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यहोवा के वफादार सेवकों से सीखिए

यहोवा के वफादार सेवकों से सीखिए

“नयी शख्सियत को पहन लेना चाहिए, जो परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक रची गयी है और परमेश्वर की नज़र में सच्चाई, नेकी और वफादारी की माँगों के मुताबिक है।”—इफि. 4:24.

गीत: 18, 43

1, 2. दाविद ने कैसे दिखाया कि वह परमेश्वर का वफादार है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

शाऊल और उसके 3,000 सैनिक यहूदिया के वीराने में दाविद को ढूँढ़ रहे हैं। वे उसकी जान लेने पर तुले हुए हैं। एक रात दाविद और उसके आदमी उस जगह पहुँच जाते हैं, जहाँ शाऊल और उसके सैनिक डेरा डाले हुए हैं और सभी सो रहे हैं। इसलिए दाविद और अबीशै दबे पाँव सैनिकों के बीच से गुज़रकर शाऊल के पास पहुँच जाते हैं। अबीशै दाविद से फुसफुसाता है, “अब मैं उसको एक बार ऐसा मारूँ कि भाला उसे बेधता हुआ भूमि में धँस जाए, और मुझ को उसे दूसरी बार मारना न पड़ेगा।” लेकिन दाविद उसे शाऊल को मारने नहीं देता। दाविद अबीशै से कहता है, “उसे नष्ट न कर; क्योंकि यहोवा के अभिषिक्‍त पर हाथ चलाकर कौन निर्दोष ठहर सकता है? . . . यहोवा न करे कि मैं अपना हाथ यहोवा के अभिषिक्‍त पर उठाऊँ।”—1 शमू. 26:8-12.

2 दाविद को एहसास हो गया था कि यहोवा के वफादार रहने के लिए उसे क्या करना होगा। उसे शाऊल का आदर करना था। शाऊल को नुकसान पहुँचाने का उसके मन में खयाल तक नहीं आया। क्यों? क्योंकि परमेश्वर ने शाऊल को इसराएल का राजा चुना था। आज भी यहोवा अपने सभी सेवकों से उम्मीद करता है कि वे उसके वफादार रहें और जिन्हें उसने अधिकार दिया है, उनकी इज़्ज़त करें।—इफिसियों 4:24 पढ़िए।

3. अबीशै ने कैसे दिखाया कि वह दाविद का वफादार है?

3 अबीशै दाविद की इज़्ज़त करता था, क्योंकि वह जानता था कि परमेश्वर ने दाविद को राजा होने के लिए चुना है। मगर राजा बनने के बाद दाविद ने एक गंभीर पाप किया। उसने ऊरिय्याह की पत्नी के साथ लैंगिक संबंध रखे और फिर योआब से कहा कि ऊरिय्याह को युद्ध में मरवा दिया जाए। (2 शमू. 11:2-4, 14, 15; 1 इति. 2:16) योआब, अबीशै का भाई था। इसलिए अबीशै को शायद पता चल गया होगा कि दाविद ने क्या किया है, फिर भी वह दाविद की इज़्ज़त करता रहा। यही नहीं, अबीशै सेनापति होने के नाते अपने अधिकार का फायदा उठाकर राजा बनने की कोशिश कर सकता था। मगर उसने ऐसा कभी नहीं किया, बल्कि वह दाविद की सेवा करता रहा और दुश्मनों से उसकी हिफाज़त करता रहा।—2 शमू. 10:10; 20:6; 21:15-17.

4. (क) हम कैसे जानते हैं कि दाविद परमेश्वर का वफादार बना रहा? (ख) हम और किनके उदाहरण पर गौर करेंगे?

