अध्ययन लेख 20
दुर्व्यवहार के शिकार लोगों को कैसे दिलासा दें?
“हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्वर . . . हमारी सब परीक्षाओं में हमें दिलासा देता है।”—2 कुरिं. 1:3, 4.
गीत 134 बच्चे यहोवा की अमानत
लेख की एक झलक *
1-2. (क) क्या दिखाता है कि इंसानों को दिलासे की ज़रूरत होती है और उनमें दिलासा देने की काबिलीयत भी होती है? (ख) कुछ बच्चों को किस तरह की चोट पहुँचती है?
बच्चे हों या बड़े-बुज़ुर्ग, सब इंसानों की ज़रूरत होती है कि उन्हें दिलासा मिले। यही नहीं, इंसानों में दूसरों को दिलासा देने की अनोखी काबिलीयत भी होती है। मान लीजिए, एक बच्चा खेलते-खेलते गिर जाता है और उसका घुटना छिल जाता है। वह रोने लगता है और दौड़कर अपनी मम्मी के पास जाता है। माँ उसका घाव तो ठीक नहीं कर सकती, लेकिन वह बच्चे को दिलासा देने लगती है। वह उसे गले लगा लेती है, उसे पुचकारती है और उसके आँसू पोंछते हुए प्यार से पूछती है कि क्या हुआ। फिर वह चोट पर कुछ दवा लगाती है या पट्टी बाँधती है। थोड़ी देर में बच्चा शांत हो जाता है और फिर से खेलने लगता है। वक्त के गुज़रते उसका घाव भर जाता है।
2 लेकिन कुछ बच्चों को इससे भी भयानक और गहरी चोट पहुँचती है। यह तब होता है, जब उनका यौन-शोषण किया जाता है। इससे बच्चों के दिल पर जो ज़ख्म लगते हैं, वे आसानी से नहीं भरते, फिर चाहे उनके साथ ऐसा एक बार हो या सालों के दौरान कई बार। कुछ मामलों में अपराधी को गिरफ्तार करके सज़ा दी जाती है, तो कई बार उसे कोई सज़ा नहीं मिलती। लेकिन अगर अपराधी को सज़ा मिल भी जाए, तब भी उसके गलत काम का असर बच्चे पर लंबे समय तक रहता है, यहाँ तक कि बड़े होने पर भी।
3. (क) 2 कुरिंथियों 1:3, 4 के मुताबिक यहोवा क्या चाहता है? (ख) इस लेख में हम किन सवालों पर गौर करेंगे?
3 अगर एक मसीही के साथ बचपन में यौन-शोषण हुआ है और यह बात अब भी उसे तकलीफ देती है, तो उसे कहाँ से मदद मिल सकती है? (2 कुरिंथियों 1:3, 4 पढ़िए।) बाइबल से साफ ज़ाहिर होता है कि यहोवा के लिए उसकी भेड़ें बहुत अनमोल हैं। वह चाहता है कि उसकी भेड़ों को वह प्यार और दिलासा मिले जिनकी उन्हें सख्त ज़रूरत है। अब आइए हम तीन सवालों पर गौर करें: (1) बचपन में जिनका यौन-शोषण हुआ है, उन्हें दिलासे की ज़रूरत क्यों हो सकती है? (2) उन्हें यह दिलासा कौन दे सकता है? (3) हम किन बढ़िया तरीकों से उन्हें दिलासा दे सकते हैं?
दिलासे की ज़रूरत क्यों है?
4-5. (क) यह समझना क्यों ज़रूरी है कि बच्चे बड़ों से अलग होते हैं? (ख) यौन-शोषण का एक बच्चे के भरोसा पर क्या असर होता है?
