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अध्ययन लेख 8

परीक्षाओं के दौरान खुश कैसे रहें?

परीक्षाओं के दौरान खुश कैसे रहें?

“मेरे भाइयो, जब तुम तरह-तरह की परीक्षाओं से गुज़रो तो इसे बड़ी खुशी की बात समझो।”—याकू. 1:2.

गीत 111 हमारी खुशी के कई कारण

लेख की एक झलक *

1-2. मत्ती 5:11 के मुताबिक जब हम पर परीक्षाएँ आती हैं, तो हमें क्या करना चाहिए?

यीशु ने वादा किया था कि जो उसके चेले बनेंगे उन्हें सच्ची खुशी मिलेगी। लेकिन उसने यह भी बताया था कि उन्हें परीक्षाओं का सामना करना पड़ेगा। (मत्ती 10:22, 23; लूका 6:20-23) यीशु के चेले होने के नाते आज हमें वह खुशी मिल रही है। लेकिन जैसे यीशु ने कहा, हम पर परीक्षाएँ भी आएँगी। हो सकता है, हमारे परिवारवाले हमारा विरोध करें, सरकारें हम पर ज़ुल्म ढाएँ, हमारे साथ काम करनेवाले या साथ पढ़नेवाले हम पर गलत काम करने का दबाव डालें। क्या यह सब सोचकर हम घबरा जाते हैं, परेशान हो जाते हैं?

2 आम तौर पर जब लोगों को सताया जाता है, तो उन्हें खुशी नहीं होती। लेकिन परमेश्‍वर का वचन बताता है कि हमें ऐसे हालात में खुश होना चाहिए। उदाहरण के लिए, यीशु के चेले याकूब ने अपनी चिट्ठी में बताया कि जब हम मुश्‍किलों से गुज़रते हैं, तो हद-से-ज़्यादा परेशान होने के बजाय हमें इसे बड़ी खुशी की बात समझनी चाहिए। (याकू. 1:2, 12) यीशु ने भी कहा कि जब हम पर ज़ुल्म ढाए जाते हैं, तो हमें खुश होना चाहिए। (मत्ती 5:11 पढ़िए।) मुश्‍किलों के बावजूद हम खुश कैसे रह सकते हैं? याकूब ने पहली सदी के मसीहियों को जो चिट्ठी लिखी, उसमें हमें इस सवाल का जवाब मिल सकता है। लेकिन सबसे पहले आइए देखते हैं कि उन मसीहियों के सामने क्या-क्या मुश्‍किलें थीं।

मसीहियों के सामने कौन-सी मुश्‍किलें आयीं?

3. जब याकूब यीशु का चेला बना, तो उसके कुछ समय बाद मसीहियों के साथ क्या हुआ?

3 यह उस समय की बात है जब यीशु का भाई याकूब चेला बना था। उसके कुछ समय बाद यरूशलेम के मसीहियों पर ज़ुल्म होने लगे। (प्रेषि. 1:14; 5:17, 18) फिर स्तिफनुस को मार डाला गया। ऐसे में कई मसीहियों को यरूशलेम छोड़कर भागना पड़ा। वे “यहूदिया और सामरिया के इलाकों में तितर-बितर हो गए।” कुछ मसीहियों को तो बहुत दूर कुप्रुस और अंताकिया तक भागना पड़ा। (प्रेषि. 7:58–8:1; 11:19) उस दौरान मसीहियों को कई तकलीफें झेलनी पड़ीं। फिर भी वे जहाँ-जहाँ गए खुशखबरी का प्रचार करते रहे। और देखते-ही-देखते रोमी साम्राज्य के कई इलाकों में मंडलियाँ बन गयीं। (1 पत. 1:1) लेकिन उनके सामने और भी बड़ी-बड़ी मुश्‍किलें आयीं।

4. पहली सदी के मसीहियों को और किन परीक्षाओं से गुज़रना पड़ा?

4 ईसवी सन्‌ 50 के आस-पास, रोमी सम्राट क्लौदियुस ने सभी यहूदियों को रोम से निकल जाने के लिए कहा। कई यहूदी मसीहियों को अपना घरबार छोड़कर दूसरी जगह बसना पड़ा। (प्रेषि. 18:1-3) करीब ईसवी सन्‌ 61 में प्रेषित पौलुस ने अपनी चिट्ठी में बताया कि मसीहियों का सरेआम मज़ाक उड़ाया गया था, उन्हें जेल में डाला गया था, उनकी चीज़ें लूटी गयी थीं। (इब्रा. 10:32-34) इसके अलावा, कुछ मसीहियों को दूसरे लोगों की तरह गरीबी और बीमारियों का भी सामना करना पड़ा।​—रोमि. 15:26; फिलि. 2:25-27.

5. हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

5 याकूब ने ईसवी सन्‌ 62 से पहले अपने नाम की चिट्ठी लिखी। उस वक्‍त वह अच्छी तरह जानता था कि भाई-बहन किन मुश्‍किलों से गुज़र रहे हैं। यहोवा की प्रेरणा से उसने इन मसीहियों को कुछ ऐसी सलाह दी जिससे वे मुश्‍किलों का सामना करते वक्‍त भी खुश रह सकते हैं। आइए हम याकूब की चिट्ठी में लिखी कुछ बातों पर चर्चा करें: याकूब किस खुशी की बात कर रहा था? किन वजहों से एक मसीही की खुशी छिन सकती है? मुश्‍किलों के बावजूद अपनी खुशी बनाए रखने में बुद्धि, विश्‍वास और हिम्मत जैसे गुण कैसे हमारी मदद करेंगे?

मसीहियों को किस बात से खुशी मिलती है?

जिस तरह हवा और बारिश लालटेन में जलनेवाली लौ बुझा नहीं सकतीं, उसी तरह मुश्‍किलें वह खुशी नहीं छीन सकतीं जो यहोवा हमें देता है (पैराग्राफ 6 देखें)

6. लूका 6:22, 23 के मुताबिक मुश्‍किलों के बावजूद एक मसीही खुश क्यों रह सकता है?

6 लोग सोचते हैं कि अगर उनकी सेहत अच्छी होगी, उनके पास बहुत पैसा होगा, उनके परिवार में शांति होगी, तभी वे खुश रहेंगे। लेकिन याकूब इस खुशी की बात नहीं कर रहा था। वह जिस खुशी की बात कर रहा था, वह हमारे हालात पर निर्भर नहीं करती। खुशी पवित्र शक्‍ति का गुण है। (गला. 5:22) ऐसी खुशी एक मसीही को तब मिलती है जब वह यहोवा को खुश करता है और यीशु की तरह बनने की कोशिश करता है। यही सच्ची खुशी है। (लूका 6:22, 23 पढ़िए; कुलु. 1:10, 11) यह खुशी एक जलती लौ की तरह है। जिस तरह हवा और बारिश लालटेन में जलनेवाली लौ को बुझा नहीं सकतीं, उसी तरह मुश्‍किलें भी वह खुशी नहीं छीन सकतीं जो यहोवा हमें देता है। चाहे हम बीमार हो जाएँ, हमारे पास पैसे न हों, लोग हमारा मज़ाक उड़ाएँ या परिवारवाले हमारा विरोध करें, तब भी हमारी खुशी बनी रहती है। यह खुशी खत्म होने के बजाय और बढ़ती जाती है। अपने विश्‍वास की वजह से जब हम मुश्‍किलें झेलते हैं, तो यह इस बात का सबूत है कि हम मसीह के सच्चे चेले हैं। (मत्ती 10:22; 24:9; यूह. 15:20) इसीलिए याकूब ने लिखा, “मेरे भाइयो, जब तुम तरह-तरह की परीक्षाओं से गुज़रो तो इसे बड़ी खुशी की बात समझो।”​—याकू. 1:2.

परीक्षाओं की तुलना उस आग से क्यों की गयी है जिसमें धातु को तपाया जाता है? (पैराग्राफ 7 देखें) *

7-8. जब हम परीक्षाओं से गुज़रते हैं, तो क्या होता है?

7 याकूब यह भी बताता है कि मसीही बड़ी-से-बड़ी मुश्‍किल भी क्यों सहते हैं। वह कहता है, “तुम्हारा परखा हुआ विश्‍वास धीरज पैदा करता है।” (याकू. 1:3) जब किसी धातु को आग में तपाकर ठंडा किया जाता है, तो वह और मज़बूत हो जाता है। परीक्षाओं की तुलना आग से की जा सकती है। जब हम परीक्षाओं से गुज़रते हैं, तो हमारा विश्‍वास और मज़बूत हो जाता है। इसलिए याकूब ने लिखा, “धीरज को अपना काम पूरा करने दो ताकि तुम सब बातों में खरे और बेदाग पाए जाओ।” (याकू. 1:4) जब हम इस बात को समझेंगे कि परीक्षाओं से हमारा विश्‍वास और मज़बूत होगा, तो हम उन्हें खुशी-खुशी सह पाएँगे।

8 याकूब ने अपनी चिट्ठी में कुछ ऐसे हालात का भी ज़िक्र किया जिनमें हमारी खुशी छिन सकती है। वे कौन-से हालात हैं और उनका सामना करने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

खुशी बरकरार रखने के लिए क्या करें?

