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अध्ययन लेख 18

मसीही मंडली में प्यार और न्याय की अहमियत

मसीही मंडली में प्यार और न्याय की अहमियत

“एक-दूसरे का भार उठाते रहो और इस तरह मसीह का कानून मानो।”​—गला. 6:2.

गीत 12 यहोवा, महान परमेश्‍वर

लेख की एक झलक *

1. हम किन दो बातों का पक्का यकीन रख सकते हैं?

यहोवा परमेश्‍वर शुरू से अपने सेवकों से प्यार करता आया है और हमेशा करता रहेगा। उसे न्याय से भी प्यार है। (भज. 33:5) इसलिए हम दो बातों का पक्का यकीन रख सकते हैं: (1) जब यहोवा के सेवकों के साथ ज़्यादती की जाती है, तो उसे बहुत दुख होता है। (2) वह वादा करता है कि उसके लोगों को हमेशा तक अन्याय नहीं सहना पड़ेगा, वह ज़्यादती करनेवालों को ज़रूर सज़ा देगा। इस शृंखला के पहले लेख * में हमने सीखा था कि परमेश्‍वर ने मूसा के ज़रिए इसराएल को जो कानून दिया था, वह प्यार पर आधारित था। उस कानून ने बढ़ावा दिया कि सबके साथ न्याय किया जाए, उनके साथ भी जो कमज़ोर और बेसहारा हैं। (व्यव. 10:18) मूसा के कानून से साफ ज़ाहिर हुआ कि यहोवा को अपने लोगों की बहुत परवाह है!

2. हम किन सवालों के जवाब जानेंगे?

2 ईसवी सन्‌ 33 में जब मसीही मंडली की शुरूआत हुई, तब मूसा का कानून रद्द हो गया। क्या इसका मतलब था कि मसीहियों के लिए अब कोई कानून नहीं रहा, जो प्यार पर आधारित हो और न्याय का बढ़ावा देता हो? ऐसी बात नहीं है। मसीहियों को एक नया कानून मिला। इस लेख में हम पहले चर्चा करेंगे कि वह कानून क्या है। फिर हम इन सवालों के जवाब जानेंगे: हम क्यों कह सकते हैं कि यह कानून प्यार पर आधारित है? यह क्यों कहा जा सकता है कि इस कानून ने न्याय का बढ़ावा दिया? इस कानून के मुताबिक अधिकार रखनेवालों को अपने अधीन लोगों से कैसा व्यवहार करना चाहिए?

“मसीह का कानून” क्या है?

3. गलातियों 6:2 में बताए ‘मसीह के कानून’ में क्या शामिल है?

3 गलातियों 6:2 पढ़िए। मसीहियों को “मसीह का कानून” मानना है। यीशु ने अपने चेलों को नियमों की एक लंबी-चौड़ी सूची नहीं दी, लेकिन उनके मार्गदर्शन के लिए हिदायतें, आज्ञाएँ और सिद्धांत ज़रूर दिए। ‘मसीह के कानून’ में वे सारी शिक्षाएँ शामिल हैं, जो यीशु ने सिखायी थीं। इस कानून की बेहतर समझ पाने के लिए आइए कुछ बातों पर ध्यान दें।

4-5. (क) यीशु ने किन तरीकों से अपने चेलों को सिखाया? (ख) उसने ऐसा कब-कब किया?

4 यीशु ने किन तरीकों से लोगों को सिखाया? एक तरीका था अपनी बातों से। उसकी बातों में दम था, क्योंकि उसने परमेश्‍वर और जीवन के मकसद के बारे में सच्चाई सिखायी। उसने यह भी प्रचार किया कि परमेश्‍वर का राज बहुत जल्द इंसान की सारी दुख-तकलीफें मिटा देगा। (लूका 24:19) यीशु ने अपनी मिसाल से भी लोगों को सिखाया। उसे देखकर चेलों ने सीखा कि उन्हें कैसे जीना चाहिए।​—यूह. 13:15.

