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अध्ययन लेख 47

कोई भी बात आपको यहोवा से अलग ना करे!

कोई भी बात आपको यहोवा से अलग ना करे!

“हे यहोवा, मैं तुझ पर भरोसा करता हूँ।”​—भज. 31:14.

गीत 122 अटल रहें!

एक झलक a

1. हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा हमारे करीब आना चाहता है?

 यहोवा हमें बढ़ावा देता है कि हम उसके करीब आएँ। (याकू. 4:8) वह हमारा परमेश्‍वर, पिता और दोस्त बनना चाहता है। जब हम उससे प्रार्थना करते हैं, तो वह हमारी सुनता है और जब हम पर मुश्‍किलें आती हैं, तो हमारी मदद करता है। यहोवा अपने संगठन के ज़रिए हमें सिखाता है और हमारी हिफाज़त करता है। पर उसके करीब आने के लिए हमें क्या करना होगा?

2. हम यहोवा के करीब कैसे आ सकते हैं?

2 यहोवा के करीब आने के लिए हमें उससे प्रार्थना करनी होगी, बाइबल पढ़नी होगी और उस पर मनन करना होगा। जब हम ऐसा करेंगे, तो जान पाएँगे कि यहोवा कितना अच्छा है और उससे और भी प्यार करने लगेंगे। फिर हमारा मन करेगा कि हम यहोवा की आज्ञा मानें और उसकी महिमा करते रहें। (प्रका. 4:11) जैसे-जैसे हम यहोवा को और जानने लगेंगे, उस पर हमारा भरोसा बढ़ता जाएगा। हम उसके संगठन पर भी और भरोसा करने लगेंगे, जिसके ज़रिए वह हमारी मदद करता है।

3. (क) शैतान कैसे हमें यहोवा से दूर करने की कोशिश करता है? (ख) पर हम उसकी चालों से खुद को कैसे बचा सकते हैं? (भजन 31:13, 14)

3 लेकिन शैतान नहीं चाहता कि हम यहोवा के करीब आएँ। उसकी यही कोशिश रहती है कि हम यहोवा से दूर चले जाएँ और उसकी सेवा करना छोड़ दें। वह यह कैसे करता है? अकसर जब हम किसी मुश्‍किल हालात से गुज़र रहे होते हैं, तो वह कुछ ऐसा करता है कि हम धीरे-धीरे यहोवा और उसके संगठन पर भरोसा करना छोड़ दें। पर हम उसकी चालों से खुद को बचा सकते हैं। अगर हम यहोवा पर मज़बूत विश्‍वास रखें और उस पर पूरा भरोसा करें, तो चाहे कुछ भी हो जाए, हम उसे और उसके संगठन को कभी नहीं छोड़ेंगे।​भजन 31:13, 14 पढ़िए।

4. इस लेख में हम क्या जानेंगे?

4 शैतान की इस दुनिया में कई बार हमें मुश्‍किल हालात का सामना करना पड़ता है। इस लेख में हम ऐसे तीन हालात के बारे में बात करेंगे जिनका फायदा उठाकर शैतान कोशिश करता है कि यहोवा और उसके संगठन पर से हमारा भरोसा उठ जाए। हम जानेंगे कि ऐसे हालात में हम क्यों यहोवा से दूर जाने लग सकते हैं। हम यह भी जानेंगे कि हम शैतान की कोशिशों को कैसे नाकाम कर सकते हैं।

जब मुश्‍किलें आएँ

5. जब हम पर मुश्‍किलें आती हैं, तो यहोवा और उसके संगठन पर से हमारा भरोसा कैसे उठ सकता है?

