जीवन कहानी
दूसरों की अच्छी मिसाल से सीखकर मैंने कई आशीषें पायीं
जब मैं छोटा था, तो मैं प्रचार करने से झिझकता था। फिर जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ और मुझे यहोवा की सेवा में ज़िम्मेदारियाँ मिलने लगीं, मुझे लगा कि मैं इन्हें नहीं निभा पाऊँगा। लेकिन कुछ लोगों की मदद से मैं अपने डर पर काबू कर पाया। इसलिए बीते 58 सालों के दौरान पूरे समय की सेवा में मैंने बहुत-सी आशीषें पायीं। आइए मैं कुछ ऐसे लोगों के बारे में बताता हूँ जिन्होंने मेरे लिए अच्छी मिसाल रखी।
मेरा जन्म कनाडा के क्युबेक सिटी में हुआ था, जहाँ फ्रेंच भाषा बोली जाती है। मेरे पिता लूई और मेरी माँ ज़ेलिया मुझसे बहुत प्यार करते थे। पिताजी लोगों से घुलने-मिलने में संकोच महसूस करते थे और उन्हें किताबें पढ़ने का बहुत शौक था। मुझे लिखने का शौक था और मैं बड़ा होकर पत्रकार बनना चाहता था।
जब मैं 12 साल का था, तब एक दिन पिताजी के साथ काम करनेवाला एक आदमी अपने दोस्त के साथ हमारे घर आया। उसका नाम रेडौल्फ सूसी था। वे दोनों यहोवा के साक्षी थे। उस वक्त मैं साक्षियों के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं जानता था और न ही उनके धर्म में मुझे कोई दिलचस्पी थी। लेकिन मुझे उनकी यह बात अच्छी लगी कि वे हमारे सभी सवालों के जवाब बाइबल से दे रहे थे। मेरे माता-पिता को भी यह बात अच्छी लगी। इसलिए हम साक्षियों से बाइबल सीखने लगे।
मैं साक्षियों से जो सीखता था, वह मैं कभी-कभी अपनी क्लास के बच्चों को बताता था। उस वक्त मैं एक कैथोलिक स्कूल में पढ़ता था। वहाँ के टीचर पादरी थे। धीरे-धीरे टीचरों को पता चल गया कि मैं बच्चों को बाइबल की बातें बता रहा हूँ। एक टीचर ने सबके सामने मुझे डाँटा, क्योंकि वह बाइबल से मेरी बातों को गलत साबित नहीं कर पाया। उसने मुझ पर इलज़ाम लगाया कि मैं कैथोलिक धर्म से बगावत कर रहा हूँ! सच कहूँ तो उस वक्त मैं बहुत घबरा गया था, लेकिन जो भी हुआ अच्छा ही हुआ। मैं समझ गया कि उस स्कूल में जो भी सिखाया जाता था, वह बाइबल से बिलकुल हटकर था। उसी पल मैंने सोच लिया कि मैं अब से इस स्कूल में नहीं पढ़ूँगा। फिर मैंने अपने माता-पिता से पूछकर दूसरे स्कूल में दाखिला ले लिया।
प्रचार काम मुझे अच्छा लगने लगा
मैं लगातार बाइबल अध्ययन कर रहा था, लेकिन कोई खास तरक्की नहीं कर पा रहा था, क्योंकि मुझे घर-घर का प्रचार
करने में डर लगता था। दरअसल उस वक्त कैथोलिक चर्च का बहुत दबदबा था, इसलिए कैथोलिक लोग प्रचार काम का कड़ा विरोध करते थे। क्युबेक के प्रमुख अधिकारी मोरिस ड्यूप्लीसी के साथ कैथोलिक चर्च की गहरी दोस्ती थी। उसकी वजह से चर्च के लोगों की हिम्मत इतनी बढ़ गयी कि वे भीड़ इकट्ठी करके साक्षियों को सताते थे, यहाँ तक कि उन पर हमले भी करते थे। इस वजह से प्रचार करने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए होती थी।