अध्ययन लेख 46
यहोवा की मदद से हम मुश्किलों के बावजूद खुश रह सकते हैं!
“यहोवा इंतज़ार कर रहा है कि कब तुम पर रहम करे, वह दया करने के लिए ज़रूर कदम उठाएगा।”—यशा. 30:18.
गीत 3 हमारी ताकत, आशा और भरोसा
एक झलक a
1-2. (क) इस लेख में हम किन सवालों के जवाब जानेंगे? (ख) हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा हमारी मदद करना चाहता है?
हम सबकी ज़िंदगी में कई मुश्किलें आती हैं। लेकिन यहोवा की मदद से हम उन्हें सह सकते हैं और खुशी से उसकी सेवा करते रह सकते हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि यहोवा किस तरह हमारी मदद करता है और उससे मदद पाने के लिए हमें क्या करना होगा। लेकिन इससे पहले आइए जानें कि क्या यहोवा सच में हमारी मदद करना चाहता है।
2 प्रेषित पौलुस ने इब्रानियों के नाम जो चिट्ठी लिखी, उससे हम इस सवाल का जवाब जान सकते हैं। पौलुस ने लिखा, “यहोवा मेरा मददगार है, मैं नहीं डरूँगा। इंसान मेरा क्या कर सकता है?” (इब्रा. 13:6) एक किताब में बताया गया है कि इस आयत में जिस शब्द का अनुवाद “मददगार” किया गया है, उसका मतलब एक ऐसा इंसान है जो किसी की पुकार सुनकर दौड़कर उसकी मदद करने जाता है। क्या आपको नहीं लगता कि यहोवा भी इसी तरह हमारी मदद करने को तैयार रहता है? जब हम किसी मुश्किल में होते हैं और उसे पुकारते हैं, तो वह मानो दौड़कर हमारी मदद करने आता है। सच में, यहोवा हमारी मदद करने के लिए बेताब रहता है। और उसकी मदद से हम किसी भी मुश्किल का सामना कर सकते हैं और खुश रह सकते हैं।
3. यहोवा किन तीन तरीकों से हमारी मदद करता है ताकि मुश्किलें आने पर भी हम खुश रहें?
3 यहोवा किन तरीकों से हमारी मदद करता है ताकि हम मुश्किलें सह पाएँ और खुश रहें? हम यशायाह की किताब से इस सवाल का जवाब जान सकते हैं। वह इसलिए कि इस किताब में ऐसी कई भविष्यवाणियाँ लिखी हैं जो आज हमारे ज़माने में पूरी हो रही हैं। इसके अलावा यशायाह ने अपनी किताब में जिस तरह यहोवा के बारे में बताया है, उससे हम अच्छी तरह समझ पाते हैं कि वह कैसा परमेश्वर है। जैसे यशायाह अध्याय 30 से हमें पता चलता है कि वह कैसे अपने लोगों की मदद करता है: (1) वह हमारी प्रार्थनाएँ ध्यान से सुनता है और उनका जवाब देता है, (2) वह हमें सही राह दिखाता है और (3) वह हमें आशीषें देता है और हमेशा देता रहेगा। आइए एक-एक करके इन तीनों बातों के बारे में जानें।
यहोवा हमारी सुनता है
4. (क) यहोवा ने यहूदियों के बारे में क्या कहा और उसने उनके साथ क्या होने दिया? (ख) लेकिन जो यहूदी वफादार थे, उन्हें यहोवा ने क्या आशा दी? (यशायाह 30:18, 19)
4 यशायाह अध्याय 30 की शुरूआत में यहोवा यहूदियों को ‘ज़िद्दी बेटे’ कहकर बुलाता है और कहता है कि वे “पाप-पर-पाप करते जा रहे हैं।” फिर वह कहता है कि ‘वे बगावती लोग हैं जो मुझ यहोवा का कानून सुनना ही नहीं चाहते।’ (यशा. 30:1, 9) उन यहूदियों ने यहोवा की नहीं सुनी। इसलिए यशायाह ने भविष्यवाणी की कि यहोवा उन्हें सज़ा देगा। (यशा. 30:5, 17; यिर्म. 25:8-11) और ठीक ऐसा ही हुआ। बैबिलोन के लोग उन्हें बंदी बनाकर ले गए। पर कुछ ऐसे यहूदी भी थे जो यहोवा के वफादार थे। यशायाह ने उन लोगों से कहा कि वे आशा रख सकते हैं कि एक दिन यहोवा उन पर रहम करेगा। (यशायाह 30:18, 19 पढ़िए।) लेकिन यशायाह ने यह भी कहा था कि “यहोवा इंतज़ार कर रहा है कि कब तुम पर रहम करे।” इससे पता चलता है कि यहूदी तुरंत रिहा नहीं हो जाते, उन्हें इंतज़ार करना पड़ता। और यही हुआ। यहूदी सत्तर साल तक बैबिलोन में बंदी थे, मगर फिर उनमें से कुछ यरूशलेम लौट आए। (यशा. 10:21; यिर्म. 29:10) उनके दुख के आँसू खुशी के आँसुओं में बदल गए!
