इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

अध्ययन लेख 21

यहोवा आपको ताकत देगा

यहोवा आपको ताकत देगा

“जब मैं कमज़ोर होता हूँ, तभी ताकतवर होता हूँ।”—2 कुरिं. 12:10.

गीत 73 हमें निडरता का वरदान दे!

लेख की एक झलक *

1-2. बहुत-से साक्षी किन मुश्‍किलों से गुज़रते हैं?

प्रेषित पौलुस ने तीमुथियुस को बढ़ावा दिया कि वह अपनी सेवा अच्छी तरह पूरी करे। (2 तीमु. 4:5) आज हम भी पौलुस की यह सलाह मानते हैं और परमेश्‍वर की सेवा अच्छे-से करने की कोशिश करते हैं। लेकिन ऐसा करना हमेशा आसान नहीं होता। हमारे कई भाई-बहनों को प्रचार करने में डर लगता है। (2 तीमु. 4:2) क्यों? क्योंकि कुछ देशों में हमारे काम पर पाबंदियाँ या पूरी तरह रोक लगी है। हमारे भाई-बहन जानते हैं कि इन हालात में प्रचार करने से उन्हें जेल हो सकती है, फिर भी वे इसमें लगे रहते हैं।

2 यहोवा के लोग और भी मुश्‍किलों से गुज़रते हैं जिस वजह से वे निराश हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, बहुत-से भाई-बहनों को घर का गुज़ारा चलाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। वे चाहते तो हैं कि प्रचार में ज़्यादा वक्‍त दें, लेकिन हफ्ते के आखिर में उनमें ताकत ही नहीं बचती। कुछ भाई-बहन बहुत बीमार रहते हैं या बुज़ुर्ग हैं या घर से बाहर नहीं निकल पाते। कुछ भाई-बहन ऐसे हैं जिन्हें लगता है कि यहोवा की नज़रों में उनकी कोई कीमत नहीं। मारिया * नाम की एक बहन कहती है, “कभी-कभार मैं बहुत निराश हो जाती हूँ। इस वजह से जो समय और ताकत मैं प्रचार में लगा सकती हूँ, वह इस भावना से लड़ने में निकल जाती है। बाद में मुझे बहुत बुरा लगता है।”

3. इस लेख में हम क्या जानेंगे?

3 हमारे हालात चाहे जैसे भी हों, यहोवा हमें ताकत दे सकता है ताकि हमसे जितना हो सके, हम उसकी सेवा करते रहें। इस लेख में हम जानेंगे कि यहोवा किस तरह हमें ताकत देता है। लेकिन उससे पहले आइए देखें कि मुश्‍किलों के बावजूद प्रचार करते रहने में यहोवा ने पौलुस और तीमुथियुस की मदद कैसे की।

यहोवा हमें प्रचार करते रहने की ताकत देता है

4. पौलुस की ज़िंदगी में कौन-कौन-सी मुश्‍किलें थीं?

4 पौलुस की ज़िंदगी में कई तकलीफें थीं। उसे पीटा गया, जेल में डाला गया, पत्थरों से मारा गया। (2 कुरिं. 11:23-25) वह कई बार अपनी कमज़ोरियों की वजह से निराश हो जाता था। उसने बताया कि इस भावना से लड़ना उसके लिए बहुत मुश्‍किल होता था। (रोमि. 7:18, 19, 24) उसे एक बीमारी भी थी जो उसके लिए ‘शरीर में एक काँटे’ जैसी थी। उसने परमेश्‍वर से कई बार बिनती की कि वह यह काँटा निकाल दे।—2 कुरिं. 12:7, 8.

पौलुस को प्रचार करते रहने की ताकत किससे मिली? (पैराग्राफ 5-6 देखें) *

5. अपनी मुश्‍किलों के बावजूद पौलुस क्या-क्या कर पाया?