अपने डर पर काबू पाने के लिए जॉन रे नाम के एक भाई ने मेरी बहुत मदद की। वे गिलियड स्कूल की नौवीं क्लास से ग्रैजुएट हुए थे। भाई जॉन के पास काफी तजुरबा था, फिर भी वे नम्र थे और उनका स्वभाव इतना अच्छा था कि हर कोई बेझिझक उनके पास जा सकता था। वे कभी मुझे यह नहीं बताते थे कि मुझे क्या करना चाहिए या क्या नहीं, बल्कि मेरे लिए एक अच्छी मिसाल रखते थे। भाई जॉन ठीक से फ्रेंच नहीं बोल पाते थे, इसलिए मैं उनके साथ प्रचार में जाता था और फ्रेंच बोलने में उनकी मदद करता था। उनकी संगति से मुझे इतनी हिम्मत मिली कि आखिरकार मैंने यहोवा का साक्षी बनने का फैसला किया। साक्षियों से पहली मुलाकात के दस साल बाद 26 मई, 1951 में मैंने बपतिस्मा ले लिया।
क्युबेक सिटी में हमारी एक छोटी-सी मंडली थी और उसमें ज़्यादातर भाई-बहन पायनियर थे। उनके अच्छे उदाहरण से मेरे अंदर भी पायनियर सेवा करने का जोश भर आया। उन दिनों घर-घर जाकर हम प्रकाशन नहीं देते थे, सिर्फ बाइबल से पढ़कर लोगों को खुशखबरी सुनाते थे। इसलिए हमें आयतों का इस्तेमाल करने में कुशल होना था। मैंने भी कोशिश की कि मैं कुछ आयतें याद रखूँ ताकि मैं सच्चाई के बारे में गवाही दे सकूँ। लेकिन कई लोग हमारी बाइबल पढ़ने तक से इनकार कर देते थे। उनका कहना था कि वे ऐसी किसी भी बाइबल से नहीं पढ़ेंगे जिसे पढ़ने से कैथोलिक चर्च ने मना किया है।
सन् 1952 में मैंने अपनी मंडली की एक बहन सीमोन पैट्री से शादी की। शादी के बाद हम मोंट्रियाल जाकर बस गए। फिर एक साल के अंदर हमारी एक बेटी हुई और हमने उसका नाम लीज़ा रखा। भले ही मैंने शादी से कुछ ही समय पहले पायनियर सेवा छोड़ दी थी, फिर भी मैंने और सीमोन ने अपनी ज़िंदगी सादा रखने की कोशिश की ताकि हमारा पूरा परिवार प्रचार काम और सभाओं में ज़्यादा हिस्सा ले सके।
पायनियर सेवा छोड़ने के दस साल बाद मैंने दोबारा पायनियर सेवा करने की सोची। दरअसल हुआ यह कि मैं 1962 में राज-सेवा स्कूल के लिए गया जो प्राचीनों के लिए होता है। यह स्कूल कनाडा के बेथेल में रखा गया और एक महीने तक चला। वहाँ मुझे भाई कामील वालेट के साथ एक कमरे में ठहराया गया। प्रचार के लिए भाई कामील का जोश देखते बनता था। वे शादीशुदा थे और उनके बच्चे भी थे, फिर भी वे ज़्यादा घंटे
प्रचार करते थे क्योंकि वे पायनियर बनना चाहते थे। उन दिनों क्युबेक में ऐसा बहुत कम होता था कि कोई बच्चों की परवरिश करने के साथ-साथ पायनियर सेवा भी करे। उन्होंने मुझे भी पायनियर बनने का बढ़ावा दिया। उस स्कूल के कुछ ही महीनों बाद मुझे लगने लगा कि मैं दोबारा पायनियर सेवा कर सकता हूँ। कुछ लोगों को लगा कि पायनियर सेवा करने का मेरा फैसला सही नहीं है। लेकिन मैं अपने फैसले पर डटा रहा, क्योंकि मैं यहोवा की सेवा ज़्यादा करना चाहता था और मुझे यकीन था कि यहोवा ज़रूर मेरी मदद करेगा।खास पायनियर बनकर वापस क्युबेक सिटी आए
