इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

जीवन कहानी

यहोवा ने कभी मुझे निराश नहीं किया!

यहोवा ने कभी मुझे निराश नहीं किया!

मैं उन चार लड़कियों में से एक थी जिसे एक मौके पर अडॉल्फ हिटलर के सामने जाने के लिए चुना गया था। उसके भाषण के बाद हमें उसे फूल देने थे। इस काम के लिए मुझे क्यों चुना गया था? वह इसलिए कि पापा नात्ज़ी पार्टी के कार्यकर्ता थे और उसी पार्टी के एक नेता के यहाँ ड्राइवर भी थे। मम्मी एक कट्टर कैथोलिक थी और मुझे नन बनाना चाहती थी। माता-पिता का इतना ज़बरदस्त असर होने के बावजूद, मैं न तो एक नन बनी, न ही नात्ज़ी समर्थक। आइए बताती हूँ कि ऐसा क्यों हुआ।

मैं ऑस्ट्रिया के ग्राट्‌स शहर में पली-बड़ी। सात साल की उम्र में मुझे नन बनने के लिए एक स्कूल भेजा गया। वहाँ का माहौल देखकर मुझे बड़ा धक्का लगा क्योंकि पादरी और नन आपस में नाजायज़ यौन-संबंध रखते थे। मैंने मम्मी को सारा हाल कह सुनाया और बताया कि मैं यहाँ नहीं पढ़ना चाहती। मम्मी मान गयी और एक साल के अंदर मैं वापस घर आ गयी।

हमारा परिवार, पापा मिलिट्री की वर्दी में

इसके बाद मुझे ग्राट्‌स के एक बोर्डिंग स्कूल में डाला गया। उस दौरान युद्ध की वजह से एक रात भारी बमबारी होने लगी। पापा मुझे स्कूल से लेने आए ताकि हम एक सुरक्षित जगह में पनाह ले सकें। हम श्‍लाडमिंग नाम के कसबे में गए। वहाँ जब हमने एक पुल पार किया तो एक बड़ा धमाका हुआ। पुल को बम से उड़ा दिया गया। एक और मौके पर जब मैं और मेरी नानी बाड़े में कुछ कर रहे थे, तो अचानक कई हवाई-जहाज़ आए और हम पर गोलियाँ चलाने लगे। युद्ध के खत्म होते-होते, हम चर्च और सरकार से पूरी तरह निराश हो चुके थे।

यहोवा के बारे में सीखा जो हरदम साथ देता है

सन्‌ 1950 में, मम्मी यहोवा की एक साक्षी के साथ बाइबल पर चर्चा करने लगी। मैं भी उनकी बातचीत सुनने लगी और फिर मम्मी के साथ कुछ सभाओं में गयी। मम्मी को यकीन हो गया कि यही सच्चाई है और उसने 1952 में बपतिस्मा ले लिया।

उस समय जब कभी मैं मंडली में जाती थी तो यही सोचती थी कि मैं कहाँ बुज़ुर्ग औरतों की बैठक में आ गयी। लेकिन एक बार जब मैं किसी और मंडली की सभा में गयी, तब मैंने देखा कि साक्षियों में इतने सारे जवान लोग भी हैं। फिर जब मैं वापस ग्राट्‌स आयी, तो मैं सारी सभाओं में जाने लगी और जल्द ही मुझे भी यकीन हो गया कि मैं जो सीख रही हूँ, वही सच्चाई है। मैंने यह भी सीखा कि यहोवा ऐसा परमेश्‍वर है जो हरदम अपने सेवकों का साथ देता है, तब भी जब वे किसी बड़ी समस्या का सामना करते हैं और खुद को अकेला महसूस करते हैं।​—भज. 3:5, 6.

मैं दूसरों को सच्चाई बताना चाहती थी। इसकी शुरूआत मैंने अपने भाई-बहनों से की। मेरी चार बड़ी बहनें घर से दूर अलग-अलग गाँव में रहती थीं और टीचर की नौकरी करती थीं। मैं उनसे मिलने उनके घर गयी। मैंने उन्हें बाइबल अध्ययन करने का बढ़ावा दिया। आगे चलकर, मेरे भाई-बहनों ने अध्ययन किया और वे यहोवा के साक्षी बन गए।

