अध्ययन लेख 7
“बुद्धिमान की बातों पर कान लगा”
“बुद्धिमान की बातों पर कान लगा।”—नीति. 22:17.
गीत 123 परमेश्वर के संगठन का कानून दिल से मानें
एक झलक *
1. (क) हमें कब-कब सलाह की ज़रूरत पड़ती है? (ख) हमें सलाह क्यों मानना चाहिए?
हम सबको समय-समय पर सलाह की ज़रूरत पड़ती है। कभी-कभी हम खुद आगे आकर दूसरों से सलाह लेते हैं, तो कभी-कभी दूसरे हमें सलाह देते हैं। जैसे, जब कोई देखता है कि हम कोई “गलत कदम” उठानेवाले हैं, तो वह हमें बताता है। (गला. 6:1) या जब हमसे कोई बड़ी गलती हो जाती है, तो प्राचीन हमें सलाह देकर सुधारते हैं। चाहे हमें किसी भी वजह से सलाह मिले, हमें उसे मानना चाहिए। इससे हमारा भला होगा और हमारी जान भी बच सकती है।—नीति. 6:23.
2. नीतिवचन 12:15 के मुताबिक, हमें सलाह क्यों माननी चाहिए?
2 इस लेख की मुख्य आयत में लिखा है कि हम ‘बुद्धिमान की बातों पर कान लगाएँ।’ (नीति. 22:17) ऐसा कोई भी इंसान नहीं जो सबकुछ जानता हो। कोई-न-कोई ऐसा ज़रूर होगा, जो हमसे ज़्यादा बुद्धिमान होगा, यानी जो हमसे ज़्यादा जानता होगा या हमसे ज़्यादा तजुरबा रखता होगा। (नीतिवचन 12:15 पढ़िए।) इसलिए जब हम दूसरों की सलाह मानते हैं, तो इससे पता चलता है कि हम नम्र हैं। हम अपनी हद पहचानते हैं और यह भी जानते हैं कि बिना किसी की मदद के हम अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर सकते। बुद्धिमान राजा सुलैमान ने परमेश्वर की प्रेरणा से लिखा, “बहुतों की सलाह से कामयाबी मिलती है।”—नीति. 15:22.
आपको किस तरीके से मिलनेवाली सलाह मानना मुश्किल लगता है? (पैराग्राफ 3-4)
3. हमें किन तरीकों से सलाह मिल सकती है?
3 हमें दो तरीकों से सलाह मिल सकती है। पहला, जब हम बाइबल या कोई प्रकाशन में कुछ पढ़ते हैं, या सभाओं में कुछ सुनते हैं, तो कई बार हम खुद-ब-खुद समझ जाते हैं कि हमें अपनी ज़िंदगी में सुधार करना है। फिर उसके मुताबिक हम अपनी सोच और काम बदलते हैं। (इब्रा. 4:12) दूसरा, कोई प्राचीन या अनुभवी भाई या बहन शायद हमें बताए कि हमें किस मामले में सुधार करना है। जब कोई हमें बाइबल से सलाह देता है, तो वह इसलिए देता है क्योंकि वह हमसे प्यार करता है। इसलिए हमें उसका एहसानमंद होना चाहिए और उसकी सलाह माननी चाहिए।
4. जैसा सभोपदेशक 7:9 में लिखा है, सलाह मिलने पर हमें क्या नहीं करना चाहिए?
4 जब कोई हमें सलाह देता है, तो शायद हमें उसे मानने में मुश्किल हो। हमें शायद बुरा भी लग जाए। ऐसा क्यों होता है? हालाँकि हम यह बात मानते हैं कि हम अपरिपूर्ण हैं और हमसे गलतियाँ हो जाती हैं, लेकिन जब कोई दूसरा हमारी गलती बताता है और हमें सलाह देता है, तो शायद हमें अच्छा न लगे। (सभोपदेशक 7:9 पढ़िए।) हो सकता है हम सफाई देने लगें, सलाह देनेवाले के इरादे पर शक करने लगें या उसका सलाह देने का तरीका हमें पसंद न आए। हम शायद उसमें नुक्स भी निकालने लगें और सोचने लगें, ‘वह कौन होता है मुझे सलाह देनेवाला? उसमें भी तो कमियाँ हैं!’ फिर शायद हम उसकी सलाह अनसुनी कर दें या किसी ऐसे व्यक्ति से सलाह लें, जो वही कहेगा जो हम सुनना चाहते हैं।
5. इस लेख में हम किस बारे में चर्चा करेंगे?
