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अध्ययन लेख 48

जब वफादार रहना मुश्‍किल हो, तो होश-हवास बनाए रखिए

जब वफादार रहना मुश्‍किल हो, तो होश-हवास बनाए रखिए

“सब बातों में होश-हवास बनाए रख।”​—2 तीमु. 4:5.

गीत 123 परमेश्‍वर के संगठन का कानून दिल से मानें

एक झलक a

1. होश-हवास बनाए रखने का क्या मतलब है? (2 तीमुथियुस 4:5)

 कई बार जब हम पर मुश्‍किलें आती हैं, तो हमारे लिए यहोवा और उसके संगठन के वफादार रहना बहुत मुश्‍किल हो जाता है। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं? बाइबल में लिखा है कि उस वक्‍त हम अपने होश-हवास बनाए रखें, जागते रहें और विश्‍वास में मज़बूत खड़े रहें। (2 तीमुथियुस 4:5 पढ़िए।) होश-हवास बनाए रखने का मतलब है शांत रहना, किसी मामले के बारे में रुककर थोड़ा सोचना और उसे यहोवा की नज़र से देखने की कोशिश करना। जब हम ऐसा करेंगे, तो हम भावनाओं में बहकर कोई फैसला नहीं लेंगे बल्कि सोच-समझकर काम करेंगे।

2. इस लेख में हम किस बारे में चर्चा करेंगे?

2 पिछले लेख में हमने कुछ ऐसी मुश्‍किलों पर चर्चा की थी जो शैतान की दुनिया में हम पर आ सकती हैं। लेकिन कई बार मंडली या यहोवा के संगठन में भी कुछ ऐसे हालात खड़े हो सकते हैं जिस वजह से यहोवा के वफादार रहना हमें मुश्‍किल लग सकता है। इस लेख में हम ऐसे ही तीन हालात पर ध्यान देंगे। वे हैं: (1) जब हमें लगे कि किसी भाई या बहन ने हमारे साथ गलत किया है, (2) जब हमें सुधारा जाए और (3) जब संगठन में बदलाव किए जाएँ। आइए जानें कि जब ऐसा कुछ होता है, तो हम कैसे सोच-समझकर काम कर सकते हैं और यहोवा और उसके संगठन के वफादार बने रह सकते हैं।

जब हमें लगे कि किसी भाई या बहन ने हमारे साथ गलत किया है

3. अगर हमें लगे कि किसी भाई या बहन ने हमारे साथ गलत किया है, तो हम क्या सोचने लग सकते हैं?

3 क्या किसी भाई या बहन ने या फिर किसी प्राचीन ने आपसे कुछ ऐसा कहा है या कुछ ऐसा किया है जो आपको अच्छा नहीं लगा? आपको शायद लगा हो कि आपके साथ बहुत गलत हुआ है। वे शायद आपको ठेस नहीं पहुँचाना चाहते थे, पर आपको उनकी बात बुरा लग गयी। (रोमि. 3:23; याकू. 3:2) हो सकता है, इस वजह से आप रात को ठीक से सो भी ना पाएँ या फिर आप यह तक सोचने लगें, ‘क्या ये सच में यहोवा के लोग हैं? क्या सच में यहोवा इस संगठन को चला रहा है?’ पर अगर आप इन्हीं बातों के बारे में सोचते रहें, तो धीरे-धीरे आप यहोवा और उसके संगठन से दूर जा सकते हैं। और शैतान यही तो चाहता है! (2 कुरिं. 2:11) इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि हम इस तरह ना सोचें बल्कि होश-हवास बनाए रखें और सोच-समझकर काम करें। हम यह कैसे कर सकते हैं?