4 दाविद अपनी पूरी ज़िंदगी यहोवा का वफादार बना रहा। बचपन में उसने लंबे-चौड़े गोलियत को मार गिराया, जो ‘जीवित परमेश्वर की सेना को ललकार’ रहा था। (1 शमू. 17:23, 26, 48-51) राजा बनने के बाद जब दाविद ने पाप किया, तो यहोवा ने भविष्यवक्ता नातान को उसे ताड़ना देने भेजा। दाविद ने अपना पाप मान लिया और पश्‍चाताप किया। (2 शमू. 12:1-5, 13) बुज़ुर्ग होने पर दाविद ने बहुत-सी कीमती चीज़ें यहोवा का मंदिर बनाने के लिए दीं। (1 इति. 29:1-5) हालाँकि दाविद ने गंभीर पाप ज़रूर किए थे, मगर उसने वफादारी से यहोवा की सेवा करना कभी बंद नहीं किया। (भज. 51:4, 10; 86:2) आइए इस लेख में दाविद और उसके समय में जीनेवाले कुछ लोगों के उदाहरण पर गौर करें और इन सवालों के जवाब जानने की कोशिश करें: हमें सबसे ज़्यादा किसके वफादार रहना चाहिए? वफादार बने रहने के लिए कौन-से गुण होना ज़रूरी है?

क्या आप यहोवा के वफादार रहेंगे?

5. अबीशै की गलती से हम कौन-सा सबक सीखते हैं?

5 उस रात अबीशै ने यह तय करने में गलती की कि सबसे पहले उसे किसका वफादार होना चाहिए। उसे यहोवा का वफादार होना था, जबकि शाऊल को मारकर वह यह जता रहा था कि वह दाविद का वफादार है। लेकिन दाविद जानता था कि “यहोवा के अभिषिक्‍त” पर हाथ उठाना गलत है। इसलिए दाविद ने उसे राजा को मारने नहीं दिया। (1 शमू. 26:8-11) इससे हम एक अहम सबक सीखते हैं: जब हमें तय करना हो कि हम पहले किसके वफादार रहेंगे, तो हमें सोचना चाहिए कि इस हालात में बाइबल के किन सिद्धांतों से हमें मदद मिल सकती है।

6. अपने दोस्त या परिवार के सदस्य के वफादार होना स्वाभाविक है, लेकिन हमें क्यों सावधान रहना चाहिए?

6 जिसे हम प्यार करते हैं उसके वफादार होना स्वाभाविक है, जैसे किसी दोस्त या परिवार के सदस्य के। लेकिन असिद्ध होने की वजह से हम भावनाओं में बहक सकते हैं। (यिर्म. 17:9) अगर हमारा कोई अपना गलत काम करता है और सच्चाई की राह पर चलना छोड़ देता है, तो हमें याद रखना चाहिए कि किसी और के वफादार रहने से ज़्यादा यहोवा के वफादार रहना ज़रूरी है।—मत्ती 22:37 पढ़िए।

7. एक बहन मुश्किल हालात में कैसे परमेश्वर की वफादार रही?

7 अगर परिवार के किसी सदस्य का मंडली से बहिष्कार हो गया है, तो आप यहोवा को जता सकते हैं कि आप उसके वफादार हैं। बहन ऐन [1] पर गौर कीजिए। उसकी मम्मी का मंडली से बहिष्कार हो गया था। एक दिन उसकी मम्मी ने उसे फोन किया और कहा कि परिवार के लोगों ने उससे बात करना बंद कर दिया है, इसलिए वह बहुत दुखी है और उसके यहाँ आना चाहती है। यह सुनकर ऐन को बड़ा दुख हुआ और उसने कहा कि वह खत लिखकर जवाब देगी। लेकिन खत लिखने से पहले ऐन ने बाइबल के कुछ सिद्धांतों पर मनन किया। (1 कुरिं. 5:11; 2 यूह. 9-11) तब खत में उसने प्यार से अपनी मम्मी को लिखा कि उन्होंने खुद ही अपने परिवार को छोड़ दिया जब उन्होंने पाप किया और पश्‍चाताप नहीं किया। उसने यह भी लिखा कि वह तभी खुश रह सकती है, जब वह यहोवा के पास लौट आएगी।—याकू. 4:8.

8. परमेश्वर के वफादार रहने में कौन-से गुण हमारी मदद कर सकते हैं?

8 दाविद के समय के परमेश्वर के वफादार सेवकों में तीन खास गुण थे, जो यहोवा के वफादार रहने में हमारी मदद कर सकते हैं। ये गुण हैं नम्रता, कृपा और हिम्मत। आइए एक-एक करके इन पर गौर करें।

हमें नम्र होना चाहिए

9. अब्नेर ने दाविद को मारने की कोशिश क्यों की?