5 इस लेख में हम बाइबल से दो तरह के लोगों के बारे में चर्चा करेंगे। एक, जिन्होंने सलाह मानी और दूसरे, जिन्होंने नहीं मानी। हम यह भी जानेंगे कि सलाह मानने के लिए हमें क्या करना होगा और ऐसा करने के क्या फायदे हैं।
उन्होंने सलाह नहीं मानी
6. (क) जब लोगों ने रहूबियाम से एक गुज़ारिश की, तो उसने क्या किया? (ख) इस घटना से हम क्या सीखते हैं?
6 आइए रहूबियाम के उदाहरण पर गौर करें। जब वह इसराएल का राजा बना, तो कुछ लोग उसके पास आए। उन्होंने रहूबियाम से गुज़ारिश की कि उसके पिता सुलैमान ने उन पर जो भारी बोझ लाद दिया था, उसे वह कम कर दे। तब रहूबियाम ने एक अच्छा काम किया। उसने इसराएल के बुज़ुर्गों से सलाह ली। उन्होंने कहा कि उसे लोगों की बात मान लेनी चाहिए, तब वे हमेशा उसके सेवक बने रहेंगे। (1 राजा 12:3-7) लेकिन रहूबियाम को शायद उनकी सलाह अच्छी नहीं लगी। इसलिए उसने उन आदमियों से सलाह ली, जो उसके साथ पले-बढ़े थे। उनकी उम्र 40 के आस-पास रही होगी, इसलिए उन्हें ज़िंदगी का थोड़ा-बहुत तजुरबा था। (2 इति. 12:13) लेकिन उस वक्त उन्होंने रहूबियाम को गलत सलाह दी। उन्होंने कहा कि वह लोगों का बोझ बढ़ा दे। (1 राजा 12:8-11) रहूबियाम को दो अलग-अलग सलाह मिलीं। वह चाहता तो इस बारे में यहोवा से प्रार्थना करके पूछ सकता था। लेकिन ऐसा करने के बजाय उसने अपने दोस्तों की सुनी, क्योंकि उसे उनकी सलाह ज़्यादा अच्छी लगी। इससे राजा और प्रजा, दोनों का नुकसान हुआ। उसी तरह, हमें भी शायद ऐसी सलाह मिले जो हमें पसंद न आए। लेकिन अगर वह बाइबल से है, तो हमें उसे मान लेना चाहिए।
7. (क) राजा उज्जियाह ने क्या किया? (ख) इस घटना से हम क्या सीखते हैं?
7राजा उज्जियाह ने भी सलाह नहीं मानी। वह धूप जलाने के लिए यहोवा के मंदिर में घुस गया। यहोवा के याजकों ने उससे कहा, “यहोवा के लिए धूप जलाना तेरा काम नहीं है! यह काम सिर्फ याजकों का है।” तब उज्जियाह ने क्या किया? अगर वह नम्र होता और उनकी सलाह मानकर तुरंत वहाँ से चला जाता, तो शायद यहोवा उसे माफ कर देता। “मगर उज्जियाह . . . उन याजकों पर भड़क उठा।” उसने उनकी सलाह क्यों नहीं मानी? उसे लगा होगा कि वह राजा है, इसलिए वह जो चाहे कर सकता है। लेकिन यहोवा की नज़र में उसकी सोच गलत थी। इसलिए उसने उज्जियाह की गुस्ताखी की वजह से उसे कोढ़ी बना दिया और वह “अपनी मौत तक कोढ़ी रहा।” (2 इति. 26:16-21) इस घटना से हम सीखते हैं कि संगठन में हमें जो भी ज़िम्मेदारी मिले, अगर हम बाइबल से मिली सलाह नहीं मानेंगे, तो हम पर यहोवा की मंज़ूरी नहीं रहेगी।
उन्होंने सलाह मानी
8. सलाह मिलने पर अय्यूब ने क्या किया?
