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अध्ययन लेख 22

यहोवा की सलाह मानें, बुद्धिमान बनें

यहोवा की सलाह मानें, बुद्धिमान बनें

“बुद्धि यहोवा ही देता है।”​—नीति. 2:6.

गीत 89 सुन के अमल करें

एक झलक *

1. हम सबको परमेश्‍वर से मिलनेवाली बुद्धि की ज़रूरत क्यों है? (नीतिवचन 4:7)

 सही फैसले लेने के लिए हमें बुद्धि की ज़रूरत होती है। जब भी आपने कोई मुश्‍किल फैसला लिया होगा, तो आपने बेशक यहोवा से प्रार्थना की होगी और उससे बुद्धि माँगी होगी। (याकू. 1:5) राजा सुलैमान ने लिखा, “बुद्धि हासिल कर क्योंकि यह सबसे ज़रूरी है।” (नीतिवचन 4:7 पढ़िए।) सुलैमान यह नहीं कह रहा था कि हम इंसानों से बुद्धि हासिल करें बल्कि वह यह कह रहा था कि हम परमेश्‍वर यहोवा से बुद्धि पाएँ। (नीति. 2:6) पर क्या आज की समस्याओं का सामना करने के लिए परमेश्‍वर से मिलनेवाली बुद्धि काम आ सकती है? बिलकुल। आइए इस बारे में जानें।

2. बुद्धिमान बनने का एक तरीका क्या है?

2 बाइबल में ऐसे दो आदमियों के बारे में बताया है, जो अपनी बुद्धि के लिए जाने जाते थे। उनमें से एक था सुलैमान। उसके बारे में लिखा है, “परमेश्‍वर ने सुलैमान को बहुतायत में बुद्धि और पैनी समझ दी।” (1 राजा 4:29) दूसरा था यीशु। उसके जितना बुद्धिमान इंसान आज तक पैदा नहीं हुआ। (मत्ती 12:42) उसके बारे में भविष्यवाणी की गयी थी, “उस पर यहोवा की पवित्र शक्‍ति छायी रहेगी, इसलिए वह बुद्धिमान होगा, उसमें बड़ी समझ होगी।” (यशा. 11:2) इन दोनों आदमियों ने जो बातें सिखायीं, अगर हम उन्हें पढ़ें और उनके मुताबिक काम करें तो हम भी बुद्धिमान बन सकते हैं।

3. इस लेख में हम किस बारे में चर्चा करेंगे?

3 परमेश्‍वर से मिली बुद्धि की वजह से सुलैमान और यीशु ज़िंदगी के कई मामलों में अच्छी सलाह दे पाए। इस लेख में हम उनमें से तीन मामलों के बारे में चर्चा करेंगे। हम जानेंगे कि हम पैसे, काम और खुद के बारे में सही सोच कैसे रख सकते हैं।

पैसे के बारे में

4. सुलैमान और यीशु के बीच एक बड़ा फर्क क्या था?

4 सुलैमान बहुत रईस था और आलीशान महलों में रहता था। (1 राजा 10:7, 14, 15) दूसरी तरफ, यीशु के पास ज़्यादा कुछ नहीं था, न ही उसके पास खुद का घर था। (मत्ती 8:20) लेकिन पैसे के बारे में उन दोनों की सोच सही थी। ऐसा क्यों? क्योंकि उन दोनों को बुद्धि यहोवा परमेश्‍वर से मिली थी।

5. पैसों के बारे में सुलैमान की क्या सोच थी?

5 सुलैमान ने बताया कि “पैसा हिफाज़त करता है।” (सभो. 7:12) हम पैसे से ज़रूरत की चीज़ें खरीद सकते हैं और कुछ इच्छाएँ भी पूरी कर सकते हैं। हालाँकि सुलैमान के पास बहुत धन-दौलत थी, फिर भी वह जानता था कि पैसा ही सबकुछ नहीं है। उसने लिखा, “एक अच्छा नाम बेशुमार दौलत से बढ़कर है और आदर पाना सोना-चाँदी पाने से कहीं अच्छा है।” (नीति. 22:1) उसने यह भी देखा कि जिन लोगों को पैसों से प्यार होता है वे अकसर खुश नहीं होते। (सभो. 5:10, 12) उसने कहा कि हम पैसे को ही सबकुछ न मानें क्योंकि पैसा आज है तो कल नहीं होगा।​—नीति. 23:4, 5.