5. यशायाह 30:19 से हमें कैसे तसल्ली मिलती है?
5 यशायाह 30:19 में लिखे शब्दों से आज हमें भी बहुत तसल्ली मिलती है। वहाँ लिखा है, “जैसे ही तू परमेश्वर को पुकारेगा वह तुझ पर रहम खाएगा।” इससे पता चलता है कि जब हम किसी मुश्किल में होते हैं और यहोवा को पुकारते हैं, तो वह ध्यान से हमारी प्रार्थनाएँ सुनता है और तुरंत हमारी मदद करता है। यशायाह ने यह भी लिखा, “तेरे दुहाई देते ही वह तेरी सुनेगा।” इसका मतलब, यहोवा उन सभी की मदद करने के लिए बेताब रहता है जो उसे पुकारते हैं और वह बिना देर किए उनकी मदद करता है। इस बात को ध्यान में रखने से मुश्किलें आने पर भी हम निराश नहीं होंगे, बल्कि धीरज रख पाएँगे।
6. यशायाह 30:19 से कैसे पता चलता है कि यहोवा अपने हर एक सेवक की प्रार्थना सुनता है?
6 यशायाह 30:19 से हमें यह भी पता चलता है कि यहोवा हममें से हर एक की प्रार्थना पर ध्यान देता है। हम यह कैसे कह सकते हैं? ध्यान दीजिए कि अध्याय 30 की शुरूआत में यहोवा इसराएलियों को “तुम” कहकर पुकारता है। वह इसलिए कि वहाँ वह सभी इसराएलियों से बात कर रहा था। लेकिन आयत 19 में हर एक इसराएली से कहा गया है, “तू बिलकुल नहीं रोएगा,” “वह तुझ पर रहम खाएगा” और “वह तेरी सुनेगा।” इससे पता चलता है कि यहोवा हर किसी की परवाह करता है। वह जानता है कि हर किसी की अपनी कमज़ोरियाँ हैं, अपनी मुश्किलें हैं। इसलिए वह हममें से हर एक की प्रार्थना ध्यान से सुनता है। वह कभी-भी दूसरों से हमारी तुलना नहीं करता। वह कभी ऐसा नहीं सोचता कि हम दूसरे भाई-बहनों की तरह हिम्मतवाले क्यों नहीं बन सकते।—भज. 116:1; यशा. 57:15.
7. भविष्यवक्ता यशायाह और यीशु ने क्या कहा जिससे पता चलता है कि हमें प्रार्थना करते रहना चाहिए?
