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अध्ययन लेख 19

प्रकाशितवाक्य में हमारे लिए सीख

प्रकाशितवाक्य में हमारे लिए सीख

“सुखी है वह जो इस भविष्यवाणी के वचन ज़ोर से पढ़ता है।”​—प्रका. 1:3.

गीत 15 यहोवा के पहलौठे की तारीफ करें!

एक झलक *

1-2. हमें प्रकाशितवाक्य में लिखी बातों के बारे में क्यों जानना चाहिए?

 मान लीजिए, आप किसी परिवार से मिलने जाते हैं और वे आपको अपना फोटो एल्बम दिखाते हैं। आपको उसमें बहुत-से नए चेहरे दिखते हैं। लेकिन तभी आपकी नज़र एक तसवीर पर पड़ती है। उसमें आप भी हैं। आप उस तसवीर को बड़े ध्यान से देखते हैं। आप देखते हैं कि आपके साथ कौन-कौन है और याद करने लगते हैं कि वह तसवीर कब और कहाँ ली गयी थी।

2 प्रकाशितवाक्य की किताब भी उस तसवीर जैसी है। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? इसकी दो वजह हैं। पहली, यह किताब हमारे लिए लिखवायी गयी है। इसकी पहली आयत में लिखा है, “ये वे बातें हैं जो यीशु मसीह ने प्रकट कीं, जो उसे परमेश्‍वर ने इसलिए दीं ताकि वह उसके दासों  को दिखाए कि बहुत जल्द क्या-क्या होनेवाला है।” (प्रका. 1:1) इन शब्दों से पता चलता है कि यह किताब सभी इंसानों के लिए नहीं बल्कि खास तौर से परमेश्‍वर के लोगों के लिए लिखवायी गयी है। और इससे भी बड़ी बात यह है कि परमेश्‍वर के लोग होने के नाते हम प्रकाशितवाक्य की भविष्यवाणियाँ पूरा करने में हिस्सा ले रहे हैं। यह बिलकुल ऐसा है मानो उस तसवीर में हम खुद को देख रहे हैं।

3-4. (क) प्रकाशितवाक्य की किताब के मुताबिक, इसमें लिखी भविष्यवाणियाँ कब पूरी होतीं? (ख) आज हममें से हरेक के लिए क्या करना ज़रूरी है?

3 प्रकाशितवाक्य की भविष्यवाणियों पर ध्यान देने की दूसरी वजह है कि ये हमारे दिनों में पूरी हो रही हैं। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? प्रेषित यूहन्‍ना ने लिखा, “मैं पवित्र शक्‍ति से उभारे जाने पर प्रभु के दिन में  पहुँच गया।” (प्रका. 1:10) यह बात यूहन्‍ना ने ईसवी सन्‌ 96 में लिखी। लेकिन तब तक ‘प्रभु का दिन’ शुरू नहीं हुआ था। (मत्ती 25:14, 19; लूका 19:12) बाइबल की भविष्यवाणियों से पता चलता है कि ‘प्रभु का दिन’ 1914 में शुरू हुआ जब यीशु स्वर्ग में राजा बना। तब से परमेश्‍वर के लोगों के बारे में प्रकाशितवाक्य में दर्ज़ भविष्यवाणियाँ पूरी होने लगीं। आज हम सब “प्रभु के दिन” में ही जी रहे हैं।

4 इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि हम प्रकाशितवाक्य 1:3 में दी सलाह पर ध्यान दें। वहाँ लिखा है, “सुखी है वह जो इस भविष्यवाणी के वचन ज़ोर से पढ़ता है और वे भी जो इन्हें सुनते हैं और इसमें लिखी बातों पर चलते हैं, क्योंकि तय किया गया वक्‍त पास है।” हमें इन बातों को ‘ज़ोर से पढ़ना है,’ ‘सुनना है’ और इन पर ‘चलना है।’ तो आइए इनमें से कुछ बातों पर ध्यान दें।

क्या यहोवा आपकी उपासना से खुश है?

5. अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमारी उपासना से खुश हो, तो हमें किसकी सलाह माननी चाहिए और क्यों?