5 यहोवा ने पौलुस को मुश्‍किलों के बावजूद प्रचार करते रहने की ताकत दी। उदाहरण के लिए, जब वह रोम में एक घर में कैद था, तब भी उसने जोश से यहूदी शासकों और शायद रोम के बड़े-बड़े अधिकारियों को प्रचार किया। (प्रेषि. 28:17; फिलि. 4:21, 22) उसने सम्राट के अंगरक्षक दल के कई लोगों को गवाही दी। जो लोग उससे मिलने आते थे, उसने उन्हें भी प्रचार किया। (प्रेषि. 28:30, 31; फिलि. 1:13) उसी दौरान उसने मंडलियों को कई चिट्ठियाँ भी लिखीं जिससे उस ज़माने के भाई-बहनों को बहुत फायदा हुआ और आज हमें भी हो रहा है। पौलुस की अच्छी मिसाल से रोम के भाई-बहनों को बहुत हौसला मिला और ‘वे पहले से ज़्यादा निडर और बेधड़क होकर परमेश्‍वर का वचन सुनाने लगे।’ (फिलि. 1:14) कभी-कभी पौलुस जितना करना चाहता था, उतना नहीं कर पाता था। लेकिन उसने जो भी किया, “उससे खुशखबरी फैलाने में मदद ही मिली।”—फिलि. 1:12.

6. जैसा 2 कुरिंथियों 12:9, 10 में बताया गया है, पौलुस किसकी मदद से अपनी सेवा पूरी कर पाया?

6 पौलुस ने इस बात को समझा कि यहोवा की सेवा में वह जो कुछ भी कर पाया, वह परमेश्‍वर की ताकत से कर पाया न कि अपनी ताकत से। उसने लिखा कि जब ‘वह कमज़ोर होता है, तब परमेश्‍वर की ताकत पूरी तरह दिखायी देती है।’ (2 कुरिंथियों 12:9, 10 पढ़िए।) यहोवा की पवित्र शक्‍ति की मदद से ही पौलुस मुश्‍किलों के बावजूद अपनी सेवा अच्छी तरह पूरी कर पाया।

तीमुथियुस को प्रचार करते रहने की ताकत किससे मिली? (पैराग्राफ 7 देखें) *

7. तीमुथियुस के सामने कैसी मुश्‍किलें आयीं?

7 पौलुस का साथी तीमुथियुस जवान था। उसे भी अपनी सेवा पूरी करने के लिए यहोवा पर निर्भर रहना था। वह पौलुस के साथ कई मिशनरी दौरों पर जाता था। कभी-कभार पौलुस मंडली के भाई-बहनों का हौसला बढ़ाने के लिए उसे अकेले भेजता था। (1 कुरिं. 4:17) तीमुथियुस को लगा होगा कि वह यह नहीं कर पाएगा। शायद इसीलिए पौलुस ने उसका हौसला बढ़ाया और कहा, “कोई भी तेरी कम उम्र की वजह से तुझे नीची नज़रों से न देखे।” (1 तीमु. 4:12) इसके अलावा, तीमुथियुस के शरीर में भी एक काँटा था। वह बार-बार बीमार पड़ता था। (1 तीमु. 5:23) लेकिन तीमुथियुस जानता था कि यहोवा की पवित्र शक्‍ति की मदद से वह प्रचार कर पाएगा और भाई-बहनों का हौसला बढ़ा पाएगा।—2 तीमु. 1:7.

यहोवा मुश्‍किलों के बावजूद वफादार रहने की हिम्मत देता है

8. आज यहोवा किस तरह अपने लोगों को ताकत देता है?

8 आज यहोवा अपने लोगों को ‘वह ताकत देता है जो आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर है,’ ताकि वे उसकी सेवा करते रहें। (2 कुरिं. 4:7) अब आइए हम चार बातों पर ध्यान दें, जिनके ज़रिए यहोवा अपने लोगों को ताकत देता है और वफादार रहने में उनकी मदद करता है। वे हैं, प्रार्थना, बाइबल, भाई-बहन और प्रचार काम।

यहोवा हमें प्रार्थना के ज़रिए ताकत देता है (पैराग्राफ 9 देखें)

9. प्रार्थना से क्या मदद मिलती है?