5 जब हम पर कोई मुश्‍किल आती है, जैसे अगर हमारी नौकरी चली जाए या परिवारवाले हमारा विरोध करें, तो यहोवा के संगठन पर से हमारा भरोसा उठने लग सकता है और हम यहोवा से दूर जा सकते हैं। वह कैसे? शायद कोई मुश्‍किल लंबे समय तक रहे। ऐसे में हम मायूस हो सकते हैं और सोचने लग सकते हैं कि हमारी मुश्‍किलें कभी खत्म नहीं होंगी। उस वक्‍त शैतान कोशिश करता है कि हम शक करने लगें कि यहोवा हमसे प्यार करता भी है या नहीं और यह सोचने लगें कि हम पर जो तकलीफें आ रही हैं, वे यहोवा और उसके संगठन की वजह से ही आ रही हैं। बीते ज़माने में शैतान ने इसराएलियों के साथ भी कुछ ऐसा ही करने की कोशिश की थी। यह उस वक्‍त की बात है जब इसराएली मिस्र में गुलाम थे। जब यहोवा ने मूसा और हारून को उनके पास भेजा, तो शुरू-शुरू में तो उन्हें यकीन था कि यहोवा उन दोनों के ज़रिए ही उन्हें छुड़ाएगा। (निर्ग. 4:29-31) लेकिन बाद में जब फिरौन इसराएलियों से और कड़ी मज़दूरी करवाने लगा, तो वे मूसा और हारून को दोष देने लगे और कहने लगे, “तुम दोनों की वजह से फिरौन और उसके सेवक हमसे नफरत करने लगे हैं, तुमने तो उनके हाथ में तलवार दे दी है कि वे हमें मार डालें।” (निर्ग. 5:19-21) कितने दुख की बात है कि जिन लोगों पर इसराएलियों को भरोसा करना चाहिए था, वे उन्हीं को दोष देने लगे। अगर आप लंबे समय से किसी मुश्‍किल का सामना कर रहे हैं, तो आप यहोवा और उसके संगठन पर अपना भरोसा कैसे बनाए रख सकते हैं?

6. मुश्‍किलें आने पर हबक्कूक ने क्या किया और हम उससे क्या सीखते हैं? (हबक्कूक 3:17-19)

6 यहोवा को अपने दिल का हाल बताइए और उस पर भरोसा रखिए।  बीते ज़माने में भविष्यवक्‍ता हबक्कूक पर कई मुश्‍किलें आयीं। एक वक्‍त पर वह बहुत निराश हो गया और यह तक सोचने लगा कि पता नहीं यहोवा को उसकी कोई परवाह है भी कि नहीं। तब उसके मन में जो कुछ भी चल रहा था, उसने सबकुछ यहोवा को बताया। उसने कहा, ‘हे यहोवा, मैं कब तक पुकारता रहूँगा और तू अनसुना करता रहेगा? तू क्यों अत्याचार होने देता है?’ (हब. 1:2, 3) यहोवा ने उसकी प्रार्थना सुनी और उसे यकीन दिलाया कि हालात अच्छे हो जाएँगे। (हब. 2:2, 3) और जब उसने इस बारे में सोचा कि यहोवा ने बीते ज़माने में अपने लोगों को कैसे बचाया था, तो उसकी खुशी लौट आयी। उसे यकीन हो गया कि यहोवा उसकी परवाह करता है और उसकी मदद से वह कोई भी मुश्‍किल सह पाएगा। (हबक्कूक 3:17-19 पढ़िए।) हम हबक्कूक से क्या सीखते हैं? जब मुश्‍किलें आएँ, तो यहोवा से प्रार्थना कीजिए, उसे अपने दिल का सारा हाल बताइए और उस पर भरोसा रखिए। यह भी सोचिए कि यहोवा ने पहले किस तरह आपकी मदद की थी। तब आपको यकीन हो जाएगा कि यहोवा ज़रूर आपकी मदद करेगा और आपको मुश्‍किलें सहने की हिम्मत देगा। फिर जब आप देखेंगे कि यहोवा कैसे आपकी मदद कर रहा है, तो उस पर आपका विश्‍वास और बढ़ जाएगा।

7. (क) बहन शर्ली के रिश्‍तेदारों ने क्या करने की कोशिश की? (ख) बहन शर्ली ने क्या किया ताकि यहोवा पर से उनका भरोसा ना उठे?