5 यीशु ने लोगों को कब-कब सिखाया? धरती पर अपनी सेवा के दौरान उसने ऐसा किया। (मत्ती 4:23) फिर जब उसकी मौत के बाद उसे ज़िंदा किया गया, तब भी उसने अपने चेलों को सिखाया। एक मौके पर वह चेलों के एक समूह को दिखायी दिया, जिनकी गिनती शायद 500 से ज़्यादा थी और उन्हें उसने आज्ञा दी कि वे ‘लोगों को चेला बनना सिखाएँ।’ (मत्ती 28:19, 20; 1 कुरिं. 15:6) मंडली का मुखिया होने के नाते यीशु स्वर्ग लौटने के बाद भी अपने चेलों को सिखाता रहा। उदाहरण के लिए, ईसवी सन्‌ 96 के आस-पास उसने प्रेषित यूहन्‍ना के ज़रिए अभिषिक्‍त मसीहियों की हिम्मत बँधायी और उन्हें ज़रूरी सलाह दी।​—कुलु. 1:18; प्रका. 1:1.

6-7. (क) यीशु की शिक्षाएँ कहाँ दी गयी हैं? (ख) हम मसीह का कानून कैसे मान सकते हैं?

6 यीशु की शिक्षाएँ कहाँ दी गयी हैं? धरती पर रहते वक्‍त यीशु ने जो बातें कहीं और जो काम किए, वे खुशखबरी की चार किताबों में दर्ज़ हैं। मसीही यूनानी शास्त्र की बाकी किताबों से भी हमें यीशु की सोच अच्छी तरह पता चलती है। वह इसलिए कि वे किताबें पवित्र शक्‍ति की प्रेरणा से लिखी गयी थीं और उनके लिखनेवाले “मसीह के जैसी सोच” रखते थे।​—1 कुरिं. 2:16.

7 सबक:  यीशु की शिक्षाएँ ज़िंदगी के हर दायरे में काम आती हैं, फिर चाहे घर-बार हो या नौकरी-पेशा, स्कूल हो या मंडली। लेकिन सवाल है कि हम मसीह का कानून कैसे मान सकते हैं? इसके लिए हमें मसीही यूनानी शास्त्र पढ़ना होगा और उस पर मनन करना होगा, ताकि हम मसीह का कानून सीख सकें। फिर जब हम शास्त्र में दिए निर्देशों, आज्ञाओं और सिद्धांतों पर चलते हैं, तो हम उस कानून को मान रहे होते हैं। जब हम मसीह का कानून मानते हैं, तो हम दरअसल यहोवा का कहा मान रहे होते हैं। वह इसलिए कि यीशु ने जो बातें सिखायीं, वे उसने यहोवा से ही सीखी थीं।​—यूह. 8:28.

कानून जो प्यार पर आधारित है

8. मसीह के कानून की नींव क्या है?

8 जब एक घर को मज़बूत नींव पर खड़ा किया जाता है, तो उसमें रहनेवाले सुरक्षित महसूस करते हैं। यही बात कानून के बारे में भी सच है। जिस कानून की नींव पक्की हो, उसे माननेवाले सुरक्षित महसूस करेंगे। मसीह का कानून सबसे बढ़िया नींव, प्यार पर आधारित है! हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? आइए कुछ बातों पर गौर करें।

जब हम दूसरों के साथ प्यार से पेश आते हैं, तो हम “मसीह का कानून” मान रहे होते हैं (पैराग्राफ 9-14 देखें) *

9-10. (क) हम कैसे जानते हैं कि यीशु ने जो किया, प्यार की वजह से किया? कुछ उदाहरण दीजिए। (ख) हम यीशु से क्या सीखते हैं?

9 पहली बात, यीशु ने जो भी किया प्यार की वजह से किया। तरस खाना या कोमल करुणा महसूस करना प्यार का ही एक रूप है। लोगों की हालत देखकर यीशु को उन पर तरस आता था, इसलिए उसने उन्हें सिखाया, बीमारों को ठीक किया, भूखों को खाना खिलाया और मरे हुओं को ज़िंदा किया। (मत्ती 14:14; 15:32-38; मर. 6:34; लूका 7:11-15) बेशक इसमें यीशु का बहुत समय जाता होगा और वह थक भी जाता होगा। लेकिन वह अपने बारे में न सोचकर दूसरों के बारे में सोचता था और खुशी-खुशी उनकी मदद करता था। यही नहीं, उसने लोगों की खातिर अपनी जान तक दे दी। इससे बड़ा प्यार का सबूत और क्या हो सकता है?​—यूह. 15:13.

