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अपने दुश्‍मन को पहचानिए

अपने दुश्‍मन को पहचानिए

“हम [शैतान की] चालबाज़ियों से अनजान नहीं।”​—2 कुरिं. 2:11.

गीत: 49, 27

1. अदन के बाग में यहोवा ने हमारे दुश्‍मन के बारे में क्या ज़ाहिर किया?

आदम अच्छी तरह जानता था कि साँप बात नहीं कर सकते। इसलिए जब उसे पता चला कि एक साँप ने हव्वा से बात की थी, तो वह शायद समझ गया कि एक स्वर्गदूत ने बात की थी। (उत्प. 3:1-6) आदम और हव्वा इस स्वर्गदूत को नहीं जानते थे, फिर भी उसके साथ मिलकर उन्होंने अपने प्यारे पिता यहोवा से बगावत की। (1 तीमु. 2:14) इस बगावत के फौरन बाद, यहोवा ने ज़ाहिर किया कि आगे चलकर इस दुश्‍मन को मिटा दिया जाएगा। लेकिन यहोवा ने खबरदार किया कि उस वक्‍त के आने तक यह दुष्ट स्वर्गदूत, उन सभी लोगों का विरोध करेगा जो परमेश्‍वर से प्यार करते हैं।​—उत्प. 3:15.

2, 3. मसीहा के आने से पहले शैतान के बारे में कम जानकारी क्यों दी गयी थी?

2 यहोवा ने कभी उस बागी स्वर्गदूत का असली नाम नहीं बताया। * अदन में हुई बगावत के करीब 2,500 साल बाद यहोवा ने सिर्फ इतना बताया कि उसे “शैतान” कहा गया जिसका मतलब है “विरोधी।” (अय्यू. 1:6) दरअसल यह शब्द इब्रानी शास्त्र की सिर्फ तीन किताबों यानी 1 इतिहास, अय्यूब और जकरयाह में पाया जाता है। तो सवाल है कि मसीहा के आने से पहले इस दुश्‍मन के बारे में इतनी कम जानकारी क्यों दी गयी थी?

3 यहोवा ने शैतान के बारे में ज़्यादा जानकारी इसलिए नहीं दी क्योंकि इब्रानी शास्त्र का वह मकसद नहीं था। इसका मकसद यह था कि लोग मसीहा को पहचान सकें और उसके पीछे चल सकें। (लूका 24:44; गला. 3:24) जब मसीहा आया तो यहोवा ने उसके और उसके चेलों के ज़रिए शैतान और उसके स्वर्गदूतों के बारे में खुलकर बताया। * ऐसा करना सही था क्योंकि यहोवा यीशु और अभिषिक्‍त जनों के ज़रिए ही शैतान और उसके समर्थकों का नाश करेगा।​—रोमि. 16:20; प्रका. 17:14; 20:10.

4. हमें शैतान से क्यों खौफ नहीं खाना चाहिए?

4 प्रेषित पतरस ने शैतान की तुलना “गरजते हुए शेर” से की और यूहन्‍ना ने उसे “साँप” और “अजगर” कहा। (1 पत. 5:8; प्रका. 12:9) लेकिन हमें शैतान से खौफ खाने की ज़रूरत नहीं क्योंकि उसकी ताकत की एक सीमा है। (याकूब 4:7 पढ़िए।) यहोवा, यीशु और वफादार स्वर्गदूत हमारे साथ हैं। उनकी मदद से हम अपने दुश्‍मन शैतान का डटकर विरोध कर सकते हैं। फिर भी, हमें इन तीन अहम सवालों पर गौर करना चाहिए: शैतान कितना शक्‍तिशाली है? वह किस तरह लोगों को अपने काबू में करने की कोशिश करता है? और ऐसे कौन-से काम हैं जो वह नहीं कर सकता? आइए इन सवालों के जवाब जानें और देखें कि हम क्या सीख सकते हैं।

शैतान कितना शक्‍तिशाली है?

5, 6. इंसानी सरकारें वह बदलाव क्यों नहीं ला सकतीं जिसकी हमें सख्त ज़रूरत है?

