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यहोवा के वफादार बने रहिए

यहोवा के वफादार बने रहिए

“यहोवा मेरे और तेरे मध्य, और मेरे और तेरे वंश के मध्य में सदा रहे।”—1 शमू. 20:42.

गीत: 29, 31

1, 2. योनातन की दाविद से दोस्ती होना और उसका वफादार रहना क्यों एक बड़ी बात है?

योनातन यह देखकर ज़रूर दंग रह गया होगा कि किस तरह नौजवान दाविद ने लंबे-चौड़े गोलियत को मार गिराया। फिर वह उस “पलिश्ती का सिर” लेकर इसराएल के राजा और योनातन के पिता शाऊल के सामने आया। (1 शमू. 17:57) योनातन ने उसकी हिम्मत की ज़रूर तारीफ की होगी। उसे ज़रा भी शक नहीं था कि परमेश्वर दाविद के साथ है। उस समय से योनातन और दाविद एक-दूसरे के पक्के दोस्त बन गए। उन्होंने वादा किया कि वे हमेशा एक-दूसरे के वफादार रहेंगे। (1 शमू. 18:1-3) तब से योनातन ज़िंदगी-भर दाविद का वफादार रहा।

2 यहोवा ने योनातन के बजाय दाविद को इसराएल का अगला राजा होने के लिए चुना था, फिर भी योनातन दाविद का वफादार बना रहा। और जब शाऊल दाविद की जान के पीछे पड़ा था, तब योनातन को अपने दोस्त की चिंता होने लगी। वह दाविद का हौसला बढ़ाने के लिए होरेश के वीराने में उसके पास गया। योनातान ने “परमेश्वर की चर्चा करके उसको ढाढ़स दिलाया।” उसने उससे कहा, “मत डर; . . . तू ही इस्राएल का राजा होगा, और मैं तेरे नीचे हूँगा।”—1 शमू. 23:16, 17.

3. (क) दाविद के प्रति वफादार रहने से ज़्यादा योनातन के लिए कौन-सी बात अहम थी? (ख) यह हम कैसे जानते हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

3 अकसर वफादार लोगों की हर कहीं तारीफ होती है। लेकिन क्या हम योनातन की तारीफ सिर्फ इसलिए करते हैं कि वह दाविद का वफादार था? नहीं, बल्कि इसलिए कि वह परमेश्वर का वफादार था और यही उसकी ज़िंदगी में सबसे अहम बात थी। दरअसल इसी वजह से वह दाविद का वफादार था और उससे जलन नहीं रखता था, इसके बावजूद कि दाविद उसकी जगह राजा बननेवाला था। योनातन ने तो उसका हौसला भी बढ़ाया कि वह यहोवा पर भरोसा रखे। वे दोनों ही यहोवा के और एक-दूसरे के वफादार रहे। उन्होंने शपथ खायी थी कि “यहोवा मेरे और तेरे मध्य, और मेरे और तेरे वंश के मध्य में सदा रहे” और उन्होंने यह वादा निभाया।—1 शमू. 20:42.

4. (क) हमें किस बात से सच्ची खुशी और संतुष्टि मिलती है? (ख) इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?

4 हमें भी अपने परिवार, दोस्तों और मंडली के भाई-बहनों के वफादार रहना चाहिए। (1 थिस्स. 2:10, 11) लेकिन सबसे ज़रूरी यह है कि हम यहोवा के वफादार बने रहें। उसी ने हमें ज़िंदगी दी है! (प्रका. 4:11) जब हम उसके वफादार रहते हैं, तब हमें सच्ची खुशी और संतुष्टि मिलती है। लेकिन हम जानते हैं कि हमें मुश्किलों के दौर में भी परमेश्वर के वफादार रहना चाहिए। इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि योनातन की मिसाल से कैसे हम आगे बताए चार हालात में यहोवा के वफादार बने रह सकते हैं: (1) जब हमें लगे कि जिन्हें अधिकार दिया गया है, वे आदर के लायक नहीं हैं, (2) जब हमें फैसला करना पड़े कि हम किसके वफादार रहेंगे, (3) जब कोई अगुवाई करनेवाला भाई हमें गलत समझ बैठे या हमसे सही बरताव न करे और (4) जब हमें अपना कोई वादा निभाना मुश्किल लगे।

जब हमें लगे कि जिन्हें अधिकार दिया गया है, वे आदर के लायक नहीं हैं

5. शाऊल के राज में इसराएल के लोगों के लिए परमेश्वर के वफादार रहना क्यों मुश्किल हो गया था?