10 सबक:  यीशु की तरह हमें भी सबसे पहले दूसरों के बारे में सोचना चाहिए और उनकी मदद करनी चाहिए। यही नहीं, हमें प्रचार में लोगों के लिए करुणा महसूस करनी चाहिए। जब करुणा से भरकर हम लोगों को खुशखबरी सुनाते हैं और उन्हें सिखाते हैं, तो हम दरअसल मसीह का कानून मान रहे होते हैं।

11-12. (क) क्या दिखाता है कि यहोवा को हमारी बहुत परवाह है? (ख) प्यार करने के मामले में हम यहोवा की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

11 दूसरी बात, यीशु ने अपने पिता के प्यार के बारे में समझाया। धरती पर अपनी सेवा के दौरान यीशु ने कई तरीकों से समझाया कि यहोवा को अपने सेवकों की परवाह है। जैसे, उसने सिखाया कि यहोवा की नज़र में हममें से हरेक बहुत अनमोल है (मत्ती 10:31); वह दिल से चाहता है कि उसकी खोयी हुई भेड़ पश्‍चाताप करे और मंडली में लौट आए (लूका 15:7, 10) और उसने अपने बेटे की कुरबानी देकर हमारे लिए अपने प्यार का सबूत दिया।​—यूह. 3:16.

12 सबक:  प्यार करने के मामले में हम यहोवा की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? (इफि. 5:1, 2) हमें अपने भाई-बहनों को अनमोल समझना चाहिए। जब कोई “खोयी हुई भेड़” यहोवा के पास लौट आती है, तो हमें खुशी-खुशी उसका स्वागत करना चाहिए। (भज. 119:176) हमें भाई-बहनों की मदद करनी चाहिए, खासकर ज़रूरत की घड़ी में। (1 यूह. 3:17) जब हम इन तरीकों से अपना प्यार ज़ाहिर करते हैं, तो हम दरअसल मसीह का कानून मान रहे होते हैं।

13-14. (क) यूहन्‍ना 13:34, 35 के मुताबिक यीशु ने चेलों को क्या आज्ञा दी? (ख) यह आज्ञा किस मायने में नयी थी? (ग) हम यह आज्ञा कैसे मान सकते हैं?

13 तीसरी बात, यीशु ने चेलों को निस्वार्थ प्यार करने की आज्ञा दी। (यूहन्‍ना 13:34, 35 पढ़िए।) यीशु की यह आज्ञा किस मायने में नयी थी? मूसा के कानून में इसराएलियों को दूसरों से वैसे प्यार करना था, जैसे वे खुद से करते हैं। लेकिन यीशु की आज्ञा के मुताबिक मसीहियों को एक-दूसरे से वैसा ही प्यार करना था, जैसा यीशु ने किया था। दूसरे शब्दों में कहें तो उन्हें निस्वार्थ प्यार * करना था। हमें अपने भाई-बहनों से खुद से ज़्यादा  प्यार करना चाहिए, इतना कि अगर उनकी खातिर जान देनी पड़े, तो भी हम पीछे न हटें, जैसे यीशु हमारी खातिर जान देने से पीछे नहीं हटा।

14 सबक:  हम नयी आज्ञा कैसे मान सकते हैं? सीधे-सीधे कहें तो हमें भाई-बहनों की खातिर त्याग करना चाहिए। बेशक हम उनके लिए बड़े-बड़े त्याग करने यानी अपनी जान तक देने को तैयार रहेंगे। लेकिन हमें छोटे-छोटे मामलों में भी त्याग करना चाहिए, जैसे किसी बुज़ुर्ग मसीही को सभा में ले जाने के लिए खास मेहनत करना, किसी अज़ीज़ को खुश करने के लिए अपनी पसंद त्याग देना या फिर नौकरी से छुट्टी लेकर राहत काम में हाथ बँटाना। ऐसा करके हम मसीह का कानून मान रहे होते हैं। यही नहीं, हमारे त्याग से मंडली का माहौल अच्छा रहता है और हर कोई खुश और सुरक्षित महसूस करता है।

ऐसा कानून जो न्याय का बढ़ावा देता है

15-17. (क) यीशु के कामों से कैसे ज़ाहिर हुआ कि उसमें न्याय का जज़्बा है? (ख) हम यीशु की तरह कैसे बन सकते हैं?