5 शैतान के साथ मिलकर कई स्वर्गदूतों ने परमेश्‍वर से बगावत की। जलप्रलय से पहले, शैतान ने कुछ स्वर्गदूतों को लुभाया कि वे धरती पर औरतों के साथ नाजायज़ यौन-संबंध रखें। इस बगावत को बाइबल में लाक्षणिक तौर पर समझाया गया है। वहाँ बताया गया है कि कैसे अजगर अपने साथ एक-तिहाई तारों को घसीटकर ले गया। (उत्प. 6:1-4; यहू. 6; प्रका. 12:3, 4) जब बागी स्वर्गदूतों ने परमेश्‍वर का परिवार छोड़ दिया, तो वे शैतान के अधीन हो गए। हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि ये स्वर्गदूत अव्यवस्थित तरीके से काम करते हैं। दरअसल शैतान ने परमेश्‍वर के राज के जैसा हू-ब-हू अपना एक राज कायम किया है और वह खुद उसका राजा बन बैठा है। यही नहीं, उसने दुष्ट स्वर्गदूतों को संगठित किया है, उन्हें ताकत और अधिकार दिया है और दुनिया के शासक ठहराए हैं।​—इफि. 6:12.

6 शैतान इसी संगठन के ज़रिए सभी इंसानी सरकारों को अपने काबू में रखता है। यह हम कैसे जानते हैं? जब उसने यीशु को “दुनिया के सारे राज्य दिखाए” तो उसने कहा, “मैं इन सबका अधिकार और इनकी शानो-शौकत तुझे दे दूँगा क्योंकि यह सब मेरे हवाले किया गया है और मैं जिसे चाहूँ उसे देता हूँ।” (लूका 4:5, 6) जी हाँ, इंसानी सरकारों पर शैतान का ज़बरदस्त असर है! फिर भी, बहुत-सी सरकारें अपने लोगों के लिए अच्छे काम करती हैं और कुछ शासक तो सच्चे दिल से उनकी मदद करना चाहते हैं। लेकिन लोगों को जिस बदलाव की सख्त ज़रूरत है, वह बदलाव कोई भी सरकार या शासक नहीं ला सकता।​—भज. 146:3, 4; प्रका. 12:12.

7. शैतान कैसे झूठे धर्म और व्यापार जगत के ज़रिए भी लोगों को गुमराह कर रहा है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

7 शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूत झूठे धर्म और व्यापार जगत के ज़रिए भी “सारे जगत को गुमराह” कर रहे हैं। वह कैसे? (प्रका. 12:9) झूठे धर्म के ज़रिए शैतान यहोवा के बारे में झूठ फैलाता है, यहाँ तक कि लोगों से परमेश्‍वर का नाम छिपाने की कोशिश करता है। (यिर्म. 23:26, 27) यही वजह है कि कुछ नेकदिल लोगों को लगता है कि वे परमेश्‍वर की उपासना कर रहे हैं, जबकि असल में वे दुष्ट स्वर्गदूतों की उपासना कर रहे हैं। (1 कुरिं. 10:20; 2 कुरिं. 11:13-15) व्यापार जगत के ज़रिए भी शैतान कई तरह के झूठ फैलाता है। एक यह है कि पैसा या ऐशो-आराम की चीज़ें ही लोगों को खुशी दे सकती हैं। (नीति. 18:11) इस झूठ पर यकीन करके कुछ लोग परमेश्‍वर की सेवा करने के बजाय “धन-दौलत” की गुलामी करने लगे हैं। (मत्ती 6:24) नतीजा, पैसे का प्यार इस कदर उनके दिल में घर कर गया है कि परमेश्‍वर के लिए उनका प्यार मिट चुका है।​—मत्ती 13:22; 1 यूह. 2:15, 16.

8, 9. (क) आदम-हव्वा और बागी स्वर्गदूतों के ब्यौरों से हम कौन-से दो सबक सीखते हैं? (ख) यह जानना क्यों ज़रूरी है कि दुनिया शैतान के कब्ज़े में है?

