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अध्ययन लेख 8

गीत 130 दिल से माफ करें

यहोवा ने आपको माफ किया है—क्या आप दूसरों को माफ करेंगे?

यहोवा ने आपको माफ किया है—क्या आप दूसरों को माफ करेंगे?

“जैसे यहोवा ने तुम्हें दिल खोलकर माफ किया है, तुम भी वैसा ही करो।”कुलु. 3:13.

क्या सीखेंगे?

इस लेख में हम जानेंगे कि जब कोई हमारा दिल दुखाता है, तो उसे माफ करने के लिए हम क्या कर सकते हैं।

1-2. (क) हमें खासकर कब दूसरों को माफ करना मुश्‍किल लग सकता है? (ख) माफ करने के मामले में बहन डेनीस ने क्या बढ़िया मिसाल रखी?

 क्या आपको दूसरों को माफ करना मुश्‍किल लगता है? हम सबको मुश्‍किल लगता है, खासकर तब जब कोई हमसे कुछ ऐसा कह देता है या कर देता है जिससे हमें बहुत दुख पहुँचता है। क्या ऐसे में हम अपनी नाराज़गी छोड़कर दूसरों को माफ कर सकते हैं? बिलकुल कर सकते हैं! ज़रा बहन डेनीस a के उदाहरण पर ध्यान दीजिए जो माफ करने के मामले में हम सबके लिए एक बढ़िया मिसाल हैं। 2017 में बहन अपने परिवार के साथ यहोवा के साक्षियों का नया विश्‍व मुख्यालय देखने गयीं। लौटते वक्‍त एक आदमी अपनी कार सँभाल नहीं पाया और उसने बहन की कार को टक्कर मार दी। बहन बेहोश हो गयीं। जब उन्हें होश आया, तो उन्हें पता चला कि उनके बच्चे बुरी तरह घायल हो गए हैं और उनके पति ब्रायन की मौत हो गयी है। उस पल को याद करते हुए बहन कहती हैं, “जब मैंने यह सुना, तो मैं पूरी तरह टूट गयी। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ।” बाद में बहन को पता चला कि एक्सीडेंट इसलिए नहीं हुआ था कि वह आदमी नशे में था या उसका ध्यान भटक गया था। तब बहन ने यहोवा से प्रार्थना की और मन की शांति माँगी ताकि वे खुद को सँभाल सकें।

2 उस आदमी को गिरफ्तार कर लिया गया, क्योंकि वह खून का दोषी था। उस पर मुकदमा चलाया गया और अगर वह दोषी साबित हो जाता, तो उसे जेल हो सकती थी। बहन को बताया गया कि उस आदमी को सज़ा मिलेगी या नहीं, यह उनकी गवाही पर निर्भर करता है। बहन डेनीस बताती हैं, “मुझे अपनी ज़िंदगी की सबसे दर्दनाक घड़ी को दोबारा याद करना था। मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे ज़ख्मों पर लगे टाँके खोल दिए हैं और उन पर ढेर सारा नमक डाल दिया है।” कुछ हफ्तों बाद बहन अदालत में बैठी थीं और उन्हें उस आदमी के सामने गवाही देनी थी जिसकी वजह से उनकी पूरी ज़िंदगी उजड़ गयी थी। तब बहन ने क्या कहा? उन्होंने जज से गुज़ारिश की कि वह उस आदमी पर दया करे। b यह सुनकर जज रोने लगा और उसने कहा, “मैं पिछले 25 साल से जज हूँ। लेकिन मैंने कभी ऐसा नहीं देखा कि जिनके साथ गलत हुआ है, वे आरोपी के लिए दया की भीख माँग रहे हैं। किसी आरोपी के लिए इतना प्यार तो मैं पहली बार देख रहा हूँ।”

3. बहन डेनीस उस आदमी को क्यों माफ कर पायीं?

