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पायनियर भाई जॉर्ज रोलस्टन और आर्थर विलस कार के रेडिएटर में पानी भरने के लिए रुके हैं।—सन्‌ 1933, नॉर्दन टेरिटरी

अतीत के झरोखे से

“कोई भी रास्ता मुश्किल नहीं, कोई भी मंज़िल दूर नहीं”

“कोई भी रास्ता मुश्किल नहीं, कोई भी मंज़िल दूर नहीं”

छब्बीस मार्च, 1937 की बात है। दो थके-माँदे आदमी धीरे-धीरे अपना ट्रक चलाकर ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर आ रहे हैं। उनका ट्रक पूरी तरह धूल से ढका हुआ है। वे एक साल पहले सिडनी से रवाना हुए थे और उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के सबसे दूर-दराज़ के और ऊबड़-खाबड़ इलाकों से होते हुए 19,300 किलोमीटर का सफर तय किया। ये आदमी न तो खोजकर्ता थे, न ही नयी-नयी जगह घूमनेवाले मुसाफिर। दरअसल ये जोशीले पायनियर थे जो मन बनाकर निकले थे कि ऑस्ट्रेलिया के दूर-दराज़ के इलाकों में परमेश्वर के राज की खुशखबरी सुनाएँगे। इनका नाम था, आर्थर विलस और बिल न्यूलैंड्‌स।

सन्‌ 1920 के दशक के आखिरी सालों तक ऑस्ट्रेलिया में मुट्ठी-भर बाइबल विद्यार्थी * थे और उन्होंने तट के किनारे पर बसे शहरों और कसबों में और उनके आस-पास के इलाकों में प्रचार किया था। लेकिन समुद्री तट से दूर, अंदर के इलाकों में प्रचार नहीं हुआ था। यह सूखा इलाका बहुत बड़ा था, आधे अमरीका से भी बड़ा। शहरों और कसबों के मुकाबले यहाँ की आबादी कम थी। लेकिन भाइयों को एहसास था कि यीशु के चेलों को “दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में” उसके बारे में गवाही देनी है। (प्रेषि. 1:8) लेकिन वे इतना बड़ा काम कैसे कर पाते? उन्हें पूरा विश्वास था कि यहोवा उनकी मेहनत पर आशीष देगा इसलिए उन्होंने ठान लिया था कि वे जी-जान लगाकर मेहनत करेंगे।

पायनियरों ने प्रचार काम शुरू किया

सन्‌ 1929 में क्वीन्सलैंड और वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया की मंडलियों ने ऐसी कई मोटर वेन तैयार कीं जिनमें सारी सुविधाएँ थीं। इन मोटर वेन से सफर करके वे ऑस्ट्रेलिया के अंदरूनी इलाकों में प्रचार करना चाहते थे। इन गाड़ियों को चलानेवाले ऐसे मेहनती पायनियर थे जो बुरे-से-बुरे हालात का सामना कर सकते थे और गाड़ी खराब होने पर उसे ठीक कर सकते थे। ये पायनियर ऐसी कई जगहों पर गए जहाँ पहले कभी गवाही नहीं दी गयी थी।

जो पायनियर इस तरह की गाड़ी नहीं खरीद सकते थे, वे साइकिल पर दूर-दराज़ के इलाकों में गए। मिसाल के लिए, 1932 में 23 साल का बेनेट ब्रिकल पाँच महीने के लिए प्रचार के दौरे पर निकला। वह अपनी साइकिल पर कंबल, कपड़े, खाना और ढेर सारी किताबें लादकर क्वीन्सलैंड राज्य के रॉकहैम्पटन शहर से रवाना हुआ। वह क्वीन्सलैंड के उत्तर में दूर-दराज़ के इलाकों में गया। जब उसकी साइकिल के टायर घिस गए, तब भी वह नहीं रुका। उसे यकीन था कि यहोवा उसकी मदद करेगा। इसलिए उसने साइकिल लेकर पैदल ही अपने सफर के आखिरी 320 किलोमीटर तय किए और वह ऐसे इलाकों से गुज़रा जहाँ पहले कई आदमी प्यासे मर गए थे। इसके बाद भाई ब्रिकल ने 30 सालों के दौरान साइकिल, मोटर साइकिल और कार से हज़ारों किलोमीटर का सफर करते हुए प्रचार किया। उसने वहाँ के आदिवासियों को प्रचार किया और नयी मंडलियाँ बनाने में हाथ बँटाया। भाई ब्रिकल को उन इलाकों में सभी अच्छी तरह जानते थे और उसकी बहुत इज़्ज़त करते थे।