9. हमें बुद्धि की ज़रूरत क्यों है?

9 जब हमें पता न हो कि क्या करना है।  जब हम किसी परीक्षा से गुज़रते हैं, तो उस वक्‍त हम ऐसे फैसले करना चाहते हैं जिससे यहोवा खुश हो, भाई-बहनों की हिम्मत बढ़े और हम यहोवा के वफादार बने रहें। (यिर्म. 10:23) लेकिन सही फैसले करने के लिए हमें बुद्धि चाहिए। क्योंकि अगर हमें समझ में न आए कि हमें करना क्या है, तो हम बेबस महसूस करेंगे और हमारी खुशी कम हो जाएगी।

10. याकूब 1:5 के मुताबिक बुद्धि पाने के लिए हमें क्या करना होगा?

10 क्या करें? यहोवा से बुद्धि माँगिए।  अगर हम खुशी से मुश्‍किलों का सामना करना चाहते हैं, तो सबसे पहले हमें बुद्धि के लिए यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए। तब हम सही फैसले कर पाएँगे। (याकूब 1:5 पढ़िए।) अगर हमें लगे कि यहोवा तुरंत हमारी प्रार्थनाओं का जवाब नहीं दे रहा है, तो हमें क्या करना चाहिए? याकूब ने कहा कि हमें परमेश्‍वर से बुद्धि ‘माँगते रहना’ चाहिए। जब हम बार-बार यहोवा से प्रार्थना करते हैं, तो वह हमसे चिढ़ता नहीं है। हमारा पिता हमें “उदारता से” बुद्धि देता है ताकि हम परीक्षाओं का सामना कर सकें। (भज. 25:12, 13) यहोवा अच्छी तरह जानता है कि हम किन परीक्षाओं से गुज़र रहे हैं। हमें तकलीफ में देखकर उसे भी तकलीफ होती है और वह हमारी मदद करने के लिए तैयार रहता है। यह जानकर सच में हमें बहुत खुशी होती है। लेकिन यहोवा हमें बुद्धि कैसे देता है?

11. बुद्धि पाने के लिए हमें और क्या करना चाहिए?

11 यहोवा अपने वचन बाइबल के ज़रिए हमें बुद्धि देता है। (नीति. 2:6) बुद्धि पाने के लिए हमें बाइबल और दूसरे प्रकाशनों का अध्ययन करना होगा। लेकिन सिर्फ जानकारी लेना काफी नहीं है, हमें उसके मुताबिक काम भी करना है। याकूब ने लिखा, “वचन पर चलनेवाले बनो, न कि सिर्फ सुननेवाले।” (याकू. 1:22) जब हम बाइबल में दी परमेश्‍वर की सलाह मानते हैं, तो हम शांति कायम करनेवाले, लिहाज़ करनेवाले और दयालु बनते हैं। (याकू. 3:17) अगर हममें ये गुण होंगे, तो चाहे हम पर कैसी भी मुश्‍किलें आएँ, हम उनका सामना कर पाएँगे और अपनी खुशी भी नहीं खोएँगे।

12. बाइबल का अच्छे से अध्ययन करना क्यों ज़रूरी है?

12 परमेश्‍वर का वचन एक आईने की तरह है। इसकी मदद से हम जान पाते हैं कि हममें क्या कमी है और हमें क्या सुधार करना है। (याकू. 1:23-25) हो सकता है, हमें बहुत जल्दी गुस्सा आता हो। परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन करने से हमें एहसास होता है कि हमें अपने गुस्से पर काबू करना है। यहोवा की मदद से हम शांत रहना सीखते हैं, अपने गुस्से पर काबू करना सीखते हैं। इसका फायदा यह होगा कि जब कोई हमें भड़काएगा, तो हम शांत रहेंगे। जब हम तनाव-भरे हालात का सामना करेंगे, तो हम अपना आपा नहीं खोएँगे। शांत रहने से हम सोच-समझकर फैसले कर पाएँगे। (याकू. 3:13) सच में, बाइबल का अच्छे से अध्ययन करना कितना ज़रूरी है!

