अपना प्यार ठंडा मत होने दीजिए
“दुष्टता के बढ़ने से कई लोगों का प्यार ठंडा हो जाएगा।”—मत्ती 24:12.
गीत: 23, 24
1, 2. (क) मत्ती 24:12 में दिए यीशु के शब्द सबसे पहले किन पर पूरे हुए? (ख) प्रेषितों की किताब से कैसे पता चलता है कि शुरू के ज़्यादातर मसीहियों ने अपना प्यार ठंडा नहीं होने दिया? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
धरती पर रहते वक्त यीशु ने कुछ बातें बतायी थीं जिनसे लोग पहचान सकते थे कि वे “दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्त” में जी रहे हैं। उनमें से एक यह थी कि “कई लोगों का प्यार ठंडा हो जाएगा।” (मत्ती 24:3, 12) ये शब्द सबसे पहले उस समय के यहूदियों पर पूरे हुए। वे परमेश्वर के लोग होने का दावा करते थे मगर परमेश्वर के लिए उनका प्यार ठंडा पड़ गया।
2 लेकिन उस समय के ज़्यादातर मसीहियों ने ऐसा नहीं होने दिया। वे जोश के साथ “मसीह यीशु के बारे में खुशखबरी” सुनाते रहे। यही नहीं, उन्होंने परमेश्वर, अपने मसीही भाई-बहनों और अविश्वासी लोगों के लिए अपने प्यार का सबूत भी दिया। उन्होंने परमेश्वर के लिए अपना प्यार कम नहीं होने दिया। (प्रेषि. 2:44-47; 5:42) पर अफसोस, उस समय के कुछ मसीहियों का प्यार ठंडा पड़ गया। हमें यह कैसे पता?
3. कुछ मसीहियों का प्यार क्यों ठंडा पड़ गया?
3 यीशु ने इफिसुस की मंडली से कहा, “तुझमें अब वह प्यार नहीं रहा जो पहले था।” (प्रका. 2:4) इफिसुस के मसीहियों का प्यार क्यों ठंडा पड़ गया? ऐसा मालूम होता है कि उन मसीहियों पर वहाँ के लोगों का असर पड़ा होगा जो सिर्फ अपनी इच्छाएँ पूरी करने में लगे हुए थे। (इफि. 2:2, 3) इफिसुस एक दौलतमंद शहर था और यहाँ के लोग सिर्फ मौज-मस्ती करने और ऐशो-आराम की ज़िंदगी जीने के बारे में सोचते थे। कई लोग बदचलन ज़िंदगी भी जी रहे थे और परमेश्वर के नियमों का बिलकुल भी आदर नहीं करते थे। उन्हें परमेश्वर और दूसरों से प्यार नहीं था। वे सिर्फ अपना स्वार्थ पूरा करने में लगे हुए थे।
4. (क) आज लोगों का प्यार कैसे ठंडा पड़ गया है? (ख) हमें किन तीन पहलुओं में अपना प्यार बढ़ाते जाना है?
4 मत्ती 24:12 में दिए यीशु के शब्द आज भी पूरे हो रहे हैं। लोगों में परमेश्वर के लिए कोई प्यार नहीं रहा। परमेश्वर पर भरोसा रखने के बजाय लाखों लोग दुनिया की समस्याओं का हल ढूँढ़ने के लिए इंसानी संगठनों पर आस लगाते हैं। आज सचमुच दुनिया के लोगों में प्यार कम होता जा रहा है। ऐसे में यहोवा के सेवकों का प्यार भी ठंडा पड़ सकता है ठीक जैसे इफिसुस के मसीहियों के साथ हुआ था। इस लेख में हम देखेंगे कि हमें किन तीन पहलुओं में अपना प्यार बढ़ाते जाना है: (1) यहोवा के लिए, (2) बाइबल की सच्चाइयों के लिए और (3) भाइयों के लिए।
यहोवा के लिए प्यार
5. हमें परमेश्वर से क्यों प्यार करना चाहिए?