4. (क) जब यूसुफ के भाइयों ने उसके साथ गलत किया, तो उसने कैसे सोच-समझकर काम लिया? (ख) हम यूसुफ से क्या सीखते हैं? (उत्पत्ति 50:19-21)

4 कड़वाहट से मत भर जाइए।  ज़रा यूसुफ की मिसाल पर ध्यान दीजिए। जब वह नौजवान था, तो उसके बड़े भाई उसके साथ बहुत बुरा सलूक करते थे, उससे नफरत करते थे और उनमें से कुछ तो उसे जान से भी मार डालना चाहते थे। (उत्प. 37:4, 18-22) और एक दिन उन्होंने उसे एक गुलाम बनने के लिए बेच दिया। अगले 13 सालों तक यूसुफ पर एक-के-बाद-एक कई मुश्‍किलें आयीं। हो सकता है, उस दौरान यूसुफ के मन में आया हो, ‘क्या यहोवा सच में मुझसे प्यार करता है?’ शायद उसने यह भी सोचा हो, ‘कहीं यहोवा ने मुझे छोड़ तो नहीं दिया? अभी तो मुझे उसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।’ लेकिन यूसुफ कड़वाहट से नहीं भर गया। उसने अपने होश-हवास बनाए रखे और वह शांत रहा। हम यह क्यों कह सकते हैं? क्योंकि एक बार जब उसे अपने भाइयों से बदला लेने का मौका मिला, तो उसने ऐसा नहीं किया। वह अपने भाइयों से बहुत प्यार करता था, इसलिए उसने उन्हें माफ कर दिया और उनके साथ बहुत अच्छे-से व्यवहार किया। (उत्प. 45:4, 5) यूसुफ इसलिए सोच-समझकर काम कर पाया, क्योंकि वह सिर्फ अपनी मुश्‍किलों के बारे में नहीं सोचता रहा, बल्कि उसने इस बारे में सोचा कि यहोवा की क्या मरज़ी है। (उत्पत्ति 50:19-21 पढ़िए।) हम यूसुफ से क्या सीखते हैं? अगर कोई आपके साथ गलत करता है, तो यहोवा से नाराज़ मत हो जाइए, ना ही ऐसा सोचिए कि उसने आपको छोड़ दिया है। इसके बजाय सोचिए कि वह इस मुश्‍किल को झेलने में कैसे आपकी मदद कर रहा है और दूसरों को माफ कर दीजिए। याद रखिए, “प्यार ढेर सारे पापों को ढक देता है।”​—1 पत. 4:8.

5. जब भाई मिकेयास को लगा कि उनके साथ गलत हुआ है, तो उन्होंने कैसे सोच-समझकर काम किया?

5 दक्षिण अमरीका में रहनेवाले एक प्राचीन, मिकेयास, की मिसाल पर ध्यान दीजिए। b एक वक्‍त पर उन्हें लगा कि कुछ प्राचीनों ने उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया और उनके साथ गलत हुआ है। वे बताते हैं, “मुझे हर वक्‍त चिंता होती रहती थी, रात को ठीक से नींद भी नहीं आती थी। मैं बहुत रोता था, क्योंकि मैं इस बारे में कुछ भी नहीं कर सकता था। मैं इतना परेशान पहले कभी नहीं हुआ था।” लेकिन भाई ने अपनी भावनाओं को काबू में रखा और सोच-समझकर काम किया। वे बार-बार यहोवा से प्रार्थना करते रहे, उससे पवित्र शक्‍ति और हिम्मत माँगते रहे। उन्होंने ऐसे लेख भी पढ़े जिनमें कुछ अच्छे सुझाव दिए गए थे। भाई मिकेयास से हम क्या सीखते हैं? अगर आपको कभी लगे कि किसी भाई या बहन ने आपके साथ गलत किया है, तो शांत रहिए और उनके बारे में बुरा मत सोचिए। शायद आपको पता ना हो कि जब उन्होंने वैसा कहा या किया, तो उनके मन में क्या चल रहा था। यहोवा से बिनती कीजिए कि आप मामले को उनकी नज़र से देख सकें। हो सकता है, तब आप समझ पाएँ कि आपको मामले की पूरी जानकारी नहीं है और शायद उस भाई या बहन का इरादा आपको ठेस पहुँचाने का नहीं था। फिर आप उनकी गलती को अनदेखा कर पाएँगे और उन्हें माफ कर पाएँगे। (नीति. 19:11) याद रखिए कि यहोवा को पता है कि आपके साथ क्या हुआ है और आप पर क्या बीत रही है और वह आपको यह सब सहने की हिम्मत देगा।​—2 इति. 16:9; सभो. 5:8.