13. हमें बाइबल में दिए लोगों के उदाहरणों पर क्यों ध्यान देना चाहिए?

13 कभी-कभी गलती करने के बाद ही हमें एहसास होता है कि हमें वह काम नहीं करना चाहिए था। लेकिन खुद गलती करके सीखने से अच्छा है कि हम दूसरों से सीखें। उनके अच्छे कामों और उनकी गलतियों से सीखकर हम बुद्धिमान बन सकते हैं। इसीलिए याकूब ने अब्राहम, राहाब, अय्यूब और एलियाह जैसे लोगों के उदाहरणों पर ध्यान देने का बढ़ावा दिया। (याकू. 2:21-26; 5:10, 11, 17, 18) इन वफादार सेवकों के सामने ऐसी मुश्‍किलें आयीं जो उनकी खुशी छीन सकती थीं। पर यहोवा की मदद से वे धीरज से इन मुश्‍किलों का सामना कर पाए। उसकी मदद से हम भी ऐसा कर सकते हैं।

14-15. जब हमारे मन में सवाल उठते हैं, तो हमें उन्हें नज़रअंदाज़ क्यों नहीं करना चाहिए?

14 जब हमारे मन में शक पैदा हों।  हो सकता है, हमें बाइबल में बतायी कुछ बातें समझ न आए या यहोवा ने हमारी प्रार्थनाओं का उस तरह जवाब न दिया हो जिस तरह हमने सोचा था। ऐसे में हमारे मन में सवाल उठ सकते हैं। अगर हम इन सवालों को नज़रअंदाज़ कर दें, तो ये हमारा विश्‍वास कमज़ोर कर सकते हैं। और यहोवा के साथ हमारा रिश्‍ता खराब कर सकते हैं। (याकू. 1:7, 8) यहाँ तक कि भविष्य की हमारी आशा भी धुँधली पड़ सकती है।

15 प्रेषित पौलुस ने आशा की तुलना जहाज़ के लंगर से की। (इब्रा. 6:19) लंगर जहाज़ को तूफान में स्थिर रखता है ताकि वह चट्टानों से टकराकर डूब न जाए। लंगर तभी काम आएगा, जब उससे जुड़ी ज़ंजीर मज़बूत हो। लेकिन अगर उस ज़ंजीर पर ज़ंग लगा हो, तो वह कमज़ोर होकर टूट सकती है। शक भी ज़ंग की तरह हमारे विश्‍वास को कमज़ोर कर सकता है। अगर एक व्यक्‍ति के मन में शक हो और उसने उसे दूर न किया हो, तो वह परीक्षाओं के दौरान यहोवा के वादों पर विश्‍वास नहीं कर पाएगा। और अगर हमारा विश्‍वास कमज़ोर पड़ गया तो हमारी आशा भी धुँधली हो जाएगी। याकूब ने कहा था, “जो शक करता है वह समुंदर की लहरों जैसा होता है जो हवा से यहाँ-वहाँ उछलती रहती हैं।” (याकू. 1:6) ऐसा व्यक्‍ति शायद कभी खुश न रह पाए!

16. अपना शक दूर करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

16 क्या करें? शक दूर कीजिए और अपना विश्‍वास मज़बूत कीजिए।  टाल-मटोल मत कीजिए। पुराने ज़माने में एलियाह ने यहोवा के लोगों से कहा, “तुम लोग कब तक दो विचारों में लटके रहोगे? अगर यहोवा सच्चा परमेश्‍वर है तो उसे मानो और अगर बाल सच्चा परमेश्‍वर है तो उसे मानो!” (1 राजा 18:21) हमें भी तुरंत कदम उठाना है। हमें खोजबीन करनी है ताकि हमें यकीन हो जाए कि यहोवा ही सच्चा परमेश्‍वर है, बाइबल उसकी किताब है और यहोवा के साक्षी उसके लोग हैं। (1 थिस्स. 5:21) तभी हम अपने शक को दूर कर पाएँगे और हमारा विश्‍वास मज़बूत होगा। हम चाहें तो प्राचीनों की भी मदद ले सकते हैं। अगर हम खुशी-खुशी यहोवा की सेवा करना चाहते हैं, तो हमें तुरंत कदम उठाना चाहिए।

17. अगर हम हिम्मत हार बैठें तो क्या हो सकता है? 