15 बाइबल के मुताबिक “न्याय” का मतलब है, ऐसा काम जो परमेश्‍वर की नज़र में सही है और जो बिना किसी पक्षपात के किया जाता है। मसीह का कानून किस मायने में न्याय का बढ़ावा देता है?

यीशु औरतों का आदर करता था और उनसे कोमलता से पेश आता था, उन औरतों से भी जिन्हें लोग नीची नज़र से देखते थे (पैराग्राफ 16 देखें) *

16 पहली बात, सोचिए कि यीशु के कामों  से कैसे ज़ाहिर हुआ कि उसमें न्याय का जज़्बा है। यीशु के दिनों में यहूदी धर्म गुरु गैर-यहूदियों से नफरत करते थे, अपनी ही जाति के आम लोगों को तुच्छ समझते थे और औरतों की इज़्ज़त नहीं करते थे। मगर यीशु उनसे बिलकुल अलग था! वह पक्षपात नहीं करता था, बल्कि सबके साथ एक जैसा व्यवहार करता था। उसने उन गैर-यहूदियों को भी अपने चेले स्वीकार किया जो उस पर विश्‍वास करते थे। (मत्ती 8:5-10, 13) वह अमीर-गरीब सबको प्रचार करता था। (मत्ती 11:5; लूका 19:2, 9) वह औरतों के साथ कठोरता से पेश नहीं आता था, न ही उनके साथ बुरा सलूक करता था। इसके बजाय, वह उनका आदर करता था और उनके साथ नरमी से पेश आता था, उन औरतों से भी जिन्हें लोग नीची नज़र से देखते थे।​—लूका 7:37-39, 44-50.

17 सबक:  यीशु की तरह हमें भी पक्षपात नहीं करना चाहिए, बल्कि सबके साथ एक जैसा व्यवहार करना चाहिए। हमें दिलचस्पी लेनेवाले हर किसी को खुशखबरी सुनानी चाहिए, फिर चाहे वह किसी भी धर्म का हो या समाज में उसकी कैसी भी हैसियत हो। मसीही भाइयों को यीशु की मिसाल पर चलकर औरतों के साथ आदर से पेश आना चाहिए। इस तरह हम मसीह का कानून मानते हैं।

18-19. (क) यीशु ने न्याय के बारे में क्या सिखाया? (ख) उसकी शिक्षाओं से हमें क्या सीख मिलती है?

18 दूसरी बात, ध्यान दीजिए कि यीशु ने न्याय के बारे में क्या सिखाया।  उसने कुछ सिद्धांत सिखाए, जिन पर चलकर उसके चेले सबके साथ एक जैसा व्यवहार करते। सुनहरे नियम का ही उदाहरण लीजिए। (मत्ती 7:12) इस नियम के मुताबिक अगर हम चाहते हैं कि हमारे साथ पक्षपात न हो, तो हमें भी दूसरों से पक्षपात नहीं करना चाहिए। हमारा यह व्यवहार देखकर शायद दूसरे भी हमारे साथ भेदभाव न करें। फिर भी कई बार लोग हमारे साथ भेदभाव या अन्याय करते हैं। ऐसे में हम क्या करेंगे? यीशु ने सिखाया कि हम यहोवा पर भरोसा रखें, वह ‘उन लोगों की खातिर इंसाफ करेगा, जो दिन-रात उससे फरियाद करते हैं।’ (लूका 18:6, 7) यह बात हमें पक्का यकीन दिलाती है कि हमारा परमेश्‍वर जानता है कि इन आखिरी दिनों में हमें कैसी-कैसी मुश्‍किलें और अन्याय सहना पड़ता है और वह सही वक्‍त पर हमें ज़रूर इंसाफ दिलाएगा।​—2 थिस्स. 1:6.

19 सबक:  जब हम यीशु के बताए सिद्धांतों पर चलेंगे, तो हम दूसरों के साथ कोई अन्याय नहीं करेंगे। शैतान की इस दुनिया में अगर कभी हमारे साथ अन्याय हो, तो हम निराश नहीं होंगे, बल्कि भरोसा रखेंगे कि यहोवा हमारी खातिर ज़रूर  इंसाफ करेगा।

अधिकार रखनेवालों को दूसरों के साथ कैसे पेश आना चाहिए?