जब मैंने घर-घर का प्रचार करना शुरू किया तो दूसरे हफ्ते ही मेरी मुलाकात एक औरत से हुई। वह 30-40 की थी। वह मेरे साथ बाइबल अध्ययन करने लगी। उसने अच्छी तरक्की की और बपतिस्मा लिया। कुछ समय बाद उसके पति और दो बेटों ने भी बपतिस्मा लिया। दरअसल अध्ययन कराने से मेरा विश्‍वास भी मज़बूत हुआ। कैसे? मेरे साथ किसी ने भी सिलसिलेवार तरीके से बाइबल अध्ययन नहीं किया था। उस औरत को सिखाने के लिए मुझे हर अध्याय की अच्छी तैयारी करनी होती थी। इससे दो मकसद पूरे हुए। एक, मैं खुद सीखती थी और दो, अपने बाइबल विद्यार्थी को सिखा पाती थी। इस तरह सच्चाई की मेरी समझ बढ़ती गयी और मैंने अप्रैल 1954 में बपतिस्मा लिया।

‘ज़ुल्म तो ढाए गए मगर त्यागा नहीं गया’

सन्‌ 1955 में, मैं अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन के लिए जर्मनी, फ्रांस और इंग्लैंड गयी। लंदन में, मैं भाई अल्बर्ट श्रोडर से मिली जो गिलियड स्कूल के शिक्षक थे और बाद में शासी निकाय के सदस्य बने। जब हम ब्रिटिश म्यूज़ियम का दौरा कर रहे थे, तो भाई श्रोडर ने हमारा ध्यान बाइबल की कुछ हस्तलिपियों पर दिलाया जिनमें परमेश्‍वर का नाम इब्रानी भाषा में लिखा था। फिर उन्होंने हमें इसकी अहमियत समझायी। उनकी बातों का मेरे दिल पर गहरा असर हुआ। मैं यहोवा और सच्चाई से और भी प्यार करने लगी। नतीजा, मेरा इरादा और मज़बूत हो गया कि मैं परमेश्‍वर के वचन की सच्चाई दूसरों को बताऊँगी।

ऑस्ट्रिया के मिस्टलबाक कसबे में अपनी पायनियर साथी (दायीं तरफ) के साथ

एक जनवरी, 1956 में मैंने पायनियर सेवा शुरू की। चार महीने बाद, मुझे खास पायनियर बनाया गया और ऑस्ट्रिया के मिस्टलबाक कसबे में भेजा गया। वहाँ मुझे और मेरी पायनियर साथी को छोड़ कोई भी यहोवा का साक्षी नहीं था। मैं और मेरी साथी एक-दूसरे से बहुत अलग थे! मैं करीब 19 साल की थी, वह 25 की। मैं शहर से थी और वह गाँव से थी। मुझे देर तक सोना पसंद था और वह जल्दी उठ जाती थी। मैं रात में देर तक जागती थी और वह जल्दी सो जाती थी। यह मेरे लिए एक मुश्‍किल घड़ी थी। लेकिन फिर हमने बाइबल की सलाह मानी और आपस में तालमेल बिठाया। नतीजा, हमने साथ मिलकर कई साल तक पायनियर सेवा की।

दरअसल हमने इससे भी बड़ी मुश्‍किलों का सामना किया। कई बार हम पर ज़ुल्म भी ढाए गए मगर हमें “त्यागा नहीं” गया। (2 कुरिं. 4:7-9) एक बार, एक गाँव में प्रचार करते वक्‍त लोगों ने हमारे पीछे कुत्ते छोड़ दिए। उन कुत्तों ने हमें घेर लिया और हम पर भौंकने लगे। हमें लगा कि अब तो हम गए। हमने एक-दूसरे का हाथ कसकर पकड़ा और मैंने ज़ोर से प्रार्थना की, “हे यहोवा, अगर ये हम पर झपटें तो हमें तड़पने मत देना। ऐसा हो कि हम फौरन मर जाएँ।” फिर क्या था, कुत्ते हमारे पास आकर अचानक रुक गए। वे दुम हिलाने लगे और वहाँ से चले गए। हमने महसूस किया कि यहोवा ने ही हमें बचाया है। इसके बाद, जब हमने उस गाँव में प्रचार किया तो लोगों ने हमारी बातें अच्छे से सुनीं। शायद इसलिए कि वे हैरान थे कि कुत्तों ने हमें कुछ नहीं किया या फिर यह देखकर वे ताज्जुब कर रहे थे कि इस डरावने अनुभव के बाद भी हम प्रचार कर रहे हैं। आगे चलकर, वहाँ के कुछ लोग साक्षी बनें।

हमारे साथ एक और डरावना अनुभव हुआ। एक दिन हमारा मकान मालिक नशे में धुत्त होकर घर आया। वह यह कहकर चिल्लाने लगा कि हम लोगों की शांति भंग कर रहे हैं। वह हमें जान से मारने की धमकी देने लगा। उसकी पत्नी ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माना। हम ऊपरवाले कमरे में रहते थे और हमने सारी बातें सुन लीं। हमने तुरंत दरवाज़े पर कुर्सियाँ लगा दीं और अपना सामान बाँधने लगे। जब हमने दरवाज़ा खोला तो मकान मालिक बड़ा चाकू लिए सीढ़ियों पर खड़ा था। हम सामान लेकर पीछे के दरवाज़े से नीचे उतरे और बगीचे से होते हुए भाग गए।

