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अध्ययन लेख 44

गीत 33 अपना बोझ यहोवा पर डाल दे!

जब नाइंसाफी हो, तो क्या करें?

जब नाइंसाफी हो, तो क्या करें?

“बुराई से मत हारो बल्कि भलाई से बुराई को जीतते रहो।”रोमि. 12:21.

क्या सीखेंगे?

जब आपके साथ कोई नाइंसाफी होती है, तो आप ऐसा क्या कर सकते हैं जिससे मामला और बिगड़ ना जाए?

1-2. हमारे साथ नाइंसाफी क्यों होती है? समझाइए।

 एक मौके पर यीशु ने एक विधवा की मिसाल बतायी जो बार-बार जाकर एक न्यायी से इंसाफ माँग रही थी। यह मिसाल सुनकर चेले समझ गए होंगे कि उस बेचारी पर क्या गुज़र रही है, क्योंकि उस ज़माने में अकसर लोगों के साथ नाइंसाफी होती थी। (लूका 18:1-5) आज हम भी उस विधवा का दर्द अच्छी तरह समझ सकते हैं, क्योंकि हम सबने कभी-न-कभी नाइंसाफी सही है।

2 आज जहाँ देखो लोग भेदभाव करते हैं, खुद को बड़ा समझते हैं और दूसरों के साथ ज़्यादती करते हैं। इसलिए जब लोग हमारा विरोध करते हैं, हम पर ज़ुल्म करते हैं, तो हमें हैरानी नहीं होती। (सभो. 5:8) लेकिन जब भाई-बहन हमारे साथ कुछ बुरा करते हैं, तो हमें बहुत दुख पहुँचता है। क्यों? क्योंकि हम उनसे ऐसा करने की उम्मीद नहीं करते। पर सच तो यह है कि वे भी अपरिपूर्ण हैं और वे जानबूझकर हमें चोट नहीं पहुँचाना चाहते, इसलिए हमें उनकी सह लेनी चाहिए। यीशु के साथ भी नाइंसाफी हुई थी। लेकिन उसने अपने विरोधियों के साथ सब्र रखा और सबकुछ सह लिया। जब विरोधी हमें सताते हैं, तो यीशु की तरह हम भी उनके साथ सब्र रखते हैं। ज़रा सोचिए, जब हम विरोधियों के साथ सब्र रखते हैं, तो क्या हमें अपने भाई-बहनों के साथ और भी सब्र नहीं रखना चाहिए? अब सवाल है कि जब दुनिया के लोग या हमारे भाई-बहन हमारे साथ नाइंसाफी करते हैं, तो यहोवा को कैसा लगता है? क्या उसे कोई फर्क पड़ता है?

3. जब हमारे साथ नाइंसाफी होती है, तो यहोवा को कैसा लगता है और क्यों?

3 यहोवा चाहता है कि उसके हर सेवक के साथ अच्छा व्यवहार किया जाए। बाइबल में लिखा है, “यहोवा न्याय से प्यार करता है।” (भज. 37:28) इसलिए जब दूसरे हमारे साथ अन्याय करते हैं, तो यह देखकर यहोवा को बहुत बुरा लगता है। यीशु ने यकीन दिलाया था कि वक्‍त आने पर यहोवा “जल्द-से-जल्द . . . इंसाफ दिलाएगा।” (लूका 18:7, 8) अब वह दिन दूर नहीं जब यहोवा उन सारे नुकसानों की भरपाई करेगा जो हमें हुए हैं और हर तरह के अन्याय को मिटा देगा।—भज. 72:1, 2.

4. नाइंसाफी सहने में यहोवा कैसे हमारी मदद करता है?