20-21. (क) अधिकार रखनेवालों को अपने अधीन लोगों से कैसा व्यवहार करना चाहिए? (ख) एक पति अपनी पत्नी से निस्वार्थ प्यार कैसे कर सकता है? (ग) एक पिता को अपने बच्चों से कैसे व्यवहार करना है?

20 मसीह के कानून के मुताबिक अधिकार रखनेवालों को अपने अधीन लोगों से कैसा व्यवहार करना चाहिए? उन्हें उनका आदर करना चाहिए और उनके साथ प्यार से पेश आना चाहिए, क्योंकि मसीह का कानून प्यार पर आधारित है। मसीह चाहता है कि हम जो भी करें, उसमें प्यार नज़र आए और यह बात अधिकार रखनेवालों को हमेशा याद रखनी चाहिए।

21 परिवार में। पतियों को अपनी-अपनी पत्नी से वैसे ही प्यार करना चाहिए, “ठीक जैसे मसीह भी मंडली” से प्यार करता है। (इफि. 5:25, 28, 29) जिस तरह यीशु ने अपने चेलों से प्यार किया और उनकी खातिर त्याग किया, उसी तरह एक पति को अपनी पत्नी की पसंद और ज़रूरतों को खुद से पहले रखना चाहिए। कई आदमियों के लिए ऐसा करना मुश्‍किल होता है। शायद इसलिए कि वे ऐसी संस्कृति में पले-बढ़े हैं, जहाँ सबके साथ एक जैसा व्यवहार करना या प्यार करना आम बात नहीं है। शायद उनके लिए ये गलत तौर-तरीके छोड़ना आसान न हो, लेकिन मसीह का कानून मानने के लिए ये बदलाव करने ज़रूरी हैं। जो पति अपनी पत्नी से निस्वार्थ प्यार करता है, उसकी पत्नी उसका आदर करेगी। जो पिता अपने बच्चों से सच्चा प्यार करता है, वह न तो अपनी बातों से और न ही अपने कामों से उन्हें चोट पहुँचाएगा। (इफि. 4:31) इसके बजाय, वह इस तरह प्यार और परवाह ज़ाहिर करेगा, जिससे बच्चे सुरक्षित महसूस करें। बदले में बच्चे भी अपने पिता से प्यार करेंगे और उस पर भरोसा रखेंगे।

22. जैसे 1 पतरस 5:1-3 में बताया गया है, “भेड़ें” किसकी संपत्ति हैं और प्राचीनों को उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए?

22 मंडली में। प्राचीनों को याद रखना चाहिए कि “भेड़ें” उनकी संपत्ति नहीं हैं। (यूह. 10:16; 1 पतरस 5:1-3 पढ़िए।) “परमेश्‍वर के झुंड,” “परमेश्‍वर के सामने” और “परमेश्‍वर की संपत्ति,” ये शब्द प्राचीनों को एहसास दिलाते हैं कि भेड़ें दरअसल यहोवा की हैं। यहोवा चाहता है कि प्राचीन उसकी भेड़ों के साथ प्यार और कोमलता से व्यवहार करें। (1 थिस्स. 2:7, 8) जब प्राचीन प्यार से अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हैं और अच्छे चरवाहे साबित होते हैं, तो यहोवा उनसे खुश होता है। यही नहीं, उन्हें मंडली के भाई-बहनों से भी प्यार और आदर मिलता है।

23-24. (क) गंभीर पाप के मामले निपटाने में प्राचीनों की भूमिका इसराएल के न्यायियों और मुखियाओं से कैसे अलग है? (ख) इस तरह के मामले निपटाते वक्‍त प्राचीनों को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

23 जब बात गंभीर पाप की आती है, तो प्राचीनों की क्या भूमिका होती है? उनकी भूमिका इसराएल के न्यायियों और मुखियाओं से अलग है, जो मूसा के कानून के अधीन थे। उस कानून के तहत न्यायियों और मुखियाओं को न सिर्फ उपासना से जुड़े मामले सुलझाने होते थे, बल्कि लोगों के आपसी झगड़े और आपराधिक मामले भी निपटाने होते थे। लेकिन मसीह के कानून के तहत प्राचीन पाप के सिर्फ वे मामले निपटाते हैं, जो उपासना से जुड़े होते हैं। वे जानते हैं कि यहोवा ने आपराधिक और दूसरे मामले सुलझाने के लिए सरकारी अधिकारियों को ठहराया है। इस वजह से ये अधिकारी अपराधियों से जुरमाने की माँग कर सकते हैं या उन्हें जेल की सज़ा सुना सकते हैं।​—रोमि. 13:1-4.