सन् 1964 में मुझे और सीमोन को खास पायनियर बनाकर वापस अपने शहर क्युबेक सिटी भेजा गया। हमने वहाँ कई साल तक सेवा की। अब वहाँ प्रचार करना पहले से ज़्यादा आसान हो गया था, लेकिन फिर भी हमें कभी-कभी विरोध का सामना करना पड़ता था।
एक शनिवार की बात है। दोपहर को मैं सेन्ट-मरी नाम के एक छोटे-से कसबे में प्रचार कर रहा था, जो क्युबेक सिटी से बस थोड़ी दूरी पर है। तभी एक पुलिस अफसर ने मुझे गिरफ्तार कर लिया और थाने ले गया। मुझे इस आरोप पर जेल हुई कि मैं बिना परमिट के घर-घर प्रचार कर रहा था। बाद में मुझे जज के सामने लाया गया। जज का नाम बायर-शौन था और वह दिखने में बहुत डरावना लग रहा था। उसने मुझसे पूछा, “तुम्हारा मुकदमा कौन लड़ेगा?” मैंने कहा, “ग्लैन हाउ * लड़ेंगे।” यह नाम सुनते ही जज के होश उड़ गए। उसने कहा, “तुम्हें और कोई नहीं मिला?” दरअसल ग्लैन हाउ हमारे एक भाई थे और बहुत ही जाने-माने वकील थे। उन्होंने यहोवा के साक्षियों की तरफ से कई मुकदमे लड़े और जीते थे। कुछ समय बाद अदालत ने मुझे बताया कि मुझ पर लगे सारे आरोप खारिज कर दिए गए हैं।
क्युबेक में विरोध की वजह से सभाओं के लिए अच्छी जगह भी नहीं मिलती थी। हमारी छोटी-सी मंडली को बस एक पुराना गराज मिला, जहाँ कड़ाके की ठंड में बहुत मुश्किल होता था। हमने एक ऐसे हीटर से काम चलाया जो तेल से चलता था। अकसर सभा से कुछ घंटे पहले हम भाई-बहन आते और हीटर के चारों तरफ खड़े होकर एक-दूसरे को हौसला बढ़ानेवाले अनुभव बताते थे।
आज मुझे यह देखकर खुशी होती है कि बीते सालों के दौरान प्रचार काम में कितनी तरक्की हुई है। सन् 1960 के दशक में क्युबेक सिटी के इलाके, कोट-नॉर प्रांत और गास्पे प्रायद्वीप में गिनी-चुनी मंडलियाँ थीं और हर मंडली में बहुत कम प्रचारक थे। लेकिन अब इन्हीं इलाकों में दो से ज़्यादा सर्किट बन गए हैं और भाई-बहन सभाओं के लिए खूबसूरत राज-घरों में मिलते हैं।
सफरी काम के लिए बुलाया गया
सन् 1970 में मुझे और सीमोन को सर्किट काम सौंपा गया। फिर 1973 में मुझे ज़िला निगरान का काम सौंपा गया। उन सालों के दौरान मुझे भाई लौरया सोमयूर * और भाई डेविड स्प्लेन * जैसे योग्य भाइयों से बहुत कुछ सीखने को मिला। ये दोनों भाई सफरी काम करते थे। हर सम्मेलन के बाद मैं और भाई डेविड एक-दूसरे को सुझाव देते थे कि हम कैसे अपने सिखाने की कला को और बेहतर बना सकते हैं। मुझे याद है एक बार भाई डेविड ने मुझसे कहा, “लेऔन्स, तुम्हारा भाषण बहुत अच्छा था। लेकिन अगर मैं तुम्हारी जगह होता, तो जितनी जानकारी तुमने दी, उससे मैं तीन भाषण देता।” मैं अकसर अपने भाषण में बहुत सारी जानकारी देता था। भाई डेविड की सलाह से मैंने सीखा कि मुझे अपने भाषण को सरल रखना है।