3 बहन डेनीस ने उस आदमी की इतनी बड़ी गलती माफ कर दी। पर क्यों? उन्होंने इस बारे में सोचा कि यहोवा ने हमें किस हद तक माफ किया है, इसलिए वे ऐसा कर पायीं। (मीका 7:18) जब हम भी इस बारे में सोचेंगे कि यहोवा ने हमें किस हद तक माफ किया है, तो हमारा भी दिल करेगा कि हम दूसरों को माफ करें।

4. यहोवा हमसे क्या चाहता है? (इफिसियों 4:32)

4 यहोवा ने हमें दिल खोलकर माफ किया है और वह चाहता है कि हम भी दूसरों को इसी तरह माफ करें। (इफिसियों 4:32 पढ़िए।) वह चाहता है कि हम उन्हें माफ करने के लिए तैयार रहें जो हमें दुख पहुँचाते हैं। (भज. 86:5; लूका 17:4) इस लेख में हम तीन बातों पर चर्चा करेंगे, जिन्हें ध्यान में रखने से हम दिल खोलकर दूसरों को माफ कर पाएँगे।

अपना दुख मत दबाइए

5. जब कोई हमें बहुत दुख पहुँचाता है, तो हमें कैसा लगता है? (नीतिवचन 12:18)

5 कई बार लोग ऐसा कुछ कह देते हैं या कर देते हैं जिससे हमें बहुत दुख पहुँचता है। और अगर वह व्यक्‍ति हमारा दोस्त हो या हमारे परिवार का सदस्य हो, तब तो और भी ज़्यादा दुख पहुँचता है। (भज. 55:12-14) कभी-कभी तो इतना दर्द होता है जैसे किसी ने छुरा भोंक दिया हो। (नीतिवचन 12:18 पढ़िए।) अगर हम अपने दुख को यूँ ही दबा दें और सोचें कि कुछ नहीं हुआ है, सबकुछ ठीक है, तो इससे हमारा दुख कम नहीं होगा। यह तो ऐसा होगा कि हमें जो छुरा भोंका गया है, हम उसे निकाल ही नहीं रहे। याद रखिए, दुख को अनदेखा कर देने से आपका दर्द कम नहीं हो जाएगा।

6. जब कोई हमारा दिल दुखाता है, तो क्या हो सकता है?

6 जब कोई हमारा दिल दुखाता है, तो शायद हम उससे नाराज़ हो जाएँ या हमें उस पर बहुत गुस्सा आए। बाइबल में बताया है कि हम इंसानों को गुस्सा आ सकता है। लेकिन इसमें यह भी बताया है कि हमें अपनी भावनाओं पर काबू रखना चाहिए। (भज. 4:4; इफि. 4:26) वह क्यों? क्योंकि हम जैसा सोचते हैं या महसूस करते हैं, अकसर वैसा ही करते हैं। इसलिए अगर हम मन-ही-मन गुस्सा रहें, तो उसके अंजाम अच्छे नहीं होंगे। (याकू. 1:20) याद रखिए, हमें गुस्सा आ सकता है, लेकिन हम गुस्सा रहेंगे या नहीं, यह हम पर है।

हमें गुस्सा आ सकता है, लेकिन हम गुस्सा रहेंगे या नहीं, यह हम पर है

7. जब कोई हमें दुख पहुँचाता है, तो हम पर क्या गुज़रती है?

7 जब कोई हमारे साथ बुरा करता है, तो हम और कैसा महसूस करते हैं? ज़रा इन अनुभवों पर ध्यान दीजिए। बहन ऐन बताती हैं, “जब मैं छोटी थी, तो पापा मम्मी को छोड़कर चले गए और उन्होंने मेरी आया से शादी कर ली। मैं एकदम अकेला महसूस करने लगी। और जब पापा के दूसरे बच्चे हुए, तो मुझे लगा कि उन्होंने मेरी जगह ले ली है। मैं सोचने लगी, अब किसी को मेरी ज़रूरत नहीं है, मैं एकदम बेकार हूँ।” बहन जॉर्जेट बताती हैं कि जब उनके पति ने उनसे बेवफाई की, तो उन्हें कैसा लगा: “हम बचपन के दोस्त थे, हमने साथ मिलकर पायनियर सेवा की थी। पर जब उन्होंने ऐसा किया, तो मेरा दिल टूट गया, मैं पूरी तरह बिखर गयी।” और बहन नेओमी बताती हैं, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे पति मुझे इतना दुख पहुँचाएँगे। जब उन्होंने मुझे बताया कि वे चोरी-छिपे गंदी तसवीरें और वीडियो देखते हैं, तो मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे साथ धोखा हुआ है और उन्होंने मेरा भरोसा तोड़ा है।”

8. (क) हमें दूसरों को क्यों माफ कर देना चाहिए? (ख) दूसरों को माफ करने से क्या फायदे होते हैं? (“ जब कोई आपको गहरे ज़ख्म दे, तो क्या करें?” नाम का बक्स देखें।)