7 जब हम यहोवा को अपनी किसी परेशानी के बारे में बताते हैं, तो शायद वह तुरंत उसे दूर ना करे लेकिन हमें उसे झेलने की ताकत दे दे। और कई बार हो सकता है कि कोई परेशानी लंबे समय तक रहे, तब हमें यहोवा से बार-बार प्रार्थना करनी चाहिए कि हम उसे सह पाएँ। यहोवा भी चाहता है कि हम उससे प्रार्थना करते रहें। भविष्यवक्ता यशायाह ने लिखा, “उसे पुकारते रहो।” (यशा. 62:7) इस आयत का इस तरह भी अनुवाद किया जा सकता है: “उसे आराम मत करने दो।” इसका मतलब, हमें यहोवा से बार-बार प्रार्थना करनी चाहिए, इतनी बार कि मानो वह आराम ही ना कर पाए। एक बार जब यीशु अपने चेलों को प्रार्थना करने के बारे में बता रहा था, तो उसने भी उन्हें मिसालें देकर कुछ ऐसा ही सिखाया। उसने कहा कि हम “बिना शर्म के” यहोवा से पवित्र शक्ति माँगते रहें। (लूका 11:8-10, 13) हम यहोवा से यह बिनती भी कर सकते हैं कि वह हमें अच्छे फैसले लेने के लिए सही राह दिखाए।
यहोवा हमें सही राह दिखाता है
8. बीते ज़माने में यशायाह 30:20, 21 में लिखी भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई?
8 यशायाह 30:20, 21 पढ़िए। बैबिलोन की सेना ने डेढ़ साल से यरूशलेम शहर को घेर रखा था। वह यहूदियों के लिए एक बहुत ही मुश्किल घड़ी थी। जिस तरह हम हर रोज़ रोटी खाते हैं, पानी पीते हैं, उसी तरह उन्हें हर रोज़ दुख और मुसीबतें झेलनी पड़ रही थीं। लेकिन जैसे आयत 20 और 21 में बताया गया है, यहोवा ने यहूदियों से वादा किया कि अगर वे पश्चाताप करें और खुद को बदलें, तो वह उन्हें बचाएगा। यशायाह ने यहोवा को एक “महान उपदेशक” कहा और यहूदियों को यकीन दिलाया कि यहोवा उन्हें सिखाएगा कि उन्हें किस तरह उसकी उपासना करनी चाहिए। जब यहूदी बैबिलोन से रिहा हुए, तो यशायाह की भविष्यवाणी पूरी हुई। यहोवा ने अपने लोगों को सही राह दिखायी और वे दोबारा शुद्ध उपासना करने लगे। इसराएली देख पाए कि यहोवा एक महान उपदेशक है। हम बहुत खुश हैं कि आज यहोवा हमें भी सिखाता है, वह हमारा भी उपदेशक है।
9. आज यहोवा हमें कैसे सिखाता है और सही राह दिखाता है?
9 जिस तरह एक टीचर बच्चों को पढ़ाता है, उसी तरह यशायाह कहता है कि यहोवा हमारा “महान उपदेशक” है और वह हमें सिखाता है। वह हमें दो तरीकों से सिखाता है। ध्यान दीजिए, पहले यशायाह ने लिखा, “तू अपने महान उपदेशक को अपनी आँखों से देखेगा।” वह मानो कह रहा था कि यहोवा एक टीचर के जैसे हमारे सामने खड़े होकर हमें सिखाता है। सोचिए यह कितनी बड़ी बात है! आज वह अपने संगठन के ज़रिए हमें सिखाता है। वह सभाओं, अधिवेशनों, प्रकाशनों और JW ब्रॉडकास्टिंग कार्यक्रम के ज़रिए और कई और तरीकों से हमें साफ-साफ हिदायतें देता है। इन्हें ध्यान में रखने से हम मुश्किल वक्त में धीरज रख पाते हैं और खुश रह पाते हैं। हम इन हिदायतों के लिए यहोवा का बहुत एहसान मानते हैं!
10. आज हम किस तरह पीछे से यहोवा की आवाज़ सुनते हैं?
10 फिर यशायाह ने एक और तरीके के बारे में बताया जिससे यहोवा हमें सिखाता है। उसने लिखा, “तेरे कानों में पीछे से यह आवाज़ आएगी।” ऐसा कहकर यशायाह ने कहा कि यहोवा मानो एक ऐसे टीचर की तरह है जो बच्चों के पीछे-पीछे चल रहा है और उन्हें बता रहा है कि उन्हें किस राह पर चलना चाहिए। आज हम भी जब बाइबल पढ़ते हैं, तो मानो पीछे से यहोवा की आवाज़ सुनते हैं। वह इसलिए कि बाइबल आज से हज़ारों साल पहले लिखी गयी थी। इसलिए जब हम उसमें लिखी बातें पढ़ते हैं, तो मानो पीछे से यहोवा की आवाज़ सुनते हैं।—यशा. 51:4.