4 जिन लोगों का बचपन में यौन-शोषण हुआ है, उनमें से कुछ को शायद अब भी दिलासे की ज़रूरत हो, फिर चाहे उस घटना को कई साल हो गए हों। वह क्यों? इसका जवाब पाने के लिए सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि बच्चे बड़ों से बहुत अलग होते हैं। एक बड़े व्यक्ति पर बुरे कामों का जो असर होता है और एक बच्चे पर जो असर होता है, उसमें ज़मीन-आसमान का फर्क है। आइए देखें कि बच्चों पर क्या असर होता है।
5 बच्चे उनकी परवरिश और देखभाल करनेवालों पर भरोसा करते हैं और उनके बहुत करीब महसूस करते हैं और यह बच्चों के लिए ज़रूरी भी है। इस तरह बच्चे सुरक्षित महसूस करते हैं और उन सब पर भरोसा करना सीखते हैं, जो उनसे प्यार करते हैं। (भज. 22:9) लेकिन दुख की बात है कि ज़्यादातर मामलों में बच्चों का यौन-शोषण घर की चारदीवारी में होता है और अकसर गुनहगार घर का सदस्य या कोई करीबी दोस्त होता है। जब ऐसा घिनौना काम करके एक बच्चे का भरोसा तोड़ा जाता है, तो शायद वह फिर कभी किसी पर भरोसा न कर पाए, बड़े होने पर भी नहीं।
6. यह क्यों कहा जा सकता है कि यौन-शोषण करना बड़ी बेरहमी है और इससे नुकसान पहुँचता है?
6 बच्चे खुद की हिफाज़त नहीं कर सकते, उनका यौन-शोषण करना बड़ी बेरहमी है और इससे उन्हें नुकसान पहुँचता है। बच्चों को समझ नहीं होती कि शादी करके यौन-संबंध रखना क्या होता है और न ही वे इसके लिए शारीरिक या जज़्बाती तौर पर तैयार होते हैं। इसलिए उनसे ज़बरदस्ती लैंगिक काम करवाने से उन्हें बहुत नुकसान पहुँचता है। इस तरह के कामों से सेक्स के बारे में उनकी सोच बिगड़ सकती है। वे खुद को बेकार समझने लग सकते हैं और शायद वे दूसरों पर आसानी से भरोसा भी न कर पाएँ।
7. (क) यौन-शोषण करनेवाले क्यों बड़ी आसानी से बच्चों को फुसला सकते हैं? (ख) वे शायद यह कैसे करें? (ग) उनके झूठ का बच्चों पर क्या असर हो सकता है?
7 बच्चों में इतनी समझ नहीं होती कि वे सही-गलत में फर्क कर पाएँ, बातों को परख सकें, खतरे पहचान पाएँ और उनसे बचने के लिए कदम उठा पाएँ। (1 कुरिं. 13:11) यौन-शोषण करनेवाले इसी बात का फायदा उठाते हैं। वे उन्हें फुसलाकर उनके साथ गलत काम करते हैं। फिर वे उनसे घिनौने झूठ बोलते हैं। जैसे, वे शायद बच्चे से कहें, ‘जो हुआ उसके लिए तुम्हीं दोषी हो’ या ‘यह बात हम दोनों के बीच ही रहनी चाहिए, अगर तुमने किसी से कुछ कहा, तो कोई तुम्हारा यकीन नहीं करेगा और न ही तुम्हारी मदद करेगा।’ या फिर शायद वे कहें, ‘इसमें कोई बुराई नहीं है, बड़े इसी तरह बच्चों से प्यार करते हैं।’ शायद बच्चे को यह समझने में सालों लग जाएँ कि यह सब दरअसल झूठ है। लेकिन इस दौरान ये झूठ उसे बहुत नुकसान पहुँचा सकते हैं। शायद उसे लगने लगे कि वह बेकार या दूषित हो गया है और किसी से प्यार या दिलासा पाने के लायक नहीं रहा। यह सोच बड़े होने पर भी उसे परेशान कर सकती है।
8. हम यह यकीन क्यों रख सकते हैं कि यहोवा दर्द सहनेवालों को दिलासा दे सकता है?