मुश्किलों को पार किया

पूरी दुनिया में ऑस्ट्रेलिया की आबादी सबसे कम है और इसके अंदरूनी इलाकों में तो इक्के-दुक्के लोग ही पाए जाते हैं। इसलिए यहोवा के सेवकों को पक्के इरादे की ज़रूरत पड़ी ताकि वे उन लोगों को ढूँढ़ सकें।

स्टूअर्ट कैलटी और विलियम टोरिंगटन नाम के पायनियरों ने ऐसा ही मज़बूत इरादा दिखाया। सन्‌ 1933 में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के बीचों-बीच बसे ऐलिस स्प्रिंग्स नाम के कसबे में प्रचार किया। वहाँ तक पहुँचने के लिए उन्होंने सिम्पसन रेगिस्तान पार किया जो रेत के टीलों से बना एक विशाल रेगिस्तान था। जब उनकी छोटी-सी कार खराब हो गयी तो उसे छोड़कर वे आगे बढ़े। हालाँकि भाई कैलटी का एक पैर नकली था, मगर उसने ऊँट पर सवार होकर अपना प्रचार काम जारी रखा। इन पायनियरों की मेहनत तब रंग लायी जब विलियम क्रीक नाम की जगह में जहाँ एक छोटा-सा रेलवे स्टेशन था, उनकी मुलाकात एक होटल के मालिक से हुई। होटल के मालिक का नाम था चार्ल्स बर्नहार्ट। बाद में उसने सच्चाई कबूल की और होटल बेचकर पायनियर सेवा करने लगा। उसने 15 साल तक ऑस्ट्रेलिया के सबसे वीरान और सूखे इलाकों में अकेले प्रचार किया।

आर्थर विलस ऑस्ट्रेलिया के अंदरूनी इलाकों में जाने की तैयारी कर रहे हैं।—सन्‌ 1936, वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में पर्थ शहर

इन शुरूआती पायनियरों के आगे कई मुश्किलें आयीं। इनका सामना करने के लिए उनमें हिम्मत और मज़बूत इरादा होना था। लेख की शुरूआत में बताए आर्थर विलस और बिल न्यूलैंड्‌स जब ऑस्ट्रेलिया के अंदरूनी इलाकों में प्रचार कर रहे थे, तो एक मौके पर उन्हें सिर्फ 32 किलोमीटर का सफर तय करने में दो हफ्ते लग गए! उन्हें इतना समय क्यों लगा? क्योंकि ज़ोरों की बारिश हुई थी और इस वजह से रेगिस्तान में हर तरफ कीचड़ ही कीचड़ हो गया था। कभी-कभी तो उन्हें पथरीली घाटियों और सूखी नदियों से होकर गुज़रना पड़ता था। रास्ते में उन्हें रेत के ऊँचे-ऊँचे टीलों पर अपने ट्रक को धक्का मारना पड़ता था। ऐसे में वे पसीने से लथपथ हो जाते थे और कड़कती धूप में उनकी हालत खस्ता हो जाती थी। जब उनका ट्रक खराब हो जाता था, जो कि अकसर होता था तो उन्हें पास के कसबे तक जाने के लिए कई दिनों तक पैदल चलना होता था या फिर साइकिल पर जाना होता था। फिर वहाँ पहुँचकर उन्हें अपनी गाड़ी के नए पुरज़े के लिए हफ्तों तक इंतज़ार करना पड़ता था। इन मुश्किलों के बावजूद उन्होंने सही नज़रिया बनाए रखा। आर्थर विलस ने द गोल्डन एज पत्रिका में लिखी एक बात को अपने शब्दों में यूँ कहा, “परमेश्वर के साक्षियों के लिए कोई भी रास्ता मुश्किल नहीं, कोई भी मंज़िल दूर नहीं।”

लंबे समय तक पायनियर सेवा करनेवाले चार्ल्स हैरिस बताते हैं कि दूर-दराज़ के इलाकों में भले ही मैं अकेला था और मुझे कई मुश्किलें झेलनी पड़ी, मगर इससे मैं यहोवा के और करीब आया हूँ। वे यह भी कहते हैं, “आपके पास जितनी कम चीज़ें हों, उतना अच्छा है। अगर यीशु खुले आसमान के नीचे सोने को तैयार था तो हमें भी अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने के लिए खुशी-खुशी ऐसा करना चाहिए।” कई पायनियरों ने यही किया। उनकी कड़ी मेहनत की वजह से ऑस्ट्रेलिया के कोने-कोने तक खुशखबरी पहुँची है और बेहिसाब लोगों ने परमेश्वर के राज का पक्ष लिया है।

^ पैरा. 4 सन्‌ 1931 में बाइबल विद्यार्थियों ने यहोवा के साक्षी यह नाम अपनाया था।—यशा. 43:10.