8 दूसरे क्या कहते हैं या करते हैं, उस पर हमारा कोई बस नहीं होता। लेकिन उस वक्‍त हम क्या करेंगे, यह हमारे हाथ में है। और सबसे अच्छा तो यही होगा कि हम उन्हें माफ कर दें। वह इसलिए कि हम यहोवा से प्यार करते हैं और वह चाहता है कि हम दूसरों को माफ करें। लेकिन अगर हम गुस्सा रहें और दूसरों को माफ ना करें, तो शायद हम कोई मूर्खता का काम कर बैठें और हमारी सेहत भी बिगड़ सकती है। (नीति. 14:17, 29, 30) ज़रा बहन क्रिस्टीन के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। वे बताती हैं, “जब मैं गुस्सा या नाराज़ होती हूँ, तो मेरी हँसी गायब हो जाती है। मैं अपनी सेहत का खयाल नहीं रखती, कुछ भी खा-पी लेती हूँ। मैं ठीक से सो नहीं पाती। बिना सोचे-समझे कुछ भी कह देती हूँ या कर देती हूँ। इस वजह से अपने पति और दूसरों के साथ मेरा रिश्‍ता खामखाह बिगड़ जाता है।”

9. हमें क्यों नाराज़गी नहीं पाले रखनी चाहिए?

9 हो सकता है कि जिसने हमें बहुत दुख पहुँचाया है, वह हमसे माफी ना माँगे। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं? अगर हम उसे माफ कर दें, तो इससे हमें ही फायदा होगा। ज़रा एक बार फिर बहन जॉर्जेट के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। बहन बताती हैं, “तलाक के बाद भी मैं बहुत गुस्सा थी और मेरा दिल कड़वाहट से भरा था। इस वजह से मैं बेचैन रहती थी। मुझे थोड़ा वक्‍त लगा, लेकिन फिर मैंने गुस्सा थूक दिया। तब मुझे बहुत राहत मिली।” अगर हम नाराज़गी पाले रहें, तो हमारा दिल कड़वाहट से भर जाएगा और इससे हमें ही नुकसान होगा। इसलिए जब हम दूसरों को माफ कर देते हैं, तो इसमें हमारी ही भलाई है। हम पुरानी बातों को भूल जाते हैं, ज़िंदगी में आगे बढ़ पाते हैं और हमारी खुशी लौट आती है। (नीति. 11:17) लेकिन फिर भी अगर आपको माफ करना मुश्‍किल लग रहा है, तो आप क्या कर सकते हैं?

गुस्सा मत रहिए

10. किसी को दिल से माफ करने के लिए हमें क्या बात समझनी होगी? (तसवीरें भी देखें।)

10 हो सकता है कि किसी ने आपको बहुत दुख पहुँचाया है और यह बात आप अपने मन से नहीं निकाल पा रहे हैं। ऐसे में आप क्या कर सकते हैं? इस बात को समझिए कि किसी को दिल से माफ करने में वक्‍त लग सकता है। जैसे जब एक व्यक्‍ति बुरी तरह घायल हो जाता है, तो उसके ज़ख्म ठीक होने में वक्‍त लगता है। उसी तरह दिल पर लगे ज़ख्म भरने में भी वक्‍त लग सकता है। इसके बाद ही हम किसी को सच में माफ कर पाते हैं।—सभो. 3:3; 1 पत. 1:22.

जब एक व्यक्‍ति को गहरे ज़ख्म लगते हैं, तो उसे देखभाल की ज़रूरत होती है और उसे ठीक होने में वक्‍त लगता है; दिल पर लगे ज़ख्म भरने में भी वक्‍त लगता है (पैराग्राफ 10)


11. दूसरों को माफ करने के लिए प्रार्थना करना क्यों ज़रूरी है?