पैसे कमाने और दूसरी चीज़ें हासिल करने के बारे में हमारी क्या सोच है? क्या हम इन्हें पहली जगह दे रहे हैं या यहोवा की सेवा को? (पैराग्राफ 6-7) *

6. पैसों और चीज़ों के बारे में यीशु की सोच क्या थी? (मत्ती 6:31-33)

6 यीशु भी पैसों और चीज़ों के बारे में सही सोच रखता था। उसने खाने-पीने का मज़ा लिया। (लूका 19:2, 6, 7) उसका पहला चमत्कार था कि उसने पानी को सबसे बेहतरीन किस्म की दाख-मदिरा में बदल दिया। (यूह. 2:10, 11) जिस दिन उसकी मौत हुई, उस दिन उसने एक महँगा कुरता पहना हुआ था। (यूह. 19:23, 24) पर उसने कभी-भी इन चीज़ों को सबसे ज़्यादा अहमियत नहीं दी। उसने अपने चेलों से कहा, “कोई भी दास दो मालिकों की सेवा नहीं कर सकता। . . . तुम परमेश्‍वर के दास होने के साथ-साथ धन-दौलत की गुलामी नहीं कर सकते।” (मत्ती 6:24) उसने उन्हें यह भी सिखाया कि अगर वे पहले राज की खोज करेंगे, तो यहोवा उनकी सारी ज़रूरतें पूरी करेगा।​—मत्ती 6:31-33 पढ़िए।

7. जब एक भाई ने पैसों के बारे में सही सोच रखी, तो उसे क्या-क्या आशीषें मिलीं?

7 जब कई भाई-बहनों ने पैसे के बारे में यहोवा की सलाह मानी तो उन्हें बहुत फायदा हुआ। डैनियल नाम के एक अविवाहित भाई का उदाहरण लीजिए। उसने कहा, “जब मैं जवान था तो मैंने सोच लिया था कि मैं अपनी ज़िंदगी यहोवा की सेवा करने में लगा दूँगा।” उसने कम चीज़ों में गुज़ारा करना सीखा। इसलिए वह राहत काम में हाथ बँटा पाया और बेथेल भी जा पाया। वह कहता है, “मुझे अपने फैसले पर कोई अफसोस नहीं। मैं चाहता तो बहुत पैसे कमा सकता था, पर मुझे वे आशीषें कहाँ मिलतीं जो मुझे आज मिल रही हैं? मुझे खुशी है कि मैंने परमेश्‍वर के राज को पहली जगह दी और कई अच्छे दोस्त बनाए। दुनिया की सारी दौलत भी मुझे यह खुशी नहीं दे सकती।” सच में, जब हम पैसों के पीछे भागने के बजाय यहोवा की सेवा करते हैं, तो हमें ढेरों आशीषें मिलती हैं।

काम के बारे में

8. काम के बारे में सुलैमान की सोच क्या थी? (सभोपदेशक 5:18, 19)

8 सुलैमान ने कहा कि मेहनत करने से खुशी मिलती है और “यह परमेश्‍वर की देन है।” (सभोपदेशक 5:18, 19 पढ़िए।) उसने लिखा, “मेहनत के हर काम से फायदा होता है।” (नीति. 14:23) सुलैमान ने खुद बहुत मेहनत की। उसने अपने लिए घर बनाए, अंगूरों के बाग और बगीचे लगाए और पानी के कुंड बनाए। उसने कुछ शहर भी खड़े किए। (1 राजा 9:19; सभो. 2:4-6) इससे ज़रूर सुलैमान को खुशी मिली होगी। पर उसने जाना कि सबसे ज़्यादा खुशी इन कामों से नहीं बल्कि यहोवा की सेवा करने से मिलती है। इसलिए उसने यहोवा के लिए एक शानदार मंदिर बनाया जिसे बनने में सात साल लगे। (1 राजा 6:38; 9:1) सब तरह के काम करने के बाद सुलैमान समझ गया कि यहोवा की सेवा करना ही सबसे ज़रूरी काम है। उसने लिखा, “सारी बातें सुनी गयीं और अंत में निचोड़ यह है: सच्चे परमेश्‍वर का डर मान और उसकी आज्ञाओं पर चल।”​—सभो. 12:13.