8 वाकई, बाल यौन-शोषण के अंजाम लंबे समय तक रहते हैं। कितना घिनौना काम है यह! यौन-शोषण जिस तरह एक महामारी का रूप ले चुका है, वह इस बात का सबूत है कि हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं, ऐसे वक्त में, जब ज़्यादातर लोग “लगाव न रखनेवाले” हैं और “दुष्ट और फरेबी बद-से-बदतर होते चले” जा रहे हैं। (2 तीमु. 3:1-5, 13) शैतान की चालें सच में बहुत दुष्ट हैं और अफसोस की बात है कि आज लोग ऐसे काम करते हैं, जो शैतान उनसे चाहता है। लेकिन यहोवा, शैतान या उसका साथ देनेवालों से कहीं ज़्यादा ताकतवर है! वह शैतान की चालों से अनजान नहीं। हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमारा दर्द और हमारी तकलीफ अच्छी तरह समझता है और वह हमें दिलासा दे सकता है। हम कितने खुश हैं कि हम यहोवा की सेवा करते हैं, जो “हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्वर है। वह हमारी सब परीक्षाओं में हमें दिलासा देता है ताकि हम किसी भी तरह की परीक्षा का सामना करनेवालों को वही दिलासा दे सकें जो हमें परमेश्वर से मिलता है।” (2 कुरिं. 1:3, 4) लेकिन परमेश्वर हमें किसके ज़रिए दिलासा देता है?
कौन दिलासा दे सकता है?
9. भजन 27:10 में लिखे दाविद के शब्दों के मुताबिक अगर एक व्यक्ति का परिवार उसे छोड़ दे, तो यहोवा क्या करेगा?
9 खासकर ऐसे लोगों को दिलासा चाहिए, जिनके माता-पिता ने यौन-शोषण से उनकी हिफाज़त नहीं की या जिनके किसी करीबी ने उनके साथ यह गलत काम किया है। भजन का लेखक दाविद जानता था कि यहोवा हर हाल में हमें दिलासा दे सकता है, वह कभी निराश नहीं करता। (भजन 27:10 पढ़िए।) दाविद को पूरा यकीन था कि अगर एक व्यक्ति का परिवार उसे छोड़ दे, तब भी यहोवा उसे अपना लेगा और उसका पिता साबित होगा। वह कैसे? वह अपने वफादार सेवकों के ज़रिए उसे दिलासा देगा। मंडली के भाई-बहन हमारे लिए परिवार की तरह हैं। यही बात यीशु ने कही थी कि जो कोई उसके साथ मिलकर यहोवा की उपासना करता है, वही उसका भाई, उसकी बहन और माँ है।—मत्ती 12:48-50.
10. प्रेषित पौलुस ने प्राचीन के नाते अपनी भूमिका के बारे में क्या बताया?
10 आइए एक उदाहरण पर ध्यान दें, जहाँ मसीही मंडली एक परिवार की तरह थी। प्रेषित पौलुस मेहनती और वफादार प्राचीन था। उसने सबके लिए एक बढ़िया मिसाल रखी और उन्हें बढ़ावा दिया कि वे उसकी मिसाल पर चलें, ठीक जैसे वह मसीह की मिसाल पर चलता है। (1 कुरिं. 11:1) गौर कीजिए कि पौलुस ने एक मौके पर प्राचीन के नाते अपनी भूमिका के बारे में क्या बताया। उसने कहा, “हम तुम्हारे साथ बड़ी नरमी से पेश आए, ठीक जैसे एक दूध पिलानेवाली माँ प्यार से अपने नन्हे-मुन्नों की देखभाल करती है।” (1 थिस्स. 2:7) आज वफादार प्राचीन भी पौलुस की मिसाल पर चलने की कोशिश करते हैं। जब वे पीड़ित लोगों को बाइबल से दिलासा देते हैं, तो उनसे प्यार और नरमी से बात करते हैं।
11. हम क्यों कह सकते हैं कि दिलासा देना सिर्फ प्राचीनों की ज़िम्मेदारी नहीं है?
11 क्या यौन-शोषण से पीड़ित लोगों को दिलासा देने की ज़िम्मेदारी सिर्फ प्राचीनों की है? जी नहीं, “एक-दूसरे 1 थिस्स. 4:18) खासकर प्रौढ़ मसीही बहनें ज़रूरत की घड़ी में दूसरी बहनों को दिलासा दे सकती हैं। जब यहोवा यह समझा रहा था कि वह दुखी लोगों को किस तरह दिलासा देता है, तब उसने भी अपनी तुलना एक माँ से की जो अपने बेटे को दिलासा देती है। (यशा. 66:13) बाइबल में कुछ उदाहरण दिए गए हैं कि कैसे औरतों ने भी दुखी लोगों को दिलासा दिया। (अय्यू. 42:11) आज भी यहोवा यह देखकर कितना खुश होता होगा कि मसीही बहनें यौन-शोषण से पीड़ित बहनों को दिलासा देती हैं! कुछ मामलों में हो सकता है, एक या दो प्राचीन किसी प्रौढ़ बहन से कहें कि क्या वह एक पीड़ित बहन की मदद कर सकती है। *
को दिलासा देते” रहना हम सबकी ज़िम्मेदारी है। (हम किन तरीकों से दिलासा दे सकते हैं?