9 प्रार्थना।  पौलुस ने इफिसियों 6:18 में बढ़ावा दिया कि हम “हर मौके पर” यहोवा से प्रार्थना करें। यहोवा हमारी प्रार्थनाएँ सुनेगा और हमें हिम्मत देगा। बोलिविया में रहनेवाले जौनी पर अचानक कई मुश्‍किलें टूट पड़ीं। एक ही वक्‍त में उसकी पत्नी और माता-पिता बहुत बीमार हो गए। जौनी के लिए एक-साथ उन तीनों की देखभाल करना आसान नहीं था। कुछ समय बाद उसकी माँ की मौत हो गयी और उसके पिता और पत्नी को ठीक होने में बहुत वक्‍त लगा। उस मुश्‍किल वक्‍त के बारे में जौनी बताता है, “मैं चिंताओं से घिरा था, लेकिन यहोवा से प्रार्थना करने से मुझे बहुत हिम्मत मिली। मैं उसे साफ-साफ बताता था कि मुझे कैसा लग रहा है।” बोलिविया के ही एक प्राचीन, रौनल्ड को पता चला कि उसकी माँ को कैंसर है। एक महीने बाद उसकी माँ की मौत हो गयी। उस मुश्‍किल वक्‍त में प्रार्थना से उसे हिम्मत मिली। वह कहता है, “जब मैं यहोवा से प्रार्थना करता हूँ, तो उसे सबकुछ बताता हूँ। मुझे यकीन है कि वह मुझे समझता है।” कभी-कभी ऐसा हो सकता है कि हम इतने परेशान हों कि हमें समझ में न आए कि हम प्रार्थना में क्या कहें। फिर भी यहोवा चाहता है कि हम उससे प्रार्थना करें।—रोमि. 8:26, 27.

यहोवा हमें बाइबल के ज़रिए ताकत देता है (पैराग्राफ 10 देखें)

10. जैसा इब्रानियों 4:12 में लिखा है, हमें क्यों बाइबल पढ़ना चाहिए और उस पर मनन करना चाहिए?

10 बाइबल।  पौलुस की तरह हमें भी परमेश्‍वर का वचन पढ़ना चाहिए। इससे हमें हिम्मत और दिलासा मिलता है। (रोमि. 15:4) जब हम बाइबल पढ़ते हैं और उस पर मनन करते हैं, तो यहोवा की पवित्र शक्‍ति हमारी मदद करती है। हम समझ पाते हैं कि बाइबल की सलाह हमारे काम कैसे आ सकती है। (इब्रानियों 4:12 पढ़िए।) रौनल्ड, जिसका पहले ज़िक्र किया गया था, कहता है, “मैं हर रात बाइबल पढ़ता हूँ और यहोवा के गुणों पर मनन करता हूँ। मैं यह भी सोचता हूँ कि पुराने ज़माने में यहोवा ने अपने सेवकों का कैसे खयाल रखा। मैं खुश हूँ कि मैंने ऐसा करने की आदत बनायी। इससे मुझे बहुत हिम्मत मिलती है।”

11. एक बहन को अपना दुख सहने में बाइबल से किस तरह मदद मिली?

11 जब हम परमेश्‍वर के वचन पर मनन करते हैं, तो हम अपनी परेशानियों के बारे में सही सोच रख पाते हैं। एक बहन का उदाहरण लीजिए, जिसके पति की मौत हो गयी थी। वह बहुत दुखी थी। एक प्राचीन ने उसे सलाह दी कि वह अय्यूब की किताब पढ़े। जब उसने पढ़ना शुरू किया तो उसे लगा कि अय्यूब की सोच गलत है। उसने मन-ही-मन कहा, “अय्यूब! तुम सिर्फ अपनी परेशानियों के बारे में सोच रहे हो! यह सही नहीं है।” फिर उसे एहसास हुआ कि उसकी सोच भी अय्यूब की तरह हो गयी है। बाइबल की मदद से वह अपनी परेशानियों के बारे में ज़्यादा सोचने के बजाय यहोवा के वादों पर सोचने लगी। इस तरह वह अपने पति को खोने का दर्द सह पायी।

यहोवा हमें भाई-बहनों के ज़रिए ताकत देता है (पैराग्राफ 12 देखें)

12. बताइए कि और किस तरह यहोवा हमें हिम्मत देता है।

12 भाई-बहन।  यहोवा भाई-बहनों के ज़रिए हमें हिम्मत देता है। पौलुस ने लिखा कि वह अपने मसीही भाई-बहनों से मिलने के लिए तरस रहा है, ताकि वे “एक-दूसरे का हौसला बढ़ा सकें।” (रोमि. 1:11, 12) मारिया का उदाहरण लीजिए जिसका पहले ज़िक्र किया गया था। उसे भाई-बहनों के साथ वक्‍त बिताना अच्छा लगता है। वह कहती है, “भाई-बहनों के ज़रिए यहोवा मेरा हौसला बढ़ाता है। वे मुझसे अच्छी-अच्छी बातें कहते हैं या एक कार्ड लिखकर देते हैं, जबकि उन्हें पता ही नहीं होता कि मैं किन भावनाओं से लड़ रही हूँ। मुझे उन बहनों से भी बात करना अच्छा लगता है, जो मेरी जैसी भावनाओं से गुज़र चुकी हैं। मैं उनसे सीख पाती हूँ कि मैं अपनी भावनाओं से कैसे लड़ सकती हूँ। और प्राचीन भी मुझे यकीन दिलाते हैं कि मंडली में मेरी बहुत अहमियत है।”

13. सभाओं में हम कैसे एक-दूसरे का हौसला बढ़ा सकते हैं?