9. हम कैसे जानते हैं कि यीशु ने काम को सबसे ज़्यादा अहमियत नहीं दी?

9 यीशु भी बहुत मेहनती था। जब वह जवान था, तो उसने बढ़ई का काम किया। (मर. 6:3) उसके माता-पिता उसकी मेहनत की बहुत कदर करते होंगे, क्योंकि उनका परिवार बहुत बड़ा था और घर चलाना मुश्‍किल था। यीशु परिपूर्ण था, इसलिए वह जो भी बनाता था वह सबसे उम्दा किस्म का होता होगा और सब लोग उसी से काम करवाना चाहते होंगे। यीशु को ज़रूर यह काम करने से खुशी मिलती होगी। लेकिन वह हर समय यही काम नहीं करता रहा। उसने यहोवा की उपासना करने के लिए भी वक्‍त निकाला। (यूह. 7:15) आगे चलकर जब वह पूरे समय प्रचार करने लगा, उसने अपने सुननेवालों से कहा, “उस खाने के लिए काम मत करो जो नष्ट हो जाता है, बल्कि उस खाने के लिए काम करो जो नष्ट नहीं होता और हमेशा की ज़िंदगी देता है।” (यूह. 6:27) और अपने पहाड़ी उपदेश में उसने कहा, “अपने लिए स्वर्ग में धन जमा करो।”​—मत्ती 6:20.

हम काम के साथ-साथ यहोवा की सेवा करने के लिए वक्‍त कैसे निकाल सकते हैं? (पैराग्राफ 10-11) *

10. हमें काम की जगह पर मेहनत तो करनी है, पर क्या नहीं करना है?

10 अगर हम बाइबल में दी यहोवा की सलाह मानें, तो हम काम के बारे में सही सोच रख पाएँगे। बाइबल में लिखा है कि हम ‘कड़ी मेहनत करें और ईमानदार रहें।’ (इफि. 4:28) अकसर हमारी ईमानदारी और कड़ी मेहनत देखकर हमारे बॉस हमारे काम की तारीफ करते हैं और बताते हैं कि वे हमसे कितना खुश हैं। ऐसे में हो सकता है कि उन्हें और खुश करने के इरादे से हम ज़्यादा घंटे काम करने लगें। हमें लग सकता है कि ऐसा करने से वे साक्षियों के बारे में अच्छा सोचेंगे। लेकिन काम की जगह पर ज़्यादा घंटे बिताने से हमारे पास यहोवा और अपने परिवार के लिए वक्‍त ही नहीं बचेगा। अगर हमारे साथ ऐसा हो रहा है, तो हमें कुछ बदलाव करने होंगे।

11. विलियम ने काम के बारे में सही सोच रखना कैसे सीखा?

11 विलियम नाम का एक जवान भाई पहले एक प्राचीन के यहाँ नौकरी करता था। उसने उसी प्राचीन से सीखा कि वह काम के बारे में सही सोच कैसे रख सकता है। विलियम ने कहा, “[वह भाई] संतुलित तरह से काम करने में एक अच्छी मिसाल है। वह कड़ी मेहनत करता है और उसका अपने ग्राहकों में अच्छा नाम है क्योंकि उसका काम अच्छा होता है। लेकिन शाम को समय होने पर वह अपना काम रोक देता है और अपने परिवार और उपासना पर ध्यान देता है। और पता है आपको, वह हमेशा खुश रहता है।” *

खुद के बारे में

12. (क) हम कैसे कह सकते हैं कि सुलैमान की खुद के बारे में सही सोच थी? (ख) आगे चलकर वह कैसे बदल गया?

