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“शिक्षा को कबूल करो और बुद्धिमान बनो”

“शिक्षा को कबूल करो और बुद्धिमान बनो”

“हे मेरे बेटो, . . . शिक्षा को कबूल करो और बुद्धिमान बनो।”​—नीति. 8:32, 33.

गीत: 34, 6

1. हम बुद्धि कैसे हासिल कर सकते हैं और इससे हमें क्या फायदे होंगे?

बुद्धि यहोवा से मिलती है और वह उदारता से दूसरों को बुद्धि देता है। याकूब 1:5 में लिखा है, “अगर तुममें से किसी को बुद्धि की कमी हो तो वह परमेश्‍वर से माँगता रहे और वह उसे दी जाएगी, क्योंकि परमेश्‍वर सबको उदारता से और बिना डाँटे-फटकारे देता है।” बुद्धि हासिल करने का एक तरीका है, परमेश्‍वर की शिक्षा कबूल करना। इस तरह हम गलत काम करने से दूर रहेंगे और यहोवा के करीब बने रहेंगे। (नीति. 2:10-12) इतना ही नहीं, हमें हमेशा की ज़िंदगी भी मिलेगी।​—यहू. 21.

2. परमेश्‍वर की शिक्षा के लिए हम अपनी कदर कैसे बढ़ा सकते हैं?

2 लेकिन हमारी परवरिश या अपरिपूर्णता की वजह से कभी-कभी शिक्षा कबूल करना हमारे लिए मुश्‍किल होता है या हम उसके बारे में सही नज़रिया नहीं रख पाते। मगर जब हम खुद देखते हैं कि परमेश्‍वर की शिक्षा से हमें कितना फायदा हुआ है, तो हमें यकीन हो जाता है कि यहोवा हमसे बहुत प्यार करता है और हमारे दिल में उसकी शिक्षा के लिए कदर बढ़ जाती है। नीतिवचन 3:11, 12 बताता है, “हे मेरे बेटे, यहोवा की शिक्षा मत ठुकराना, . . . क्योंकि यहोवा जिससे प्यार करता है उसको डाँटता भी है।” जी हाँ, हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा हमारा भला चाहता है। (इब्रानियों 12:5-11 पढ़िए।) यहोवा हमें अच्छी तरह जानता है, इसलिए वह सही वक्‍त पर हमें वह शिक्षा देता है जिससे हमें फायदा होगा। इस लेख में हम शिक्षा के चार पहलुओं पर गौर करेंगे: (1) खुद को सिखाना, (2) बच्चों को शिक्षा देना, (3) मंडली से मिलनेवाली शिक्षा और (4) शिक्षा ठुकराने से होनेवाला दुख।

खुद को सिखाना क्यों बुद्धिमानी है?

3. मिसाल देकर समझाइए कि कैसे एक बच्चा सोच को काबू में रखना और हर काम कायदे से करना सीखता है?

3 हमें खुद को क्या सिखाना चाहिए? यही कि हम अपनी सोच को काबू में रखें और हर काम कायदे से करें। ऐसा करना हममें पैदाइशी नहीं होता, इसे सीखना होता है। मिसाल के लिए, जब एक बच्चा साइकिल चलाना सीखता है, तो उसकी मम्मी या पापा साइकिल पकड़कर उसके साथ-साथ चलते हैं ताकि बच्चा साइकिल से गिर न जाए। धीरे-धीरे जब बच्चा साइकिल पर बैलेंस बनाना सीख लेता है, तो वे कुछ सेकंड के लिए साइकिल छोड़ देते हैं। जब उन्हें लगता है कि अब बच्चे को साइकिल चलाना आ गया है, तो वे साइकिल को पूरी तरह छोड़ देते हैं। उसी तरह, माता-पिता सब्र रखते हुए अपने बच्चों को लगातार प्रशिक्षण देते हैं। जब वे “यहोवा की मरज़ी के मुताबिक उन्हें सिखाते और समझाते” हैं, तो बच्चे अपनी सोच को काबू में रखना और हर काम कायदे से करना सीखते हैं और बुद्धिमान बनते हैं।​—इफि. 6:4.