8 बाइबल में कुछ ऐसे लोगों के भी उदाहरण दिए हैं, जिन्होंने सलाह मानी और उन्हें आशीषें मिलीं। उनमें से एक है, अय्यूब। हालाँकि वह परमेश्वर से प्यार करता था और उसे खुश करना चाहता था, लेकिन वह परिपूर्ण नहीं था। इसलिए जब उस पर एक-के-बाद-एक मुश्किलें आयीं, तो उसने कुछ ऐसी बातें कहीं, जिनसे पता चला कि उसकी सोच सही नहीं है। तब एलीहू और यहोवा ने उसे सलाह दी। अय्यूब ने क्या किया? वह नम्र था, इसलिए उसने सलाह मानी। उसने कहा, “[मैंने] बिना सोचे-समझे बातें कीं, . . . मैं अपने शब्द वापस लेता हूँ, धूल और राख में बैठकर पश्चाताप करता हूँ।” बदले में यहोवा ने उसे ढेरों आशीषें दीं।—अय्यू. 42:3-6, 12-17.
9. (क) सलाह मिलने पर मूसा ने क्या किया था? (ख) उससे हम क्या सीखते हैं?
9 कोई बड़ी गलती करने के बाद जब हमें सलाह मिलती है, तो हमें उसे मान लेना चाहिए। इस मामले में मूसा ने एक अच्छा उदाहरण रखा। एक बार उसने गुस्से में आकर यहोवा की मरज़ी पूरी नहीं की। इस वजह से यहोवा ने उसे वादा किए गए देश में जाने नहीं दिया। (गिन. 20:1-13) मूसा ने यहोवा से बिनती की कि वह अपना फैसला बदल दे। लेकिन यहोवा ने उससे कहा, “आइंदा कभी मुझसे इस बारे में बात मत करना।” (व्यव. 3:23-27) यहोवा की बात सुनकर मूसा नाराज़ नहीं हुआ। उसने यहोवा का फैसला मान लिया और यहोवा ने उसे इसराएल की अगुवाई करने दी। (व्यव. 4:1) अय्यूब और मूसा, दोनों ने सलाह मानने के मामले में एक अच्छी मिसाल रखी। अय्यूब ने बहाने नहीं बनाए, बल्कि अपनी सोच बदली। मूसा की बड़ी इच्छा थी कि वह वादा किए गए देश में जाए, लेकिन उसे यह मौका नहीं मिला। इसके बावजूद वह आखिरी साँस तक यहोवा का वफादार रहा।
10. (क) नीतिवचन 4:10-13 में सलाह मानने के कौन-से फायदे बताए हैं? (ख) कुछ भाई-बहनों ने सलाह मिलने पर क्या किया?
10 जब हम मूसा और अय्यूब जैसे वफादार लोगों की तरह सलाह मानते हैं, तो हमें फायदा होता है। (नीतिवचन 4:10-13 पढ़िए।) बहुत-से भाई-बहनों ने ऐसा ही किया। गौर कीजिए कि कांगो में रहनेवाले इमैनुएल ने क्या कहा। उसने कहा, “मेरी मंडली के कुछ भाइयों ने ध्यान दिया कि मैं कुछ ऐसा करनेवाला हूँ, जिससे यहोवा के साथ मेरा रिश्ता टूट सकता है। इसलिए उन्होंने मेरी मदद की। मैंने उनकी सलाह मानी और मैं कई मुश्किलों से बच पाया।” * कनाडा में रहनेवाली एक पायनियर, मेगन कहती है, “हालाँकि कई बार सलाह मुझे अच्छी नहीं लगती, लेकिन वह मेरे भले के लिए होती है।” क्रोएशिया का रहनेवाला मार्को कहता है, “मुझे इस बात का दुख है कि मुझसे मेरी ज़िम्मेदारी ले ली गयी। लेकिन मुझे इस बात का एहसास भी है कि उस वक्त मुझे जो सलाह मिली, उससे मैं यहोवा के साथ अपना रिश्ता दोबारा जोड़ पाया।”
11. सलाह मानने के बारे में भाई कार्ल क्लाइन ने क्या कहा?