4 हमें उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार है जब यहोवा हर तरह के अन्याय को खत्म कर देगा। लेकिन वह आज भी हमारी मदद करता है ताकि हम इसे सह सकें। (2 पत. 3:13) वह हमें सिखाता है कि नाइंसाफी होने पर हम ऐसा कोई कदम ना उठाएँ जिससे हमें नुकसान हो। उसने अपने बेटे यीशु के ज़रिए हमें बताया है कि नाइंसाफी होने पर हम क्या कर सकते हैं। यही नहीं, उसने बाइबल में हमें बढ़िया सलाह दी है जिसे मानने से हम नाइंसाफी का सामना कर सकते हैं।

कोई गलत कदम मत उठाइए

5. जब हमारे साथ नाइंसाफी होती है, तो हमें किस बात का ध्यान रखना चाहिए?

5 जब हमारे साथ नाइंसाफी होती है, तो हमें बुरा लगता है और दुख होता है। (सभो. 7:7) परमेश्‍वर के वफादार सेवक अय्यूब और हबक्कूक को भी ऐसा ही लगा था। (अय्यू. 6:2, 3; हब. 1:1-3) अन्याय होने पर दुखी होना या गुस्सा आना जायज़ है, लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम भावनाओं में बहकर कुछ गलत ना कर बैठें।

6. अबशालोम से हम क्या सबक सीख सकते हैं? (तसवीर भी देखें।)

6 जब कोई हमारे साथ या हमारे किसी अपने के साथ नाइंसाफी करता है, तो शायद हम उससे बदला लेने की सोचें। ऐसा करने से मामला और बिगड़ सकता है। ज़रा दाविद के बेटे अबशालोम के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। जब उसके सौतेले भाई अम्नोन ने उसकी बहन तामार का बलात्कार किया, तो उसे बहुत गुस्सा आया। देखा जाए तो उसका गुस्सा जायज़ था। मूसा के कानून के हिसाब से भी अम्नोन को मौत की सज़ा मिलनी थी। (लैव्य. 20:17) लेकिन अबशालोम भावनाओं में बह गया। उसने मामले को अपने हाथ में ले लिया और अपने भाई को मार डाला।—2 शमू. 13:20-23, 28, 29.

जब अबशालोम की बहन तामार का बलात्कार हुआ, तो उसने अपने गुस्से पर काबू नहीं रखा (पैराग्राफ 6)


7. भजन के लिखनेवाले ने जब नाइंसाफी होते देखी, तो उसे कैसा लगा?

7 जब नाइंसाफी करनेवालों को कोई सज़ा नहीं मिलती, तो शायद हमारे मन में आए, ‘क्या सही काम करने का कोई फायदा है?’ ज़रा भजन 73 के लिखनेवाले के बारे में सोचिए। जब उसने देखा कि दुष्ट, नेक लोगों को दबाकर फल-फूल रहे हैं, तो उसने कहा, “इन दुष्टों को ही सबकुछ आराम से मिल जाता है।” (भज. 73:12) वह इस कदर परेशान हो गया कि उसकी सोच बिगड़ गयी। उसे लगने लगा कि यहोवा की सेवा करने का कोई फायदा नहीं। उसने कहा, “जब मैंने इन हालात को समझने की कोशिश की, तो मैं परेशान हो उठा।” (भज. 73:14, 16) उसने यह भी बताया, “मेरे कदम बहकने ही वाले थे, मेरे पैर फिसलने ही वाले थे।” (भज. 73:2) भजन 73 के लिखनेवाले की तरह भाई ऑल्बर्टो a के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।

8. जब एक भाई के साथ नाइंसाफी हुई, तो इसका उन पर क्या असर हुआ?

8 भाई ऑल्बर्टो पर झूठा इलज़ाम लगाया गया कि उन्होंने मंडली के पैसे चुराए हैं। नतीजा? उनसे ज़िम्मेदारियाँ ले ली गयीं और जो लोग इस मामले के बारे में जानते थे, उनकी नज़रों में भी वे गिर गए। उस समय को याद करके वे कहते हैं, “मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था। मैं कड़वाहट से भर गया था और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था।” भाई ऑल्बर्टो यह सब सोच-सोचकर निराश हो गए और यहोवा के साथ उनका रिश्‍ता कमज़ोर पड़ने लगा। वे पाँच साल तक ना तो सभाओं में गए और ना ही उन्होंने प्रचार किया। यह अनुभव दिखाता है कि अगर हम नाइंसाफी की वजह से अंदर-ही-अंदर कुढ़ने लगें, तो इसके क्या अंजाम हो सकते हैं।