हम एक होटल में गए और हमने किराए पर एक कमरा लिया। हम उस होटल में करीब एक साल तक रहे। वहाँ रहना हमारे लिए एक आशीष साबित हुआ। वह कैसे? यह होटल कसबे के बीचों-बीच था और हमारे कुछ बाइबल विद्यार्थियों के लिए यहाँ आकर अध्ययन करना ज़्यादा आसान था। देखते-ही-देखते हमारे कमरे में पुस्तक अध्ययन और प्रहरीदुर्ग अध्ययन चलाए जाने लगे। करीब 15 लोग सभाओं के लिए आते थे।

हमने मिस्टलबाक में एक साल से ज़्यादा सेवा की। फिर मुझे ग्राट्‌स के दक्षिण-पूरब में फेल्टबाक कसबे में भेजा गया। मुझे एक नयी पायनियर साथी मिली लेकिन यहाँ भी कोई मंडली नहीं थी। हम यहाँ लकड़ियों से बने एक घर की दूसरी मंज़िल पर रहते थे। हमारा एक छोटा-सा कमरा था और जब हवा चलती थी तो लकड़ियों के बीच से साँय-साँय आवाज़ आती थी। लकड़ियों के बीच की जगह को बंद करने के लिए हम अखबार ठूँसते थे। इसके अलावा, हमें कुएँ से पानी लाना पड़ता था। मगर यहाँ सेवा करने के अच्छे नतीजे मिले। कुछ ही महीनों बाद यहाँ एक समूह बन गया। हमने एक परिवार के 30 लोगों के साथ अध्ययन किया और बाद में वे सब सच्चाई में आ गए।

इन अनुभवों से मैंने सीखा कि जो लोग राज के कामों के लिए मेहनत करते हैं, यहोवा उनका साथ कभी नहीं छोड़ता। वह उन हालात में भी हमारे साथ रहता है जब कोई इंसान हमारी मदद नहीं कर सकता।​—भज. 121:1-3.

परमेश्‍वर “नेकी के दाएँ हाथ” से मुझे सँभाले रहा

सन्‌ 1958 में न्यू यॉर्क सिटी के यैंकी स्टेडियम और पोलो ग्राउंड्‌स में एक अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन का इंतज़ाम किया गया। मैंने उसमें हाज़िर होने के लिए अर्ज़ी भरी। ऑस्ट्रिया के शाखा दफ्तर ने अर्ज़ी का जवाब देने के साथ-साथ यह भी पूछा कि क्या मैं गिलियड स्कूल की 32वीं क्लास में जाना चाहती हूँ। भला इतने बढ़िया मौके को मैं कैसे ठुकरा सकती थी! मैंने तुरंत “हाँ” कह दिया।

गिलियड क्लास के दौरान भाई मार्टिन पोट्‌ज़िंगर मेरे पासवाली सीट पर बैठते थे। भाई मार्टिन नात्ज़ी यातना शिविरों में बहुत भयानक अनुभवों से गुज़रे थे। वे भी आगे चलकर शासी निकाय के सदस्य बने। क्लास के दौरान, वे कभी-कभी फुसफुसाकर पूछते थे, “ऐरिका, अच्छा बताओ जर्मन भाषा में इसे क्या कहते हैं?”

जब आधा कोर्स खत्म हो गया, तो भाई नेथन नॉर ने बताया कि हमें कहाँ सेवा करने के लिए भेजा जा रहा है। मुझे पराग्वे भेजा गया। उस वक्‍त मेरी उम्र कम थी इसलिए पराग्वे जाने के लिए मुझे पापा की इजाज़त चाहिए थी। इजाज़त मिलने पर मैं मार्च 1959 में पराग्वे आयी। मुझे आसूनसियोन नाम की जगह भेजा गया जहाँ मुझे एक नयी साथी मिली। हम वहाँ एक मिशनरी घर में रहते थे।

कुछ समय बाद मेरी मुलाकात वौल्टर ब्राइट से हुई। वे एक मिशनरी थे और गिलियड की 30वीं क्लास से ग्रैजुएट हुए थे। आगे चलकर हमने शादी कर ली और साथ मिलकर ज़िंदगी की मुश्‍किलों का सामना किया। जब भी हमारे आगे कोई समस्या आती थी, तो हम यशायाह 41:10 में दिए यहोवा के इस वादे को पढ़ते थे, “डर मत क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ, घबरा मत क्योंकि मैं तेरा परमेश्‍वर हूँ। मैं तेरी हिम्मत बँधाऊँगा।” इससे हमें भरोसा मिलता था कि अगर हम यहोवा के वफादार रहें और उसके राज को पहली जगह दें, तो वह हमें कभी निराश नहीं होने देगा।