5 प्रकाशितवाक्य के शुरूआती अध्यायों में बताया गया है कि यीशु ने एशिया माइनर की सात मंडलियों को अलग-अलग संदेश भेजे। उन्हें पढ़ने से पता चलता है कि वह उनके हालात अच्छी तरह जानता था। (प्रका. 1:12-16, 20; 2:1) उसने उन्हें साफ-साफ हिदायत दी कि उन्हें क्या करना चाहिए ताकि यहोवा उनकी उपासना से खुश हो। इससे हम क्या सीखते हैं? आज भी यीशु अच्छी तरह जानता है कि मंडलियों में क्या हो रहा है। वह हमारा अगुवा है और हमारा मार्गदर्शन करता है। उसकी नज़रों से कुछ भी छिपा नहीं है। वह जानता है कि हममें से हरेक का यहोवा के साथ कैसा रिश्‍ता है और यह भी कि यहोवा की मंज़ूरी पाने के लिए हमें क्या करना चाहिए। उसने एशिया माइनर की मंडलियों को जो सलाह दी उससे हम भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। आइए जानें कि उसने उन मंडलियों से क्या कहा।

6. (क) जैसे प्रकाशितवाक्य 2:3, 4 से पता चलता है, इफिसुस की मंडली में क्या समस्या थी? (ख) इससे हम क्या सीखते हैं?

6 प्रकाशितवाक्य 2:3, 4 पढ़िए। हमें यहोवा के लिए अपना प्यार कम नहीं होने देना चाहिए।  यीशु ने इफिसुस की मंडली को जो संदेश भेजा, उससे पता चलता है कि वहाँ के भाई-बहनों ने बहुत-सी तकलीफें सही थीं, फिर भी उन्होंने धीरज रखा और वे यहोवा की सेवा करते रहे। लेकिन उनमें यहोवा के लिए पहले जैसा प्यार नहीं था। उन्हें वह प्यार बढ़ाना था, तभी यहोवा उनकी उपासना से खुश होता। उसी तरह, जब हम पर तकलीफें आती हैं तो हम धीरज रखते हैं। लेकिन यहोवा सिर्फ यह नहीं देखता कि हम धीरज रख रहे हैं बल्कि वह यह भी देखता है कि हम ऐसा क्यों कर रहे हैं। वह चाहता है कि हम इसलिए उसकी उपासना करें क्योंकि हम उससे दिलो-जान से प्यार करते हैं और उसका एहसान मानते हैं।​—नीति. 16:2; मर. 12:29, 30.

7. (क) प्रकाशितवाक्य 3:1-3 के मुताबिक, सरदीस की मंडली में क्या समस्या थी? (ख) हमें जागते रहने के लिए क्या करना चाहिए?

7 प्रकाशितवाक्य 3:1-3 पढ़िए। हमें जागते रहना चाहिए।  सरदीस की मंडली के भाई-बहन पहले बढ़-चढ़कर सेवा करते थे। लेकिन अब वे ढीले पड़ने लगे थे, इसलिए यीशु ने उन्हें ‘जागने’ को कहा। यह सच है कि यहोवा हमारे काम कभी नहीं भूलेगा, लेकिन हमें कभी-भी ऐसा नहीं सोचना चाहिए, ‘मैंने सालों-साल यहोवा की सेवा की है। अब मैं थोड़ा-बहुत भी करूँगा, तो चलेगा।’ (इब्रा. 6:10) हो सकता है अपने हालात की वजह से हम ज़्यादा सेवा न कर पाएँ, लेकिन “प्रभु की सेवा में” हमसे जितना हो सके हमें उतना करना चाहिए। इस तरह हम अंत आने तक जागते रह पाएँगे।​—1 कुरिं. 15:58; मत्ती 24:13; मर. 13:33.

8. यीशु ने लौदीकिया की मंडली को जो सलाह दी, उससे हम क्या सीखते हैं? (प्रकाशितवाक्य 3:15-17)

8 प्रकाशितवाक्य 3:15-17 पढ़िए। हमें दिल लगाकर यहोवा की उपासना करनी चाहिए।  लौदीकिया की मंडली के भाई-बहन उपासना करने में ‘गुनगुने’ हो गए थे। इसलिए यीशु ने उनसे कहा कि वे ‘लाचार और बेहाल’ हैं। उसने उन्हें सलाह दी कि वे जोश से यहोवा की सेवा करें। (प्रका. 3:19) इससे हम क्या सीखते हैं? अगर यहोवा की सेवा करने में हमारा जोश कम होने लगा है, तो हमें उसे बढ़ाना चाहिए। हमें याद रखना चाहिए कि यहोवा और उसका संगठन हमारे लिए कितना कुछ कर रहा है। (प्रका. 3:18) हमें कभी-भी ऐशो-आराम की चीजें इकट्ठा करने में नहीं लग जाना चाहिए, वरना हम यहोवा की सेवा को नज़रअंदाज़ करने लगेंगे।

9. पिरगमुन और थुआतीरा के मसीहियों की तरह, आज हमारे सामने भी कौन-सा खतरा है?