7 यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता बनाए रखिए।  जब पपुआ न्यू गिनी की रहनेवाली बहन शर्ली पर मुश्‍किलें आयीं, तो उन्होंने भी कुछ ऐसा ही किया। b उनका परिवार बहुत गरीब था और उनके लिए दो वक्‍त की रोटी जुटाना भी मुश्‍किल था। ऐसे में उनके एक रिश्‍तेदार ने उनसे कहा, “तुम तो बड़ा कहते थे कि परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति तुम पर है, पर अब कहाँ गयी वह पवित्र शक्‍ति? तुम पहले भी गरीब थे और अब भी गरीब हो, ऊपर से अपना सारा समय प्रचार करने में बरबाद कर देते हो।” ऐसा कहकर उन्होंने बहन शर्ली का विश्‍वास कमज़ोर करने की कोशिश की। बहन कहती हैं, “एक पल के लिए तो मैं भी सोचने लगी कि पता नहीं परमेश्‍वर को हमारी कोई परवाह है कि नहीं।” लेकिन वे यहोवा पर भरोसा करती रहीं। वे बताती हैं, “मैंने तुरंत यहोवा से प्रार्थना की और मेरे मन में जो कुछ चल रहा था, सब उसे बताया। मैं बाइबल और प्रकाशन पढ़ती रही, सभाओं में जाती रही और प्रचार करती रही।” एक भी दिन ऐसा नहीं गया जब बहन शर्ली का परिवार भूखे पेट सोया हो। वे लोग खुश रहते थे। इस सब से बहन को एहसास हो गया कि यहोवा उनके परिवार का खयाल रख रहा है और उन्होंने कहा, “यहोवा ने मेरी सुन ली।” (1 तीमु. 6:6-8) जब आप पर भी मुश्‍किलें आएँ, तो यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता बनाए रखिए। तब कोई भी बात आपको उससे अलग नहीं कर सकेगी।

जब अगुवाई करनेवाले भाइयों के साथ बुरा सलूक किया जाए

8. संगठन में अगुवाई करनेवाले भाइयों के साथ क्या हो सकता है?

8 जो लोग हमारे काम का विरोध करते हैं, वे कई बार टीवी, अखबारों, इंटरनेट और सोशल मीडिया के ज़रिए यहोवा के संगठन में अगुवाई करनेवाले भाइयों के बारे में झूठी बातें फैलाते हैं। (भज. 31:13) कुछ भाइयों को तो गिरफ्तार कर लिया गया है और उन पर इलज़ाम लगाया गया है कि वे अपराधी हैं। पहली सदी में पौलुस के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। उस पर झूठे इलज़ाम लगाए गए और उसे गिरफ्तार कर लिया गया। उस वक्‍त भाई-बहनों ने क्या किया?

9. जब पौलुस को कैद किया गया, तो कुछ मसीहियों ने क्या किया?

9 जब पौलुस रोम में कैद था, तो कुछ भाई-बहनों ने उससे दूरी बना ली। (2 तीमु. 1:8, 15) पौलुस को एक अपराधी की तरह रखा गया था, इसलिए शायद वे सोच रहे होंगे कि अगर वे पौलुस से मिलेंगे तो लोग क्या कहेंगे, कहीं इस वजह से उन्हें शर्मिंदा ना होना पड़े। (2 तीमु. 2:8, 9) या हो सकता है, उन्हें इस बात का डर लग रहा हो कि कहीं उन पर भी ज़ुल्म ना किए जाएँ। हम यह तो नहीं जानते कि उनके मन में क्या चल रहा था, पर सोचिए उस वक्‍त पौलुस को कैसा लगा होगा। उसने उनके लिए इतनी मुश्‍किलें झेली थीं, यहाँ तक कि अपनी जान भी खतरे में डाल दी थी। (प्रेषि. 20:18-21; 2 कुरिं. 1:8) लेकिन जब पौलुस को उनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, तब उन्होंने उसका साथ नहीं दिया। हम पहली सदी के उन मसीहियों की तरह नहीं बनना चाहते। तो जब अगुवाई करनेवाले भाइयों पर ज़ुल्म किए जाते हैं, तब हम क्या कर सकते हैं?

10. जब अगुवाई करनेवाले भाइयों पर ज़ुल्म किए जाते हैं, तो हमें क्या याद रखना चाहिए?

10 याद रखिए कि हम पर क्यों ज़ुल्म किए जाते हैं और इसके पीछे किसका हाथ है।  बाइबल में पहले से ही बताया गया था कि “जितने भी मसीह यीशु में परमेश्‍वर की भक्‍ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं उन सब पर इसी तरह ज़ुल्म ढाए जाएँगे।” (2 तीमु. 3:12) तो जब हम देखते हैं कि शैतान अगुवाई करनेवाले भाइयों को अपना निशाना बना रहा है, तब हमें हैरान नहीं होना चाहिए। शैतान ऐसा इसलिए करता है ताकि वे भाई यहोवा के वफादार ना रहें और जब हम देखें कि उनके साथ कैसा सलूक किया जा रहा है, तो हमारे मन में भी डर बैठ जाए।​—1 पत. 5:8.