5 योनातन और इसराएल के लोग मुश्किल हालात में थे। योनातन का पिता राजा शाऊल यहोवा की आज्ञाएँ नहीं मान रहा था और यहोवा ने उसे ठुकरा दिया था। (1 शमू. 15:17-23) फिर भी परमेश्वर ने शाऊल को बहुत सालों तक राज करने दिया। ऐसे में लोगों के लिए परमेश्वर के वफादार रहना मुश्किल हो गया था, क्योंकि जो राजा “यहोवा के सिंहासन” पर बैठा था, वह बहुत बुरे काम कर रहा था।—1 इति. 29:23.

6. हम कैसे जानते हैं कि योनातन यहोवा का वफादार रहा?

6 शाऊल जब यहोवा की आज्ञाएँ तोड़ने लगा, तब भी उसका बेटा योनातन यहोवा का वफादार रहा। उसने क्या किया? (1 शमू. 13:13, 14) उस वक्‍त पलिश्तियों की एक बड़ी सेना 30,000 रथों के साथ इसराएल पर हमला करने आयी। लेकिन शाऊल के पास सिर्फ 600 सैनिक थे और केवल शाऊल और योनातन के पास हथियार थे। फिर भी योनातन डरा नहीं। उसे भविष्यवक्ता शमूएल की यह बात याद थी, “यहोवा तो अपने बड़े नाम के कारण अपनी प्रजा को न तजेगा।” (1 शमू. 12:22) योनातन ने एक सैनिक से कहा, “यहोवा के लिये कोई रुकावट नहीं, कि चाहे तो बहुत लोगों के द्वारा चाहे थोड़े लोगों के द्वारा छुटकारा दे।” योनातन और उस सैनिक ने पलिश्तियों के एक दल पर हमला कर दिया और करीब 20 आदमियों को मार गिराया। योनातन को यहोवा पर विश्वास था और यहोवा ने उसे आशीष दी। यहोवा भूकंप लाया और पलिश्तियों में दहशत फैल गयी। वे एक-दूसरे को ही मारने लगे और इस तरह इसराएलियों की जीत हुई।—1 शमू. 13:5, 15, 22; 14:1, 2, 6, 14, 15, 20.

7. योनातन अपने पिता के साथ कैसे पेश आया?

7 शाऊल लगातार यहोवा की आज्ञा तोड़ता रहा, फिर भी जहाँ तक मुमकिन था, योनातन ने अपने पिता की बात मानी। जैसे, उन्होंने यहोवा के लोगों को बचाने के लिए एक साथ युद्ध किया।—1 शमू. 31:1, 2.

8, 9. जिन्हें अधिकार दिया गया है, उनकी इज़्ज़त करके हम कैसे यहोवा के लिए वफादारी दिखा रहे होते हैं?

8 योनातन की तरह हम भी यहोवा के वफादार रह सकते हैं। कैसे? जहाँ तक मुमकिन हो, सरकारी अधिकारियों की आज्ञा मानकर। इन “उच्च-अधिकारियों” को यहोवा ने हमारे ऊपर अधिकार रखने की इजाज़त दी है और वह हमसे उम्मीद करता है कि हम उनका आदर करें। (रोमियों 13:1, 2 पढ़िए।) इसलिए हमें सरकारी अधिकारियों का आदर करना चाहिए, फिर चाहे वे ईमानदार न हों और हमें लगे कि वे आदर के लायक नहीं हैं। दरअसल हमें उन सबका आदर करना चाहिए, जिन्हें यहोवा ने अधिकार दिया है, यहाँ तक कि परिवार और मंडली में भी।—1 कुरिं. 11:3; इब्रा. 13:17.

यहोवा के वफादार रहने का एक तरीका है, अपने पति या पत्नी की इज़्ज़त करना, भले ही वह यहोवा की सेवा न करता हो (पैराग्राफ 9 देखिए)

9 दक्षिण अमरीका की रहनेवाली बहन आलिया [1] ने दिखाया कि वह यहोवा की वफादार है। कैसे? वह अपने पति की इज़्ज़त करती थी, जबकि उसका पति उसके साथ बहुत बुरा सलूक करता था। वह कभी-कभी तो उससे बात करना ही बंद कर देता था या उससे चुभनेवाली बातें कहता था। वह ऐसा इसलिए करता था कि वह यहोवा की एक साक्षी थी। उसने यह भी धमकी दी कि वह उसे छोड़ देगा और बच्चों को अपने साथ ले जाएगा। लेकिन आलिया ने “बुराई का बदला बुराई से” नहीं दिया। उसने एक अच्छी पत्नी बनने के लिए अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी। वह उसके खाने-पीने का खयाल रखती, उसके कपड़े धोती और उसके परिवार का खयाल रखती थी। (रोमि. 12:17) जब मुमकिन होता, वह अपने पति के साथ उसकी तरफ के रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलने भी जाती थी। एक बार जब उसके पति को अपने पिता के अंतिम संस्कार के लिए दूसरे शहर जाना था, तो उसने बच्चों को तैयार किया और सफर के लिए हर चीज़ का इंतज़ाम किया। फिर अंतिम संस्कार के दौरान, वह चर्च के बाहर रुकी रही। आलिया ने जिस तरह सब्र से काम लिया और हमेशा अपने पति की इज़्ज़त की, इसका काफी सालों बाद अच्छा नतीजा निकला। उसका पति उससे अच्छा व्यवहार करने लगा। अब उसका पति खुद उसे सभाओं में जाने का बढ़ावा देता है और उसे वहाँ लेकर भी जाता है। कभी-कभी तो वह उसके साथ सभाओं में हाज़िर भी होता है।—1 पत. 3:1.