जब हमें सुधारा जाए

6. हमें क्यों याद रखना चाहिए कि यहोवा जिनसे प्यार करता है, उन्हीं को सुधारता है? (इब्रानियों 12:5, 6, 11)

6 जब हमें सुधारा जाता है, तो हमें अच्छा नहीं लगता। लेकिन इस बात पर ध्यान देने के बजाय कि हमें क्यों सुधारा गया है, अगर हम बस दुखी होते रहेंगे, तो शायद हमें लगने लगे कि हमारे साथ नाइंसाफी हुई है। या शायद हम सोचने लगें, ‘मैंने कोई इतनी बड़ी गलती भी नहीं की थी कि भाइयों ने मुझे सुधारा।’ पर अगर हम इस तरह सोचें, तो हम एक बहुत ज़रूरी बात भूल रहे होंगे। वह यह कि यहोवा हमसे प्यार करता है और इसी वजह से हमें सुधारता है। (इब्रानियों 12:5, 6, 11 पढ़िए।) अगर हम यह सोच-सोचकर दुखी होते रहें कि हमें सुधारा गया है, तो शायद हम सलाह ना मानें और धीरे-धीरे यहोवा और उसके संगठन से दूर चले जाएँ। याद रखिए, शैतान यही चाहता है। इसलिए अगर कभी आपको सुधारा जाए, तो आप कैसे होश-हवास बनाए रख सकते हैं और सोच-समझकर काम कर सकते हैं?

पतरस नम्र था और उसने सलाह मानी, इसलिए वह यहोवा के और भी काम आ पाया (पैराग्राफ 7)

7. (क) जैसा कि तसवीर में दिखाया गया है, जब पतरस ने सलाह मानी तो वह कैसे यहोवा के और भी काम आ पाया? (ख) हम पतरस से क्या सीखते हैं?

7 सलाह मानिए और सुधार कीजिए।  यीशु ने कई बार दूसरे प्रेषितों के सामने पतरस को सुधारा। (मर. 8:33; लूका 22:31-34) उस वक्‍त पतरस को ज़रूर बहुत बुरा लगा होगा, लेकिन फिर भी वह यीशु का वफादार रहा। उसने सलाह मानी और कोशिश की कि उससे दोबारा वह गलती ना हो। और इस वजह से यहोवा ने उसे बहुत-सी आशीषें दीं और कई बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ भी दीं। (यूह. 21:15-17; प्रेषि. 10:24-33; 1 पत. 1:1) हम पतरस से क्या सीखते हैं? अगर हमें सुधारा जाता है, तो उस बारे में सोच-सोचकर शर्मिंदा होने के बजाय हमें सलाह माननी चाहिए और सुधार करना चाहिए। अगर हम ऐसा करें, तो हम यहोवा और उसके संगठन के और भी काम आ पाएँगे।

8-9. (क) जब भाई बरनार्डो को सुधारा गया, तो शुरू-शुरू में उन्हें कैसा लगा? (ख) भाई ने अपनी सोच कैसे सुधारी?