इसके कुछ समय बाद, हमें एक ऐसे इलाके में सेवा करने के लिए भेजा गया जो ब्राज़ील की सरहद के पास था। वहाँ के पादरियों ने नौजवानों को हमारे खिलाफ भड़काया ताकि वे हमारे मिशनरी घर पर पत्थर फेंकें, जिसकी हालत पहले से ही खस्ता थी। फिर वौल्टर एक पुलिस प्रमुख के साथ बाइबल अध्ययन करने लगे। पुलिस प्रमुख ने हमारी सुरक्षा के लिए एक हफ्ते के लिए हमारे घर के पास पुलिस का पहरा बिठाया। इससे सतानेवालों ने हमारा पीछा छोड़ दिया। इसके कुछ ही समय बाद हमें सरहद के पार ब्राज़ील में रहने के लिए एक अच्छी जगह मिली। इससे यह फायदा हुआ कि हम पराग्वे और ब्राज़ील दोनों जगहों में सभाएँ रख पाए। जब हम इस जगह से जानेवाले थे, तब तक यहाँ दो छोटी मंडलियाँ बन चुकी थीं।

अपने पति वौल्टर के साथ पराग्वे के आसूनसियोन में मिशनरी सेवा में

यहोवा अब भी मुझे सँभाले हुए है

डॉक्टरों का कहना था कि मुझे कभी बच्चा नहीं होगा। इसलिए 1962 में जब हमें पता चला कि मैं माँ बननेवाली हूँ, तो हमें बड़ी हैरानी हुई। हम फ्लोरिडा के हॉलीवुड शहर में जाकर बस गए जहाँ वौल्टर का परिवार रहता था। कुछ सालों तक मैं और वौल्टर पायनियर सेवा नहीं कर पाए क्योंकि हमें अपने परिवार की देखभाल करनी पड़ी। फिर भी हम अपनी ज़िंदगी में राज के कामों को पहली जगह देते रहे।​—मत्ती 6:33.

जब हम नवंबर 1962 में फ्लोरिडा आए, तो उस इलाके में काले-गोरों का आपस में मिलना-जुलना सही नहीं माना जाता था। हमें यह देखकर हैरानी हुई कि इस वजह से भाई-बहन भी अलग-अलग सभाएँ रखने लगे थे। यहाँ तक कि उनके प्रचार के इलाके भी अलग-अलग थे। लेकिन यहोवा इस तरह का भेदभाव नहीं करता। फिर तुरंत यह फैसला किया गया कि हर मंडली में दोनों तरह के भाई-बहन साथ मिलकर यहोवा की उपासना करेंगे। इस फैसले पर यहोवा ने आशीष दी और आज उस जगह में ढेर सारी मंडलियाँ हैं।

दुख की बात है कि 2015 में मेरे पति वौल्टर की मौत हो गयी, उन्हें ब्रेन कैंसर था। हम 55 साल तक साथ रहे। वे एक अच्छे पति थे, उन्हें यहोवा से प्यार था और उन्होंने कई भाइयों की मदद की थी। मुझे उस वक्‍त का इंतज़ार है जब मैं अपने पति को दोबारा ज़िंदा देखूँगी और वे एकदम सेहतमंद होंगे।​—प्रेषि. 24:15.

पूरे समय की सेवा में मुझे 40 से भी ज़्यादा साल हो चुके हैं और इस दौरान मुझे कई खुशियाँ और आशीषें मिली हैं। इनमें से एक है कि मैंने और वौल्टर ने अपने 136 बाइबल विद्यार्थियों को बपतिस्मा लेते देखा। हमारी ज़िंदगी में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन हमने कभी इन वजहों से अपने वफादार परमेश्‍वर की सेवा करना नहीं छोड़ा। इसके बजाय, हम उसके और भी करीब आए और उस पर भरोसा रखा कि वह अपने समय पर और अपने तरीके से हमारी समस्याओं को सुलझाएगा। उसने ऐसा किया भी!​—2 तीमु. 4:16, 17.

मुझे वौल्टर की बहुत याद आती है लेकिन पायनियर सेवा में लगे रहने से मुझे बहुत मदद मिली है। जब मैं लोगों को बाइबल की सच्चाइयों और मरे हुओं के ज़िंदा होने की आशा के बारे में सिखाती हूँ, तो इससे मुझे अपना गम सहने की हिम्मत मिलती है। सच, यहोवा ने कभी मुझे निराश नहीं किया। अपने वादे के मुताबिक उसने हमेशा मुझे सँभाला है, हिम्मत दी है और “नेकी के दाएँ हाथ से” थामे रखा है।​—यशा. 41:10.