5 हमें सबसे ज़्यादा किससे प्यार करना चाहिए? यीशु ने कहा, “‘तुम अपने परमेश्वर यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपने पूरे दिमाग से प्यार करना।’ यही सबसे बड़ी और पहली आज्ञा है।” (मत्ती 22:37, 38) परमेश्वर के लिए प्यार हमें उसकी आज्ञा मानने, धीरज धरने और बुराई से नफरत करने के लिए उभारता है। (भजन 97:10 पढ़िए।) लेकिन शैतान और उसकी दुनिया हमारे इस प्यार को कमज़ोर करने की कोशिश करती है।
6. जब लोग परमेश्वर से प्यार करना छोड़ देते हैं तो क्या होता है?
6 आज दुनिया में लोग परमेश्वर को छोड़ बाकी सब चीज़ों से प्यार करते हैं। वे “खुद से प्यार” करते हैं। (2 तीमु. 3:2) उनका ध्यान ‘शरीर की ख्वाहिशें और आँखों की ख्वाहिशें’ पूरी करने में और “अपनी चीज़ों का दिखावा” करने में लगा रहता है। (1 यूह. 2:16) प्रेषित पौलुस ने बताया कि अपना स्वार्थ पूरा करने का क्या खतरा है। उसने कहा, “शरीर की बातों पर ध्यान लगाने का मतलब मौत है।” उसने ऐसा क्यों कहा? क्योंकि ऐसा करनेवाले दरअसल परमेश्वर के दुश्मन बन जाते हैं। (रोमि. 8:6, 7) जो लोग अपनी सारी ज़िंदगी पैसा कमाने या यौन-इच्छाएँ पूरी करने में लगा देते हैं उन्हें निराशा और दुख के सिवा कुछ नहीं मिलता।—1 कुरिं. 6:18; 1 तीमु. 6:9, 10.
7. आज मसीहियों पर किस खतरनाक सोच का असर हो सकता है?
7 आज ऐसे कई लोग हैं जो ईश्वर के वजूद पर शक करते हैं, विकासवाद को मानते हैं या नास्तिक हैं। वे कहते हैं कि परमेश्वर से प्यार करने का कोई फायदा नहीं या परमेश्वर वजूद में नहीं है। उनका मानना है कि सिर्फ बेवकूफ और अनपढ़ लोग ही सृष्टिकर्ता पर विश्वास करते हैं। कई लोग तो ऐसे हैं जो सृष्टिकर्ता से ज़्यादा उसकी सृष्टि को यानी वैज्ञानिकों को सम्मान देते हैं। (रोमि. 1:25) एक मसीही पर भी इस तरह की सोच का असर हो सकता है। इससे यहोवा के साथ उसका रिश्ता कमज़ोर पड़ सकता है और परमेश्वर के लिए उसका प्यार ठंडा हो सकता है।—इब्रा. 3:12.
8. (क) यहोवा के लोग किन वजहों से निराश हो सकते हैं? (ख) भजन 136 में हमें क्या दिलासा दिया गया है?
8 निराशा की भावना भी हमारा विश्वास कमज़ोर कर सकती है और परमेश्वर के लिए हमारा प्यार ठंडा कर सकती है। हम शैतान की दुष्ट दुनिया में जी रहे हैं इसलिए हम कई वजहों से निराश हो सकते हैं। (1 यूह. 5:19) मिसाल के लिए, हम ढलती उम्र, खराब सेहत या फिर पैसों की तंगी की वजह से निराश हो जाएँ। या हम इस बात को लेकर दुखी हो जाएँ कि हम कुछ काम अच्छी तरह नहीं कर पा रहे हैं या फिर हमने जो उम्मीद की थी वह पूरी नहीं हुई। हम चाहे किसी भी मुश्किल का सामना कर रहे हों हमें कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि यहोवा ने हमें छोड़ दिया है। भजन 136:23 में हमें जो दिलासा दिया गया है उसे याद कीजिए। वहाँ लिखा है, “जब हम निराश थे तब उसने हम पर ध्यान दिया, क्योंकि उसका अटल प्यार सदा बना रहता है।” हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमारी “मदद की पुकार” सुनता है और उसका जवाब देता है।—भज. 116:1; 136:24-26.