8 अब आइए देखें कि मोज़ांबीक में रहनेवाले भाई बरनार्डो के साथ क्या हुआ। पहले वे एक प्राचीन थे, लेकिन फिर उनसे यह ज़िम्मेदारी ले ली गयी। जब ऐसा हुआ, तो भाई को शुरू-शुरू में कैसा लगा? वे बताते हैं, “जब मुझे सुधारा गया, तो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा और मैं भाइयों से नाराज़ रहने लगा।” भाई को इस बात की बहुत चिंता थी कि उनकी मंडली के भाई-बहन उनके बारे में क्या सोचेंगे। वे कहते हैं, “मुझे यहोवा और उसके संगठन पर भरोसा करने में और यह मानने में कि भाइयों का फैसला सही था, कई महीने लग गए।” भाई बरनार्डो कैसे अपना रवैया बदल पाए?

9 सबसे पहले भाई बरनार्डो को अपनी सोच सुधारने की ज़रूरत थी। वे बताते हैं, “जब मैं एक प्राचीन था, तो मैं अकसर इब्रानियों 12:7 पढ़कर भाई-बहनों को बताता था कि यहोवा जब हमें सुधारता है, तो इसमें हमारी ही भलाई होती है। लेकिन अब मुझे भी इस बात को मानना था।” फिर भाई ने यहोवा और उसके संगठन पर दोबारा भरोसा करने के लिए कुछ और भी किया। वे बाइबल पढ़ने में और मनन करने में और भी समय बिताने लगे। फिर भी उन्हें इस बात की चिंता थी कि भाई-बहन उनके बारे में क्या सोचते होंगे, पर इस वजह से उन्होंने भाई-बहनों के साथ प्रचार करना और सभाओं में जवाब देना नहीं छोड़ा। कुछ समय बाद भाई दोबारा एक प्राचीन बन गए। भाई बरनार्डो की तरह अगर आपको भी सुधारा गया है, तो बहुत ज़्यादा शर्मिंदा मत होइए, बल्कि सलाह को मानिए और सुधार कीजिए। c (नीति. 8:33; 22:4) इस तरह जब आप यहोवा और उसके संगठन के वफादार बने रहेंगे, तो यहोवा ज़रूर आपको बहुत-सी आशीषें देगा।

जब संगठन में बदलाव किए जाएँ

10. इसराएलियों के ज़माने में ऐसा कौन-सा बदलाव हुआ था जिस वजह से यहोवा के वफादार रहना उनके लिए शायद मुश्‍किल हो गया हो?

10 जब संगठन में कुछ बदलाव किए जाते हैं, तब भी हमारे लिए यहोवा के वफादार रहना मुश्‍किल हो सकता है। अगर हम उन्हें ना मानें, तो हम यहोवा से दूर जा सकते हैं। बीते ज़माने में भी कुछ ऐसे ही हालात खड़े हुए थे। मूसा का कानून मिलने से पहले हर परिवार का मुखिया वेदी बनाया करता था और अपने परिवार की तरफ से यहोवा को भेंट चढ़ाता था। (उत्प. 8:20, 21; 12:7; 26:25; 35:1, 6, 7; अय्यू. 1:5) लेकिन फिर यहोवा ने अपने लोगों को कानून दिया कि अब से याजक ही बलिदान चढ़ाएँगे, परिवार के मुखिया नहीं। और यहोवा ने हारून के परिवार को याजकों के तौर पर चुना। अगर किसी परिवार का मुखिया हारून के खानदान से नहीं होता और बलिदान चढ़ाने लगता, तो उसे मौत की सज़ा दी जा सकती थी। d (लैव्य. 17:3-6, 8, 9) हम पक्के तौर पर तो नहीं कह सकते, लेकिन हो सकता है कि इसी बदलाव की वजह से कोरह, दातान, अबीराम और 250 प्रधानों ने मूसा और हारून के खिलाफ आवाज़ उठायी हो। (गिन. 16:1-3) उन्होंने चाहे जिस भी वजह से ऐसा किया हो, वे यहोवा के वफादार नहीं रहे। तो अगर संगठन में कोई ऐसा बदलाव किया जाता है जिसे मानना आपको मुश्‍किल लग रहा है, तो आप क्या कर सकते हैं?