4, 5. (क) “नयी शख्सियत” और कायदे से चलने के बीच क्या नाता है? (ख) गलती करने पर हमें क्यों निराश नहीं होना चाहिए?

4 यही बात उन बड़े लोगों पर भी लागू होती है जो नए चेले बनते हैं। हालाँकि वे कुछ हद तक कायदे से चलते हैं, लेकिन वे अब तक प्रौढ़ मसीही नहीं बने हैं। जब वे “नयी शख्सियत” पहन लेते हैं और मसीह के जैसे बनने की कोशिश करते हैं, तब वे अपनी सोच पर काबू रखना और कायदे से काम करना सीखते हैं। (इफि. 4:23, 24) वे ‘भक्‍तिहीन कामों और दुनियावी इच्छाओं को ठुकराते हैं और इस दुनिया में सही सोच रखते हुए और नेकी और परमेश्‍वर की भक्‍ति के साथ जीवन बिताते हैं।’ तब वे प्रौढ़ मसीही बन जाते हैं।​—तीतु. 2:12.

5 लेकिन हम सब पापी हैं। (सभो. 7:20) तो फिर जब हम गलती करते हैं, तो क्या इसका यह मतलब है कि हमें अपनी सोच पर बिलकुल भी काबू नहीं और हम कायदे से नहीं चल सकते? ऐसी बात नहीं। नीतिवचन 24:16 बताता है, “नेक जन चाहे सात बार गिरे, तब भी उठ खड़ा होगा।” इस आयत के मुताबिक नेक जन कैसे दोबारा “उठ खड़ा होगा”? वह अपनी ताकत से नहीं बल्कि परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति की मदद से ऐसा कर पाएगा। (फिलिप्पियों 4:13 पढ़िए।) पवित्र शक्‍ति के फल का एक पहलू है, संयम जिसका मतलब अपनी सोच पर काबू रखना और कायदे से चलना भी है।

6. परमेश्‍वर के वचन का और भी अच्छी तरह अध्ययन करने के लिए आपको क्या करना चाहिए? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)

6 प्रार्थना, बाइबल अध्ययन और मनन करने से भी हम अपनी सोच पर काबू रखना और कायदे से चलना सीखते हैं। लेकिन तब क्या जब हमें बाइबल का अध्ययन करना मुश्‍किल लगे या हमें पढ़ना ही पसंद न हो? निराश मत होइए। यहोवा की मदद से आप उसके वचन के लिए “ज़बरदस्त भूख पैदा” कर सकते हैं। (1 पत. 2:2) उससे प्रार्थना कीजिए कि आप अध्ययन के लिए समय निकाल पाएँ और उस दौरान आपका ध्यान इधर-उधर न भटके। आप चाहें तो शुरू-शुरू में थोड़े समय के लिए अध्ययन कर सकते हैं। देखते-ही-देखते आपके लिए अध्ययन करना आसान हो जाएगा और आपको इसमें मज़ा भी आने लगेगा। सच, आपको वह शांत माहौल अच्छा लगने लगेगा जहाँ आप यहोवा के अनमोल विचारों पर मनन कर पाएँगे।​—1 तीमु. 4:15.

7. अपनी सोच पर काबू रखने और कायदे से चलने से कैसे हम अपने लक्ष्य हासिल कर सकते हैं?

7 अपनी सोच पर काबू रखने और हर काम कायदे से करने से एक मसीही, परमेश्‍वर की सेवा में लक्ष्य हासिल कर पाता है। एक पिता ने, जिसका सच्चाई में जोश कम हो रहा था, पायनियर बनने का लक्ष्य रखा। इस लक्ष्य को पाने के लिए उसने क्या किया? उसने हमारी पत्रिकाओं में पायनियर सेवा से जुड़े लेख पढ़े और प्रार्थना भी की। ऐसा करने से यहोवा के साथ उसका रिश्‍ता मज़बूत हुआ। उसने समय-समय पर सहयोगी पायनियर सेवा भी की। जी हाँ, उसने अपना पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर रखा और किसी भी बात को इसके आड़े नहीं आने दिया। कुछ समय बाद वह पायनियर बन गया।