जब पौलुस जेल में था, तो उनेसिफुरुस ने हिम्मत से काम लिया और उसका साथ दिया। आज भी जब यहोवा के सेवकों को गिरफ्तार किया जाता है, तो भाई-बहन उनका साथ देते हैं (पैराग्राफ 11-12)

11. हम उनेसिफुरुस से क्या सीखते हैं? (2 तीमुथियुस 1:16-18)

11 अगुवाई करनेवाले भाइयों का साथ मत छोड़िए, बल्कि उनकी मदद करते रहिए।  (2 तीमुथियुस 1:16-18 पढ़िए।) जब पौलुस कैद में था, तो एक भाई ऐसा था जो पौलुस की मदद करने से पीछे नहीं हटा। उसका नाम था उनेसिफुरुस। बाइबल में लिखा है, ‘वह पौलुस की ज़ंजीरों की वजह से शर्मिंदा नहीं हुआ।’ जब वह रोम में था, तो उसने पौलुस को ढूँढ़ने के लिए बहुत मेहनत की। और जब वह उसे मिल गया, तो पौलुस को जिन भी चीज़ों की ज़रूरत थी, उसने उसे लाकर दीं। पौलुस की मदद करने के लिए उसने अपनी जान तक की परवाह नहीं की। हम उनेसिफुरुस से क्या सीखते हैं? जब भाइयों पर ज़ुल्म किए जाते हैं, तो हमें डर के मारे पीछे नहीं हट जाना चाहिए बल्कि उनका साथ देना चाहिए। हम उनके लिए जो भी कर सकते हैं, हमें वह सब करना चाहिए। (नीति. 17:17) ऐसे वक्‍त पर उन्हें हमारे प्यार और साथ की और भी ज़रूरत होती है।

12. हम रूस के भाई-बहनों से क्या सीख सकते हैं?

12 जब रूस में हमारे कुछ भाई-बहनों को जेल में डाला गया, तो दूसरे भाई-बहन उनकी मदद करने से पीछे नहीं हटे। और जब उनमें से कुछ पर मुकदमा चलाया गया, तो कई भाई-बहन उनका साथ देने के लिए अदालत तक आए। हम उनसे क्या सीख सकते हैं? जब अगुवाई करनेवाले भाइयों को बदनाम किया जाता है, गिरफ्तार कर लिया जाता है या उन पर ज़ुल्म किए जाते हैं, तो डरिए मत बल्कि उनकी मदद कीजिए। उनके लिए प्रार्थना कीजिए, उनके परिवारवालों का हौसला बढ़ाइए और आपसे जो हो सकता है, उनके लिए कीजिए।​—प्रेषि. 12:5; 2 कुरिं. 1:10, 11.

जब लोग हमें बुरा-भला कहें

13. जब हमारा मज़ाक उड़ाया जाता है, तो यहोवा और उसके संगठन पर से हमारा भरोसा कैसे उठने लग सकता है?

13 हम प्रचार करते हैं और यहोवा के स्तरों को मानते हैं, इसलिए शायद हमारे रिश्‍तेदार, साथ काम करनेवाले या साथ पढ़नेवाले हमारा मज़ाक उड़ाएँ। (1 पत. 4:4) वे शायद कहें, “तुम तो सही हो, पर तुम्हारे धर्म में कितने कायदे-कानून हैं। आज यह सब कौन मानता है!” और जिन लोगों का बहिष्कार कर दिया जाता है, हम उनसे कोई नाता नहीं रखते। इसलिए शायद कुछ लोग कहें, “तुम तो बड़ा कहते हो कि तुम सब से प्यार करते हो। यह है तुम्हारा प्यार?” यह सब सुनकर शायद यहोवा और उसके संगठन पर से हमारा भरोसा उठने लगे और हमारे मन में सवाल आने लगें। हम शायद सोचने लगें, ‘यहोवा ने कुछ ज़्यादा ही कानून नहीं बना दिए हैं? उसके संगठन में कितनी रोक-टोक है। इतना सब कौन कर सकता है!’ अगर लोग आपका भी मज़ाक उड़ाते हैं या आप पर ताने कसते हैं, तो आप क्या कर सकते हैं ताकि आप यहोवा और उसके संगठन से दूर ना जाएँ?