जब कहातियों को दूसरे काम सौंपे गए, तो उन्होंने खुशी से वे काम किए। कुछ को गीत गाने के लिए कहा गया, कुछ को पहरेदार ठहराया गया और कुछ को भंडार-घरों में काम करने को कहा गया (पैराग्राफ 11)

11. हम कहातियों के घराने से क्या सीखते हैं?

11 संगठन में जो बदलाव किए जाते हैं, उन्हें मानिए।  जब इसराएली वीराने में सफर कर रहे थे, तो कहातियों का घराना बहुत अहम काम करता था। हर बार जब इसराएली एक जगह से दूसरी जगह जाते, तो कहाती करार का संदूक उठाया करते थे और लोगों के आगे-आगे चलते थे। (गिन. 3:29, 31; 10:33; यहो. 3:2-4) यह उनके लिए कितने बड़े सम्मान की बात थी! लेकिन जब इसराएली वादा किए गए देश में बस गए, तो कुछ बदलाव हुआ। अब पहले की तरह करार के संदूक को बार-बार एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की ज़रूरत नहीं थी। इसलिए कहातियों को दूसरे काम दिए गए। जब सुलैमान राज कर रहा था, तो कुछ कहाती गीत गाते थे, कुछ को पहरेदार ठहराया गया था और कुछ को भंडार-घरों को सँभालने की ज़िम्मेदारी दी गयी थी। (1 इति. 6:31-33; 26:1, 24) लेकिन बाइबल में ऐसा कहीं नहीं लिखा कि कहातियों ने शिकायत की या ऐसा कहा, ‘पहले हम कितना बड़ा काम किया करते थे। हमें अब भी कोई बड़ी ज़िम्मेदारी दी जानी चाहिए।’ हम कहातियों से क्या सीखते हैं? अगर यहोवा के संगठन में कुछ बदलाव किए जाते हैं, तो उन्हें मानिए। हो सकता है, आप कोई ज़िम्मेदारी सँभाल रहे हों, पर फिर वह आपसे ले ली जाए और आपको कोई दूसरा काम दिया जाए। ऐसे में वह काम खुशी से कीजिए। याद रखिए कि यहोवा यह नहीं देखता कि आप क्या काम करते हैं। वह आपको इसलिए अनमोल समझता है क्योंकि आप उसकी बात मानते हैं!​—1 शमू. 15:22.

12. जब बहन ज़ायना को बेथेल से जाने को कहा गया, तो उन्हें कैसा लगा?

12 ध्यान दीजिए कि बहन ज़ायना के साथ क्या हुआ, जो एक मध्य-पूर्वी देश में रहती हैं। उन्होंने 23 साल तक बेथेल में सेवा की, मगर फिर संगठन ने उन्हें एक खास पायनियर के तौर पर सेवा करने के लिए कहा। बहन बेथेल में जो काम करती थीं, वह उन्हें बहुत अच्छा लगता था। इसलिए इस बदलाव को मानना उनके लिए आसान नहीं था। वे बताती हैं, “जब मुझे बेथेल से जाने को कहा गया, तो मुझे बहुत बड़ा धक्का लगा। मुझे ऐसा लगने लगा कि मैं किसी काम की नहीं हूँ और मैं बार-बार यही सोचती रहती थी कि मुझसे क्या गलती हो गयी।” ऊपर से बहन की मंडली के कुछ भाई-बहनों ने भी उनसे ऐसी बातें कहीं जिससे उन्हें और भी बुरा लगने लगा। उन्होंने बहन से कहा, “तुमने अपना काम अच्छे से नहीं किया होगा, वरना वे तुम्हें बेथेल से जाने को क्यों कहते।” कुछ समय तक बहन ज़ायना हर रात खूब रोती थीं। पर बहन ने कहा, “मैंने कभी-भी ऐसा नहीं सोचा कि यहोवा के संगठन ने जो फैसला लिया वह सही नहीं था, ना ही कभी ऐसा सोचा कि यहोवा मुझसे प्यार नहीं करता।” जब बहन ज़ायना के साथ यह सब हुआ, तो वे कैसे सोच-समझकर काम कर पायीं?