8 आदम-हव्वा और बागी स्वर्गदूतों के ब्यौरों से हम दो अहम सबक सीखते हैं। पहला यह कि सिर्फ दो पक्ष हैं और हमें इनमें से किसी एक पक्ष को चुनना होगा। हम या तो यहोवा का पक्ष लेंगे या शैतान का। (मत्ती 7:13) दूसरा, जो शैतान का पक्ष लेते हैं उन्हें सिर्फ कुछ समय के लिए फायदा होता है। आदम और हव्वा को अपने लिए अच्छे-बुरे का फैसला करने का मौका मिला और दुष्ट स्वर्गदूतों को इंसानी सरकारों पर कुछ हद तक अधिकार दिया गया। (उत्प. 3:22) लेकिन जैसा कि उनकी मिसालें साफ दिखाती हैं, शैतान का पक्ष लेने के हमेशा बुरे अंजाम होते हैं। इससे किसी का भला नहीं होता!​—अय्यू. 21:7-17; गला. 6:7, 8.

9 यह जानना क्यों ज़रूरी है कि दुनिया शैतान के कब्ज़े में है? इसके दो फायदे हैं। एक यह है कि हम दुनिया की सरकारों के बारे में सही नज़रिया रख पाते हैं। हम जानते हैं कि यहोवा उम्मीद करता है कि हम सरकारी अधिकारियों का आदर करें। (1 पत. 2:17) वह चाहता है कि हम सरकार के नियम-कानून मानें बशर्ते ये उसके स्तरों के खिलाफ न हों। (रोमि. 13:1-4) लेकिन हम यह भी जानते हैं कि हमें निष्पक्ष रहना चाहिए और किसी भी राजनैतिक दल या इंसानी शासक का साथ नहीं देना चाहिए। (यूह. 17:15, 16; 18:36) दूसरा फायदा है कि हमें खुशखबरी सुनाने का बढ़ावा मिलता है। हम अच्छी तरह जानते हैं कि कैसे शैतान लोगों से यहोवा का नाम छिपा रहा है और उसके नाम पर कलंक लगा रहा है। इसलिए हम परमेश्‍वर के बारे में सच्चाई बताने से पीछे नहीं हटते। हमें गर्व है कि हम यहोवा के नाम से जाने जाते हैं और हम खुलकर वह नाम इस्तेमाल करते हैं। परमेश्‍वर के लिए हमारा प्यार, पैसे के प्यार या किसी भी चीज़ से कहीं बढ़कर है!​—यशा. 43:10; 1 तीमु. 6:6-10.

शैतान किस तरह लोगों को काबू में करता है?

10-12. (क) शैतान ने कैसे कुछ स्वर्गदूतों को लुभाया होगा? (ख) उन स्वर्गदूतों से हम क्या सीखते हैं?

10 शैतान लोगों को अपने काबू में करने के लिए कई तरीके अपनाता है और वह कामयाब भी हुआ है। कुछ मामलों में वह मानो चारा डालकर उन्हें गलत काम करने के लिए लुभाता है, तो दूसरे मामलों में डरा-धमकाकर उनसे वह काम करवाता है जो वह चाहता है।

11 ध्यान दीजिए कि शैतान ने कैसे कई स्वर्गदूतों को लुभाया था। शायद उसने काफी समय तक उन्हें गौर से देखा होगा और यह समझ गया होगा कि उन्हें नाजायज़ यौन-संबंध के फंदे में फँसाया जा सकता है। कुछ स्वर्गदूत इस फंदे में फँस गए और औरतों के साथ संबंध रखे। उनके जो बच्चे हुए, वे बड़े खूँखार थे और लोगों पर ज़ुल्म ढाते थे। (उत्प. 6:1-4) लेकिन शैतान ने स्वर्गदूतों के आगे सिर्फ नाजायज़ यौन-संबंध का चारा नहीं डाला होगा। उसने उनसे यह भी वादा किया होगा कि उन्हें सभी इंसानों पर अधिकार दिया जाएगा। इस तरह शैतान ने कोशिश की कि ‘औरत के वंश’ के बारे में की यहोवा की भविष्यवाणी पूरी न हो। (उत्प. 3:15) लेकिन यहोवा ने ऐसा होने नहीं दिया। उसने जलप्रलय लाकर शैतान और दुष्ट स्वर्गदूतों की सारी चालबाज़ियों को नाकाम कर दिया।

शैतान नाजायज़ यौन-संबंध, घमंड और भूत-प्रेत का चारा डालकर हमें फँसाता है (पैराग्राफ 12, 13 देखिए)