यहोवा की मरज़ी के मुताबिक सिखाते हुए बच्चों की परवरिश कीजिए

बच्चे जन्म से सही-गलत में फर्क करना नहीं जानते, उन्हें प्रशिक्षण की ज़रूरत होती है (पैराग्राफ 8 देखिए)

8-10. बच्चों की परवरिश करने में क्या बात माता-पिता की मदद कर सकती है? एक उदाहरण दीजिए।

8 माता-पिताओं को यह ज़िम्मेदारी मिली है कि वे ‘यहोवा की मरज़ी के मुताबिक बच्चों को सिखाते और समझाते हुए उनकी परवरिश करें।’ (इफि. 6:4) आज की दुनिया में ऐसा करना आसान नहीं। (2 तीमु. 3:1-5) जब बच्चे पैदा होते हैं, तो उन्हें सही-गलत में फर्क पता नहीं होता न ही उनका ज़मीर प्रशिक्षित होता है। इसलिए ज़मीर को प्रशिक्षण देने के लिए बच्चों को सिखाना ज़रूरी होता है। (रोमि. 2:14, 15) बाइबल का एक विद्वान बताता है कि जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “सिखाते” किया गया है, उसका मतलब “बच्चे का विकास” भी हो सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो बच्चे की इस तरह परवरिश करना कि वह एक ज़िम्मेदार इंसान बने।

9 जब माँ-बाप प्यार से बच्चों को सिखाते-समझाते हैं, तो उनके बच्चे सुरक्षित महसूस करते हैं। वे जान जाते हैं कि आज़ादी की कुछ सीमाएँ होती हैं और वे जो भी करते हैं, उसके या तो अच्छे या बुरे अंजाम होते हैं। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि माता-पिता बच्चों की परवरिश करने में यहोवा की बुद्धि पर निर्भर रहें। बच्चों की परवरिश को लेकर हर संस्कृति में लोगों की अलग-अलग राय होती है और ये राय वक्‍त के चलते बदलती रहती हैं। लेकिन जब माता-पिता परमेश्‍वर की सुनते हैं, तो उन्हें इस मामले में अटकलें लगाने या इंसानों के विचारों या अनुभवों पर निर्भर रहने की ज़रूरत नहीं होती।

10 नूह हमारे लिए एक बढ़िया मिसाल है। जब यहोवा ने उसे जहाज़ बनाने के लिए कहा, तो उस वक्‍त उसे जहाज़ बनाने का कोई तजुरबा नहीं था। उसे पूरी तरह यहोवा पर निर्भर रहना था। बाइबल बताती है, “उसे जैसा बताया गया था, उसने ठीक वैसा ही किया।” (उत्प. 6:22) नतीजा? उस जहाज़ के ज़रिए नूह और उसके परिवार की जान बची। इसके अलावा, नूह एक अच्छा पिता भी साबित हुआ। वह इसलिए कि उसने परमेश्‍वर की बुद्धि पर भरोसा रखा। उसने अपने बच्चों को अच्छी तरह सिखाया और उनके लिए बढ़िया मिसाल रखी, जो जलप्रलय से पहले की उस दुष्ट दुनिया में करना हरगिज़ आसान नहीं था।​—उत्प. 6:5.

11. बच्चों को प्रशिक्षण देते वक्‍त माता-पिताओं की मिसाल क्यों अहमियत रखती है?