12. किसी भाई-बहन की मदद करते वक्त हमें क्या ध्यान रखना चाहिए?
12 जब हम किसी मसीही की मदद करते हैं, तो हमें ध्यान रखना चाहिए कि जिन बातों के बारे में वह चर्चा नहीं करना चाहता, उस बारे में हम पूछताछ न करें। (1 थिस्स. 4:11) लेकिन जो भाई-बहन चाहते हैं कि हम उनकी मदद करें और उन्हें दिलासा दें, उनके लिए हम क्या कर सकते हैं? बाइबल से हम ऐसे कुछ पाँच तरीके सीखते हैं, जिनसे हम दूसरों को दिलासा दे सकते हैं। आइए एक-एक करके उन पर चर्चा करें।
13. (क) 1 राजा 19:5-8 में बतायी घटना में यहोवा के स्वर्गदूत ने एलियाह के लिए क्या किया? (ख) हम स्वर्गदूत की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
13 उनके लिए कुछ कीजिए। जब भविष्यवक्ता एलियाह अपनी जान बचाकर भाग रहा था, तो वह इतना निराश हो गया कि मौत माँगने लगा। तब यहोवा ने एक शक्तिशाली स्वर्गदूत उसके पास भेजा। उस वक्त एलियाह को जिस मदद की ज़रूरत थी, स्वर्गदूत ने उसे वही मदद दी। उसने एलियाह के सामने गरमा-गरम खाना रखा और प्यार से उसे जगाकर खाने के लिए कहा। (1 राजा 19:5-8 पढ़िए।) इस घटना से हम एक अहम सबक सीखते हैं: कभी-कभी एक छोटा-सा काम भी किसी का बहुत भला कर सकता है। हम किसी निराश भाई या बहन के लिए खाना बनाकर, छोटा-सा तोहफा देकर या कार्ड लिखकर उसे अपने प्यार और परवाह का यकीन दिला सकते हैं। ये काम हम तब भी कर सकते हैं, जब हमारी समझ में न आए कि हम उस नाज़ुक विषय पर उससे कैसे बात करें।
14. एलियाह की घटना से हम और क्या सीख सकते हैं?
14 दुखी व्यक्ति को सुरक्षित महसूस कराइए, ताकि उसे किसी बात का डर न हो। एलियाह की घटना से हम एक और बात सीख सकते हैं। यहोवा ने चमत्कार के ज़रिए एलियाह को वह मदद दी, जिसके बलबूते वह होरेब पहाड़ तक का लंबा सफर तय कर पाया। यह वही जगह थी जहाँ यहोवा ने सदियों पहले अपने लोगों के साथ करार किया था। इस इलाके में एलियाह ने सुरक्षित महसूस किया होगा। उसे लगा होगा कि अब वह उन लोगों की पहुँच से बहुत दूर है, जो उसकी जान लेना चाहते हैं। इस बात से हम क्या सीखते हैं? यही कि यौन-शोषण से पीड़ित लोगों को दिलासा देने के लिए हमें ऐसा माहौल बनाना चाहिए, जिससे वे सुरक्षित महसूस करें। उदाहरण के लिए, प्राचीनों को ध्यान रखना चाहिए कि एक पीड़ित बहन शायद राज-घर के बजाय अपने घर में ज़्यादा सुरक्षित महसूस करे और वहाँ बात करना उसे ज़्यादा सही लगे। वहीं शायद दूसरा व्यक्ति अपने घर के बजाय राज-घर में ज़्यादा सुरक्षित महसूस करे।
15-16. ध्यान से सुनने का क्या मतलब है?