17 जब हम निराश हो जाते हैं।  परमेश्‍वर का वचन कहता है, “मुश्‍किल घड़ी में अगर तू निराश हो जाए, तो तुझमें बहुत कम ताकत रह जाएगी।” (नीति. 24:10) जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “निराश हो जाए” किया गया है, कई बार उसका मतलब “हिम्मत हारना” भी हो सकता है। अगर हम हिम्मत हार बैठें, तो हमारी खुशी भी छिन जाएगी।

18. धीरज धरने का क्या मतलब है?

18 क्या करें? भरोसा रखिए कि यहोवा आपको धीरज धरने की हिम्मत देगा।  परीक्षाओं के दौरान धीरज धरने के लिए हममें हिम्मत होना ज़रूरी है। (याकू. 5:11) याकूब ने जिस शब्द का अनुवाद “धीरज धरना” किया है, उससे मन में एक ऐसे व्यक्‍ति की तसवीर आती है, जो अपनी जगह से टस-से-मस नहीं होता। एक सैनिक भी युद्ध के मैदान में हिम्मत से डटा रहता है। जब दुश्‍मन हमला करते हैं, तो वह डरता नहीं है और पीठ दिखाकर नहीं भागता।

19. हम पौलुस से क्या सीख सकते हैं?

19 प्रेषित पौलुस हिम्मत रखने और धीरज धरने की अच्छी मिसाल था। कभी-कभार उसे भी लगा कि वह कमज़ोर है। मगर उसने यहोवा पर भरोसा रखा और उसे धीरज धरने की ताकत मिली। (2 कुरिं. 12:8-10; फिलि. 4:13) अगर हम भी यह मानें कि हमें यहोवा की मदद की ज़रूरत है, तो वह हमें हिम्मत और ताकत देगा।​—याकू. 4:10.

परमेश्‍वर के करीब रहिए और अपनी खुशी बनाए रखिए

20-21. हम किस बात का यकीन रख सकते हैं?

20 हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि यहोवा सज़ा देने के लिए हम पर परीक्षाएँ नहीं लाता। याकूब कहता है, “जब किसी की परीक्षा हो रही हो तो वह यह न कहे, ‘परमेश्‍वर मेरी परीक्षा ले रहा है।’ क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्‍वर की परीक्षा ली जा सकती है, न ही वह खुद बुरी बातों से किसी की परीक्षा लेता है।” (याकू. 1:13) जब हमें इस बात का यकीन होगा, तो हम अपने पिता यहोवा के और करीब आएँगे।​—याकू. 4:8.

21 यहोवा बदलता नहीं है। (याकू. 1:17) मुश्‍किलों के दौरान उसने पहली सदी के मसीहियों की मदद की और वह आज हमारी भी मदद करेगा। हमें गिड़गिड़ाकर यहोवा से बुद्धि, विश्‍वास और हिम्मत माँगनी चाहिए। वह हमारी बिनती ज़रूर सुनेगा। हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा मुश्‍किलों के दौरान खुश रहने में हमारी मदद करेगा।

गीत 128 हमें अंत तक धीरज रखना है

^ पैरा. 5 याकूब की किताब में ऐसी ढेर सारी सलाह दी गयी है जो मुश्‍किलों को पार करने में हमारी मदद करेंगी। इस लेख में हम उसकी दी कुछ सलाह पर गौर करेंगे। उन्हें मानने से हम मुश्‍किलों के बावजूद यहोवा की सेवा खुशी-खुशी कर पाएँगे।

^ पैरा. 59 तसवीर के बारे में: पुलिसवाले एक भाई को उसके घर से गिरफ्तार करके ले जा रहे हैं। पत्नी और बेटी उसे जाते हुए देख रही हैं। जब भाई जेल में है, तो दूसरे भाई-बहन उसकी पत्नी और बेटी के साथ मिलकर उपासना कर रहे हैं। माँ-बेटी इस मुश्‍किल दौर में धीरज रखने के लिए बार-बार यहोवा से ताकत माँग रही हैं। यहोवा उन्हें मन की शांति और हिम्मत देता है। इस वजह से उनका विश्‍वास और मज़बूत होता है और वे खुशी से इस मुश्‍किल दौर का सामना कर पाती हैं।