यीशु की तरह बनिए

9. यीशु को क्या-क्या नाइंसाफी सहनी पड़ी? (तसवीर भी देखें।)

9 नाइंसाफी सहने के मामले में यीशु हमारे लिए एक बढ़िया मिसाल है। उसके अपने घरवालों ने और बाहरवालों ने उसके साथ बहुत बुरा सुलूक किया। उसके रिश्‍तेदारों ने कहा कि उसका दिमाग फिर गया है। धर्म गुरुओं ने उस पर इलज़ाम लगाया कि वह दुष्ट स्वर्गदूतों की मदद से चमत्कार करता है। रोमी सैनिकों ने उसका मज़ाक उड़ाया, उसे मारा-पीटा और आखिर में उसकी जान ले ली। (मर. 3:21, 22; 14:55; 15:16-20, 35-37) लेकिन यीशु ने चुपचाप यह सब सह लिया और बदला नहीं लिया। हम उससे क्या सीख सकते हैं?

नाइंसाफी सहने में यीशु सबसे बढ़िया मिसाल है (पैराग्राफ 9-10)


10. यीशु ने नाइंसाफी कैसे सही? (1 पतरस 2:21-23)

10 पहला पतरस 2:21-23 पढ़िए। b यीशु हमारा आदर्श है और हम उससे बहुत कुछ सीख सकते हैं। ज़रा ध्यान दीजिए कि नाइंसाफी होने पर उसने क्या किया। वह जानता था कि कब चुप रहना है और कब बोलना है। (मत्ती 26:62-64) जब लोगों ने उस पर झूठे इलज़ाम लगाए, तो उसने हर बार सफाई नहीं दी। (मत्ती 11:19) लेकिन जब भी उसने विरोधियों को जवाब दिया, तो उसने आदर से बात की और कभी उन्हें डराया-धमकाया नहीं। यीशु ने संयम रखा और “खुद को उस परमेश्‍वर के हाथ में सौंप दिया जो सच्चा न्याय करता है।” वह जानता था कि यहोवा सबकुछ देख रहा है और उसे भरोसा था कि वक्‍त आने पर यहोवा इंसाफ करेगा और सबकुछ ठीक कर देगा।

11. हम कैसे अपनी ज़बान पर काबू रख सकते हैं? (तसवीरें भी देखें।)

11 जब हमारे साथ कुछ बुरा होता है, तो हम यीशु की तरह कैसे बन सकते हैं? हम अपनी ज़बान पर काबू रख सकते हैं। कुछ बातें इतनी बड़ी नहीं होतीं, इसलिए हम उन्हें अनदेखा कर सकते हैं। या हो सके तो हम चुप रह सकते हैं और कुछ ऐसा कहने से खुद को रोक सकते हैं जिससे मामला और बिगड़ सकता है। (सभो. 3:7; याकू. 1:19, 20) लेकिन कभी-कभी हमें बोलना भी पड़ सकता है। जैसे, जब किसी के साथ कुछ बुरा होता है, तो शायद हमें उसकी तरफ से बोलना पड़े या शायद हमें अपने विश्‍वास की पैरवी करनी पड़े। (प्रेषि. 6:1, 2) मगर ऐसा करते वक्‍त हमें पूरी कोशिश करनी चाहिए कि हम शांति से और आदर से बात करें।—1 पत. 3:15. c

अन्याय होने पर यीशु की तरह हम भी सोच-समझकर तय करते हैं कि हम कब बोलेंगे और क्या बोलेंगे (पैराग्राफ 11-12)


12. हम कैसे खुद को ‘उस परमेश्‍वर के हाथ में सौंप सकते हैं जो सच्चा न्याय करता है’?