9 जब दाविद गोलियत का सिर लेकर राजा शाऊल के पास आया था, तब शाऊल के बेटे योनातन और इसराएल के सेनापति अब्नेर, दोनों ने उसे देखा था। योनातन तो दाविद का दोस्त बन गया और उसका वफादार बना रहा। (1 शमू. 17:57–18:3) लेकिन अब्नेर ने ऐसा नहीं किया, बल्कि आगे चलकर उसने शाऊल का साथ दिया, जो दाविद के खून का प्यासा था। (भज. 54:3; 1 शमू. 26:1-5) योनातन और अब्नेर दोनों जानते थे कि परमेश्वर दाविद को इसराएल का अगला राजा बनाना चाहता है। फिर भी शाऊल की मौत के बाद अब्नेर ने दाविद की मदद नहीं की। इसके बजाय, उसने शाऊल के बेटे ईशबोशेत को राजा बनाने की कोशिश की। बाद में अब्नेर शायद खुद राजा बनना चाहता था और इसीलिए उसने शाऊल की रखैल के साथ लैंगिक संबंध रखे। (2 शमू. 2:8-10; 3:6-11) दाविद के बारे में योनातन और अब्नेर की क्यों अलग-अलग सोच थी? इसलिए कि योनातन यहोवा का वफादार था और नम्र इंसान था, जबकि अब्नेर में ये गुण नहीं थे।

10. अबशालोम परमेश्वर का वफादार क्यों नहीं था?

10 राजा दाविद का बेटा अबशालोम भी नम्र नहीं था, इसलिए वह परमेश्वर का वफादार नहीं था। वह राजा बनना चाहता था। इसलिए उसने ‘रथ और घोड़े और अपने आगे-आगे दौड़ने के लिए पचास मनुष्य रख लिए।’ (2 शमू. 15:1) उसने बहुत-से इसराएलियों का दिल जीतकर उन्हें अपना वफादार बना लिया। यहाँ तक कि उसने दाविद की जान लेने की कोशिश की, जबकि वह जानता था कि दाविद को यहोवा ने इसराएल का राजा बनाया है।—2 शमू. 15:13, 14; 17:1-4.

11. अब्नेर, अबशालोम और बारूक से हम क्या सीखते हैं?

11 जब एक इंसान नम्र नहीं होता और ज़्यादा अधिकार पाना चाहता है, तो उसके लिए परमेश्वर का वफादार बने रहना बहुत मुश्किल होता है। हाँ यह सच है कि हम यहोवा से प्यार करते हैं और अब्नेर और अबशालोम की तरह दुष्ट और स्वार्थी नहीं बनना चाहते। फिर भी हमें सावधान रहना चाहिए कि कहीं हममें बहुत-सारा पैसा कमाने या ऊँचे ओहदे वाली नौकरी पाने की चाहत न पैदा हो जाए। इससे यहोवा के साथ हमारा रिश्ता कमज़ोर पड़ सकता है। ज़रा यिर्मयाह के सचिव बारूक पर ध्यान दीजिए। थोड़े समय के लिए वह कुछ ऐसा चाहने लगा, जो उसके पास नहीं था और परमेश्वर की सेवा से उसे खुशी नहीं मिल रही थी। तब यहोवा ने बारूक से कहा, “देख, इस सारे देश को जिसे मैं ने बनाया था, उसे मैं आप ढा दूँगा, और जिन को मैं ने रोपा था, उन्हें स्वयं उखाड़ फेंकूँगा। इसलिये सुन, क्या तू अपने लिये बड़ाई खोज रहा है? उसे मत खोज।” (यिर्म. 45:4, 5) बारूक ने यहोवा की सलाह मानी। हमें भी यहोवा की सलाह माननी चाहिए, क्योंकि बहुत जल्द वह इस दुष्ट दुनिया का नाश करनेवाला है।

12. समझाइए कि जब हम सिर्फ अपना स्वार्थ पूरा करते हैं, तो हम परमेश्वर के वफादार क्यों नहीं रह सकते।