24 जब कोई मंडली में गंभीर पाप करता है, तो प्राचीन उस मामले को कैसे निपटाते हैं? वे शास्त्र की मदद से मामले की जाँच करते हैं और फिर कोई फैसला करते हैं। वे याद रखते हैं कि मसीह का कानून प्यार पर आधारित है। इस वजह से, अगर किसी के पाप करने से मंडली में किसी को चोट पहुँची है, तो प्राचीन इस बात पर ध्यान देते हैं कि उसकी मदद कैसे की जानी चाहिए। वहीं पाप करनेवाले के बारे में प्राचीन इन बातों पर ध्यान देते हैं: क्या उसे अपने किए पर पछतावा है? यहोवा के साथ उसका रिश्‍ता दोबारा जोड़ने के लिए वे क्या कर सकते हैं? इस तरह गंभीर मामले निपटाते वक्‍त भी प्राचीन ज़ाहिर करते हैं कि मसीह का कानून प्यार पर आधारित है।

25. अगले लेख में किस बात पर चर्चा की जाएगी?

25 हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि हम मसीह के कानून के अधीन हैं! अगर हम सब इस कानून को मानने की पूरी कोशिश करें, तो मंडली में हर कोई सुरक्षित महसूस करेगा और उसे एहसास होगा कि सब उससे प्यार करते हैं और उसकी कदर करते हैं। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आज दुनिया में ‘दुष्ट बद-से-बदतर होते’ जा रहे हैं। (2 तीमु. 3:13) कई लोगों के साथ घिनौना अपराध किया जाता है। इस वजह से हमें सतर्क रहना चाहिए। अगर बच्चों के साथ यौन-शोषण के मामले सामने आते हैं, तो मंडली परमेश्‍वर के जैसा न्याय कैसे ज़ाहिर कर सकती है? इस सवाल का जवाब अगले लेख में दिया जाएगा।

गीत 15 यहोवा के पहलौठे की तारीफ करें!

^ पैरा. 5 यह लेख उस शृंखला का दूसरा लेख है, जिसमें चर्चा की जाएगी कि हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि यहोवा प्यार और न्याय का परमेश्‍वर है। इसके बाद के दो लेख भी इसी शृंखला के भाग हैं। यहोवा चाहता है कि उसके लोगों को न्याय मिले और वह उन लोगों को दिलासा देता है, जो इस दुष्ट दुनिया में अन्याय सहते हैं।

^ पैरा. 1 फरवरी 2019 की प्रहरीदुर्ग  में, “प्राचीन इसराएल में प्यार और न्याय की अहमियत” लेख देखें।

^ पैरा. 13 इसका क्या मतलब है? अगर हममें निस्वार्थ प्यार  होगा, तो हम अपनी इच्छाओं और ज़रूरतों से ज़्यादा दूसरों के बारे में सोचेंगे। हम उनके फायदे के लिए अपना हक या अपनी पसंद छोड़ने को तैयार रहेंगे।

^ पैरा. 61 तसवीर के बारे में: एक विधवा का इकलौता बेटा मर गया है। उसे देखकर यीशु तड़प उठता है और उसके जवान बेटे को ज़िंदा कर देता है।

^ पैरा. 63 तसवीर के बारे में: यीशु शमौन नाम के एक फरीसी के घर खाने पर आया हुआ है। एक औरत ने, जो शायद वेश्‍या है, अभी-अभी अपने आँसुओं से यीशु के पैर धोए, अपने बालों से उन्हें पोंछा और उन पर तेल डाला। शमौन को उसका ऐसा करना अच्छा नहीं लगा, लेकिन यीशु उस औरत के पक्ष में बोल रहा है।