12 इससे हम क्या सीखते हैं? यही कि हमें नाजायज़ यौन-संबंध और घमंड के फंदों को कम नहीं आँकना चाहिए। उन स्वर्गदूतों के बारे में सोचिए जो शैतान के साथ हो लिए थे। वे सालों से यहोवा के साथ स्वर्ग में थे, फिर भी उन्होंने बुरी इच्छाओं को अपने अंदर जड़ पकड़ने दिया। उसी तरह, हम भी शायद सालों से यहोवा की सेवा कर रहे हों, फिर भी बुरी इच्छाएँ हमारे दिल में जड़ पकड़ सकती हैं। (1 कुरिं. 10:12) यह कितना ज़रूरी है कि हम खुद की जाँच करते रहें। अगर हम देखें कि हमारे मन में गंदे खयाल आ रहे हैं या हममें घमंड आने लगा है, तो हमें इसे जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए।​—गला. 5:26; कुलुस्सियों 3:5 पढ़िए।

13. शैतान का एक और फंदा क्या है और हम इससे कैसे बच सकते हैं?

13 शैतान एक और फंदा इस्तेमाल करता है। वह जानता है कि लोगों में भूत-प्रेतों के बारे में जानने की इच्छा होती है। इस इच्छा को बढ़ाने के लिए वह न सिर्फ झूठे धर्म का बल्कि मनोरंजन का भी इस्तेमाल करता है। आज ऐसी फिल्मों, वीडियो गेम और मनोरंजन की भरमार है जिनमें भूत-प्रेतों के बारे में दिखाया जाता है। हम इस फंदे से कैसे बच सकते हैं? हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि परमेश्‍वर का संगठन एक लंबी-चौड़ी सूची देगा कि कौन-सा मनोरंजन अच्छा है और कौन-सा बुरा। इसके बजाय, हमें अपने ज़मीर को प्रशिक्षण देना होगा ताकि हम यहोवा के सिद्धांतों के मुताबिक सही फैसले कर सकें। (इब्रा. 5:14) लेकिन हम बुद्धि-भरे फैसले तभी कर पाएँगे जब हम पौलुस की यह सलाह मानेंगे, “तुम्हारे प्यार में कपट न हो।” (रोमि. 12:9) जब हम कोई मनोरंजन चुनते हैं, तो हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘जो सिद्धांत मैं दूसरों को सिखाता हूँ, क्या मैं खुद उन पर चलता हूँ? अगर मेरे बाइबल विद्यार्थी और वापसी भेंट देखें कि मैंने कौन-सा मनोरंजन चुना है, तो वे क्या सोचेंगे?’ जब हम उन बातों पर चलते हैं जो हम दूसरों को सिखाते हैं, तो हम शैतान के फंदे में फँसने से बचते हैं।​—1 यूह. 3:18.

शैतान सरकार की लगायी पाबंदी, स्कूल के साथियों के दबाव और परिवार से आनेवाले विरोध के ज़रिए हमें डराता है (पैराग्राफ 14 देखिए)

14. शैतान किस तरह हमें डराने-धमकाने की कोशिश करता है? हम कैसे डटकर उसका सामना कर सकते हैं?

14 कभी-कभी शैतान हमें डराने-धमकाने की भी कोशिश करता है ताकि हम अपने विश्‍वास से समझौता कर लें। मिसाल के लिए, वह शायद सरकारों को भड़काए ताकि वे हमारे काम पर पाबंदी लगा दें। या हो सकता है, वह हमारे सहकर्मियों या स्कूल के साथियों को उकसाए कि वे हमारी खिल्ली उड़ाएँ क्योंकि हम बाइबल के स्तरों पर चलते हैं। (1 पत. 4:4) शैतान हमारे परिवार के अविश्‍वासी सदस्यों को भी बहका सकता है कि वे हमें सभाओं में जाने से रोकें। (मत्ती 10:36) शैतान के इन हमलों का हम कैसे डटकर सामना कर सकते हैं? सबसे पहले, हमें इन हमलों से हैरान नहीं होना चाहिए क्योंकि हम जानते हैं कि शैतान हमसे युद्ध कर रहा है। (प्रका. 2:10; 12:17) दूसरा, हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि शैतान ने क्या दावा किया है। वह यह कि मुश्‍किलें आने पर हम यहोवा की सेवा करना छोड़ देंगे। (अय्यू. 1:9-11; 2:4, 5) तीसरा, हमें यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें सहने की ताकत दे। याद रखिए, यहोवा हमें कभी नहीं त्यागेगा।​—इब्रा. 13:5.