9. परमेश्वर के लिए अपना प्यार बनाए रखने में किस बात ने पौलुस की मदद की?
9 प्रेषित पौलुस ने इस बात पर गहराई से सोचा कि किस तरह यहोवा ने उसे हमेशा सँभाला और इससे उसे हिम्मत मिली। उसने लिखा, “यहोवा मेरा मददगार है, मैं नहीं डरूँगा। इंसान मेरा क्या कर सकता है?” (इब्रा. 13:6) पौलुस को यहोवा पर भरोसा था, इस वजह से वह ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव का सामना कर पाया। मुश्किल-से-मुश्किल हालात में भी उसका भरोसा कम नहीं हुआ। उलटा जब वह जेल में था तो उसने मंडलियों को चिट्ठियाँ लिखीं और भाइयों की हिम्मत बढ़ायी। (इफि. 4:1; फिलि. 1:7; फिले. 1) पौलुस ने हर हाल में यहोवा के लिए अपना प्यार बनाए रखा। किस बात ने उसकी मदद की? उसने परमेश्वर पर भरोसा रखा जो ‘हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्वर है और जो हमारी सब परीक्षाओं में हमें दिलासा देता है।’ (2 कुरिं. 1:3, 4) हम पौलुस की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
10. हम किस तरह यहोवा के लिए अपना प्यार बनाए रख सकते हैं?
10 पौलुस ने एक तरीका बताया जिससे हम परमेश्वर के लिए अपना प्यार बनाए रख सकते हैं। उसने कहा, “लगातार प्रार्थना करते रहो।” कुछ समय बाद उसने लिखा, “प्रार्थना में लगे रहो।” (1 थिस्स. 5:17; रोमि. 12:12) प्रार्थना करने से हम किस तरह परमेश्वर के करीब जा पाते हैं? प्रार्थना में हम यहोवा से बात करते हैं और इस तरह हम उसके साथ एक अच्छा रिश्ता बना सकते हैं। (भज. 86:3) जब हम अपने पिता यहोवा को दिल की गहराई में छिपे अपने विचार और भावनाएँ बताते हैं तो हम उसके करीब जा पाते हैं। (भज. 65:2) फिर जब हम देखते हैं कि यहोवा ने किस तरह हमारी प्रार्थना का जवाब दिया है तो उसके लिए हमारा प्यार और गहरा हो जाता है। हमें यकीन हो जाता है कि “यहोवा उन सबके करीब रहता है जो उसे पुकारते हैं।” (भज. 145:18) हमें पूरा भरोसा है कि यहोवा हमसे प्यार करता है और वह हमारा साथ कभी नहीं छोड़ेगा। इस भरोसे के साथ हम आज और आनेवाली किसी भी मुश्किल का सामना कर पाएँगे।
बाइबल की सच्चाइयों के लिए प्यार
11, 12. हम बाइबल की सच्चाइयों के लिए अपना प्यार कैसे बढ़ा सकते हैं?