ज़िला निगरानों का काम था, सर्किट निगरानों का हौसला बढ़ाना। लेकिन किसी सर्किट का दौरा करते समय मैं सर्किट निगरान के साथ ज़्यादा समय नहीं बिताता था। मैं दूसरे भाई-बहनों के साथ प्रचार में ज़्यादा जाता था क्योंकि क्यूबेक के कई प्रचारकों से मेरी अच्छी जान-पहचान थी। वे मेरे साथ प्रचार करना चाहते थे और मुझे भी उनके साथ जाना अच्छा लगता था। इसलिए एक बार एक सर्किट निगरान ने बहुत प्यार से मुझे समझाया, “भाई, आप दूसरे भाई-बहनों के साथ समय बिताते हैं, यह बहुत अच्छी बात है! लेकिन आपको इस हफ्ते मेरे लिए भेजा गया है। मुझे भी आपसे हौसला चाहिए।” यह सलाह पाकर मैंने अपनी सोच सुधारी।
सन् 1976 का साल मैं कभी नहीं भूल पाऊँगा। मेरी प्यारी पत्नी अचानक बहुत बीमार हो गयी और उसकी मौत हो गयी। सीमोन हमेशा दूसरों के बारे में सोचती थी और यहोवा से दिलो-जान से प्यार करती थी। ऐसे जीवन-साथी को खोने का दर्द बहुत गहरा होता है। लेकिन प्रचार में लगे रहने से मैं अपना गम सह पाया। इस मुश्किल घड़ी में यहोवा ने मेरा साथ नहीं छोड़ा और इसके लिए मैं उसका बहुत एहसानमंद हूँ। कुछ समय बाद मेरी मुलाकात बहन कैरोलिन एलीयट से हुई जो एक जोशीली पायनियर थी। वह अँग्रेज़ी बोलती है और क्युबेक में सेवा करने आयी थी, क्योंकि वहाँ प्रचारकों की बहुत ज़रूरत थी। कैरोलिन बड़ी आसानी से लोगों से घुल-मिल जाती है। उसे दूसरों की परवाह है, खासकर उन लोगों की जो खुद को अकेला महसूस करते हैं या शर्मीले हैं। हम दोनों ने शादी कर ली और सफरी काम में उसने मेरा बहुत साथ दिया।
एक खास साल
जनवरी 1978 में पहली बार क्युबेक में पायनियर सेवा स्कूल रखा गया और मुझे इस स्कूल में सिखाने के लिए कहा गया। मैं बहुत घबराया हुआ था क्योंकि मैं खुद कभी पायनियर स्कूल नहीं गया था, न ही मैंने कभी इस स्कूल की किताब देखी थी। विद्यार्थियों के लिए जितना यह सब नया था, उतना मेरे लिए भी था। लेकिन एक बात अच्छी थी कि इस पहली क्लास में कई अनुभवी पायनियर थे। भले ही मैं उनका शिक्षक था, लेकिन मैंने भी उनसे बहुत कुछ सीखा।
सन् 1978 में क्यूबेक में एक अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन रखा गया। यह मोंट्रियाल के ऑलम्पिक स्टेडियम में रखा गया। अधिवेशन का नाम था, “विजयी विश्वास।” यह क्यूबेक में तब तक का सबसे बड़ा अधिवेशन था, 80,000 से ज़्यादा लोग आए थे। मुझे अधिवेशन के बारे में पत्रकारों से बात करने का काम सौंपा गया। मैंने कई पत्रकारों से बात की और यह देखकर मुझे बहुत खुशी हुई कि उन्होंने अखबारों में हमारे बारे में काफी अच्छी बातें लिखीं। टीवी और रेडियो पर 20 से ज़्यादा घंटों तक हमारा इंटरव्यू लिया गया और अखबारों में हमारे बारे में सैकड़ों लेख छापे गए। तब बहुत-से लोग यहोवा और उसके लोगों के बारे में जान पाए।
एक अलग इलाके में भेजा गया
सन् 1996 में मेरे जीवन में एक बड़ा बदलाव आया। मुझे टोरंटो इलाके में अँग्रेज़ी मंडलियों के ज़िले में सेवा करने भेजा गया। जब से मेरा बपतिस्मा हुआ था, तब से मैंने क्यूबेक में फ्रेंच बोलनेवाली मंडलियों में ही सेवा की थी। इसलिए मुझे लगा कि मैं अँग्रेज़ी मंडलियों में सेवा नहीं कर पाऊँगा। अपनी टूटी-फूटी अँग्रेज़ी में भाषण देने के खयाल से ही मैं घबरा गया था। मैंने अब पहले से ज़्यादा प्रार्थना की और यहोवा पर बहुत निर्भर रहा।