11. मुश्किलें आने पर धीरज रखने के लिए और खुश रहने के लिए हमें क्या करना होगा और क्यों?
11 आज यहोवा ने हमें बाइबल और अपने संगठन के ज़रिए सिखाने के लिए जो इंतज़ाम किए हैं, उनसे हम पूरा-पूरा फायदा कैसे पा सकते हैं? ध्यान दीजिए, यशायाह ने दो बातें लिखीं। उसने लिखा, “राह यही है।” और फिर लिखा, “इसी पर चल।” (यशा. 30:21) इसका मतलब, हमें जानना होगा कि हमें किस राह पर चलना चाहिए, लेकिन इतना काफी नहीं है। हमें उस पर चलना भी होगा। बाइबल और परमेश्वर के संगठन के ज़रिए हम जान पाते हैं कि यहोवा हमसे क्या चाहता है। हम यह भी जान पाते हैं कि हम परमेश्वर की राह पर कैसे चल सकते हैं। लेकिन इन बातों को बस जानना काफी नहीं है। हम जो बातें सीखते हैं, हमें उन्हें मानना भी होगा। जब हम ऐसा करेंगे, तो मुश्किलें आने पर भी हम धीरज रख पाएँगे और खुशी से यहोवा की सेवा करते रहेंगे। फिर यहोवा हमें ज़रूर बहुत-सी आशीषें भी देगा।
यहोवा हमें आशीषें देता है
12. यशायाह 30:23-26 के मुताबिक यहोवा अपने लोगों को क्या आशीषें देता?
12 यशायाह 30:23-26 पढ़िए। यहूदी सालों से बैबिलोन में बंदी थे, लेकिन जब वे इसराएल लौट आए, तो यह भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई? यहोवा ने उन्हें खूब आशीषें दीं। उसने अपने लोगों को बहुतायत में खाना दिया। इससे भी बढ़कर यहोवा ने कुछ इंतज़ाम किए ताकि उसके लोग दोबारा सही तरीके से उसकी उपासना कर सकें और उसके करीब बने रहें। यहोवा के लोगों को इतनी आशीषें मिलीं जितनी उन्हें पहले कभी नहीं मिली थीं। जैसे आयत 26 में बताया गया है, यहोवा ने उन्हें बहुत रौशनी दी, यानी अपने वचन की और अच्छी समझ दी। (यशा. 60:2) यहोवा की इन आशीषों से उसके सेवकों को बहुत हिम्मत मिली और वे खुशी से उसकी सेवा कर पाए। जैसे यशायाह ने कहा था, ‘उसके सेवकों का दिल खुश हुआ।’—यशा. 65:14.
13. शुद्ध उपासना दोबारा शुरू होने के बारे में की गयी भविष्यवाणी हमारे ज़माने में कैसे पूरी हो रही है?
13 क्या यह भविष्यवाणी आज भी पूरी हो रही है? बिलकुल! जिस तरह बीते ज़माने में इसराएली बैबिलोन से आज़ाद हुए थे, उसी तरह सन् 1919 से लाखों लोग महानगरी बैबिलोन यानी झूठे धर्मों की गिरफ्त से आज़ाद हो रहे हैं। और जिस तरह इसराएली बैबिलोन से छूटकर वादा किए गए देश में लौट आए, उसी तरह बहुत-से लोग झूठे धर्मों से छूटकर मानो एक लाक्षणिक फिरदौस में बस रहे हैं। (यशा. 51:3; 66:8) यह लाक्षणिक फिरदौस क्या है?