अय्यूब के साथियों ने उस पर ताने कसे, मगर उसने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। उसने ठान लिया था कि वह यहोवा का वफादार रहेगा (पैराग्राफ 14)

14. जब लोग हम पर ताने कसें, तो हमें क्या करना चाहिए? (भजन 119:50-52)

14 ठान लीजिए कि आप यहोवा के स्तरों को मानते रहेंगे।  अय्यूब यहोवा के स्तर मानता था। इस वजह से लोगों ने उस पर कई ताने कसे। एक बार अय्यूब के एक साथी ने उससे यह तक कह दिया कि चाहे वह यहोवा के स्तर माने या ना माने, इससे यहोवा को कोई फर्क नहीं पड़ता। (अय्यू. 4:17, 18; 22:3) पर अय्यूब ने ऐसी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया। वह जानता था कि यहोवा ने सही गलत के जो स्तर ठहराए हैं, वे बिलकुल सही हैं और वह हर हाल में उन्हें मानना चाहता था। लोगों ने उसे बहुत कुछ कहा, पर वह यहोवा का वफादार बना रहा। (अय्यू. 27:5, 6) हम अय्यूब से क्या सीखते हैं? अगर लोग आप पर ताने कसें, तो यह मत सोचने लगिए कि पता नहीं यहोवा के स्तर सही हैं भी कि नहीं या उन्हें मानने से कोई फायदा होगा भी कि नहीं। इसके बजाय, सोचिए कि अब तक यहोवा के स्तर मानने से आपको कितने फायदे हुए हैं। ठान लीजिए कि चाहे जो हो जाए आप यहोवा के संगठन को नहीं छोड़ेंगे। तब चाहे लोग आपका कितना ही मज़ाक क्यों ना उड़ाएँ, आप यहोवा से दूर नहीं जाएँगे।​भजन 119:50-52 पढ़िए।

15. बहन ब्रिज़िट के परिवारवालों ने उन्हें बुरा-भला क्यों कहा?

15 भारत की रहनेवाली बहन ब्रिज़िट भी जब यहोवा की साक्षी बनीं, तो उनके घरवालों ने उन पर बहुत ताने कसे और उनका मज़ाक उड़ाया। सन्‌ 1997 में बहन का बपतिस्मा हुआ और उसके कुछ ही समय बाद उनके पति की नौकरी चली गयी। वे यहोवा के साक्षी नहीं थे। नौकरी चले जाने के बाद उनके पति ने फैसला किया कि वे दोनों और उनकी तीन बेटियाँ दूसरे शहर में जाकर रहेंगे। पर वहाँ जाकर बहन पर और भी तकलीफें आयीं। अब बहन को अपने ससुरालवालों के साथ रहना था और घर सँभालने के साथ-साथ नौकरी भी करनी थी ताकि परिवार का गुज़ारा चल सके। राज-घर भी उनके घर से 350 किलोमीटर (220 मील) दूर था। यही नहीं, उनके ससुरालवालों ने उनका बहुत विरोध किया, इतना कि उन लोगों को घर छोड़कर जाना पड़ा। फिर कुछ ऐसा हुआ जिसकी उन्हें बिलकुल उम्मीद नहीं थी। उनके पति गुज़र गए। फिर कुछ समय बाद उनकी एक बेटी को कैंसर हो गया और 12 साल की उम्र में उसकी भी मौत हो गयी। ऊपर से बहन के रिश्‍तेदार उन्हीं को दोष देने लगे कि अगर वे यहोवा की साक्षी नहीं बनी होतीं, तो यह सब नहीं होता। पर इस सबके बावजूद बहन यहोवा पर भरोसा करती रहीं और उसके संगठन से जुड़ी रहीं।

16. यहोवा और उसके संगठन पर भरोसा करने की वजह से बहन ब्रिज़िट को क्या आशीषें मिलीं?