9 हमें धर्मत्यागियों की शिक्षाओं से कोसों दूर रहना चाहिए।  यीशु ने पिरगमुन की मंडली के कुछ भाई-बहनों को कड़ी सलाह दी, क्योंकि वे इंसानी सोच फैलाकर मंडली में फूट पैदा कर रहे थे। (प्रका. 2:14-16) लेकिन उसने थुआतीरा की मंडली के उन भाई-बहनों की तारीफ की, जिन्होंने खुद को ‘शैतान की गूढ़ बातों’ से दूर रखा। उसने उन्हें बढ़ावा दिया कि वे सच्चाई को ‘मज़बूती से थामे रहें।’ (प्रका. 2:24-26) इन दोनों मंडलियों में कुछ मसीहियों का विश्‍वास कमज़ोर पड़ गया था, जिस वजह से वे धर्मत्यागियों की बातों में आ गए। इसलिए उन्हें पश्‍चाताप करना था। आज हमारे दिनों में भी धर्मत्यागी, यहोवा के संगठन के खिलाफ बातें करते हैं। हो सकता है एक नज़र में लगे कि वे बाइबल की शिक्षाएँ मानते हैं, पर उनके काम कुछ और ही दिखाते हैं। (2 तीमु. 3:5) इसलिए हमें उनकी बातें बिलकुल नहीं सुननी चाहिए। अगर हम बाइबल का गहराई से अध्ययन करेंगे, तो ही हम धर्मत्यागियों की फैलायी झूठी शिक्षाओं को पहचान पाएँगे और उनसे दूर रह पाएँगे।​—2 तीमु. 3:14-17; यहू. 3, 4.

10. यीशु ने पिरगमुन और थुआतीरा की मंडलियों को जो सलाह दी, उससे हम क्या सीखते हैं?

10 हमें हर तरह के अनैतिक काम से दूर रहना चाहिए।  पिरगमुन और थुआतीरा की मंडलियों में एक और समस्या थी। वहाँ के कुछ लोग नाजायज़ यौन-संबंध जैसे गंभीर पाप को हलके में ले रहे थे। इसलिए यीशु ने उन्हें कड़े शब्दों में सलाह दी। (प्रका. 2:14, 20) इससे हम क्या सीखते हैं? हमें सभी अनैतिक कामों से दूर रहना चाहिए और उन्हें किसी भी हाल में बरदाश्‍त नहीं करना चाहिए। हमें ऐसा कभी नहीं सोचना चाहिए कि मैं इतने सालों से यहोवा की सेवा कर रहा हूँ और इतनी ज़िम्मेदारियाँ सँभाल रहा हूँ, तो अगर मैं यह पाप करूँ, यहोवा मुझे माफ कर देगा। (1 शमू. 15:22; 1 पत. 2:16) दुनिया के नैतिक स्तर चाहे कितने ही गिर जाएँ, यहोवा चाहता है कि हम उसके ठहराए ऊँचे स्तरों को मानें।​—इफि. 6:11-13.

11. अब तक हमने क्या सीखा? (“ हमारे लिए सीख” बक्स भी देखें।)

11 इस लेख से हमने अब तक क्या सीखा? हमें यहोवा की उपासना करने के साथ-साथ सही काम भी करने चाहिए। अगर हम कुछ ऐसा कर रहे हैं, जिससे यहोवा को नफरत है, तो हमें वह काम करना तुरंत बंद कर देना चाहिए, वरना हमारी उपासना बेकार हो जाएगी। (प्रका. 2:5, 16; 3:3, 16) यीशु ने एशिया माइनर की मंडलियों को जो संदेश भेजा, उससे हम कुछ और भी सीख सकते हैं। आइए जानें।

ज़ुल्म सहने के लिए तैयार रहिए

जब शैतान को स्वर्ग से निकाल दिया गया, तब से वह परमेश्‍वर के लोगों पर कैसे हमला कर रहा है? (पैराग्राफ 12-16)

12. यीशु ने स्मुरना और फिलदिलफिया की मंडलियों को जो संदेश भेजा, उससे हमें क्या सीख मिलती है? (प्रकाशितवाक्य 2:10)

12 अब आइए देखते हैं कि यीशु ने स्मुरना और फिलदिलफिया की मंडलियों को क्या संदेश भेजा। उसने वहाँ के भाई-बहनों से कहा कि वे ज़ुल्मों से न डरें क्योंकि अगर वे वफादार रहेंगे तो आगे चलकर उन्हें इनाम मिलेगा। (प्रकाशितवाक्य 2:10 पढ़िए; 3:10) इससे हम क्या सीखते हैं? यह बात पक्की है कि हमें भी सताया जाएगा, पर हमें ज़ुल्म सहने के लिए तैयार रहना चाहिए। (मत्ती 24:9, 13; 2 कुरिं. 12:10) आज इस सलाह पर ध्यान देना और भी ज़रूरी है।

13-14. जब से शैतान को धरती पर फेंका गया है, तब से परमेश्‍वर के लोगों के साथ क्या हो रहा है?