14. लाक्षणिक फिरदौस क्या है और वहाँ कौन बसे हुए हैं? (“इसका क्या मतलब है?” देखें।)
14 सन् 1919 से अभिषिक्त जन इस लाक्षणिक फिरदौस में बसे हुए हैं। b धीरे-धीरे ‘दूसरी भेड़’ के लोग यानी जिन मसीहियों की धरती पर जीने की आशा है, वे भी उनके साथ इस लाक्षणिक फिरदौस में बसने लगे। और इस लाक्षणिक फिरदौस में सभी यहोवा से ढेरों आशीषें पा रहे हैं।—यूह. 10:16; यशा. 25:6; 65:13.
15. लाक्षणिक फिरदौस कहाँ है?
15 यह लाक्षणिक फिरदौस कहाँ है? यहोवा के सेवक तो दुनिया के कोने-कोने में बसे हुए हैं। इसलिए यह कोई सचमुच की जगह नहीं है। यह एक फिरदौस जैसा माहौल है जो पूरी दुनिया में यहोवा के लोगों के बीच पाया जाता है। इसलिए चाहे हम दुनिया में कहीं भी हों, अगर हम सच्ची उपासना करते हैं, तो हम भी इस लाक्षणिक फिरदौस में रह सकते हैं।
16. हमें क्या करना होगा ताकि हमें लाक्षणिक फिरदौस हमेशा खूबसूरत लगता रहे?
16 अगर हम लाक्षणिक फिरदौस में बसे रहना चाहते हैं, तो हमें कुछ बातों का ध्यान रखना होगा। उनमें से एक बात यह है कि हम याद रखें कि यहोवा का संगठन कितना लाजवाब है। लेकिन अगर हम भाई-बहनों की कमज़ोरियों पर ध्यान देने लगें, तो हो सकता है कि हम उनकी कदर ना करें। इसलिए बहुत ज़रूरी है कि हम उनकी अच्छाइयों पर ध्यान दें। (यूह. 17:20, 21) आइए इसे और अच्छी तरह समझते हैं। सोचिए, आप एक सुंदर-से बगीचे या पार्क में जाते हैं। वहाँ बहुत सारे पेड़-पौधे हैं और उन सबको देखकर आपको बहुत अच्छा लग रहा है। पर अगर आप उन पेड़-पौधों के पास जाएँगे, तो हो सकता है कि आपको उन पर कुछ दाग-धब्बे नज़र आने लगें। उसी तरह यहोवा का संगठन भी एक सुंदर बगीचे जैसा है और हर भाई या बहन एक पेड़ की तरह है। (यशा. 44:4; 61:3) पर अगर हम दूसरे भाई-बहनों की और खुद की कमज़ोरियों पर ही ध्यान देने लगें, तो हम यह देखने से चूक जाएँगे कि यहोवा का संगठन कितना कमाल का है और भाई-बहनों के बीच कितनी एकता है। तो आइए भाई-बहनों की अच्छाइयों पर ध्यान देते रहें और याद रखें कि यह लाक्षणिक फिरदौस कितना खूबसूरत है।
17. संगठन में एकता बनाए रखने के लिए हममें से हर कोई क्या कर सकता है?
17 संगठन में एकता बनी रहे, इसके लिए हममें से हर कोई क्या कर सकता है? हम आपस में शांति बनाए रखने की कोशिश कर सकते हैं। (मत्ती 5:9; रोमि. 12:18) जब भी हम ऐसा करते हैं, तो लाक्षणिक फिरदौस और भी खूबसूरत लगने लगता है। हम याद रख सकते हैं कि यहोवा ही सभी भाई-बहनों को इस लाक्षणिक फिरदौस में लाया है ताकि वे शुद्ध उपासना कर सकें। (यूह. 6:44) वे सभी उसकी नज़र में बहुत अनमोल हैं। इसलिए जब वह देखता होगा कि हम आपस में शांति और एकता बनाए रखने के लिए कितनी मेहनत कर रहे हैं, तो उसे बहुत खुशी होती होगी।—यशा. 26:3; हाग्गै 2:7.
18. हमें किन बातों के बारे में गहराई से सोचना चाहिए और क्यों?