11 अगर आप एक माता-पिता हैं, तो आप नूह की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? यहोवा की सुनिए। अपने बच्चों की परवरिश करने में उसकी मदद लीजिए। उसके वचन और संगठन से मिलनेवाली सलाह को मानिए। ऐसा करने से आपके बच्चे बड़े होकर आपका एहसान मानेंगे। एक भाई लिखता है, “मेरे मम्मी-पापा ने जिस तरह मुझे पाला-पोसा, उसके लिए मैं उनका शुक्रगुज़ार हूँ। मेरे दिल तक पहुँचने में उन्होंने बहुत मेहनत की।” वह यह भी कहता है कि उसके माता-पिता की वजह से ही वह यहोवा के करीब आ पाया है। यह सच है कि माता-पिता की कड़ी मेहनत के बावजूद कुछ बच्चे यहोवा को छोड़ देते हैं। ऐसे में माता-पिताओं का ज़मीर शायद उन्हें कचोटे। लेकिन जिन माता-पिताओं ने बच्चों की परवरिश करने में जी-तोड़ मेहनत की है, वे साफ ज़मीर बनाए रख सकते हैं और यह उम्मीद रख सकते हैं कि एक-न-एक दिन उनके बच्चे यहोवा के पास लौट आएँगे।

12, 13. (क) बच्चे के बहिष्कार होने पर माता-पिता कैसे दिखाते हैं कि वे परमेश्‍वर की आज्ञा मानते हैं? (ख) बताइए कि कैसे एक माता-पिता ने यहोवा की आज्ञा मानी जिस वजह से उनके परिवार को फायदा हुआ।

12 कुछ माता-पिताओं के लिए सबसे मुश्‍किल परीक्षा तब आती है जब उनके बच्चे का बहिष्कार किया जाता है। ऐसे में यहोवा की आज्ञा मानते रहना उनके लिए आसान नहीं होता। एक बहन, जिसकी बेटी का बहिष्कार हुआ था और जो घर छोड़कर चली गयी थी, कबूल करती है, “मैं प्रकाशनों में कुछ ऐसी बातें ढूँढ़ने लगी जिनसे मुझे अपनी बेटी और नातिन के साथ समय बिताने का बहाना मिल जाए।” लेकिन बहन के पति ने प्यार से उसे समझाया कि अब यहोवा उनकी बेटी को शिक्षा दे रहा है और उन्हें सबसे बढ़कर उसके वफादार रहना है।

13 कुछ साल बाद उनकी बेटी को बहाल किया गया। बहन कहती है, “अब मेरी बेटी लगभग हर दिन मुझे फोन करती या मैसेज करती है! वह जानती है कि मैंने और मेरे पति ने हर हाल में परमेश्‍वर की आज्ञा मानी है और इस वजह से वह हमारी बहुत इज़्ज़त करती है। अब हमारे बीच एक खूबसूरत रिश्‍ता है!” अगर आपके बच्चे का बहिष्कार हुआ है, तो क्या आप “पूरे दिल से यहोवा पर भरोसा” रखेंगे? क्या आप उसे दिखाएँगे कि आप ‘अपनी समझ का सहारा नहीं लेते’? (नीति. 3:5, 6) याद रखिए, यहोवा सबसे बुद्धिमान है और हमसे बहुत प्यार करता है और यही बात उसकी शिक्षा में साफ देखी जा सकती है। यह कभी मत भूलिए कि उसने सभी इंसानों की खातिर अपना बेटा कुरबान किया है। जी हाँ, उसने आपके बच्चे के लिए भी अपने बेटे की जान दी है। यहोवा चाहता है कि सबको हमेशा की ज़िंदगी मिले। (2 पतरस 3:9 पढ़िए।) इसलिए माता-पिताओ, यहोवा की शिक्षा और उसके मार्गदर्शन पर भरोसा रखिए। उसकी आज्ञा मानते रहिए, फिर चाहे ऐसा करने से आपको तकलीफ क्यों न हो। परमेश्‍वर की शिक्षा कबूल कीजिए और उसका विरोध मत कीजिए।

मंडली में

14. यहोवा ‘विश्‍वासयोग्य प्रबंधक’ के ज़रिए जो हिदायतें देता है, उनसे हमें क्या फायदा होता है?

