोसता नहीं रहा, बल्कि दिलो-जान से यहोवा की सेवा करता रहा।

नयी दुनिया पर नज़रें टिकाए रखिए

आइए हम अपनी नज़रें आगे की तरफ टिकाए रखें (पैराग्राफ 18-19 देखें) *

18. इस लेख से हमने क्या सीखा?

18 इस लेख से हमने क्या सीखा? (1) बीते वक्‍त की मीठी यादों को संजोकर रखना अच्छी बात है, क्योंकि यह काबिलीयत हमें यहोवा ने दी है। मगर हमें उन्हीं बातों के बारे में सोचते नहीं रहना चाहिए, क्योंकि बीते समय में हमारी ज़िंदगी चाहे कितनी भी अच्छी रही हो, नयी दुनिया में हमारी ज़िंदगी उससे कहीं बेहतर होगी। (2) अगर किसी ने हमें ठेस पहुँचायी है, तो हमें उसे माफ कर देना चाहिए। तब हम बीती बातें भूलकर आगे बढ़ते रहेंगे। (3) हमें अपनी गलतियों के बारे में बहुत ज़्यादा दोषी महसूस नहीं करना चाहिए, वरना हम यहोवा की सेवा खुशी से नहीं कर पाएँगे। पौलुस की तरह हमें यकीन रखना चाहिए कि यहोवा ने हमें माफ कर दिया है।

19. हम कैसे कह सकते हैं कि नयी दुनिया में हम बीती बातें याद करके दुखी नहीं होंगे?

19 हम सबको परमेश्‍वर की नयी दुनिया में हमेशा तक जीने की आशा मिली है। उस वक्‍त हम बीती बातें याद करके दुखी नहीं होंगे। बाइबल में लिखा है कि तब “पुरानी बातें याद न आएँगी।” (यशा. 65:17) कुछ भाई-बहन बरसों से यहोवा की सेवा कर रहे हैं और अब वे बूढ़े हो गए हैं। लेकिन ज़रा सोचिए, नयी दुनिया में वे फिर से जवान हो जाएँगे। (अय्यू. 33:25) तो आइए ठान लें कि हम हमेशा बीती बातों के बारे में सोचकर दुखी नहीं होंगे। हम अपनी नज़रें आगे की तरफ टिकाए रखें और नयी दुनिया में जीने के लिए आज हमसे जो भी हो सकता है, वह करते रहें।

गीत 142 अपनी आशा कसकर थामे रहें

^ पैरा. 5 बीते दिनों को याद करना कभी-कभी अच्छा होता है, लेकिन हमें उन्हीं बातों के बारे में हमेशा सोचते नहीं रहना चाहिए। वरना हम यहोवा की सेवा अच्छी तरह नहीं कर पाएँगे और आगे चलकर नयी दुनिया में जो आशीषें मिलेंगी, उन पर ध्यान नहीं लगा पाएँगे। इस लेख में हम ऐसी तीन बातों पर चर्चा करेंगे जिनसे हमें सावधान रहना है ताकि हम हमेशा बीती बातों के बारे में सोचते न रहें। हम बाइबल के कुछ सिद्धांतों पर और हमारे कुछ भाई-बहनों के अनुभव पर भी गौर करेंगे।

^ पैरा. 57 तसवीर के बारे में: अगर हम बीते दिनों के लिए तरसते रहें, नाराज़ रहें और बहुत दोषी महसूस करें, तो ये बातें हमें पीछे खीचती रहेंगी और हम जीवन की राह पर आगे नहीं बढ़ पाएँगे।

^ पैरा. 64 तसवीर के बारे में: अगर हम बीती बातों के बारे में सोचना छोड़ दें, तो राहत महसूस करेंगे और खुश रहेंगे। हमारे अंदर नया जोश भर आएगा और हम आगे बढ़ते जाएँगे।