15 ध्यान से सुनिए। बाइबल सलाह देती है, “हर कोई सुनने में फुर्ती करे, बोलने में उतावली न करे।” (याकू. 1:19) क्या हम ध्यान से सुनते हैं? हम शायद सोचें, किसी की सुनने का मतलब है कि हम शांत बैठे रहें, उसकी तरफ देखते रहें और कुछ न बोलें। लेकिन इसी को ध्यान से सुनना नहीं कहते। गौर कीजिए कि जब आखिरकार एलियाह ने यहोवा को अपने दिल का सारा हाल कह सुनाया, तो यहोवा ने ध्यान से उसकी सुनी। उसकी बातों से यहोवा समझ गया कि वह डरा हुआ है, खुद को अकेला महसूस कर रहा है और उसे लग रहा है कि उसकी मेहनत बेकार गयी। यहोवा ने एक-एक करके प्यार से उसकी सारी चिंता और परेशानी दूर की। इससे ज़ाहिर हुआ कि वह सच में एलियाह की सुन रहा था।—1 राजा 19:9-11, 15-18.
16 जब हम किसी भाई या बहन की सुन रहे होते हैं, तो हम हमदर्दी और कोमल करुणा कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं? हम सोच-समझकर कुछ ऐसी बातें कह सकते हैं, जिनसे प्यार और हमदर्दी झलके। हम उससे कह सकते हैं, “यह सुनकर बहुत दुख हुआ! ऐसा दर्द किसी बच्चे को न सहना पड़े!” पीड़ित व्यक्ति की बात हम अच्छी तरह समझ पाए हैं या नहीं, यह जानने के लिए हम उसके कुछ शब्द दोहरा सकते हैं या सोच-समझकर उससे सवाल कर सकते हैं। इस तरह उसे एहसास होगा कि हम ध्यान से उसकी सुन रहे हैं और उसकी बात समझने की कोशिश कर रहे हैं।—1 कुरिं. 13:4, 7.
17. हमें क्यों सब्र रखना चाहिए और ‘बोलने में उतावली नहीं करनी चाहिए’?
17 लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना है कि हम ‘बोलने में उतावली न करें।’ हम दुखी व्यक्ति को बीच में रोककर सलाह न देने लगें या उसकी सोच सुधारने की कोशिश न करें, बल्कि सब्र रखें। जब एलियाह आखिरकार यहोवा को अपने दिल की बात बता रहा था, तो वह बहुत दुखी था और उसने अपनी चिंता-परेशानी उसे बतायी। यहोवा ने एलियाह का विश्वास मज़बूत किया, लेकिन बाद में उसने फिर से वही बातें दोहरायीं। (1 राजा 19:9, 10, 13, 14) इससे हम क्या सीखते हैं? कभी-कभी शायद दुखी व्यक्ति कई बार अपने दिल का हाल सुनाए। ऐसे में हमें यहोवा की तरह सब्र रखना है और ध्यान से उसकी सुनना है। उसे समस्या का हल बताने के बजाय उससे हमदर्दी रखना है और उसे कोमल करुणा दिखाना है।—1 पत. 3:8.
18. मन की पीड़ा सहनेवाले व्यक्ति को हमारी प्रार्थनाओं से कैसे दिलासा मिल सकता है?
18 मन की पीड़ा सहनेवाले व्यक्ति के साथ सच्चे दिल से प्रार्थना कीजिए। शायद वह इतना निराश हो कि प्रार्थना न कर पाए, उसे लगे कि वह यहोवा से बात करने के लायक नहीं है। ऐसे व्यक्ति को दिलासा देने के लिए हम उसके साथ प्रार्थना कर सकते हैं। प्रार्थना में हम उसका नाम ले सकते हैं और यहोवा को बता सकते हैं कि वह हमारे और पूरी मंडली के लिए कितना अज़ीज़ है। हम यहोवा से बिनती कर सकते हैं कि वह अपनी इस याकू. 5:16.
अनमोल भेड़ को सुकून और दिलासा दे। इस तरह की प्रार्थनाओं से उस व्यक्ति को बहुत दिलासा मिल सकता है।—19. किसी को दिलासा देने के लिए हम क्या तैयारी कर सकते हैं?