14 यहोवा ने मसीही मंडली की देखभाल करने, उसकी हिफाज़त करने और उसे सिखाने का वादा किया है। वह कई तरीकों से ऐसा करता है। मिसाल के लिए, उसने अपने बेटे यीशु को मंडली की देखरेख करने के लिए चुना है और यीशु ने ‘विश्‍वासयोग्य प्रबंधक’ को ठहराया है, जो सही वक्‍त पर हमें खाना देता है। (लूका 12:42) यह “प्रबंधक” हमें अनमोल हिदायतें या शिक्षा देता है जो हमारी सोच और व्यवहार को सुधारती है। क्या आपने कभी कोई भाषण सुना है या हमारी पत्रिकाओं में कोई लेख पढ़ा है, जिस वजह से आपने अपनी सोच या व्यवहार में कुछ फेरबदल किए? अगर हाँ, तो आप खुश हो सकते हैं क्योंकि यह इस बात का सबूत है कि आप यहोवा की शिक्षा कबूल कर रहे हैं।​—नीति. 2:1-5.

15, 16. (क) प्राचीनों के इंतज़ाम से फायदा पाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? (ख) आप प्राचीनों का काम कैसे आसान बना सकते हैं?

15 यीशु ने मंडली की देखभाल करने के लिए प्राचीनों का भी इंतज़ाम किया है। बाइबल में इन्हें “आदमियों के रूप में तोहफे” कहा गया है। (इफि. 4:8, 11-13) इस इंतज़ाम से फायदा पाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? हम प्राचीनों के जैसा विश्‍वास रख सकते हैं और उनकी अच्छी मिसाल पर चल सकते हैं। यही नहीं, जब वे बाइबल से कोई सलाह देते हैं, तब हम उसे मान सकते हैं। (इब्रानियों 13:7, 17 पढ़िए।) प्राचीन हमसे प्यार करते हैं और चाहते हैं कि हम परमेश्‍वर के साथ एक करीबी रिश्‍ता बनाए। इसलिए जब वे देखते हैं कि हमने सभाओं में आना कम कर दिया है या हमारा जोश ठंडा पड़ गया है, तो वे तुरंत हमारी मदद करने की कोशिश करते हैं। वे ध्यान से हमारी बातें सुनते हैं, फिर बाइबल से हमारा हौसला बढ़ाते हैं और हमें बुद्धि-भरी सलाह देते हैं। क्या आप प्राचीनों की इस मदद को यहोवा के प्यार का सबूत समझते हैं?

16 याद रखिए, प्राचीनों के लिए हमें सलाह देना आसान नहीं होता। ज़रा सोचिए, जब दाविद ने अपने गंभीर पाप छिपाने की कोशिश की, तो उस वक्‍त भविष्यवक्‍ता नातान के लिए उससे बात करना बिलकुल आसान नहीं रहा होगा। (2 शमू. 12:1-14) उसी तरह जब पतरस ने, जो 12 प्रेषितों में से एक था, गैर-यहूदी भाइयों के साथ भेदभाव किया, तो उसे सुधारने के लिए प्रेषित पौलुस को कितनी हिम्मत जुटानी पड़ी होगी। (गला. 2:11-14) तो फिर, जब प्राचीन आपको सलाह देते हैं, तो आप कैसे उनका काम आसान बना सकते हैं? नम्र रहिए, ऐसा रवैया रखिए कि वे खुलकर आपसे बात कर सकें और सलाह देने के लिए उनका धन्यवाद कीजिए। उनकी मदद को परमेश्‍वर के प्यार का सबूत समझिए। इससे आपको फायदा होगा और प्राचीन भी खुशी-खुशी अपनी ज़िम्मेदारी निभा पाएँगे।

17. प्राचीनों ने किस तरह एक बहन की मदद की?