12 जब तक सुलैमान यहोवा का वफादार रहा, तब तक उसकी खुद के बारे में सही सोच थी। जब वह जवान था और नया-नया राजा बना था, तो वह नम्र था। उसने माना कि उसे कम तजुरबा है, इसलिए उसने यहोवा से मदद माँगी। (1 राजा 3:7-9) वह यह भी समझता था कि घमंड करना खतरनाक हो सकता है। इसी वजह से उसने लिखा, “विनाश से पहले घमंड और ठोकर खाने से पहले अहंकार होता है।” (नीति. 16:18) पर अफसोस, आगे चलकर वह खुद ही यह बात भूल गया। वह इतना घमंडी हो गया कि उसने परमेश्‍वर की आज्ञाएँ माननी छोड़ दी। उदाहरण के लिए, यहोवा ने आज्ञा दी थी कि ‘एक राजा को बहुत-सी शादियाँ नहीं करनी चाहिए ताकि उसका मन सही राह से भटक न जाए।’ (व्यव. 17:17) लेकिन सुलैमान ने यह आज्ञा नहीं मानी और कई औरतों से शादी कर ली। उसकी 700 पत्नियाँ और 300 उप-पत्नियाँ थीं, जिनमें से ज़्यादातर झूठे देवी-देवताओं को पूजती थीं। (1 राजा 11:1-3) शायद सुलैमान को लगा होगा कि उसे कुछ नहीं होगा, पर वह गलत था। इन्हीं पत्नियों की वजह से वह यहोवा से दूर चला गया।​—1 राजा 11:9-13.

13. आप यीशु की तरह नम्र कैसे बन सकते हैं?

13 यीशु हमेशा नम्र रहा। धरती पर आने से पहले उसने स्वर्ग में अपने पिता के साथ बहुत कुछ किया था। ‘उसी के ज़रिए स्वर्ग में और धरती पर सब चीज़ें सिरजी गयीं।’ (कुलु. 1:16) जब यीशु का बपतिस्मा हुआ तो उसे ये सारी बातें याद आ गयी होंगी। (मत्ती 3:16; यूह. 17:5) लेकिन यह सब सोचकर वह घमंड से फूल नहीं उठा। उसने कभी-भी अपनी बातों और कामों से नहीं दिखाया कि वह दूसरों से बढ़कर है। इसके बजाय उसने अपने चेलों से कहा कि वह धरती पर “सेवा करवाने नहीं, बल्कि सेवा करने आया है और इसलिए आया है कि बहुतों की फिरौती के लिए अपनी जान बदले में दे।” (मत्ती 20:28) उसने यह भी कहा कि वह अपने मन मुताबिक काम नहीं करता बल्कि वह करता है जो यहोवा चाहता है। (यूह. 5:19) सच में, यीशु कितना नम्र था! हमें भी उसकी तरह नम्र बनना चाहिए।

14. खुद के बारे में सही सोच रखने के लिए हम यीशु की कौन-सी बात याद रख सकते हैं?

14 हमें नम्र तो रहना है, पर हमें यह नहीं सोचना है कि हम बिलकुल बेकार हैं या हमारा कोई मोल नहीं। यही बात यीशु ने भी सिखायी। एक बार उसने कहा, “तुम्हारे सिर का एक-एक बाल तक गिना हुआ है।” (मत्ती 10:30) इस बात से हमें यकीन होता है कि यहोवा को हमारी बहुत परवाह है और उसकी नज़र में हम अनमोल हैं। इसलिए अगर यहोवा ने हमें उसके उपासक बनने और हमेशा की ज़िंदगी देने के लिए चुना है, तो हमें कभी-भी उसके इस फैसले पर सवाल नहीं उठाना चाहिए।

अगर हम सिर्फ खुद के बारे में ही सोचते रहें, तो हम कौन-सी आशीषें पाने से चूक सकते हैं? (पैराग्राफ 15) *

15. (क) प्रहरीदुर्ग  में हमें कैसी सोच रखने का बढ़ावा दिया गया था? (ख) जैसे तसवीरों में दिखाया गया है, अगर हम सिर्फ खुद के बारे में सोचते रहें, तो हम कौन-सी आशीषें पाने से चूक सकते हैं?