19 ऐसे शब्द चुनिए, जो मरहम का काम करें और जिनसे दिलासा मिले। बिना सोचे-समझे बोलने से ठेस पहुँच सकती है, वहीं प्यार-से कही गयी बातें मरहम का काम कर सकती हैं, इसलिए बोलने से पहले रुककर सोचिए। (नीति. 12:18) यहोवा से प्रार्थना कीजिए, ताकि आप ऐसे शब्द चुन सकें, जिनसे प्यार झलकता है और मन को दिलासा और सुकून मिलता है। हमेशा याद रखिए कि सबसे ज़्यादा दिलासा और सुकून यहोवा के शब्दों से मिलता है, जो बाइबल में दर्ज़ हैं।—इब्रा. 4:12.
20. (क) यौन-शोषण के शिकार कुछ भाई-बहन क्या मान बैठे हैं? (ख) हम उन्हें क्या याद दिलाना चाहेंगे?
20 बाल यौन-शोषण की वजह से कुछ भाई-बहन यह मान बैठे हैं कि वे दूषित या बेकार हैं, उनसे कोई प्यार नहीं करता, यहाँ तक कि अब वे किसी के प्यार के लायक नहीं रहे। यह कितना खतरनाक झूठ है! बाइबल से उन्हें याद दिलाइए कि यहोवा उनसे बहुत प्यार करता है और उसकी नज़र में वे अनमोल हैं! (“ बाइबल की आयतों से दिलासा” नाम का बक्स देखें।) ध्यान दीजिए कि जब भविष्यवक्ता दानियेल बहुत कमज़ोर और निराश महसूस कर रहा था, तो यहोवा ने क्या किया। उसने एक स्वर्गदूत भेजकर उसकी हिम्मत बँधायी और उसे यकीन दिलाया कि वह उसके लिए बहुत अनमोल है। (दानि. 10:2, 11, 19) उसी तरह हमारे जो भाई-बहन अंदर से टूटे हुए और दुखी हैं, वे यहोवा के लिए अनमोल हैं!
21. (क) पश्चाताप न करनेवाले लोगों का क्या अंजाम होनेवाला है? (ख) लेकिन तब तक हम सबको क्या ठान लेना चाहिए?
21 जब हम किसी को दिलासा देते हैं, तो हम उसे यहोवा के प्यार का यकीन दिलाते हैं। लेकिन यहोवा न्याय का भी परमेश्वर है और यौन-शोषण जैसे घिनौने काम उससे छिपे नहीं रहते। वह सब देखता है और वह उन लोगों को सज़ा देगा, जो ऐसे दुष्ट काम करना नहीं छोड़ते। (गिन. 14:18) आइए तब तक हम ठान लें कि हम यौन-शोषण के पीड़ित लोगों को अपने प्यार का यकीन दिलाने की हर मुमकिन कोशिश करेंगे। यह जानकर कितना दिलासा मिलता है कि बहुत जल्द यहोवा वे सारे ज़ख्म भर देगा, जो यौन-शोषण के पीड़ित लोगों को शैतान और उसकी दुनिया से मिले हैं! उस वक्त वे दर्दनाक बातें फिर कभी याद नहीं आएँगी और न ही उनका खयाल कभी दिल में आएगा!—यशा. 65:17.
गीत 109 दिल से प्यार करें
^ पैरा. 5 जिन बच्चों ने लैंगिक दुर्व्यवहार या यौन-शोषण का दर्द सहा है, उन्हें शायद बड़े होने पर भी मुश्किलों का सामना करना पड़े। इस लेख से हम जानेंगे कि ऐसा क्यों होता है। हम यह भी देखेंगे कि इन लोगों को कौन दिलासा दे सकता है। आखिर में कुछ ऐसे बढ़िया तरीकों पर चर्चा की जाएगी, जिनसे हम उन्हें दिलासा दे सकते हैं।
^ पैरा. 11 यौन-शोषण से पीड़ित व्यक्ति को मदद के लिए डॉक्टर के पास जाना चाहिए या नहीं, यह उसका निजी फैसला है।
^ पैरा. 76 तसवीर के बारे में: एक प्रौढ़ बहन एक निराश और दुखी बहन को दिलासा दे रही है।
^ पैरा. 78 तसवीर के बारे में: दो प्राचीन एक निराश और दुखी बहन से मिलने आए हैं। उस बहन ने एक प्रौढ़ बहन को भी साथ रहने के लिए बुलाया है।