12 हम एक और तरीके से यीशु की तरह बन सकते हैं। हम खुद को ‘उस परमेश्‍वर के हाथ में सौंप सकते हैं जो सच्चा न्याय करता है।’ यह हम कैसे कर सकते हैं? जब लोग हमें गलत समझते हैं या हमारे साथ बुरा व्यवहार करते हैं, तो हम याद रख सकते हैं कि यहोवा सबकुछ जानता है और वह आज नहीं तो कल सब ठीक कर देगा। इससे हम नाइंसाफी सह पाएँगे। जब हम मामले को यहोवा के हाथ में छोड़ देंगे, तो हमें चिंता नहीं सताएगी, ना ही हम दिल में नाराज़गी पाले रहेंगे। यही नहीं, ऐसा करने से हम खुद पर काबू रख पाएँगे, अपनी खुशी बनाए रख पाएँगे और यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते पर कोई आँच नहीं आने देंगे।—भज. 37:8.

13. नाइंसाफी सहने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है?

13 यह सच है कि हम पूरी तरह यीशु के जैसे नहीं बन सकते। हो सकता है, कभी-कभी हम कुछ ऐसा कह दें या कर दें जिसका बाद में हमें अफसोस हो। (याकू. 3:2) यह भी हो सकता है कि नाइंसाफी की वजह से हम अंदर से पूरी तरह टूट जाएँ या हमारी सेहत खराब हो जाए। इतना ही नहीं, शायद ज़िंदगी-भर हमें इसका दर्द सहना पड़े। अगर आपके साथ ऐसा हुआ है, तो यकीन रखिए कि यहोवा आपकी तकलीफ जानता है। और यीशु भी आपका दर्द समझता है, क्योंकि उसने हर तरह की नाइंसाफी सही है। (इब्रा. 4:15, 16) हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि यहोवा ने यीशु को धरती पर भेजा, ताकि हम उससे सीख सकें। इसके अलावा, यहोवा ने बाइबल में हमें बढ़िया सलाह दी है जिसे मानकर हम नाइंसाफी सह सकते हैं। तो आइए रोमियों की किताब से दो आयतों पर ध्यान दें।

“क्रोध को मौका” दीजिए

14. “क्रोध को मौका” देने का क्या मतलब है? (रोमियों 12:19)

14 रोमियों 12:19 पढ़िए। इस आयत में पौलुस किसके “क्रोध को मौका” देने की बात कर रहा था? आस-पास की आयतों से पता चलता है कि वह यहोवा के क्रोध की बात कर रहा था। पर हम यहोवा के क्रोध को मौका कैसे दे सकते हैं? हम उस पर भरोसा रख सकते हैं कि वह अपने समय पर और अपने तरीके से न्याय करेगा। ज़रा भाई जॉन के अनुभव पर ध्यान दीजिए जिनके साथ अन्याय हुआ था। वे बताते हैं, “मेरी सबसे बड़ी लड़ाई यह थी कि मैं अपने तरीके से मामले को सुलझाने की कोशिश ना करूँ। रोमियों 12:19 से मुझे यहोवा पर भरोसा रखने में और उसके वक्‍त का इंतज़ार करने में मदद मिली।”

15. किसी मामले को यहोवा के हाथ में छोड़ देना क्यों अच्छा होता है?

15 जब हम यहोवा पर भरोसा रखते हैं और मामला उसके हाथ में छोड़ देते हैं, तो इससे हमें ही फायदा होता है। हमें यह चिंता नहीं सताती कि मामला सुलझाने के लिए हमें कुछ करना है और ना ही हम इस बारे में सोच-सोचकर परेशान रहते हैं। यहोवा ने वादा किया है कि वह ‘बदला चुकाएगा।’ वह मानो हमसे कह रहा है, ‘चिंता मत करो, मैं सब सँभाल लूँगा।’ अगर हम उसके इस वादे पर भरोसा रखें, तो हम मामले को उस पर छोड़ देंगे और यकीन रखेंगे कि वह सबसे बढ़िया तरीके से उसे निपटाएगा। यह बात याद रखने से भाई जॉन को भी मदद मिली, जिनके बारे में पहले ज़िक्र किया गया था। वे कहते हैं, “मैं जानता हूँ, अगर मैं यहोवा पर भरोसा रखूँ, तो वह मुझसे भी कहीं बेहतर तरीके से समस्या को सुलझाएगा।”