13 सभाओं में हमें भाई-बहनों का हौसला बढ़ाने का अच्छा मौका मिलता है। हम उन्हें बता सकते हैं कि हम उनसे कितना प्यार करते हैं और उनकी कितनी कदर करते हैं। पीटर नाम के एक प्राचीन ने कुछ ऐसा ही किया। एक बार सभा से पहले उसने एक बहन से, जिसका पति सच्चाई में नहीं है, कहा, “आप अपने छ: बच्चों को हर सभा में अच्छे-से तैयार करके लाती हैं। वे अच्छे-अच्छे जवाब भी देते हैं। मुझे यह देखकर बहुत अच्छा लगता है।” यह सुनकर बहन की आँखों में आँसू आ गए और उसने कहा, “मैं आपको बता नहीं सकती कि आपकी बातों से मुझे कितनी हिम्मत मिली।”

यहोवा हमें प्रचार के ज़रिए ताकत देता है (पैराग्राफ 14 देखें)

14. प्रचार करने से हमें क्या मदद मिलती है?

14 प्रचार काम।  जब हम प्रचार करते हैं तो हमें बहुत अच्छा लगता है, फिर चाहे लोग हमारी सुनें या न सुनें। (नीति. 11:25) स्टेसी नाम की एक बहन का उदाहरण लीजिए। जब उसके घर में किसी का बहिष्कार हुआ तो उसे बहुत दुख हुआ। वह सोचती थी, ‘क्या मैं किसी तरह उसे इतनी बड़ी गलती करने से रोक सकती थी?’ उसके दिमाग से यह बात निकल ही नहीं रही थी। फिर उसे किस बात से मदद मिली? प्रचार से। प्रचार करने से वह अपनी परेशानी के बारे में सोचने के बजाय लोगों के बारे में सोचने लगी। वह कहती है, “यहोवा की मदद से मुझे एक बाइबल विद्यार्थी मिली जो अच्छी तरक्की करने लगी। इससे मुझे बहुत हिम्मत मिली। प्रचार करने की वजह से ही मैं अपने हालात का सामना कर पायी।”

15. मारिया की बातों से आप क्या सीखते हैं?

15 कुछ लोग अपने हालात की वजह से प्रचार में उतना नहीं कर पाते जितना वे करना चाहते हैं। हमें याद रखना चाहिए कि हमसे जितना हो पाता है, अगर हम उतना जी-जान से करें, तो यहोवा खुश होगा। मारिया के उदाहरण पर दोबारा ध्यान दीजिए। जब वह एक नयी भाषा में प्रचार करने के लिए दूसरी जगह गयी, तो वह ज़्यादा कुछ नहीं कर पा रही थी। वह कहती है, “मैं सभाओं में मुश्‍किल से जवाब दे पाती थी या बस बाइबल की कोई आयत पढ़ पाती थी। जब मैं प्रचार में जाती थी तो लोगों को बस एक परचा थमा देती थी।” उसे लगता था कि जो लोग वह भाषा अच्छे-से जानते हैं, उनके मुकाबले वह कुछ नहीं कर पा रही है। फिर उसे एहसास हुआ कि भले ही वह ज़्यादा नहीं कर पा रही है, पर यहोवा के काम आ सकती है। वह कहती है कि बाइबल की सच्चाइयाँ इतनी सरल हैं कि ये किसी की भी ज़िंदगी बदल सकती हैं। इसके लिए यह ज़रूरी नहीं कि हमें कोई भाषा अच्छी तरह आनी चाहिए।

16. जो लोग बीमारी की वजह से घर से बाहर नहीं जा पाते, वे प्रचार करने के लिए क्या कर सकते हैं?