11 हम मसीही सच्चाई से प्यार करते हैं और यह सच्चाई हमें सिर्फ परमेश्वर के वचन बाइबल में मिलती है। यीशु ने अपने पिता से कहा, “तेरा वचन सच्चा है।” (यूह. 17:17) इन सच्चाइयों को जानने के लिए बाइबल का ज्ञान लेना ज़रूरी है। (कुलु. 1:10) लेकिन सिर्फ ज्ञान लेना काफी नहीं। हमें और क्या करने की ज़रूरत है? ध्यान दीजिए कि भजन 119 के लिखनेवाले ने क्या कहा। (भजन 119:97-100 पढ़िए।) हम बाइबल से जो भी पढ़ते हैं उस पर हमें पूरे दिन गहराई से सोचना चाहिए। जब हम मनन करते हैं कि उन बातों को लागू करने से हमें क्या फायदे होते हैं, तो बाइबल की सच्चाइयों के लिए हमारा प्यार और बढ़ेगा।
12 भजन के लिखनेवाले ने यह भी कहा, “तेरी बातें मेरी जीभ को मीठी लगती हैं, मेरे मुँह को शहद से भी मीठी लगती हैं!” (भज. 119:103) सच परमेश्वर का संगठन, बाइबल पर आधारित जो प्रकाशन तैयार करता है वह किसी स्वादिष्ट खाने से कम नहीं! जब हम अपना मनपसंद खाना खाते हैं, तो हम धीरे-धीरे उसका पूरा मज़ा लेते हुए खाते हैं। बाइबल का अध्ययन करते वक्त भी हमें कुछ ऐसा ही करना चाहिए। हमें वक्त लेकर आराम से इसका अध्ययन करना चाहिए और इसका पूरा मज़ा लेना चाहिए। तब हम सच्चाई के ‘मनभावने शब्दों’ को आसानी से याद रख पाएँगे। यही नहीं, हम दूसरों को ये बातें बताकर उनकी मदद कर पाएँगे।—सभो. 12:10.
13. यिर्मयाह को परमेश्वर के संदेश से क्यों प्यार था और इसका उस पर क्या असर हुआ?
13 भविष्यवक्ता यिर्मयाह को परमेश्वर के संदेश से प्यार था। उसने कहा, “तेरा संदेश मुझे मिला और मैंने उसे खाया, तेरा संदेश मेरे लिए खुशी का कारण बन गया और मेरा दिल मगन हो गया, क्योंकि हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, मैं तेरे नाम से जाना जाता हूँ।” (यिर्म. 15:16) यिर्मयाह परमेश्वर के वचन की अनमोल सच्चाइयों पर मनन करता था और उसे इन सच्चाइयों से प्यार था। इनका उस पर क्या असर हुआ? उसने जाकर लोगों को यहोवा का संदेश सुनाया और इस काम को एक बड़ा सम्मान समझा। अगर हम बाइबल की सच्चाइयों से प्यार करते हैं तो हम यहोवा के साक्षी कहलाने और उसके राज के बारे में गवाही देने के काम को बड़ा सम्मान समझेंगे।
14. हम और किस तरह बाइबल की सच्चाइयों के लिए अपना प्यार बढ़ा सकते हैं?
14 हम और किस तरह बाइबल की सच्चाइयों के लिए अपना प्यार बढ़ा सकते हैं? लगातार मंडली की सभाओं में हाज़िर होकर जहाँ यहोवा हमें सिखाता है। हर हफ्ते होनेवाला प्रहरीदुर्ग अध्ययन एक मुख्य तरीका है जिससे हम बाइबल का गहराई से अध्ययन करते हैं। अगर हम इससे पूरा फायदा उठाना चाहते हैं तो हमें पहले से इसकी तैयारी करनी चाहिए। मिसाल के लिए, हम लेख में दी उन आयतों को बाइबल से पढ़ सकते हैं, जिनके सिर्फ हवाले दिए गए हैं। आज कई मसीही आसानी से प्रहरीदुर्ग की इलेक्ट्रॉनिक कॉपी डाउनलोड कर सकते हैं और इसे पढ़ सकते हैं क्योंकि यह jw.org वेबसाइट पर और JW लाइब्रेरी ऐप पर कई भाषाओं में उपलब्ध है। कुछ इलेक्ट्रॉनिक फॉरमैट पर हम जल्दी से उन आयतों को देख सकते हैं जिनके सिर्फ हवाले दिए होते हैं। आप चाहे जो भी फॉरमैट इस्तेमाल करें, मगर अध्ययन की तैयारी करते वक्त आयतों को ध्यान से पढ़िए और उन पर गहराई से सोचिए। इस तरह आप बाइबल की सच्चाइयों के लिए अपना प्यार बढ़ा पाएँगे।—भजन 1:2 पढ़िए।
भाइयों के लिए प्यार
15, 16. (क) यूहन्ना 13:34, 35 के मुताबिक यीशु ने हमें क्या आज्ञा दी है? (ख) परमेश्वर और बाइबल के लिए हमारा प्यार कैसे हमें अपने भाइयों से प्यार करने के लिए उभारेगा?