13. बहन ज़ायना को शुरू-शुरू में तो बहुत बुरा लगा, लेकिन फिर उन्होंने क्या किया?

13 बहन ज़ायना को शुरू-शुरू में तो बहुत बुरा लगा, लेकिन कुछ समय बाद वे फिर से खुशी-खुशी यहोवा की सेवा करने लगीं। उन्होंने क्या किया? उन्होंने कुछ लेख पढ़े जिनमें ऐसे लोगों के बारे में बताया गया था जिन्होंने ऐसी ही कुछ मुश्‍किलों का सामना किया था। उन लेखों में कई अच्छे सुझाव भी थे। जैसे एक लेख था, “आप हताशा से जूझ सकते हैं!” जो 1 फरवरी, 2001 की प्रहरीदुर्ग  में आया था। उस लेख में बताया गया था कि जब मरकुस से एक ज़िम्मेदारी ले ली गयी, तो उसके लिए भी वह वक्‍त बहुत मुश्‍किल रहा होगा। बहन ज़ायना कहती हैं, “मरकुस के बारे में वह लेख मेरे लिए किसी दवाई से कम नहीं था।” वे दूसरे भाई-बहनों से मिलती रहीं और उनके साथ प्रचार करती रहीं। उन्होंने यह नहीं सोचा कि अब वे बेथेल में सेवा नहीं कर रहीं, तो वे किसी लायक नहीं हैं। उन्होंने यह भी याद रखा कि जब यहोवा के संगठन में भाई कोई फैसला लेते हैं, तो पवित्र शक्‍ति उनका मार्गदर्शन करती है और जो भाई अगुवाई कर रहे हैं वे उनसे बहुत प्यार करते हैं। बहन को इस बात का भी एहसास हुआ कि यहोवा के संगठन में बदलाव होते रहते हैं। लेकिन जो बात सबसे ज़्यादा मायने रखती है, वह यह है कि यहोवा का काम चलता रहे।

14. भाई व्लादो को कौन-सा फैसला मानना मुश्‍किल लगा, पर उन्होंने क्या याद रखा?

14 स्लोवीनिया के रहनेवाले 73 साल के एक प्राचीन, व्लादो, की मिसाल पर ध्यान दीजिए। उनकी मंडली को एक दूसरी मंडली के साथ मिला दिया गया और जिस राज-घर में वे सभाओं के लिए जाते थे, वह बंद हो गया। भाई बताते हैं कि उस वक्‍त उन्हें कैसा लगा। वे कहते हैं, “हमारा राज-घर बहुत सुंदर था! मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उसे बंद क्यों कर दिया गया। हमने हाल ही में उसकी मरम्मत की थी और कई नयी चीज़ें लगायी थीं। इसलिए मुझे बहुत दुख हो रहा था। मैंने भी वहाँ लकड़ी की कई चीज़ें बनायी थीं। राज-घर बदलने की वजह से भाई-बहनों को कई बदलाव करने पड़े। हम बुज़ुर्ग भाई-बहनों के लिए यह सब करना आसान नहीं था।” लेकिन भाई व्लादो ने संगठन के इस फैसले को माना। वे बताते हैं, “जब हम संगठन से मिलनेवाली हिदायतों को मानते हैं, तो हमेशा आशीषें मिलती हैं। और आगे चलकर तो और भी बदलाव होंगे। इसलिए अगर हम आज हिदायतें मानें, तो आगे चलकर भी हम उन्हें आसानी से मान पाएँगे।” क्या आपकी मंडली को भी किसी दूसरी मंडली के साथ मिला दिया गया है? या आप संगठन में पहले जो काम करते थे, क्या उसकी जगह अब आपको कोई दूसरा काम करने को कहा गया है? अगर ऐसा है, तो यकीन रखिए कि यहोवा समझता है कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं। जब ऐसा कोई बदलाव होता है और आप उसे मानते हैं और यहोवा और उसके संगठन के वफादार रहते हैं, तो भरोसा रखिए कि यहोवा आपको ढेरों आशीषें देगा।​—भज. 18:25.