जब हमें फैसला करना पड़े कि हम किसके वफादार रहेंगे

10. योनातन यह फैसला कैसे कर पाया कि उसे किसका वफादार रहना चाहिए?

10 शाऊल ने कहा कि वह दाविद को मार डालेगा। इससे योनातन के सामने एक मुश्किल खड़ी हो गयी, क्योंकि वह अपने पिता का भी वफादार रहना चाहता था और दाविद का भी। लेकिन अब उसे फैसला लेना था कि वह किसका वफादार रहेगा। योनातन जानता था कि परमेश्वर शाऊल के साथ नहीं, बल्कि दाविद के साथ है। इसलिए उसने दाविद के वफादार रहने का फैसला किया। उसने दाविद को सावधान किया कि वह कहीं छिप जाए। फिर उसने शाऊल को बताया कि दाविद को क्यों बख्श देना चाहिए।—1 शमूएल 19:1-6 पढ़िए।

11, 12. परमेश्वर के लिए प्यार हमें कैसे उसके वफादार रहने में मदद करता है?

11 ऑस्ट्रेलिया में रहनेवाली बहन ऐलिस को फैसला करना था कि वह किसकी वफादार रहेगी। जब वह बाइबल अध्ययन कर रही थी, तो जो भी वह सीखती थी, अपने परिवार को बताती थी। उसने यह भी बताया कि अब से वह क्रिसमस नहीं मनाएगी और इसकी वजह भी बतायी। पहले उसके परिवारवाले थोड़ा निराश हुए, लेकिन बाद में उन्हें उस पर बहुत गुस्सा आया। उन्हें लगा कि ऐलिस को अब उनकी कोई परवाह नहीं। उसकी मम्मी ने उससे कहा कि वह उसकी शक्ल भी नहीं देखना चाहती। ऐलिस कहती है, “यह सुनकर मुझे बड़ा धक्का लगा और बहुत दुख हुआ, क्योंकि मुझे अपने परिवार से सच में बहुत प्यार था। फिर भी मैंने ठान लिया कि अपने दिल में मैं यहोवा और उसके बेटे को पहली जगह दूँगी। और अगले सम्मेलन में मैंने बपतिस्मा ले लिया।”—मत्ती 10:37.

12 हमें हमेशा सावधान रहना चाहिए कि कहीं देश, स्कूल या खेल-कूद की टीम के लिए वफादारी की वजह से परमेश्वर के प्रति हमारी वफादार कम न हो जाए। जैसे, हेनरी नाम के भाई को शतरंज खेलना बहुत पसंद था। वह स्कूल की तरफ से शतरंज खेलकर अपने स्कूल का नाम पहले दर्जे पर लाना चाहता था। वह हर शनिवार-रविवार शतरंज खेलता था। इसलिए उसके पास प्रचार या सभाओं के लिए ज़्यादा समय नहीं बचता था। हेनरी का कहना है कि उसके लिए परमेश्वर से ज़्यादा स्कूल के वफादार रहना ज़रूरी हो गया था। आखिरकार उसने फैसला किया कि वह स्कूल की तरफ से शतरंज खेलना ही बंद कर देगा।—मत्ती 6:33.

13. जब परिवार में समस्याएँ उठती हैं, तो सही फैसला लेने में क्या बात हमारी मदद करेगी?

13 कभी-कभी ऐसी नौबत आ जाती है कि हमारी समझ में नहीं आता कि हम परिवार में किस सदस्य के वफादार रहें। मिसाल के लिए, कौशिक कहता है, “मैं चाहता था कि समय-समय पर मैं अपनी बुज़ुर्ग माँ को मिलने जाया करूँ और कभी-कभी वह हमारे साथ रहें। लेकिन मेरी माँ और मेरी पत्नी की आपस में नहीं बनती थी। पहले तो मैं बड़ी दुविधा में पड़ गया, क्योंकि एक को खुश करने का मतलब था, दूसरे को नाराज़ करना।” फिर कौशिक ने इस बारे में बाइबल की सलाह पर गौर किया। उसे एहसास हुआ कि उसकी वफादारी पर उसकी पत्नी का पहला हक है। इसलिए उसने ऐसा हल निकाला जो उसकी पत्नी को ठीक लगा। उसने अपनी पत्नी से कहा कि उसे अपनी सास से क्यों प्यार से पेश आना चाहिए और अपनी माँ को भी समझाया कि उन्हें क्यों अपनी बहू की इज़्ज़त करनी चाहिए।—उत्पत्ति 2:24; 1 कुरिंथियों 13:4, 5 पढ़िए।

जब कोई भाई हमें गलत समझ बैठे या हमसे सही बरताव न करे

14. शाऊल ने योनातन के साथ कैसे बुरा बरताव किया?