16 यहोवा जानता है कि कुछ लोग प्रचार करना चाहते हैं, लेकिन बीमारी की वजह से घर से बाहर नहीं जा सकते। ऐसे में वह उन्हें दूसरे तरीकों से प्रचार करने का मौका देता है। जैसे, वे डॉक्टर, नर्स या उन लोगों को प्रचार कर सकते हैं जो उनकी देखभाल करने आते हैं। अगर वे यह सोचते रहें कि पहले हम बहुत कुछ कर पा रहे थे, पर अब नहीं कर पा रहे हैं, तो वे निराश हो जाएँगे। लेकिन अगर वे इस बात को समझें कि यहोवा आज उनकी किस तरह मदद कर रहा है, तो उन्हें ताकत मिलेगी और उन्हें जो भी परेशानी है, उसे वे खुशी-खुशी बरदाश्‍त कर पाएँगे।

17. जब हमें तुरंत नतीजे नहीं मिलते, तब भी सभोपदेशक 11:6 के मुताबिक हमें प्रचार में क्यों लगे रहना चाहिए?

17 हम नहीं जानते कि हम सच्चाई का जो बीज बोते हैं, उनमें से कौन-सा जड़ पकड़कर बढ़ेगा। (सभोपदेशक 11:6 पढ़िए।) बारबरा नाम की एक बहन जिनकी उम्र 80 से ज़्यादा है, अकसर टेलीफोन और चिट्ठियों के ज़रिए गवाही देती हैं। एक बार उन्होंने अनजाने में एक ऐसे पति-पत्नी को चिट्ठी भेजी जिनका सालों पहले बहिष्कार हुआ था। चिट्ठी के साथ उन्होंने 1 मार्च, 2014 की प्रहरीदुर्ग  भी भेजी जिसका विषय था, “परमेश्‍वर ने आपके लिए क्या किया है? * पति-पत्नी ने उस पत्रिका को बार-बार पढ़ा। पति को ऐसा लगा मानो यहोवा खुद उससे बात कर रहा हो। वे फिर से सभाओं में जाने लगे और करीब 27 साल बाद मंडली में लौट आए। बहन बारबरा को कितनी हिम्मत मिली होगी जब उन्हें पता चला कि उनके खत का बढ़िया नतीजा निकला।

यहोवा हमें (1) प्रार्थना, (2) बाइबल, (3) भाई-बहनों और (4) प्रचार के ज़रिए ताकत देता है (पैराग्राफ 9-10, 12, 14 देखें)

18. अगर हम यहोवा से ताकत पाना चाहते हैं, तो हमें क्या करना चाहिए?

18 इस लेख में हमने सीखा कि यहोवा अपने लोगों की मदद करता है, उन्हें ताकत देता है। यहोवा ऐसा कई तरीकों से करता है जैसे प्रार्थना, बाइबल, भाई-बहन और प्रचार काम। जब हम इन सबका फायदा उठाते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हमें यहोवा पर भरोसा है। आइए हम हमेशा अपने पिता यहोवा पर निर्भर रहें, “जो उन लोगों की खातिर अपनी ताकत [दिखाता है] जिनका दिल उस पर पूरी तरह लगा रहता है।”—2 इति. 16:9.

गीत 61 बढ़ते चलो, साक्षियों!

^ पैरा. 5 आज हम मुश्‍किलों के दौर में जी रहे हैं, लेकिन इन मुश्‍किलों को पार करने में यहोवा हमारी मदद करता है। इस लेख में हम जानेंगे कि यहोवा ने किस तरह मुश्‍किलों के बावजूद पौलुस और तीमुथियुस की मदद की जिस वजह से वे उसकी सेवा करते रहे। हम ऐसी चार बातों के बारे में भी जानेंगे जिनकी मदद से आज हम यहोवा की सेवा करते रह सकते हैं।

^ पैरा. 2 नाम बदल दिया गया है।

^ पैरा. 17 प्रहरीदुर्ग  का यह अंक हिंदी में उपलब्ध नहीं है।

^ पैरा. 54 तसवीर के बारे में: रोम में एक घर में कैद रहते वक्‍त पौलुस ने कई मंडलियों को चिट्ठियाँ लिखीं और जो लोग उससे मिलने आते थे, उन्हें प्रचार किया।

^ पैरा. 56 तसवीर के बारे में: तीमुथियुस जिस मंडली में जाता था, वहाँ के भाइयों का हौसला बढ़ाता था।