सब बातों में होश-हवास बनाए रखिए

15. जब मंडली में मुश्‍किलें खड़ी होती हैं, तो हम कैसे सोच-समझकर काम कर सकते हैं?

15 जैसे-जैसे हम अंत के करीब आ रहे हैं, हो सकता है कि मंडली में ऐसे हालात खड़े हों जिस वजह से यहोवा और उसके संगठन के वफादार रहना हमें मुश्‍किल लगे। इसलिए ज़रूरी है कि हम अपने होश-हवास बनाए रखें और सोच-समझकर काम करें। अगर आपको लगता है कि किसी भाई या बहन ने आपके साथ गलत किया है, तो उनसे नाराज़ मत रहिए और कड़वाहट से मत भर जाइए। अगर आपको सुधारा जाता है तो शायद आप शर्मिंदा महसूस करें, पर उसी के बारे में सोचते मत रहिए बल्कि सलाह को मानिए और खुद में सुधार कीजिए। और अगर संगठन में कोई बदलाव होता है और आपको उसे मानना मुश्‍किल लगता है, तब भी उसे मानिए।

16. आप यहोवा और उसके संगठन पर कैसे भरोसा करते रह सकते हैं?

16 जब मुश्‍किलें आती हैं, तब भी आप यहोवा और उसके संगठन के वफादार रह सकते हैं और उन पर पूरा भरोसा कर सकते हैं। लेकिन ऐसा करने के लिए आपको अपने होश-हवास बनाए रखने होंगे। आपको शांत रहना होगा, सोच-समझकर काम करना होगा और मामले को यहोवा की नज़र से देखने की कोशिश करनी होगी। बाइबल में यहोवा के उन सेवकों के बारे में पढ़िए जिनके हालात आपके जैसे थे और सोचिए कि आप उनसे क्या सीख सकते हैं। यहोवा से बिनती कीजिए कि वह आपकी मदद करे। और भाई-बहनों से मिलना-जुलना मत छोड़िए। फिर चाहे जो हो जाए, शैतान आपको यहोवा और उसके संगठन से अलग नहीं कर पाएगा!​—याकू. 4:7.

गीत 126 जागते रहो, शक्‍तिशाली बनते जाओ

a कई बार मंडली या संगठन में ऐसे हालात खड़े हो जाते हैं जिस वजह से यहोवा और उसके संगठन के वफादार रहना हमारे लिए बहुत मुश्‍किल हो जाता है। इस लेख में हम ऐसे ही तीन हालात पर ध्यान देंगे और जानेंगे कि ऐसे में हम यहोवा और उसके संगठन के वफादार कैसे बने रह सकते हैं।

b इस लेख में कुछ लोगों के नाम उनके असली नाम नहीं हैं।

c 15 अगस्त, 2009 की प्रहरीदुर्ग  के पेज 30 पर दिए लेख, “क्या आप पहले सेवा करते थे? क्या आप दोबारा सेवा करना चाहेंगे?” में कुछ और अच्छे सुझाव दिए गए हैं।

d मूसा के कानून के हिसाब से अगर किसी परिवार के मुखिया को किसी जानवर का गोश्‍त खाने के लिए उसे हलाल करना था, तो उसे उस जानवर को पवित्र-स्थान में ले जाना था। लेकिन अगर किसी का घर पवित्र-स्थान से बहुत दूर होता, तो उसे पवित्र-स्थान जाने की ज़रूरत नहीं थी।​—व्यव. 12:21.