“भलाई से बुराई को जीतते” रहिए

16-17. प्रार्थना करने से हम कैसे ‘भलाई से बुराई को जीत’ सकते हैं? (रोमियों 12:21)

16 रोमियों 12:21 पढ़िए। पौलुस ने मसीहियों से यह भी कहा, “भलाई से बुराई को जीतते रहो।” यीशु ने भी पहाड़ी उपदेश में कहा था, “अपने दुश्‍मनों से प्यार करते रहो और जो तुम्हें सताते हैं, उनके लिए प्रार्थना करते रहो।” (मत्ती 5:44) यीशु ने ना सिर्फ ऐसा कहा, बल्कि ऐसा किया भी। जब रोमी सैनिकों ने उसे कीलों से काठ पर ठोंक दिया, तो उसे बहुत दर्द सहना पड़ा। हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि उसे कितनी तकलीफ हुई होगी। इतना ही नहीं, उन्होंने उसे बदनाम किया और नीचा दिखाया।

17 लेकिन यीशु ने यह सब सह लिया, वह बुराई से नहीं हारा। सैनिकों को बुरा-भला कहने के बजाय उसने उनके लिए प्रार्थना की। उसने कहा, “पिता, इन्हें माफ कर दे क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।” (लूका 23:34) जब हम भी उन लोगों के लिए प्रार्थना करते हैं जो हमें सताते हैं या हमारे साथ बुरा करते हैं, तो हमारा गुस्सा शांत हो जाता है और नाराज़गी दूर हो जाती है। इतना ही नहीं, उनके बारे में हमारा नज़रिया भी बदल जाता है।

18. प्रार्थना करने से भाई ऑल्बर्टो और भाई जॉन कैसे नाइंसाफी सह पाए?

18 इस लेख में जिन दो भाइयों का ज़िक्र किया गया है, वे प्रार्थना करने से नाइंसाफी सह पाए। भाई ऑल्बर्टो बताते हैं, “मैंने उन भाइयों के लिए प्रार्थना की जिन्होंने मेरे साथ बुरा किया था। मैंने यहोवा से बार-बार कहा कि जो हुआ, उसे भूलने में मेरी मदद कर।” खुशी की बात है कि भाई दोबारा यहोवा की सेवा करने लगे। प्रार्थना करने से भाई जॉन को भी मदद मिली। वे बताते हैं, “मैंने कई बार उस भाई के लिए प्रार्थना की जिसने मेरा दिल दुखाया था। इससे मेरा गुस्सा शांत हो गया और मैंने उसके बारे में कुछ बुरा नहीं सोचा। मैंने उसे दिल से माफ कर दिया। प्रार्थना करने से मुझे मन की शांति भी मिली।”

19. जब तक इस दुनिया का अंत नहीं होता, हमें क्या करते रहना है? (1 पतरस 3:8, 9)

19 हम नहीं जानते कि इस दुष्ट दुनिया के अंत से पहले हमें क्या-क्या नाइंसाफियाँ सहनी पड़ेंगी। चाहे हमारे साथ जो भी नाइंसाफी हो, आइए हम यहोवा से प्रार्थना करना कभी ना छोड़ें, यीशु की मिसाल पर चलते रहें और बाइबल सिद्धांतों पर अमल करते रहें। अगर हम ऐसा करें, तो हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमें ज़रूर आशीषें देगा!—1 पतरस 3:8, 9 पढ़िए।

गीत 38 वह तुम्हें मज़बूत करेगा

a इस लेख में कुछ लोगों के नाम उनके असली नाम नहीं हैं।

b पहला पतरस अध्याय 2 और 3 में पतरस ने बताया कि पहली सदी में कई मसीहियों के साथ उनके मालिकों ने नाइंसाफी की। यही नहीं, ऐसी कई बहनें भी थीं जिनके पतियों ने उनके साथ बुरा सुलूक किया।—1 पत. 2:18-20; 3:1-6, 8, 9.