शैतान क्या नहीं कर सकता

15. क्या शैतान ज़बरदस्ती हमसे कोई काम करवा सकता है? समझाइए।

15 शैतान ज़बरदस्ती लोगों से वह काम नहीं करवा सकता जो वे नहीं करना चाहते। (याकू. 1:14) यह सच है कि दुनिया में कई लोग इस बात से अनजान हैं कि उन्होंने शैतान का पक्ष लिया है। लेकिन जब एक व्यक्‍ति सच्चाई सीखता है, तो उसे चुनना होता है कि वह यहोवा का पक्ष लेगा या शैतान का। (प्रेषि. 3:17; 17:30) अगर हमने ठान लिया है कि हम हर हाल में यहोवा की आज्ञा मानेंगे, तो शैतान हमारी वफादारी नहीं तोड़ सकता।​—अय्यू. 2:3; 27:5.

16, 17. (क) शैतान और दुष्ट स्वर्गदूतों की और क्या सीमाएँ हैं? (ख) हमें क्यों ज़ोर से प्रार्थना करने से नहीं डरना चाहिए?

16 शैतान और दुष्ट स्वर्गदूतों की और भी कुछ सीमाएँ हैं। बाइबल में कहीं नहीं लिखा है कि वे हमारा मन या दिल पढ़ सकते हैं। सिर्फ यहोवा और यीशु ऐसा कर सकते हैं। (1 शमू. 16:7; मर. 2:8) तो फिर, क्या हमें डरना चाहिए कि हम ज़ोर से प्रार्थना या बात करेंगे, तो शैतान और दुष्ट स्वर्गदूत हमारी सुन लेंगे और हमारे खिलाफ कुछ करेंगे? नहीं! क्यों नहीं? ज़रा इस बारे में सोचिए: हम यहोवा की सेवा में बढ़िया काम करते हैं और इस डर से पीछे नहीं हटते कि शैतान हमें देख रहा है। उसी तरह, हमें ज़ोर से प्रार्थना करते रहना चाहिए और इस डर से पीछे नहीं हटना चाहिए कि शैतान हमारी सुन रहा है। बाइबल में परमेश्‍वर के सेवकों की कई मिसालें दर्ज़ हैं जिन्होंने ऊँची आवाज़ में प्रार्थना की थी और हम कहीं नहीं पढ़ते कि उन्हें डर था कि शैतान उनकी प्रार्थनाएँ सुन लेगा। (1 राजा 8:22, 23; यूह. 11:41, 42; प्रेषि. 4:23, 24) अगर हम अपनी बातों और कामों से दिखाएँ कि हम यहोवा की मरज़ी पूरी करना चाहते हैं, तो यहोवा शैतान को ऐसा कुछ नहीं करने देगा जिससे हमें हमेशा का नुकसान हो।​—भजन 34:7 पढ़िए।

17 हमें अपने दुश्‍मन को पहचानना है लेकिन हमें उससे खौफ खाने की ज़रूरत नहीं। हालाँकि हम अपरिपूर्ण हैं, लेकिन यहोवा की मदद से हम शैतान पर जीत हासिल कर सकते हैं! (1 यूह. 2:14) अगर हम उसका विरोध करें, तो वह हमारे पास से भाग जाएगा। (याकू. 4:7; 1 पत. 5:9) लेकिन आज शैतान खासकर नौजवानों को अपना निशाना बना रहा है। वे कैसे उसके हमलों का डटकर सामना कर सकते हैं? इस बारे में अगले लेख में चर्चा की जाएगी।

^ पैरा. 2 बाइबल में कुछ स्वर्गदूतों के नाम दिए गए हैं। (न्यायि. 13:18; दानि. 8:16; लूका 1:19; प्रका. 12:7) बाइबल यह भी बताती है कि यहोवा ने हरेक तारे को नाम दिया है। (भज. 147:4) तो फिर, इस नतीजे पर पहुँचना सही होगा कि यहोवा ने सभी स्वर्गदूतों को एक नाम दिया है, उसे भी जो आगे चलकर शैतान बना।

^ पैरा. 3 मूल भाषाओं में शब्द “शैतान” इब्रानी शास्त्र में 18 बार आता है, लेकिन मसीही यूनानी शास्त्र में 30 से ज़्यादा बार आता है।