16 बहन ब्रिज़िट के घर से राज-घर बहुत दूर था। इसलिए एक सर्किट निगरान ने उन्हें सुझाव दिया कि वे अपने इलाके में ही प्रचार करें और अपने घर पर सभाएँ चलाएँ। पहले तो बहन को लगा कि उनसे यह नहीं हो पाएगा, लेकिन फिर उन्होंने भाई की बात मान ली। वे अपने आस-पड़ोस में प्रचार करने लगीं और अपने ही घर में सभाएँ चलाने लगीं। उन्होंने इस बात का भी ध्यान रखा कि वे अपनी बेटियों के साथ लगातार पारिवारिक उपासना करें। कुछ ही समय बाद वे बहुत-से लोगों के साथ बाइबल अध्ययन करने लगीं और आगे चलकर उनमें से कई लोगों ने बपतिस्मा लिया। फिर 2005 में बहन ने पायनियर सेवा शुरू कर दी। बहन जिस इलाके में प्रचार करती थीं, वहाँ आज दो मंडलियाँ हैं और उनकी बेटियाँ भी यहोवा की सेवा कर रही हैं। बहन यहोवा और उसके संगठन पर भरोसा करती रहीं, इसलिए यहोवा ने उन्हें कितनी आशीषें दीं! उन्हें अपने परिवारवालों के ताने सहने पड़े, उन पर ढेर सारी मुश्‍किलें आयीं, लेकिन वे बताती हैं कि यहोवा ने उन्हें हिम्मत दी, तभी वे यह सब सह पायीं।

यहोवा और उसके संगठन का पूरा-पूरा साथ दीजिए

17. हमें क्या ठान लेना चाहिए?

17 जब हम पर मुश्‍किलें आती हैं, तो शैतान चाहता है कि हम सोचें कि यहोवा ने हमें छोड़ दिया है और अगर हम उसके संगठन से जुड़े रहेंगे, तो हमारी तकलीफें बढ़ती ही जाएँगी। जब अगुवाई करनेवाले भाइयों को बदनाम किया जाता है, उन पर ज़ुल्म किए जाते हैं या उन्हें जेल में डाल दिया जाता है, तो शैतान चाहता है कि यह सब देखकर हम डर जाएँ। वह यह भी चाहता है कि लोगों के ताने सुनकर यहोवा के संगठन पर से हमारा भरोसा उठ जाए और हम सोचने लगें कि यहोवा के स्तर मानने का कोई फायदा नहीं है। लेकिन हम अच्छी तरह जानते हैं कि ये शैतान की चालें हैं। (2 कुरिं. 2:11) इसलिए ठान लीजिए कि आप उसकी चालों में नहीं फँसेंगे और यहोवा और उसके संगठन का पूरा-पूरा साथ देंगे। हमेशा याद रखिए कि यहोवा आपको कभी नहीं छोड़ेगा। (भज. 28:7) तब कोई भी बात आपको उससे अलग नहीं कर पाएगी!​—रोमि. 8:35-39.

18. अगले लेख में हम किस बारे में चर्चा करेंगे?

18 इस लेख में हमने कुछ ऐसी मुश्‍किलों पर चर्चा की जो शैतान की इस दुनिया में हम पर आती हैं। लेकिन कई बार मंडली में भी कुछ ऐसा हो सकता है जिस वजह से यहोवा और उसके संगठन पर से हमारा भरोसा उठने लगे। अगले लेख में हम चर्चा करेंगे कि जब मंडली में ऐसा कुछ होता है, तो हम क्या कर सकते हैं।

गीत 118 “हमारा विश्‍वास बढ़ा”

a इन आखिरी दिनों में यहोवा के वफादार रहने के लिए ज़रूरी है कि हम उस पर और उसके संगठन पर पूरा भरोसा करें। लेकिन शैतान ऐसा नहीं चाहता। इस लेख में हम जानेंगे कि वह कौन-से तीन तरीके अपनाता है ताकि हम उन पर भरोसा करना छोड़ दें। हम यह भी जानेंगे कि हम शैतान की चालों से खुद को कैसे बचा सकते हैं और यहोवा और उसके संगठन पर भरोसा करते रह सकते हैं।

b इस लेख में कुछ लोगों के नाम उनके असली नाम नहीं हैं।