15 धरती पर अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात को यीशु ने अपने चेलों से कहा, “मैं तुम्हें एक नयी आज्ञा देता हूँ कि तुम एक-दूसरे से प्यार करो। ठीक जैसे मैंने तुमसे प्यार किया है, वैसे ही तुम भी एक-दूसरे से प्यार करो। अगर तुम्हारे बीच प्यार होगा, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।”—यूह. 13:34, 35.
16 ध्यान दीजिए कि भाई-बहनों से प्यार करने और यहोवा से प्यार करने के बीच गहरा नाता है। अगर हम परमेश्वर से प्यार नहीं करते तो हम अपने भाइयों से प्यार नहीं कर सकते। उसी तरह अगर हम अपने भाइयों से प्यार नहीं करते तो हम परमेश्वर से प्यार नहीं कर सकते। प्रेषित यूहन्ना ने लिखा, “जो अपने भाई से प्यार नहीं करता जिसे उसने देखा है, वह परमेश्वर से प्यार नहीं कर सकता जिसे उसने नहीं देखा।” (1 यूह. 4:20) इसके अलावा, जब हम बाइबल की सच्चाइयों से प्यार करते हैं, तो हम यहोवा से और अपने भाइयों से भी प्यार करेंगे। वह कैसे? बाइबल की सच्चाइयों के लिए प्यार हमें उभारेगा कि हम इसमें दी आज्ञाओं को मानें और इसमें साफ-साफ लिखा है कि हम परमेश्वर से और अपने भाइयों से प्यार करें।—1 पत. 1:22; 1 यूह. 4:21.
17. हम किन तरीकों से दिखा सकते हैं कि हम अपने भाइयों से प्यार करते हैं?
17 पहला थिस्सलुनीकियों 4:9, 10 पढ़िए। हम किन तरीकों से दिखा सकते हैं कि हम अपनी मंडली के भाई-बहनों से प्यार करते हैं? हो सकता है, एक बुज़ुर्ग भाई या बहन को मंडली की सभाओं में लाने-ले-जाने के लिए मदद की ज़रूरत हो। या एक विधवा बहन के घर में कुछ मरम्मत करनी हो। (याकू. 1:27) कुछ भाई-बहन निराश या मायूस हों या फिर वे कोई और परेशानी का सामना कर रहे हों। ऐसे में उन्हें हमारी देखभाल, हौसला-अफज़ाई या दिलासे की ज़रूरत हो। (नीति. 12:25; कुलु. 4:11) जी हाँ, जब हम अपनी बातों और कामों से उन लोगों की मदद करते हैं “जो विश्वास में हमारे भाई-बहन हैं,” तो हम उनके लिए अपने प्यार का सबूत देते हैं।—गला. 6:10.
18. क्या बात भाइयों के साथ झगड़ा निपटाने में हमारी मदद करेगी?
18 बाइबल बताती है कि इस दुष्ट दुनिया के “आखिरी दिनों में” कई लोग खुदगर्ज़ और लालची होंगे। (2 तीमु. 3:1, 2) मसीही होने के नाते हमें यहोवा, उसके वचन और एक-दूसरे के लिए प्यार बढ़ाने में बहुत मेहनत करनी होगी। हम परिपूर्ण नहीं हैं इसलिए कभी-कभी भाई-बहनों के साथ हमारी कहा-सुनी हो जाती है। लेकिन हम अपने भाइयों से प्यार करते हैं और यह प्यार हमें बढ़ावा देता है कि हम जल्द-से-जल्द उस झगड़े को निपटाएँ। (इफि. 4:32; कुलु. 3:14) आइए हम कभी-भी अपने प्यार को ठंडा न होने दें! इसके बजाय हम दिल की गहराइयों से यहोवा, उसके वचन और भाई-बहनों से प्यार करते रहें।