11 माफ करने के लिए प्रार्थना करना भी ज़रूरी है। c एक बार फिर बहन ऐन के अनुभव पर ध्यान दीजिए। वे बताती हैं कि प्रार्थना करने से उन्हें कैसे मदद मिली: “मैंने यहोवा से प्रार्थना की कि वह हम सबको माफ कर दे, क्योंकि हम सभी ने कुछ ऐसा कहा था या किया था जो सही नहीं था। फिर मैंने पापा और उनकी पत्नी को एक चिट्ठी लिखी और बताया कि मैंने उन्हें माफ कर दिया है।” बहन ऐन के लिए ऐसा करना बिलकुल भी आसान नहीं था, फिर भी उन्होंने उन्हें माफ किया। वे कहती हैं, “यहोवा हमें हमेशा माफ करता है, इसलिए मैंने पापा और उनकी पत्नी को माफ कर दिया। अब क्या पता, वे दोनों यहोवा के बारे में और जानना चाहें!”

12. अपने दिल की सुनने के बजाय हमें क्यों यहोवा पर भरोसा रखना चाहिए? (नीतिवचन 3:5, 6)

12 यहोवा पर भरोसा रखिए, अपने दिल की मत सुनिए। (नीतिवचन 3:5, 6 पढ़िए।) यहोवा ही सबसे अच्छी तरह जानता है कि हमारी भलाई किसमें है। (यशा. 55:8, 9) और वह कभी हमसे कुछ ऐसा करने को नहीं कहेगा जिससे हमें नुकसान हो। इसलिए जब वह हमें दूसरों को माफ करने के लिए कहता है, तो हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि इससे हमें ही फायदा होगा। (भज. 40:4; यशा. 48:17, 18) लेकिन अगर हम अपने दिल की सुनें, तो शायद हम दूसरों को कभी माफ नहीं कर पाएँगे। (नीति. 14:12; यिर्म. 17:9) बहन नेओमी, जिनके बारे में हमने पहले देखा था, बताती हैं, “पहले तो मैंने सोच लिया था कि चाहे जो हो जाए, मैं अपने पति को माफ नहीं करूँगी, क्योंकि अगर मैंने ऐसा किया तो वे कभी नहीं सुधरेंगे। वे दोबारा वही गलती करेंगे और भूल जाएँगे कि उन्होंने मुझे कितनी ठेस पहुँचायी थी। मैं सोच रही थी कि ऐसा करना सही है, यहोवा तो मुझे समझता है। पर फिर मुझे एहसास हुआ कि यहोवा मेरी भावनाओं को समझता तो है, लेकिन ज़रूरी नहीं कि वह उनसे सहमत हो। वह जानता है कि मुझ पर क्या गुज़र रही है और मेरे ज़ख्म ठीक होने में वक्‍त लगेगा। पर वह यह भी चाहता है कि मैं अपने पति को माफ कर दूँ।” d

अपना नज़रिया बदलिए

13. रोमियों 12:18-21 के मुताबिक हमें क्या करना होगा?

13 हो सकता है जिस व्यक्‍ति ने हमें बहुत दुख पहुँचाया है, हम उसे माफ कर दें और उस बारे में आगे फिर कभी बात ना करें। लेकिन अगर हमने उसे सच में माफ किया है, तो हम कुछ और भी करेंगे। अगर वह व्यक्‍ति हमारा मसीही भाई या बहन है, तो हम उसके साथ शांति कायम करने की और भी ज़्यादा कोशिश करेंगे। (मत्ती 5:23, 24) गुस्सा रहने के बजाय हम उस पर दया करेंगे। नाराज़गी पालने के बजाय हम उसे माफ कर देंगे। (रोमियों 12:18-21 पढ़िए; 1 पत. 3:9) लेकिन ऐसा हम कब कर पाएँगे?

14. हमें क्या करने की कोशिश करनी चाहिए और क्यों?

14 यहोवा लोगों में अच्छाइयाँ देखता है। (2 इति. 16:9; भज. 130:3) हमें भी यहोवा की तरह बनने की कोशिश करनी चाहिए और उस व्यक्‍ति की अच्छाइयाँ देखनी चाहिए जिसने हमें दुख पहुँचाया है। अगर हम किसी में अच्छाइयाँ ढूँढ़ें, तो हमें अच्छाइयाँ नज़र आएँगी और अगर बुराइयाँ ढूँढ़ें, तो बुराइयाँ नज़र आएँगी। इसलिए जब हम दूसरों में अच्छाइयाँ देखते हैं, तो उन्हें माफ करना आसान हो जाता है। भाई जैरड बताते हैं, “जब कोई भाई मेरा दिल दुखाता है, तो मैं उसकी ढेरों अच्छाइयों के बारे में सोचता हूँ, ना कि उसकी एक गलती के बारे में। तब उसे माफ करना मेरे लिए आसान हो जाता है।”

15. एक व्यक्‍ति को यह बताना क्यों ज़रूरी है कि आपने उसे माफ कर दिया है?