11 भाई कार्ल क्लाइन को भी, जो शासी निकाय के सदस्य थे, सलाह मानने से फायदा हुआ। अपनी जीवन कहानी में उन्होंने बताया कि वे और भाई जोसफ एफ. रदरफर्ड बहुत अच्छे दोस्त थे। लेकिन एक बार भाई रदरफर्ड ने उन्हें किसी बात के लिए सख्ती से सलाह दी। भाई कार्ल को उनकी बात अच्छी नहीं लगी। उन्होंने कहा, “अगली बार जब [भाई रदरफर्ड] ने मुझे देखा, तो उन्होंने खुशी-खुशी कहा, ‘हैलो कार्ल!’ लेकिन मैं अब भी नाराज़ था। इसलिए मैंने आधे-अधूरे मन से उन्हें जवाब दिया। * (इफि. 4:25-27) भाई कार्ल ने भाई रदरफर्ड की बात मानी और वे हमेशा दोस्त रहे।
उन्होंने कहा, ‘कार्ल खबरदार रहो! शैतान तुम्हारे पीछे लगा है।’ शर्म के मारे मैंने कहा, ‘नहीं भाई, मैं आपसे नाराज़ नहीं हूँ।’ पर वे अच्छी तरह जानते थे कि मैं नाराज़ हूँ। इसलिए उन्होंने दोबारा कहा, ‘ठीक है। लेकिन बस खबरदार रहो! शैतान तुम्हारे पीछे लगा है।’ वे बिलकुल सही थे! जब एक भाई हमसे कुछ कह देता है, खासकर कोई ऐसी बात जिसे कहने का उसे पूरा हक है, और हम अपने दिल में उस भाई के लिए नाराज़गी पालने लगते हैं, तो हम खुद को शैतान के झाँसे में आने देते हैं।”सलाह मानने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
12. सलाह मानने के लिए नम्र रहना क्यों ज़रूरी है? (भजन 141:5)
12 सलाह मानने के लिए हमें क्या करना चाहिए? हमें नम्र रहना चाहिए और याद रखना चाहिए कि हम सब अपरिपूर्ण हैं और कई बार बिना सोचे-समझे कुछ कर बैठते हैं। जैसा हमने पहले सीखा, अय्यूब की सोच गलत थी, लेकिन बाद में उसने अपनी सोच बदली और यहोवा ने उसे आशीषें दीं। वह अपनी सोच क्यों बदल पाया? क्योंकि वह नम्र था। और इसी वजह से वह एलीहू की बात मान पाया, जबकि एलीहू उससे उम्र में बहुत छोटा था। (अय्यू. 32:6, 7) कई बार शायद हमें लगे कि हमें बेवजह सलाह दी जा रही है या शायद कोई ऐसा व्यक्ति हमें सलाह दे, जो हमसे बहुत छोटा है। ऐसे में अगर हम नम्र होंगे, तो हम सलाह मान पाएँगे। कनाडा में रहनेवाला एक प्राचीन कहता है, “बिना दूसरों की सलाह के, हम तरक्की नहीं कर पाएँगे।” इस भाई ने जो कहा, सही कहा! हम सबको तरक्की करनी है, यानी पवित्र शक्ति के फल के गुण बढ़ाने हैं और खुशखबरी का अच्छा प्रचारक और शिक्षक बनना है। इसलिए हमें सलाह की ज़रूरत है।—भजन 141:5 पढ़िए।
13. हमें सलाह के बारे में कौन-सी बात याद रखनी चाहिए?
13हमें याद रखना चाहिए कि सलाह परमेश्वर के प्यार का सबूत है। यहोवा हमारी भलाई चाहता है। (नीति. 4:20-22) वह हमसे बहुत प्यार करता है। इसलिए वह बाइबल, प्रकाशनों और दूसरे भाई-बहनों के ज़रिए हमें सलाह देता है। वह “हमारे फायदे के लिए हमें सुधारता है।”—इब्रा. 12:9, 10.
14. जब हमें सलाह मिलती है, तो हमें किस बात पर ध्यान देना चाहिए?