14 जब कोई अगुवाई करनेवाला भाई हमारे साथ सही बरताव नहीं करता, तब भी हम यहोवा के वफादार रह सकते हैं। राजा शाऊल परमेश्वर का चुना हुआ जन था, फिर भी उसने अपने बेटे के साथ बुरा व्यवहार किया। वह यह नहीं समझ पाया कि योनातन को क्यों दाविद से इतना लगाव है। इसलिए जब योनातन दाविद की मदद करने की कोशिश करता, तो शाऊल को बहुत गुस्सा आता था। उसने भरी सभा में अपने बेटे की बेइज़्ज़ती की। योनातन फिर भी अपने पिता की इज़्ज़त करता रहा। साथ ही, वह यहोवा का भी वफादार बना रहा और दाविद का भी, जिसे परमेश्वर ने इसराएल का अगला राजा होने के लिए चुना था।—1 शमू. 20:30-41.

15. अगर कोई भाई हमारे साथ सही बरताव नहीं करता, तो हमारा कैसा रवैया होना चाहिए?

15 आज हमारी मंडली में अगुवाई लेनेवाले भाइयों की यही कोशिश रहती है कि वे सब के साथ सही बरताव करें। लेकिन ये भाई भी असिद्ध हैं। इसलिए हो सकता है, कभी-कभी वे समझ न पाएँ कि हमने कोई काम क्यों किया है। (1 शमू. 1:13-17) इसलिए अगर हमारे बारे में गलत राय कायम कर ली जाती है या हमें गलत समझा जाता है, तो भी आइए हम यहोवा के वफादार बने रहें।

जब कोई वादा निभाना बहुत मुश्किल लगे

16. किन हालात में हमें अपना भला चाहने के बजाय परमेश्वर के वफादार रहना चाहिए?

16 शाऊल चाहता था कि अगला राजा योनातन बने, न कि दाविद। (1 शमू. 20:31) लेकिन योनातन यहोवा से प्यार करता था और उसका वफादार था। इसलिए अपना भला चाहने के बजाय वह दाविद का दोस्त बन गया और उससे किया अपना वादा निभाया। दरअसल जो कोई यहोवा से प्यार करता है और उसका वफादार रहता है, वह ‘शपथ खाकर बदलेगा नहीं चाहे हानि उठानी पड़े।’ (भज. 15:4) हम यहोवा के वफादार हैं, इसलिए हम अपने वादे ज़रूर निभाएँगे। मान लीजिए हमने कारोबार के सिलसिले में कोई करार किया है। उस करार में हम जिन शर्तों पर राज़ी हुए हैं, उन्हें हम ज़रूर पूरी करेंगे, फिर यह कितना ही मुश्किल क्यों न हो। अगर हमारी शादीशुदा ज़िंदगी में कोई समस्या है, तो भी हम अपने साथी के वफादार रहेंगे और इस तरह हम यहोवा के लिए अपना प्यार जताएँगे।—मलाकी 2:13-16 पढ़िए।

अगर हम कारोबार के सिलसिले में कोई करार करते हैं, तो उस करार की हम सारी शर्तें मानेंगे, क्योंकि हम परमेश्वर के वफादार हैं (पैराग्राफ 16 देखिए)

17. इस अध्ययन लेख से आपको कैसे मदद मिली है?

17 योनातन की तरह, हम अपना भला चाहने के बजाय परमेश्वर के वफादार रहना चाहते हैं। आइए हम अपने भाई-बहनों के वफादार रहें, भले ही वे हमें निराश करें। और मुश्किल हालात में भी हम यहोवा के वफादार बने रहें। इससे हम यहोवा का दिल खुश करेंगे और हम भी खुश रहेंगे। (नीति. 27:11) हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि वह हमेशा हमारा खयाल रखेगा और वही करेगा जिसमें हमारी भलाई है। अगले लेख में हम देखेंगे कि हम दाविद के समय के कुछ ऐसे लोगों से क्या सीख सकते हैं, जो वफादार थे और कुछ ऐसे जो वफादार नहीं थे।

^ [1] (पैराग्राफ 9) कुछ नाम बदल दिए गए हैं।