15 जिस भाई या बहन ने हमारा दिल दुखाया है, उसके साथ दोबारा शांति कायम करने के लिए हमें एक और चीज़ करनी होगी। हमें उसे बताना होगा कि हमने उसे माफ कर दिया है। ऐसा करना क्यों ज़रूरी है? ध्यान दीजिए कि बहन नेओमी क्या कहती हैं: “जब मेरे पति ने मुझसे पूछा, ‘क्या तुमने मुझे माफ कर दिया है?’ तो मैं कुछ बोल ही नहीं पायी। तब मुझे एहसास हुआ कि मैंने उन्हें सच में माफ नहीं किया था। लेकिन कुछ समय बाद मैं उन्हें दिल से कह पायी, ‘मैंने आपको माफ कर दिया है।’ यह सुनकर उनकी आँखें भर आयीं और उनके मन से एक भारी बोझ उतर गया। मेरा दिल भी बहुत हलका हो गया। मैं दोबारा उन पर भरोसा करने लगी और हम फिर से अच्छे दोस्त बन गए।”

16. दूसरों को माफ करने के लिए हमें क्या करना होगा?

16 यहोवा चाहता है कि हम दूसरों को माफ कर दें। (कुलु. 3:13) पर कई बार ऐसा करना हमें मुश्‍किल लग सकता है। फिर भी हम ऐसा कर सकते हैं। वह कैसे? जब कोई हमें दुख पहुँचाता है, तो हमें अपनी भावनाओं को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम उस व्यक्‍ति से गुस्सा ना रहें और उसके बारे में अपना नज़रिया बदलें।—“ दूसरों को माफ कैसे करें—तीन सुझाव” नाम का बक्स देखें।

माफ करने से होते हैं फायदे

17. हमें दूसरों को क्यों माफ करना चाहिए?

17 दूसरों को माफ करने की हमारे पास कई वजह हैं। ज़रा उनमें से कुछ पर ध्यान दीजिए। जब हम दूसरों को माफ करते हैं, तो (1) हम अपने दयालु पिता यहोवा की तरह बनते हैं और उसका दिल खुश करते हैं। (लूका 6:36) (2) हम दिखाते हैं कि हम यहोवा के बहुत एहसानमंद हैं कि उसने हमें माफ किया है। (मत्ती 6:12) और (3) हमारी सेहत अच्छी रहती है और दूसरों के साथ हमारा एक अच्छा रिश्‍ता होता है।

18-19. दूसरों को माफ करने का क्या नतीजा हो सकता है?

18 जब हम दूसरों को माफ करते हैं, तो हमें उम्मीद से बढ़कर आशीषें मिल सकती हैं। आइए एक बार फिर बहन डेनीस के अनुभव पर ध्यान देते हैं। जिस आदमी ने बहन की कार को टक्कर मारी थी, उसने सोच रखा था कि मुकद्दमे के बाद वह खुदकुशी कर लेगा। बहन डेनीस इस बात से अनजान थीं। लेकिन जब बहन ने उसे माफ कर दिया, तो यह बात उसके दिल को छू गयी और वह यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन करने लगा।

19 हमें शायद दूसरों को माफ करना मुश्‍किल लगे। लेकिन अगर हम ऐसा करें, तो हमें बहुत-सी आशीषें मिल सकती हैं। (मत्ती 5:7) तो आइए हम अपने पिता यहोवा की तरह बनें और दूसरों को माफ करें!

गीत 125 खुश हैं रहमदिल!

a इस लेख में कुछ लोगों के नाम उनके असली नाम नहीं हैं।

b ऐसे मामलों में हरेक मसीही को खुद फैसला करना होता है कि वह क्या करेगा।

c jw.org पर दिए ब्रॉडकास्टिंग के ये गाने देखिए: “एक-दूसरे को माफ करें,” “दिल से माफ करूँ” और “आओ सुलह करें।”

d गंदी तसवीरें और वीडियो देखना एक बड़ा पाप है और इससे निर्दोष साथी को बहुत दुख पहुँचता है। पर बाइबल के मुताबिक निर्दोष साथी इस वजह से तलाक नहीं ले सकता।