14हमें सलाह पर ध्यान देना चाहिए, सलाह देने के तरीके पर नहीं। कई बार शायद हमें लगे कि हमें जिस तरीके से सलाह दी गयी, वह सही नहीं है। यह सच है कि जो व्यक्ति सलाह देता है, उसे इस तरह सलाह देनी चाहिए कि सामनेवाले को उसे मानने में आसानी हो। * (गला. 6:1) लेकिन अगर हमें सलाह मिल रही है, तो हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि हमें क्या बताया जा रहा है। हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘भले ही मुझे सलाह देने का उसका तरीका अच्छा नहीं लगा, लेकिन क्या उसकी बात में सच्चाई है? क्या मैं उसकी खामियाँ नज़रअंदाज़ करके सलाह मान सकता हूँ?’ समझदारी इसी में होगी कि हम सलाह मानने की पूरी कोशिश करें।—नीति. 15:31.
सलाह लीजिए, फायदा पाइए
15. हमें दूसरों से सलाह क्यों लेनी चाहिए?
15 बाइबल में बढ़ावा दिया गया है कि हम खुद आगे आकर दूसरों से सलाह लें। नीतिवचन 13:10 में लिखा है, “बुद्धिमान वही है जो सलाह-मशविरा करता है।” यह बात कितनी सच है! जो लोग दूसरों से सलाह लेते हैं, वे अकसर अच्छे फैसले कर पाते हैं और यहोवा की ज़्यादा सेवा कर पाते हैं। इसलिए खुद आगे बढ़कर दूसरों से सलाह लीजिए। इस बात का इंतज़ार मत कीजिए कि वे आपको सलाह दें।
एक जवान बहन एक बुज़ुर्ग बहन से सलाह क्यों ले रही है? (पैराग्राफ 16)
16. हम किन मामलों में दूसरों से सलाह ले सकते हैं?
16 हम भाई-बहनों से कब-कब सलाह ले सकते हैं? आइए कुछ हालात पर गौर करें। (1) एक बहन एक अनुभवी प्रचारक से कहती है कि वह उसके बाइबल अध्ययन पर आए। अध्ययन के बाद वह उससे पूछती है कि वह और अच्छी तरह कैसे सिखा सकती है। (2) एक अविवाहित बहन कोई कपड़ा खरीदना चाहती है। लेकिन उससे पहले वह एक अनुभवी बहन से राय लेती है। (3) एक भाई पहली बार जन भाषण देनेवाला है। वह एक अनुभवी भाई से कहता है कि वह उसका भाषण सुने और बताए कि उसे किन बातों में सुधार करना है। जो भाई सालों से भाषण दे रहे हैं, वे भी अच्छे वक्ताओं से सलाह ले सकते हैं और उनकी सलाह मान सकते हैं।
17. सलाह मिलने पर हमें क्या करना चाहिए?
17 आनेवाले वक्त में हो सकता है कि हमें किसी-न-किसी तरीके से सलाह मिले। जब ऐसा हो तो आइए हम इस लेख से सीखी बातें याद रखें। जैसे, हमें नम्र होना चाहिए। हमें सलाह देने के तरीके पर नहीं बल्कि सलाह पर ध्यान देना चाहिए। और जो भी सलाह मिले, हमें उसे मानना चाहिए। हममें से कोई भी जन्म से बुद्धिमान नहीं है। लेकिन बाइबल में लिखा है कि अगर हम ‘सलाह को सुनेंगे और शिक्षा कबूल करेंगे, तो हम बुद्धिमान बनेंगे।’—नीति. 19:20.
गीत 124 हमेशा वफादार
^ पैरा. 5 यहोवा के लोग जानते हैं कि बाइबल से मिलनेवाली सलाह मानना कितना ज़रूरी है। लेकिन ऐसा करना हमेशा आसान नहीं होता। इसकी क्या वजह है? कौन-सी बातें ध्यान में रखने से हम सलाह मान पाएँगे?
^ पैरा. 10 कुछ नाम बदल दिए गए हैं।
^ पैरा. 14 अगले लेख में हम जानेंगे कि सलाह देनेवाले सोच-समझकर और प्यार से सलाह कैसे दे सकते हैं।