13 प्रकाशितवाक्य की किताब से पता चलता है कि परमेश्‍वर के लोगों को “प्रभु के दिन” में सताया जाएगा यानी हमारे दिनों में। आइए जानें कि जब ‘प्रभु का दिन’ शुरू हुआ तब क्या हुआ? प्रकाशितवाक्य अध्याय 12 में बताया गया है कि जब स्वर्ग में परमेश्‍वर का राज शुरू हुआ, तो इसके तुरंत बाद वहाँ एक युद्ध छिड़ गया। मीकाएल यानी यीशु मसीह और उसकी सेनाओं ने शैतान और दुष्ट स्वर्गदूतों से युद्ध किया। (प्रका. 12:7, 8) नतीजा, शैतान और उसके साथी हार गए और उन्हें धरती पर फेंक दिया गया। इसके बाद से वे सभी इंसानों पर और भी ज़्यादा तकलीफें लाने लगे। (प्रका. 12:9, 12) और परमेश्‍वर के लोगों के साथ क्या होने लगा?

14 शैतान के लिए स्वर्ग जाने का रास्ता बंद हो गया था, इसलिए वह अपना गुस्सा धरती पर बचे हुए अभिषिक्‍त जनों पर निकालने लगा। वह जानता है कि वे आगे चलकर परमेश्‍वर के राज में राज करेंगे और उन्हें “यीशु की गवाही देने का काम मिला है।” इसलिए वह उन पर ज़ुल्म-पर-ज़ुल्म करने लगा। (प्रका. 12:17; 2 कुरिं. 5:20; इफि. 6:19, 20) आइए जानें कि उसने यह कैसे किया।

15. प्रकाशितवाक्य अध्याय 11 में बताए ‘दो गवाह’ कौन हैं और उनके साथ क्या हुआ?

15 शैतान ने उन अभिषिक्‍त भाइयों पर निशाना साधा जो प्रचार काम की अगुवाई कर रहे थे। उन भाइयों को प्रकाशितवाक्य अध्याय 11 में ‘दो गवाह’ कहा गया है, जिन्हें मार डाला जाता। * (प्रका. 11:3, 7-11) यह भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई? 1918 में अगुवाई करनेवाले आठ भाइयों पर झूठे इलज़ाम लगाए गए और उनमें से हरेक को लंबे समय तक जेल की सज़ा हुई। उस वक्‍त ऐसा लग रहा था कि प्रचार काम पूरी तरह ठप्प पड़ गया है।

16. सन्‌ 1919 में क्या हुआ और तब से शैतान क्या कर रहा है?

16 प्रकाशितवाक्य अध्याय 11 में यह भी बताया था कि उन “दो गवाहों” को कुछ ही वक्‍त बाद ज़िंदा किया जाएगा। यह बात कैसे पूरी हुई? अगुवाई करनेवाले भाइयों को जेल में डालने के अगले ही साल, यानी 1919 में जेल से रिहा कर दिया गया और उन पर लगे सारे इलज़ाम हटा दिए गए। जेल से छूटते ही वे ज़ोर-शोर से प्रचार काम करने लगे। लेकिन शैतान चुप नहीं बैठा। उसने परमेश्‍वर के लोगों पर ‘नदी की धारा’ छोड़ी है यानी वह उन पर लगातार ज़ुल्म कर रहा है। (प्रका. 12:15) इसी वजह से आज हममें से हरेक को ‘धीरज धरना है और विश्‍वास रखना है।’​—प्रका. 13:10.

यहोवा से मिला काम अच्छी तरह कीजिए

17. परमेश्‍वर के लोगों को किनसे मदद मिलती है?

17 प्रकाशितवाक्य अध्याय 12 में आगे बताया गया है कि परमेश्‍वर के लोगों को कुछ मदद मिलती है, जिसकी वे उम्मीद नहीं करते। आयत 16 में लिखा है कि शैतान ने उन पर जो ‘नदी की धारा’ छोड़ी है, “पृथ्वी” उसे निगल लेती है। इसका क्या मतलब है? हालाँकि शैतान, परमेश्‍वर के लोगों पर तकलीफें लाता है, लेकिन कई बार उसी की दुनिया के कुछ अधिकारी उनकी मदद करते हैं। उदाहरण के लिए, कई मौकों पर अदालतों ने यहोवा के साक्षियों के पक्ष में फैसले सुनाए हैं। इससे उन्हें अपना काम करने की आज़ादी मिली है और वे खुलकर प्रचार कर पाते हैं। (1 कुरिं. 16:9) लेकिन वे किस संदेश का प्रचार करते हैं?