17 एक बहन बताती है कि उसकी ज़िंदगी में हुए कुछ बुरे अनुभवों की वजह से उसके लिए यहोवा से प्यार करना बहुत मुश्‍किल था। इस वजह से वह मायूस रहने लगी। वह कहती है, “मैं जानती थी कि मुझे प्राचीनों से बात करनी चाहिए। जब मैंने ऐसा किया तो उन्होंने न तो मुझे फटकारा, न ही मेरी निंदा की बल्कि मेरी हिम्मत बँधायी। फिर हर सभा के बाद प्राचीन चाहे कितने भी व्यस्त क्यों न थे, उनमें से एक ज़रूर मेरे पास आता था और मेरा हाल-चाल पूछता था। अपने बीते कल की वजह से मेरे लिए यह मानना मुश्‍किल था कि मैं परमेश्‍वर के प्यार के लायक हूँ। लेकिन यहोवा ने मंडली और प्राचीनों के ज़रिए बार-बार मुझे यकीन दिलाया कि वह मुझसे बहुत प्यार करता है। परमेश्‍वर से मेरी यही दुआ है कि मैं कभी उसका साथ न छोड़ूँ।”

किस बात से ज़्यादा दुख होता है?

18, 19. सुधारे जाने पर जो दुख होता है, उससे कहीं ज़्यादा दुख किस बात से होता है? एक उदाहरण दीजिए।

18 जब किसी को सुधारा जाता है तो उसे दुख हो सकता है, लेकिन जो परमेश्‍वर की शिक्षा ठुकराता है, उसे इससे भी ज़्यादा दुख भुगतना पड़ सकता है। (इब्रा. 12:11) यह बात कैन और राजा सिदकियाह की मिसाल से साफ ज़ाहिर होती है। जब परमेश्‍वर ने देखा कि कैन अपने भाई से नफरत करता है और उसे जान से मार डालना चाहता है, तो उसने कैन को खबरदार किया। उसने कहा, “तू क्यों इतने गुस्से में है? तेरा मुँह क्यों उतरा हुआ है? अगर तू अच्छे काम करने लगे तो क्या मैं तुझे मंज़ूर नहीं करूँगा? लेकिन अगर तू अच्छाई की तरफ न फिरे, तो जान ले कि पाप तुझे धर-दबोचने के लिए दरवाज़े पर घात लगाए बैठा है। इसलिए तू पाप करने की इच्छा को काबू में कर ले।” (उत्प. 4:6, 7) कैन ने यहोवा की बात अनसुनी कर दी। उसने यहोवा की शिक्षा ठुकरा दी और अपने भाई का खून कर दिया। उसे ज़िंदगी-भर इसका भयानक अंजाम भुगतना पड़ा। (उत्प. 4:11, 12) अगर कैन ने यहोवा की बात मानी होती, तो उसे यह दुख नहीं झेलना पड़ता।

19 अब सिदकियाह की मिसाल पर ध्यान दीजिए। वह एक डरपोक और दुष्ट राजा था। उसके राज में यरूशलेम के लोगों का बुरा हाल था। भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह ने बार-बार सिदकियाह को चेतावनी दी कि वह खुद को बदले। लेकिन सिदकियाह ने यहोवा की शिक्षा ठुकरा दी और इसके बहुत दर्दनाक अंजाम हुए। (यिर्म. 52:8-11) यहोवा नहीं चाहता कि हम कैन और सिदकियाह की तरह दर्दनाक अंजाम भुगते।​—यशायाह 48:17, 18 पढ़िए।

20. यहोवा की शिक्षा कबूल करनेवालों का क्या होगा और उसकी शिक्षा ठुकरानेवालों को क्या सिला मिलेगा?

20 आज दुनिया में कई लोग परमेश्‍वर की शिक्षा का मज़ाक उड़ाते हैं और उस पर कोई ध्यान नहीं देते। लेकिन जल्द ही ऐसा वक्‍त आएगा जब उसकी शिक्षा ठुकरानेवालों को दर्दनाक अंजाम भुगतने पड़ेंगे। (नीति. 1:24-31) इसलिए आइए हम ‘शिक्षा को कबूल करें और बुद्धिमान बनें।’ नीतिवचन 4:13 बताता है, “तुझे जो शिक्षा मिले उसे पकड़े रहना, जाने मत देना, उसी पर तेरी ज़िंदगी टिकी है, उसे सँभालकर रखना।”