हालाँकि मैं शुरू में डर गया था, मगर बाद में मुझे वहाँ सेवा करने में बहुत खुशी मिली। मैंने वहाँ दो साल बिताए। कैरोलिन ने अँग्रेज़ी बोलने में मेरी काफी मदद की। वहाँ के भाई-बहनों ने भी मेरी बहुत हिम्मत बढ़ायी। कुछ ही समय के अंदर हमें वहाँ कई सारे नए दोस्त मिले।
जब भी किसी हफ्ते के आखिर में सम्मेलन होता, तो मुझे उसके सिलसिले में काफी काम करना होता था। फिर भी मैं कई बार सम्मेलन से पहले की शुक्रवार शाम को घर-घर प्रचार करने जाता था। शायद कुछ लोग सोचते होंगे कि सम्मेलन की तैयारी में तो बहुत सारा काम होता है, फिर हम प्रचार करने क्यों जाएँ। लेकिन मैंने पाया कि जब प्रचार में मुझे कोई ऐसा मिलता जिससे मेरी अच्छी बातचीत होती तो मुझे बहुत खुशी मिलती है। आज भी प्रचार काम से मेरे तन-मन में जोश भर आता है।
सन् 1998 में मुझे और कैरोलिन को खास पायनियर बनाकर दोबारा मोंट्रियाल भेजा गया। कई साल तक मेरा काम था, खास सार्वजनिक सेवा का इंतज़ाम करना और यहोवा के साक्षियों के बारे में गलतफहमियाँ दूर करने के लिए पत्रकारों से मिलकर बात करना। आज कैरोलिन और मैं उन परदेसियों को प्रचार करते हैं जो हाल ही में कनाडा में आ बसे हैं और बाइबल के बारे में ज़्यादा जानना चाहते हैं।
मुझे बपतिस्मा पाकर यहोवा की सेवा करते हुए 68 साल हो चुके हैं और इन सालों के दौरान मैंने कई आशीषें पायीं। एक बहुत बड़ी आशीष यह है कि मैंने प्रचार काम से खुशी पाना सीखा और सच्चाई जानने में कई लोगों की मदद की। मेरी बेटी लीज़ा और उसके पति ने भी अपने बच्चों की परवरिश करने के बाद पायनियर सेवा शुरू की। यह देखकर मुझे बहुत खुशी होती है कि लीज़ा आज भी कितने जोश से सेवा करती है। मैं खासकर उन भाई-बहनों का शुक्रगुज़ार हूँ जिन्होंने मेरे लिए बढ़िया मिसाल रखी और मुझे अच्छी सलाह दी। उनकी मदद से मैं यहोवा के साथ अपना रिश्ता मज़बूत कर पाया और संगठन से मिलनेवाली कई ज़िम्मेदारियाँ निभा सका। मैंने सीखा कि यहोवा की ज़बरदस्त पवित्र शक्ति पर निर्भर रहने से ही हम संगठन में अपनी ज़िम्मेदारियाँ अच्छी तरह निभा सकते हैं। (भज. 51:11) मैं हमेशा यहोवा का धन्यवाद करता हूँ कि मुझे उसके नाम की तारीफ करने का अनोखा सम्मान मिला है।—भज. 54:6.
^ पैरा. 16 आठ मई, 2000 की सजग होइए! में भाई डब्ल्यू. ग्लैन हाउ की जीवन कहानी पढ़ें, जिसका शीर्षक है, “युद्ध तुम्हारा नहीं, परमेश्वर का है।”
^ पैरा. 20 पंद्रह नवंबर, 1976 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) के पेज 690-695 में भाई लौरया सोमयूर की जीवन कहानी पढ़ें।
^ पैरा. 20 भाई डेविड स्प्लेन यहोवा के साक्षियों के शासी निकाय के सदस्य हैं।