12 मैक्सिको में रहनेवाले दानियल नाम के भाई को फैसला करना था कि वह किसका वफादार रहेगा। वह एक ऐसी लड़की से शादी करना चाहता था, जो यहोवा की उपासक नहीं थी। दानियल कहता है, “पायनियर बनने के बाद भी मैं उसे खत लिखता रहा।” लेकिन बाद में उसे एहसास हुआ कि वह सिर्फ अपना स्वार्थ पूरा कर रहा है, अब वह यहोवा का वफादार नहीं रहा। आखिरकार उसने खुद को नम्र किया और एक तजुरबेकार प्राचीन को उस लड़की के बारे में बताया। दानियल कहता है, “उसने यह समझने में मेरी मदद की कि परमेश्वर के वफादार रहने के लिए ज़रूरी है कि मैं उसे खत लिखना बंद कर दूँ। मैंने बहुत प्रार्थना की और मैं बहुत रोया भी। और फिर मैंने उसे खत लिखना बंद कर दिया। जल्द ही प्रचार सेवा में मेरी खुशी बढ़ गयी।” बाद में दानियल को एक ऐसी पत्नी मिली जो यहोवा से प्यार करती है और आज वह सर्किट निगरान के तौर पर सेवा कर रहा है।

परमेश्वर के वफादार रहने से हम कृपा से पेश आ सकते हैं

अगर आपको पता चले कि आपके दोस्त ने कोई गंभीर पाप किया है, तो क्या आप उससे बात करेंगे और ध्यान रखेंगे कि उसे प्राचीनों से मदद मिले? (पैराग्राफ 14 देखिए)

13. जब दाविद ने पाप किया, तब नातान कैसे परमेश्वर और दाविद दोनों का वफादार बना रहा?

13 अगर हम यहोवा के वफादार रहेंगे, तो हम भाई-बहनों के भी वफादार रह पाएँगे और उनकी सबसे बढ़िया तरीके से मदद कर पाएँगे। जैसे, भविष्यवक्ता नातान यहोवा का वफादार था और दाविद का भी। जब दाविद ने बतशेबा के साथ पाप किया और उसके पति को मरवा डाला, तो यहोवा ने नातान से कहा कि वह जाकर दाविद को ताड़ना दे। नातान ने हिम्मत से काम लिया और यहोवा की आज्ञा मानी। मगर उसने बुद्धिमानी भी दिखायी और वह दाविद के साथ कृपा से पेश आया। दाविद को यह समझाने के लिए कि उसने कितने गंभीर पाप किए हैं, नातान ने उसे एक ऐसे अमीर आदमी की कहानी सुनायी, जिसने एक गरीब आदमी का भेड़ का बच्चा ले लिया था। उस अमीर आदमी की करतूत सुनकर दाविद गुस्से से भड़क उठा। तब नातान ने उससे कहा, “तू ही वह मनुष्य है।” दाविद को एहसास हो गया कि उसने यहोवा के खिलाफ पाप किया है।—2 शमू. 12:1-7, 13.

14. आप यहोवा के साथ-साथ अपने दोस्त या रिश्तेदारों के वफादार कैसे रह सकते हैं?

14 कृपा का गुण होने से आप पहले यहोवा के और फिर दूसरों के भी वफादार रह सकते हैं। जैसे, शायद आपके पास इस बात का सबूत हो कि एक भाई ने गंभीर पाप किया है। आप शायद उसके वफादार रहना चाहें, खासकर अगर वह आपका करीबी दोस्त या परिवार का सदस्य है। लेकिन आप यह भी जानते हैं कि यहोवा के वफादार रहना ज़्यादा ज़रूरी है। इसलिए नातान की तरह यहोवा की आज्ञा मानिए। साथ ही, अपने उस भाई के साथ कृपा से पेश आइए। उससे कहिए कि जल्द-से-जल्द वह प्राचीनों से उस बारे में बात करे और उनकी मदद ले। अगर वह ऐसा नहीं करता, तो आपको खुद प्राचीनों को बताना चाहिए। ऐसा करके आप यहोवा के वफादार बने रहते हैं। साथ ही, आप अपने दोस्त या रिश्तेदार के साथ कृपा से पेश आ रहे होते हैं, क्योंकि प्राचीन यहोवा के साथ दोबारा अच्छा रिश्ता बनाने में उसकी मदद कर सकते हैं। वे बड़े प्यार और शांति से ऐसा करेंगे।—लैव्यव्यवस्था 5:1; गलातियों 6:1 पढ़िए।

परमेश्वर के वफादार रहने के लिए हमें हिम्मत की ज़रूरत है

15, 16. परमेश्वर के वफादार रहने के लिए हूशै को क्यों हिम्मत से काम लेना था?