आज परमेश्‍वर के लोग कौन-से दो संदेश सुना रहे हैं? (पैराग्राफ 18-19)

18. अंत आने से पहले हमें कौन-सा काम करना है?

18 यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि उसके चेले अंत आने से पहले पूरी दुनिया में ‘परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी’ का प्रचार करेंगे। (मत्ती 24:14) लेकिन वे यह काम अकेले नहीं कर रहे। प्रकाशितवाक्य में लिखा है कि एक स्वर्गदूत के पास ‘सदा तक कायम रहनेवाली खुशखबरी है ताकि वह इसे धरती पर रहनेवालों को यानी हर राष्ट्र, गोत्र, भाषा और जाति के लोगों को सुनाए।’ (प्रका. 14:6) इससे पता चलता है कि राज का प्रचार करने में स्वर्गदूत भी परमेश्‍वर के लोगों की मदद करते हैं।

19. यहोवा के लोग और कौन-सा संदेश सुनाते हैं?

19 परमेश्‍वर के लोग सिर्फ राज की खुशखबरी नहीं सुनाते, बल्कि वे शैतान की दुनिया के लोगों को न्यायदंड भी सुनाते हैं। उनके इस संदेश की तुलना ‘आग और ओलों’ से की गयी है। (प्रका. 8:7, 13) इस तरह वे स्वर्गदूतों के काम में उनका साथ दे रहे हैं। प्रकाशितवाक्य अध्याय 8 से 10 में बताया है कि स्वर्गदूत ऐलान करते हैं कि जो लोग परमेश्‍वर के राज के अधीन नहीं होते, उन पर बड़ी-बड़ी मुसीबतें आनेवाली हैं। यहोवा के साक्षी जानते हैं कि लोगों की ज़िंदगी दाँव पर लगी है। इसलिए वे लोगों को बता रहे हैं कि अगर वे अंत आने से पहले खुद को बदलेंगे, तभी यहोवा के क्रोध के दिन वे बच पाएँगे। (सप. 2:2, 3) पर बहुत-से लोगों को यह संदेश पसंद नहीं आता। इसलिए इसे सुनाने के लिए हमें हिम्मत चाहिए। जब महा-संकट शुरू होगा तब हमें और भी हिम्मत से काम लेना होगा, क्योंकि उस वक्‍त हम आखिरी बार लोगों को सीधे-सीधे न्याय का संदेश सुनाएँगे और बहुत-से लोग हमारा विरोध करेंगे।​—प्रका. 16:21.

‘इस भविष्यवाणी के वचन पर चलिए’

20. अगले दो लेखों में हम क्या जानेंगे?

20 आज प्रकाशितवाक्य की कई भविष्यवाणियाँ पूरी हो रही हैं। यही नहीं, इन्हें पूरा करने में हम भी हिस्सा ले रहे हैं। इसलिए हमें इसमें लिखी बातों को मानना चाहिए। (प्रका. 1:3) हमें ज़ुल्म सहने के लिए तैयार रहना चाहिए और हिम्मत से प्रचार करना चाहिए। ऐसा करने के लिए हम प्रकाशितवाक्य में बतायी दो बातें याद रख सकते हैं। पहली, परमेश्‍वर के दुश्‍मनों का क्या होगा और दूसरी, अगर हम यहोवा के वफादार रहेंगे तो हमें कौन-सी आशीषें मिलेंगी। अगले दो लेखों में हम इसी बारे में जानेंगे।

गीत 32 यहोवा की ओर हो जा!

^ हम एक बहुत रोमांचक दौर में जी रहे हैं! आज प्रकाशितवाक्य की किताब में लिखी बहुत-सी भविष्यवाणियाँ पूरी हो रही हैं। इस लेख में और अगले दो लेखों में हम प्रकाशितवाक्य की खास बातों के बारे में जानेंगे। जब हम इन बातों को ध्यान में रखकर यहोवा की उपासना करेंगे, तो वह हमसे खुश होगा।

^ 15 नवंबर, 2014 की प्रहरीदुर्ग  के पेज 30 पर दिया लेख, “आपने पूछा” पढ़ें।