15 करीब 15 साल पहले, प्रहरीदुर्ग  में बताया गया था कि अगर हम खुद के बारे में सही सोच रखें, तो इसमें हमारी ही भलाई है। उसमें लिखा था, “बेशक, हम खुद को कभी इतना बड़ा नहीं समझना चाहेंगे कि हम घमंड से फूल जाएँ। और ना ही हम खुद को बिलकुल गिरा हुआ समझना चाहेंगे। इसके बजाय, हमें अपनी खूबियों और कमियों को ध्यान में रखकर अपने बारे में सही नज़रिया रखने की कोशिश करनी चाहिए। इसी बात को एक मसीही स्त्री ने यूँ बताया: ‘मैं संत नहीं तो दुष्ट भी नहीं। औरों की तरह मुझमें भी अपने हिस्से की खूबियाँ और खामियाँ हैं।’” *

16. यहोवा किस वजह से हमें सलाह देता है?

16 यहोवा हमसे बहुत प्यार करता है और चाहता है कि हम खुश रहें। इसलिए वह अपने वचन के ज़रिए हमें सलाह देता है, जिन्हें मानने से हम बुद्धिमान बनते हैं। (यशा. 48:17, 18) आज दुनिया में देखें तो बहुत-से लोग सिर्फ पैसे, काम और खुद के बारे में सोचते हैं और इस वजह से कई मुसीबतों में फँस जाते हैं। लेकिन अगर हम यहोवा की सलाह मानें और उसकी सेवा को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दें तो हम पैसे, काम और खुद के बारे में सही सोच रख पाएँगे और खुश रहेंगे। इसलिए आइए हम ठान लें कि हम बुद्धिमान बनकर अपने पिता यहोवा का दिल खुश करेंगे!​—नीति. 23:15.

गीत 94 यहोवा के वचन के लिए एहसानमंद

^ सुलैमान और यीशु बहुत बुद्धिमान थे, क्योंकि यहोवा ने उन्हें बुद्धि दी थी। उन दोनों ने कई सलाहें दीं जिन्हें मानकर हम पैसे, काम और खुद के बारे में सही सोच रख सकते हैं। इस लेख में हम ऐसी ही कुछ सलाहों पर गौर करेंगे। हम यह भी जानेंगे कि इन्हें मानकर कुछ भाई-बहनों को क्या फायदा हुआ है।

^ 1 फरवरी, 2015 की प्रहरीदुर्ग  का लेख, “अपनी मेहनत से खुशी कैसे पाएँ?” पढ़ें।

^ 1 अगस्त, 2005 की प्रहरीदुर्ग  का लेख, “खुशी पाने में बाइबल आपकी मदद कर सकती है” पढ़ें।

^ तसवीर के बारे में: जौन और टौम एक ही मंडली में हैं। एक तरफ जौन अपनी गाड़ी का खयाल रखने में कुछ ज़्यादा ही वक्‍त लगा देता है। दूसरी तरफ टौम अपनी गाड़ी से दूसरों को प्रचार और सभाओं में ले जाता है।

^ तसवीर के बारे में: जौन ओवरटाइम कर रहा है। जब भी उसका बॉस उसे ओवरटाइम करने के लिए कहता है, तो उसे खुश करने के लिए वह मान जाता है। उसी शाम टौम, जो एक सहायक सेवक है, एक प्राचीन के साथ रखवाली भेंट करने आया है। टौम ने अपने बॉस को पहले ही बताया है कि हफ्ते के कुछ दिन, शाम के वक्‍त उसकी सभाएँ हैं और उसे दूसरी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करनी हैं, इसलिए वह देर तक काम नहीं कर सकता।

^ तसवीर के बारे में: जौन को सिर्फ खुद की पड़ी है, लेकिन टौम यहोवा की सेवा को ज़िंदगी में पहली जगह देता है। वह एक राज-घर की मरम्मत करने में हाथ बँटा रहा है। इस वजह से वह और भी दोस्त बना पाया है।