15 हूशै राजा दाविद का एक वफादार दोस्त था। जब लोग अबशालोम को राजा बनाना चाहते थे, तब हूशै को दाविद और परमेश्वर के वफादार रहने के लिए हिम्मत से काम लेना था। वह जानता था कि अबशालोम अपने सैनिकों के साथ यरूशलेम आया हुआ है और दाविद शहर से भाग गया है। (2 शमू. 15:13; 16:15) तो हूशै ने क्या किया? क्या उसने दाविद को छोड़ दिया और अबशालोम का साथ दिया? नहीं। दाविद की उम्र ढल चुकी थी और बहुत-से लोग उसे मार डालना चाहते थे। फिर भी हूशै दाविद का वफादार रहा, क्योंकि यहोवा ने दाविद को राजा बनाया था। इसलिए हूशै जैतून पहाड़ पर दाविद से मिलने गया।—2 शमू. 15:30, 32.

16 दाविद ने हूशै से कहा कि वह यरूशलेम लौट जाए और अबशालोम का दोस्त होने का ढोंग करे। इससे वह अबशालोम को अहीतोपेल की सलाह सुनने के बजाय, उसकी सलाह सुनने के लिए कायल कर पाता। उसने अपनी जान जोखिम में डालकर दाविद की आज्ञा मानी और यहोवा का वफादार बना रहा। इधर दाविद ने प्रार्थना की कि यहोवा हूशै की मदद करे और ऐसा ही हुआ। अबशालोम ने अहीतोपेल की सलाह सुनने के बजाय हूशै की सलाह सुनी।—2 शमू. 15:31; 17:14.

17. यहोवा के वफादार रहने के लिए हमें क्यों हिम्मत की ज़रूरत है?

17 यहोवा के वफादार रहने और उसकी आज्ञा मानने के लिए हमें हिम्मत की ज़रूरत है। लेकिन परिवार के सदस्य, साथ काम करनेवाले या सरकारी अधिकारी हम पर दबाव डालते हैं कि हम उनकी बात मानें। हमारे बहुत-से भाई-बहनों ने ऐसे दबाव का हिम्मत से सामना किया है। उदाहरण के लिए, जापान का रहनेवाला टारो बचपन से अपने मम्मी-पापा को खुश रखने की पूरी कोशिश करता था। वह उनकी आज्ञा मानता था और उनका वफादार रहता था, वह इसलिए नहीं कि यह उसका फर्ज़ था बल्कि इसलिए कि वह उनसे प्यार करता था। लेकिन जब वह यहोवा के साक्षियों के साथ अध्ययन करने लगा तो उसके मम्मी-पापा चाहते थे कि वह साक्षियों से मिलना-जुलना बंद कर दे। यह सुनकर उसे बहुत दुख हुआ। उसके लिए मम्मी-पापा को यह बताना बहुत मुश्किल था कि उसने सभाओं में जाने की ठान ली है। टारो कहता है, “वे मुझसे इतना गुस्सा हुए कि उन्होंने मुझे घर आने से सख्त मना कर दिया। ऐसा कई सालों तक चला। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना में हिम्मत माँगी ताकि मैं अपने फैसले पर बना रहूँ। अब उनके व्यवहार में थोड़ी नरमी आयी है और मैं उनसे लगातार मिलने जा पाता हूँ।”—नीतिवचन 29:25 पढ़िए।

18. इस अध्ययन लेख से आपको क्या फायदा हुआ?

18 हमारी दुआ है कि दाविद, योनातन, नातान और हूशै की तरह हमें भी वह सुकून मिले जो यहोवा के वफादार रहने से मिलता है। हम कभी भी अब्नेर और अबशालोम की तरह नहीं बनना चाहते जो वफादार नहीं थे, बल्कि दाविद की तरह यहोवा से लिपटे रहना चाहते हैं। और असिद्ध होने की वजह से हमसे गलतियाँ तो होती हैं, फिर भी हम यह दिखा सकते हैं कि यहोवा के वफादार रहना हमारी ज़िंदगी में सबसे ज़रूरी है।

^ [1] (पैराग्राफ 7) कुछ नाम बदल दिए गए हैं।