18 यहोवा ने अपने लोगों को बहुत-सी आशीषें दी हैं। जब हम इन पर ध्यान देते हैं, तो हमें बहुत फायदा होता है। हम बाइबल और हमारे प्रकाशनों में जो भी पढ़ते हैं, उस बारे में हमें गहराई से सोचना चाहिए। इस तरह अध्ययन और मनन करने से हम ऐसे गुण बढ़ा पाएँगे जो एक मसीही में होने चाहिए। फिर हम ‘एक-दूसरे से भाइयों जैसा प्यार करेंगे’ और सब से ‘गहरा लगाव रखेंगे।’ (रोमि. 12:10) जब हम उन आशीषों के बारे में सोचेंगे जो आज यहोवा हमें दे रहा है, तो हम उसके और करीब आएँगे और उसके साथ हमारा रिश्ता और भी मज़बूत हो जाएगा। यहोवा ने हमें एक आशा भी दी है कि आगे चलकर वह हमें हमेशा की ज़िंदगी देगा। जब हम इस बारे में सोचेंगे कि उस वक्त हमें क्या-क्या आशीषें मिलेंगी, तो हमारी आशा और पक्की हो जाएगी। फिर हम और भी खुशी से यहोवा की सेवा कर पाएँगे!
हम धीरज रखेंगे और यहोवा की सेवा करते रहेंगे
19. (क) यशायाह 30:18 के मुताबिक हम किस बात का यकीन रख सकते हैं? (ख) धीरज धरने के लिए और खुशी से यहोवा की सेवा करने के लिए हमें क्या करना होगा?
19 बहुत जल्द यहोवा इस दुष्ट दुनिया को मिटाने के लिए “कदम उठाएगा।” (यशा. 30:18) यहोवा “न्याय का परमेश्वर है,” इसलिए हम यकीन रख सकते हैं कि वह सही समय पर ऐसा करेगा, वह एक दिन की भी देरी नहीं करेगा। (यशा. 25:9) जब तक वह दिन नहीं आता, यहोवा सब्र रख रहा है। तो आइए हम भी सब्र रखें और उस दिन के आने तक यहोवा से प्रार्थना करते रहें, बाइबल का अध्ययन करते रहें और उसमें लिखी बातों को मानें और यहोवा ने हमें जो ढेरों आशीषें दी हैं, उन पर मनन करते रहें। फिर यहोवा हमारी मदद करेगा और मुश्किलें आने पर भी हम धीरज रख पाएँगे और खुशी से यहोवा की सेवा कर पाएँगे।
गीत 142 अपनी आशा कसकर थामे रहें
a इस लेख में हम ऐसी तीन बातों पर ध्यान देंगे जिनसे यहोवा हमारी मदद करता है ताकि हम मुश्किलें सह पाएँ और खुशी से उसकी सेवा करते रहें। हम यशायाह अध्याय 30 पर चर्चा करेंगे और जानेंगे कि क्यों हमें यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए, बाइबल का अध्ययन करना चाहिए और उन आशीषों पर मनन करना चाहिए जो यहोवा ने हमें आज दी हैं और आगे चलकर देगा।
b इसका क्या मतलब है? “लाक्षणिक फिरदौस” एक फिरदौस जैसा माहौल है जहाँ यहोवा के सेवक महफूज़ बसे हुए हैं और साथ मिलकर यहोवा की उपासना करते हैं। इस लाक्षणिक फिरदौस में “खाने” की भी कोई कमी नहीं है। आज हमारे पास बहुत सारे प्रकाशन हैं जिनमें बाइबल की सच्चाइयाँ बतायी गयी हैं और झूठे धर्मों की कोई भी बात नहीं है। हमारे पास ऐसा काम भी है जिसे करने से हमें खुशी मिलती है। हम परमेश्वर के राज की खुशखबरी का प्रचार करते हैं। इस फिरदौस में जो भी रहते हैं, उनका यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्ता है और उनके बीच शांति है। सभी एक-दूसरे की मदद करते हैं, ताकि मुश्किलें आने पर हर कोई धीरज रख पाए और खुश रहे। पर कौन इस लाक्षणिक फिरदौस में बस सकता है? वही जो सही तरीके से यहोवा की उपासना करता है और उसकी तरह बनने की कोशिश करता है।